खामोशियां: क्यों पति को इग्नोर कर रही थी रोमा?

देखने में तो घर में सब सामान्य लग रहा था पर ऐसा था नहीं. रोमा के दिल में एक तूफ़ान सा उठा था. वह कैसे बाहर जाए, सारा दिन तो घर में नहीं बैठ सकती थी, वह भी वन बैडरूम के इस फ्लैट में.

सुजय से बात करने के लिए रोमा को कोई कोना नहीं मिल रहा था. पति रवि कोरोना के टाइम में पूरा दिन घर में रहता, सारा दिन वर्क फ्रौम होम करता. 2 साल का बेटा सोनू खूब खुश था कि मम्मीपापा सारा दिन सामने हैं. पर मां के दिल में उठते तूफ़ान को वह 2 साल का बच्चा कैसे जान पाता.

जैसे ही औफिस के काम से कुछ छुट्टी मिलती, रवि घर के कामों में रोमा का खूब हाथ बंटाता. पर फिर भी रोमा के चेहरे पर चिढ़ और गुस्से के भाव कम होने का नाम ही नहीं ले रहे थे तो उस ने कहा, “रोमा, घर के काम जो भी मुश्किल लग रहे हैं, मुझे बता दिया करो, तुम्हारे चेहरे से तो हंसी जैसे गायब हो गई है.”

रोमा फट पड़ी, “नहीं रहा जाता मुझ से पूरा दिन घर में बंद हो कर.”

“पर डिअर, तुम तो पहले भी घर पर ही रहती थीं न, मैं ही तो औफिस जाता था और मैं तो चुपचाप हूं घर पर, कोई शिकायत भी नहीं करता. तुम्हें और सोनू को देख कर ही खुश हो जाता हूं.”

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रोमा मन ही मन फुंफकारती रह गई. कैसे कहे किसी से कि सुजय से प्यार हो गया है उसे और वह रोज उस से मिलती थी. शाम को जब वह सोनू को ले कर पार्क में जाती, तो वह भी वहीं दौड़ रहा होता. आंखों ही आंखों में उस के सुगठित शरीर को देख कर तारीफ़ कर उठती तो सुजय भी समझ जाता और उसे देख एक स्माइल करता पास से निकल जाता. धीरेधीरे हायहैलो से शुरू हुई बातचीत अब एक अच्छाख़ासा अफेयर बन चुकी थी. सुजय अविवाहित था. वह पास की ही एक बिल्डिंग में अपने पेरैंट्स और एक छोटी बहन के साथ रहता था.

रवि की अनुपस्थिति में रोमा ने एकदो बार सुजय को घर भी बुलाया था. ज्यादातर बातें मिलने पर या फोन पर ही होतीं. रोज मिलना एक नियम बन गया था. अच्छी तरह सजसंवर कर रोज सोनू को ले कर पार्क में जाना और सुजय से बातें करना जैसे रोमा को एक नए उत्साह से भर जाता.

अब लौकडाउन में सबकुछ बंद था. पार्क को बंद कर दिया गया था. सामान लेने के बहाने भी वह बाहर नहीं जा सकती थी. शौप्स बंद थीं. सब सामान औनलाइन आ रहा था. सुजय भी बाहर नहीं निकल रहा था.

सुजय के कभीकभी एकदो मैसेज आते जिन्हें रोमा फौरन डिलीट इसलिए करती कि कहीं रवि देख न ले. रवि रोमा को खुश रखने की बहुत कोशिश कर रहा था. पर रोमा की चिड़चिड़ाहट कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी. रात के अंतरंग पलों में जब रोमा का मन होता तो

रवि का साथ देती, जब सुजय की तरफ मन खिंच रहा होता तो रवि का हाथ झटक देती.

रोमा जानती थी कि रवि एक सादा इंसान है जिस की ख़ुशी पत्नी और बच्चे को खुश देखने में ही है. न रवि में कोई ऐब था, न कोई और बुराई. कमाल की सादगी थी उस में. पर रोमा अलग स्वभाव की लड़की थी जिस ने पेरैंट्स के दबाव में आ कर रवि से शादी कर तो ली थी पर शादी के बाद सुजय से संबंध रखने में जरा भी नहीं हिचकिचाई थी. वह हमेशा रवि पर हावी

रहने की कोशिश करती.

एक दिन रवि ने पूछा, “रोमा, तुम मुझ से शादी कर के खुश तो हो न? आजकल जब से मैं घर

पर हूं, तुम बहुत गुस्से में दिखती हो.”

“शादी तो हो ही गई, अब खुश रहूं या दुखी, क्या फर्क पड़ता है, रोमा ने अनमनी हो कर जवाब दिया तो रवि ने उसे बांहों में भर कर कहा, “मुझे बताओ तो, आजकल क्यों इतना मूड खराब रहता है तुम्हारा?”

“मुझे घर में घुटन हो रही है, मुझे बाहर जाना है.”

“अच्छा,बताओ, कहां जाना है, मैं घुमा कर लाता हूं. पर, सब तो बंद है.”

“तुम्हारे साथ नहीं, अकेले जाने का मन है,” रोमा ने सपाट स्वर में कहा तो रवि उस का मुंह देखता रह गया. रोमा ने उस का बढ़ा हुआ हाथ झटका और बेरुखी से वहां से चली गई.

रवि की कुछ जरूरी मीटिंग थी, वह लैपटौप पर बैठ तो गया पर उस का दिल आज बहुत उदास था. वह सोचने लगा, क्या मिल रहा है उसे अपने पेरैंट्स की पसंद से शादी कर के. रोमा उसे पसंद नहीं करती, यह एहसास उसे होने लगा था. उस के पेरैंट्स रोमा से कुंडली मिलने पर बहुत

खुश हुए थे कि खूब अच्छी जोड़ी रहेगी. पर आज वह अपने मन का दुख किसी से भी शेयर नहीं कर सकता था.

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रोमा से रुका नहीं गया तो रवि जब एक दिन नहाने गया, उस ने सुजय को फोन मिला दिया. सुजय मीटिंग में था. वह भी घर से काम कर रहा था. वह फोन नहीं उठा पाया. रोमा का दिल बुझ गया. सुजय ने जब वापस उसे फोन किया तो रवि आसपास था. वह फोन नहीं उठा पाई और उसे रवि पर इतनी जोर से गुस्सा आया कि उस ने रवि को नाश्ते की प्लेट इतनी जोर से पटक कर दी कि रवि को गुस्सा आ गया, बोला, “दिमाग खराब हो गया है तुम्हारा? यह खाना देने की तमीज है तुम्हारी?”

रोमा पर सुजय का भूत सवार था, आवारागर्दियां याद आ रही थीं, चिल्ला कर बोली, “खाना है, तो खाओ वरना मेरी बला से.”

रोमा के इतनी जोर से चिल्लाने पर सोनू डर कर जोर से रो उठा. रवि ने उसे सीने से लगा लिया और चुप करवाने लगा. अभी जो भी हुआ था, रवि को यकीन ही नहीं आ रहा था कि कभी रोमा ऐसे भी बात कर सकती है. वह हैरान था, खामोश था. यह खामोशी अब उसे अंदरअंदर जलाने लगी थी. क्या हुआ है रोमा को, कुछ समझ नहीं आ रहा था.

रोमा का फोन कभी रवि ने चैक नहीं किया था. उस ने रोमा के पर्सनल स्पेस में कभी हस्तक्षेप नहीं किया था. उस ने हमेशा उसे पूरी आज़ादी दी थी. गलती कहां हो रही है जो घर का माहौल इतना खराब होता जा रहा था, यह सोचसोच कर रवि का दिमाग परेशान हो चुका था.

एक दिन लंच कर के रोमा सोनू के साथ सोने के लिए लेटी. रवि लिविंगरूम में काम कर रहा था. रोमा ने सुजय को मैसेज किए. उधर से भी फौरन रोमांस शुरू हो गया. सुजय की बेचैनी देख रोमा को अच्छा लगा पर मिलने की मजबूरी ने रोमा का फिर मूड खराब कर दिया और उसे रवि पर फिर गुस्सा आने लगा कि पता नहीं कितने दिनों तक रवि घर में बैठा रहेगा, कब जाएगा औफिस. थोड़ी देर में फोन रख वह बिना बात के किचन में जा कर खटपट करने लगी. रवि ने इशारा किया कि वह जरूरी मीटिंग में है, शोर न हो. पर रोमा जानबूझ कर और शोर करने लगी. यहां तक कि लिविंगरूम में रखा टी वी भी चला कर बैठ गई. मीटिंग से

उठते ही रवि ने रोमा को डांटा, “यह क्या बदतमीजी है, टीवी अभी देखना जरूरी था?”

“तो कब देखूं? सारा दिन तो घर में डटे हो, कहीं जाते भी नहीं जो थोड़ी देर चैन से जी लूं. सारी प्राइवेसी ख़त्म हो गई मेरी. अपनी मरजी से जी भी नहीं सकती,” यह कहतेकहते रोमा ने रिमोट जोर से सोफे पर पटका तो रवि ने यह सोच कर कि सोनू फिर न रोने लगे, अपनी आवाज धीरे की और समझाया, “क्यों इतनी परेशान हो रही हो, अच्छा, तुम देख लो टीवी, मैं अंदर ही बैठ कर काम कर लूंगा.” यह कह कर रवि अपना लैपटौप उठा कर अंदर जाने लगा तो रोमा ने अंदर जाते हुए कहा, “नहीं, अब मैं आराम करने जा रही हूं.”

हैरानपरेशान रवि सिर पकड़ कर बैठ गया. क्या हो गया है रोमा को, कैसे चलेगा ऐसे. फिर सोचा, शायद घर में रहरह कर सभी को ऐसी ही परेशानी है, वह खुद एडजस्ट कर लेता है हर चीज तो जरूरी तो नहीं कि कोई और परेशान न हो. छोटा बच्चा है, उस के भी काम आदि करने में वह थक जाती होगी. मेड आ नहीं रही है, लखनऊ में केसेस भी काफी हो गए हैं.

कहां इस सोसाइटी में रोमा कितनी ख़ुशी से घूमतीफिरती थी, कहां उस का सबकुछ बंद हो गया. किस पर गुस्सा निकलेगा, मुझ पर ही न, सब रिश्तेदार भी जब फोन पर बातें करते हैं, यही कोरोना की बातें तो रह गई हैं. इंसान खुश भी हो तो किस बात पर. कहीं तो चिढ़ निकलेगी ही न रोमा की. नहीं, ये हालात की ही बात है.

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सबकुछ रोमा के पक्ष में ही सोच कर रवि फिर रोमा के पास जा कर बैठ गया और उस का सिर सहलाने लगा. सोनू सोया हुआ था. सुजय ने अभी चैट शुरू ही की थी कि रवि के आने से उस में विघ्न पड़ गया. रोमा आगबबूला हो गई, गुर्राई, “तुम चैन से मत जीने देना मुझे.”

रवि का चेहरा अपमान से लाल हो गया. क्याक्या सोच कर वह रोमा के पास आया था. चुपचाप उठ कर सोफे पर आ कर लेट गया. आंखों की कोरों से नमी सी बह निकली.

सोसाइटी की हर बिल्डिंग में पार्किंग के एरिया में थोड़ी खुली जगह थी. वहां रात को इक्कादुक्का लोग टहलने के लिए आ जाते. सुजय ने प्रोग्राम बनाया कि रात 9 बजे डिनर के बाद वहां टहलते हुए, दूर से ही सही, एकदूसरे को देखा जा सकता है. और कोई न रहा, तो बातें भी हो सकती हैं. रोमा को यही सब तो चाहिए था. वह चहक उठी. उस दिन रवि से भी कुछ बदतमीजी नहीं की.

रवि ने भी अब खामोशी ओढ़ ली थी. हर समय रोमा का मूड देख कर ही बात करना मुश्किल था. अब वह सिर्फ काम की ही बात करता, सोनू से खेलता और घर के कई काम चुपचाप करता रहता. रोमा डिनर के बाद अकेली टहलने जाने लगी. यह एक नियम सा बन गया. कहां रवि और सोनू को घर से निकलते हुए लंबा टाइम हो जाता, वहां रोमा रोज अब चहकती सी जाने लगी.

रवि ने यह सोच कर तसल्ली कर ली कि चलो, इतने से ही रोमा खुश है, तो अच्छा है. इस का मतलब, यह बस घर में ही परेशान हो रही थी. इस का बाहर जाना बंद हो गया था, इसलिए यह गुस्से में रहती थी. ऐसा तो कोरोना के टाइम में बहुत से लोगों के साथ हुआ

है. चलो, कोई बात नहीं.

सुजय के पेरैंट्स कुछ बीमार चल रहे थे, इसलिए उस ने रोमा को मैसेज किया, “रोमा, कुछ दिन अब फिर नहीं मिलेंगे, मम्मीपापा का ध्यान रखना है. नीचे काफी लोग आने लगे हैं. मैं कहीं कोई इंफैक्शन न ले आऊं, मम्मीपापा को कोई प्रौब्लम न हो जाए, इसलिए घर पर ही रहूंगा अभी. फिर कभी मिलेंगे.”

रोमा को फिर एक झटका सा लगा. उस का मूड खराब हो गया. उसे तो यही लगने लगा था कि लाइफ में जो भी उत्साह है, सब सुजय से है. रवि तो घर में रहरह कर उस की प्राइवेसी को ही भंग करता है. रवि के कारण ही वह फोन पर सुजय से बात भी नहीं कर पाती है. रवि पर वह फिर खूब बरसने लगी. रवि परेशान था. वह कितना चुप रहे, क्या करे, लड़नाझगड़ना उस की फितरत ही नहीं थी. बेहद शांत स्वभाव का इंसान ऐसी स्थिति में खामोश रहना ही हल

समझने लगता है. रवि भी वही कर रहा था.

कुछ दिन ऐसे ही खराब, अनमने से बीते. फिर एक दिन सुजय का मैसेज आया, “रोमा, बहुत बढ़िया मौका है. यहां से थोड़ी दूर की सोसाइटी में हमारा जो फ्लैट किराए पर था, वह किराएदार अपने घर चला गया है. अब वह फ्लैट खाली है. फुली फर्निश्ड है. वहां मिल सकते हैं. कितने दिन हो गए, तुम्हें जीभर देखा भी नहीं, आओगी?”

रोमा ने टाइप किया, “आना है तो बहुत मुश्किल, पर कोशिश करूंगी.”

“अरे, यह मौका जाने दोगी?”

“रवि से क्या कहूंगी? वह वर्क फ्रौम होम करता है, सोनू को भी देखना होता है.”

“यार, ये सब अब तुम देखो, आओ किसी तरह.”

रोमा ने सारा दिमाग लगा दिया कि कैसे निकले घर से, कोई बहाना काम करता नहीं दिख रहा था. बात नहीं बनी तो सारे कोप का भाजन रवि ही बनता चला गया. उस दिन रवि लंच लगाने में हैल्प करने उठा तो रोमा ने कहा, “रहने दो, मैं कर लूंगी.”

 

रवि कुछ बोला नहीं, चुपचाप प्लेट्स रखता रहा. आजकल वह खामोश होता जा रहा था. कुकर गरम था. जैसे ही वह राइस का कुकर उठा कर लाने लगा, रोमा के दिल में सुजय से न मिल पाने की कसक उस पर इतनी हावी थी कि उस ने चिढ़ कर उसे धक्का सा दे दिया. गरम कुकर रवि के हाथ से छूट कर उस के पैर पर गिरा. वह दर्द से तड़प उठा. रोमा ने एक जलती निगाह उस पर डाली, फिर कुकर उठा टेबल पर जा कर रखा और सोनू को पास रखी चेयर पर बिठाया व अपनी प्लेट में खाना निकाल कर खुद भी खाने लगी और उसे भी खिलाने लगी.

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रवि अब तक अपने पैर पर लगाने के लिए फ्रिज से आइस पैक निकाल कर सोफे पर आ कर बैठ गया. रोमा पर नजर डाली, वह आराम से रवि को अनदेखा कर खाना खाने में बिजी थी. जलन से रवि का बुरा हाल था. बहने को तैयार आंसुओं को बड़ी मुश्किल से रोक रखा था रवि ने. कौन कहता है पुरुष को रोना नहीं आता, आता है जबजब रोमा जैसी पत्नियां इस पर उतर आती हैं कि उन्हें अपनी मौजमस्ती के आगे घर, पति बंधन लगने लगें तब यही होता है. पुरुष के सीने में ऐसी खामोशियों का सागर तूफ़ान मचा रहा होता है जिन की आवाज भी बाहर नहीं आ पाती. इन खामोशियों का शोर बहुत जानलेवा होता है.

बहुत ही बेबस रवि को कुछ समझ नहीं आ रहा था. वह आराम से खाना खाती रोमा को देखता रह गया. उसे किस बात की सजा मिल रही है, यह वह समझ ही नहीं पा रहा था.

इंद्रधनुष का आठवां रंग: अपने ही पिता के दोस्त का शिकार बानी रावी

वसुधा की नजरें अभी भी दरवाजे पर ही टिकी थीं. इसी दरवाजे से अभीअभी रावी अपने पति के साथ निकली थी. पीली साड़ी, सादगी से बनाया जूड़ा, माथे पर बिंदिया, मांग में सिंदूर, हाथों में भरीभरी चूडि़यां… कुल मिला कर संपूर्ण भारतीय नारी की छवि को साकार करती रावी बहुत खूबसूरत लग रही थी. गोद में लिए नन्हे बच्चे ने एक स्त्री को मां के रूप में परिवर्तित कर कितना गरिमामय बना दिया था.

वसुधा ने अपना सिर कुरसी पर टिका आराम की मुद्रा में आंखें बंद कर लीं. उन की आंखों में 3-4 साल पहले के वे दिन चलचित्र की भांति घूम गए जब रावी के मम्मीपापा उसे काउंसलिंग के लिए वसुधा के पास लाए थे.

वसुधा सरकारी हौस्पिटल में मनोवैज्ञानिक हैं, साथ ही सोशल काउंसलर भी. हौस्पिटल के व्यस्त लमहों में से कुछ पल निकाल कर वे सोशल काउंसलिंग करती हैं. अवसाद से घिरे और जिंदगी से हारे हताशनिराश लोगों को अंधेरे से बाहर निकाल कर उन्हें फिर से जिंदगी के रंगों से परिचित करवाना ही उन का एकमात्र उद्देश्य है.

रावी को 3-4 साल पहले वसुधा के हौस्पिटल में भरती करवाया गया था. छत के पंखे से लटक कर आत्महत्या की कोशिश की थी उस ने, मगर वक्त रहते उस की मां ने देख लिया और उसे तुरंत हौस्पिटल लाया गया. समय पर चिकित्सा सुविधा मिलने से रावी को बचा लिया गया था. मगर वसुधा पहली ही नजर में भांप गई थीं कि उस के शरीर से भी ज्यादा उस का मन आहत और जख्मी है.

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वसुधा ने हकीकत जानने के लिए रावी की मां शांति से बात की. पहले तो वे नानुकुर करती टालती रहीं, मगर जब वसुधा ने उन्हें पूरी बात को गोपनीय रखने और उन की मदद करने का भरोसा दिलाया तब जा कर उन्होंने अपने आधेअधूरे शब्दों और इशारों से जो बताया उसे सुन कर वसुधा का मासूम रावी पर स्नेह उमड़ आया.

शांति ने उन्हें बताया, ‘‘रावी दुराचार का शिकार हुई है और वह भी अपने पिता के खास दोस्त के द्वारा. पिता का जिगरी दोस्त होने के नाते उन के घर में उस का बिना रोकटोक आनाजाना था. कोई शक करे भी तो कैसे? उस की सब से छोटी बेटी रावी की सहेली भी थी. दोनों एक ही क्लास में पढ़ती थीं. एक दिन रावी अपनी सहेली से एक प्रोजैक्ट फाइल लेने उस के घर गई. सहेली अपनी मां के साथ बाजार गई हुई थी. अत: उस के पापा ने कहा कि तेरी सहेली का बैग अंदर रखा है. अंदर जा कर ले ले जो भी लेना है. उस के बाद जब रावी वापस घर आई, तो चुपचाप कमरे में जा कर सो गई. सुबह उसे तेज बुखार चढ़ गया. हम ने इसे काफी हलके में लिया. कई दिन तक जब रावी कालेज भी नहीं गई, तो हम ने सोचा शायद पीरियड नहीं लग रहे होंगे.

‘‘फिर एक दिन जब इन के दोस्त घर आए तो हमेशा की तरह उन्हें पानी का गिलास देने को भागने वाली रावी कमरे में जा कर छिप गई. तब मेरा माथा ठनका. मैं ने रावी का सिर सहलाते हुए उसे विश्वास में लिया, तो उस ने सुबकतेसुबकते इस घिनौनी घटना का जिक्र किया, जिसे सुन कर मेरे तनबदन में आग लग गई. मैं ने तुरंत इस के पिता से पुलिस में शिकायत करने को कहा. मगर इन्होंने मुझे शांति से काम लेने को कह समझाया कि पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज करा कर केस करना तो बहुत आसान है, मगर उस की पेशियां भुगतना बहुत कष्टदाई होता है. अपराधी को सजा दिलवाना तो नाकों चने चबाना जैसा होता है. सब से पहले तो अपराध को साबित करना ही मुश्किल होता है, क्योंकि ऐसे केस में कोई गवाह नहीं होता. फिर हर पेशी पर जब रावी को वकीलों के नंगे करते सवालों के जवाब देने पड़ेंगे, तो हमारी फूल सी बेटी को फिर से उस हादसे को जीना पड़ेगा. अभी तो यह बात सिर्फ हमारे बीच में ही है, जब समाज में चली जाएगी तो बेटी का जीना मुश्किल हो जाएगा. पूरी जिंदगी पड़ी है उस के सामने… कौन ब्याहेगा उसे?’’

कुछ देर रुक शांति ने एक उदास सी सांस ली और फिर आगे कहना शुरू किया, ‘‘बेटी का हाल देख कर मन तो करता था कि उस दरिंदे को भरे बाजार गोली मार दूं, मगर पति की बात में भी सचाई थी. बेटी का वर्तमान तो खराब हो ही चुका था कम से कम उस का भविष्य तो खराब न हो, यही सोच कर हम ने कलेजे पर पत्थर रख लिया. रावी को समझाबुझा कर फिर से कालेज जाने को राजी किया. भाई उसे लेने और छोड़ने जाता. मैं भी सारा दिन उस के आसपास ही रहती. उसे आगापीछा समझाती, मगर उस की उदासी दूर नहीं कर सकी. इसी बीच एक दिन मैं थोड़ी देर के लिए पड़ोसिन के घर किसी काम से गई, तो इस ने यह कदम उठा लिया.’’

वसुधा बड़े ध्यान से सारा घटनाक्रम सुन रही थीं. जैसे ही शांति ने अपनी बात खत्म की, वसुधा जैसे नींद से जागीं. यों लग रहा था मानो वे सुन नहीं रही थीं, बल्कि इस सारे घटनाक्रम को जी रही थीं. उन्होंने शांति से रावी को अपने घर लाने के लिए कहा.

