अभी नकुल खाना खा कर सोने ही जा रहा था कि फिर किरण का फोन आ गया.
पूछने लगी कि उस ने खाना खाया या नहीं और खाया तो क्या खाया? बहुत ज्यादा कैलोरी वाला खाना तो नहीं खाया न? दवा तो याद से ले रहा है न?
‘‘हां, ले रहा हूं और खाना भी एकदम सादा ही खाया है, तुम चिंता मत करो,’’ मन झंझला उठा नकुल का, ‘अरे, मैं कोई छोटा बच्चा हूं जो हर वक्त मुझे समझती रहती है? खाना खाया कि नहीं, दवा ली या नहीं? इंसान को भूख लगेगी तो खाएगा ही, जरूरत है तो दवा भी लेगा. इस में पूछने वाली कौन सी बात है. सच कहता हूं, एकदो दिन दवा न खाने से शायद मैं बच भी जाऊं, परंतु किरण की कड़कती बातों से एक दिन जरूर मुझे हार्ट अटैक आ जाएगा,’ मन में सोच नकुल ने तकिया उठा कर पलंग पर दे मारा.
लोगों के सामने वह जाहिर करती कि पैसे कमाने के अलावा नकुल को कुछ नहीं आता है. इसलिए घरबाहर सबकुछ उसे ही संभालना पड़ता है. हंसतेहंसते उस के दोस्तरिश्तेदारों के सामने उसे अपमानित कर देती और बेचारा नकुल दांत निपोर कर रह जाता. लेकिन अंदर से उस का दिल कितना रोता था वही जानता था. तंग आ चुका था वह अपने दोस्त और सहकर्मियों के चिढ़ाने से. जब वे कहते, ‘भई बीबी हो तो नकुल के जैसी. कितनी पढ़ीलिखी है, नकुल की तो जिंदगी ही बदल कर रख दी है भाभीजी ने वरना यह तो रमता जोगी, बहता पानी था.
लेकिन उन्हें कौन समझए कि वह पहले ही ठीक था. आजाद जिंदगी थी. जो मन आए करता था. जहां मन आए जाताआता था, कोई रोकटोक नहीं थी उस की जिंदगी में. लेकिन आज उस की जिंदगी झंड बन चुकी है. लगता है वह अपने घर में नहीं, बल्कि एक पिंजरे में कैद है, जिस की किरण पहरेदारी कर रही है.
नकुल के तो अपने कमाए पैसे पर भी अधिकार नहीं था, क्योंकि उस के कमाए पैसे का सारा हिसाबकिताब किरण ही रखती थी. रोज के खर्चे के लिए वह उसे पैसे तो देती थी पर 1-1 पैसे का हिसाब भी लेती थी कि उस ने कहां कितने पैसे खर्च किए. नकुल के लिए चाहे कपड़े हों, चप्पलें हों या अन्य कोई सामान किरण ही पसंद करती थी, क्योंकि उस के हिसाब से नकुल की पसंद ‘आउट औफ डेटेड’ हो चुकी थी. जब भी कोई नकुल के कपड़े, घड़ी या जूतों की तारीफ करता तो कैसे तन कर किरण कहती कि यह तो उस की पसंद है. नकुल को ये सब कहां आता है. मतलब लोगों के सामने उस ने तो नकुल को एकदम गंवार ही साबित कर दिया था.
नकुल के फोन चलाने पर भी उसे एतराज होता है. कहती है कि उस के कारण ही पीहू बिगड़ रही है. बेचारे नकुल की हिम्मत ही नहीं पड़ती है फिर किरण के सामने फोन छूने की भी, जबकि वह खुद घंटों मोबाइल पर हंसहंस कर अपने रिश्तेदार और सहेलियों से बातें करती रहती है. जब मन होता शौपिंग पर निकल पड़ती है. किट्टी पार्टी करती है. सहेलियों के सामने अपनी धाक जमाने के लिए हर महीने नई साड़ी और ज्वैलरी खरीदती है. अपने रूपरंग को निखारने के लिए ब्यूटीपार्लर जाती है.
नकुल के मेहनत से कमाए पैसों को पानी की तरह बहाती है. तब तो नकुल कुछ नहीं बोलता है, क्योंकि यह उस का जन्मसिद्ध अधिकार है और अगर पति कुछ बोल दे, तो पत्नी उस पर घरेलू हिंसा का आरोप लगा कर थाने तक घसीट ले जाती है. फिर पति और बच्चों के साथ इतनी रोकाटोका क्यों? सोच कर ही नकुल तिलमिला उठता था. लेकिन उस की हिम्मत नहीं होती थी किरण से कुछ पूछने की. इस घर में सिर्फ नकुल और पीहू के लिए ही अनुशासन संचालित था, किरण के लिए नहीं. वह तो आजाद थी अपने हिसाब से अपनी जिंदगी जीने के लिए.
