Romantic Story In Hindi: सुधा का सत्य- भाग 1- कौनसा सच छिपा रही थी सुधा

लेखिका- रमा प्रभाकर   

‘‘यह किस का प्रेमपत्र है?’’ सुधा ने धीरेंद्र के सामने गुलाबी रंग का लिफाफा रखते हुए कहा.

‘‘यह प्रेमपत्र है, तो जाहिर है कि किसी प्रेमिका का ही होगा,’’ सुधा ने जितना चिढ़ कर प्रश्न किया था धीरेंद्र ने उतनी ही लापरवाही से उत्तर दिया तो वह बुरी तरह बिफर गई.

‘‘कितने बेशर्म इनसान हो तुम. तुम ने अपने चेहरे पर इतने मुखौटे लगाए हुए हैं कि मैं आज तक तुम्हारे असली रूप को समझ नहीं सकी हूं. क्या मैं जान सकती हूं कि तुम्हारे जीवन में आने वाली प्रेमिकाओं में इस का क्रमांक क्या है?’’

सुधा ने आज जैसे लड़ने के लिए कमर कस ली थी, लेकिन धीरेंद्र ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया. दफ्तर से लौट कर वह फिर से बाहर निकल जाने को तैयार हो रहा था.

कमीज पहनता हुआ बोला, ‘‘सुधा, तुम्हें मेरी ओर देखने की फुरसत ही कहां रहती है? तुम्हारे बच्चे, तुम्हारी पढ़ाई, तुम्हारी सहेलियां, रिश्तेदार इन सब की देखभाल और आवभगत के बाद अपने इस पति नाम के प्राणी के लिए तुम्हारे पास न तो समय बचता है और न ही शक्ति.

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‘‘आखिर मैं भी इनसान हूं्. मेरी भी इच्छाएं हैं. मुझे भी लगता है कि कोई ऐसा हो जो मेरी, केवल मेरी बात सुने और माने, मेरी आवश्यकताएं समझे. अगर मुझे यह सब करने वाली कोई मिल गई है तो तुम्हें चिढ़ क्यों हो रही है? बल्कि तुम्हें तो खुशी होनी चाहिए कि अब तुम्हें मेरे लिए परेशान होने की जरूरत नहीं है.’’

धीरेंद्र की बात पर सुधा का खून खौलने लगा, ‘‘क्या कहने आप के, अच्छा, यह बताओ जब बच्चे नहीं थे, मेरी पढ़ाई नहीं चल रही थी, सहेलियां, रिश्तेदार कोई भी नहीं था, मेरा सारा समय जब केवल तुम्हारे लिए ही था, तब इन देखभाल करने वालियों की तुम्हें क्यों जरूरत पड़ गई थी?’’ सुधा का इशारा ललिता वाली घटना की ओर था.

तब उन के विवाह को साल भर ही हुआ था. एक दिन भोलू की मां धुले कपड़े छत पर सुखा कर नीचे आई तो चौके में काम करती सुधा को देख कर चौंक गई, ‘अरे, बहूरानी, तुम यहां चौके में बैठी हो. ऊपर तुम्हारे कमरे में धीरेंद्र बाबू किसी लड़की से बतिया रहे हैं.’

भोलू की मां की बात को समझने में अम्मांजी को जरा भी देर नहीं लगी. वह झट अपने हाथ का काम छोड़ कर उठ खड़ी हुई थीं, ‘देखूं, धीरेंद्र किस से बात कर रहा है?’ कह कर वह छत की ओर जाने वाली सीढि़यों की ओर चल पड़ी थीं.

सुधा कुछ देर तक तो अनिश्चय की हालत में रुकी रही, पर जल्दी ही गैस बंद कर के वह भी उन के पीछे चल पड़ी थी.

ऊपर के दृश्य की शुरुआत तो सुधा नहीं देख सकी लेकिन जो कुछ भी उस ने देखा, उस से स्थिति का अंदाजा लगाने में उसे तनिक भी नहीं सोचना पड़ा. खुले दरवाजे पर अम्मांजी चंडी का रूप धरे खड़ी थीं. अंदर कमरे में सकपकाए से धीरेंद्र के पास ही सफेद फक चेहरे और कांपती काया में पड़ोस की ललिता खड़ी थी.

इस घटना का पता तो गिनेचुने लोगों के बीच ही सीमित रहा, लेकिन इस के परिणाम सभी की समझ में आए थे. पड़ोसिन सुमित्रा भाभी ने अपनी छोटी बहन ललिता को एक ही हफ्ते में पढ़ाई छुड़वा कर वापस भिजवा दिया था. उस के बाद दोनों घरों के बीच जो गहरे स्नेहिल संबंध थे, वे भी बिखर गए थे.

अभी सुधा ने उसी घटना को ले कर व्यंग्य किया था. धीरेंद्र इस पर खीज गया. बोला, ‘‘पुरानी बातें क्यों उखाड़ती हो? उस बात का इस से क्या संबंध है?’’

‘‘है क्यों नहीं? खूब संबंध है. वह भी तुम्हारी प्रेमिका थी और यह भी जैसा तुम कह रहे हो, तुम्हारी प्रेमिका है. बस, फर्क यही है कि वह तीसरी या चौथी प्रेमिका रही होगी और यह 5वीं या छठी प्रेमिका है,’’ सुधा चिल्लाई.

‘‘चुप करो, सुधा, तुम एक बार बोलना शुरू करती हो तो बोलती चली जाती हो. पल्लवी को तुम इस श्रेणी में नहीं रख सकतीं. तुम क्या जानो, वह मेरा कितना ध्यान रखती है.’’

‘‘सब जानती हूं. और यह भी जानती हूं कि अगर ये ध्यान रखने वालियां तुम्हारे जीवन में न आतीं तो भी तुम अच्छी तरह जिंदा रहते. तब कम से कम दुनिया के सामने दोहरी जिंदगी जीने की मजबूरी तो न होती.’’

सुधा को लगा कि वह अगर कुछ क्षण और वहां रुकी तो रो पड़ेगी. धीरेंद्र के सामने वह अब कमजोर नहीं पड़ना चाहती थी. पहले भी जब कभी धीरेंद्र के प्रेमप्रसंग के भेद खुले थे, वह खूब रोईधोई थी, लेकिन धीरेंद्र पर इस का कोई विशेष असर कभी नहीं पड़ा था.

धीरेंद्र तो अपनी टाई ठीक कर के, जूतों को एक बार फिर ब्रश से चमका कर घर से निकल गया, लेकिन सुधा के मन में तूफान पैदा कर गया. अंदर कमरे में जा कर सुधा ने सारे ऊनी कपड़े और स्वेटर आदि फिर से अलमारी में भर दिए.

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सर्दियां बीत चुकी थीं. अब गरमियों के दिनों की हलकीहलकी खुनक दोपहर की धूप में चढ़नी शुरू हो गई थी. आज सुधा ने सोचा था कि वह घर भर के सारे ऊनी कपड़े निकाल कर बाहर धूप में डाल देगी. 2 दिन अच्छी धूप दिखा कर ऊनी कपड़ों में नेप्थलीन की गोलियां डाल कर उन्हें बक्सों में वह हर साल बंद कर दिया करती थी.

आज भी धूप में डालने से पहले वह हर कपड़े की जेब टटोल कर खाली करती जा रही थी. तभी धीरेंद्र के स्लेटी रंग के सूट के कोट की अंदर की जेब में उसे यह गुलाबी लिफाफा मिला था.

बहुत साल पहले स्कूल के दिनों में सुधा ने एक प्रेमपत्र पढ़ा था, जो उस के बगल की सीट पर बैठने वाली लड़की ने उसे दिखाया था. यह पत्र उस लड़की को रोज स्कूल के फाटक पर मिलने वाले एक लड़के ने दिया था. उस पत्र की पहली पंक्ति सुधा को आज भी अच्छी तरह याद थी, ‘सेवा में निवेदन है कि आप मेरे दिल में बैठ चुकी हैं…’

धीरेंद्र के कोट की जेब से मिला पत्र भी कुछ इसी प्रकार से अंगरेजी में लिखा गया प्रेमपत्र था. बेहद बचकानी भावुकता में किसी लड़की ने धीरेंद्र को यह पत्र लिखा था. पत्र पढ़ कर सुधा के तनमन में आग सी लग गई थी.

आगे पढ़ें- सुधा आज दूसरे ही मूड में थी. उस का…

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Romantic Story In Hindi: प्रीत किए दुख होए

लेखक- बद्री शंकर

Romantic Story In Hindi: प्रीत किए दुख होए- भाग 4

लेखक- बद्री शंकर

पिछले अंकों में आप ने पढ़ा था:

काजल और सुंदर बचपन से एकदूसरे से प्यार करते थे. सुंदर ऊंची जाति का था और काजल दलित थी. सुंदर के पिता ने उसे मामा के पास भेज दिया. वहां सुंदर का शोषण हुआ. वह वापस आ गया. इसी बीच उस की मुलाकात मीनाक्षी से हुई. वह उसी की जाति की थी. काजल पढ़ाई में होशियार निकली और पढ़ने शहर जा पहुंची. मीनाक्षी सुंदर को चाहती थी.

अब पढ़िए आगे…

 यह बात सुंदर के भी कानों में पड़ी कि पूरे ही गांव का कायाकल्प हो रहा है और वह भी काजल की बदौलत. सुंदर पिंजरे में बंद पंछी की तरह तड़प उठा.

सुंदर की यह तड़प देख कर मीनाक्षी उस पर हंस पड़ती, ताने देती. एक बार तो सुंदर ने मीनाक्षी को पीट दिया क्योंकि उस ने काजल के लिए बेहूदा बात कही थी. लेकिन एक सच्ची प्रेमिका की तरह वह यह सब झेल गई और परिवार को इस की भनक तक न लगने दी.

‘‘सुंदर, तुम मेरी जान भी ले लोगे न तो भी मैं उफ न करूंगी,’’ रोने के बजाय मीनाक्षी ने बेबाक हो कर कहा था.

सुंदर घबराया और मीनाक्षी के पैर पकड़ लिए, ‘‘मुझे माफ कर दो. मेरे दिल को समझो. मैं अपना दिल काजल के नाम कर चुका हूं.’’

मीनाक्षी ने आंसू पोंछे, ‘‘अगर तेरा प्यारा सच्चा होगा तो तुझे मिल जाएगी काजल.’’ ‘‘नहीं मीनाक्षी, मैं इस जेल में बेकुसूर कैदी हूं. मुझे तुम आजाद कर दो. मीनाक्षी, तुम मेरी प्रेरणा हो तो मंजिल है काजल. मैं तुम्हारा बड़ा एहसानमंद रहूंगा, अगर मुझे मंजिल तक पहुंचाने में मदद कर दी.’’

‘‘जब कुदरत तेरे साथ होगा तो कोई रोक सकता है क्या?’’

‘‘चलो, अपने कमरे में. मां शायद इधर ही आ रही हैं,’’ दोनों अपनेअपने कमरे में चले गए.

कुछ दिन बाद सुंदर के कालेज में टूर का प्रोग्राम बना. सरकारी फंड से एकबस की गई. उस में पहले साल के सभी छात्रछात्राएं सवार हो शहर घूमने चले. गाइड के रूप में 2 टीचर साथ थे, जिन में एक मिश्राजी भी थे.

शहर घूमने के बाद तकरीबन 4 बजे बस जिले के राजकीय महाविद्यालय परिसर में रुक गई. सभी छात्रछात्राएं बाहर निकल कर घूमने लगे.

गाइड से सुंदर को पता चला कि वह जिले का सब से अच्छा कालेज है जहां टौपर छात्रछात्राएं ही पढ़ते हैं. उस ने अंदाजा लगाया कि हो सकता है कि काजल भी यहीं पढ़ती हो.

सुंदर काजल को ढूंढ़ने लगा. काजल अभीअभी क्लास में से बाहर निकली. सिक्योरिटी गार्ड भी पीछेपीछे था. सुंदर को गार्ड का पता नहीं था, सो उस ने धीरे से पुकारा, ‘‘काजल…’’

इतना सुनना था कि काजल दौड़ कर उस के गले लग गई.

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‘‘तू ने मुझे भुला दिया काजल?’’

‘‘नहीं रे, कहां भूली हूं मैं? देख मेरी हालत. क्या ऐसी थी मैं?’’ और काजल ने सुंदर को जोर से भींच लिया.

सुरक्षा गार्ड ने देखा तो उस ने दौड़ कर सुंदर को पकड़ा और गेट के पास बने थाने में डीएसपी अंजन कुमार को सौंप दिया.

डीएसपी अंजन कुमार ने सुंदर की बेरहमी से पिटाई कर दी और थाने में बंद कर दिया. सारे छात्रछात्राएं धरने पर बैठ गए और नारेबाजी करने लगे.

मामला गंभीर होता देख कर डीएसपी अंजन कुमार ने सुंदर को छोड़ दिया और मिश्राजी ने राजकीय अस्पताल में उसे भरती करा दिया.

