मुखौटा: कमला देवी से मिलना जरूरी क्यों था

सुबह के सारे काम प्रियदर्शिनी बड़ी फुरती से निबटाती जा रही थी. उस दिन उसे नगर की प्रतिष्ठित महिला एवं बहुचर्चित समाजसेविका कमला देवी से मिलने के लिए समय दिया गया था. काम के दौरान वह बराबर समय का हिसाब लगा रही थी. मन ही मन कमला देवी से होने वाली संभावित चर्चा की रूपरेखा तैयार कर रही थी.

आज तक उस का समाज के ऐसे उच्चवर्ग के लोगों से वास्ता नहीं पड़ा था लेकिन काम ही ऐसा था कि कमला देवी से मिलना जरूरी हो गया था. वह समाज कल्याण समिति की सदस्य थीं और एक प्रसिद्ध उद्योग समूह की मालकिन. उन के पास, अपार वैभव था.

कितनी ही संस्थाओं के लिए वह काम करती थीं. किसी संस्था की अध्यक्ष थीं तो किसी की सचिव. समाजसेवी संस्थाओं के आयोजनों में उन की तसवीरें अकसर अखबारों में छपा करती थीं. उन की भारी- भरकम आवाज के बिना महिला संस्थाओं की बैठकें सूनीसूनी सी लगती थीं.

ये सारी सुनीसुनाई बातें प्रियदर्शिनी को याद आ रही थीं. लगभग 3 साल पहले उस ने अपने घर पर ही बच्चों के लिए एक स्कूल और झूलाघर की शुरुआत की थी. उस का घर शहर के एक छोर पर था और आगे झोंपड़पट्टी.

उस बस्ती के अधिकांश स्त्रीपुरुष सुबह होते ही कामधंधे के सिलसिले में बाहर निकल जाते थे. हर झोंपड़ी में 4-5 बच्चे होते ही थे. घर का जिम्मा सब से बडे़ बच्चे पर सौंप कर मांबाप निकल जाते थे. 8-9 बरस का बच्चा सीधे होटल में कपप्लेट धोने या गन्ने की चरखी में गिलास भरने के काम में लग जाता था.

जीवन चक्र की इस रफ्तार में शिक्षा के लिए कोई स्थान नहीं था, न समय ही था. दो जून की रोटी का जुगाड़ जहां दिन भर की हाड़तोड़ मेहनत के बाद कई बार संभव नहीं हो पाता था वहां इस तरह के अनुत्पादक श्रम के लिए सोचा भी नहीं जा सकता था. 10 साल पढ़ाई के लिए बरबाद करने के बाद शायद कोई नौकरी मिल भी जाए लेकिन जब कल की चिंता सिर पर हो तो 10 साल बाद की कौन सोचे?

फिर भी प्रियदर्शिनी की यह निश्चित धारणा थी कि ये बच्चे बुद्धिमान हैं, उन में काम करने की शक्ति है, कुछ नया सीखने की उमंग भी है. इन्हें अगर अच्छा वातावरण और सुविधाएं मिल जाएं तो उन के जीवन का ढर्रा बदल सकता है. अभाव और उपेक्षा के वातावरण में पलतेबढ़ते ये बच्चे गुनहगार बन जाते हैं. चोरी करने, जेब कतरने जैसी बातें सीख जाते हैं. मेहनतमजदूरी करतेकरते गलत सोहबत में पड़ कर उन्हें जुआ, शराब आदि की लत पड़ जाती है और अगर बच्चे बहुत छोटे हों तो कुपोषण का शिकार हो कर उन की अकाल मृत्यु हो जाती है.

उस का खयाल था कि थोड़ी देखभाल करने से उन में काफी परिवर्तन आ सकता है. इसी उद्देश्य से उस ने अपनी एक सहेली के सहयोग से छोटे बच्चों के खेलने के लिए झूलाघर और कुछ बडे़ बच्चों के लिए दूसरी कक्षा तक की पढ़ाई के लिए बालबाड़ी की स्थापना की थी.

रात के समय वह झोंपडि़यों में जा कर उन में रहने वाली महिलाओं को परिवार नियोजन और परिवार कल्याण की बातें समझाती, घरेलू दवाइयों की जानकारी देती, साफसुथरा रहने की सीख देती.

पूरी बस्ती उस का सम्मान करती थी. अधिकाधिक संख्या में बच्चे झूलाघर और बालबाड़ी में आने लगे थे. इसी सिलसिले में वह कमला देवी से मिलना चाहती थी. अपना काम सौ फीसदी हो जाएगा ऐसा उसे विश्वास था.

किसी राजप्रासाद की याद दिलाने वाले उस विशाल बंगले के फाटक में प्रवेश करते ही दरबान सामने आया और बोला, ‘‘किस से मिलना है?’’

‘‘बाई साहब हैं? उन्होंने मुझे 11 बजे का समय दिया था.’’

‘‘अंदर बैठिए.’’

हाल में एक विशाल अल्सेशियन कुत्ता बैठा था. दरबान उसे बाहर ले गया. इतने में सफेद ऊन के गोले जैसा झबरीला छोटा सा पिल्ला हाथों में लिए कमला देवी हाल में प्रविष्ट हुईं.

भारीभरकम काया, प्रयत्नपूर्वक प्रसाधन कर के अपने को कम उम्र दिखाने की ललक, कीमती साड़ी, चमचमाते स्वर्ण आभूषण, रंगी हुई बालों की कटी कृत्रिम लटें, नाक की लौंग में कौंधता हीरा, चेहरे पर किसी हद तक लापरवाही और गर्व का मिलाजुला मिश्रण.

पल भर के निरीक्षण में ही प्रियदर्शिनी को लगा कि इस रंगेसजे चेहरे पर अहंकार के साथसाथ मूर्खता का भाव भी है जो किसी भी जानेमाने व्यक्ति के चेहरे पर आमतौर पर पाया जाता है.

उठ कर नमस्ते करते हुए उस ने सहजता से मुसकराते हुए अपना परिचय  दिया, ‘‘मेरा नाम प्रियदर्शिनी है. आप ने आज मुझे मिलने का समय दिया था.’’

‘‘अच्छा अच्छा…तो आप हैं प्रियदर्शिनी. वाह भई, जैसा नाम वैसा ही रंगरूप पाया है आप ने.’’

अपनी प्रशंसा से प्रियदर्शिनी सकुचा गई. उस ने कुछ संकोच से पूछा, ‘‘मेरे आने से आप के काम में कोई हर्ज तो नहीं हुआ?’’