बचपन से ही नकुल ने देखा है, कैसे उस की मां उस के पापा से डरडर कर
जीती थी. हमेशा इस बात का डर लगा रहता था उसे कि जाने किस बात पर नकुल के पापा उस पर भड़क उठेंगे. कभी उस के बनाए खाने को ले कर तो कभी उस के पहनावे और बोलने के ढंग को ले कर नकुल के पापा अपनी पत्नी का अपमान करते रहते थे और वह बेचारी, सिर झकाए सब सुनती यह सोच कर कि शायद वे सही बोल रहे हैं. उसे विश्वास दिला दिया गया था कि वह एक अनपढ़गंवार औरत है, कुछ नहीं आता उसे. अपने पापा के कड़े व्यवहार के कारण ही नकुल 10वीं कक्षा के बाद बाहर पढ़ने निकल गया था.
लेकिन उसे नहीं पता था कि एक दिन उस की जिंदगी भी उस की मां जैसी बन जाएगी. तभी वह कहता अपनी मां से कि वह चुप क्यों रहती है, बोलती क्यों नहीं कुछ? विरोध क्यों नहीं करती उन की बातों का? लेकिन आज उसे समझ में आ रहा है कि घर की शांति भंग न हो, इसलिए एक इंसान चुप लगा जाता है. लेकिन कैसे दूसरा इंसान उस की इस चुप्पी का फायदा उठा जाता है वह भी अच्छे से देख रहा था. नकुल की चुप्पी का ही नतीजा है कि आज उस का परिवार उस से दूर हो गया.
पिछले साल रक्षाबंधन पर कैसे किरण ने नकुल की बहन सिम्मी को यह बोल कर अपने घर आने से रोक दिया था कि नकुल ही वहां चला जाएगा, उसे परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है.
जाते वक्त नकुल को 500 रुपए पकड़ाते हुए कहा था कि बहुत हैं, इन से ज्यादा क्या दोगे. एक ही बहन है उस की और भाई इतने बड़ी कंपनी में काम करता है तो क्या यही दे सकता है वह अपनी एकलौती बहन को? बहुत दुख हुआ था उसे. लेकिन नकुल की मां सब समझती थी तभी तो अपनी तरफ से सिम्मी को उपहार दे कर बात संभाल ली. मगर कब तक? एक न एक दिन तो सब को पता चल ही जाता है न.
किरण के ऐसे डौमिनेटिंग व्यवहार के कारण ही नकुल के परिवार के लोगों ने उस के घर आना बंद कर दिया. नकुल को उस के घर में सब जोरू का गुलाम बुलाते हैं. उन्हें लगता है नकुल अपनी पत्नी से डरता है, जबकि वह उस की इज्जत करता है. मगर क्या किरण यह बात समझेगी कभी? उसे तो सिर्फ लोगों को बेइज्जत करना आता है.
नकुल को जब भी मन होता है अपने परिवार से मिलने वहां खुद चला जाता है, क्योंकि किरण को अपने घर में वे लोग पसंद नहीं. अपने ही घर में नकुल इतना पराया हो गया है कि उसे यह भी फैसला लेने का हक नहीं है कि उस के घर में कौन आ सकता है कौन नहीं, जबकि उस के मायके वाले जब मन हुआ तब आ धमकते हैं. किरण कैसे उन के स्वागत में पानी की तरह पैसे बहाती है. क्या ये सब देख कर नकुल को गुस्सा नहीं आता है? वह खून का घूंट पी कर रह जाता है.
हमेशा जताती है कि अगर वह नकुल की जिंदगी में न आई होती, तो आज वह इस मुकाम पर न होता. इस में भी सारा श्रेय खुद ले कर वह नकुल को जीरो साबित कर देती है. अपने दोस्तों और परिवार वालों के सामने नकुल का आत्मसम्मान, उस का आत्मविश्वास सब टूटने लगा था. जिस तरह से किरण उसे झिड़कती, उसे सच में लगता कि वह कुछ काम का नहीं है.
‘‘हाय, स्ट्रौंग मैन, आप अभी तक यहीं हो?’’ पीछे से किसी का स्पर्श पा कर जब नकुल मुड़ा तो वही बच्चा अपनी मां का हाथ थामे खड़ा मुसकरा रहा था.
‘मैं और स्ट्रौंग’ नकुल ने मन ही मन कहा कि वैसे गलती मेरी भी है. मैं ने खुद को इतना कमजोर बना लिया कि किरण मुझ पर हावी होती चली गई. ‘लाइफ कोच’ के नाम पर वह मेरा शोषण करती रही और मैं करवाता रहा. लेकिन अब नहीं, अब बहुत हो चुका. अब मैं अपना ‘लाइफ कोच’ खुद बनूंगा. अब न तो मैं खुद और न ही अपनी बेटी को किरण के जुल्मों का शिकार बनने दूंगा. अब से मैं वही करूंगा जो मुझे सही लगेगा. अगर उसे पसंद है तो ठीक, वरना हमारे रास्ते अलग होंगे. मन में सोच नकुल ने एक लंबी सांस ली.