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पहली बार वसुधा के सामने रावी ने अपनी जबान नहीं खोली. चुपचाप आंखें नीचे किए रही. दूसरी बार भी कुछ ऐसा ही हुआ. बस फर्क इतना था कि इस बार रावी ने नजरें उठा कर वसुधा की तरफ देखा था. इसी तरह 2 और सिटिंग्स हुईं. वसुधा उसे हर तरह से समझाने की कोशिश करतीं, मगर रावी चुपचाप खाली दीवारों को ताकती रहती.

एक दिन रावी ने बहुत ही ठहरे हुए शब्दों में वसुधा से कहा, ‘‘बहुत आसान होता है सब कुछ भूल कर आगे बढ़ने और जीने की सलाह देना. मगर जो मेरे साथ घटित हुआ वह मिट्टी पर लिखा वाक्य नहीं, जिसे पानी की लहरों से मिटा दिया जाए… आप समझ ही नहीं सकतीं उस दर्द को जो मैं ने भोगा है…जब दर्द देने वाला कोई अपना ही हो तो तन से भी ज्यादा मन लहूलुहान होता है,’’ और फिर वह फफक पड़ी.

वसुधा उसे सीने से लगा कर मन ही मन बुदबुदाईं कि यह दर्द मुझ से बेहतर और कौन समझ सकता है मेरी बच्ची.

रावी ने आश्चर्य से वसुधा की ओर देखा. उन की छलकी आंखें देख कर वह अपना रोना भूल गई. वसुधा उस की बांह थाम कर उसे 20 वर्ष पहले की यादों की गलियों में ले गईं.

‘‘स्कूल के अंतिम वर्ष में फेयरवैल पार्टी से लौटते वक्त रात अधिक हो गई थी. मैं और मेरी सहेली रूपा दोनों परेशान सी औटो की राह देख रही थीं. तभी एक कार हमारे पास आ कर रुकी. हम दोनों कुछ समझ पातीं, उस से पहले ही 2 गुंडों ने मुझे कार में खींच लिया. रूपा अंधेरे का फायदा उठा कर भागने में कामयाब हो गई. उस ने किसी तरह मेरे घर वालों को खबर दी. मगर जब तक वे मुझ तक पहुंच पाते गुंडे मेरी इज्जत को तारतार कर मुझे बेहोशी की हालत में सड़क के किनारे फेंक कर जा चुके थे.

‘‘मुझे अधमरी हालत में घर लाया गया. मांपापा रोतेधोते खुद को कोसते रह गए. मुझे अपनेआप से घिन होने लगी. मैं ने कालेज जाना छोड़ दिया. घंटों बाथरूम में अपने शरीर को रगड़रगड़ कर नहाती, मगर फिर भी उस लिजलिजे स्पर्श से अपनेआप को आजाद नहीं कर पाती. मुझे लगता मानो सैकड़ों कौकरोच मेरे शरीर पर रेंग रहे हों. एक दिन मुझे एहसास हुआ कि उस हादसे का अंश मेरे भीतर आकार

ले रहा है. तब मैं ने भी तुम्हारी ही तरह अपनी जान देने की कोशिश की, मगर जान देना इतना आसान नहीं था. मेरी कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं. मैं बिलकुल टूट चुकी थी. मेरी इस मुश्किल घड़ी में मेरी मां मेरे साथ थीं. उन्होंने मुझे समझाया कि मैं क्यों उस अपराध की सजा अपनेआप को देने पर तुली हूं, जो मैं ने किया ही नहीं…शर्म मुझे नहीं उन दरिंदों को आनी चाहिए… धिक्कार उन्हें होना चाहिए…

‘‘और एक दिन मां मुझे अपनी जानपहचान की डाक्टर के पास ले गईं. उन्होंने मुझे इस पाप की निशानी से छुटकारा दिलाया. वह मेरा नया जन्म था और उसी दिन मैं ने ठान लिया था कि आज से मैं अपने लिए नहीं, बल्कि अपने जैसों के लिए जीऊंगी. मुझे खुशी होगी, अगर मैं तुम्हें वापस जीना सिखा सकूं,’’ वसुधा ने सब कुछ एक ही सांस में कह डाला मानो वे भी आज एक बोझ से मुक्त हुई हों.

‘‘आप को समाज से डर नहीं लगा?’’ रावी ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘कैसा डर? किस समाज से… अब मैं हर डर से आजाद हो चुकी थी. वैसे भी मेरे पास खोने के लिए बचा ही क्या था. अब तो मुझे सब कुछ वापस पाना था.’’

‘‘फिर क्या हुआ? मेरा मतलब. आप यहां, इस मुकाम तक कैसे पहुंचीं?’’ रावी को अभी भी वसुधा की बातों पर यकीन नहीं हो रहा था.

‘‘उस हादसे को भूलने के लिए मैं ने वह शहर छोड़ दिया. आगे की पढ़ाई मैं ने होस्टल में रह कर पूरी की. अब बस मेरा एक मात्र लक्ष्य था मनोविज्ञान में मास्टर डिगरी हासिल करना ताकि मैं इनसान के मन के भीतर की उस तह तक पहुंच सकूं जहां वह अपने सारे अवसाद, राज और विकार छिपा कर रखता है. मैं ने अपनी कमजोरी को अपनी ताकत बना कर अपनी लड़ाई लड़ी और उस पर विजय पाई,’’ थोड़ी देर रुक कर वसुधा ने रावी के कंधे पर हाथ रखते हुए कहना जारी रखा, ‘‘बेटा, हमें यह जीवन कुदरत ने जीने के लिए दिया है. किसी और के कुकर्मों की सजा हम अपनेआप को क्यों दें? तुम्हें भी बहादुरी से अपनी लड़ाई लड़नी है… अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है… तुम अपनी पढ़ाई पूरी करो…और हां, अपने बच्चे के नामकरण पर मुझे जरूर बुलाना,’’ वसुधा ने रावी के चेहरे पर मुसकान लाने की कोशिश की.

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‘‘आप ने शादीक्यों नहीं की?’’ रावी ने यह जलता प्रश्न उछाला, तो इस बार उस की लपटें वसुधा के आंचल तक जा पहुंचीं. एक लंबी सांस ले कर वे बोलीं, ‘‘हां, यहां मैं चूक गई. मेरे साथ पढ़ने वाले डा. नमन ने मेरे सामने शादी का प्रस्ताव रखा था. मैं भी उन्हें पसंद करती थी, मगर मेरी साफगोई शायद उन्हें पसंद नहीं आई. मैं ने शादी से पहले उन्हें अपने बारे में सब कुछ बता दिया, जिसे उन का पुरुषोचित अहं स्वीकार नहीं कर पाया. हालांकि उन्होंने शादी करने से मना नहीं किया था, मगर मैं ही पीछे हट गई. अब मुझे उन के प्यार में दया की बू आने लगी थी और इस मुकाम पर पहुंचने के बाद मैं किसी की दया की पात्र नहीं बनना चाहती थी. मैं जानती थी कि आज नहीं तो कल यह प्यार सहानुभूति में बदल जाएगा और मैं वह स्थिति अपने सामने नहीं आने देना चाहती थी.’’

‘‘फिर आप मुझे शादी करने के लिए क्यों कह रही हैं? यह परिस्थिति तो मेरे सामने भी आएगी.’’

‘‘वही मैं तुम्हें समझाना चाह रही हूं कि जो गलती मैं ने की वह तुम भूल कर भी मत करना. यह एक कड़वी सचाई है कि खुद कई गर्लफ्रैंड्स रखने वाले पुरुष भी पत्नी वर्जिन ही चाहते हैं. तुम्हें किसी को भी सफाई देने की जरूरत नहीं  है. जब तक तुम खुद किसी को नहीं बताओगी, तुम्हारे साथ हुए हादसे के बारे में किसी को कुछ पता नहीं चलेगा.’’

‘‘मगर यह तो किसी को धोखा देने जैसा हुआ?’’ रावी अभी भी तर्क कर रही थी.

‘‘धोखा तो वह था जो तुम्हारे पापा के दोस्त ने तुम्हारे पापा को दिया… अपने परिवार को दिया… तुम्हारी मासूमियत और इनसानियत को दिया. हम औरतों को अब अपने लिए थोड़ा स्वार्थी होना ही पड़ेगा… जीवन के इंद्रधनुष में 8वां रंग हमें खुद भरना होगा. अच्छा एक बात बताओ तुम्हारा वह तथाकथित अंकल बिना किसी को कुछ बताए समाज में शान से रह रहा है न? फिर तुम क्यों नहीं? अगर सोने पर कीचड़ लग जाए, तो भी उस की शुद्धता में रत्ती भर भी फर्क नहीं आता. तुम्हें भी इस हादसे को एक बुरा सपना मान कर भूलना होगा,’’ कह वसुधा ने उसे सोचने के लिए छोड़ दिया.

‘‘अगर अंकल ने मुझे ब्लैकमेल करने की कोशिश की तो?’’ रावी ने अपनी शंका जाहिर की.

‘‘वह ऐसा नहीं करेगा, क्योंकि ऐसा करने पर खुद उस की पहचान भी तो उजागर होगी और फिर कोई भी व्यक्ति अपने परिवार और समाज के सामने जलील नहीं होना चाहेगा,’’ वसुधा ने अपने अनुभव के आधार पर कहा.

बात रावी की समझ में आ गई थी. वह पूरे आत्मविश्वास के साथ उठ कर वसुधा के चैंबर से निकल गई. उस के कालेज के लास्ट ईयर के फाइनल ऐग्जाम का टाइमटेबल आ चुका था. उस ने मन लगा कर परीक्षा दी और प्रथम श्रेणी से पास हुई. उस के बाद उस ने कंप्यूटर का बेसिक कोर्स किया और फिर उसी संस्थान में काम करने लगी. साल भर पहले एक अच्छा सा लड़का देख कर उस के घर वालों ने उस की शादी कर दी. उस के बाद रावी आज ही वसुधा से मिलने आई थी. अपने बेटे के नामकरण का निमंत्रण देने.

इस बीच वसुधा निरंतर शांति के संपर्क में रहीं. कदमकदम पर उन्हें राह दिखाती रहीं, मगर रावी से दूर ही रहीं. वे उसे खुद ही गिर कर उठने देना चाहती थीं. वे संतुष्ट थीं कि उन्होंने एक और कली को मुरझाने से बचा लिया.

रावी ने तो अपना वादा निभा दिया था, अब उन की बारी थी. अत: तैयार हो वे अपना पर्स उठा नन्हे मेहमान के लिए गिफ्ट लेने बाजार चल दीं.

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बदलता नजरिया

दीपिका औफिस से लौट रही थी, तो गाड़ी की तेज गति के साथ उस के विचार भी अनियंत्रित गति से भागे जा रहे थे. आज उसे प्रमोशन लैटर मिला था. 4 लोगों को सुपरसीड कर के उसे ब्रांच मैनेजर के पद के लिए चुना गया था. उसे सफलता की आशा तो थी पर पूरी भी होगी, इस बात का मन में संशय था, क्योंकि उस से भी सीनियर औफिसर इस पद के दावेदार थे. उन सब को सुपरसीड कर के इस पद को पाना उस की अपनेआप में बहुत बड़ी उपलब्धि थी. इस उपलब्धि पर औफिस में सभी लोगों ने बधाई तो दी ही थी, ट्रीट की मांग भी कर डाली थी. उस ने उसी समय अपने चपरासी को बुला कर मिठाई लाने के लिए पैसे दिए थे तथा सब का मुंह मीठा करवाया था. यह खुशखबरी वह सब से पहले जयंत को देना चाहती थी, जिस ने हर अच्छेबुरे पल में सदा उस का साथ दिया था. चाहती तो फोन के द्वारा भी उसे यह सूचना दे सकती थी पर ऐसा करने से सामने वाले की प्रतिक्रिया तो नहीं देखी जा सकती थी.

बहुत पापड़ बेले थे उस ने. घरबाहर हर संभव समझौता करने का प्रयत्न किया था. एकमात्र पुत्र की पुत्रवधू होने के कारण सासससुर को जहां उस से बहुत अरमान थे, वहीं कर्तव्यों की अनेकानेक लडि़यां भी उसे लपेटने को आतुर थीं. विवाह से पूर्व सास अमिता ने उस से पूछा था, ‘‘अगर जौब और फैमिली में तुम्हें कोई एक चुनना पड़े, तो तुम किसे महत्त्व दोगी?’’

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‘‘फैमिली को,’’ मां के सिखाए शब्द उस के मुंह से अनायास ही निकल गए थे, क्योंकि मां नहीं चाहती थीं कि उस की किसी बेवकूफी के कारण इतना अच्छा घर व वर हाथ से निकल जाए. उन्होंने उसे पहले ही नपातुला तथा सोचसमझ कर बोलने की चेतावनी दे दी थी.

उस के ममापापा को जयंत बहुत पसंद आया था. उस का स्वभाव, अच्छा ओहदा उस से भी अधिक उस का सुदर्शन व्यक्तित्व. जयंत एक मल्टीनैशनल कंपनी में प्रोजैक्ट मैनेजर था. जबकि वह स्वयं बैंक में प्रोबेशन अधिकारी थी. वह किसी हालत में अपनी नौकरी नहीं छोड़ना चाहती थी, लेकिन सास तो सास, मां का भी यही कहना था कि एक लड़की के लिए उस का घरपरिवार उस की महत्त्वाकांक्षा से अधिक होना चाहिए. हम चाहे स्वयं को कितना भी आधुनिक क्यों न मानने लगें पर मानसिकता नहीं बदलने वाली. स्त्री चाहे पुरुष से अधिक ही क्यों न कमा रही हो पर उस का हाथ और सिर सदा नीचे ही रहना चाहिए. यह बात और है कि एक स्त्री अपनी इसी विशेषता और विनम्रता के बल पर एक दिन सब के दिलों पर राज करने में सक्षम हो सकती है. बस इसी मानसिकता के तहत ममा ने सोचसमझ कर उत्तर देने के लिए कहा था और उस ने वही किया भी था.

सासूमां दीपिका के उत्तर से बेहद संतुष्ट हुई थीं और उन्होंने उसे अपनी बहू बनाने का फैसला कर लिया था. विवाह के बाद धीरेधीरे उस के लिए भी अपने कैरियर से अधिक घरपरिवार महत्त्वपूर्ण हो गया था, क्योंकि उस का मानना था कि अगर घर में सुखशांति रहे तो औफिस में भी ज्यादा मनोयोग से काम किया जा सकता है. उस की ससुराल में संयुक्त परिवार और अच्छा व बड़ा 4 बैडरूम का घर था. उस के विवाह के 2 महीने बाद ही ससुरजी रिटायर हो गए थे और ननद विभा का विवाह हो गया था. पर उसी शहर में रहने के कारण उस का आनाजाना लगा रहता था. विवाह के बाद सारी जिम्मेदारी सासूमां ने उसे सौंप दी थीं. इस बात से जहां उसे खुशी का अनुभव होता था, वहीं कभीकभी कोफ्त भी होने लगती थी, क्योंकि सुबह से ले कर देर रात तक वह किचन में ही लगी रह जाती थी. कहने को तो खाना बनाने के लिए नौकरानी थी, पर उसे सुपरवाइज तथा गाइड करना, सब के मनमुताबिक नाश्ताखाना बनवा कर सर्व करना उस का ही काम था. सुबहसुबह सब को बैडटी तथा रात में गरमगरम दूध देना तो उसे ही करना पड़ता था, वह भी सब के समय के अनुसार. विवाह से पूर्व जिस लड़की ने कभी एक गिलास पानी भी खुद ले कर न पिया हो, सिर्फ पढ़ना ही जिस का मकसद रहा हो, दोहरी जिम्मेदारी निभाना तथा साथ में सब को खुश रखना किसी चुनौती से कम नहीं था. पर जहां चाह हो वहां राह निकल ही आती है.

दीपिका जब गर्भवती हुई तो घर भर में खुशियों के फूल खिल गए थे. सासूमां ने उस की कुछ जिम्मेदारियां शेयर कर ली थीं. डिनर अब वे अपनी देखरेख में बनवाने लगी थीं. उस दिन रविवार था. शाम की चाय सब एकसाथ बैठे पी रहे थे कि अचानक ससुरजी आलोकनाथ ने चाय का कप टेबल पर रख दिया तथा बेचैनी की शिकायत की. जब तक कोई कुछ समझ पाता वे अचेत हो गए. जयंत ने आननफानन गाड़ी निकाली और उन्हें अस्पताल ले गए. पर वे बचे नहीं. सासूमां अचानक हुई इस दुर्घटना को सह नहीं पाईं. बारबार अचेत होने लगीं, तो डाक्टर ने उन्हें नींद का इंजैक्शन दे कर सुला दिया. उस के बाद विधिविधान से सारे काम हुए पर सासूमां सामने रहते हुए भी नहीं थीं. आखिर 34 वर्षों का साथ भुलाना आसान नहीं होता. फिर वे सब से कटीकटी रहने लगीं और घर में सब कुछ बिखराबिखरा सा लगने लगा. ऐसे में दीपिका कभीकभी यह सोचती कि वह नौकरी छोड़ दे. लेकिन थोड़ी देर में उसे लगता कि ऐसी कठिनाइयां तो हर किसी की जिंदगी में आती हैं तो क्या हर कोई पलायन कर जाता है? नहीं, वह नौकरी नहीं छोड़ेगी.

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फिर वक्त गुजरता गया और दीपिका को बेटी हुई. उस का नाम कविता रखा गया. दीपिका ने 6 महीने का ब्रेक लिया. फिर औफिस जाना शुरू किया तो कविता के लिए नौकरानी की व्यवस्था कर दी. उस पर भी सासूमां के ताने कि जरा भी आराम नहीं करने देती. हर समय चिल्लपों. क्या जिंदगी है, अपने बच्चे भी पाले और अब बच्चों के बच्चे भी पालो. दीपिका यह सब सुनती पर यह सोच कर मन को शांत करने का प्रयत्न करती कि वे अभी भी अपने दुख से उबर नहीं पाई हैं. पर फिर भी मन अशांत रहने लगा था. औफिस पहुंचने में जरा भी देरी होने पर सहकर्मी ताने कसते कि ये औरतें काम करने के लिए नहीं मस्ती करने के लिए आती हैं. धीरेधीरे समय गुजरता गया और कविता ने स्कूल जाना शुरू कर दिया. सासूमां ने भी स्वयं को संभाल लिया. कविता के स्कूल से आने पर जहां वे कविता का खयाल रखती थीं, वहीं उस के साथ बाहर भी आनेजाने लगी थीं.

घर का वातावरण सामान्य होने और कविता के बड़ा और समझदार होने पर जयंत को उस की कंपनी के लिए एक और बच्चे की चाहत हुई. चाहत तो उसे भी थी पर फिर वही परेशानी और अस्तव्यस्त जिंदगी, यह सोच कर वह इतना बड़ा निर्णय लेने में झिझक रही थी. फिर सोचा कि अगर प्लानिंग करनी है तो अभी ही क्यों नहीं? जैसेजैसे समय गुजरता जाएगा कठिनाइयां और बढ़ती जाएंगी. उस की कोख में फिर हलचल हुई तो नवागंतुक के आने की सूचना मात्र से सासूमां चहक उठीं, लेकिन कहा, ‘‘दीपिका इस बार लड़का ही होना चाहिए, बस इतना ध्यान रखना.’’

मांजी यह मेरे बस में नहीं है, यह कहना चाह कर भी नहीं कह पाई थी दीपिका. पर इतना अवश्य मन में आया था कि हम चाहे कितना भी क्यों न पढ़लिख जाएं, आधुनिक होने का दम भर लें पर लड़कालड़की में अभी भी भेद कायम है. संयोग से इस बार उसे बेटा ही हुआ, लेकिन पहले की तरह इस बार भी अड़चनें बहुत आईं. पर अपने लक्ष्य से वह नहीं भटकी. क्योंकि उस ने मन ही मन यह फैसला किया था कि अपने कार्य और कर्तव्य का निर्वहन वह पूरी ईमानदारी से करेगी. दूसरा क्या कहता है इस पर ध्यान नहीं देगी. शायद उस की एकाग्रता और सफलता का यही मूलमंत्र था.  चौराहे पर लालबत्ती के साथ ही उस के विचारों पर भी ब्रेक लग गया. यहां से घर तक का सिर्फ 10 मिनट का रास्ता था. 4 लोगों को सुपरसीड कर के ब्रांच मैनेजर बनना उस के कैरियर का अहम मोड़ था. वह इस खुशी को सब के साथ शेयर करना चाहती थी, चाहे प्रतिक्रियास्वरूप कुछ भी क्यों न सुनना पड़े.

दीपिका के घर के अंदर प्रवेश करते ही जयंत ने कहा, ‘‘दीपिका तुम आ गईं…कल मुझे कंपनी के काम से मुंबई जाना है. सुबह 6 बजे की फ्लाइट है. प्लीज, मेरा सूटकेस पैक कर देना… और हां कल मां को डा. पीयूष को शाम 6 बजे दिखाना है. तुम ले जाना… और प्लीज, मुझे डिस्टर्ब मत करना. कल के लिए मुझे प्रैजेंटेशन तैयार करना है.’’ जयंत का तो यह रोज का काम था… औफिस तो औफिस, वे घर में भी हमेशा ऐसे ही व्यस्त रहा करते हैं. कभी प्रैजेंटेशन, कभी कौन्फ्रैंसिंग तो कभी टूअर. और कुछ नहीं तो उन का फोन से ही पीछा नहीं छूटता. सीईओ जो हैं कंपनी के. आज वह अपने लिए उन से समय का एक टुकड़ा चाह रही थी पर वह भी नहीं मिला.

‘‘दीपिका आ गई हो तो जरा मेरे लिए अदरक वाली चाय बना देना. सिर में बहुत दर्द हो रहा है,’’ सासूमां की आवाज आई. दीपिका सासूमां को चाय दे कर लौट ही रही थी कि पल्लव ने कहा, ‘‘ममा, आज मेरे मित्र रवीश का बर्थडे है. वह होटल ग्रांड में ट्रीट दे रहा है, देर हो जाए तो चिंता मत कीजिएगा.’’ उस का लैटर पर्स में ही पड़ा रह गया. सब को व्यस्त देख कर तथा सासूमां की पिछली बातों को याद कर मन का उत्साह ठंडा पड़ गया था. अब अपनी सफलता का लैटर किसी को भी दिखाने का उस का मन नहीं हो रहा था. उस की सारी खुशियों पर मानों किसी ने ठंडा पानी डाल दिया था. बुझे मन से उस ने किचन की ओर कदम बढ़ाया. आखिर डिनर की तैयारी के साथ जयंत का सूटकेस भी तो उसे लगाना था.

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‘‘ममा, पापड़ रोस्ट करने जा रही हूं, आप लेंगी?’’ कविता ने दीपिका से पूछा. लेकिन दीपिका के कोई प्रतिक्रिया व्यक्त न करने पर कविता ने उसे झकझोरते हुए फिर अपना प्रश्न दोहराया. फिर भी जवाब में सूनी आंखों से उसे अपनी ओर देखता पा कर उस ने पूछा, ‘‘क्या बात है ममा, क्या तबीयत ठीक नहीं है?’’

‘‘ठीक है. तुम अपने लिए पापड़ रोस्ट कर लो, मेरा खाने का मन नहीं है.’’