थाने में सुंदर की इतनी पिटाई की गई थी कि 3 महीने तक उसे अस्पताल में रहना पड़ा. मीनाक्षी कभीकभी अस्पताल आती तो उस पर ताना कसती, ‘‘दिल दिया, दर्द लिया. वही थी न तुम्हारी काजल…? अच्छी है तुम्हारी पसंद.’’

सुंदर कुछ नहीं बोला, बस सिसकता रहा. आखिर डाक्टरों के इलाज और मीनाक्षी की सेवा से वह घर जाने लायक हो गया. छुट्टी के दिन वह किसी की निगरानी न देख चुपके से अपने घर आ गया.

उधर मीनाक्षी अस्पताल पहुंची तो बिस्तर खाली देख बगल वाले से पूछा. पता चला कि सुंदर अभीअभी घर चला गया है. मीनाक्षी ने घर जा कर अपने पिता को बताया तो मिश्राजी के तनबदन में आग लग गई. उन्होंने प्रण किया कि चाहे जान चली जाए, सुंदर को मीनाक्षी से शादी करनी ही पड़ेगी.

उधर, डीएसपी अंजन कुमार भी काजल की चाहत में दीवाने हो गए थे.

कालेज में 15 दिन की छुट्टियां हुईं. काजल के मन में आया कि मां के साथ गांव घूम लिया जाए. दोनों मांबेटी गांव आ गईं. बदलाव देख कर वे दंग रह गईं.

काजल के कच्चे घर के बजाय वहां पक्का बड़ा घर बन गया था. ठेकेदार ने आ कर घर की चाबी देते हुए सारी बातें बताईं कि यह काजल का ही कमाल है.

बड़ा घर देख कर मांबेटी दोनों बड़ी खुश हुईं और ठेकेदार को चाय पिलाई. मां ने ठेकेदार से गांव का हालचाल पूछा, खासकर बाबू लोगों का.

‘‘गजब की खबर है. पंडित रमाकांत के बेटे सुंदर को 2 दिन पहले दूर गांव के कोई मिश्राजी मास्टर के हथियारबंद लोग अपहरण कर के ले गए. सभी बाबू लोगों ने मिश्राजी के यहां दबिश दे दी.

आखिरकार मिश्राजी ने हथियार डाल दिए और पंडित रमाकांत के बेटे सुंदर को मुखिया के हवाले कर दिया. चेतावनी देते हुए सभी लोग वापस गांव आ गए.

यह सुन कर काजल परेशान हो गई और छत पर टहलने लगी, तभी उस की नजर सड़क पर जाती अपनी सहेली ममता पर पड़ी, जो मुखियाजी की बेटी थी.

काजल ने ऊपर से ही अपनी सहेली ममता को अंदर आने का इशारा किया और दनदनाते हुए नीचे आ कर दरवाजा खोल दिया. दोनों सहेलियां गले मिलीं.

‘‘शहर में कैसी पढ़ाई चल रही है तुम्हारी?’’ ममता ने पूछा.

‘‘अच्छी, लेकिन तू बता कि उंगली में चमक रही अंगूठी कब से है? कहीं टांका भिड़ गया क्या?’’ काजल ने ममता से पूछा और अपनी परेशानी भूल गई.

‘‘अब समझ ही गई है तो कहना क्या?

‘‘मुझे क्यों भूल गई?’’

‘‘नहीं भूली काजल, चाहे जिस की कसम दे दो. लेकिन तुम तो जान रही हो न हमारी बिरादरी को. पापा मुखिया हैं. भी बदनाम हो जाते.’’

‘‘खैर, तू बस जीजाजी से मिलवा दे, ताकि मैं देख सकूं कि मेरी चालाक सहेली ने कैसी बाजीगरी दिखाई है.’’

‘‘अभी तो वे कालेज में होंगे. क्या तू चलेगी वहां?’’

‘‘तू साथ चलेगी तब न? मैं कैसे पहचानूंगी?’’

‘‘अभी चल. घर जा कर आना मुमकिन नहीं.’’

‘‘तो चल.’’

काजल ने आननफानन कपड़े बदले और आटोरिकशा में सवार हो कर दोनों सहेलियां कालेज पहुंच गईं.

लंच की घंटी बजने में 10 मिनट की देरी थी, सो दोनों सहेलियां कालेज कैंपस में लगे नीम के घने पेड़ के नीचे इंतजार करने लगीं.

‘‘देख, जब घंटी बजेगी तब मैं क्लास के सामने जा कर खड़ी हो जाऊंगी. तब तक तुम मुझ पर ही नजर गड़ाए रखना. जैसे ही वे मिलेंगे, मैं उन्हें कालेज के पिछवाड़े में ले जाऊंगी. तुम तेजी से हमारे पीछे आना,’’ ऐसा कह कर ममता क्लास के सामने जा कर खड़ी हो गई.

घंटी बजी. वैसा ही हुआ. काजल ने तेजी से ममता का पीछा किया. वह ज्यों ही कालेज के पिछवाड़े की ओर मुड़ी कि उसे सांप सूंघ गया. ममता का वह मंगेतर कोई और नहीं, बल्कि काजल का सुंदर था.

‘‘रुक क्यों गई काजल, आओ न. मिलो तुम मेरे मंगेतर से,’’ यह कह कर ममता मुसकरा दी.

काजल की आंखों में खून उतर आया. वह बोली, ‘‘धोखेबाज, तो यही है तेरा असली रूप?’’

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सुंदर कुछ बोलना चाह रहा था, लेकिन काजल अपनी रौ में थी, ‘‘मैं दलितों व कमजोर लोगों को समाज में इज्जत दिलाने की हसरत लिए चल रही थी और इस में तुम ने भी साथ देने की कसमें खाई थीं… कहां गया वह जज्बा?’’

ममता की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. वह हैरानी से दोनों को देख रही थी.

काजल बोले जा रही थी, ‘‘तुम ऐसे इनसान हो, जो खुद अशुद्ध रह कर यजमानों का शुद्धीकरण कराते हैं और पंडित होने का ढोंग रचते हैं. क्या किया है तुम लोगों ने? दलितों और कमजोरों की जायदाद हड़प कर उन्हें बेघर कर गांव निकाले जाने की सजा दे दी है.

‘‘झूठ, फरेब व वादाखिलाफी कर तू ने मेरे दिल के टुकड़ेटुकड़े कर दिए. मैं कैसे और कहां जीऊंगी सुंदर? तेरे लिए मैं ने अपनी बिरादरी के ही होनहार, स्मार्ट डीएसपी का औफर ठुकराया. तू ने मुझे तो कहीं का न रखा.

‘‘कान खोल कर सुन ले. मेरी जिंदगी को हराम कर के तुम भी नहीं जी सकोगे. मेरी जगह तो अब गंगा की गोद में हैं. मैं चली,’’ और काजल बेतहाशा भागी. पास ही में गंगा नदी बहती थी.

‘‘काजल सुनो तो… रुको तो,’’ कह कर जब तक सुंदर पीछा करते हुए उसे पकड़ता, तब तक वह गंगा में कूद पड़ी.

सुंदर ने भी छलांग लगा दी. अब ममता को पूरी बात समझ में आई. उस ने इस घटना को वहां नहा रहे लड़कों को बताया. जो तैरना जानते थे, वे कूद पड़े.

सुंदर और काजल बीच गंगा में डूबतेउतरा रहे थे. कुछ लड़कों ने हिम्मत दिखाई और दोनों को बाहर निकाल लिया. सुंदर रोए जा रहा था, वहीं काजल बेहोश थी. कुछ लड़के दौड़ कर डाक्टर को बुला लाए. उन्होंने काजल की सांस चैक की जो धीमेधीमे डूबती जा रही थी. दोनों को तुरंत गाड़ी में लाद कर नर्सिंगहोम ले आए. पेट का पानी निकालने के बाद औक्सिजन लगा दी गई.

2 घंटे के इलाज के बाद काजल होश में आई. यह सब देख ममता के भी आंसू नहीं सूख रहे थे.

‘‘काजल, तू ने जरा भी बताया होता कि तुम सुंदर से बचपन से प्यार करती हो तो मैं इस दबंग समाज से लड़ जाती और तेरा ब्याह सुंदर से ही करवाती. लेकिन तू ने कभी इस बारे में बात नहीं की. मुझे माफ कर दे काजल,’’ और ममता ने सगाई की अंगूठी निकाल सुंदर को देते हुए कहा, ‘‘सुंदर, पहना दे काजल को.’’

सुंदर झिझका, लेकिन लड़कों के हुजूम में से एक ने हिम्मत दी, ‘‘पहना दे काजल भाभी को अंगूठी. मरते दम तक हम सब तेरे साथ हैं. भाभी होश में आ गई हैं. तेरी शादी अभी होगी. हमारे कुछ साथी जरूरी सामान व पंडित को लाने चले गए हैं. बस, आने की देरी है.’’

सुंदर ने काजल को वह अंगूठी पहना दी. सब ने तालियां बजाईं, तभी पंडितजी व सारा सामान आ गया.

ममता ने काजल को सजाया. तभी उन्हें भनक मिली कि मिश्राजी के गुंडों ने घेराबंदी कर दी है. लड़कों ने भी नर्सिंगहोम घेरे रखा. कोई अनहोनी न हो जाए, इसलिए ममता ने कोतवाली और अपने पिता को फोन कर दिया.

मुखियाजी ने तुरंत आ कर अपनी दोनाली तान दी, ‘‘बच्चो, हट जाओ. नादानी मत करो. मारे जाओगे. अंदर क्या हो रहा है?’’ मुखियाजी ने घुसने की कोशिश की. अंदर से शादी कराने के मंत्र सुनाई पड़ रहे थे.

‘‘सुन नहीं रहे हैं चाचा. अंदर सुंदर और काजल की शादी हो रही है,’’ एक लड़के ने बताया.

‘‘खबरदार मुखियाजी, एक भी गोली चली तो…’’ कोतवाली से डीएसपी अंजन कुमार ने आ कर अपनी रिवाल्वर मुखियाजी की कनपटी से सटा दी. तब तक एसटीएफ के जवानों ने भीड़ की कमान अपने हाथ में ले ली थी. मिश्राजी के गुरगे भाग चुके थे.

शोर सुन कर ममता बाहर आई और पिताजी को देख कर रो पड़ी, ‘‘अच्छे आए आप. कन्यादान तो आज आप को ही करना है. चलिए भीतर, कर दीजिए कन्यादान.’’

‘‘कन्यादान…? एक दलित लड़की का कन्यादान मैं करूं? दिमाग तो ठीक है तेरा,’’ मुखियाजी बोले.

‘‘हांहां, आप… आप दलित किसे कहते हैं? उसे जिस ने दलित घर में जन्म लिया है? लेकिन उस ने जन्म देते वक्त कहीं कोई निशान दिया कि मैं उसे दलित मान लूं? मैं और काजल दोनों बचपन की सहेलियां हैं. बताइए, क्या फर्क है हम दोनों में? यहां दलित के नाम पर नफरत के बीज बोने का हक किस ने किस को दिया?

‘‘सुंदर और काजल के बीच बचपन का प्यार है. हम सब जातिवाद के चक्कर में इसे नहीं पहचान सके. प्यार की कोई जाति नहीं होती. अब तो सरकार ने भी इसे मान लिया है,’’ इतना कह कर ममता ने उन के हाथ से बंदूक छीन ली और उसे दूर फेंक दिया.

मुखियाजी ने भी अपनी बेटी की सामने घुटने टेक दिए, ‘‘बेटी, आज तू ने बेटी की सही परिभाषा दे कर मुझे एहसानमंद कर दिया. तू ने मुझे आईना दिखा दिया है.’’

दोनों भीतर गए और पंडित ने मुखियाजी से कन्यादान कराया. सभी बाहर निकले. काजल की मांग में सिंदूर और सुंदर के सिर पर सेहरा देखते ही बनता था.

ममता काजल को संभाले खड़ी थी. मुखियाजी ठीक सुंदर के बगल में सीना ताने खड़े हुए थे. डीएसपी साहब भी सादा कपड़ों में काजल व ममता के बगल में खड़े थे.

मुखियाजी ने कहा, ‘‘बच्चो, इस समाज की बेहतरी का जिम्मा तुम्हारे ही कंधों पर है. ममता ने जो कहा, मैं तो उस से बड़ा प्रभावित हुआ और मान लिया.’’

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पूरी भीड़ ने एक सुर में कहा, ‘हां.’

सरपंच ने कहा, ‘‘मुखियाजी, हम दलित बस्ती के हैं. इसे सही माने में दलित बस्ती बनाएंगे और सब को समान अधिकार दिलाएंगे. जिन बाबू लोगों के पास दलितों की जमीन, मकान वगैरह कब्जे में हैं, उसे कागज समेत वापस करवाएंगे और तमाम दलितों को भी वह सहूलियतें दिलाएंगे, जो बाबू लोगों को मिली हुई हैं.’’

तभी झाड़ी में से एक दनदनाती गोली मुखियाजी के सीने पर जा लगी. वे कटे पेड़ की तरह गिरे और मर गए. एसटीएफ के जवानों ने खदेड़ कर गोली चलाने वाले को पकड़ लिया और डीएसपी के सामने खड़ा कर दिया. उस ने तुरंत एक थप्पड़ में ही कबूल कर लिया कि उसे मारना था सुंदर को, धोखे से गोली लग गई मुखियाजी को.