‘‘अजी, छोडि़ए, कामकाज का क्या? घर के और बाहर के भी सारे काम अपने को ही करने होते हैं. और बाहर का काम? मेरा मतलब है समाजसेवा करने का मतलब घर की जिम्मेदारियों से मुकरना तो नहीं होता? गरीबों की सेवा को मैं सर्वप्रथम मानती हूं, प्रियदर्शिनीजी.’’

कमला देवी की इस सादगी और सेवाभावना से प्रियदर्शिनी अभिभूत हो उठी.

‘‘प्रियदर्शिनी, आप बालबाड़ी चलाती हैं?’’

‘‘जी.’’

‘‘कितने बच्चे हैं बालबाड़ी में?’’

‘‘जी, 25.’’

‘‘और झूलाघर में?’’

‘‘झूलाघर में 10 बच्चे हैं.’’

‘‘फीस कितनी लेती हैं?’’

‘‘जी, फीस तो नाममात्र की लेती हूं.’’

‘‘फीस तो लेनी ही चाहिए. मांबाप जितनी फीस दे सकें उतनी तो लेनी ही चाहिए. इतनी मेहनत करते हैं हम फिर पैसा तो हमें मिलना ही चाहिए.’’

‘‘जी, पैसे की बात सोच कर मैं ने यह काम शुरू नहीं किया.’’

‘‘तो फिर क्या समय नहीं कटता था, इसलिए?’’

‘‘जी, नहीं. यह कारण भी नहीं है.’’

कंधे उचका कर आंखों को मटका कर हंस दी कमला देवी, ‘‘तो फिर लगता है आप को बच्चों से बड़ा लगाव है.’’

‘‘जी, वह तो है ही लेकिन सच बात तो यह है कि उस इलाके में ऐसे काम की बहुत जरूरत है.’’

‘‘कहां रहती हैं आप?’’

‘‘सिंधी बस्ती से अगली बस्ती में.’’

‘‘वहां तो आगे सारी झोंपड़पट्टी ही है न?’’

‘‘जी. होता यह है कि झोंपड़पट्टी वाले सुबह से ही काम पर निकल जाते हैं. घर संभालने का सारा जिम्मा स्वभावत: बड़े बच्चे पर आ जाता है. मांबाप की अज्ञानता और मजबूरी का असर इन बच्चों के भविष्य पर पड़ता है. इसी विचार से मैं बच्चों की प्रारंभिक पढ़ाई के लिए बालबाड़ी और छोटे बच्चों की देखभाल के लिए झूलाघर चला रही हूं.’’

‘‘तो इन छोटे बच्चों की सफाई, उन के कपडे़ बदलने और उन्हें दूध, पानी आदि देने के लिए आया भी रखी होगी?’’

‘‘जी नहीं. ये सब काम मैं स्वयं ही करती हूं.’’

‘‘आप,’’ कमला देवी के मुख से एकाएक आश्चर्यमिश्रित चीख निकल गई.

‘‘जी, हां.’’

‘‘सच कहती हैं आप? घिन नहीं आती आप को?’’

‘‘जी, बिलकुल नहीं. क्या अपने बच्चों की टट्टीपेशाब साफ नहीं करते हम?’’

‘‘नहीं, यह बात नहीं है. लेकिन अपने बच्चे तो अपने ही होते हैं और दूसरों के दूसरे ही.’’

‘‘मेरे विचार में तो आज के बच्चे कल हमारे देश के नागरिक बनेंगे. अगर हम उन्हें जिम्मेदार नागरिक के रूप में देखना चाहें, उन से कुछ अपेक्षाएं रखें तो आज उन की जिम्मेदारी किसी को तो उठानी ही पड़ेगी न?’’

शांत और संयत स्वर में बोलतेबोलते प्रियदर्शिनी रुक गई. उस ने महसूस किया, कमला देवी का चेहरा कुछ स्याह पड़ गया है. उन्होंने पूछा, ‘‘लेकिन इन सब झंझटों से आप को लाभ क्या मिलता है?’’

‘‘लाभ?’’ प्रियदर्शिनी की उज्ज्वल हंसी से कमला देवी और भी बुझ सी गईं, ‘‘मेरा लाभ क्या होगा, कितना होगा, होगा भी या हानि ही होगी, आज मैं इस विषय में कुछ नहीं कह सकती लेकिन एक बात निश्चित है. मेरे इन प्रयत्नों से समाज के ये उपेक्षित बच्चे जरूर लाभान्वित होंगे. मेरे लिए इतना ही पर्याप्त है.’’

‘‘अद्भुत, बहुत बढि़या. आप के विचार बहुत ऊंचे हैं. आप का आचरण भी वैसा ही है. बड़ी खुशी की बात है. वाह भई वाह, अच्छा तो प्रियदर्शिनीजी, अब आप यह बताइए, आप मुझ से क्या चाहती हैं?’’

‘‘जी, बच्चों के बैठने के लिए दरियां स्लेटें, पुस्तकें और खिलौने. मदद के लिए मैं एक और महिला रखना चाहती हूं. उसे पगार देनी पड़ेगी. वर्षा और धूप से बचाव के लिए शेड बनवाना होगा. इस के साथ ही डाक्टरी सहायता और बच्चों के लिए नाश्ता.’’

‘‘तो आप अपनी बालबाड़ी को आधुनिक किंडर गार्टन स्कूल में बदल देना चाहती हैं?’’

‘‘बिलकुल आधुनिक नहीं बल्कि जरूरतों एवं सुविधाओं से परिपूर्ण स्कूल में.’’

‘‘तो साल भर के लिए आप को 10 हजार रुपए दिलवा दें?’’

‘‘जी.’’

‘‘मेरे ताऊजी मंत्रालय में हैं. आप 8 दिन के बाद आइए. तब तक आप का काम करवा दूंगी.’’

‘‘सच,’’ खुशी से खिल उठी प्रियदर्शिनी, ‘‘आप का किन शब्दों में धन्यवाद दूं? आप सचमुच महान हैं.’’

कमला देवी केवल मुसकरा भर दीं.

‘‘अच्छा, अब मैं चलती हूं. आप की बहुत आभारी हूं.’’

‘‘चाय, शरबत कुछ तो पीती जाइए.’’

‘‘जी नहीं, इन औपचारिकताओं की कतई जरूरत नहीं है. आप के आश्वासन ने मुझे इतनी तसल्ली दी है…’’

‘‘अच्छा, प्रियदर्शिनीजी, आप का घर और हमारा समाज कल्याण कार्यालय शहर की एकदम विपरीत दिशाओं में है. आप ऐसा कीजिए, अपनी गाड़ी से यहां आ जाइए.’’

‘‘जी, मेरे पास गाड़ी नहीं है.’’

‘‘तो क्या हुआ, स्कूटर तो होगा?’’