‘‘ममा, कुछ बात तो है वरना रोस्टेड पापड़ के लिए आप कभी मना नहीं करती हो.’’

‘‘कोई बात नहीं है.’’

‘‘कुछ तो है जो आप मुझे भी नहीं बताना चाहतीं. आफ्टर औल वी आर फ्रैंड… आप ही तो कहती हो.’’ कविता के इतने आग्रह पर आखिर दीपिका से रहा नहीं गया. उस ने प्रमोशन लैटर की बात उसे बता दी.

‘‘वाऊ ममा, कौंग्रैचुलेशन. यू आर ग्रेट. वी औल आर प्राउड औफ यू. मैं अभी डैड को बता कर आती हूं.’’ ‘‘उन्हें डिस्टर्ब मत करना बेटा. जरूरी काम कर रहे हैं, कल उन्हें मुंबई जाना है.’’

‘‘पल्लव…’’

‘‘वह अपने मित्र की बर्थडे पार्टी में गया है.’’

‘‘तब ठीक है, दादी को बता कर आती हूं.’’

‘‘नहीं बेटा, उन के सिर में दर्द हो रहा है. उन्हें चाय और दवा दे कर आई हूं. वे आराम कर रही होंगी.’’ ‘‘ठीक है, डिनर के समय यह खुशखबरी सब के साथ शेयर करूंगी. मैं अभी आई.’’

जब तक दीपिका कुछ कहती तब तक वह जा चुकी थी. डिनर की सब्जियां बना कर रख दीं तथा जयंत का सूटकेस लगाने चली गई. लगभग 1 घंटे बाद लौट कर डिनर के लिए डाइनिंग टेबल अरेंज करने जा रही थी कि कविता को एक बड़ा सा पैकेट हाथ में ले कर अंदर प्रवेश करते हुए देखा.

‘‘यह क्या है बेटा?’’

‘‘एक सरप्राइज.’’

‘‘कैसा सरप्राइज?’’

‘‘वेट ममा, वेट.’’

‘‘ममा, दीदी ने मुझे फोन कर के जल्दी घर आने के लिए कहा था पर कारण नहीं बताया. क्या बात है ममा, सब ठीक है?’’ थोड़ी ही देर बाद पल्लव ने अंदर आते हुए कहा. उस के चेहरे पर चिंता की झलक थी. ‘‘ममा, आप अंदर जाइए. जब मैं बुलाऊं तब आइएगा,’’ उस के हाथ से डिनर प्लेट लेते हुए कविता ने कहा, ‘‘ममा प्लीज, बस थोड़ी देर,’’ दीपिका को आश्चर्य में पड़ा देख कविता ने कहा. वह अंदर चली गई. थोड़ी देर बाद कविता ने सब को बुलाया.

‘‘केक, किस का जन्मदिन है आज?’’ डाइनिंग टेबल पर केक रखा देख कर सासूमां ने प्रश्न दागा. जयंत और पल्लव भी कविता की ओर आश्चर्य से देख रहे थे. ‘‘वेट… वेट… वेट… ममा, प्लीज आप इधर आइए,’’ कहते हुए कविता दीपिका का हाथ पकड़ कर उसे डाइनिंग टेबल के पास ले गई तथा हाथ में चाकू पकड़ाते हुए कहा, ‘‘ममा, केक काटिए.’’

कविता की बात सुन कर सासूमां, जयंत और पल्लव कविता को आश्चर्य से देखने लगे. ‘‘आज मेरी ममा का जन्मदिन है. आई मीन मेरी ममा के कैरियर का नया जन्मदिन,’’ उस ने सब के आश्चर्य को देखते हुए कहा.

‘‘कैरियर का नया जन्मदिन… क्या कह रही हो दीदी?’’  आश्चर्य से पल्लव ने पूछा.

‘‘हां, मैं ठीक कह रही हूं. आज मेरी ममा का प्रमोशन हुआ है. वे ब्रांच मैनेजर बन गई हैं. ममा प्लीज, इस खुशी के अवसर पर केक काट कर हम सब का मुंह मीठा करवाइए,’’ कविता ने दीपिका से आग्रह करते हुए कहा.

‘‘कौंग्रैचुलेशन ममा… वी औल आर प्राउड औफ यू…’’ पल्लव ने उस के गले लग कर बधाई देते हुए कहा.

‘‘तुम ने बताया नहीं कि तुम्हारा प्रमोशन हो गया है,’’ जयंत बोले.

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‘‘तुम बिजी थे.’’

‘‘बधाई… कब जौइन करना है?’’

‘‘कल ही अलीगंज ब्रांच में.’’

‘‘बधाई बहू… बड़ा पद, बड़ी जिम्मेदारी. पर औफिस में ही इतना मत उलझ जाना कि घर अस्तव्यस्त हो जाए. घर में तू बहू के रूप में भी सफल हो कर दिखाना.’’ ‘‘मांजी, आप निश्चिंत रहें. मैं औफिस में ही ब्रांच मैनेजर हूं, घर में तो आप की बहू ही हूं,’’ दीपिका ने उन के कदमों में झुकते हुए कहा. ‘‘वह तो मैं ने ऐसे ही कह दिया था दीपिका. सच तो यह है कि तू ने घर की सारी जिम्मेदारियों के साथ बाहर की जिम्मेदारियां भी बखूबी निभाई हैं. मुझे तुझ पर गर्व है. और मेरी जितनी सेवा तू ने की है, उतनी तो मेरी बेटी भी नहीं कर पाती.’’ ‘‘ऐसा मत कहिए मांजी, आप मां हैं मेरी. अगर आप पगपग पर मेरे साथ खड़ी न होतीं, तो शायद न मैं सफलता प्राप्त कर पाती और न ही अपने कर्तव्यों का निर्वहन सही ढंग से कर पाती.’’

‘‘ममा, केक,’’ कविता ने कहा.

‘हां बेटा.’’ मांजी और जयंत की आंखों में स्वयं के लिए सम्मान देख कर दीपिका के मन में जमी बर्फ पिघलने लगी थी. हर उत्तरदायित्व को निभाते जाना ही एक बार फिर उस के जीवन का लक्ष्य बन गया था.

मौसमें गुल भी: ऐसा क्या हुआ कि खालिद की बांहों में लिपटी गई गजल

‘‘खालिद साहब, एक गलती तो मैं ने आप से शादी कर के की ही है, लेकिन अब आप के साथ जीवनभर सिसकसिसक कर दूसरी गलती नहीं करूंगी. बस, आप मुझे तलाक दे दें,’’ गजल बोलती रही और खालिद सुनता रहा.

थोड़ी देर बाद खालिद ने संजीदगी से समझाते हुए कहा, ‘‘गजल, तुम ठीक कह रही हो, तुम ने मुझ से शादी कर के बहुत बड़ी गलती की है. तुम्हें पहले ही सोचना चाहिए था कि मैं किसी भी तरह तुम्हारे काबिल न था. लेकिन अब जब एक गलती हो चुकी है तो तलाक ले कर दूसरी गलती मत करो. जानती हो, एक तलाकशुदा औरत की समाज में क्या हैसियत होती है?’’ खालिद ने चुभते हुए शब्दों में कहा, ‘‘गजल, उस औरत की हैसियत नाली में गिरी उस चवन्नी जैसी होती है, जो चमकतीदमकती अपनी कीमत तो रखती है, मगर उस में ‘पाकीजगी’ का वजूद नहीं होता.’’

‘‘बस या कुछ और?’’ गजल ने यों कहा जैसे खालिद ने उस के लिए नहीं किसी और के लिए यह सब कहा हो.

‘‘गजल,’’ खालिद ने हैरत और बेबसी से उस की तरफ देखा. गजल उस की तरफ अनजान नजरों से देख रही थी. जिन आंखों में कभी प्यार के दीप जलते थे, आज वे किसी गैर की लग रही थीं.

‘‘गजल, तुम्हें कुछ एहसास है कि तुम क्या चाहती हो? तुम जो कदम बिना सोचेसमझे उठाने जा रही हो उस से तुम्हारी जिंदगी बरबाद हो जाएगी.’’

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‘‘मैं अच्छी तरह से जानती हूं कि मैं कौन सा कदम उठाने जा रही हूं और मेरे लिए क्या सही और क्या गलत है. मैं अब इस घुटन भरे माहौल में एक पल भी नहीं रह सकती. रोटी, कपड़ा और एक छत के सिवा तुम ने मुझे दिया ही क्या है? जब से हमारी शादी हुई है, कभी एक प्यार भरा शब्द भी तुम्हारे लबों से नहीं फूटा. शादी से पहले अगर मुझे मालूम होता कि तुम इस तरह बदल जाओगे तो हरगिज ऐसी भूल न करती.’’

‘‘क्या?’’ हैरत से खालिद का मुंह खुला का खुला रह गया, ‘‘तुम्हारे खयाल में यह मेहनत, दिनरात की माथापच्ची मैं किसी और के लिए करता हूं? यकीन मानो, यह सब मैं तुम्हारी खुशी की खातिर ही करता हूं, वरना दालरोटी तो पहले भी आराम से चलती थी. रही बात शादी से पहले की, तो शादी से पहले तुम मेरी महबूबा थीं, पर अब तुम मेरी जिंदगी का एक हिस्सा हो, मेरी बीवी हो. मेरे ऊपर तुम्हारा अधिकार है, मेरा सबकुछ तुम्हारा है और तुम पर मेरा पूरा अधिकार है.’’

‘‘लेकिन औरत सिर्फ एक मशीन से मुहब्बत नहीं कर सकती, उसे जज्बात से भरपूर जिंदगी की जरूरत होती है,’’ गजल ने गुस्से से कहा.

‘‘तो यह तुम्हारा आखिरी फैसला है?’’ खालिद ने दुख भरे लहजे में कहा.

‘‘हां.’’

‘‘ठीक है, फैसले का हक तुम्हें जरूर हासिल है, लेकिन मेरी एक बात मानना चाहो तो मान लो वरना तुम्हारी मरजी. शायद अभी भी तुम पर मेरा इतना हक तो बाकी होगा ही कि मैं तुम से कुछ गुजारिश कर सकूं.

‘‘तुम्हें तलाक चाहिए, इसलिए कि मैं तुम्हें जिंदगी से भरपूर व्यक्ति नजर नहीं आता. तुम्हारी हर शाम क्लबों और होटलों के बजाय घर की चारदीवारी में गुजरती है. तुम्हारी नजर में घर में रहने वाली हर औरत बांदी होती है, जबकि ऐसा हरगिज नहीं है. वैसे अगर तुम्हारा यही खयाल है तो फिर मैं कर ही क्या सकता हूं. मगर मेरी तुम से हाथ जोड़ कर विनती है कि तुम तलाक लेने से पहले कुछ दिन के लिए मुझ से अलग हो जाओ और यह महसूस करो कि तुम मुझ से तलाक ले चुकी हो, भले ही दुनिया वालों पर भी यह जाहिर कर दो.’’

कुछ क्षण रुक कर खालिद ने आगे कहा, ‘‘सिर्फ चंद माह मुझ से अलग रह कर जहां दिल चाहे रहो. जहां दिल चाहे आओजाओ. जिस से तुम्हारा मन करे मिलोजुलो और फिर लोगों का रवैया देखो. उन की निगाहों की पाकीजगी को परखो. अगर तुम्हें कहीं मनचाही पनाहगाह मिल जाए, एतबार की छांव और जिंदगी की सचाइयां मिल जाएं तो मैं अपनी हार मान कर तुम्हें आजाद कर दूंगा.

‘‘वैसे आजाद तो तुम अभी भी हो. मगर गजल, मैं तुम्हें भटकने के लिए दुनिया की भीड़ में अकेला कैसे छोड़ दूं. तलाक मांग लेना बहुत आसान है, मगर सिर्फ मुंह से तीन शब्द कह देना ही तलाक नहीं है. तलाक के भी अपने नियम, कानून होते हैं और इस तरह छोटीछोटी बातों पर न तो तलाक मांगे जाते हैं और न ही दिए जाते हैं.’’

गजल खालिद द्वारा कही बातों पर गहराई से मनन करती रही. उसे लगा कि खालिद का विचार ऐसा बुरा भी नहीं है. वह आजादी से तजरबे करेगी. वह खालिद की ओर देखते हुए बोली, ‘‘ठीक है खालिद, मैं जानती हूं कि हमें हर हाल में अलग होना है. मगर मैं जातेजाते तुम्हारा दिल तोड़ना नहीं चाहती, लेकिन मेरा तलाक वाला फैसला आज भी अटल है और कल भी रहेगा. फिलहाल, मैं तुम से बिना तलाक लिए अलग हो रही हूं.’’

‘‘ठीक है,’’ खालिद ने डूबते मन से कहा, ‘‘तुम जाना चाहती हो तो जाओ. अपना सामान भी लेती जाओ, मुझे कोई आपत्ति नहीं है. जितना रुपयापैसा भी चाहिए, ले जाओ.’’

‘‘शुक्रिया, मेरे वालिद मेरा खर्च उठा सकते हैं,’’ गजल ने अकड़ कर कहा और खालिद के पास से उठ गई.

खालिद खामोशी से गजल को सामान समेटते हुए देखता रहा.

शीघ्र ही गजल ने सूटकेस उठाते हुए कहा, ‘‘अच्छा, मैं चलती हूं.’’

‘‘गजल, तुम सचमुच जा रही हो?’’ खालिद ने दर्द भरे स्वर में पूछा.

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‘‘हां…’’ गजल ने सपाट लहजे में कहा और बाहर निकल गई.

उस के जाते ही खालिद के दिलोदिमाग में हलचल सी मच गई. उस का दिल चाहा कि दौड़ कर गजल का रास्ता रोक ले, उसे अपने प्यार का वास्ता दे कर घर में रहने के लिए विवश कर दे. उस ने गेट के बाहर झांका, लेकिन गजल उस की आंखों से ओझल हो चुकी थी. उसे घर काटने को दौड़ने लगा. वहां की प्रत्येक चीज से दहशत सी होने लगी. वह आराम से कुरसी पर अधलेटा सिगरेट पर सिगरेट फूंकता रहा.

उधर जैसे ही गजल मायके पहुंची, उस के वालिद ने चौंक कर कहा, ‘‘अरे बेटी तुम…क्या इस बार तीनचार दिन तक रहोगी?’’ उन की नजर सूटकेस की तरफ गई.

‘‘जी हां, मेरा अब हमेशा के लिए यहां रहने का इरादा है,’’ उस ने लापरवाही से कंधे उचकाए.

‘‘मैं कुछ समझा नहीं.’’

‘‘ओह, आप तो बस पीछे ही पड़ जाते हैं. दरअसल, मैं ने आप की बात न मान कर अपनी मरजी से खालिद से शादी की थी, लेकिन यह मेरी बहुत बड़ी भूल थी, अब मैं ने खालिद से अलग होने का फैसला कर लिया है. बहुत जल्दी तलाक भी हो जाएगा.’’

‘‘क्या तुम तलाक लोगी?’’

‘‘जी हां, अब मैं घुटघुट कर नहीं जी सकती. काश, मैं ने पहले ही आप की बात मान ली होती. खैर, तब न सही अब सही.’’

‘‘देखो गजल, जिंदगी के कुछ फैसले जल्दबाजी में नहीं किए जाते. एक भूल तुम ने पहले की थी और अब जिंदगी का इतना बड़ा फैसला भी जल्दबाजी में करने जा रही हो. ऐसा न हो कि तुम्हें सारी जिंदगी रोना पड़े और तुम्हारे आंसू पोंछने वाला भी कोई न हो.

‘‘देखो बेटी, मैं ने खालिद से शादी के लिए तुम्हें क्यों मना किया था, शायद तुम उस हद तक कभी सोच नहीं सकती. दरअसल, हर मांबाप अपने बच्चे की आदत से अच्छी तरह वाकिफ होते हैं. वे बखूबी जानते हैं कि उन का बच्चा किस माहौल में, किस तरह और कब तक सामंजस्य बैठा सकता है.

‘‘मैं जानता था कि तुम एक आजाद परिंदे की मानिंद हो, तुम्हारे और खालिद के खयालात में जमीनआसमान का फर्क है. तुम्हारा नजरिया ‘दुनिया मेरी मुट्ठी में’ जैसा है, जबकि खालिद समाज के साथ उस की ऊंचनीच देख कर फूंकफूंक कर कदम रखने वाला है. मैं जानता था कि जब जज्बात का नशा उतर जाएगा, तब तुम पछताओगी. वैसे खालिद में कोई कमी नहीं थी. लेकिन मैं नहीं चाहता था कि तुम्हें शादी के बाद पछताना पड़े.’’

‘‘ओह, आप बिना वजह मुझे परेशान कर रहे हैं. मैं ने अपना फैसला आप को सुना दिया है और यही मेरे हक में सही है. पर अभी मैं रिहर्सल पर हूं, मैं अभी कुछ माह तक तलाक नहीं लूंगी. बस, उस से अलग रह कर खुशी के लिए तजरबे करूंगी.’’

‘‘तो गोया तुम्हारे दिल में उस की चाहत है, पर तुम अपने वालिद की दौलत के नशे में चूर हो.’’

‘‘अब्बाजान, आप भी कैसी दकियानूसी बातें करने लगे हैं. मुझे बोर मत कीजिए. अब मैं आजादी से चैन की सांस लूंगी.’’

दिन गुजरने लगे. घर में रोज गजल के दोस्तों की महफिलें जमतीं, उस ने भी क्लब जाना शुरू कर दिया था. भैया और भाभी अब उस से खिंचेखिंचे से रहने लगे थे. उन के प्यार में अब पहले जैसी गर्मजोशी नहीं थी, लेकिन गजल ने इन बातों पर खास ध्यान नहीं दिया. वह दोनों हाथों से दौलत लुटा रही थी. अपने पुरुष मित्रों को अपने आसपास देख कर वह खुशी से फूली न समाती.

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रात देर गए जब गजल घर लौटती तो कभीकभी जेहन के दरीचों में खालिद का वजूद अठखेलियां करने लगता. वह अकसर बगैर तकिए के सो जाती. सुबह उसे ध्यान आता कि खालिद हर रोज उस के सिर के नीचे तकिया रख देते थे.

एक दिन गजल अपनी जिगरी दोस्त निशा के घर गई. थोड़ी देर बाद एकांत में वह उस से बोली, ‘‘यह क्या, हमेशा बांदियों की तरह अपने पति के इर्दगिर्द मंडराती रहती हो?’’

‘‘यही तो जिंदगी की असली खुशी है, गजल,’’ निशा ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘ऊंह, यह असली खुशी तुम्हीं को मुबारक हो.’’

जब वह लौटने लगी तो निशा ने कहा, ‘‘हम चारपांच सहेलियां अपनेअपने परिवार के साथ पिकनिक पर जा रही हैं… जूही, शैल, कल्पना, गजला आदि चल रही हैं. तुम भी चलो न…कल सुबह चलेंगे.’’

‘‘हांहां, जरूर जाऊंगी,’’ गजल ने मुसकराते हुए कहा.

पिकनिक पर गजल अपनेआप को बहुत अकेला महसूस कर रही थी. उस की सहेलियां अपने पति और बच्चों के साथ हंसखेल रही थीं. उसे पहली बार खालिद की कमी का एहसास हुआ. उस की सहेलियों के शौहर उसे अजीब नजरों से देख रहे थे, जैसे वह कोई अजूबा हो.

वापसी पर गजल बहुत खामोश थी. घर आ कर भी वह बुझे मन से अपने कमरे में पड़ी रही. वह एकटक छत को घूरते कुछ सोचती रही. अब भैयाभाभी का सर्द रवैया भी उसे अखरने लगा था. वालिद भी उस से बहुत कम बातें करते थे. एक दिन अचानक गम का पहाड़ गजल पर टूट पड़ा. उस के पिता को दिल का दौरा पड़ा और वे हमेशाहमेशा के लिए उसे अकेला छोड़ कर चले गए.

कुछ दिन इसी तरह बीत गए. अब जब वह भैया से पैसों की मांग करती तो वे चीख उठते, ‘‘यह कोई धर्मशाला या होटल नहीं है. एक तो तुम अपना घरबार और इतना अच्छा पति छोड़ कर चली आई, दूसरे, हमें भी तबाह करने पर तुली हो.

‘‘कान खोल कर सुन लो, अब तुम्हें फूटी कौड़ी भी नहीं मिलेगी,’’ तभी भाभी की कड़क आवाज उस के कानों में पड़ी, ‘‘और तुम्हारे लफंगे दोस्त भी इस घर में कदम नहीं रखेंगे. यह हमारा घर है, कोई तफरीहगाह नहीं.’’

‘‘भाभी…’’ वह चीख पड़ी, ‘‘अगर यह आप का घर है तो मेरा भी इस में आधा हिस्सा है.’’

‘‘इस भ्रम में मत रहना गजल बीबी, तुम्हारा इस घर में अब कोई हक नहीं. यह घर मेरा है, तुम तो अपना घर छोड़ आई हो. औरत का असली घर उस के पति का घर होता है और फिर जायदाद का तुम्हारे पिता बंटवारा नहीं कर गए हैं. जाओ, मुकदमा लड़ कर जायदाद ले लो.’’

गजल हैरत से भैयाभाभी को देखती रही. फिर शिथिल कदमों से अपने कमरे तक आई और बिस्तर पर गिर कर फूटफूट कर रोने लगी. आज उसे एहसास हुआ कि यह घर उस का अपना नहीं है. इस घर में वह पराई है. यह तो भाभी का घर है. वह देर तक आंसू बहाती रही. रोतेरोते उस की आंख लग गई. तभी टैलीफोन की घंटी से वह हड़बड़ा कर उठ बैठी. न जाने क्यों, उस के जेहन में यह खयाल बारबार आ रहा था कि हो न हो, खालिद का फोन ही होगा. उस ने कांपते हाथों से रिसीवर उठा लिया, ‘‘हैलो, मैं गजल…’’

‘‘गजल, मैं निशान बोल रहा हूं. तुम जल्दी से तैयार हो कर होटल ‘बसेरा’ में आ जाओ. हम आज बहुत शानदार पार्टी दे रहे हैं. तुम मुख्य मेहमान हो, आ रही हो न?’’

‘‘हां, निशान, मैं तैयार हो कर फौरन पहुंच रही हूं,’’ गजल ने घड़ी पर नजर डाली, शाम के 6 बज रहे थे, वह स्नानघर में घुस गई.

होटल के गेट पर ही उसे निशान, नदीम, अभय और संदीप खड़े मिल गए. चारों दोस्तों ने उस का गर्मजोशी से स्वागत किया, गजल ने चारों तरफ नजर दौड़ाई, ‘‘अरे, और सब कहां हैं? शैला, जूही, निशा, कल्पना, गजला वगैरह कहां हैं?’’

‘‘गजल, किन लोगों का नाम गिनवा रही हो. क्योें उन दकियानूसी औरतों की बात कर रही हो. अरे, वे सब तुम्हारी तरह स्मार्ट और निडर नहीं हैं. वे तो इस समय अपनेअपने पतियों की मालिश कर रही होंगी या फिर बच्चों की नाक साफ कर रही होंगी. वे सब बुजदिल हैं, उन में जमाने से टकराने का साहस नहीं है.’’