सुंदर, काजल व ममता दहाड़ें मार कर मुखियाजी की लाश पर गिरे. ममता रोतेरोते बेहोश हो गई.

डीएसपी अंजन कुमार ने लाश को तत्काल पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और खुद 4-5 जवानों के साथ भीड़ को काबू करने में लगे रहे. ममता जब होश में आई, तो रोरो कर कहने लगी, ‘‘आज मेरा कन्यादान होना था. अब कब होगा कन्यादान? कौन करेगा कन्यादान?’’

डाक्टर दिलासा देते हुए बोला, ‘‘बेटी, मैं करूंगा यह कन्यादान. मेरा आशीर्वाद है तुझे.’’

तभी लोगों ने देखा कि काजल ने डीएसपी के पैर पकड़ लिए.

‘‘काजल,’’ उन्हें हैरानी हुई और पैर हटा लिए, ‘‘कुछ कहना है?’’

‘‘हां.’’

‘‘तो कहो, सब के सामने.’’

‘‘सर, आप भी मुझ से प्यार करते थे न?’’

‘‘बिलकुल, पर अब तुम मेरी बहन हो गई हो. बोलो, कौन सा बलिदान करूं मैं? मेरी बड़ी हसरत थी कि तुम कुछ कहो और मैं उस पर अमल करूं?’’

‘‘मेरी गुजारिश है कि आप ममता की मांग भर दें. एक डीएसपी भाई का यह नायाब तोहफा होगा एक गरीब बहन को.’’

काजल ने ममता को खड़ा कर के पूछा, ‘‘ममता, मेरी सहेली, डीएसपी वर पसंद हैं न तुझे? बोल बहन.’’

ममता ने बुझी आंखों से डीएसपी को देखा और उन के सीने से लग गई.

डीएसपी ने ममता की मांग भर दी. पंडितजी ने विधिविधान से मंत्र पढ़े और डाक्टर ने कन्यादान किया. भीड़ ने तालियां बजा कर जोड़े का स्वागत किया.

मुखिया मर्डर केस में अदालत ने मास्टर मिश्रा को 20 साल की कैद और हत्यारे को फांसी की सजा सुनाई.

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Romantic Story In Hindi: प्रीत किए दुख होए- भाग 2

लेखक- बद्री शंकर

पिछले अंक में आप ने पढ़ा था:

काजल दलित थी और सुंदर ब्राह्मणों का लड़का. दोनों गांव के एक ही स्कूल में पढ़ते थे. छोटे स्कूल की पढ़ाई पूरी होने के बाद सुंदर बड़ी क्लास में पढ़ने के लिए न चाहते हुए भी अपने मामा के यहां चला गया. काजल गांव में ही पढ़ने लगी. वहां मामा सुंदर को पढ़ाने के नाम पर घर के सारे काम कराता था. उस के साथ मारपीट भी करता था. इस बात से सुंदर बहुत दुखी था. उसे काजल और अपने परिवार की बहुत याद आती थी.

अब पढ़िए आगे… 

मामा बबलू को आया देख आंसू पोंछ कर सुंदर ने चूल्हे पर पतीली चढ़ाई. देखते ही देखते एक साल बीत गया.

पंडिताइन ने सारे गहने बेच कर पैसा मामा बबलू को भेज दिया, क्योंकि सुंदर को हाकिम बनाने का झांसा जो दिया था. हर महीने फोन आता और डिमांड होती, कभी 2 हजार, कभी 5 हजार की.

एक दिन सुंदर को मौका मिल गया. यों तो मामा खुद जाता था सड़क पर पान खाने, पर पैर में बिवाई निकलने के चलते वह दर्द से चल नहीं पाता था, सो 10 का नोट दे कर सुंदर को ही भेजा. बस फिर क्या था, वह नोट रिकशे वाले को दे कर सुंदर वहां से पहुंच गया बेगुसराय स्टेशन.

एक ट्रेन खगडि़या के लिए चलने वाली थी, सो वह उस में चढ़ गया. पहुंच तो गया वह खगडि़या, लेकिन अब नंदीग्राम कैसे पहुंचे? पैसे नहीं थे, जो आटोरिकशा वाले को देता. चल पड़ा पैदल. रास्ते में एक गांव का तांगा मिला. चढ़ गया उस में. तांगे वाला गांव के चाचा लगते थे, जिन्होंने पैसे नहीं लिए.

सुंदर ज्यों ही घर पहुंचा कि मां की आवाज सुनाई दी, ‘‘कल कहीं से जुगाड़ कर 2 हजार रुपए भेज दो भाई को. बड़ा स्कूल है. एक दिन की देर में बहुत फाइन लग जाता है.’’

तभी सुंदर रो पड़ा और उस ने पुकारा, ‘‘मां.’’

मां दौड़ कर आवाज की ओर भागीं. किवाड़ की आड़ में छिपे सुंदर को सिसकता देख वे पिघल गईं.

‘‘सुंदर, क्या स्कूल में छुट्टी हो गई? तू वहां से अकेला कैसे आया?’’

‘‘अपने भरोसे. और स्कूल? वहां स्कूल ही नहीं है तो छुट्टी कैसी?’’ उस ने पीठ और हाथ दिखाए, जो मामा की मार से फफोले उठ कर चिपक गए थे.

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‘‘देखो, देखो अपना सुंदर हाकिम बन कर आ गया,’’ मां इतना कह कर बेहोश हो कर गिर पड़ीं.

पंडितजी जो सोने वाले थे, एकदम उठे और पंडिताइन को पानी के छींटे मारे, तब कहीं वे होश में आईं और दहाड़ कर बोलीं, ‘‘भैया… नहीं छोड़ूंगी तुझे. तू भाई नहीं कसाई है. तू आ तो जरा,’’ और बेटे सुंदर को खिलानेपिलाने लगीं.

‘‘इस का नाम यहीं स्कूल में लिखा दूंगी. नहीं बनाना हाकिम,’’ मां बोलीं.

दूसरे दिन दोनों मांबेटे चले स्कूल, जिस में काजल भी पढ़ती थी. अब वह 10वीं जमात में थी.

‘‘मां, काजल मुझ से पढ़ने में आगे हो गई होगी?’’

‘‘क्यों नहीं? किसी मामा के फेर में पड़ी होगी क्या वह?’’

‘‘मां, मैं उस स्कूल में कभी नहीं जाऊंगा. वहां मुझे शर्म आएगी. काजल ताना कसेगी,’’ रुक कर सुंदर ठुनकने सा लगा.

‘‘मजाल है जो एक शब्द भी निकाले. चल मेरे साथ…’’

‘‘अरे सुंदर,’’ सुंदर को स्कूल में आया देख काजल चहक कर नजदीक आ गई, ‘‘तू तो शहर गया था न?’’

सुंदर ने कोई जवाब नहीं दिया और मां की आड़ में छिप गया.

‘‘चाची, सुंदर अब यहीं पढ़ेगा न?’’ काजल ने पूछा.

‘‘हां… क्यों? स्कूल तेरे बाप का है क्या? जा, अपनी सीट पर बैठ,’’ सुंदर की मां बोलीं.

बेचारी काजल अपना सा मुंह लिए सीट पर जा बैठी. सुंदर का भी दाखिला हो गया, वह भी उसी की क्लास में.

दूसरे दिन सुंदर स्कूल आया तो काजल से दूरी बना कर बैठा. काजल हारी नजरों से कभीकभार उसे देख लेती और अपनी किताब खोल कर उस में सुंदर को भूलने की कोशिश करती. छमाही इम्तिहान हुए. सब को नंबर मिले. जहां काजल सब से अव्वल थी, वहीं सुंदर सब से फिसड्डी.

इस बार पंडितजी चढ़े आए, ‘‘आप पढ़ाते हैं या खेल करते हैं?’’

‘‘क्या हुआ?’’ हैडमास्टर ने पूछा.

‘‘आप जानते हैं न कि सुंदर मेरा

बेटा है?’’

‘‘जी हां, अच्छी तरह.’’

‘‘फिर भी सभी बच्चेबच्चियां इस से बाजी मार गए. कैसे?’’

‘‘क्यों? इम्तिहान क्या आप ने दिया था या सुंदर ने?’’

‘‘मतलब?’’ पंडितजी गरम दिखे.

‘‘यह तो होना ही था. पिछली क्लास के छात्र को आगे की क्लास के इम्तिहान में बिठा दिया जाए तो क्या होगा? यही होगा न?’’

‘‘नहीं, आप तो दलित टीचर हैं, इसलिए. क्या काजल से काबिल

कोई लड़का नहीं है बाबू लोगों के लड़कों में?’’

‘‘मैं तो कहूंगा कि नहीं.’’

‘‘समझ गया. चल सुंदर, नहीं पढ़ना दलितों के स्कूल में,’’ और वे सुंदर को अपने साथ ले गए.

पंडितजी ने सुंदर का दाखिला अपने गांव से 10 किलोमीटर दूर एक मिडिल स्कूल में करा दिया. वहां बाबू लोगों के बच्चे ही पढ़ा करते थे. गांव से एक आटोरिकशा जाता था.

एक दिन सुंदर के अंगरेजी के एक टीचर मिश्राजी की नजर उस पर पड़ी. वे पारखी नजर रखते थे. तुरंत अपनी बेटी मीनाक्षी की जोड़ी मन ही मन बिठा ली.

स्कूल में सुंदर की सीट मीनाक्षी के साथ ही थी. इस से मीनाक्षी को मिलने वाली सारी मदद सुंदर को भी मिलने लगी.

मिश्राजी ने पूछताछ कर के पता कर लिया था कि सुंदर एक ब्राह्मण का लड़का है. इसे पास रख कर बचपन से ही दोनों के बीच प्यार के बीज खिल सकते हैं. उन्होंने पंडित रमाकांत को बुलवाया और अपनी मंशा जाहिर की.

‘‘बाप रे बाप, घर में कुबेर आ जाए, और पूछे कि कितना पैसा चाहिए?’’ कह कर पंडितजी खुश हो कर उन के पैरों की ओर झुके, ‘‘मैं ने तो सिर्फ जन्म दिया है, बाकी सबकुछ तो आप ही देंगे सरकार.’’

‘‘आप ने हीरा पैदा किया है हीरा.’’

‘‘हीरा क्या खाक होगा? इस के सब साथी इस से 2 क्लास ऊपर हैं.’’

‘‘कोई बात नहीं. स्कूल में जो पढ़े सो पढ़े. घर पर मैं इस के साथ मेहनत करूंगा. यह सब के बराबर हो जाएगा. मीनाक्षी भी पढ़ने में तेज है. वह उस की अच्छी मदद करेगी. आप को आगे के लिए कुछ नहीं सोचना है.’’

‘‘ठीक है माईबाप. जब भी आऊंगा तो खाली हाथ नहीं आऊंगा सरकार,’’ कह कर पंडितजी चलते बने.

‘‘सुदर की मां, उसे सही जगह पर दे आया हूं. समझो, देवता मिल गए हैं,’’ घर आते ही पंडितजी ने सारी बात पंडिताइन को सुनाई.

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पंडिताइन के चेहरे पर कोई भाव नहीं आया.

‘‘अरी भाग्यवान, तुम किस सपने में खोई हुई हो? कुछ सुना कि नहीं, जो मैं ने कहा?’’

‘‘सुन लिया. यहां काजल थी, वहां मीनाक्षी है. यही तो कह रहे थे तुम? बेटे को जानते हो न? छोटी सी उम्र में ही प्रेम रोग लगा बैठा है?’’

‘‘इसीलिए तो मैं ने वहां दे दिया. जगहंसाई की वजह तो न बनेगा. कम से कम मीनाक्षी तो ऊंची जाति की है.’’

‘‘तो यह कहो न कि सुंदर का सौदा कर दिया है. मैं तो कहती हूं, उस का मन जजमानी में लगाओ. ट्रेनिंग दो. आप के बाद क्या होगा, सोचा है कभी?’’

‘‘तुम दोनों कान की बहरी हो, कुछ नहीं सुनोगी,’’ कहते हुए पंडितजी कंधे पर गमछा डाल कर बाहर निकल गए. काजल ज्योंज्यों बड़ी होने लगी, त्योंत्यों उस के बदन का उभारनिखार भी बढ़ने लगा. इसी के चलते वह सभी लड़कों के ख्वाबों में बस गई थी. सभी उस का साथ पाने को बावले हो गए थे.

काजल ने पढ़ाई में ऐड़ीचोटी का जोर लगा दिया. कभीकभी सुंदर की याद आती तो वह सोचती कि पता नहीं, उस ने फार्म भरा भी है या नहीं. वैसे, एक क्लास तो वह चूक ही गया था.

इधर, सुंदर को टीचर मिश्राजी ने जीजान से पढ़ाना शुरू कर दिया. सुबहशाम उस पर इतना समय लगाया कि वह एक क्लास चूकने के बावजूद फार्म भरने के लायक हो गया.