‘‘जी नहीं, स्कूटर भी नहीं है.’’

‘‘मेरे पास फोन भी नहीं है.’’

‘‘प्रियदर्शिनीजी, आप के पास गाड़ी नहीं, फोन नहीं, फिर आप समाजसेवा कैसे करेंगी?’’

उपहासमिश्रित उस हंसी से प्रियदर्शिनी कुछ  हद तक परेशान सी हो उठी. फिर भी वह अपने सहज भाव से बोली, ‘‘मेरा मन पक्का है. हर कठिनाई को सहने के लिए तत्पर हूं. तन और मन के संयुक्त प्रयास के बाद कुछ भी असंभव नहीं होता.’’

अब तो खुलेआम छद्मभाव छलक आया कमला देवी के मेकअप से सजेसंवरे चेहरे पर.

‘‘मैं तो आप को समझदार मान रही थी, प्रियदर्शिनीजी. मैं ने आप से कहीं अधिक दुनिया देखी है. आप मेरी बात मानिए, अपनी इस प्रियदर्शिनी छवि को दुनिया की रेलमपेल में मत सुलझाइए. खैर, आप का काम 8 दिन में हो जाएगा. अच्छा.’’ दोनों हाथ जोड़ कर नमस्ते कहते हुए प्रियदर्शिनी ने विदा ली.

‘‘दीदी, हमारे लिए नाश्ता आएगा?’’

‘‘दीदी, स्कूल के सब बच्चों के लिए एक से कपडे़ आएंगे?’’

‘‘दीदी, सफेद कमीज और लाल रंग की निकर ही चाहिए.’’

‘‘नए बस्ते भी मिलेंगे?’’

‘‘और नई स्लेट भी?’’

‘‘मैं तो नाचने वाला बंदर ले कर खेलूंगा.’’

‘‘दीदी, नाश्ते में केला और दूध भी मिलेगा?’’

‘‘अरे हट. दीदी, नाश्ते में मीठीमीठी जलेबियां आएंगी न?’’

बच्चों की जिज्ञासा और खुशी ने उसे और भी उत्साहित कर दिया.

8वें दिन कमला देवी की कार उसे लेने आई तो उस के मन में उन के लिए कृतज्ञता के भाव उमड़ आए. जो हो, जैसी भी हो, उन्होंने आखिर प्रियदर्शिनी का काम तो करवा दिया न.

उस की साड़ी देख कर कमला देवी ने मुंह बिचकाया और जोरजोर से हंस कर बोलीं, ‘‘अरे, प्रियदर्शिनीजी, कम से कम आज तो आप कोई सुंदर सी साड़ी पहन कर आतीं. फोटो में अच्छी लगनी चाहिए न. फोटोग्राफर का इंतजाम मैं ने करवा दिया है. कल के अखबारों में समाचार समेत फोटो आ जाएगी. अच्छा, चलिए, फोटो में आप थोड़ा मेरे पीछे हो जाइए तो फिर साड़ी की कोई समस्या नहीं रहेगी.’’

कार अपने गंतव्य की ओर बढ़ने लगी तो धीमी आवाज में कमला देवी ने कहा, ‘‘देखिए, प्रियदर्शिनीजी, आप के नाम पर 5 हजार का चेक मिलेगा. वह आप मुझे दे देना. मैं आप को ढाई हजार रुपए उसी समय दे दूंगी.’’

प्रियदर्शिनी ने कुछ असमंजस में पड़ कर पूछा, ‘‘तो बाकी ढाई हजार आप कब तक देंगी?’’

‘‘कब का क्या मतलब? प्रिय- दर्शिनीजी, हमें समाजसेवा के लिए कितना कुछ खर्च करना पड़ता है. ऊपर से ले कर नीचे तक कितनों की इच्छाएं पूरी करनी पड़ती हैं और फिर हमें अपने शौक और जेबखर्च के लिए भी तो पैसा चाहिए.’’

प्रियदर्शिनी को लगा उस की संवेदनाएं पथरा रही हैं.

कमला देवी अभी तक बोले जा रही थीं, ‘‘प्रियदर्शिनीजी, आप बुरा मत मानिए. लेकिन यह ढाई हजार रुपए क्या आप पूरा का पूरा स्कूल के लिए खर्च करेंगी? भई, एकआध हजार तो अपने लिए भी रखेंगी या नहीं, खुद के लिए?’’

समाज कल्याण कार्यालय के दरवाजे तक पहुंच चुकी थीं दोनों. तेजी के साथ प्रियदर्शिनी पलट गई. तेज चाल से चल कर वह सड़क पर आ गई. सामने खडे़ रिकशे वाले को घर का पता बता कर वह निढाल हो कर उस में बैठ गई. उस की आंखों के सामने बारबार कमला देवी का मेकअप उतर जाने के बाद दिखने वाला विद्रूप चेहरा उभर कर आने लगा. उन की छद्म हंसी सिर में हथौड़े मारती रही. उन का प्रश्न रहरह कर कानों में गूंजने लगा, ‘फिर आप समाजसेवा कैसे करेंगी?’

जाहिर था प्रियदर्शिनी के पास तथाकथित समाजसेवियों वाला कोई मुखौटा तो था ही नहीं.

मिनी का वैक्सीनेशन : जब घर से बाहर निकली मिनी तो क्या हुआ?

बड़ी मुश्किल से मुंबई से दूर एक अस्पताल में मिनी ने कोरोना के वैक्सीन का रजिस्ट्रैशन क्या कराया, सालभर बाद ऐसे लगा जैसे घर में कोई उत्सव का माहौल हो. महीनों बाद मिनी घर में गाना गाते हुए झूम रही थी.

लौकडाउन के दौरान अपने घर में बंद, औफिस के औनलाइन काम की वजह से अकसर तनाव में रहने वाली मिनी के लिए यह कोई आम खुशी भी नहीं थी. यह बहुत दिनों बाद घर से निकलने की खुशी थी, भले ही मकसद अस्पताल जाना ही क्यों न हो. एक युवा लड़की ठाणे से 1 घंटे की दूरी पर अस्पताल के लिए निकलने पर इतना खुश है, तो एक मां को तो आश्चर्य होगा ही. उस पर यह कि दोस्तों के साथ जाने का प्रोग्राम अचानक बन भी गया.

मिनी ने फरमाया, ”मां, वापस आते हुए मुझे थोड़ी वीकनैस या घबराहट हो सकती है न, तो रोहित को बोल दिया है कि वह मेरे साथ चलेगा. कार वही चला लेगा.”

मेरे कान खड़े हो गए. मां हूं उस की, समझ गई कि आउटिंग का प्रोग्राम बन रहा है दोस्तों के साथ.