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गजल दिल ही दिल में अपनी तारीफ सुन कर बहुत खुश हो रही थी.

‘‘संदीप हाल में बैठोगे या फिर यहीं लौन में,’’ गजल ने चलतेचलते पूछा.

‘‘ओह गजल, यहां बैठ कर हम बोर नहीं होना चाहते. हम ने एक कमरा बुक करवाया है, वहीं चल कर पार्टी का आनंद लेते हैं.’’

‘‘पर तुम लोगों ने किस खुशी में पार्टी दी है?’’

‘‘तुम्हें आश्चर्यचकित करने के लिए क्योंकि आज तुम्हारी शादी की वर्षगांठ है.’’

चलतेचलते गजल के कदम रुक गए, उस के अंदर कहीं कुछ टूट कर बिखर गया.

कमरे में पहुंचते ही खानेपीने का कार्यक्रम शुरू हो गया

‘‘गजल, एक पैग तुम भी लो न,’’ निशान ने गिलास उस की ओर बढ़ाया.

‘‘नहीं, धन्यवाद. मैं पीती नहीं.’’

‘‘ओह गजल, तुम तो आजाद पंछी हो, कोई दकियानूसी घरेलू औरत नहीं…लो न.’’

‘‘नहीं निशान, मुझे यह सब पसंद नहीं.’’

‘‘घबराओ मत बेबी, सब चलता है, आज के दिन तो तुम्हें एक पैग लेना ही चाहिए वरना पार्टी का रंग कैसे आएगा?’’ संदीप ने बहकते हुए कहा. तभी अभय ने बढ़ कर गजल को अपनी बांहों में जकड़ लिया. नदीम ने भरा गिलास उस के मुंह से लगाना चाहा तो वह तड़प कर एक ओर हट गई, ‘‘मुझे यह सब पसंद नहीं, तुम लोगों ने मुझे समझ क्या रखा है…’’

‘‘बेबी, तुम क्या हो, यह हम अच्छी तरह जानते हैं. ज्यादा नखरे मत करो, इस मुबारक दिन को मुहब्बत के रंगों से भर दो. तुम भी खुश और हम भी खुश,’’ अभय ने उस की ओर बढ़ते हुए कहा,

‘‘1 साल से तुम अपने पति से दूर हो, हम तुम्हारी रातें रंगीन कर देंगे.’’

गजल थरथर कांप रही थी. वह दौड़ती हुई दरवाजे की तरफ बढ़ी, पर उसे निशान ने बीच में ही रोक लिया. वह चीखने लगी, ‘‘छोड़ दो मुझे, मैं कहती हूं छोड़ दो मुझे.’’ तभी दरवाजे का हैंडल घूमा. सामने खालिद को देख कर सब को सांप सूंघ गया. गजल दौड़ कर उस से लिपट गई, ‘‘खालिद, मुझे इन दरिंदों से बचाओ…ये मेरी इज्जत…’’ आगे उस की आवाज गले में अटक गई.

वे चारों मौका देख कर खिसक गए थे.  ‘‘घबराओ नहीं गजल, मैं आ गया हूं. शायद अब तुम्हारा तजरबा भी पूरा हो गया होगा? 1 साल का समय बहुत होता है. वैसे अगर अभी भी तुम और…?’’

गजल ने खालिद के मुंह पर अपनी हथेली रख दी. वह किसी बेल की भांति खालिद से लिपटी हुई थी. खालिद धीरे से बोला, ‘‘वह तो अच्छा हुआ कि मैं ने तुम्हें कमरे में दाखिल होते हुए देख लिया था वरना आज न जाने तुम पर क्या बीतती? मैं एक मीटिंग के सिलसिले में यहां आया था. तभी इन चारों के साथ तुम पर नजर पड़ गई.’’

‘‘मुझे माफ नहीं करोगे, खालिद?’’ गजल ने नजरें झुकाए हुए कहा, ‘‘मैं बहुत शर्मिंदा हूं. मैं ने तुम्हें जानने की कोशिश नहीं की. झूठी आन, बान और शान में मैं कहीं खो गई थी. तुम ने सही कहा था, बगैर शौहर के एक औरत की समाज में क्या इज्जत होती है, यह मैं ने आज ही जाना है.’’

‘‘सुबह का भूला  शाम को घर लौट आए तो हर हालत में उस का स्वागत करना चाहिए.’’

‘‘तो क्या तुम ने मुझे माफ कर दिया?’’

‘‘हां, गजल, तुम मेरी अपनी हो और अपनों से गलतियां हो ही जाती हैं.’’

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कायापलट: हर्षा को नकारने वाले रोहित को क्यों हुआ पछतावा

‘बैस्टकपल’ की घोषणा होते ही अजय ने हर्षा को अपनी बांहों में उठा लिया. हर्षा भी छुईमुई सी उस की बांहों में समा गई. स्टेज का पूरा चक्कर लगा कर अजय ने धीरे से उसे नीचे उतारा और फिर बेहद नजाकत से झुकते हुए उस ने सभी का शुक्रिया अदा किया. पिछले साल की तरह इस बार भी इंदौर के लायंस क्लब में थीम पार्टी ‘मेड फौर ईचअदर’ में वे दोनों बैस्ट कपल चुने गए थे. लोगों की तारीफ भरी नजरें बहुत देर तक दोनों का पीछा करती रहीं. क्लब से बाहर आ कर अजय गाड़ी निकालने पार्किंग में चला गया. बाहर खड़ी हर्षा उस का इंतजार करने लगी. तभी अचानक किसी ने धीरे से उसे पुकारा. हर्षा मुड़ी पर सामने खड़े इंसान को यकायक पहचान नहीं पाई. लेकिन जब पहचाना तो चीख पड़ी, ‘‘रोहित… तुम यहां कैसे और यह क्या हालत बना ली है तुम ने?’’

‘‘तुम भी तो बिलकुल बदल गई हो… पहचान में ही नहीं आ रही,’’ रोहित की हंसी में कुछ खिन्नता थी, ‘‘यह है मेरी पत्नी प्रीति,’’ कुछ झिझक और सकुचाहट से उस ने पीछे खड़ी पत्नी का परिचय कराया. सामने खड़ी थुलथुल काया में हर्षा को

कहीं कुछ अपना सा नजर आया. उस ने आगे बढ़ कर प्रीति को गले लगा लिया, ‘‘नाइस टू मीट यू डियर.’’

तभी अजय गाड़ी ले कर आ गया. हर्षा ने अजय को रोहित और प्रीति से मिलवाया. कुछ देर औपचारिक बातों के बाद अजय ने उन्हें अगले दिन अपने यहां रात के खाने पर आमंत्रित किया. अजय और हर्षा के घर में घुसते ही डेढ़ वर्षीय आदी दौड़ कर मां की गोदी में आ चढ़ा. हर्षा भी उसे प्यार से दुलारने लगी. 2 घंटे से आदी अपनी दादी के पास था. हर्षा अजय के साथ क्लब गई हुई थी.

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हर्षा और अजय की शादी 4 साल पहले हुई थी. खूबसूरत शख्सियत की मालकिन हर्षा बहुत ही हंसमुख और मिलनसार थी. इस समय वह पति अजय और अपने डेढ़ साल के बच्चे आदी के साथ खुशहाल और सफल दांपत्य जीवन जी रही थी. लेकिन कुछ साल पहले उस की स्थिति ऐसी न थी. हालांकि तब भी उस की जिंदादिली लोगों के लिए एक मिसाल थी.

90 किलोग्राम वजनी हर्षा अपनी भारीभरकम काया के कारण अकसर लोगों की निगाहों का निशाना बनती थी. लेकिन अपने जानने वालों के लिए वह एक सफल किरदार थी, जो अपनी मेहनत और हौसले के बल पर बड़ी से बड़ी चुनौतियों का मुकाबला करने की हिम्मत रखती थी. अपने कालेज में वह हर दिल अजीज और हर फंक्शन की जान थी. उस के बगैर कोई भी प्रोग्राम पूरा नहीं होता था.

हर्षा दिखने में भले मोटी थी, पर इस से उस की फुरती व आत्मविश्वास में कोई कमी नहीं आई थी. वह और उस का बौयफ्रैंड रोहित एकदूसरे की कंपनी बहुत पसंद करते थे. बिजनैसमैन पिता ने अपनी इकलौती बेटी हर्षा को बड़े नाजों से पाला था. वह अपने मातापिता की जान थी. बिस्तर पर लेटी हर्षा रोहित से हुई आज अचानक मुलाकात के बारे में सोच रही थी. थका अजय बिस्तर पर लेटते ही नींद के आगोश में जा चुका था. हर्षा विचारों के भंवर में गोते खातेखाते 4 साल पहले अपने अतीत से जा टकराई…

‘‘रोहित क्या यह तुम्हारा आखिरी फैसला है? क्या तुम मुझ से शादी नहीं करना चाहते?’’ फाइनल ईयर में वेलैंटाइन डे की कालेज पार्टी में उस ने रोहित को झंझोड़ते हुए पूछा था. दरअसल, उस ने उसी शाम रोहित से बाकायदा अपने प्यार का इजहार कर शादी के बारे में पूछा था. मगर रोहित की नानुकुर से उसे बड़ी हताशा हाथ लगी थी.

‘‘देखो हर्षा, यारीदोस्ती की बात अलग है, क्योंकि दोस्ती कइयों से की जा सकती है, पर शादी तो एक से ही करनी है. मैं शादी एक लड़की से करना चाहता हूं, किसी हथिनी से नहीं. हां, अगर तुम 2-4 महीनों में अपना वजन कम कर सको तो मैं तुम्हारे बारे में सोच सकता हूं,’’ रोहित बेपरवाही से बोला. हर्षा को रोहित से ऐसे जवाब की बिलकुल उम्मीद नहीं थी. बोली, ‘‘तो ठीक है रोहित, मैं अपना वजन कम करने को कतई तैयार नहीं… कम से कम तुम्हारी इस शर्त पर तो हरगिज नहीं, क्योंकि मैं तुम्हारी दया की मुहताज नहीं हूं, तुम शायद भूल गए कि मेरा अपना भी कोई वजूद है. तुम किसी भी स्लिमट्रिम लड़की से शादी के लिए आजाद हो,’’ कह बड़ी सहजता से बात को वहीं समाप्त कर उस ने गाड़ी घर की दिशा में मोड़ ली थी. मगर रोहित को भुलाना हर्षा के लिए आसान न था. आकर्षक कदकाठी और मीठीमीठी बातों के जादूगर रोहित को वह बहुत प्यार करती थी. लोगों की नजरों में भले ही यह एक आदर्श पेयर नहीं था, लेकिन ऐसा नहीं था कि यह चाहत एकतरफा थी. कई मौकों पर रोहित ने भी उस से अपने प्यार का इजहार किया था.

वह जब भी किसी मुश्किल में होता तो हर्षा उस के साथ खड़ी रहती. कई बार उस ने रुपएपैसे से भी रोहित की मदद की थी. यहां तक कि अपने पापा की पहुंच और रुतबे से उस ने कई बार उस के बेहद जरूरी काम भी करवाए थे. तो क्या रोहित के प्यार में स्वार्थ की मिलावट थी? हर्षा बेहद उदास थी, पर उस ने अपनेआप को टूटने नहीं दिया. अगर रोहित को उस की परवाह नहीं तो वह क्यों उस के प्यार में टूट कर बिखर जाए? क्या हुआ जो वह मोटी है… क्या मोटे लोग इंसान नहीं होते? और फिर वह तो बिलकुल फिट है. इस तरह की सोच से अपनेआप को सांत्वना दे रही हर्षा ने आखिरकार पापा की पसंद के लड़के अजय से शादी कर ली, जो उसी की तरह काफी हैल्दी था.

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स्टेज पर उन दोनों की जोड़ी देख किसी ने पीठपीछे उन का मजाक उड़ाया तो किसी ने उन्हें यह कह कर दिली मुबारकबाद दी कि उन की जोड़ी बहुत जम रही है. बहरहाल, अजय से शादी कर हर्षा अपनी ससुराल इंदौर आ गई. शादी के बाद अजय के साथ हर्षा बहुत खुश थी. अजय उसे बहुत प्यार करता था और साथ ही उस का सम्मान भी. रोहित को वह एक तरह से भूल चुकी थी.

एक दिन अजय को खुशखबरी देते हुए हर्षा ने बताया कि उन के यहां एक नन्हा मेहमान आने वाला है. अजय इस बात से बहुत खुश हुआ. अब वह हर्षा का और भी ध्यान रखने लगा. 10-15 दिन ही बीते थे कि अचानक एक शाम हर्षा को पेट में भयंकर दर्द उठा. अजय उस वक्त औफिस में था. फोन पर हर्षा से बात होते ही वह घर रवाना हो गया. लेकिन अजय के पहुंचने तक हर्षा का बच्चा अबौर्ट हो चुका था. असीम दर्द से हर्षा वाशरूम में ही बेहोश हो चुकी थी और वहीं पास मुट्ठी भर भू्रण निष्प्राण पड़ा था. अजय के दुख का कोई ठिकाना न था. बड़ी मुश्किल से बेहोश हर्षा हौस्पिटल पहुंचाई गई.

हर्षा के होश में आने के बाद डा. संध्या ने उन्हें अपने कैबिन में बुलाया, ‘‘अजय और हर्षा मुझे बेहद दुख है कि आप का पहला बच्चा इस तरह से अबौर्ट हो गया. दरअसल, हर्षा यह वह वक्त है जब आप दोनों को अपनी फिटनैस पर ध्यान देना होगा, क्योंकि अभी आप की उम्र कम है. यह उम्र आप के वजन को आप की शारीरिक फिटनैस पर हावी नहीं होने देगी, पर आगे चल कर आप को इस वजह से काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. इसलिए सही यह होगा कि नए मेहमान को अपने घर लाने से पहले आप अपने वजन को न सिर्फ नियंत्रित करें, बल्कि कम भी करें.’’ डा. संध्या ने उन्हें एक फिटनैस ट्रेनर का नंबर दिया. शुरुआत में हर्षा को यह बेहद मुश्किल लगा. वह अपनी पसंद की चीजें खाने का मोह नहीं छोड़ पा रही थी और न ही ज्यादा ऐक्सरसाइज कर पाती थी. थोड़ा सा वर्कआउट करते ही थक जाती. पर अजय के साथ और प्यार ने उसे बढ़ने का हौसला दिया.

कहना न होगा कि संयमित खानपान और नियमित ऐक्सरसाइज ने चंद महीनों में ही अपना कमाल दिखाना शुरू कर दिया. करीब 6 महीनों में दोनों पतिपत्नी का कायापलट हो गया. अजय जहां 75 किलोग्राम का रह गया वहीं हर्षा का वजन 60 किलोग्राम पर आ गया. हर्षा की खुशी का ठिकाना न था. प्यारी तो वह पहले भी बहुत लगती थी, पर अब उस का आत्मविश्वास और सुंदरता दोगुनी हो उठी. अपनी ड्रैसिंगसैंस और हेयरस्टाइल में चेंज कर वह और भी दमक उठी. डेढ़ साल पहले नन्हे आदी ने उस की कोख में आ कर उस के मातृत्व को भी महका दिया. संपूर्ण स्त्री की गरिमा ने उस के व्यक्तित्व में चार चांद लगा दिए. पर यह रोहित को क्या हुआ, उस की पत्नी प्रीति भी इतनी हैल्दी कैसे हो गई… हर्षा सोचती जा रही थी. नींद अभी भी उस की आंखों से कोसों दूर थी.

सुबह 9 बजे आंख खुलने पर हर्षा हड़बड़ा कर उठी. उफ कितनी देर हो गई, अजय औफिस चले गए होंगे. रोहित और उस की वाइफ शाम को खाने पर आएंगे. अभी वह इसी सोचविचार में थी कि चाय की ट्रे ले कर अजय ने रूम में प्रवेश किया.

‘‘गुड मौर्निंग बेगम, पेश है बंदे के हाथों की गरमगरम चाय.’’ ‘‘अरे, तुम आज औफिस नहीं गए और आदी कहां है? तुम ने मुझे जगाया क्यों नहीं?’’ हर्षा ने सवालों की झड़ी लगा दी. ‘‘अरे आराम से भई… एकसाथ इतने सवाल… मैं ने आज अपनी प्यारी सी बीवी की मदद करने के लिए औफिस से छुट्टी ले ली है. आदी दूध पी कर दादी के साथ बाहर खेलने में मस्त है… मैं ने आप को इसलिए नहीं उठाया, क्योंकि मुझे लगा आप देर रात सोई होंगी.’’

सच में कितनी अच्छी हैं अजय की मां, जब भी वह व्यस्त होती है या उसे अधिक काम होता है वे आदी को संभाल लेती हैं. उसे अजय पर भी बहुत प्यार आया कि उस ने उस की मदद के लिए औफिस से छुट्टी ले ली. लेकिन भावनाओं को काबू करती वह उठ खड़ी हुई, शाम के मेहमानों की खातिरदारी की तैयारी के लिए. सुबह के सभी काम फुरती से निबटा कर मां के साथ उस ने रात के खाने की सूची बनाई. मेड के काम कर के जाने के बाद हौल के परदे, सोफे के कवर वगैरह सब अजय ने बदल दिए. गार्डन से ताजे फूल ला कर सैंटर टेबल पर सजा दिए.

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शाम को करीब 7 बजे रोहित और प्रीति आ गए. हर्षा और अजय ने बहुत आत्मीयता से उन का स्वागत किया. दोनों मां और आदी से मिल कर बहुत खुश हुए. खासकर प्रीति तो आदी को छोड़ ही नहीं रही थी. आदी भी बहुत जल्दी उस से घुलमिल गया. हर्षा ने उन दोनों को अपना घर दिखाया. प्रीति ने खुल कर हर्षा और उस के घर की तारीफ की. खाना वगैरह हो जाने के बाद वे सभी बाहर दालान में आ कर बैठ गए. देर तक मस्ती, मजाक चलता रहा. पर बीचबीच में हर्षा को लग रहा था कि रोहित उस से कुछ कहना चाह रहा है. अजय की मां अपने वक्त पर ही सोती थीं. अत: वे उन सभी से विदा ले कर सोने चली गईं. इधर आदी भी खेलतेखेलते थक गया था. प्रीति की गोद में सोने लगा.

‘‘क्या मैं इसे तुम्हारे कमरे में सुला दूं? प्रीति ने पूछा. हर्षा ने अपना सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘श्योर.’’

तभी अजय अपनी किसी जरूरी फोनकौल पर ऐक्सक्यूज मी कहते हुए बाहर निकल गया. रोहित ने हर्षा की ओर बेचारगी भरी नजर डाली, ‘‘हर्षा मैं तुम्हारा गुनहगार हूं, तुम्हारा मजाक उड़ाया, दिल दुखाया. शायद उसी का सिला है कि आज तुम दोनों हमारी तरह हो और हम तुम्हारी तरह. बहुत गुरूर था मुझे अपनी डैशिंग पर्सनैलिटी पर. लेकिन अब देखो मुझे, कहीं का नहीं रह गया. शादी के वक्त प्रीति भी स्लिमट्रिम थी, पर वह भी बाद में ऐसी बेडौल हुई कि अब हम सोशली अपने यारदोस्तों और रिश्तेदारों से कम ही मिलते हैं.’’

कुछ देर रुक कर रोहित ने गहरी सांस ली, ‘‘सब से बड़ा दुख मुझे प्रीति की तकलीफ देख कर होता है. 2 मिस कैरेज हो चुके हैं उस के. डाक्टर ने वजन कम करने की सलाह दी है, मगर हम दोनों की हिम्मत नहीं होती कि कहां से शुरुआत करें. बहुत इतराते थे अपनी शादी के बाद हम, पर वह इतराना ऐसा निकला कि अच्छीखासी हैल्थ को मस्तीमजाक में ही खराब कर लिया और अब… जानती हो घर से दूर जैसे ही इंदौर आने का चांस मिला तो मैं ने झट से हां कह दी ताकि लोगों के प्रश्नों और तानों से कुछ तो राहत मिले. पर जानते नहीं थे कि यहां इतनी जल्दी तुम से टकरा जाएंगे. कल पार्टी में तुम्हें देख काफी देर तक तो पहचान ही नहीं पाया. लेकिन जब नाम सुना तब श्योर हो गया और फिर बड़ी हिम्मत जुटा कर तुम से बात करने की कोशिश की,’’ रोहित के चेहरे पर दुख की कोई थाह नहीं थी.

रोहित और प्रीति की परेशानी जान हर्षा की उस के प्रति सारी नाराजगी दूर हो गई. बोली, ‘‘रोहित, यह सच है कि तुम्हारे इनकार ने मुझे बेहताशा दुख पहुंचाया था, पर अजय के प्यार ने तुम्हें भूलने पर मुझे मजबूर कर दिया. आज मेरे मन में तुम्हारे लिए तनिक भी गुस्सा बाकी नहीं है.’’

तभी सामने से आ रहे अजय ने मुसकराते हुए पूछा, ‘‘भई कौन किस से गुस्सा है?’’ ‘‘कुछ नहीं अजय,’’ कह कर हर्षा ने अजय को रोहित और प्रीति की परेशानी के बारे में बताया. ‘‘अरे तुम दोनों हर्षा के साथ जा कर डा. संध्या से मिल लो. जरूर तुम्हें सही सलाह देंगी,’’ अजय ने कहा. तब तक प्रीति भी आदी को सुला कर आ गई थी. ‘‘हां रोहित, तुम बिलकुल चिंता न करो, मैं कल ही प्रीति और तुम्हें अपनी डाक्टर के पास ले चलूंगी… बहुत जल्दी प्रीति की गोद में भी एक नन्हा आदी खेलेगा,’’ कहते हुए हर्षा ने प्रीति को गले लगा लिया.

उन दोनों के जाने के बाद हर्षा देर तक रोहित और प्रीति के बारे में सोचती रही. वह प्रीति की तकलीफ समझ सकती थी, क्योंकि वह खुद भी कभी इस तकलीफ से गुजर चुकी थी. उस ने तय किया कि वह उन दोनों की मदद जरूर करेगी. हर्षा इसी सोच में गुम थी कि पीछे से आ कर अजय ने उसे अपनी बांहों में भर लिया और उस ने भी हंसते हुए रात भर के लिए अपनेआप को उन बांहों की गिरफ्त के हवाले कर दिया.

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मीठा जहर: रोहित को क्यों थी कौलगर्ल्स से संबंध बनाने की आदत

रविवार की सुबह 6 बजे अलार्म की आवाज ने मेरी नींद खोल दी. मेरा पार्क में घूमने जाने का मन तो नहीं था पर मानसी और वंदना के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के मजबूत इरादे ने मुझे बिस्तर छोड़ने की प्रेरणा दी. करीब 4 महीने पहले वंदना के पति रोहित से मेरा परिचय एक पार्टी में हुआ था. वह बंदा ऐसा हंसमुख और जिंदादिल निकला कि उसी दिन से हम अच्छे दोस्त बन गए थे. जल्द ही मानसी और वंदना भी अच्छी सहेलियां बन गईं. फिर हमारा एकदूसरे के घर आनाजाना बढ़ता चला गया.