मिश्राजी ने किसी दूसरे स्कूल से उसे भी मैट्रिक का छात्र बनवा दिया. सुंदर ने भी अपनी ओर से पढ़ाई करने में कोई कमी नहीं छोड़ी. कभीकभी वह मीनाक्षी से काजल की बातें करता तो मीनाक्षी कहती, ‘‘दिखाओ न एक दिन?’’

‘‘नहीं आएगी वह. ग्राम पंचायत का फैसला है कि कोई भी ऊंची जाति का शख्स उस से नहीं मिल सकता,’’ ऐसा कह कर सुंदर उदास हो गया.

‘‘क्यों?’’ मीनाक्षी ने पूछा.

‘‘क्यों, क्या? सारा गांव बाबुओं का है और वह दलित है.’’

‘‘काजल दलित है?’’

‘‘हां, लेकिन उस से क्या? यह कोई छूत की लाइलाज बीमारी तो है नहीं. दिल की बड़ी अच्छी है. देखने में भी सुंदर है,’’ कह कर सुंदर सिसक उठा.

मीनाक्षी ने प्यार से सुंदर की पीठ पर हाथ रखा, ‘‘अच्छा, मैं समझी. तुझे इसी बात का दुख है कि वह तुझ से आगे निकल जाएगी?’’ सुंदर बस हिचकियां भरता रहा.

‘‘फिर भी तू काजल से अच्छे नंबर लाएगा,’’ मीनाक्षी ने उस का हौसला बढ़ाया. सुंदर भी यह सोच कर खिल उठा कि अगर ऐसा हुआ तो काजल की हेकड़ी टूट जाएगी.

मैट्रिक का इम्तिहान हुआ. नतीजा आया तो काजल राज्य में 5वें नंबर पर आई. अखबार में उस के फोटो समेत छपा, ‘गुदड़ी की लाल, जिले में कमाल’.

मुख्यमंत्री ने टौप 10 छात्रा को 25-25 हजार रुपए व कलक्टर ने 10-10 हजार रुपए दे कर सम्मानित करने का ऐलान किया.

समारोह में जिले के डीईओ साहब बतौर मुख्य अतिथि पधारे थे. इन के ही हाथों काजल को कामयाबी की माला पहनानी थी और 10 हजार रुपए का चैक देना था. सो, दोनों मांबेटी को बुलाया गया.

आई तो बस काजल की मां और माइक थाम कर बोल गई, ‘‘अब काहे की काजल? काहे की माला? हुजूर, गांव में 2 ही घर दलितों के हैं. बाकी हैं बाबू लोग. इन लोगों ने अपने बच्चों को काजल से दूर रहने की हिदायद दे रखी है. सभी हिकारत की नजर से देखते हैं. आज उस के लिए ही माला? नहीं आएगी काजल, साहब,’’ उस ने डीईओ साहब को नमस्ते किया और मंच से उतर कर घर चली गई.

मंच पर ही कोलाहल मच गया. कानाफूसी होने लगी कि अब क्या होगा? डीईओ साहब खुद दलित थे. कहीं स्कूल की यूनिट खत्म कर दी तो बच्चे 10 किलोमीटर दूर जा कर पढ़ सकेंगे क्या?

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डीईओ साहब खुद काजल के घर आए और पुचकार कर माला पहनाई और चैक दिया. फिर पूछा कि किस कालेज में दाखिला लोगी. जहां वह दाखिला लेना चाहेगी, वहां उस के लिए सीट रिजर्व रहेगी. यह सरकारी इंतजाम है.

‘‘नहीं साहब, मेरी मां अकेली रह जाएंगी. फिर ज्यादा पढ़लिख कर दलितों में शादीब्याह की भी समस्या आती है. पढ़ेलिखे लड़के मिलते ही नहीं. मिलते हैं तो दहेज में मोटी रकम चाहिए. मैं ठहरी गरीब लड़की.’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई समस्या नहीं आएगी. तुम्हारे पीछे पूरी सरकार खड़ी है. शादीब्याह की जब बात आएगी तो लड़के भी मिलेंगे और वे भी बिना दहेज के. केवल तुम अपने पढ़ने की रफ्तार कम मत करो,’’ इतना समझा कर वे चले गए.

काजल को तो बस सुंदर की चिंता सता रही थी कि वह मैट्रिक में पास हुआ भी है या नहीं. उस ने तय किया कि अगर सुंदर फेल हो गया होगा तो वह भी आगे दाखिला नहीं लेगी.

काजल का फोटो अखबार में देख सुंदर चहक उठा, ‘‘यही है मेरी काजल. मीनाक्षी, यही है मेरी काजल…’’ और उस का गला भर्रा गया, ‘‘मीनाक्षी, काजल कितनी दूर चली गई? कटी पतंग की तरह बदलों के पार. मुझे मिल पाएगी या नहीं?’’ और गमछे से वह आंसू पोंछने लगा.

‘‘पागल… एक तो तुम कहते हो कि वह दलित है, दूसरे तुम से अव्वल. अब वह तुम्हें देखेगी भी क्या?’’

‘‘नहीं मीनाक्षी, वह मेरी बचपन की दोस्त है. हम ऊंची जाति वाले उसे भूल सकते हैं, पर वह नहीं भूलेगी.’’

तभी मिश्राजी गरजे, ‘‘चुप… जाति का ब्राह्मण हो कर दलित लड़की का नाम रटे बैठा है. तुझ पर मैं दिनरात मेहनत और खर्च कर रहा हूं. मैं अंधा

हूं क्या?

आगे पढ़ें- क्या काजल व मीनाक्षी कभी मिल पाईं? सुंदर की जिंदगी में काजल आई या मीनाक्षी? 

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Romantic Story In Hindi: प्रीत किए दुख होए- भाग 3

लेखक- बद्री शंकर

पिछले अंकों में आप ने पढ़ा था:

काजल और सुंदर स्कूल के दिनों से ही एकदूसरे से प्यार करते थे. सुंदर चूंकि ऊंची जाति का था और काजल दलित थी इसलिए सुंदर के पिता ने उसे मामा के पास भेज दिया. वहां सुंदर का खूब शोषण हुआ. इधर काजल पढ़ाई में तेज होने के चलते आगे बढ़ती गई. इसी बीच सुंदर की जिंदगी में मीनाक्षी आई जिस के पिता उन दोनों का रिश्ता कराना चाहते थे.

अब पढि़ए आगे…

 ‘‘तेरी भलाई इसी में है कि तू मीनाक्षी के संग जोड़ी जमा और पढ़लिख. मैट्रिक पास करा दिया न? सैकंड डिवीजन ही सही.

‘‘कल कालेज चलना मेरे साथ. दाखिला करा दूंगा,’’ कह कर आंखें तरेरते हुए मिश्राजी वहां से चले गए.

उस दिन भी सुंदर ने खाना नहीं खाया. सब ने लाख कोशिश की, पर बेकार गया.

मीनाक्षी सुंदर को समझाती, ‘‘घोड़े हो गए हो पूरे 6 फुट के. मन के मुताबिक नतीजा नहीं लाया तू?’’

‘‘नहीं मीनाक्षी, इस बार या तो फर्स्ट आऊंगा या फिर जान दे दूंगा,’’ सुंदर ने पूरे भरोसे के साथ कहा.

‘‘बाप रे…’’ मीनाक्षी ने मुंह पर हाथ रख लिया, ‘‘तू इतना बुजदिल है… जब मैं साथ रहूंगी तो जान कैसे देगा? मैं क्या तमाशा देखूंगी? मैं भी…’’ सुंदर ने अपने हाथों से उस के मुंह को बंद कर दिया.

‘‘तुम्हारा तो सबकुछ है. तुम ऐसा क्यों करोगी?’’

‘‘जब तुम नहीं तो कौन है मेरा?’’ मीनाक्षी की आंखों में आंसू आ गए.

‘‘मीनाक्षी, ऐसे सपने मत पालो. रास्ते का ठीकरा किसी का भविष्य नहीं हो सकता. मैं गरीब पूजापाठ कराने वाले बाबूजी का बेटा हूं. तेरी जैसी अमीरी मेरे पास नहीं है. तेरे लिए तो शहजादों की कतार लगी है.’’

मिश्राइन दूसरे कमरे से दोनों की बातें सुन रही थीं. वे बाहर निकल आईं, ‘‘तू ही तो एक सूरमा बचा है काजल के लिए? अरे पोथीपतरे वाले, तेरे मन में यह सब कैसे घुस गया है? दलित अछूत होते हैं, इतना भी नहीं पता?’’

‘‘पता है, लेकिन आप को भी पता होगा कि ये सब दीवारें कब की गिर चुकी हैं. पूरे देश में उदाहरण भरे पड़े हैं कि अच्छेअच्छों व बड़ेबड़ों ने भी इसे स्वीकारा है और दूसरी जाति में शादी कर इसे साबित भी कर दिया है.

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‘‘मांजी, वह दिन दूर नहीं जब जातिवाद भूल कर सब आपस में मिल कर एक हो जाएंगे. समाज में बढ़ती गरीबी, बेरोजगारी, दहेज प्रथा के खात्मे के लिए यह जरूरी हो गया है कि 2 परिवार मिलें, शादी करें और एकदूसरे के बोझ को हलका करें. मास्टरजी तो जानते ही होंगे…’’ सुंदर बोला.

‘‘बस, भाषण बंद कर. मुझे तुम से बहस नहीं करनी,’’ मांजी पैर पटकते हुए वहां से चली गईं.

मीनाक्षी ने जोर से ताली बजाई, ‘‘मां को हरा दिया सुंदर, शाबाश. इस बार तू इम्तिहान को भी हरा दे.’’

‘‘ऐसा ही होगा मीनाक्षी, ऐसा ही होगा इस बार,’’ और सुंदर एकदम चुप हो गया.

मिश्राइन ने मिश्राजी को सारी बातें बताईं.

‘‘बोलो, मैं क्या करूं?’’ मिश्राजी ने पूछा.

‘‘करना क्या है… दोनों के पैरों में जल्दी ही बेडि़यां डाल दो.’’

‘‘यह मुमकिन है क्या? मीनाक्षी और सुंदर अभी नाबालिग हैं. सब्र करो. सब्र का फल मीठा होता है.’’

‘‘अगर चिडि़या पिंजरे से फुर्र हो गई तो?’’ मिश्राइन ने सवाल किया.

मिश्राजी कुछ नहीं बोले. वे कमरे में सोने चले गए. मिश्राराइन झुंझला गईं और पैर पटक कर बोलीं, ‘‘ऐसा ही होगा एक दिन. तुम ख्वाब देखते रह जाओगे.’’

इधर काजल का मानना था कि सुंदर क्लास में उस से पीछे है. उसे पता नहीं था कि सुंदर ने भी मैट्रिक का इम्तिहान दिया था और सैकंड क्लास से पास भी हुआ था. बड़ी मुश्किल से मास्टरजी ने उस का दाखिला गांव के निकट के कालेज में करा दिया था और उस ने काजल के नतीजे के बराबर तो नहीं, उस के पास आने की कसम खाई थी.

काजल ने मुख्यमंत्री से 25 हजार रुपए का चैक ले तो लिया, लेकिन सुंदर से आगे रहना उसे गवारा नहीं था इसलिए उस ने कहीं दाखिला नहीं लिया.

खुद डीईओ साहब ने कोशिश की, तो काजल की मां ने कहा, ‘‘मैं अकेली रह लूंगी लेकिन साहब, शहर की कहानियां सुनसुन कर तो मेरा कलेजा मुंह को आ जाता है. वहां गुंडे सरेआम लड़कियों को उठा लेते हैं. 5 साल की बच्ची से भी बलात्कार कर हत्या करने से नहीं हिचकते भेडि़ए. साहब, मेरी फूल सी बेटी इन सब का शिकार होने नहीं जाएगी शहर.’’

‘‘देखिए, माना कि शहर में यह सब होता है लेकिन जरूरी तो नहीं कि काजल के साथ भी हो. उस पर भी कलक्टर की देखरेख रहेगी. ऊपर से मुख्यमंत्री का दबाव पड़ रहा है. दाखिला तो कराना ही होगा.

‘‘रही बात सिक्योरिटी की तो एसपी से कह कर इसे सिक्योरिटी दी जाएगी. वहां रहने को होस्टल है. इस के लिए सबकुछ मुफ्त रहेगा. चाहे तो आप भी साथ में रह सकती हैं. मेरा भी घर बहुत बड़ा है.

‘‘मेरा एकलौता बेटा अंजन कुमार ट्रेनी डीएसपी है. उस की भी निगरानी रहेगी. काजल मेरे पास बेटी बन कर रहेगी. हम भी आप की ही बिरादरी के हैं.’’

‘‘आप का बेटा… कुंआरा है क्या अभी?’’ काजल की मां की उत्सुकता जागी.

‘‘हां, है तो… लेकिन अभी ट्रेनी है.

2 महीने बाद उस की पोस्टिंग कहीं भी डीएसपी की पोस्ट पर हो जाएगी.’’

‘‘तो ऐसा कीजिए न साहब, आप काजल को बेटी बना ही लीजिए.’’

मां का मकसद ट्रेनी डीएसपी से काजल की शादी कराना था.