मैं ने कहा, ”पर अभी किसी से मिलना ठीक है क्या?”

”मां, वह भी कोरोना को ले कर उतनी ही सावधानियां बरत रहा है जितनी हम. और उसे तो पहला डोज लग भी चुका है. वह सब के लिए फेसशील्ड ले कर आएगा और हम चारों कार में भी डबल मास्क लगा कर रखेंगे.‘’

देखा, मैं सही थी. मिनी यों ही गाना और डांस नहीं कर रही थी.

मैं ने उसे अपनी स्पैशल मांबेटी की अच्छी बौंडिंग वाली स्माइल देते हुए कहा, ”बदल दिया न अपने वैक्सीनेशन को एक पिकनिक में… सब जाओगे न? इतने लोगों को देख कर पुलिस वाले रोकेंगे तो?”

”अरे मां… बहुत बढ़िया प्रोग्राम बन गया है. कोई भी नहीं निकला न इतने दिनों घर से. रोहित मेरी कार चलाएगा, कोई रोकेगा तो हम कहेंगे कि वैक्सीन लगवाने जा रहे हैं. पूजा को भी जा कर पता करना है वैक्सीन का. जय को तो 2 महीने पहले कोरोना हो चुका है, बोल देंगे, फौलोअप के लिए जा रहा है.

“मां, सब इतने ऐक्साइटैड हैं न… हमलोग लगभग 4 महीने बाद मिलने वाले हैं. ओह, मां, वी आर सो ऐक्ससाइटैड…’’और फिर मिनी जोर से हंस पड़ी, ”मां, पता है, रोहित और पूजा ने तो अभी से सोचना शुरू कर दिया है कि वे क्या पहनेंगे.

“मैं तो अपनी स्लीवलैस ड्रैस पहन जाउंगी, एक बार भी नहीं पहनी थी कि लौकडाउन लग गया. चलो, जल्दी से अपना कल का काम निबटा लेती हूं, नहीं तो मेरा बौस कल मुझे ऐंजौय नहीं करने देगा. और मैं ने रिमी को भी कहा है साथ चलने के लिए…’’

”अरे, रिमी…उस के पेरैंट्स को तो कोरोना हुआ है न? वे तो अस्पताल  में भरती हैं ?”

मिनी थोड़ी उदास हुई,”हां, मां, वह आजकल अपने मामामामी के साथ रह रही है. अब जब बाहर जा ही रहे हैं तो उसे भी ले जाती हूं.‘’

अभी तक वहीं चुपचाप बैठे सारी बात सुन रहे अनिल ने मिनी के जाने के बाद कहा, ”यार, रश्मि, क्या बच्चे हैं आजकल के… ऐसा लग रहा है कि वैक्सीन के लिए नहीं, बल्कि पिकनिक पर जाने का प्रोग्राम बन रहा है.”

”हां, यार… बच्चे कैसे तरस रहे हैं एकदूसरे से मिलने के लिए. यह छोटी सी खुशी आज इन के लिए कितनी बड़ी बात हो गई है. बेचारी रातदिन लैपटौप पर बैठी काम ही कर रही है. आज कितने दिनों बाद खुश दिख रही है.

“ओह, कोरोना ने तो इन बच्चों को बांध कर रख दिया, बेचारे सच में कब से नहीं निकले हैं.”

गजब की तैयारियां हो रही थीं. सुबहसुबह ही हेयर मास्क लगाया गया, स्किन केयर हुई, शैंपू से बाल धोए गए, ड्रैस के साथ स्टाइलिश शूज निकाले गए, जो सालभर से डब्बे में ही बंद थे. तय हुआ कि मिनी ही सब को ले कर निकलेगी फिर ठाणे से बाहर जा कर रोहित कार चलाएगा.

यहां पर बाकी मम्मियों के उत्साह की भी दाद देनी पड़ेगी. मिनी ने बताया, ”एक बात बहुत अच्छी हो गई मां, सब आंटी ने कह दिया है कि बहुत दिनों बाद निकल रहे हो, तो अच्छी तरह घूमफिर कर आना, जब निकल ही रहे हो तो और ऐंजौय कर लेना.”

लगे हाथ मैं ने भी मिनी को छेड़ा, ”क्या पता, बाकी मांओं को भी एक ब्रेक इस बहाने आज अपने बच्चों से मिल ही जाए.‘’

जैसी उम्मीद थी, ठीक वैसे ही घूरा मिनी ने मुझे इस बात पर. बोली, ”हम  1 बजे निकलेंगे, 3 से 5 का टाइम है, मेरा डिनर मत बनाना, कुछ खुला होगा तो मैं अपनी पसंद का कुछ पैक करवा कर लाऊंगी,’’ फिर उस ने अभी किए गए मेरे मजाक का बदला भी हाथ के हाथ उतार दिया, ”एक ब्रेक चाहिए मुझे भी घर के खाने से, हद हो गई है रातदिन घर का खाना खाते हुए.”

मुझे हंसी आ गई. मिनी चली गई, वहां जा कर फोन किया, ‘’1,100 लोगों का अपौइटमैंट था, लंबी लाइन है. धूप भी बहुत तेज है, रोहित को कार काफी दूर पार्क करनी पड़ी है और यहां मैं अब अकेली ही लाइन में हूं, पर अच्छा लग रहा है.”

हर समय एसी के लिए शोर मचाने वाली मिनी दोपहर के 3 बजे लाइन में खड़ी है और उसे अच्छा लग रहा है, आवाज में कोई झुंझलाहट नहीं, खिलखिलाती सी आवाज. दरअसल, यह दोस्तों के साथ का असर है जो लगातार चैट कर रहे होंगे अब. जानती हूं मैं इन बच्चों को, डायरी ऐंट्री की तरह चारों हर समय एकदूसरे को अपनी बातें बताते रहते हैं.

वैक्सीन मिनी को लग गई. फोन आ गया, ”सब हो गया मम्मी, अब थोड़ा खानेपीने की अपनी पसंद की जगहें देख लें. काश, कुछ तो खुला हो.”

हालांकि मैं ने उसे बिस्कुट और पानी दिया था, कहा था,”कुछ खा लेना.‘’

”अरे, मम्मी, यह पूजा की मम्मी ने तो उसे छोटेछोटे जूस के पैकेट्स, स्नैक्स दिए हैं, उन्हें भी यही लग रहा था कि हम आज पिकनिक पर जा रहे हैं और रोहित और जय की मम्मी ने भी ऐसे ही कुछकुछ बैग में रख दिया था. हम तो बारबार कुछ न कुछ खाते ही रहे, मां, बहुत मजा आ रहा है…चलो, अब आ कर बात करते हैं.‘’

मेरी मिनी एक अरसे बाद आज खुश थी, चहक रही थी. मेरे लिए इतना बहुत था. दिल भर सा आया. कैसा टाइम आ गया है कि दोस्तों से मिलने के लिए तरस गए सब. कहां हर तरफ, हर जगह युवा मस्ती करते दिखते थे, जहां नजर जाती थी एक मस्ती सी दिखती थी, अब कहां बंद हो गए बेचारे.

