Fictional Story: पति से अलग होते ही नेहा के सामने पहली बड़ी समस्या आई कि रहा कहां जाए? रोहन तो ऐलीमनी देने को राजी था लेकिन नेहा के जमीर को यह गवारा न हुआ कि वह अपने स्वाभिमान को छोड़े, हालांकि कानूनी तौर पर वह ऐलीमनी की हकदार थी लेकिन कानूनी हक से ज्यादा वह अपने स्वाभिमान को स्पेस देती थी. रोहन नेहा के लिए बीती जिंदगी से अधिक कुछ नहीं था.

हां, कभी वह जीवन का हिस्सा था, पर जब उस ने पहली बार उस पर हाथ उठाया था तब से भीतर ही भीतर बहुत कुछ टूटने लगा था. नेहा ने उस थप्पड़ के बाद भी रिश्ता निभाने की कोशिश की थी, मगर हर बार वह थप्पड़ जैसे दीवार पर छपा निशान बन कर खड़ा रहा. आखिरकार नेहा ने तय किया कि अब नहीं. उस ने अब जिंदगी को नए सिरे से जीने का प्लान किया. रहने के लिए दिल्ली के वसंत कुंज में किराए पर नया घर लिया. एक दिन अचानक बिजली चली गई तो वह नीचे वाले फ्लैट में मोमबत्ती मांगने गई.

नई जगह शिफ्ट करने पर न चाहते हुए भी रोजमर्रा की जिंदगी की कितनी ही चीजें हम नहीं ला पाते. अचानक उन की जरूरत पड़े तो पड़ोसी आज भी काम आते हैं. नेहा को याद है, जब वह गांव में रहती थी तो खाने की वस्तुओं का आदानप्रदान पड़ोसपड़ोस में खूब चलता था, मूंग की दाल की कटोरी के बदले में उड़द की दाल एकदूसरे के घर से ली जाती थी. तब बाजार की दाम व्यवस्था ज्यादा माने नहीं रखती थी, आपसी मेलजोल को लोग ज्यादा तवज्जो देते थे.

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