‘‘देखिए, जमाना एडवांस चल रहा है. आजकल शहरों में पहले दोस्ती, फिर सगाई और फिर… समझ रही हैं न आप. मेरा भी लालच इतना ही है कि ऐसी सुघड़, सुंदर व मेधावी लड़की अपनी बिरादरी में खोजे नहीं मिलेगी.’’

‘‘मां…’’ यह सुन कर काजल चीख उठी, ‘‘कहा न कि मैं दाखिला नहीं लूंगी और न ही शादी ही करूंगी, बस.’’

‘‘मैं कैसे समझूं कि गांव की लड़कियां शहर की लड़कियों से कम होती हैं? सोच लीजिएगा. एक मौका तो दूंगा ही.

‘‘और हां, दाखिला तो लेना ही पड़ेगा. यह सरकारी आदेश है,’’ इतना कह कर वे चले गए.

उस रात काजल ने सपना देखा कि सुंदर की दूसरी जगह शादी हो गई है और वह सुहागरात में उस का नाम ले कर फूटफूट कर रो रहा है.

सपने में ही काजल की चीख निकल गई और नींद टूट गई. मां ने उसे बांहों में भर लिया.

काजल ने फफकते हुए कहा, ‘‘मां, सुंदर ने शादी कर ली है.’’

‘‘पगली, सपने भी कहीं सच होते हैं भला. सो जा. शादी होगी तो तेरा क्या? हम दलित हैं और वे लोग ऊंची जाति के हैं. वे लोग हमें अछूत मानते हैं.’’

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इसी तरह 2 महीने बीत गए. डीएसपी अंजन कुमार की पोस्टिंग भी राजकीय महाविद्यालय गेट के पास बने थाने में थाना इंचार्ज के रूप में हुई.

डीएम की चिट्ठी का हवाला देते हुए डीईओ ने डीएसपी अंजन कुमार को लिखा कि नंदीग्राम की एकमात्र छात्रा काजल का दाखिला कल तक करा दिया जाए, क्योंकि उसी के लिए कालेज में सीट रिजर्व रखी गई है. उस के रहने, आनेजाने पर सिक्योरिटी गार्ड की तैनाती का भी आदेश दिया गया.

डीएसपी ने अपने डीईओ पिता से भी काजल की चर्चा सुनी थी, इसलिए वे खुद को रोक नहीं सके और शाम को  तकरीबन 4 बजे फोर्स ले कर नंदीग्राम पहुंच गए.

2 घरों के बाद ही काजल का घर था. अंजन कुमार ने सांकल बजाई. काजल ने दरवाजा खोला. अंजन कुमार समझ गए कि यही काजल है.

‘‘आप की मां कहां हैं?

‘‘पड़ोस में गई हैं. वे अभी आ जाएंगी,’’ इतना कह कर काजल ने एक कुरसी निकाली और अंजन कुमार को बिठा दिया.

अंजन कुमार ने पूछा, ‘‘क्या तुम्हीं काजल हो?’’

काजल ने हां में सिर हिलाया और जेब पर लगी नेमप्लेट से समझ गई कि यही डीईओ साहब के बेटे हैं जिन से उस की शादी की बात उन्होंने मां से छेड़ी थी.

तभी काजल की मां भी आ गईं और हाथ जोड़ कर खड़ी हो गईं.

‘‘देखिए, काजल के दाखिले के लिए राजकीय महाविद्यालय में सीट खाली छोड़ी गई है. डीएम ने डीईओ को और डीईओ ने यह काम थाना इंचार्ज डीएसपी अंजन कुमार यानी मुझे सौंप दिया है.

‘‘कल हम सुबह साढ़े 9 बजे गाड़ी ले कर आएंगे और आप दोनों को महाविद्यालय चलना होगा. इस में आनाकानी की कोई गुंजाइश नहीं है. बस, मैं यही कहने आया था,’’ कह कर वे उठ खड़े हुए.

‘‘अगर मैं दाखिला न लूं तो?’’ काजल ने कहा.

‘‘तो कल मैं वारंट भी साथ ही ले कर आऊंगा. और… आप सोच लेना,’’ डीएसपी अंजन कुमार ने कहा.

डीएसपी अंजन कुमार की छाती को बेधते हुए काजल ने सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘थैंक यू सर.’’

डीएसपी अंजन कुमार दिल पर पड़े जख्म को सहलाते हुए अपने थाने लौट गए.

दूसरे दिन काजल का दाखिला हो गया और चल पड़ा नया सैशन. सभी प्रोफैसरों को गाइड किया गया था कि वे काजल पर खास नजर रखें.

काजल भी हर सब्जैक्ट को आसानी से समझ लेती थी. उस ने भी ठान लिया था कि सुंदर मास्टर मिश्राजी की बेटी के साथ मगन है तो वह क्यों उस के नाम की माला जपे? अगर वह दलित है तो ठीक है, कुदरत ने उसे किसी से कम भी नहीं बनाया है.

देखभाल के लिए सिक्योरिटी गार्ड मिलने से काजल को घर से कालेज आनेजाने में कोई डर नहीं था. उस की मां भी खुश थीं.

चूंकि काजल होस्टल में रहती थी, वह भूल गई अपने गांव को. उसे क्या पता था कि उस का पुराना घर तोड़ कर सरकार वहां नई इमारत बना रही है. पूरे गांव का कायाकल्प हो रहा है.

आगे पढ़ें-  क्या सुंदर गांव में जा कर काजल से मिल पाया? क्या मिश्राजी सुंदर को अपना दामाद बनाना चाहते थे? 

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Romantic Story In Hindi: प्रीत किए दुख होए- भाग 1

लेखक- बद्री शंकर

नंदीग्राम खगडि़या जिले का एक कसबा था, जो वहां से महज 10 किलोमीटर ही दूर था. कहलाता तो वह दलित बस्ती इलाका था, लेकिन वहां के सारे दलित ब्राह्मणों को ‘बाबू लोग’ पुकारते थे. इक्कादुक्का घर राजपूतों के भी थे.

आबादी में ज्यादा होने के बावजूद वहां के दलितों को ‘बाबू लोगों’ ने हड़प नीति का इस्तेमाल कर सब की जरजमीन छीन कर गांव छोड़ने पर मजबूर कर दिया था. वहां 2 घर बचे थे, जो भूमिहीन व गरीब थे. वे लोग किसी के सहारे पलते थे. इन्हीं 2 घरों में से एक घर में जैसे कीचड़ में कमल खिल गया था.

झुग्गीझोंपड़ी योजना के तहत वहां पुराना स्कूल था, जिस में ज्यादातर ‘बाबू लोगों’ के बच्चे ही पढ़ा करते थे. दलितों के लड़के रहे ही कहां, जो स्कूल में दिखते. बस, एकमात्र काजल थी, जो दलित तबके से आती थी.

हालांकि सभी लड़के काजल से अलग बैठते थे, लेकिन एक ब्राह्मण छात्र सुंदर था, जो उस के एकाकीपन का साथी बन गया था, इसलिए सुंदर से भी सब चिढ़ते थे. एक ब्राह्मण का लड़का दलित लड़की से नजदीकियां बनाए, यह किसी को गवारा न था.

काजल दलित जरूर थी, लेकिन खूबसूरती में बेजोड़ सुंदर. उस की इसी खूबसूरती का मुरीद था सुंदर.

स्कूल से विदाई का दिन आ गया. अब यहां से निकल कर छात्रों को मध्य विद्यालय में दाखिला लेना था. काजल अच्छे नंबरों से पास हुई थी. ‘‘काजल, आगे कहां पढ़ोगी? बाबा तो मुझे शहर भेजने पर तुले हैं… खगडि़या,’’ सुंदर ने कहा.

‘‘मैं…? मैं कैसे जा सकती हूं शहर? मेरी मां अकेली हैं. वैसे, गांव से बाहर एक किलोमीटर दूर है मध्य विद्यालय. मैं वहीं दाखिला लूंगी और रोज आनाजाना करूंगी.’’ ‘‘सोचा तो मैं ने भी यही था, लेकिन बाबा का सपना है मुझे हाकिम बनाने का.

‘‘चल न तू भी शहर? मैं मनाऊंगा चाची को…’’ सुंदर ने कहा, ‘‘मेरा वहां अकेले मन नहीं लगेगा.’’

‘‘तो मैं क्या करूं? हो सकता है कि मेरी पढ़ाई भी छूट जाए. मैं गरीब भी हूं और मां मुझे बेहद प्यार करती हैं. वे मुझे दूर नहीं जाने देंगी,’’ काजल ने भोलेपन से कहा.

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‘‘तो मेरी भी पढ़ाई छूट जाएगी…’’ सुंदर बोला, ‘‘मैं मर जाऊं तभी तेरा साथ छूटेगा.’’

‘‘मरे तेरे दुश्मन. मैं तो लड़की हूं… चूल्हाचक्की के लिए पढ़ाई करना जरूरी नहीं है. लेकिन तुम्हें तो पढ़ाई करनी ही पड़ेगी. हाकिम न बन सके तो शादी न होगी. बच्चे होंगे तो उन को भूखा मारोगे क्या? कमाई तो करनी ही पड़ेगी…’’ काजल ने कहा, ‘‘कहीं बाबागीरी न करनी पड़ जाए…’’

‘‘अरी मेरी दादी…’’ कहते हुए सुंदर ने उस के कान उमेठ दिए, ‘‘तू मुझे मेरी जन्मपत्री बता रही है क्या? आखिर मेरे बाबा की पूजापाठ, कथावाचन और शादीश्राद्ध की रोजरोज की आमदनी कहां जाएगी?’’

‘‘उई बाबा…’’ कह कर काजल वहां से भाग गई.

सुंदर वहां ठगा सा खड़ा रह गया. स्कूल के और भी बच्चे थे. एक तगड़ा लड़का भी था, जो सरपंच का बेटा था. वह सुंदर से जलता था.

‘‘वह उड़नपरी है, उड़नपरी. वह किसी की नहीं होती. उस पर भी वह दलित है. कानून जानता है क्या? अंदर हो जाओगे और बाबाजी की जन्मपत्री, लगनपत्री, मरणपत्री सब की सब छिन जाएगी,’’ उस लड़के ने सुंदर की हंसी उड़ाई.

‘‘चल भाग यहां से. अपना चेहरा देख. काजल तो क्या, कोई काली भैंस भी तुझे घास नहीं डालेगी,’’ सुंदर ने जवाब दिया.

‘‘अच्छा, तो तुझे अपने चेहरे पर घमंड है?’’

शुरू हो गई दोनों में उठापटक. तगड़े लड़के ने सचमुच सुंदर का चेहरा भद्दा कर दिया. काजल को मालूम हुआ, तो दौड़ कर देखने आई और हिम्मत देने के बजाय हंसी उड़ा दी, ‘‘वाह, नाम सुंदर, मुंह छछूंदर?’’ सुंदर ने गुस्से में दौड़ कर उसे पकड़ा और कहा, ‘‘काजल, तुम भी.. ठीक है, अब मैं शहर जाऊंगा और तुझे एकदम भूल जाऊंगा.

‘‘देखना, मैं हाकिम बन कर ही आऊंगा,’’ दुखी हो कर सुंदर अपने घर की ओर चल दिया. यह सुन कर काजल भी रो पड़ी, ‘‘ऐसा मत करना सुंदर. एक तेरा ही तो सहारा है मुझे.’’

लेकिन, सुंदर ने उस का कहा नहीं सुना और अपने घर चला गया. पंडित रमाकांत को जब सब मालूम हो गया, तो उन्होंने भी सुंदर को खूब पीटा, ‘‘एक तो दलित लड़की है, दूसरे तुम ब्राह्मण. क्या होगा बिरादरी में मेरा? कम से कम मुझ पर तो रहम कर. आखिर उम्र ही क्या है तेरी? ठहर, तेरे मामा को फोन करता हूं. वह तुझे ले जाएगा और मारमार कर हाकिम बनाएगा.’’

सुंदर को भी उस मामा के बारे में मालूम था कि वे काफी बेरहम हैं. उन की अब तक 2 बीवियां भाग चुकी हैं.

‘‘नहीं बाबा, नहीं. मुझे कहीं और भेज दो, पर मैं वहां नहीं जाऊंगा,’’ कह कर सुंदर रो पड़ा.

‘‘अरे, चुप हो जा. मैं समझ गया सबकुछ. अच्छा है… जब 2-4 थप्पड़ रोज पड़ेंगे न, तो भाग जाएगा काजल के इश्क का भूत,’’ उन्होंने सचमुच ही उसी रात फोन कर के अगले दिन उस के मामा को बुलवा लिया.

‘‘तुम बेफिक्र रहो. इसे मैं अच्छे स्कूल में पढ़ाऊंगा और खुद निगरानी करूंगा,’’ मामा ने सुंदर की मां से कहा.

‘‘देखना भैया, बच्चा कोमल है. मारना मत. और हां, पंडितजी की इसे हाकिम बनाने की इच्छा है,’’ मां ने हाथ जोड़ कर कहा.