इन की क्या बात करूं, मैं ही मिनी के दोस्तों का घर आना कितना मिस करती हूं. कैसे हंसीमजाक का दौर हुआ करता था, कैसी रौनक रहा करती थी, लेकिन अब? अब कैसा अकेलापन सब के मन पर छाया रहता है, कितना डिप्रैसिंग माहौल है.

शाम को घर की घंटी बजी. मिनी आई थी. आते ही आजकल सब सामान सैनिटाइज कर के सीधे वाशरूम ही जाना होता है.

”नहा कर आती हूं मां, ”कह कर मिनी वाशरूम की तरफ चली गई. मैं ने महसूस कर लिया कि वह फिर उदास और चुप है. नहा कर निकली तो बोली,”कुछ दुकानें खुली थीं, कुछ पैक करवा कर लाई हूं, चलो, आप लोग खा लो.‘’

”तुम? भूख लगी होगी?”

फिर वही बुझी सी आवाज,” मैं ने दोस्तों के साथ खा लिया था, अब भूख नहीं है.‘’

मैं ने उसे अपने साथ लिपटा लिया, ”अरे, मिनी, फिर उदास हो गईं?अच्छा, यह बताओ, रिमी कैसी है? उस के पेरैंट्स कैसे हैं?”

मिनी इस बात पर सुबक उठी, ”वह तो डरी हुई है. बता रही थी कि हर पल उसे यही डर लगा रहता है कि उस के मम्मीपापा को कुछ हो न जाए. फोन की हर घंटी पर डरती है. उस का मन तरस रहा है कि कब उस के मम्मीपापा ठीक हो कर घर आएं तो वह उन के साथ अपने घर जाए.

“बता रही थी कि न उसे नींद आती है, न भूख लगती है, उस का वेट भी कम है गया है. हमारी जिद पर चली तो गई हमारे साथ पर पूरा दिन एक बार भी उस का चेहरा खिला नहीं. इतनी उदास, परेशान और डरी हुई है कि क्या बताऊं…

“हम ने सोचा था कि हमारे साथ थोड़ा उस का मन बहलेगा, फोन पर भी रोती ही रहती है, पर कोई बात उसे तसल्ली नहीं दे पा रही. एक डर में जी रही है वह. और मम्मी, मुझे भी आज एक लेसन मिला.‘’

“क्या?”

”यही कि मैं तो अपने औफिस के एक छोटे से स्ट्रैस पर सारा दिन परेशान होती हूं, सारा दिन चिढ़चिढ़ करती हूं, जबकि आज के टाइम में तो परेशानियां इतनी बड़ीबड़ी हैं. लोग क्याक्या झेल रहे हैं, न जाने कितने दुख देख रहे हैं और मैं घर में आराम से बैठी अपने काम को रातदिन कोस रही हूं. मुझे काम ही तो ज्यादा है मगर कोई दुख तो नहीं न…फिर भी मैं सारा दिन ऐसे उदास होती हूं कि जैसे पता नहीं क्या हो गया है.

“हमारी रिमी कितने बड़े दुख से सामना कर रही है, उसे तो पता भी नहीं कि उस के मम्मीपापा अस्पताल  से ठीक हो कर आ भी पाएंगे भी या नहीं… बेचारी कितने डर में जी रही है रात दिन और मैं कितनी छोटी बात पर दुखी रहती हूं.’’

”हां, बेटा, सही कह रही हो. यह तो सचमुच समझने वाली बात है.’’

‘’मैं आज समझ गई कि अपनी छोटीछोटी परेशानियों को नजरअंदाज करूंगी, इतनी शिकायतें ठीक नहीं,’’ उस की आंखें सचमुच भर गईं, ”कितना अच्छा लगा आज सब को देख कर, अब पता नहीं कब मिलेंगे, इतनी बातें करते रहते हैं फोन पर, मगर मिल कर तो मन ही नहीं भर रहा था.”

मैं ने उसे पुचकारा,”अरे, पूजा का वैक्सीनेशन बाकी है न? और जय का भी तो? 2 पिकनिक तो तय हैं. फिर जाना सब एकसाथ.”

मैं ने इस तरह कहा कि उसे हंसी आ गई. बोल पड़ी, ”अच्छा, चलो, फिर खाते हैं, देखो, क्याक्या ले कर आई हूं. अब तो इंतजार ही कर सकते हैं कि अगला वैक्सीनेशन किस का होगा.‘’

हम मुसकरा दिए थे और मैं लगातार सोच रही थी कि यह सचमुच कोई आम दिन नहीं था. मिनी को एक सबक मिला था जो उस की लाइफ में उस के बहुत काम आएगा.

शायद बर्फ पिघल जाए

Story in hindi

मेरे पति का लिवर फेल हो चुका है, क्या लिवर ट्रांसप्लांट कराना सही है?

सवाल

मेरे पति का लिवर फेल हो चुका है. डाक्टर ने लिवर ट्रांसप्लांट कराने के लिए कहा हैलेकिन मैंने सुना है लिवर ट्रांसप्लांट की सफलता दर बहुत कम है?

जवाब

हमारे देश में लिवर ट्रांसप्लांट की सफलता दर अत्यधिक विकसित देशों के समान ही है. लिवर ट्रांसप्लांट के 90-95% मामलों में मरीज ट्रांसप्लांट के बाद स्वस्थ्य और सामान्य जीवन जी सकते हैं और कुल लिवर ट्रांसप्लांट के मामलों में से 70-80% में लोग 5 साल या उससे अधिक जीते हैं.

लिवर ट्रांसप्लांट के बाद हम देखते हैं कि लिवर फेल्योर से मृत्यु के मामले लगभग न के बराबर होते हैं. मृत्यु का कारण बुढ़ापाहृदय रोग या अन्य स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं.

 

-डा. संजय गोजा

प्रोग्राम डायरेक्टर ऐंड क्लीनिकल लीड – लिवर ट्रांसप्लांटएचपीबी सर्जरी ऐंड रोबोटिक लिवर सर्जरीनारायणा हौस्पिटलगुरुग्राम. 

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नींद: मनोज का रति से क्या था रिश्ता- भाग 1

उस ने दो, तीन बार पुकारा रमा… रमा, पर कोई जवाब नहीं.