करीब 2 हफ्ते पहले रोहित को अपने एक सहयोगी दोस्त की बरात में शामिल हो कर देहरादून जाना था. तबीयत ढीली होने के कारण वंदना साथ नहीं जा रही थी. ‘‘मोहित, तुम मेरे साथ चलो. हम 1 दिन के लिए मसूरी भी घूमने चलेंगे.’’ सारा खर्चा मैं करूंगा. यह लालच दे उस ने मुझ से साथ चलने की हां करवा ली थी.

घूमने के लिए अकेले उस के साथ घर से बाहर निकल कर मुझे पता लगा कि वह एक खास तरह की मौजमस्ती का शौकीन भी है. दिल्ली से बरात की बस चलने के थोड़ी देर बाद ही मैं ने नोट कर लिया था कि निशा नाम की एक स्मार्ट व सुंदर लड़की के साथ उस की दोस्ती कुछ जरूरत से ज्यादा ही गहरी है वे दोनों एक ही औफिस में काम करते थे.

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‘‘इस निशा के साथ तुम्हारा चक्कर चल रहा है न?’’ रास्ते में एक जगह चाय पीते हुए मैं ने उसे एक तरफ ले जा कर पूछा. ‘‘मैं तुम्हें सच बात तभी बताऊंगा जब वापस जा कर तुम वंदना से मेरी शिकायत नहीं लगाओगे,’’ उस ने मेरी पीठ पर दोस्ताना अंदाज में 1 धौल जमा कर जवाब दिया.

‘‘तुम्हारा सीक्रेट मेरे पास सदा सेफ रहेगा,’’ मैं भी शरारती अंदाज में मुसकराया. ‘‘थैंकयू. आजकल इस शहंशाह की खिदमत यह निशा नाम की कनीज ही कर रही है. तुम्हारा भी इस की सहेली के साथ चक्कर चलवाऊं?’’

‘‘अरे, नहीं. ऐसे चक्कर चलाने में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है,’’ मैं ने घबरा कर जवाब दिया. ‘‘चक्कर मत चलाना पर हंसबोल तो लो उस रूपसी के साथ,’’ शरारती अंदाज में मेरी कमर पर 1 और धौल जमाने के बाद वह निशा और उस की सहेली की तरफ चला गया.

निशा की सहेली शिखा ज्यादा सुंदर तो नहीं थी पर उस में गजब की सैक्स अपील थी. यात्रा के दौरान वह बहुत जल्दी खुल कर मेरी दोस्त बन गई तो बरात में शामिल होने का मेरा मजा कई गुना बढ़ गया. अगले दिन सुबह बरात के साथ वापस न लौट कर हम दोनों टैक्सी से मसूरी पहुंच गए. जिस होटल में हम रूके वहां निशा और शिखा को पहले से ही मौजूद देख कर मैं बहुत हैरान हो उठा.

‘‘इन दोनों के साथ मसूरी में घूमने का मजा ही कुछ और होगा,’’ ऐसा कह कर रोहित ने मेरे सामने पहली बार निशा को अपनी बांहों में भरा.

दोस्तों की सोच और व्यवहार का हमारे ऊपर बहुत प्रभाव पड़ता है. अपनी पत्नी मानसी को धोखा दे कर कभी किसी और लड़की के साथ चक्कर चलाने का विचार मेरे मन में नहीं आया था. यह रोहित की कंपनी का ही असर था कि शिखा के साथ की कल्पना कर मेरे मन में गुदगुदी सी होने लगी थी. हम दिन भर उन दोनों साथ मसूरी में घूमे. रात को रोहित उन दोनों के कमरे में चला गया. फिर शिखा मेरे कमरे में आ गई.

रोहित के साथ मैं ने जो शराब पी थी उस के नशे ने मेरे मन की सारी हिचक और डर को गायब कर दिया. उस पल ये विचार मेरे मन में नहीं उठे कि मैं कोई गलत काम कर रहा हूं या मानसी को धोखा दे रहा हूं.

शिखा ने पूर्ण समर्पण से पहले ही अपने पर्स से 1 कंडोम निकाल कर मुझे थमा दिया. उस की इस हरकत से मुझे तेज झटका लगा. मेरे मन में फौरन यह विचार उठा कि वह कौलगर्ल है और फिर देखते ही देखते उस के साथ मौजमजस्ती करने का भूत मेरे सिर से उतर गया.

‘‘मेरा मन बदल गया है. प्लीज, तुम सो जाओ,’’ पलंग से उतर मैं बालकनी की तरफ चल पड़ा. ‘‘आर यू श्योर?’’ वह मुझे विचित्र सी नजरों से देख रही थी.

‘‘बिलकुल.’’ ‘‘सुबह रोहित से किसी तरह की शिकायत तो नहीं करोगे?’’

‘‘अरे, नहीं.’’ ‘‘ वैसे मन न माने तो मुझे कभी भी उठा लेना.’’

‘‘श्योर.’’ ‘‘पैसे वापस मांगने का झंझट तो नहीं खड़ा करोगे?’’

‘‘नहीं,’’ उस के प्रोफैशनल कौलगर्ल होने के बारे में मेरा अंदाजा सही निकला.

अगली सुबह मेरी प्रार्थना पर शिखा हमारे बीच यौन संबंध न बनने की बात रोहित व निशा को कभी न बताने के लिए राजी हो गई.

सुबह उठ कर रोहित ने आंखों में शरारती चमक भर कर मुझ से पूछा, ‘‘कैसा मजा आया मेरे यार? मसूरी से पूरी तरह तृप्त हो कर चल रहा है न?’’ ‘‘बिलकुल,’’ मैं ने कुछ शरमाते हुए जवाब दिया तो उस के ऊपर हंसी का दौरा ही पड़ गया.

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‘‘अपना इस मामले में नजरिया बिलकुल साफ है, दोस्त महीने में 1-2 बार मुंह का स्वाद बदल लो तो पत्नी से ऊब नहीं होती है.’’

‘‘तुम ठीक कह रहे हो, गुरूदेव.’’ ‘‘चेले, एक बात साफ कह देता हूं. अगली बार ऐसी ट्रीट तुम्हारी तरफ से रहेगी.’’

‘‘श्योर, पर…’’ ‘‘पर क्या?’’

‘‘मुझे इस रास्ते पर नहीं चलना हो तो तुम नाराज तो नहीं हो जाओगे न?’’ ‘‘अब तो तुम्हारे मुंह खून लग गया है. तुम मेरे साथ मौजमस्ती करने निकला ही करोगे,’’ अपने इस मजाक पर उस का ठहाका लगा कर हंसना मुझे अच्छा नहीं लगा.

हम दोनों वापस दिल्ली आए तो पाया कि वंदना की तबीयत ज्यादा बिगड़ गई थी. ‘‘खांसीबुखार अभी भी था. रात से पेट भी खराब होने के कारण बहुत कमजोरी महसूस हो रही थी,’’ अपने रोग के लक्षण बताते हुए वंदना की आवाज बहुत कमजोर लगा रही थी.

‘‘तुम ने जरूर कुछ गड़बड़ खा लिया होगा,’’ रोहित ने उस का माथा चूमते हुए कहा. ‘‘आप मेरी खराब तबीयत को हलके में ले रहो हो…. आप को मेरी चिंता है भी या नहीं?’’ कहतेकहते वंदना रो पड़ी.

‘‘मैं आराम करने से पहले तुम्हें डाक्टर को दिखा लाता हूं.’’ रोहित का यह आदर्श पति वाला बदला रूप देख कर मैं ने मन ही मन उस के कुशल अभिनय की दाद दी.

वंदना की तबीयत सप्ताह भर के इलाज के बाद भी नहीं सुधरी तो मैं उन दोनों को अपने इलाके के नामी डाक्टर उमेश के पास ले गया. डाक्टर उमेश ने वंदना की जांच करने के बाद कुछ टैस्ट लिखे और फिर गंभीर लहजे में रोहित से बोले, ‘‘एचआईवी का टैस्ट आप को भी कराना पड़ेगा.’’

डाक्टर की बात सुन कर वंदना ने जिस डर, गुस्से व नफरत के मिलेजुले भाव आंखों में ला कर रोहित को घूरा था, उस रोंगटे खड़े करने वाले दृश्य को मैं जिंदगी भर नहीं भूल सकूंगा. मैं तो डाक्टर की बात सुन कर मन ही मन बहुत बुरी तरह से डर गया था. मैं ने उसी रात मन ही मन कभी न भटकने का वादा खुद से कर लिया.

क्षणिक मौजमस्ती के लिए अपनी व अपनों की जान को दांव पर लगाना कहां की समझदारी हुई? रोहित और वंदना दोनों की एचआईवी की रिपोर्ट नैगेटिव आई थी. इस कारण उन के 3 साल के बेटे राहुल की एचआईवी जांच नहीं करानी पड़ेगी.

वंदना के लगातार चल रहे बुखारखांसी का कारण उसे टीबी हो जाना था. अंदाजा यह लगाया गया कि यह बीमारी उसे अपने ससुरजी से मिली थी, जिन का देहांत कुछ महीने पहले ही हुआ था. यह देख कर मुझे बहुत अफसोस होता है कि रोहित ने पूरे घटनाक्रम से कोई सीख नहीं ली. कई बार शादी के बाद पतिपत्नी के रिश्ते बहुत ज्यादा मजबूत नहीं होते पर रोहित यह समझने को तैयार नहीं कि कौलगर्ल से संबंध बना कर अपनी व अपने जीवनसाथी की जिंदगी को दांव पर लगाना बहुत खतरनाक है.

आजकल वंदना से उस का बहुत झगड़ा होता है. ‘‘मैं इधरउधर मुंह मारने वाले इस इंसान को अपने साथ सोने का अधिकार अब कभी नहीं दूंगी.

मानसी से मुझे पता चला है कि वंदना अपने इस कठोर फैसले से हिलने को कतई तैयार नहीं है.

रोहित मुझ से मिलते ही वंदना की शिकायत करने लगता है, ‘‘वह मुझे अपने पास नहीं आने देती है. बेड़ा गर्क हो इस डाक्टर उमेश का जिस ने वंदना के मन में एचआईवी का वहम डाला. मेरी कमअक्ल पत्नी की जिद है कि मैं हर महीने उसे एचआईवी से मुक्त होने की रिपोर्ट ला कर दिखाऊं, नहीं तो अलग कमरे में सोऊं.’’ ‘‘उस का डरना व गुस्सा करना अपनी जगह ठीक है. एचआईवी का संक्रमण तुम्हारी पत्नी को ही नहीं, बल्कि आने वाली संतान को भी यह खतरनाक बीमारी दे सकता है.’’

‘‘तुम्हें तो पता ही है कि इस मामले में मैं बचाव का पूरा ध्यान रखता हूं.’’ ‘‘गलत काम करना पूरी तरह से छोड़ ही दो न.’’ ‘‘तुम ऐसे दूध के धुले नहीं हो जो मुझे लैक्चर दो,’’ वह चिढ़ कर नाराज हो गया तो मैं ने चुप्पी साथ ली.

अब वंदना का स्वास्थ्य धीरेधीरे सुधर रहा था. वह अब हमारे साथ घूमने जाने लगी थी. मैं ने मानसी के व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने का जिम्मा अपने ऊपर ले लिया है. मोटापा कम करने के लिए मैं उसे सदा उत्साहित करता रहता हूं. नियमित रूप से ब्यूटीपार्लर जाया करे, ऐसी जिद भी मैं करने लगा हूं.

अलार्म की आवाज सुन कर मानसी उठना चाहती थी पर मैं ने उसे बांहों में कैद कर के अपनी छाती से लगा लिया. कुछ मिनट के रोमांस के बाद ही मैं ने उसे बिस्तर छोड़ने की इजाजत दी. मानसी ने मेरे कान से मुंह सटा कर प्यार भरे स्वर में कहा, ‘‘आप बहुत बदल गए हो.’’

‘‘मुझ में आया बदलाव तुम्हें पसंद है न?’’ मैं ने शरारती लहजे में पूछा तो वह शरमाती हुई बाथरूम में चली गई. मानसी की बात में सचाई है. उसे देखते ही मेरा मन भावुक हो जाता है. फिर उसे छाती से लगाए बिना मन को चैन नहीं मिलता है.

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मौजमस्ती का शौकीन रोहित परस्त्री से यौन संबंध बनाने से बाज नहीं आ रहा है. मेरे लाख समझाने के बावजूद वह इस मीठे जहर के खतरे को देखना ही नहीं चाहता है. जिस दिन उस की एचआईवी की रिपोर्ट पौजिटिव आ गई, उस दिन क्या वह बुरी तरह नहीं पछताएगा? उस जैसे जिंदादिल आदमी का एड्स का शिकार बन अपनी जिम्मेदारियां अधूरी छोड़ कर दुनिया से विदा हो जाना सचमुच एक बहुत बड़ी ट्रैजेडी होगी.

पहेली: क्या ससुराल में शिखा को प्रताड़ित किया जाता था

मैं शनिवार की शाम औफिस से ही एक रात मायके में रुकने आ गई. सीमा दीदी भी 2 दिनों के लिए आई हुई थी. सोचा सब से जी भर कर बातें करूंगी पर मेरे पहुंचने के घंटे भर बाद ही रवि का फोन आ गया.

मैं बाथरूम में थी, इसलिए मम्मी ने उन से बातें करीं.

‘‘रवि ने फोन कर के बताया है कि तेरी सास को बुखार आ गया है,’’ कुछ देर बाद मुझे यह जानकारी देते हुए मां साफतौर पर नाराज नजर आ रही थीं.

मैं फौरन तमतमाती हुई बोली, ‘‘अभी मुझे यहां पहुंचे 1 घंटा भी नहीं हुआ है कि बुलावा आ गया. सासूमां को मेरी 1 दिन की आजादी बरदाश्त नहीं हुई और बुखार चढ़ा बैठीं.’’

‘‘क्या पता बुखार आया भी है या नहीं,’’ सीमा दीदी ने बुरा सा मुंह बनाते हुए अपने मन की बात कही.

‘‘मैं ने जब आज सुबह सासूमां से यहां 1 रात रुकने की इजाजत मांगी थी, तभी उन का मुंह फूल गया था. दीदी तुम्हारी मौज है, जो सासससुर के झंझटों से दूर अलग रह रही हो,’’ मेरा मूड पलपल खराब होता जा रहा था.

‘‘अगर तुझे इन झंझटों से बचना है, तो तू अपनी सास को अपनी जेठानी के पास भेजने की जिद पर अड़ जा,’’ सीमा दीदी ने वही सलाह दोहरा दी, जिसे वे मेरी शादी के महीने भर बाद से देती आ रही हैं.

‘‘मेरी तेजतर्रार जेठानी के पास न सासूमां जाने को राजी हैं और न बेटा भेजने को. तुम्हें तो पता ही है पिछले महीने सास को जेठानी के पास भेजने को मेरी जिद से खफा हो कर रवि ने मुझे तलाक देने की धमकी दे दी थी. अपनी मां के सामने उन की नजरों में मेरी कोई वैल्यू नहीं है, दीदी.’’

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‘‘तू रवि की तलाक देने की धमकियों से मत डर, क्योंकि हम सब को साफ दिखाई देता है कि रवि तुझ पर जान छिड़कता है.’’

‘‘सीमा ठीक कह रही है. तुझे रवि को किसी भी तरह से मनाना होगा. तेरी सास को दोनों बहुओं के पास बराबरबराबर रहना चाहिए,’’ मां ने दीदी की बात का समर्थन किया.

मैं ने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा, ‘‘मां, फिलहाल मुझे वापस जाना होगा.’’

‘‘पागलों जैसी बात न कर,’’ मां भड़क उठीं, ‘‘तू जब इतने दिनों बाद सिर्फ 1 दिन को बाहर निकली है, तो यहां पूरा आराम कर के जा.’’

‘‘मां, मेरी जिंदगी में आराम करना कहां लिखा है? मुझे वापस जाना ही पड़ेगा,’’ कह अपना बैग उठा कर मैं ड्राइंगरूम की तरफ चल पड़ी.

‘‘शिखा, तू इतना डर क्यों रही है? देख, रवि ने तेरे फौरन वापस आने की बात एक बार भी मां से नहीं कही है,’’ दीदी ने मुझे रोकने को समझाने की कोशिश शुरू की.

‘‘दीदी, अगर मैं नहीं गई, तो इन का मूड बहुत खराब हो जाएगा. तुम तो जानती ही हो कि ये कितने गुस्से वाले इनसान हैं.’’

उन सब का समझाना बेकार गया और करीब घंटे भर बाद मुझे दीदी व जीजाजी कार से वापस छोड़ गए. अपनी नाराजगी दर्शाने के लिए दोनों अंदर नहीं आए.

मुझे अचानक घर आया देख रवि चौंकते हुए बोले, ‘‘अरे, तुम वापस क्यों आ गई हो?

मैं ने तुम्हें बुलाने के लिए थोड़े ही फोन किया था.’’

मेरे लौट आने से उन की आंखों में पैदा हुई खुशी की चमक को नजरअंदाज करते हुए मैं ने शिकायत की, मुझे 1 दिन भी आप ने चैन से अपने मम्मीपापा के घर नहीं रहने दिया. क्या 1 रात के लिए आप अपनी बीमार मां की देखभाल नहीं कर सकते थे?

‘‘सच कह रहा हूं कि मैं ने तुम्हारी मम्मी से तुम्हें वापस भेजने को नहीं कहा था.’’

‘‘वापस बुलाना नहीं था, तो फोन क्यों किया?’’

‘‘फोन तुम्हें सूचना देने के लिए किया था, स्वीटहार्ट.’’

‘‘क्या सूचना कल सुबह नहीं दी जा सकती थी?’’ मेरे सवाल का उन से कोई जवाब देते नहीं बना.

उन के आगे बोलने का इंतजार किए बिना मैं सासूमां के कमरे की तरफ चल दी.

सासूमां के कमरे में घुसते ही मैं ने तीखी आवाज में उन से एक ही सांस में कई सवाल पूछ डाले, ‘‘मम्मीजी, मौसमी बुखार से इतना डरने की क्या जरूरत है? क्या 1 रात के लिए आप अपने बेटे से सेवा नहीं करा सकती थीं? मुझे बुलाने को क्यों फोन कराया आप ने?’’

‘‘मैं ने एक बार भी रवि से नहीं कहा कि तुझे फोन कर के बुला ले. इस मामले में मेरे ऊपर चिल्लाने की कोई जरूरत नहीं है, बहू,’’ सासूमां फौरन मुझ से भिड़ने को तैयार हो गईं.

‘‘इन के लिए तो मैं खाना साथ लाई हूं. आप ने क्या खाया है? मैं सुबह जो दाल बना कर…’’

‘‘मेरा मन कोई दालवाल खाने का नहीं कर रहा है,’’ उन्होंने नाराज लहजे में जवाब दिया.

‘‘तो बाजार से टिक्की या छोलेभठूरे मंगवा दूं?’’

‘‘बेकार की बातें कर के तू मेरा दिमाग मत खराब कर, बहू.’’

‘‘सच में मेरा दिमाग खराब है, जो आप की बीमारी की खबर मिलते ही यहां भागी चली आई. जिस इनसान के पास इतनी जोर से चिल्लाने और लड़ने की ऐनर्जी है, वह बीमार हो ही नहीं सकता है,’’ मैं ने उन के माथे पर हाथ रखा तो मन ही मन चौंक पड़ी, क्योंकि मुझे महसूस हुआ मानो गरम तवे पर हाथ रख दिया हो.

‘‘तू मुझे और ज्यादा तंग करने के लिए आई है क्या? देख, मेरे ऊपर किसी तरह का एहसान चढ़ाने की कोशिश मत कर.’’

उन की तरफ से पूरा ध्यान हटा कर मैं रवि से बोली, ‘‘आप खड़ेखड़े हमें ताड़ क्यों रहे हो? गीली पट्टी क्यों नहीं रखते हो मम्मीजी के माथे पर? इन्हें तेज बुखार है.’’

‘‘मैं अभी गीली पट्टी रखता हूं,’’ कह वे हड़बड़ाए से रसोई की तरफ चले गए.

‘‘मैं आप के लिए मूंग की दाल की खिचड़ी बनाने जा रही….’’

‘‘मैं कुछ नहीं खाऊंगी. मेरे लिए तुझे कष्ट करने की जरूरत नहीं है,’’ वे नाराज ही बनी रहीं.

मैं भी फौरन भड़क उठी, ‘‘आप को भी मुझे ज्यादा तंग करने की जरूरत नहीं है. पता नहीं मैं क्यों आप के इतने नखरे उठाती हूं? बड़े भाईसाहब के पास जा कर रहने में पता नहीं आप को क्या परेशानी होती है?’’

‘‘तू एक बार फिर कान खोल कर सुन ले कि यह मेरा घर है और मैं हमेशा यहीं रहूंगी. तुझ से मेरे काम न होते हों, तो मत किया कर.’’

‘‘बेकार की चखचख से मेरा समय बरबाद करने के बजाय यह बताओ कि क्या चाय पीएंगी?’’ मैं ने अपने माथे पर यों हाथ मारा मानो बहुत तंग हो गई हूं.

‘‘तू मेरे साथ ढंग से क्यों नहीं बोलती है, बहू?’’ यह सवाल उन्होंने कुछ धीमी आवाज में पूछा.

‘‘अब मैं ने क्या गलत कहा है?’’

‘‘तू चाय पीने को पूछ रही है या लट्ठ मार रही है?’’

‘‘आप को तो मुझ से जिंदगी भर शिकायत बनी रहेगी,’’ मैं अपनी हंसी नहीं रोक पा रही थी, इसलिए तुरंत रसोई की तरफ चल दी.

मैं रसोई में आ कर दिल खोल कर मुसकराई और फिर खिचड़ी व चाय बनाने में लगी.

कुछ देर बाद पीछे से आ कर रवि ने मुझे अपनी बांहों में भर लिया और भावुक हो कर बोले, ‘‘मां का तेज बुखार देख कर मैं घबरा गया था. अच्छा हुआ जो तुम फौरन चली आईं. वैसे वैरी सौरी कि तुम 1 रात भी मायके में नहीं रह पाई.’’

‘‘तुम ने कब मेरी खुशियां की चिंता की है, जो आज सौरी बोल रहे हो?’’ मैं ने उचक कर उन के होंठों को चूम लिया.

‘‘तुम जबान की कड़ी हो पर दिल की बहुत अच्छी हो.’’

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‘‘मैं सब समझ रही हूं. अपनी बीमार मां की सेवा कराने के लिए मेरी झूठी तारीफ करने की तुम्हें कोई जरूरत नहीं है.’’

‘‘नहीं, तुम सचमुच दिल की बहुत अच्छी हो.’’

‘‘सच?’’

‘‘बिलकुल सच.’’

‘‘तो कमरे में मेरे लौटने से पहले सो मत जाना. अपने प्रोग्राम को गड़बड़ कराने की कीमत तो पक्का मैं आज रात को ही वसूल करूंगी,’’ मैं ने उन से लिपट कर फटाफट कई सारे चुंबन उन के गाल पर अंकित कर दिए.

‘‘आजकल तुम्हें समझना मेरे बस की तो बात नहीं है,’’ उन्होंने कस कर मुझे अपनी बांहों में भींच लिया.