‘‘बनेगाबनेगा हाकिम, कैसे नहीं बनेगा. सुनी नहीं है वह कहावत कि मारमार कर हाकिम बनाना,’’ इतना कह कर मामा खुद रिकशा लेने चले गए और तुरंत ही रिकशा ले कर आ भी गए.

सामान रिकशे में रखा और मामाभांजे दोनों चल पड़े खगडि़या स्टेशन. रास्ते में ही काजल का घर था. ‘काजल माफ करना. तेरा दिल दुखा कर मैं ने अच्छा नहीं किया. तुझे कभी नहीं भूलूंगा काजल,’ इतना सोचते ही सुंदर रो पड़ा.

‘‘चुप हो जा… नई दुलहन की तरह रो रहा है… पड़ेगा एक थप्पड़,’’ मामा ने लताड़ा.

सुंदर एकदम चुप. मामा ऐसे मूंछें ऐंठ रहे थे, जैसे सीताहरण के दौरान रावण ने सीता के रोने पर तेज हंसी के साथ मूंछें ऐंठी थीं. गाड़ी मिली, चली और उतर गए बेगुसराय. फिर वहां से 10 किलोमीटर सवारी गाड़ी से और 5 किलोमीटर आगे मैदान बौराही, जहां न तो कोई स्कूल था, न ही कालेज.

काजल को जैसे ही पता चला कि सुंदर वाकई शहर चला गया है तो वह भी रो पड़ी और दौड़ कर मां का आंचल खींच कर ठुनकने लगी, ‘‘सुंदर शहर चला गया मां. मैं भी शहर में पढ़ूंगी.’’

‘‘अरी बावली, वे बाबू लोग हैं और तुम ठहरी दलित. फिर शहर जाने के लिए पैसे कहां हैं बेटी?’’ मां ने काजल को बड़े ही प्यार से समझाया.

‘‘मां, अब सुंदर पढ़लिख कर कब आएगा? मैं ने उस की हंसी उड़ाई थी. शायद वह मुझ से रूठ कर चला गया है,’’ काजल की आंखों से टपकते आंसू उस के कोमल गालों पर लकीर बनाने लगे.

‘‘बेटी, अगर तुम उस से लगाव रखती हो तो तुझे आंसू नहीं बहाने चाहिए. हंस कर दुआ करनी चाहिए कि वह पढ़लिख कर हाकिम बन कर ही तुझ से मिले,’’ मां ने आंचल से उस के आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘क्या मालूम, कल वह हाकिम बन कर अंगरेजी में बातें करेगा. समझोगी तुम?

‘‘अच्छा है कि तुम इस गांव में ही मन लगा कर पढ़ो. हाकिम तो गांव में भी पढ़ कर हुए हैं लोग. हमारे पहले राष्ट्रपति राजेंद्र बाबू, प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और दूसरे कई शख्स हैं, जिन्होंने गांव में ही पढ़ाई की थी. कल चलना, हैडमास्टर सर से कह कर स्कूल में दाखिला करा दूंगी.’’

काजल समझ गई और चहकते हुएबोली, ‘‘हां मां, मैं उसे दिखा दूंगी कि बड़ा बनने के लिए शहर में ही नहीं, बल्कि गांव में भी पढ़ाई की जा सकती है. शहर या वहां के स्कूल नहीं पढ़ते, पढ़ते हैं छात्र, जो गांव में भी होते हैं.’’

‘‘मेरी अच्छी बेटी,’’ इतना कह कर मां ने उस का मुंह चूम लिया.

दूसरे दिन ही मां ने काजल का दाखिला गांव के ही मिडिल स्कूल में करा दिया. उसे यह सुन कर और भी खुशी हुई कि मुफ्त में ड्रैस, किताबें और कौपियां  मिलेंगी.

‘‘साइकिल भी दूंगा… अगर मन से पढ़ेगी तो… साइकिल चलाना आता है न तुझे?’’ हैडमास्टर सर ने पूछा.

‘‘साइकिल भी चलाना सीख लूंगी,’’ काजल ने पूछा.

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‘‘गुड गर्ल… कल से तुम स्कूल आना शुरू कर दो.’’

‘‘जी सर,’’ इतना कह कर काजल अपनी मां के साथ घर चली आई.

इधर सुंदर को मामा के घर गए महीनों बीत गए. सुंदर की मां ने फोन किया तो सुंदर के मामा बबलू ने कहा, ‘‘हांहां, खूब मन लगा कर पढ़ रहा है वह. बगैर हाकिम बनाए इसे छोड़ूंगा क्या? पटना से ले कर दिल्ली तक के नेताओं का झोला टांगा है, अटैची ढोई है. वह सब कब काम आएगा?’’

सुंदर चूल्हा फूंक रहा था. दौड़ादौड़ा वह वहां आया और बोला, ‘‘मामा, मां से मेरी भी बात करा दो. कई दिन पहले उन्हें मैं ने अपने सपने में देखा था.’’

‘‘जब देख ही लिया था तो बातें क्यों न कर लीं? चल भाग. ऐसा जोर का घूंसा दूंगा कि तेरी बत्तीसी बाहर निकल जाएगी,’’ मामा बबलू बिगड़ गए. सुंदर रो पड़ा और रोतेरोते ही फिर चूल्हा फूंकने लगा.

बाहर बंगले पर बबलू गए, तो सुंदर ने दौड़ कर फोन का चोगा उठा लिया. अब लगाए तो कौन नंबर? घर में तो फोन है नहीं. मां हाट आई होंगी और एसटीडी से बातें की होंगी. वह ठगा सा चोगा रख कर रो पड़ा, ‘मुझे कहां फंसा दिया बाबा? यहां जब कोई स्कूल ही नहीं है, तो पढ़ूंगा क्या खाक?

‘दिनरात मामा की तीमारदारी करनी पड़ती है. घर से लाई किताबें भी खोलने नहीं देते. यह मामा नहीं कंस है, कंस…

‘मैं ने काजल को भी धोखा दिया है. यह सब मुझे उसी की सजा मिल रही है. बाबा, अपने बच्चे की खुशी क्यों नहीं देखी गई आप से?’ सोच कर सुंदर और भी उदास हो गया.

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आज फिर तुम पे प्यार आया है : भाग 4- किस बेगुनाह देव को किस बात की मिली सजा

इधर बेटे के गम में कल्याणी की हार्टफेल हो जाने से मृत्यु हो गई और कुछ साल बाद जय भी इस दुनिया को छोड़ कर चले गए. पूरा घर तितरबितर हो गया. निखिल भी अपने परिवार के साथ कहीं और रहने चला गया.

देव की बदचलनी की बात सुन कर तनिका के मातापिता ने भी उस की शादी कहीं और कर दी. अपनी दयनीय स्थिति पर स्वयं देव को भी तरस आ रहा था. सोचता वह कि आखिर उस ने ऐसा किया ही क्यों रमा के साथ? अगर नहीं किया होता तो आज सबकुछ सही होता. कोसता रहता वह अपनेआप को. मन तो करता उस का कि खूब चीखेचिल्लाए और कहे कि उसे फांसी पर लटका दिया जाए क्योंकि अब उसे जीने का कोई हक नहीं है.

अपने दोस्त मनोज को याद कर के वह रो पड़ता और सोचता कि शायद वह भी मुझ से घृणा करने लगा है. नहीं तो क्या एक बार भी वह मुझ से मिलने नहीं आता? लेकिन उस रोज मनोज आया उस से मिलने और जो उस ने बताया उसे सुन कर देव के पैरों तले की जमीन खिसक गई.

बताने लगा वह कि देव गलत नहीं है बल्कि उसे फंसाया गया है और यह सब रमा का कियाधरा है.

‘‘पर तुम्हें यह सब कैसे पता?’’

देव के पूछने पर मनोज कहने लगा कि एक दिन जब किसी काम से वह उस के घर गया, तब रमा को प्रीति से कहते सुना, ‘‘देख लिया न दीदी, मु?झो न कहने का अंजाम. अरे, मैं उस देव से प्यार करती थी सच्चा प्यार और वह उस तनिका से शादी के सपने देखने लगा. तो बताओ मैं कैसे बरदाश्त कर पाती. पहले तो सुन कर मैं घर वापस चली गई और बहुत रोईकलपी, फिर लगा जो मेरा नहीं हो पाया उसे मैं किसी और का बनता कैसे देख सकती हूं भला. बस उसी दिन ठान लिया मैं ने कि मु?झो क्या करना है.’’

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‘‘क्या किया तुम ने?’’ आश्चर्य से प्रीति ने पूछा.

प्रीति के पूछने पर पहले तो वह हंसी, फिर कहने लगी, ‘‘उस संगीत वाली रात उस ने देव की कौफी में नशे की गोलियां मिला दी थीं और जब घर में सब सो गए तो वह किसी तरह देव को अपने कमरे तक ले आई और फिर खुद ही अपने सारे कपड़े उतार दिए और वह सब करवाया उस ने देव से जो चाहा. नशे में धुत्त देव को होश कहां था कि वह कहां है और क्या कर रहा है और फिर क्या हुआ वह तो आप सब को पता ही है दीदी,’’ अपने मुंह से अंगारे उगलते हुए रमा ठहाके लगा कर हंसने लगी.

प्रीति भाभी हतप्रभ उसे देखने लगी. उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि देव की बरबादी के पीछे रमा का हाथ है.

अपनी बहन के गाल पर तड़ातड़ थप्पड़ बरसाते हुए प्रीति भाभी कहने लगी, ‘‘क्यों, क्यों किया तुम ने ऐसा? सिर्फ बदला लेने के लिए? बरबाद कर दिया मेरे हंसतेखेलते परिवार को तुम ने सिर्फ अपनी जिद के कारण? अरे, देव तो तुम्हारी इज्जत करता था और तुमने… अगर निखिल को यह बात पता चल गई न तो वह मु?झो अपनी जिंदगी से बेदखल कर देगा रमा? बताओ क्यों ऐसा किया तुम ने?’’ बोल कर प्रीति भाभी वहीं नीचे बैठ गई और रोने लगी. फिर बोली, ‘‘गलती मेरी थी जो मैं ने तुम्हें अपने घर में रखा. अगर तुम पर दया कर मैं तुम्हें यहां न लाई होती तो आज हमारा परिवार हमारे साथ होता,’’ बोल कर भाभी फिर रोने लगी.

मगर उस कमीनी रमा को अपनी बहन पर भी दया न आई. बोली, ‘‘हां, तो क्यों बुलाया मु?झो और निखिल जीजाजी को बताएगा कौन, तुम? तो बता दो मु?झो किसी से कोई डरवर नहीं और ऐसा कर के तुम अपनी ही गृहस्थी खराब करोगी,’’ कह कर उस ने अपना मुंह फेर लिया.

यह देख कर प्रीति भाभी सकते में आ गई और फिर रमा को धक्के दे कर अपने घर से बाहर निकालते हुए कहा कि अब उस का उन से कोई वास्ता नहीं है.

सच सुन कर देव के पैरों तले की जमीन खिसक गई, ‘‘तो रमा ने यह सब जानबुझ कर किया? सिर्फ मुझ से बदला लेनेके लिए उस ने मेरा पूरा घरपरिवार बरबाद कर दिया? कह देती एक बार तो मैं तनिका से मिलना ही छोड़ देता, पर वह ऐसा जुल्म तो न करती हमारे साथ,’’ कह कर देव फूटफूट कर रोने लगा.

‘‘अरे भाई, उतरना नहीं है क्या? यह आखिरी स्टेशन है,’’ एक यात्री की आवाज से देव चौंक पड़ा और यादों के भंवर से बाहर आ गया. पूछने पर कि कौन सा स्टेशन है तो उस आदमी ने बताया कि यह अहमदाबाद स्टेशन है. गाड़ी से उतरते हुए सोचने लगा देव कि कितनी जल्दी रास्ता तय हो गया? काश, यह ट्रेन यों ही चलती रहती और वह पूरी उम्र इसी ट्रेन में गुजार देता. ट्रेन से उतरते ही अपने वादे अनुसार सब से पहले उस ने एसटीडी फोन से अपने दोस्त को यह बताने के लिए फोन घुमा दिया कि वह अहमदाबाद पहुंच गया है.

‘‘तू जहां भी है जल्दी वापस आ जा, जल्दी,’’ मनोज ने जब कहा तो देव डर गया. लगा उसे कि कहीं उस के भाभीभाई को तो कुछ नहीं हो गया? जोर दे कर पूछने पर मनोज ने इतना ही कहा कि वह उसी कौफी हाउस में पहुंच जाए जहां तनिका से मिला करता था. रास्ते भर वह इसी उलझन में रहा कि आखिर बात क्या हो सकती है… जो सफर कुछ देर पहले उसे छोटा लग रहा था, अब वही रास्ता उसे लंबा लगने लगा था.

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कौफी हाउस पहुंचते ही जब उस की नजर तनिका पर पड़ी, तो वह हतप्रभ रह गया, ‘‘तुम?’’ उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि जो वह देख रहा है वह सच है. बड़ी गौर से उस ने फिर तनिका को देखा. न तो उस के गले में मंगलसूत्र था और न ही मांग में सिंदूर.