‘‘हुंह… अब यह भी कोई समय है सोने का,‘‘ वह मन ही मन बड़बड़ाया और किचन की तरफ चल दिया. वहां देखा कि रमा ने गरमागरम नाश्ता तैयार कर रखा था. सांभर और इडली बन कर तैयार थीं.

‘‘कमाल है, कब बनाया नाश्ता?‘‘ वह सोचने लगा. तभी उसे याद आया कि रति का फोन आया था और वह बात करताकरता छत पर चला गया था. उस ने फोन उठा कर काल टाइम चैक किया. एक घंटा दस मिनट. उस ने हंस कर गरदन हिलाई और मुसकराते हुए अपना नाश्ता ले कर टेबल पर आ गया.

रमा ने लस्सी बना कर रखी थी. उस ने बस एक घूंट पिया ही था कि भीतर से रमा की आवाज आई, ‘‘मनोज, मेरे फिर से तीखा पीठदर्द शुरू हो गया है. मैं दवा ले कर सो रही हूं. फ्रिज से नीबू की चटनी जरूर ले लो.‘‘

‘‘हां… हां, बिलकुल खा रहा हूं,‘‘ कह कर मनोज ने उस को आश्वस्त किया और चटखारे लेले कर इडलीसांभर खाता रहा. वह मन ही मन बुदबुदाया, ‘‘चलो कोई बात नहीं. अगर सो भी रही है तो क्या हुआ, कम से कम सुबहरात थाली तो लगी मिल ही रही है. बाकी अपनी असली जिंदगी में रति जिंदाबाद.‘‘ अपनेआप से यह कह कर मनोज नीबू की चटनी का मजा लेने लगा.

समय देखा, दोपहर के पौने 12 बज रहे थे. अब उसे तुरंत फैक्टरी के लिए निकलना था. उस ने जैसे ही कार की चाबी उठाई, उस आवाज से चौकन्नी हो कर रमा ने कहा, ‘‘बाय मनोज हैव ए गुड डे.‘‘

‘‘बाय रमा, टेक केयर,‘‘ चलताचलता वह बोलता गया और सोचता भी रहा कि कमाल की नींद है इस की. मनोज कभी अपनी आंखें फैला कर तो कभी होंठ सिकोड़ कर सोचता रहा. पर, इस समय न वह भीतर जाना चाहता था और न ही उस की कमर में हाथ फिरा कर कोई दर्द निवारक मलहम लगाना चाहता था. उस ने खुद को निरपराध साबित करने के लिए अपने सिर को झटका दिया और सोचा कि अब यह सब ठेका उस ने ही तो नहीं ले रखा है, बाहर के काम भी करो, रोजीरोटी के लिए बदन तोड़ो और घर आ कर रमा के दुखते बदन में मलहम भी लगाओ. यह सब एक अकेला कब तक करे.

मनोज खुद अपना वकील और जज भी दोनों ही बन रहा था, पर सच बात तो यह थी कि वह यह सब नहीं करना चाहता था और जल्दी से जल्दी रति का चेहरा देखना चाहता था.

गाड़ी निकाल कर मनोज फैक्टरी के रास्ते पर था. मोबाइल पर नजर डाली तो उस में रति का संदेश आ रहा था.

वह हंसने लगा. कम से कम यह रति तो है उस की जिंदगी में. चलो रमा अब 50 की उम्र में बीमार है. अवसाद में है. जैसी भी है, पर निभ ही जाती है. जीवन चल ही रहा है.

यों भी पूरे दिन में मनोज का रमा से पाला ही कितना पड़ता है. पूरे दिन तो रति साथ रहती है. जब वह नहीं रहती, तब उस के लगातार आने वाले संदेश रहते हैं. रति है तो ऐसा लगता है जीवन में आज भी ताजगी ही ताजगी है, बहार ही बहार है. एक लौटरी जैसी रति उस को कितनी अजीज थी. पिछले 3 महीने से रति उस के साथ थी.

रति अचानक ही उस के सामने आ गई थी. वह अपनी फैक्टरी के अहाते में पौधे लगवा रहा था, तभी वह गेट खोल कर आ गई. वह रति को देख कर ठिठक गया था. ऐसे तीखे नैननक्श, इतनी चुस्त पोशाक और हंसतामुसकराता चेहरा. वह आई और आते ही पौधारोपण की फोटो खींचने लगी, तो मनोज को लगा कि शायद प्रैस से आई है. और यों भी पूरी दोपहर उस की खिलौना फैक्टरी में लोगों का तांता लगा रहता था, कभी शिशु विकास संस्थान, तो कभी बाल कल्याण विभाग. कभी ये गैरसरकारी संगठन, तो कभी वो समूह, यह सब लगा रहता था.

मनोज ने रति को भी सहज ही लिया. पौधारोपण पूरा होतेहोते शहर के लगभग 10 अखबारों से रिपोर्टिंग करने वाले प्रतिनिधि आ गए थे. मनोज ने देखा कि रति कोई सवाल नहीं पूछ रही थी. वह बस यहांवहां इधरउधर घूम रही थी, बल्कि रति ने चाय, कौफी, नाश्ता कुछ भी नहीं लिया था.

Wedding Special: वेडिंग सीजन में परफेक्ट हैं ये पौपुलर सिल्क साडियां

महिलाएं चाहे कितनी ही आधुनिक हो जाए, फिर भी कुछ ऐसे मौके होते हैं जब सिर्फ और सिर्फ साड़ी भी अच्छी लगती है . यही कारण है कि हर त्योहार और समारोह में लड़कियां साड़ी को ही प्राथमिकता देती हैं. आइए जानते हैं भारत के प्रमुख शहरों के बारे में जहां की सिल्क की साड़ियां पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है.

1. कांजीवरम

दक्षिण भारत का नाम आए और कोई कांजीवरम साड़ी की बात ना करें ऐसा कैसे हो सकता है दक्षिण भारत की कांजीवरम की खूबसूरत तथा भारी-भरकम साड़ियां महिलाओं की खास पसंद है. शायद इतना पढ़कर आपको बौलीवुड ऐक्ट्रेस रेखा, जयप्रदा, वैजयंती माला की याद आ जाए.

ट्रेडिशनल रिच कलर्स और इंडिया की सबसे ज्यादा मशहूर और महंगी साड़ियों में से हैं. कांजीवरम सिल्क ,तमिलनाडु के एक गांव के नाम पर है . जहां इस सिल्क को बनाया जाता है. बाकी सिल्क साड़ियों के मुकाबले ये साड़ियां काफी भारी होती हैं, क्योंकि इनमें इस्तेमाल होने वाले सिल्वर धागे गोल्ड में डिप होते हैं, वहीं मोटिफ्स मोर और तोते से इंसपायर्ड होते हैं. इस साड़ी का सबसे बेस्ट पार्ट होता है इसका पल्लू, जो अलग से बनाकर बाद में साड़ी से जोड़ा जाता है.