‘‘तो समझने की कोशिश करते ही क्यों हो? जाओ, जा कर अपनी मम्मी के पास बैठो,’’ कह मैं ने हंसते हुए उन्हें किचन से बाहर धकेल दिया.

वे ठीक कह रहे हैं. महीने भर से अपने व्यवहार में आए बदलाव के कारण मैं अपनी सास और इन के लिए अनबूझ पहेली बन गई हूं.

अपनी सास के साथ वैसे अभी भी मैं बोलती तो पहले जैसा ही तीखा हूं पर अब मेरे काम हमेशा आपसी रिश्ते को मजबूती देने व दिलों को जोड़ने वाले होते हैं. तभी मैं बिना बुलाए अपनी बीमार सास की सेवा करने लौट आई.

कमाल की बात तो यह है कि मुझ में आए बदलाव के कारण मेरी सासूमां भी बहुत बदल गई हैं. अब वे अपने सुखदुख मेरे साथ सहजता से बांटती हैं. पहले हमारे बीच नकली व सतही शांति कायम रहती थी पर अब आपस में खूब झगड़ने के बावजूद हम एकदूसरे के साथ खुश व संतुष्ट नजर आती हैं.

सब से अच्छी बात यह हुई है कि अब हमारे झगड़ों व शिकायतों के कारण रवि टैंशन में नहीं रहते हैं और उन का ब्लडप्रैशर सामान्य रहने लगा है. सच तो यही है कि इन की खुशियों व विवाहित जीवन की सुखशांति बनाए रखने के लिए ही मैं ने खुद को बदला है.

‘‘मम्मी और मेरे बीच हो रहे झगड़े में कभी अपनी टांग अड़ाई, तो आप की खैर नहीं,’’ महीने भर पहले दी गई मेरी इस चेतावनी के बाद वे मंदमंद मुसकराते हुए हमें झगड़ते देखते रहते हैं.

‘‘जोरू के गुलाम, कभी तो अपनी मां की तरफ से बोला कर,’’ मम्मीजी जब कभी इन्हें उकसाने को ऐसे डायलौग बोलती हैं, तो ये ठहाका मार कर हंस पड़ते हैं.

सासससुर से दूर रह रही अपनी सीमा दीदी की मौजमस्ती से भरी जिंदगी की तुलना अपनी जिम्मेदारियों भरी जिंदगी से कर के मेरे मन में इस वक्त गलत तरह की भावनाएं कुलबुला रही हैं. सासूमां के ठीक हो जाने के बाद पहला मौका मिलते ही किसी छोटीबड़ी बात पर उन से उलझ कर मैं अपने मन की सारी खीज व तनाव बाहर निकाल फेंकूंगी.

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पिकनिक: सुप्रिया को क्यों अमित की रईसी में अहंकार की बू आती थी

लेखक- राजेंद्र कुमार पाण्डेय

सुप्रिया ने कंप्यूटर औन कर के इंटरनैट से कनैक्ट किया. अभी सुबह के 4 बजने में 1 मिनट शेष था. शीघ्र ही कंप्यूटर स्क्रीन पर बीकौम का परिणाम उस की आंखों के समक्ष उभर आया. मैरिट लिस्ट देखते ही वह सब से पहले उसे गौर से पढ़ने लगी, लेकिन आशा के विपरीत मैरिट लिस्ट में चौथे स्थान पर अपना रोल नंबर देखते ही वह प्रसन्नता से झूम उठी.

एक ही सांस में वह पूरी लिस्ट पढ़ती चली गई, लेकिन यह क्या? दुनिया का 8वां आश्चर्य, अमित, जिसे वह अकसर ‘बुद्धू’ व ‘नालायक’ कह कर पुकारती रही, का नाम भी मैरिट लिस्ट में 11वें स्थान पर नजर आया तो सहसा उसे विश्वास ही नहीं हुआ. उसे यह उम्मीद तो थी कि शायद उस का प्रेमी जो उस की प्रेरणा के कारण दिनरात पढ़ाई में जुटा रहता है, जीवन में पहली बार प्रथम श्रेणी अवश्य प्राप्त कर लेगा, परंतु वह एकदम सोच से परे छलांग लगा कर मैरिट लिस्ट में अपना नाम लिखवा लेगा, यह उसे एकदम स्वप्न सा प्रतीत हो रहा था.

सुप्रिया ने उसी समय अमित को फोन लगाया. उधर से ‘हैलो डार्लिंग’ का मधुर स्वर सुनते ही वह खुशी से बोल उठी, ‘‘क्यों बुद्धूराम, तुम मैरिट लिस्ट में आ गए हो, लेकिन कैसे?’’

‘‘मुझे मालूम है, मैं भी परीक्षा परिणाम ही देख रहा हूं.’’

‘‘सचसच बताओ, यह चमत्कार कैसे हुआ?’’

‘‘जानेमन, तुम्हारी जिद थी कि अगर इस परीक्षा में मैं ने प्रथम श्रेणी प्राप्त नहीं की तो तुम न तो मेरी गुस्ताखी को कभी माफ करोगी और न ही भविष्य में मेरे संग प्रेमपथ पर अपने कदम आगे बढ़ाओगी. बस, तभी से मैं ने भी तुम्हारी तरह जिद पकड़ ली कि प्रथम श्रेणी तो ले कर ही रहूंगा. यही समझ लो कि तुम्हारी इच्छा और मेरी जिद ने यह करिश्मा कर दिखाया. अच्छा, अब सो जाओ और मुझे भी सोने दो. बहुत गहरी नींद आ रही है,’’ कहते हुए अमित ने फोन काट दिया.

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सुप्रिया की सारी सोच इस समय अमित के इर्दगिर्द ही चक्कर काट रही थी. उस की आंखों से नींद मानो कोसों दूर थी. उस के कमरे, मनमस्तिष्क और स्मृतियों में अमित का हंसमुख, खूबसूरत चेहरा बारबार नजर आ रहा था. बीते वर्ष की यादें उस के भीतर उथलपुथल मचाए हुए थीं.

कालेज के प्रथम वर्ष में तो सबकुछ सामान्य ही रहा. हालांकि धनी परिवार के अमित की इश्कमिजाजी और स्वच्छंद प्रवृत्ति के कई किस्से सुप्रिया के सुनने में आए थे, परंतु उस ने इस ओर विशेष ध्यान नहीं दिया था, लेकिन दूसरे वर्ष में उस ने महसूस किया कि कक्षा की अन्य 12-13 छात्राओं में से अमित सिर्फ उसी में विशेष दिलचस्पी ले रहा है.

कई बार उस ने साधारण बातचीत से हट कर इशारोंइशारों में सुप्रिया के समक्ष बाजारू शैली में उस की खूबसूरती की प्रशंसा की और अपनी चाहत का इजहार भी किया, परंतु उन दिनों न जाने क्यों अमित की खूबसूरती, उस की गाड़ी और रईसी अंदाज में सुप्रिया को हमेशा अहंकार की बू आती थी. उस की हलकीफुलकी चुहलबाजी कभीकभार सुप्रिया को आत्मविभोर तो कर देती, परंतु फिर भी वह उसे घटिया स्तर का युवक ही समझती थी.

इस दौरान अमित ने इसी कालेज में पढ़ रही अपनी मौसेरी बहन प्रतिभा के माध्यम से अपना प्रेम संदेश भी सुप्रिया तक पहुंचाया, परंतु उस ने नकारात्मक उत्तर ही दिया.

सुप्रिया के उत्तर से अमित के दिल को शायद चोट पहुंची. अपने मस्तमौला स्वभाव के चलते वह ईर्ष्यावश बदला लेने के लिए उसे चिढ़ाने और तंग करने लगा. कभीकभी समीप से गुजरते हुए वह सुप्रिया को ‘छमिया’ व ‘नखरे वाली’ कह कर संबोधित करता, परंतु वह उस की इन घटिया हरकतों को अनसुना व अनदेखा करती रही.

कालेज के तृतीय वर्ष के आरंभ में ही पूरी कक्षा ने शहर से 20-25 किलोमीटर दूर पुराने किले के समीप नदी किनारे पिकनिक मनाने का कार्यक्रम बनाया. प्रोफैसर आशीष भी परिवार सहित इस पिकनिक पार्टी में शामिल होने के लिए तैयार हो गए.

रविवार प्रात: 10 बजे सभी छात्रछात्राएं बस में सवार हो कर लगभग पौने घंटे में किले के समीप पहुंचे. सभी अपनेअपने टिफिन साथ लाए थे क्योंकि इस वीरान स्थान पर नजदीक कोई होटल या ढाबा नहीं था.

प्रोफैसर आशीष के आदेशानुसार किले के भीतर एक चबूतरे पर 2 दरियां बिछा दी गई थीं और सभी उन पर बैठ गए थे. थोड़ी देर की गपशप के बाद गीत प्रतियोगिता आरंभ हुई. पहले प्रोफैसर आशीष ने गायक मुकेश का एक पुराना गीत सुनाया. गीत समाप्त होने पर उन्होंने अपनी पत्नी को संकेत किया तो उन्होंने एक भोजपुरी लोकगीत गा कर खूब प्रशंसा बटोरी. इस के बाद 5-6 अन्य छात्रछात्राओं ने भी नएपुराने फिल्मी गीत गाए. फिर भाषण प्रतियोगिता आरंभ हुई, जिस में सिर्फ 3 छात्रों ने ही भाग लिया. थोड़ी देर बाद ही प्रोफैसर ने सब को किला देखने व नदी किनारे घूमने की आज्ञा दे दी.

किले के दाईं ओर नदी के किनारेकिनारे घने वृक्षों का सिलसिला आरंभ हो गया था. सुप्रिया अपनी 3 सहेलियों के साथ नदी किनारे टहलने चल पड़ी जबकि परिवार सहित प्रोफैसर आशीष और अन्य सभी छात्रछात्राएं किले के भीतर ही घूमने का आनंद लेने लगे.

‘‘ऐ छमिया, हमें भी साथ ले लो. नदी किनारे घूमने का मजा दोगुना हो जाएगा,’’ पुरुष स्वर सुन कर सुप्रिया और उस की सखियों ने मुड़ कर पीछे देखा तो उन्हें अमित के संग 2 अन्य सहपाठी भी नजर आए. वे चारों सखियां कुछ सोचतींसमझतीं, इस से पहले ही अमित ने आगे बढ़ कर सुप्रिया की दाईं कलाई कस कर पकड़ ली, ‘‘क्यों छमिया, बहुत नखरे दिखाती हो. हमारे रहते कालेज के किसी दूसरे छोकरे से इश्क लड़ा रही हो?’’

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‘‘बकवास बंद करो,’’ कहते हुए सुप्रिया ने अपनी कलाई छुड़ाने का प्रयास किया, परंतु अमित की पकड़ काफी मजबूत थी, अत: वह क्षणभर बेबस सी उसे घूरती ही रही. उसी समय उस ने देखा कि भयभीत सी उस की तीनों सखियां तेजी से किले की ओर जा रही हैं. उन में से एक ऊंची आवाज में चिल्लाई, ‘‘सुप्रिया, इस बदमाश ने शायद शराब पी रखी है. हम अभी जा कर प्रोफैसर सर को बताते हैं. डरो मत, अभी इस लफंगे की अच्छीखासी पिटाई हो जाएगी.’’

उसी क्षण सुप्रिया ने देखा कि अमित के संग आए अन्य दोनों छात्र भी पीछे मुड़ कर तेजी से किले की ओर चले जा रहे हैं, तभी उस ने आव देखा न ताव, अमित के हाथ पर जोर से दांतों से काटा तो इस आकस्मिक आक्रमण से उस ने चीखते हुए फौरन सुप्रिया की कलाई छोड़ दी.

सुप्रिया को बस इन्हीं क्षणों की प्रतीक्षा थी. अमित उस के सामने किले की तरफ पीठ किए खड़ा था, अत: वह तेजी से नदी के किनारेकिनारे भागने लगी.

अमित पहले तो किंकर्तव्यविमूढ़ सा सुप्रिया को भागते हुए देखता रहा, फिर न जाने क्या सोच कर वह भी उस के पीछे भागने लगा. अब सुप्रिया ने महसूस किया कि उस ने इस तरफ भाग कर भयंकर भूल की है, क्योंकि आगे ऊंचे, घने पेड़ों की शृंखला आरंभ हो गई थी. जंगल के खौफनाक खतरे ने उसे और भी भयभीत कर दिया था.

कुछ दूर भागने पर सुप्रिया जब पेड़ों के झुरमुट के पीछे जा खड़ी हुई तो उसे सामने थोड़ी दूरी पर एक जगह धुआं उठता दिखाई दिया और साथ ही 2-3 झोंपडि़यां भी दिखाई दीं. पेड़ों के झुरमुट के पीछे छिपी होने के कारण सुप्रिया जब अमित को नजर न आई तो उस ने ठिठक कर स्थिति को समझने का प्रयास किया, लेकिन शीघ्र ही उसे जब सुप्रिया का हवा में लहराता दुपट्टा नजर आया तो वह दोगुने जोश से उसी ओर दौड़ पड़ा. उस के भागते कदमों की आवाज सुनते ही सुप्रिया भी तेजी से सामने नजर आ रही झोंपडि़यों की दिशा में भागने लगी.

भागते कदमों की आहट सुनते ही एक झोंपड़ी से एक वृद्ध और एक युवक बाहर निकले. जब उन्होंने एक युवती और उस का पीछा कर रहे युवक को तेजी से दौड़ते देखा तो हैरानी से दोनों उन की ओर देखने लगे. उन्हें देखते ही सुप्रिया चिल्लाई, ‘‘बचाओ, बचाओ, यह गुंडा मेरा पीछा कर रहा है,’’ और शीघ्र ही वह उन दोनों के समक्ष जा पहुंची.

तभी वृद्ध सारी स्थिति को भांपते हुए जोर से चिल्लाया, ‘‘शेरू… शेरू… पकड़ उस बदमाश को.’’

वृद्ध का संकेत मिलते ही झाडि़यों के पीछे से काले रंग का एक कुत्ता भौंभौं करता हुआ तेजी से जीभ लपलपाता हुआ अमित की ओर भागा. इस से पहले कि वह संभल पाता, कुत्ते ने उछल कर उस पर झपट्टा मारा और उस की दाईं टांग पर अपने पैने दांत गड़ा दिए. दर्द से कराहता अमित जोर से चिल्लाया, ‘‘हाय…मार डाला… इस कुत्ते को दूर भगाओ. सुप्रिया, इन से कहो, कुत्ते को वापस बुला लें,’’ कहते हुए वह स्वयं को कुत्ते से बचाने का प्रयास भी कर रहा था.

अमित की दर्दभरी आवाज सुनते ही सुप्रिया का नाजुक दिल पिघल गया. वह वृद्ध से बोली, ‘‘बाबा, कुत्ते को अपने पास बुला लो. उस का नशा शायद अब उतर गया है. ऐसा लगता है, कुत्ते ने उसे जोर से काटा है.’’

‘‘शेरू…शेरू… इधर आओ,’’ वृद्ध के पुकारते ही भौंभौं करता, उछलताकूदता कुत्ता उस के पास आ खड़ा हुआ.

वृद्ध के समीप खड़ा युवक तेजी से आगे बढ़ कर अमित के पास पहुंचा और उस की दाईं टांग देखते ही बोला, ‘‘जींस पहनी होने के कारण मामूली जख्म ही हुआ है. क्यों हीरो, लड़की के पीछे भागते हुए बड़ी जवांमर्दी दिखा रहे थे. जरा हमारे शेरू से भिड़ते तो तुम्हें ऐसा मजा चखाता कि उम्रभर याद रखते.’’

‘‘बाबा, बहुतबहुत धन्यवाद,’’ सुप्रिया वृद्ध के पांव छूने को झुकी तो उस ने मुसकराते हुए संकेत से ऐसा करने से रोका.

उधर शोरशराबा सुन कर अन्य झोंपडि़यों में से भी अन्य पुरुष, महिलाएं और बच्चे बाहर निकल कर हैरानी से उन की ओर देखने लगे.

‘‘हाय, बहुत पीड़ा हो रही है,’’ तभी अमित की दर्दनाक आवाज सुन कर सब का ध्यान उस की ओर गया.

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वृद्ध शीघ्र ही एक झोंपड़ी में गया और एक मैला सा थैला निकाल कर ले आया. उस में रखी एक बोतल में से कोई दवा निकाल कर पहले तो उस ने अमित के जख्म पर एक लेप लगाया और फिर पुराने कपड़े को झाड़ कर पट्टी बांध दी. तभी झोंपडि़यों की ओर कुछ लोगों के तेजतेज कदमों की आवाजें सुनाई दीं. उसी समय कोई जोर से चिल्लाया, ‘‘सुप्रिया…सुप्रिया… तुम कहां हो?’’

‘‘अमित के बच्चे, सुप्रिया का पीछा करना छोड़ दे. जल्दी से उसे ले कर हमारे पास लौट आ,’’ तभी किसी दूसरे व्यक्ति की आवाज सुनाई दी.

शीघ्र ही प्रोफैसर आशीष के साथ 8-10 छात्र झोंपडि़यों के समीप आ पहुंचे. वे सभी भयभीत सुप्रिया, घायल अमित और तेजी से पूंछ हिलाते शेरू को देखते ही सारा माजरा समझ गए. प्रोफैसर ने क्रोधभरी नजरों से अमित की ओर देखा, ‘‘उठो, अब आंखें फाड़फाड़ कर हमारी ओर क्या देख रहे हो? सुमित, राजेश, तुम दोनों इसे सहारा दे कर किले की तरफ ले चलो. आओ सुप्रिया, तुम्हारे साथ जो हुआ, उस का हमें बहुत खेद है… और बाबा,’’ उन्होंने वृद्ध की ओर देखते हुए कहा, ‘‘आप ने इस बच्ची की इज्जत बचाई, इस के लिए बहुतबहुत धन्यवाद. वैसे आप लोग कौन हैं और इस जंगल में क्या करने आए हैं?’’

‘‘हम गायभैंसों को पालते हैं और उन का दूध पास के कसबे में बेचने के लिए ले जाते हैं. यही व्यवसाय हमारे जीने का सहारा है.’’

‘‘अच्छा बाबा. बहुतबहुत शुक्रिया,’’ सुप्रिया ने जातेजाते कृतज्ञ नजरों से वृद्ध की ओर देखा.

अमित का सिर लज्जा और ग्लानि से झुका हुआ था. वह सुमित और राजेश के सहारे ‘हाय…हाय…’ करता, लंगड़ाता हुआ धीरेधीरे किले की ओर बढ़ रहा था. आधे घंटे में सभी किले के बाहर खड़ी बस के समीप जा पहुंचे. वहां मौजूद छात्रछात्राओं में खलबली मची हुई थी.

सभी अमित और सुप्रिया के बारे में पूरी कहानी सुनने को उत्सुक थे, परंतु बस में सवार होते ही प्रोफैसर ने सब को यह कह कर शांत कर दिया कि सारी बात पहले प्रिंसिपल साहब के समक्ष रखी जाएगी.

शहर पहुंचते ही अमित और सुप्रिया के अभिभावकों को इस घटना के बारे में सूचित कर दिया जाएगा. इन दोनों से उन के समक्ष ही पूरी पूछताछ की जाएगी. तब तक आप सभी शांत रहें, बात का बतंगड़ न बनाएं, इस से हमारे कालेज की बदनामी होगी.

कालेज के समीप ही हिमालय नर्सिंग होम के समक्ष बस रोक दी गई. कुछ छात्र अमित के साथ वहीं उतर गए. प्रोफैसर आशीष ने अमित से मोबाइल नंबर पूछ कर उस के पापा को पूरी घटना से अवगत कराया.

दूसरे दिन अमित की तबीयत काफी संभल गई थी. इलाज के बाद वह स्वयं को काफी स्वस्थ महसूस कर रहा था. सुबह 8 बजे प्रोफैसर आशीष, कालेज के प्रिंसिपल दामोदरनाथ, अमित के पापा निकलराज और सुप्रिया के पापा देवेंद्र सिंह नर्सिंग होम के प्राइवेट कक्ष में अमित के समक्ष खामोश बैठे थे. सभी को दुर्घटना की पूरी जानकारी मिल चुकी थी. सुप्रिया एक कोने में चुपचाप बैठी थी. प्रिंसिपल ने उस की ओर देखते हुए हौले से पूछा, ‘‘बेटी, तुम इस दुर्घटना के बारे में कुछ कहना चाहती हो?’’

सभी की नजरें सुप्रिया के चेहरे पर जा टिकी थीं. उस ने एक नजर पीड़ा और अपमान से लज्जित अमित पर डाली, ‘‘क्यों श्रीमान, आप अपने बचाव में कुछ कहना चाहेंगे?’’

अमित को सुप्रिया की तरफ से ऐसी नम्रता और हमदर्दी की आशा नहीं थी, अत: वह धीमे स्वर में बोला, ‘‘लोग समझ रहे हैं कि मैं ने शराब पी रखी थी, लेकिन मैं ने बस बीयर पी थी.’’

‘‘उल्लू की दुम, बीयर भी तो हलकी शराब ही होती है,’’ अमित के पापा ने गुस्से से उस की ओर देखा.

‘‘मैं अपनी भूल स्वीकार करता हूं. इस बारे में कोई सफाई भी नहीं देना चाहता. मैं हाथ जोड़ कर आप सब से यही विनती करता हूं कि मेरी इस भूल को आप सब और विशेष कर सुप्रियाजी क्षमा कर दें.’’

‘‘अगर भविष्य में फिर कभी ऐसी ओछी हरकत दोहराई तो?’’ सुप्रिया ने कृत्रिम रोषभरी नजरों से अमित की ओर देखा.

‘‘मेरी तोबा. मैं अपनी उस घटिया हरकत पर बहुत शर्मिंदा हूं.’’

‘‘ठीक है, इस बार इसे माफ कर दिया जाए. क्यों, आप भी शायद ऐसा ही सोच रहे हैं?’’ सुप्रिया ने अपने पापा की ओर देखा.

‘‘बेटी, युवावस्था में अकसर ऐसी नादानियां हो ही जाती हैं. मैं प्रिंसिपल साहब से भी यही प्रार्थना करता हूं कि इस प्रकरण को यहीं समाप्त कर दिया जाए. वैसे अमित से पहले इस के पापा भी मुझ से क्षमा मांग चुके हैं. बेटी, अब तुम भी इस नालायक को माफ कर दो. इस नादान से थोड़ी सहानुभूति जताओ. तुम्हारा बदला तो उस कुत्ते ने जख्म दे कर इस से पहले ही ले लिया है.’’

सुप्रिया के पापा की बात सुनते ही कमरे में हंसी की लहर दौड़ गई.

तभी सुप्रिया ने अमित की ओर देखा, ‘‘तुम दोस्तों के संग जितना समय आवारागर्दी में बरबाद करते हो, उसे अपनी पढ़ाई में क्यों नहीं लगाते? आज तक तुम ने कभी प्रथम श्रेणी प्राप्त की है?’’

‘‘नहीं,’’ अमित ने शर्म से सिर झुका लिया.

‘‘तुम अगर यह ठान लो कि इस वर्ष बीकौम की फाइनल परीक्षा में प्रथम श्रेणी प्राप्त करोगे तो मैं तुम्हें इसी समय क्षमा कर दूंगी.’’