‘‘क्या देख रहा है देव? यह तनिका है तुम्हारी तनिका,’’ मनोज ने उसे झक?झोरते हुए कहा.

‘‘पर तुम्हारी तो शादी…’’

‘‘हां देव, पर हुई नहीं. मैं आज भी तुम्हारी हूं देव,’’ कह कर वह अपने देव से लिपट गई.

दोनों के आंसू रुक नहीं रहे थे. बताने लगी तनिका कि उसे तो पहले से पता था कि लोग जो भी कहें, पर उस का देव सही था और है. रही बात शादी करने की तो मंडप तक गई वह, पर फिर यह बोल कर उठ गई कि उस की सगाई यानी आधी शादी तो हो चुकी है देव से, तो फिर कैसे वह किसी और की हो सकती है अब?

‘‘देव, आखिर आज मैं ने तुम्हें पा ही लिया. अब हमें एकदूसरे से कोई जुदा नहीं कर पाएगा देव,’’ कह कर छलकते नयनों से फिर वह अपने देव के सीने से लग गईर् और देव ने भी कस कर उसे अपने आगोश में ले लिया.

आज फिर उन के दिल में असीम खुशी और उमंगें हिलोरें मारने लगी थीं. फिर दोनों एकदूसरे के साथ भविष्य के असंख्य सुनहरे सपने देखने लगे. आज फिर उन्हें एकदूसरे पे प्यार आया.

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आज फिर तुम पे प्यार आया है : भाग 1- किस बेगुनाह देव को किस बात की मिली सजा

आजदेव उस सजा से आजाद हो गया जो अपराध उस ने किया ही नहीं, बल्कि उस से करवाया गया था. इन 7 सालों में उस से उस का हंसताखेलता परिवार तो छिन ही गया, उस का प्यार भी हमेशा के लिए उस से दूर चला गया. जब वह जेल से बाहर निकला तो उस का एक मित्र मनोज उस के लिए खड़ा था. कितना कहा उस ने कि वह अपने घर न सही उस के घर चले, पर देव ने यह बोल कर जाने से इनकार कर दिया कि अब उस का अपना बचा ही कौन है इस शहर में जो वह यहां रहे पर यह भी बोला उस ने कि वह जहां भी जाएगा, उसे जरूर बताएगा.

कुछ पैसे उसे जेल काटने के दौरान काम करने पर मिले, कुछ मनोज ने दिए. टिकट ले कर जो पहली ट्रेन मिली उस पर चढ़ गया. कहां जाना है, क्या करना है उसे कुछ पता नहीं चल रहा था. बस निकल पड़ा एक अनजान रास्ते की ओर. आसपास लोगों की भीड़ और शोरशराबे में भी वह अपने ही विचारों में मग्न था. जैसेजैसे ट्रेन की गति बढ़ने लगी वैसेवैसे देव अपनी पिछली जिंदगी के पन्ने पलटने लगा…

अपनी मां का लाड़ला बेटा देव था. वैसे देव का एक बड़ा भाई भी था निखिल, जो काफी शांत स्वभाव का था और वह वही करता जो उस के मांपापा कहते उस से. पढ़ाई में जरा कमजोर निखिल ने जहां बीए करते ही रेलवे में नौकरी पा ली, वहीं देव इंजीयरिंग पढ़ने के लिए बैंगलुरु चला गया. लेकिन देव के पापा की बड़ी इच्छा थी कि बड़ा बेटा न सही, कम से कम छोटा बेटा तो डाक्टर बन जाता, पर देव की तो डाक्टर की पढ़ाई मोटीमोटी किताबें देख कर ही तबीयत खराब होने लगती थी और जब उस के एक दोस्त के भाई ने, जोकि मैडिकल की पढ़ाई कर रहा था, बताया कि मोटीमोटी किताबें पढ़ने के साथसाथ उसे मेढक और मरे हुए इंसान के शरीर की भी चीरफाड़ करनी पड़ेगी, तो सुन कर ही उसे चक्कर सा आने लगा और उसी वक्त उस ने प्रण कर लिया कि चाहे जो हो जाए वह डाक्टर तो कभी नहीं बनेगा. आखिर देव के मातापिता को उस की जिद के आगे झकना पड़ा और उसे इंजीनियरिंग पढ़ने के लिए बैंगलुरु भेज दिया.

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एक रोज जब कल्याणी ने देव को मोबाइल पर फोन किया तो उस का जवाब सुन  कर बोली, ‘‘अरे, ऐसे कैसे छुट्टी नहीं मिलेगी और क्या अब तुम अपने बड़े भाई की शादी पर भी नहीं आओगे?’’

कल्याणी से देव ने यह बोल कर शादी में आने से मना कर दिया था कि अगले महीने ही उस की फाइनल परीक्षा होनी है तो शायद वह न आ पाए.

‘‘मत रुकना ज्यादा दिन, बस आना और शादी खत्म होते ही चले जाना.’’

‘‘ठीक है मां, देखता हूं अगर छुट्टी मिल गई तो आने की कोशिश करूंगा,’’ देव की आवाज आई.

‘‘देखनावेदना कुछ नहीं, आना ही है तुम्हें,’’ बोल कर जैसे ही कल्याणी पलटी, तो अवाक रह गई क्योंकि सामने ही देव खड़ा था.

‘‘तो तो तुम मुझ से…’’ कल्याणी की बात अभी पूरी भी नहीं हो पाई थी कि सब ठहाके लगा कर हंसने लगे.

‘‘अच्छा तो आप सब जानते थे कि  देव आज आने वाला है और जानबूझ कर मु?झो उल्लू बनाया जा रहा था, है न?’’ मुंह फुलाते हुए जब कल्याणी बोली तो सभी और जोरजोर से हंसने लगे. फिर कल्याणी भी कहां रुकने वाली था उस की भी हंसी फूट पड़ी और पूरे घर का वातावरण हंसीठहाकों से गूंज उठा.

ऐसा ही था जय और कल्याणी का हंसताखेलता छोटा सा परिवार और वे चाहते थे कि बस बहू भी उसी तरह की मिल जाए तो उस का घर स्वर्ग बन जाए और सच में, ससुराल में पांव रखते ही प्रीति ने सब का मन जीत लिया. देव को तो वह छोटे बबुआ कह कर ही बुलाती थी और अपने सासससुर की भी वह बड़े मन से सेवा करती थी. घर में किसी को भी प्रीति से कोई शिकायत नहीं थी.

मगर इधर प्रीति के ससुराल चले जाने से अब उस के पिता को अपनी छोटी बेटी रमा की चिंता सताने लगी. उन्हें लगता वे दिनभर औफिस में रहते हैं और घर में जवान बेटी है, तो कहीं उस के साथ कोई अनहोनी न हो जाए? अब मां होती तो बेटी की देखरेख करती, लेकिन वह तो इस दुनिया में नहीं थी. वैसे भी शुरू से ही दोनों बहनों में काफी जुड़ाव था. साथ रहते हुए कभी उसे किसी सहेली की जरूरत नहीं पड़ी. लेकिन जब से प्रीति अपनी ससुराल चली गई, रमा बहुत उदास रहने लगी थी. आती थी अपनी बहन के घर कभीकभार पर फिर उसे अपने घर जाने का मन ही नहीं करता और यह बात कल्याणी अच्छी तरह समझती थी.

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‘‘प्रीति बहू, क्यों न रमा का दाखिला यहां के ही कालेज में करवा दे? वैसे भी अकेली लड़की है और जमाना भी तो ठीक नहीं है,’’ जब कल्याणी ने कहा तो जैसे प्रीति की मुराद पूरी हो गई. आखिर वही तो वह चाहती थी पर कहने की उस में हिम्मत नहीं थी. निखिल से कहा था 1-2 बार पर उस ने, ‘ये सब तो मां जाने’ बोल कर चुप्पी साध ली थी तो फिर प्रीति भी चुप हो गई थी पर आज जब कल्याणी ने वही बात कही तो प्रीति की खुशी का ठिकाना नहीं रहा.

‘‘जी मां जी, मैं आज ही पापा से इस बारे में बात करती हूं.’’

इंजीनिरिंग के बाद एमबीए कर दिल्ली की ही एक बड़ी कंपनी में देव की नौकरी लग गई. घर में उस की नौकरी को ले कर खूब जश्न मनाया गया. स्मार्ट प्रभावशाली व्यक्तित्व के साथ एमबीए इंजीनियर और वह भी ऊंचे पद पर आसीन देव को देखते ही रमा उस पर फिदा हो गई. उसे लगने लगा देव ही उस के सपनों का राजकुमार है. उस का साथ रमा को बहुत प्रिय लगता. मजाक का रिश्ता था इसलिए देव भी कभीकभार उस से हंसीमजाक कर लेता था, पर उसे लेकर उस के मन में कोई भाव नहीं था. लेकिन रमा उसे अपना प्यार समझने लगी थी. देव को रिझने के लिए हमेशा उस के इर्दगिर्द मंडराती रहती. जानबूझ कर अपना दुपट्टा नीचे गिरा देती और जब वह उस दुपट्टे को लेने के लिए नीचे झकती तो उस के दोनों स्तन दिखने लगते. वह देव को चोर निगाहों से देखती कि वह उसे देख रहा है या नहीं.

मगर देव तो अपने में ही खोया रहता. वह चाहती कि देव भी उस के साथ छेड़छाड़ करे, उसे छूए. लेकिन देव की तरफ से कोई पहल न होते देख रमा उस के और करीब आने लगी. वह अब उस के खानेपीने का खयाल रखने लगी और उसी दौरान उसे यहांवहां छूने भी लगती. कभी वह उस के बालों में अपनी उंगलियां फिराने लगती तो कभी उस का कोई सामान जो उस के हाथ में होता, ले कर भाग जाती और जब देव उस के पीछे भागता, तो जानबूझ कर वह छत पर चली जाती.

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आज फिर तुम पे प्यार आया है : भाग 2- किस बेगुनाह देव को किस बात की मिली सजा

फिर देव को सामने देख कहती, ‘‘छूओ, देखो मेरा कलेजा कैसे धकधक कर रहा है,’’ कह कर वह उस का हाथ अपने सीने पर रख देती.

उस के ऐसे आचारण से घबरा कर देव वहां से भाग खड़ा होता. कभी जब देव अपने ही खयालों में खोया होता तो अचानक पीछे से वह उस के गले में बांहें डाल कर झल जाती और वह घबरा कर उठ बैठता. कहता कि कोई देख लेगा तो क्या सोचेगा? तो रमा कहती कि वही जो सोचना चाहिए और फिर खिलखिला कर हंस पड़ती. देव उसे देख कर सोचने लगता कि कैसी पकाऊ लड़की है यह देव ने कभी उसे उस नजर से नहीं देखा, पर वह थी कि उस के पीछे ही पड़ी थी.

कभीकभी तो वह देव के कमरे में ही आ कर जम जाती और फिर देर रात तक बैठी रहती. हार कर देव को कहना पड़ता कि भई जाओ अपने कमरे में अब तो वह यह बोल कर देव से चिपक जाती कि क्या हरज है अगर आज रात वह उसी के कमरे में सो जाए तो?

‘‘और अगर कोई शरारत हो गई मुझ से तो?’’ खीजते हुए देव कहता.

‘‘तो डरता कौन है आप की शरारतों से? कर के देखो तो एक बार,’’ अपनी एक आंख दबा कर रमा कहती तो देव ही शरमा जाता.

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समझ में आने लगा था देव को कि रमा अपनी बहन जैसी बिलकुल नहीं है और वह उस के एक इशारे पर अपना सबकुछ समर्पित कर सकती और शायद बाद में वह उस का फायदा भी उठाना चाहे, इसलिए अब वह उस से दूरी बना कर चलने लगा. औफिस से आते ही वह या तो अपने किसी दोस्त के घर जा कर बैठ जाता या फिर अपने कमरे में ही बंद हो जाता यह बोल कर कि आज वह बहुत थका हुआ है तो आराम करना चाहता है. लेकिन इतनी ढीठ थी रमा कि दरवाजा खटखटा कर उस के कमरे में घुस आती और ऊलजलूल बातें करने लगती. अब तो चिढ़ होने लगी थी देव को उस के छिछले आचरण से पर कहे तो किस से भला?

जब कभी किसी काम से देव मार्केट जाता, तो रमा भी उस के पीछे पड़ जाती. यह बोल कर वह उस की बाइक पर बैठ जाती कि उसे भी बाजार से कुछ जरूरी सामान खरीदना है. जब देव कोई बहाना बनाने लगता तो कल्याणी यह बोल कर कि ले जा इसे भी साथ उसे चुप करा देती, लेकिन उसे शर्र्म आती जब वह बाइक पर उस से चिपक कर बैठती और जब देव ब्रेक लगाता तो जानबूझ कर वह उस पर लद जाती.

एक रोज देव के दोस्त मनोज ने दोनों को एकसाथ बाइक पर बैठे देख कर बोल भी दिया, ‘‘क्या बात है बड़ी मस्ती चल रही आजकल तेरी तो? दीदी का देवर दीवाना हो गया क्या?’’