2. बनारसी साड़ी

बनारसी साड़ियों का नाम पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. रेशम की साड़ियों पर बनारस में बुनाई के संग जरी के डिज़ाइन मिलाकर बुनने से तैयार होने वाली सुंदर रेशमी साड़ी को बनारसी साड़ी कहते हैं.  इसे सुहाग की निशानी भी माना जाता है. मल्टी बनारसी साड़ी, पौड़ी, पौड़ी नक्काशी, कतान अम्बोज, टिपिकल बनारसी जंगला, एंटिक बूटा, जामेवार, कतान प्लेन,कतान फैंसी, तनछुई बनारसी आदि कई वरायटीज़ में ये साड़ियां उपलब्ध हैं.

3. महाराष्ट्रियन साड़ी

महाराष्ट्र की पैठणी  एक खास तरह की साड़ी है . जो नौ गज लंबी होती है . यह पैठण शहर में बनती है. इस साड़ी को बनाने की प्रेरणा अजन्ता की गुफा में की गई चित्रकारी से मिली थी. इसे पहनने का अपना पारंपरिक स्टाइल है, जो महाराष्ट्र की औरतों को ही अच्छी तरह से आता है.

4. रौ सिल्क

रौ सिल्क साड़ियां गोंद से बनती है. इससे सिल्क निकालने के लिए लम्बी प्रक्रिया से गुज़रना पड़ता है.

5. कोरा सिल्क

भारत के अधिकतर शहरों में कोटा सिल्क की साड़ियां आसानी से उपलब्ध होती है. ये साड़ी काफी हल्की होती है.  जिसे कई कलर्स और डिज़ाइन्स की कोरा सिल्क फैब्रिक से बुना जाता है. कोरा सिल्क का अपना अलग ही चार्म है.

6. महेश्वरी साड़ी

यह साड़ी खासकर मध्य प्रदेश में पहनी जाती है. यह रेशम से  बनाई जाती है. इसका इतिहास काफी पुराना है. होल्कर वंश की महान शासक देवी अहिल्याबाई ने 250 साल पहले गुजरात से लाकर महेश्वर में कुछ बुनकरों को बसाया था और उन्हें घर, व्यापार और अन्य सुविधाएं दी थीं. यही बुनकर महेश्वरी साड़ी तैयार करते थे.

7. चंदेरी साड़ी

विश्व प्रसिद्ध चंदेरी की साड़ियां आज भी हथकरघे पर ही बुनी जाती हैं . इन साड़ियों का अपना समृद्धशाली इतिहास  है. पहले ये साड़ियां केवल राजघराने में ही पहनी जाती थीं, लेकिन अब यह आम लोगों तक भी पहुंच चुकी हैं. एक चंदेरी साड़ी बनाने में एक बुनकर को साल भर का वक्त लगता है, इसीलिए चंदेरी साड़ियों को बनाते वक्त कारीगर इसे बाहरी नजरों से बचाने के लिए हर मीटर पर काजल का टीका लगाते हैं.

8. मैसूर सिल्क

सिल्क की साड़ियों की बात हो और मैसूर सिल्क का नाम नहीं आए यह कैसे हो सकता है? अगर आपको साड़ियों में  रिचनेस और ट्रेडिशनल टच चाहिए तो बस एक ही नाम है मैसूर सिल्क. ये साउथ इंडिया की कई मशहूर साड़ियों में गिनी जाती है. ये सिल्क मलबेरी सिल्क से बनता है, जो कर्नाटक में आराम से मिल जाता है.

9. नारायणपेट सिल्क

यह सिल्क साड़ी अपने अलग तरह के पैटर्न के लिए प्रसिद्ध है. साड़ी में एम्ब्रॉयडरी के साथ चेक्ड सरफेस पैटर्न होते हैं . जो मिलकर बॉर्डर या पल्लू पर बहुत ही खास डिज़ाइन का लुक बनाते हैं.  जैसे किसी मंदिर की आउटलाइन. इन साड़ियों की शुरुआत तेलंगाना के नारायणपेट डिस्ट्रिक से 1630 ईसा पूर्व में हुई थी. साड़ी के बॉर्डर पर छोटे ज़री डिज़ाइन्स से कंट्रास्ट लुक मिलता है . यह ब्राइड्स के लिए स्पेशल साड़ी है.

वुडन फ्लोरिंग : हर कदम का हमकदम

फ्लोरिंग आप के घर को ओवरआल लुक देती है. इन दिनों वुडन फ्लोरिंग ज्यादा चलन में है. यह डिफरैंट पैटर्न में मार्केट में उपलब्ध है. यदि आप अपने घर को अलग लुक देना चाहती हैं, तो वुडन फ्लोरिंग करवाएं.

कर्वड डिजाइन

इस पैटर्न में लकड़ी पर डिजाइनर नक्काशी होती है, जो बेहद खूबसूरत कला है. यह फ्लोरिंग लंबे समय तक आप के घर की शोभा बढ़ाएगी. इस लकड़ी का रंग सूरज की रोशनी में और भी रोशन हो जाता है.

परक्युट पैटर्न

फ्लोरिंग का यह पैटर्न आप के रूम को एक नया और वार्म लुक देगा. बौक्स डिजाइंड यह पैटर्न चैस बोर्ड की तरह लाइट और ब्राइट कलर कौंबिनेशन में होता है.

हीरिंगबोन पैटर्न

यह पैटर्न जिगजैग डिजाइन में मिलेगा. यह घर को एक रैंडम लुक देता है. लकड़ी का क्रीमिश कलर दीवारों के कलर पर भी खूब फबता है.

पेरिमीटर बौर्डर पैटर्न

यह पैटर्न आप के फ्लोर के बौर्डर को आउटलाइन करता है. इस से कमरे को फौर्मल लुक मिलता है. अगर बिना डिजाइन की फ्लोरिंग चाहती हैं, तो इस वुडन पैटर्न का इस्तेमाल कर सकती हैं.

लगाने में आसान

आजकल वुडन फ्लोरिंग ट्रैंड में है. ज्यादातर लोग इसे पसंद कर रहे हैं. अहम बात यह है कि वुडन फ्लोरिंग अपनी इंसुलेटिंग क्षमता के कारण लंबे समय तक खराब नहीं होती. इस की सब से खास बात यह है कि इसे मात्र 3-4 घंटों में ही लगाया जा सकता है, क्योंकि तख्तों को एकदूसरे के साथ एक विशेष बौंडिंग के साथ जोड़ते हुए इंटरलौक किया जाता है. इसे लगाना आसान है. इसे लगाने या लौक करने के लिए ‘टंग ऐंड गू्रव’ तकनीक या किसी चिपकाने वाले पदार्थ अथवा कीलों का प्रयोग करते हैं.