‘‘मैं पूरापूरा प्रयास करूंगा. तुम्हारी इच्छा और अपने भविष्य के साथ कभी खिलवाड़ नहीं करूंगा,’’ अमित का स्वर सुनते ही सुप्रिया मुसकराई, ‘‘जाओ, अब घर जा कर आराम करो और फिर पढ़ाई में जुट जाओ. मैं तुम्हें क्षमा करती हूं.’’

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कुछ दिन तक इस प्रकरण की कालेज में काफी चर्चा होती रही, परंतु वक्त के साथसाथ सभी इसे भूलते चले गए. अमित की सोच व व्यवहार में काफी परिवर्तन आ गया था. सुप्रिया से क्षमा मांगते समय किए गए वादे के अनुसार उसे हर हालत में प्रथम श्रेणी प्राप्त करनी ही थी, अत: अब वह हमेशा पढ़ाई में व्यस्त रहता. अमित में आए परिवर्तन से सुप्रिया के मन में भी उस के प्रति भरी कड़वाहट धीरेधीरे समाप्त होती चली गई. जानेअनजाने पिकनिक और उस दिन जंगल में घटी घटना को याद कर के जहां वह पहले भयभीत हो जाती थी, अब रोमांचित होने लगी थी. उधर अमित भी उसे दिल से चाहने लगा था.

लगभग 2 माह बाद अमित की मौसेरी बहन प्रतिभा के माध्यम से उस के घर पर होने वाली मुलाकात में अमित और सुप्रिया के बीच साधारण बातचीत ही हुई. लेकिन अगली 2-3 मुलाकातों में दोनों ने अपनीअपनी चाहत को खुले मन से एकदूसरे के समक्ष प्रकट कर दिया, लेकिन अमित के बारबार अनुरोध करने पर भी सुप्रिया ने उसे अपने बदन को स्पर्श नहीं करने दिया.

मैरिट लिस्ट में अमित का नाम देख कर सुप्रिया का मन नाच उठा था. अगले दिन जब प्रतिभा के घर पर दोनों की फिर से मुलाकात हुई तो अमित ने खुशी से झूमते हुए सुप्रिया को बांहों में लेना चाहा लेकिन उस ने कृत्रिम क्रोध से आंखें तरेरीं, ‘‘इतना उतावलापन ठीक नहीं, इश्क करने को पूरी उम्र पड़ी है.’’

‘‘जानेमन, कुछ तो इस गरीब पर तरस खाओ. इस खुशी की वेला में जरा तो मेरे करीब आओ,’’ अमित बोला.

‘‘बुद्धूराम, इस शानदार सफलता की बहुतबहुत बधाई, लेकिन याद रखो, न तो यह पिकनिक स्थल है और न ही नदी किनारे का जंगल. यह तुम्हारी मौसी का सुरक्षित घर है. ज्यादा शरारत की तो दोनों कान खींच लूंगी,’’ कहतेकहते सुप्रिया ने आगे बढ़ कर अमित का माथा चूम लिया और फिर स्वयं ही उस की बांहों में समाती चली गई.

वॉचपार्टी: शोभा और विनय की जिंदगी में कैसा तूफान मचा गई एक पार्टी

अपने पति विनय के जाने के बाद शोभा बार बार कभी समय देखती,कभी हिसाब लगाती कि कौनसा काम करेगी तो समय अच्छी तरह बीत  जायेगा,आज लाइफ में पहली बार वह रात को अकेली घर में रहने वाली थी,कभी ससुराल के लोग,फिर बच्चे,रिनी और मयंक!कभी अकेले रहने की नौबत ही नहीं आयी थी,विनय के टूरिंग जॉब का पूरा टाइम ऐसे ही निकल गया था,पता ही नहीं चला कि कब कितने टूर हो जाते,अकेलापन कभी लगा ही नहीं था,पर अब बच्चों के विदेश में  बसने के बाद यह पहला टूर था,इतने दिन से लॉक डाउन में वर्क फ्रॉम होम कर रहे थे तो पूरा दिन ही व्यस्त बीतता रहा.

पर अब दिल्ली में अचानक एक मीटिंग में विनय को जाना ही पड़ा,उसे काफी समझा बुझा कर विनय तीन दिनों के लिए दिल्ली चले गए तो शोभा ने दिन में कई काम निपटा लिए,कभी अलमारी साफ़ करती,कभी कोई बुक उठा लेती,फिर डिनर भी जल्दी करके सोसाइटी में टहल भी आयी,आजकल किसी से मिलने जुलने का टाइम तो रहा ही नहीं था,मास्क लगाए ज्यादा देर तक यूँ ही टहलते रहने में उसे उलझन होने  लगती तो जल्दी ही घर भी लौट आती. विनय और बच्चे व्हाट्सएप्प पर टच में थे,रोजाना की तरह उसने ग्यारह बजे सोने से पहले गुड नाईट का मैसेज फॅमिली ग्रुप पर लिखा,सबका रिप्लाई भी आ गया,अकेले फिर डर सा लगा तो उसने ड्राइंग रूम की लाइट जलती छोड़ दी और बैडरूम में जाकर सोने के लिए लेट गयी.पचास वर्षीया शोभा कोमल स्वभाव की पति और बच्चों के साथ खुश रहने वाली शांत,अंतर्मुखी महिला थी,दोनों बच्चों को विदेश में जॉब मिल गया था,विनय एक प्राइवेट कंपनी में उच्च पद पर काम करते थे,वैसे तो विनय और शोभा लखनऊ के थे पर अब बीस  साल से मुंबई में रह रहे थे. बीस साल पहले उनका ट्रांसफर लखनऊ से  मुंबई हुआ था.

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शोभा कुछ देर अपनी सोचों में खोयी रही फिर उसकी आँख लगी ही थी कि डोरबेल की आवाज से वह बुरी तरह डर कर उठी,जाकर की होल से झांका,नींद भरी आँखें हैरत के जोरदार   झटके से खुल गयीं,समीर खड़ा था ,उसने पल भर में ही दरवाजा खोल दिया,अपने पुराने अंदाज में समीर ने पूछा‘’मैंने किसी को डिस्टर्ब तो नहीं किया ?”

”अब भी ड्रामा करना नहीं छोड़ा तुमने?”शोभा खिलखिला उठी,कहा,”आओ. ”

”हाँ,आ ही गया हूँ,”कहते हुए समीर ने अपना बैग एक तरफ रखा और कहा,”शोभा,पहले मेरे हाथ सेनिटाइज़ करवा दो,यार,फ्लाइट कैंसिल हो गयी,होटल्स बंद हैं,तुम्हारा घर तो याद था,पर फोन नंबर भूल चूका हूँ,इसलिए बिना बताये इस टाइम पहुँच गया,इतना भरोसा था कि तुम लोग मुझे पहचान तो लोगे.‘’

शोभा ने उसके हाथ सेनिटाइज़ करवाते हुए कहा,”बकवास मत करो,अच्छा हुआ तुम्हारी फ्लाइट  कैंसिल हुई,मतलब यहाँ से चोरी चोरी निकल जाते हो न,अच्छा हुआ तुम्हारे साथ,मुझे जल्दी दरवाजा  खोलना ही नहीं चाहिए था,जो दोस्त भूल जाएँ,उन्हें पहचानना ही नहीं चाहिए था मुझे. ”

”अरे,वाह,आज भी तुम गुस्सा तो बड़े प्यार से ही दिखाती हो. ”

दोनों खुल कर हंस दिए,दोनों ने एक दूसरे को इतने सालों बाद भी मेंटेंड रहने पर कॉम्प्लिमेंट्स दिए,समीर ने कहा,यार कहाँ है मेरा,इतने घोड़े बेच कर सो रहा है क्या कि उसकी पत्नी रात में घर में किसी से बातें कर रही है और उसे पता ही नहीं चल रहा ?”

”आज ही दिल्ली गए हैं.तीन दिनों के लिए,एक जरुरी मीटिंग थी. ”

”ओह्ह,नो,मतलब उससे नहीं मिल पाउँगा?”

”रुक जाना,मिलकर चले जाना. ”

”नहीं,नहीं,रुक नहीं सकता,कल ही निकलना है.

”तुम फ्रेश  हो लो,क्या पीओगे?खाना खाओगे?”

”हाँ,कुछ है?”

”सब्जी रखी  है,रोटी बना दूँ?”

”हाँ,दो रोटी,और एक कप चाय,मैं फ्रेश होकर आया. ”

समीर वाशरूम में चला गया,शोभा किचन में आ गयी,सुबह की ही दाल सब्जी रखी थी,गर्म करके रोटी बनायीं और चाय चढ़ा दी,मन अतीत में लखनऊ पहुँच गया,बीस साल पहले चारों  का,समीर और उसकी पत्नी,मधु और दो बच्चे और शोभा का परिवार ! बहुत बढ़िया ग्रुप था,एक ही कॉलोनी में दस साल साथ रहे,बहुत मस्ती करते,साथ साथ घूमते,लाइफ को मिलकर एन्जॉय करते. बच्चों को भी आपस में अच्छा साथ मिलता. फिर विनय का ट्रांसफर मुंबई हो गया,एक बार समीर सपरिवार आया,फिर धीरे धीरे मिलना जुलना कम  होता गया,समीर भी फिर ऑस्ट्रेलिया चला गया तो संपर्क कम होता गया. समीर फ्रेश होकर आया,थोड़ी दाल और आलू गोभी के साथ रोटी खाना शुरू किया तो बोल उठा,तुम्हारे हाथ में तो आज भी स्वाद है. ”

”तुम आज भी खूब झूठ बोल लेते हो,”शोभा ने छेड़ा और फिर कहा,”ये तुम लोग गायब क्यों हो गए ?”

”हम कहाँ गायब हुए,आजकल तो सोशल मीडिया है एक दूसरे से जुड़े रहने के लिए पर पता चला तुम सोशल मीडिया पर कहीं भी नहीं हो,ऐसी भी क्या सबसे दूरी !”

”हाँ,समीर,मुझे तो बस किताबों का ही साथ भाता है,और कहीं हाथ मारने की जरूरत ही नहीं होती,मेरी किताबों की दुनिया ही मुझे ख़ुशी देती है,बस जब खाली होती हूँ,किताबे उठा लेती हूँ,टाइम का फिर पता ही नहीं लगता और सुनाओ,हेल्थ कैसी रहती है,मधु कैसी है,बच्चे कहाँ हैं ?”

”बैंगलोर शिफ्ट होने की तैयारी है,यहाँ एक प्रोजेक्ट पर काम करने आ रहा हूँ,बच्चे वहीँ सेट होना चाहते हैं,पर मधु अब इंडिया आना चाहती है,उसके पेरेंट्स अकेले  बैंगलोर में हैं,वह उनके आसपास रहना चाहती है,जब तक प्रोजेक्ट है,बंगलौर रहना ही है,फिर देखते हैं,हेल्थ तो टाइम के साथ कभी ऊपर नीचे रहती ही है पर हाँ,तुम आज भी उतनी ही फिट लग रही हो जैसे पहले लगती थी,”कहते हुए समीर ने शोभा को शरारती नजरों से देखा तो वह मुस्कुरा दी ,समीर ने कहा,पर शोभा,तुम थोड़ा बहुत तो दोस्तों से जुड़ने के लिए फेसबुक पर रह सकती हो न,हम कितने पुराने दोस्तों से फेसबुक से ही जुड़ते चले गए,फिर व्हाट्सएप्प ग्रुप बन गया,अब तो ज़ूम पर भी दोस्तों की महफिलें जमने लगी हैं,तुम कौनसी दुनिया में रहती हो,भाई. ”

शोभा ने कुछ कहा नहीं,समीर का खाना ख़तम हो चुका था,शोभा प्लेट्स उठा कर ले गयी और चाय भी ले आयी,समीर ने पूछा,”तुम नहीं पियोगी?”

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”नहीं,इस टाइम पी लूंगी तो नींद नहीं आएगी. ”

”अच्छा,तुम आज भी सो जाओगी ?”

”हाँ,रात को ज्यादा अब जागा  ही नहीं जाता,तुम भी आराम कर लो. ”

”कर लूँगा,पर मुझे सुबह जल्दी निकलना है,ये विनय की मीटिंग दिल्ली में ही है ?”

”हाँ. ”

”विनय के हालचाल तो मुझे मिलते रहते हैं,हम सोशल मीडिया पर भी कभी कभी टकरा जाते हैं,हाय हेलो हो जाती है,बस,वह भी काफी बिजी रहता है पर तुमने तो सबसे बिना बात के संन्यास ले रखा है,बस मैं और मेरा पति टाइप कैसी हो गयी तुम ?”

शोभा हंस दी ,”पर तुम लोगों की कमी मुझे हमेशा खली,यहाँ मुंबई में तुम्हारे जैसे दोस्त कभी नहीं मिले,तुम लोगों को हमेशा याद किया मैंने. विनय काफी बिजी होते गए,टूर पर जाते रहते हैं  इस बार बहुत दिन बाद गए,तुम्हे याद है हमने कितनी मस्तियाँ की हैं,हम कितना घूमे फिरे,सच,बहुत अच्छे दिन बीते तुम लोगों के साथ. और बाकी दोस्त कैसे हैं,किसके टच में हो ?”

”आओ,तुम्हे दिखाता हूँ,”कहते कहते ही समीर ने अपने बैग से अपना लैपटॉप निकाल लिया,फेसबुक खोला,और अपने कॉमन फ्रेंड्स की फोटो दिखा दिखा कर सबके बारे में बताता रहा,शोभा को सबके बारे में जान कर अच्छा लगने लगा,अब रात के दो बज रहे थे,अचानक समीर बुरी तरह चौंका,एक जगह क्लिक करता हुआ बोला,”अरे,ये गीता की  आज वॉच पार्टी चल रही है,देखो,शोभा,इसकी पार्टी लाइव देख सकते हैं,गीता याद है न तुम्हे ?”

शोभा ने धीरे से बस हूँ ही कहा,समीर ने कहा,”हाँ,भाई,तुम  कैसे भूल सकती हो अपने पति की इस दोस्त को जिसे देख कर ही तुम्हारा पारा हाई हो जाता था,सुना है,इसने अपने पति से तलाक ले लिया था,दोनों की बनी नहीं. ”

”मुझे ये कभी पसंद आयी ही नहीं,समीर !”

”हाँ,जानता हूँ,विनय पर खूब डोरे डालती थी यह,किसी भी पार्टी में इसे देख कर तुम्हारा मूड ही खराब हो जाता थाऔर मैं और मधु तुम्हे फिर कितना चिढ़ाते थे !’

”हाँ,यह तो अच्छा है कि पति शरीफ था मेरा वरना हमारे झगडे तुम दोनों को ही सुलझाने पड़ते,”शोभा ने हँसते हुए कहा ,फिर आगे बोली ,”हम भी किसकी बात लेकर बैठ गए,अब तो हमारे बच्चों की पार्टियों के दिन हैं. ”

”अजी हाँ,ये देखो,आओ,देखते हैं मैडम की पार्टी में कौन कौन है. ”

शोभा भी थोड़ा और झुक कर लैपटॉप में देखने लगी,अचानक दोनों को एक करंट सा लगा,समीर के मुँह से निकला,ये विनय ही है क्या?”

शोभा कुछ बोली नहीं,उसने  अपनी नजरें लैपटॉप पर जमा दीं,”ये कैसे हो सकता है ?”वॉचपार्टी में साफ़ साफ़ दिख रहा था कि विनय और गीता एक दूसरे के काफी करीब हैं,म्यूजिक के साथ दोनों के पैर थिरक रहे थे,हाथों में हाथ थे ,शोभा जैसे पत्थर की हो गयी थी,उसके मुँह से इतना ही निकला,पार्टी में जाने को भी मैं बुरा नहीं कहूँगी पर दोनों की बॉडी लैंग्वेज कैसे इग्नोर करूँ?समीर,कहते कहते शोभा का गला रुंध गया,फिर बोली,मुझे तो पता भी नहीं कि विनय उसके टच में हैं !”

”शोभा,आई एम वैरी सॉरी,मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी,बेकार में लैपटॉप खोल कर बैठ गया !बहुत शर्मिंदा हूँ,शोभा ,बड़ी भूल हुई मुझसे !”

”नहीं,समीर,तुम इससे अच्छा कुछ मेरे लिए कर ही नहीं सकते थे कि मेरी आँखें खोल जाओ,विनय ने आज तक मुझे यह नहीं बताया कि ये दिल्ली जाने पर कभी किसी से मिलते हैं,मैं इतना ही जानती हूँकि काम  फिर होटलऔर बस फिर यहाँ घर,पर नहीं,इसके अलावा भी विनय की लाइफ में बहुत कुछ  है,मुझे जानना ही चाहिए था. ”

शोभा ने उठते हुए कहा ,समीर,तुम भी अब आराम कर लो,आओ,बच्चों का रूम दिखा देती हूँ,”कहकर शोभा  उठी तो समीर भी गंभीर सा उसके पीछे पीछे उठ गया. शोभा अपने रूम में आ कर तकिये पर गिरते ही फफक पड़ी,उसे उसके कजिन रवि ने एक बार दिल्ली से फोन कर कहा था कि  उसने विनय को एक होटल में किसी लेडी के साथ देखा है,हुलिया गीता से ही मिलता जुलता बताया था,पर शोभा ने उसे यही कहा था कि ऑफिस की कोई कलीग होगी,उसने कभी किसी को अपने मन का यह दुःख नहीं बताया कि  वह कई बार विनय की आशिकमिजाजी से तंग हो जाती है,सब मन में ही रखती रही,उसने इसीलिए किसीदोस्त से कभी सम्बन्ध रखे ही नहीं,सबसे कटी जीती रही ,आज उसने अपनी आँखों से दोनों को जिस तरह पास देखा था,वह कोई बच्ची नहीं थी कि न समझे,ये सिला मिला है उसे एक अच्छी पत्नी बनकर रहने का,सारे कर्तव्य पूरे करने का,विनय के साथ हर सुख दुःख में कदम से कदम मिला कर चलने का कि विनय आज भी उससे बहुत कुछ छुपा जाते हैं,उसने न कभी विनय से कोई झगड़ा किया है ,न कोई शिकवा,फिर आज उसने यह सब क्या देखा,उसकी आँखों से आंसू बह निकले,इतने आंसूकि उसकी हिचकियाँ बंध गयीं,वह पेट के बल उल्टा लेटी थी,अचानक उसे अपनी गर्दन पर किसी का गर्म  स्पर्श महसूस हुआ ,आँख खोली,लेटे लेटे ही गर्दन घुमाई,समीर उसके पास बैठा था,वह उठने लगी तो समीर ने उसकी पीठ थप थपा दी,कहा,”लेटी रहो,शोभा ,दुखी मत हो,ऐसा भी हो सकता है कि ऐसा कुछ न हो जो हमें लगा है. ”

करवट लेकर शोभा ने कहा,”समीर,मुझे मेरे भाई ने,और भी कई लोगों ने इस तरह की बातें बताई हैं पर मैंने उन पर कभी विश्वास नहीं किया पर अब बहुत हो गया ,”शोभा सिसकने लगी.पर्दे के पीछे से  खिड़की से आती मंद मंद रौशनी में आंसुओं से भरा शोभा का चेहरा देख समीर अपनी सुध बुध अचानक खोने लगा,उसने खुद को संभालने की कोशिश की पर शोभा से इस समय की नजदीकी उसे कहीं और ले जाने लगी,अपनी और शोभा की दोस्ती,विश्वास,उम्र सब की चिंता रखी रह गयी और उसने शोभा के होंठ चूम लिए,शोभा जैसे किसी और ही मानसिक यंत्रणा में जी रही थी,समीर का स्पर्श उसे अपना सा भला सा ही लगा,फिर भी उसने उठने की कोशिश की तो समीर उसके ऊपर धीरे धीरे जैसे जैसे झुकता गया,सब कुछ पल भर ही लगा बदलने में,और फिर अचानक सचमुच बहुत कुछ बदल गया,शोभा का विद्रोही ,घायल मन अचानक समीर का साथ देने लगा,उसके कानों में समीर नेसॉरी तो बार बार  कहा पर इस समय पति की बेवफाई से क्षुब्ध मन इन अनुचित  ही सही पर  कुछ पलों के अपनेपन की धारा में बहने लगा,शोभा ने अपने आप को रोकने की तमाम कोशिशें भी की पर कुछ हठ होता है ऐसे अनचाहे पलों का जिनसे इंसान चाह कर भी जीत नहीं सकता.

जो कभी दोनों ने सोचा भी नहीं था,वह हो गया था,थोड़ी देर बाद समीर फिर उसे एक बार चूम कर रूम से निकल गया,शोभा की कब आँख लगी,उसे पता ही नहीं चला,सुबह वह देर से उठी,आँख खुली तो रात की पूरी बात याद कर एक झटके से उठ बैठी,वह बहुत देर सोई रही थी,उसने टाइम देखा,नौ बज रहे थे,इतना लेट तो वह कभी नहीं उठती,वह फौरन समीर के रूम में गयी,समीर जा चुका था,उसने अपना फोन चेक किया,फॅमिली के ग्रुप पर कई मैसेज थे,फिर समीर के मैसेज थे,लिखा था,जो भी हो गया,शोभा,सॉरी,पर अब तुम हमेशा मेरे टच में रहना,हम आगे भी अच्छे दोस्त बन कर रह सकते हैं,मेरी कोई भी जरुरत हो,मुझे कहना,तुम्हे उठाया नहीं,तुम्हे आराम की जरुरत थी,मेरी फ्लाइट टाइम पर है,बात जरूर करते रहना,विनय से क्या बात करनी है,अच्छी तरह सोच लेना.‘’

फ्रेश होकर शोभा ने चाय बनायीं,ग्रुप पर बस गुड मॉर्निंग का मैसेज डाल कर इतना ही लिख दिया कि  ठीक हूँ,आज लेट सोकर उठी,”

विनय का फौरन मैसेज आया,”अरे,वाह,मेरे बिना इतनी बढ़िया नींद आयी तुम्हे. ”

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शोभा ने और कोई जवाब नहीं दिया,वह समीर के बारे में सोचने लगी,क्या हो गया था उसे रात,क्यों नहीं रोका समीर को,यह क्या कर बैठी,समीर क्या सोचता होगा !अब आगे क्या करना चाहिए,क्या विनय से बात करे?नहीं,वह बेशर्मी पर उतर आया तो ?अभी तो बच्चे अपना एक आदर्श परिवार मानते हैं,उनका यह भ्रम तोड़ देन !क्या चुप रहे ?वैसे ही जैसे  हजारों महिलाएं चुप रह जाती हैं ! क्या करे ? और जो समीर के साथ हुआ,उसका गिल्ट रखे मन में ?नहीं,दिल नहीं कर रहा इसे  अपराधबोधमानने केलिए! हाँ,जी ली वह भी कुछ पल किसी के साथ !ठीक नहीं भी है तो भी जी ली !किसी से कुछ नहीं कहेगी,न विनय से ,न बच्चों से !पर क्या यह बात ऐसे ही जाने दे कि विनय उससे झूठ बोलते रहे हैं ! हाँ, फिलहाल कुछ नहीं कहेगी,अभी उसने भी समीर के साथ एक रात बितायी है,शायद अभी वह कुछ नहीं कह पाएगी,उसे भी अभिनय करना होगा विनय की तरह कि वह उनसे कुछ नहीं छुपाती. उसने चाय की घूँट ली ,चाय ठंडी हो चुकी थी,वह चाय गर्म करने किचन की तरफ बढ़ी तो अब मन काफी हल्का हो चुका था. अचानक उसे ख्याल आया कि एक वॉच पार्टी सबकी लाइफ में ऐसा  तूफ़ान मचा कर गयी है कि कोई भी किसी से कुछ कह नहीं पायेगा.पहली बार ही वॉचपार्टी देखी थी और वह भी ऐसी जो भुलाये न भूलेगी.

