Hindi Family Story: रचना ने दरवाजे का ताला खोला और अंदर आ गई. पीछेपीछे सामान का थैला उठाए प्रसून भी अंदर आ गया. रचना पूरे महीने का सामान इकट्ठा नहीं लाती थी. दुकान से वापस आते हुए हफ्ते में एक बार जितना जरूरी होता था उतना खरीद लाती थी. प्रसून ने थैला किचन में जा कर रख दिया और फिर रचना से बोला, ‘‘तुम फटाफट चाय बनाओ तब तक मैं प्रियांशु को ले आता हूं.’’ ‘‘जी ठीक है,’’ कह कर रचना हाथमुंह धोने बाथरूम में चली गई. प्रसून प्रियांशु को लेने चला गया.
2-3 घर छोड़ कर ही एक घर में बच्चों का झलाघर था जिस में 6 महीने से ले कर 13-14 वर्ष तक के बच्चे रहते थे. यह एक वृद्ध दंपती का घर था. उन के दोनों बच्चे अमेरिका में सैटल हो चुके थे और अपनीअपनी गृहस्थी में पूरी तरह रम गए थे और खुश थे. यह उन की खुशी का ही परिणाम था कि यह वृद्ध दंपती नातीपोतों से खेलने की उम्र में यहां अकेले एकाकी रह गए थे. अपना एकाकीपन काटने के लिए उन्होंने झलाघर खोल लिया. इस महल्ले में वे 40 वर्षों से रह रहे थे. स्वभाव के भी अच्छे थे. सब लोग उन्हें जानते और मानते थे. 1-1 कर दूर पास के कई बच्चे उन के पास आ गए. घर विभिन्न उम्र के नातीपोतों से भर गया, साथ ही अतिरिक्त आय भी हो जाती.
समय एक अच्छे काम में व्यतीत हो जाता. बच्चों को प्यार से संभालने वाले दादादादी मिल गए और मातापिता को बच्चों की अच्छी और सुरक्षित देखभाल का आश्वासन. सब की समस्याओं का समाधान हो गया. प्रसून रोहनजी के घर पहुंचा तो प्रियांशु उन की गोद में बैठा कहानी सुन रहा था. बाकी बच्चे दरी पर आसपास बैठे थे. प्रियांशु तो रोहन दंपती का खास प्यारा था. प्रसून को देखते ही प्रियांशु चहक उठा, ‘‘अंकल आ गए.’’ प्रसून ने हंस कर उसे गोद में ले लिया, ‘‘घर चलें बेटा?’’ ‘‘हां चलो,’’ प्रियांशु ने उस के गले से लिपटते हुए कहा. प्रसून ने प्रियांशु का स्कूल बैग लिया, रोहनजी को नमस्ते कहा और घर की ओर आ गया.
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