उस की बात पर जहां देव सकुचा कर रह गया वहीं रमा उस से और चिपट गई. जब भी रमा उस के साथ होती, जानबूझ कर देव अपने दोस्तों से कटता फिरता ताकि बात का बतंगड़ न बन जाए. लेकिन रमा तो मन ही मन उस की पत्नी बनने का खयाली पुलाव पका रही थी.

गोरीचिट्टी, हाथ लगाए तो मैली हो जाए, साथ ही इंजीनियर, एमबीए की डिगरी के साथ तनिका जब पूर्व की कंपनी में आई तो सब उसे देखते रह गए. औफिस का हर बंदा उस से दोस्ती करना चाहता था, पर वह थी कि बस ‘हाय’ का जवाब दे कर मुसकरा भर देती. उस का और देव का कैबिन आमनेसामने थी, जिस कारण अकसर दोनों की आंखें चार होतीं, तो अनायास ही उस की खामोश निगाहें बहुत कुछ ब्यां कर जातीं. तनिका को देख कर देव को लगता वह उस से पहले भी मिल चुका है, शायद सपनों में मन में ही बोल कर वह मुसकरा देता और जब उस की नजर तनिका से टकराती तो वह ?झोंप जाता जैसे उस के मन की बात उस ने सुन ली हो. तनिका को ले कर उस के मन में हलचल पैदा हो चुकी थी और कब तनिका भी उस की ओर आकर्षित होने लगी थी यह तो उसे भी खबर नहीं थी.

एक रोज शाम से ही काले बादल उमड़घुमड़ रहे थे. लग रहा था जोर की बारिश होगी. कुछ ही देर में मूसलाधार बारिश शुरू हो गई. देव अपनी गाड़ी से आया था. पर वह औटो का इंतजार कर रही थी.

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‘‘कोई बात नहीं, आप मेरे साथ मेरी गाड़ी में चलिए मैं आप को आप के घर तक छोड़ दूंगा,’’ देव ने कहा तो तनिका थोड़ी सकुचाई, पर फिर वह गाड़ी में बैठ गई.

बातोंबातों में पता चला कि तनिका इलाहाबाद से है और वह यहां 2 कमरों का घर ले कर कुछ लड़कियों के साथ रह रही है.

‘‘अरे वाह, फिर तो आप मेरी पड़ोसिन हो गईं,’’ वह बोला. देव ने जब कहा कि उस का घर बिहार में है पर वह वहां कभीकभार ही जा पाता है तो तनिका भी बताने लगी कि बिहार उस की नानी का घर है और वह  भी कई बार वहां जा चुकी है.

‘‘बस मेरा घर आ गया. यहीं उतार दीजिए.’’

‘‘काफी दूर है आप का घर. औफिस के लिए तो घर से जल्दी निकलना पड़ता होगा आप को? वैसे हमारे घर के पास भी कई घर ऐसे हैं जहां नौकरी करने और पढ़ने वाली लड़कियां रहती हैं. अगर आप कहें तो..’’

‘‘नहींहीं,’’ बीच में ही वह बोल पड़ी, ‘‘जरूरत होगी तो बता दूंगी,’’ और फिर घर तक पहुंचाने के लिए देव को धन्यवाद दे कर वह चली गई.

कुछ समय बाद तनिका देव के घर के करीब ही रहने आ गई और फिर औफिस दोनों साथ आनेजाने लगे थे. धीरेधीरे उन की जानपहचान गहरी दोस्ती में तबदील हो गई. दोनों एकदूसरे के सान्निध्य में बहुत सहज महसूस करते और पसंद भी दोनों की बहुत मिलतीजुलती थी.

‘‘वाकई, दिल्ली बहुत ही अच्छा शहर है,’’ एक रोज यूं ही देव के साथ दिल्ली की सड़कें नापते हुए तनिका बोली.

‘‘अरे वाह, क्या बात है पर लोग तो इसे बेदिल दिल्ली कहते हैं,’’ बोल कर देव हंस पड़ा तो तनिका को भी हंसी आ गई.

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अकसर देव तनिका के खयालों में खोया रहता और जब कल्याणी उस का कारण पूछती तो बहुत काम का बहाना बना कर बात को टाल जाता. सोचता कि क्यों न एक बार तनिका को कौल कर लूं? पर फिर सोचता कि क्या सोचेगी वह उस के बारे में?

जब एक दिन तनिका ने ही फोन कर के उस से कहा कि उसे नींद नहीं आ रही है. क्या वे कहीं बाहर चल सकते हैं? अब अंधे को क्या चाहिए, दो आंखें ही न? धीरेधीरे उन की निकटता बढ़ने लगी और वे एकदूसरे की जरूरत महसूस करने लगे. तनिका के मन में भी देव के लिए प्यार पनत चुका था क्योंकि एक दिन की भी जुदाई उसे बेचैन कर देती और जब तनिका कभी छुट्टियों में अपने घर जाती तो देव भी पागलों की तरह यहांवहां भटकता फिरता.

आगे पढें- मगर रमा को तो पूर्ण विश्वास था कि…

आज फिर तुम पे प्यार आया है : भाग 3- किस बेगुनाह देव को किस बात की मिली सजा

इधर रमा की कालेज की पढ़ाई अब पूरी होने वाली थी और यह सोचसोच कर प्रीति परेशान हुए जा रही थी कि वह वहां अकेली कैसे रहेंगी? ‘अगर देव का ब्याह मेरी रमा से हो जाए तो कितना अच्छा होगा न? दोनों बहनें साथसाथ रहेगी और फिर छोटे बबुआ भी तो मेरी रमा को पसंद करते हैं?’ अपने मन में ही सोच प्रीति खिल उठती पर उस की हिम्मत नहीं होती यह बात किसी से कहने की, निखिल से भी नहीं, पर कोशिश में जरूर थी वह कि ऐसा हो जाए.

‘अगर रमा से देव की शादी हो जाए, तो कितना अच्छा रहेगा न? अच्छीभली और जानीपहचानी लड़की है और सब से बड़ी बात कि दोनों बहनें प्यार से घर को संभाले रखेंगी. घरसंपत्ति का कोई बंटबारा भी नहीं होगा. लेकिन क्या देव की मरजी जाने बिना उस का रिश्ता किसी भी लड़की से तय करना उचित होगा?’ कल्याणी अपनेआप से ही सवालजवाब करती और फिर चुप हो जाती.

मगर प्रीति जब भी देव की शादी का जिक्र छेड़ती तो कल्याणी कहती, ‘‘जब और जिस से मन मिलेगा हो ही जाएगी एक दिन.’’

मगर रमा को तो पूर्ण विश्वास था कि उस की शादी देव से ही होगी क्योंकि वह उसे पसंद करता है, पर देव के दिल के दरवाजे पर तो तनिका दस्तक दे चुकी थी और रमा इस बात से कोरी अनजान थी.

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जहां रमा के लिए देव एक तृष्णा था वहीं देव के लिए तनिका एक तृप्ति थी. तनिका को ले कर जो भाव देव के मन में जागा था, रमा को ले कर कभी जागा ही नहीं. दोनों का प्यार उस सागर की भांति था जो पूर्णिमा के चांद को देखते ही उद्वेलित हो जाता है.

‘‘शादी के बारे में क्या सोचा है देव? अब उम्र भी तो हो गई है तुम्हारी और फिर हमें भी तो अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना है,’’ जब एक रोज कल्याणी ने यह बात कही तो झट से बिना वक्त गंवाए देव ने अपने और तनिका के रिश्ते के बारे में उन्हें बता दिया और कहा कि दोनों एकदूसरे को पसंद करते हैं और शादी भी करना चाहते है.

बिना कोई सवालजवाब किए कल्याणी और जय ने तनिका और उस के परिवार से मिलने की इच्छा जताई. लेकिन प्रीति का चेहरा देव और तनिका की शादी को सुनते ही मलिन हो गया और रमा तो ऐसे भागी वहां से जैसे गधे के सिर से सिंग. वैसे उस का चले जाना देव को बहुत अच्छा लगा. लगा उसे जैसे बला टली.

तनिका के मांपापा से मिलने के बाद, दोनों परिवारों की सहमति से देव और तनिका का रिश्ता तय हो गया. सगाई के कुछ दिन बाद ही शादी का दिन भी तब हो गया. अपने आने वाले सुनहरे भविष्य को ले कर दोनों रंगबिरंगे सपनें सजाने लगे. लगने लगा उन्हें जैसे वे नीले आसमान में विचरण करने लगे हों. उन्होंने तो यह भी तय कर लिया कि शादी के बाद हनीमून पर कहां जाएंगे. जैसेजैसे उन की शादी के दिन नजदीक आते जा रहे थे देव की धड़कन बढ़ती जा रही थी. पता नहीं क्यों, पर उसे लगता कि सब कुछ ठीक से तो हो जाएगा न? ‘‘यह अच्छा है हमारे देव के जो उसे उस की पसंद की लड़की मिल गई. हर मायने में मु?झो तनिका देव से मेल खाती लगी,’’ कल्याणी ने कहा तो जब कहने लगे कि उन्हें तो बच्चों की खुशी में ही अपनी खुशी झलकती है. बाहर खड़ी प्रीति दोनों की बातें सुन कर सोचने लगी कि ‘वह भी कितनी पागल है. अरे, शादी ब्याह भी क्या जोरजबरदस्ती की बात है? यह तो मन का मिलन है और रिश्ते तो ऐसा ही बनते हैं.’

‘‘क्या सोच रहे है छोटे बबुआ? अपनी तनिका के बारे में?’’ बड़े प्यार से देव के सिर पर अपने हाथ फेरते हुए प्रीति ने पूछा तो विचारा में मग्न, देव सकपका गया.

बोला, ‘‘न नहीं भाभी, ऐसी कोई बात नहीं है. वैसे सारे मेहमान तो आ गए न?’’ देव के पूछने पर प्रीति ने ‘हां’ में जवाब दिया और फिर बड़े प्यार से उस के सिर को सहलाने लगी, एक मां की तरह. प्रीति का व्यवहार सामान्य देख कर देव को भी अच्छा लगा. लेकिन रमा का जा कर फिर वापस आ जाना और यह कहना कि वह शादी में अपने नाचगाने से धूम मचा देगी. वह बात उसे कुछ हजम नहीं हुई पर फिर शादी की शौपिंग और घर में मेहमानों की भीड़ के बीच यह सब बातें आईगई हो गयी. रमा फिर पहले की तरह देव से हंसनेबतियाने लगी और घर  के कामों में भी अपनी बहन की मदद करने लगी. शादी में पहनने के लिए उस ने भी अपने लिए लहंगा और जेवर लिए. डांसगाने की प्रेक्टिस भी खूब हो रही थी सब की. कौन कब क्या पहनेगा और किस गाने पर कौन डांस करेगा घर में बस इसी की बातें चल रही थी पर देव तो यह सोचसोच कर ही उत्साहित हो उठता कि अब इस चार दिन बाद तनिका उस की हो जाएगी और वह तनिका का.

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संगीत वाली रात सारी औरतों के साथ प्रीति और रमा भी खूब थिरक रही थीं और साथ में देव भी. चायकौफी और कोल्डड्रिंक्स का दौर चलता रहा और साथ में नाचगाना भी. लेकिन देव को खुमारी सी आने लगी तो वह अपने कमरें में सोने चला गया और बाकी के लोग भी धीरेधीरे कर के सो गए. लेकिन सुबह जब देव की नींद खुली और उस ने घर में हंगामा होते सुना तो चौंक कर उठ बैठा. देखा तो रमा एक कोने में दुबकी सिसक रही थी और प्रीति भी रो रही थी. कल्याणी भी अपने सिर थामे एक तरफ खड़ी थी और घर में आए सारे मेहमान एकदूसरे से फुसफुसा कर बातें कर रहे थे और देव को अजीब नजरों से देखे जा रहे थे. कुछ समझ नहीं आ रहा था देव को कि यह सब हो क्या रहा है और उस का सिर क्यों इतना भारीभारी सा लग रहा है?

मगर जब तक वह कुछ समझ पाता, पुलिस उसे रमा के बलात्कार के केस में हथकड़ी लगा कर ले जा चुकी थी. कहता रहा वह कि उस ने रमा का रेप नहीं किया है और सब को कोई गलतफहमी हुई है. लेकिन जब इंस्पैक्टर ने कहा कि रिपोर्ट के अनुसार बलात्कार हुआ है और देव ने ही किया है तो उस का माथा घूम गया कि वह ऐसा कैसे कर सकता है? कहीं ऐसा तो नहीं कि नींद में मैं ने रमा को तनिका समझ कर? नहींनहीं, मैं ऐसा कर ही नहीं सकता हूं. तो फिर वह सब…सवालों के कठघरे में खड़ा देव, खुद से ही सवाल करता और खुद ही जवाब भी देता पर उस का दिल यह मानने को बिलकुल तैयार नहीं था कि उस ने जानबूझ कर रमा के साथ ऐसा किया होगा?

खैर, जो भी हो पर सारे सुबूत और गवाह देव के खिलाफ थे. कोर्ट केस चला और देव को रमा के बलात्कार के इलजाम में 7 साल की सजा हो गई.

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