पिघलती बर्फ: क्यों स्त्रियां स्वयं को हीन बना लेती हैं?

“आज ब्रहस्पतिवार को तूने फिर सिर धो लिया. कितनी बार कहा है कि ब्रहस्पतिवार को सिर मत धोया कर, लक्ष्मीजी नाराज हो जाती हैं,” मां ने प्राची को टोकते हुए कहा.

“मां सिर चिपचिपा रहा था,” मां की बात सुन कर धीमे स्वर में अपनी बात कह प्राची मन ही मन बुदबुदाई, ‘सोमवार, बुधवार और गुरुवार को सिर न धोओ. शनिवार, मंगलवार, गुरुवार को बाल न कटवाओ क्योंकि गुरुवार को बाल कटवाने से धन की कमी तथा मंगल व शनिवार को कटवाने से आयु कम होती है. वहीं, शनि, मंगल और गुरुवार को नाखून काटने की भी मां की सख्त मनाही थी. कोई वार बेटे पर तो कोई पति पर और नहीं, तो लक्ष्मीजी का कोप… उफ, इतने बंधनों में बंधी जिंदगी भी कोई जिंदगी है.

“कल धो लेती, किस ने मना किया था पर तुझे तो कुछ सुनना ही नहीं है. और हां, आज शाम से तुझे ही खाना बनाना है.” प्राची मां की यह बात सुन कर मन के चक्रव्यूह से बाहर आई.

ओह, यह अलग मुसीबत…सोमवार से तो मेरे एक्जाम हैं. सब मैं ही करूं, भाई तो हाथ लगाएगा नहीं, यह सोच कर प्राची ने सिर पकड़ लिया.

‘अब क्या हो गया?’ मां ने उसे ऐसा करते देख कर कहा.

‘मां सोमवार से तो मेरे एक्जाम हैं,’ प्राची ने कहा.

‘तो क्या हुआ, कौन सा तुझे डिप्टी कलैक्टर बनना है?’

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‘मां, क्या जब डिप्टी कलैक्टर बनना हो, तभी पढ़ाई करनी चाहिए, वैसे नहीं. वैसे भी, मुझे डिप्टी कलैक्टर नहीं बनना, मुझे डाक्टर बनना है और मैं बन कर दिखाऊंगी,” कहते हुए प्राची ने बैग उठाया और कालेज के लिए चल दी.

‘नखरे तो देखो इस लड़की के, सास के घर जा कर नाक कटाएगी. अरे, अभी नहीं सीखेगी तो कब सीखेगी. लड़की कितनी भी पढ़लिख जाए पर रीतिरिवाजों को तो मानना ही पड़ता है.” प्राची के उत्तर को सुन कर सरिता बड़बड़ाईं.

प्राची 10वीं कक्षा की छात्रा है. वह विज्ञान की विद्यार्थी है. सो, उसे इन सब बातों पर विश्वास नहीं है. मां को जो करना है करें पर हमें विवश न करें. पापा भी उन की इन सब बातों से परेशान रहते हैं लेकिन घर की सुखशांति के लिए उन्होंने यह सब सहना सीख लिया है. ऐसा नहीं था कि मां पढ़ीलिखी नहीं हैं, वे सोशल साइंस में एमए तथा बीएड थीं लेकिन शायद उन की मां तथा दादी द्वारा बोए बीज जबतब अंकुरित हो कर उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर करते थे. प्राची ने मन ही मन निर्णय कर लिया था कि चाहे जो हो जाए वह अपने मन में इन बीजों को पनपने नहीं देगी.

प्राची के एक्जाम खत्म हुए ही थे कि एक दिन पापा नई कार मारूति स्विफ्ट ले कर घर आए. अभी वह और भाई विजय गाड़ी देख ही रहे थे कि मां नीबू और हरीमिर्च हाथ में ले कर आईं. उन्होंने नीबू और हरीमिर्च हाथ में ले कर गाड़ी के चारों ओर चक्कर लगाया तथा गाड़ी पर रोली से स्वास्तिक का निशान बना कर उस पर फूल मालाएं तथा कलावा चढ़ा कर मिठाई का एक पीस रखा. उस के बाद मां ने नारियल हाथ में उठाया…

“अरे, नारियल गाड़ी पर मत फोड़ना,” अचानक पापा चिल्लाए.

“तुम मुझे बेवकूफ समझते हो. गाड़ी पर नारियल फोडूंगी तो उस जगह गाड़ी दब नहीं जाएगी,” कहते हुए मां ने गाड़ी के सामने पहले से धो कर रखी ईंट पर नारियल फोड़ कर ‘ जय दुर्गे मां’ का उद्घोष करते हुए ‘यह गाड़ी हम सब के लिए शुभ हो’ कह कर गाड़ी के सात चक्कर न केवल खुद लगाए बल्कि हम सब को भी लगाने के लिए भी कहा.

“तुम लगा ही रही हो, फिर हमारे लगाने की क्या आवश्यकता है,” पापा ने थोड़ा विरोध करते हुए कहा.

“आप तो पूरे नास्तिक हो गए हो. आप ने देखा नहीं, टीवी पर लड़ाकू विमान राफेल लाने गए हमारे रक्षामंत्री ने फ्रांस में भी तो यही टोटके किए थे.”

मां की बात सुन कर पापा चुप हो गए. सच, जब नामी व्यक्ति ऐसा करेंगे तो इन बातों पर विश्वास रखने वालों को कैसे समझाया जा सकता है.

समय बीतता गया. मां की सारी बंदिशों के बावजूद प्राची को मैडिकल में दाखिला मिल ही गया. लड़की होने के कारण मां उसे दूर नहीं भेजना चाहती थीं, किंतु इस बार पापा चुप न रह सके. उन्होंने मां से कहा, “मैं ने तुम्हारी किसी बात में दखल नहीं दिया. किंतु आज प्राची के कैरियर का प्रश्न है, इस बार मैं तुम्हारी कोई बात नहीं सुनूंगा. मेरी बेटी मैडिकल की प्रतियोगी परीक्षा में सफल हुई है, उस ने सिर्फ हमारा ही नहीं, हमारे पूरे खानदान का नाम रोशन किया है. उसे उस की मंजिल तक पहुंचाने में सहायता करना हमारा दायित्व है.”

मां की अनिच्छा के बावजूद पापा प्राची को इलाहाबाद मैडिकल कालेज में पढ़ने के लिए ले कर गए. पापा जब उसे होस्टल में छोड़ कर वापस आने लगे तब वह खुद को रोक न पाई, फूटफूट कर रोने लगी थी.

“बेटा, रो मत. तुझे अपना सपना पूरा करना है न, बस, अपना ख़याल रखना. तुझे तो पता है तेरी मां तुझे ले कर कितनी आशंकित हैं,” पापा ने उसे समझाते हुए उस के सिर पर हाथ फेरा तथा बिना उस की ओर देखे चले गए. शायद, वे अपनी आंखों में आए आंसुओं को उस से छिपाना चाहते थे.

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पापा के जाने के बाद प्राची निशब्द बैठी थी. बारबार उस के मन में आ रहा था कि वह दुखी क्यों है? आखिर उस की ही इच्छा तो उस के पापा ने उस की मां के विरुद्ध जा कर पूरी की है. अब उसे पापा के विश्वास पर खरा उतरना होगा. प्राची ने स्वयं से ही प्रश्न किया तथा स्वयं ही उत्तर भी दिया.

“मैं, अंजली. और तुम?’ अंजली ने कमरे में प्रवेश करते ही कहा.

“मैं, प्राची.”

“बहुत प्यारा नाम है. उदास क्यों हो? क्या घर की याद आ रही है?”

प्राची ने निशब्द उस की ओर देखा.

“मैं तुम्हारा दर्द समझ सकती हूं. जब भी कोई पहली बार घर छोड़ता है तब उस की मनोदशा तुम्हारी तरह ही होती है. पर धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. सारी बातों को दिल से निकाल कर बस यह सोचो, हम अपना कैरियर बनाने के लिए यहां आए हैं.”

“तुम सच कह रही हो,” प्राची ने चेहरे पर मुसकान लाते हुए कहा.

“अच्छा, अब मैं चलती हूं. थोड़ा फ्रेश हो लूं. अपने कमरे में जा रही थी कि तुम्हारा कमरा खुला देख कर तुम्हारी ओर नजर गई, सोचा मिल तो लूं अपनी नई आई सखी से. मेरा कमरा बगल वाला है. रात्रि 8 बजे खाने का समय है, तैयार रहना. अपना यह बिखरा सामान आज ही समेट लेना, कल से कालेज जाना है,” अंजली ने कहा.

अंजली के जाते ही प्राची अपना सामान अलमारी में लगाने लगी. तभी मोबाइल की घंटी बज उठी. फोन मां का था. “बेटा, तू ठीक है न? सच, अकेले अच्छा नहीं लग रहा है. बहुत याद आ रही है तेरी.”

“मां, मुझे भी…’ कह कर वह रोने लगी.

“तू लौट आ,” मां ने रोते हुए कहा.

“प्राची, क्या हुआ? अगर तू ऐसे कमजोर पड़ेगी तो पढ़ेगी कैसे? नहीं बेटा, रोते नहीं हैं. तेरी मां तो ऐसे ही कह रही है.” पापा ने मां के हाथ से फोन ले कर उसे ढाढस बंधाते हुए कहा.

“अरे, तुम अभी बात ही कर रही हो, खाना खाने नहीं चलना.”

“बस, अभी…पापा, मैं खाना खाने जा रही हूं, आ कर बात करती हूं.”

मेस में उन की तरह कई लड़कियां थीं. अंजली ने सब को नमस्ते की. उस ने भी अंजली का अनुसरण किया. सभी ने उन का बेहद अपनेपन से स्वागत करते हुए एकदूसरे का परिचय प्राप्त किया. सब से परिचय करने के बाद अंजली ने एक टेबल की कुरसी खिसकाते हुए उसे बैठने का इशारा किया और स्वयं भी बैठ गई. अभी वे बैठी ही थीं कि उन के सामने वाली कुरसी पर 2 लड़कियां आ कर बैठ गईं. अंजली और प्राची ने उन का खड़े हो कर अभिवादन किया. उन दोनों ने उन्हें बैठने का आदेश देते हुए उन का परिचय प्राप्त करते हुए तथा अपना परिचय देते हुए साथसाथ खाना खाया. रेखा और बबीता सीनियर थीं. वे बहुत आत्मीयता से बातें कर रही थीं. खाना भी ठीक लगा. खाना खा कर जब वह अपने कमरे में जाने लगी तो रेखा ने उस के पास आ कर कहा, “प्राची और अंजली, तुम दोनों नईनई आई हो, इसलिए कह रही हूं, हम सब यहां एक परिवार की तरह ही रह रहे हैं, तुम कभी स्वयं को अकेला मत समझना. हंसीमजाक में अगर कोई तुम्हें कुछ कहे तो सहजता से लेना. दरअसल, कुछ सीनियर्स, जूनियर की खिंचाई कर ही लेते हैं.”

“रेखा दी और प्राची, ये खाओ बेसन के लड्डू. मां ने साथ में रख दिए थे,” अंजलि ने एक प्लेट उन के आगे बढ़ाते हुए कहा.

“बहुत अच्छे बने हैं,” एकएक लड्डू उठा कर खाते हुए प्राची और रेखा ने कहा.

रेखा दीदी और अंजली का व्यवहार देख कर एकाएक प्राची को लगा कि जब ये लोग रह सकती हैं तो वह क्यों नहीं. मन में चलता द्वंद्व ठहर गया था. अंजली ने बताया, सुबह 8 बजे नाश्ते का समय है.

अपने कमरे में आ कर प्राची अब काफी व्यवस्थित हो गई थी. तभी मां का फोन आ गया…”मैन, चिंता मत करो, मैं ठीक हूं. यहां सब अच्छे हैं,” प्राची ने सारी घटनाएं उन्हें बताते हुए कहा.

“ठीक है बेटा, पर ध्यान से रहना. आज के जमाने में किसी पर भरोसा करना उचित नहीं है. कल तेरा कालेज का पहला दिन है. हनुमान जी की फोटो किसी उचित स्थान पर रख कर उन के सामने दिया जला कर, उन से आशीर्वाद ले कर जाना.”

“जी मां.”

ढेरों ताकीदें दे कर मां ने फोन रख दिया था. समय बीतता गया. वह कदमदरकदम आगे बढ़ती गई. पढ़ते समय ही उस की दोस्ती अपने साथ पढ़ने वाले जयदीप से हो गई. एमबीबीएस खत्म होने तक वह दोस्ती प्यार में बदल गई. लेकिन अभी उन की मंजिल विवाह नहीं थी. प्राची को गाइनोलौजिस्ट बनना था जबकि जयदीप को जरनल सर्जरी में एमएस करना था.

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उस के एमबीबीएस करते ही मां उस पर विवाह के लिए दबाव बनाने लगी किंतु उस ने अपनी इच्छा बताते हुए विवाह के लिए मना कर दिया. रैजीडैंसी करते हुए उन्होंने पीजी की तैयारी प्रारंभ कर दी. कहते हैं, जब लक्ष्य सामने हो, परिश्रम भरपूर हो तो मंजिल न मिले, ऐसा हो नहीं सकता. पीजी की डिग्री मिलते ही उन्हें दिल्ली के प्रसिद्ध अपोलो अस्पताल में जौब मिल गया.

उस के जौब मिलते ही मां ने विवाह की बात छेड़ी तो प्राची ने जयदीप से विवाह की इच्छा जाहिर की.

पहले तो मां बिगड़ीं, बाद में मान गईं लेकिन फिर भी उन के मन में संदेह था कि वह बंगाली परिवार में एडजस्ट कर पाएगी कि नहीं. उन्होंने उन दोनों को मिलने के लिए बुलाया. जयदीप आखिर उस के मांपापा को पसंद आ ही गया.

प्राची मंगली थी, सो, मां ने पंडितजी को बुलवा कर उन की कुंडली मिलवाई तो पता चला कि जयदीप मंगली नहीं है. पंडितजी की बात सुन कर मां चिंताग्रस्त हो गई थीं.

“पंडितजी, प्राची के मंगल को शांत करने का कोई उपाय है?”

“प्राची का उच्च मंगल लड़के का अनिष्ट कर सकता है. विवाह से पूर्व प्राची का पीपल के पेड़ से विवाह करा दें, तो मंगलीदोष दूर हो जाएगा या फिर वह 29 वर्ष की उम्र के बाद विवाह करे,” पंडितजी ने मां की चिंता का निवारण करते हुए कहा.

मां ने प्राची को पंडितजी की बात बताई तो वह भड़क गई तथा उस ने पीपल के वृक्ष से विवाह के लिए मना कर दिया.

“बेटी, शायद तुझे पता न हो, विश्वसुंदरी तथा मशहूर हीरोइन ऐश्वर्या राय बच्चन ने भी अपने मांगलिक दोष को दूर करने के लिए पीपल के वृक्ष से विवाह किया था,” मां ने प्राची को समझाने की कोशिश करते हुए कहा.

“मां, क्या ऐश्वर्या ने ठीक किया था? माना उस ने ठीक किया था, तो यह कोई आवश्यक नहीं कि मैं भी वही करूं जो ऐश्वर्या ने किया. मेरी अपनी सोच है, समझ है, स्वयं पर दृढ़विश्वास है. दुर्घटनाएं या जीवन में उतारचढ़ाव तो हर इंसान के जीवन में आते हैं. ऐसी परिस्थितियों से स्वयं को उबारना, जूझना तथा जीवन में संतुलन बना कर चलना ही इंसान का मुख्य ध्येय होना चाहिए, न कि टोनेटोटकों में इंसान अपनी आधी जिंदगी या ऊर्जा बरबाद कर स्वयं भी असंतुष्ट रहें तथा दूसरों को भी असंतुष्ट रखें,” प्राची ने शांत स्वर में कहा.

“बेटा, हमारे समाज में कुछ मान्यताएं ऐसी हैं जिन्हें मानने से किसी का कुछ नुकसान नहीं होता, लेकिन किसी के मन को शांति मिल जाए, तो उसे मानने में क्या बुराई है. मैं ने तेरी जिद के कारण, अपने मन को मार कर तेरी खुशी के लिए तेरे विजातीय विवाह को स्वीकार कर लिया जबकि हमारे खानदान में आज तक ऐसा नहीं हुआ. ऐसे में तू क्या अपनी मां की छोटी सी इच्छा पूरी नहीं कर सकती. मैं तेरे भले के लिए कह रही हूं. तेरा भारी मंगल तेरे जयदीप की जान भी ले सकता है,” मां ने अपना आखिरी हथियार आजमाने की कोशिश करते हुए कहा.

“मां, मैं आप से बहुत प्यार करती हूं. आप को दिल से धन्यवाद देती हूं कि आप ने मेरी खुशी के लिए हमारे विवाह की स्वीकृति दी, लेकिन जिन मान्यताओं पर मुझे विश्वास नहीं है, उन्हें मैं कैसे मान लूं. पीपल के वृक्ष से विवाह कर के क्या ताउम्र मैं अपने व्यक्तित्व के अपमान की अग्नि में नहीं जलती रहूंगी? क्या जबजब मुझे अपना यह कृत्य याद आएगा तबतब मुझे ग्लानि या हीनभावना के विषैले डंक नहीं डसेंगे? अगर जयदीप मांगलिक होता और मैं मांगलिक नहीं होती तब क्या जयदीप को भी हमारा समाज पीपल के वृक्ष से विवाह करने के लिए कहता? क्या यह स्त्री के स्त्रीत्व या उस की गरिमा का अपमान नहीं है? स्त्री के साथ कोई अनहोनी हो जाए तो कोई बात नहीं लेकिन पुरुष के साथ कोई हादसा न हो, इस के लिए ऐसे ढकोसले… हमारा समाज जीवन में आई हर विपत्ति के लिए सदा स्त्री को ही क्यों कठघरे में खड़ा करता है? स्त्री हो कर भी क्या आप ने कभी सोचा है?

“नहीं मां, नहीं. शायद, हम स्त्रियों का तो कोई आत्मसम्मान है ही नहीं. होगा भी कैसे, जब हम स्त्रियों को ही स्वयं पर विश्वास नहीं है. तभी तो हम स्त्रियां अनुमानित विपदा को टालने के लिए व्यर्थ के ढकोसलों- व्रत, उपवास, यह न करो, वह न करो आदि में न केवल स्वयं लिप्त रहतीं हैं बल्कि अपने बच्चों को भी मानने के लिए विवश कर उन के विश्वास को कमजोर करने से नहीं चूकतीं.

“मैं आप की खुशी और आप के मन की शांति के विवाह के लिए 2 वर्ष और इंतजार कर सकती हूं पर पीपल के वृक्ष से विवाह कर स्वयं को स्वयं की नजरों नहीं गिरने दूंगी. मुझे अपने प्यार पर विश्वास है, वह मेरी बात कभी नहीं टालेगा.”

“किंतु तेरे मंगली होने की बात मुझे तेरी सासससुर को बतानी होगी. कहीं ऐसा न हो कि बाद में वे हम पर इस बात को छिपाने का दोष लगा दें.”

“जैसा आप उचित समझें,” कह कर प्राची उठ कर चली गई.

“तुम्हारी जिद्दी बेटी को समझाना बहुत मुश्किल है. पंडितजी सही कह रहे हैं. इस का मंगल उच्च है, तभी इस में इतनी निडरता और आत्मविश्वास है. अगर लड़के वालों को कोई आपत्ति नहीं है, तो कर देते हैं विवाह,” पापा ने उस के उठ कर जाते ही मां से कहा.

“कहीं लड़के का अनिष्ट…” मां के चेहरे पर चिंता की लकीरें झलक आई थीं.

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“कैसी बातें कर रही हो तुम? तुम ही कहतीं थीं कि तुम्हारे पिताजी सदा कहते थे कि अच्छाअच्छा सोचो, तो अच्छा होगा. हमारे नकारात्मक विचार हमें सदा चिंतित तो रखते ही हैं, किसी कार्य की सफलता के प्रति हमारी दुविधा के प्रतीक भी हैं. वहीं, सकारात्मक विचार हमें सकारात्मक ऊर्जा से भर कर हमारे कार्य को सफल बनाने में सहायक होते हैं. तुम चिंता मत करो, हमारी प्राची में हौसला है, विश्वास है, उस का कभी अनिष्ट नहीं होगा. अब हमें विवाह की तैयारी करनी चाहिए,” पापा ने मां को समझाते हुए कहा.

“जैसा आप उचित समझें, लेकिन अगर हम जयदीप के मातापिता से इस संदर्भ में बात कर लें तो मेरी सारी दुविधा समाप्त हो जाएगी.”

ठीक है, मैं समय ले लेता हूं,” कहते हुए दिनेश फोन करने लगे.

जयदीप के मातापिता से मिलते ही सरिता ने अपने मन की बात कही.

“बहनजी, हम इन बातों को नहीं मानते. मेरा और विजय का विवाह आज से 30 वर्ष पूर्व बिना कुंडली मिलाए हुआ था. हम ने सफल वैवाहिक जीवन बिताया. मेरा तो यही मानना है अगर हमारे विचार मिलते हैं, हमें एकदूसरे पर विश्वास है तो हम जीवन में आई हर कठिनाई का सामना कर सकते हैं. जो होना होगा वह होगा ही, व्यर्थ के ढकोसलों में पड़ कर हम अपने मन को कमजोर ही करते हैं,” शीला ने कहा.

शीला की बात सुन कर सरिता के मनमस्तिष्क में प्राची के शब्द भी गूंजने लगे- ‘ममा, हम स्त्रियां स्वयं को इतना हीन क्यों बना लेती हैं? जीवन में आई हर विपदा को अपने क्रूर ग्रहों का कारण मान कर सदा कलपते रहना उचित तो नहीं है. एकाएक उस के मन में व्याप्त नकारात्मकता की जगह सकारात्मकता ने ले ली. उस की सकारात्मक सोच ने उस में उर्जा का ऐसा संचार कर दिया था कि अब उसे भी लगने लगा कि व्यक्ति अपनी निष्ठा, लगन, परिश्रम और आत्मविश्वास से कठिन से कठिन कार्य में भी सफलता प्राप्त करने के साथ जीवन में आई हर चुनौती का सामना करने में सक्षम रह सकता है. इस के साथ ही उन के मन पर वर्षो से चढ़ी ढोंग और ढकोसलों की जमी बर्फ पिघलने लगी थी. उन्होंने प्राची और जयदीप के संबंध को तहेदिल से स्वीकार कर विवाह की तैयारियां शुरू कर दीं.

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