जब बजट हो कम

अगर आप को लगता है कि रियल वुडन फ्लोरिंग आप के बजट में फिट नहीं बैठती, तो इस बात को ले कर अफसोस करने की जरूरत नहीं है कि आप अपने घर को खूबसूरत लुक नहीं दे पाएंगी. आधुनिक तकनीक की वजह से आज बाजार में ऐसी फ्लोरिंग उपलब्ध हैं, जो वुडन न होने के बावजूद उस जैसी लगती हैं. इसे लगा कर आप कम खर्च में हार्डवुड जैसा ऐलिगैंट लुक डैकोर में ला पाएंगी.

बेहतर विकल्प

विनायल प्लैंक फ्लोरिंग, पौली विनायल क्लोराइड (पीवीसी) से बनी होती है, जो बहुत उच्च क्वालिटी का प्लास्टिक होता है, जिस के पीछे चिपकाने वाला पदार्थ लगा कर फ्लोर पर चिपका दिया जाता है. देखने में बिलकुल हार्डवुड जैसी लगने के साथसाथ यह वाटरपू्रफ भी होती है और इस पर दीमक भी नहीं लगती. जो लोग केवल लिविंग या बैडरूम में ही नहीं, बल्कि अपने बाथरूम को भी वुडन टच देना चाहते हैं, उन के लिए यह बेहतर विकल्प है.

देखभाल

फर्श पर जमी धूलमिट्टी को साफ और सूखे कपड़े से ही पोंछें. हर 5-6 साल के अंतराल पर फर्श को पौलिश कराएं. अगर कमरे के फर्श पर धूप आती है, तो वहां परदे का इस्तेमाल करें, क्योंकि धूप से लकड़ी का रंग फीका पड़ सकता है. फर्श पर पानी इकट्ठा न रहने दें, क्योंकि इस से लकड़ी खराब हो सकती है.

क्या करें

– सभी फर्नीचर जो उस कमरे में हों उन के नुकीले सिरों के नीचे कौटनबौल या फर्नीचर पैड लगा दें.

– दरवाजे पर डोरमेट का उपयोग करें व इन की नियमित सफाई जरूरी है.

– वैक्यूम क्लीनर का उपयोग सौफ्ट ब्रश के साथ करें.

– अगर घर पर पेट्स हों, तो यह ध्यान रखें कि वे नाखूनों से फ्लोरिंग को न खुरचें.

– सही गुणवत्ता वाले फ्लोरिंग क्लीनर का उपयोग करें.

– फ्लोर की सफाई के लिए हमेशा अच्छे पैड का उपयोग करें.

क्या न करें

– भारी व ऊंची हील की सैंडिल, जूतों का उपयोग कम से कम करें.

– अमोनिया या अन्य किसी ऐसिड के प्रयोग से बचें.

– पानी का उपयोग फ्लोरिंग को धोने में न करें.

– भारी फर्नीचर को फ्लोरिंग पर घसीटें नहीं.

Winter Special: 15 टिप्स जो बचा खाना बनाएं लजीज

बचा खाना हम अकसर खराब समझ कर फेंक दिया करते हैं जबकि बचे खाने से भी स्वादिष्ठ रैसिपी तैयार की जा सकती है. अचानक घर में मेहमान आ जाएं और आप को झटपट कुछ बना कर देना हो तो घबराएं नहीं, बल्कि इन टिप्स पर गौर फरमाएं:

1. घर में पनीर बनाया है तो उस के पानी में पकौड़े के लिए बेसन घोलें. पकौड़े स्वादिष्ठ बनेंगे.

2. पनीर के पानी से आटा गूंधें अथवा सूप में भी इस का इस्तेमाल कर सकती हैं.

3. अचार का मसाला बच गया हो तो उस में लहसुन छील कर अथवा प्याज काट कर डाल दें. स्वादिष्ठ अचार तैयार हो जाएगा.

4. आम के अचार के बचे तेल व मसालों को बैगन, टिंडा, भिंडी या करेले में भर कर सब्जी बनाएं.

5. अधिक पका केला फेंकने के बजाय पुडिंग या कस्टर्ड में डालें अथवा स्मूदी या शेक में प्रयोग करें.

6. चावल के निकले मांड़ में हींग, जीरा, अदरक, नीबू का रस और हरीमिर्च का तड़का लगा दें. बढि़या स्वादिष्ठ सूप तैयार हो जाएगा.

7. चावल का बचा पानी दाल में डाल दें, तो दाल गाढ़ी हो जाएगी और मात्रा भी बढ़ जाएगी.

8. अगर चोकर को सूजी में डाल कर हलवा बनाएं तो वह और स्वादिष्ठ व पौष्टिक बनेगा.

9. पका पपीता फीका निकला हो तो दूध व थोड़ी चीनी डाल कर थिक शेक बना लें.

10. फीके पपीते को पके कद्दू की तरह छौंक कर सब्जी बनाएं. सब्जी स्वादिष्ठ होने के साथसाथ पौष्टिक भी होगी.

11. छोटी इलायची के छिलकों को फेंकें नहीं. इन्हें पीस कर चीनी में मिला दें. जब भी चाय के पानी में चीनी डालेंगी इलायची की महक आएगी.

12. जिन सब्जियों को कद्दूकस कर रही हैं उन से निकले पानी को फेंकें नहीं, बल्कि उस से आटा गूंध लें. अधिक विटामिन इसी रस में होता है.

13. सब्जियों के डंठलों को फेंकें नहीं. उन्हें अच्छी तरह धो कर कोई सब्जी मिला कर उबाल लें. फिर छान कर कालीमिर्च, नमक और नीबू का रस डालें. बढि़या सूप तैयार हो जाएगा. चाहे तो वैजिटेबल स्टौक की तरह प्रयोग में लाएं.

14. अनार के छिलकों को फेंकें नहीं, बल्कि उन्हें अच्छी तरह धो कर सुखा लें. मिक्सी में पीस कर पाउडर बनाएं. जब भी पेट में दर्द हो कुनकुने दूध के साथ 1 चम्मच फांक लें.

15. सूखी नारंगी के छिलकों को सुखा कर चूर्ण बनाएं. बेक करने वाली चीज पुडिंग में डाल कर उसे सुगंधित बनाएं.

जब बच्चा हो तो रसोई में रखे यें चीजे

18 साल के राजीव का वजन जब 85 किलोग्राम हुआ, तो उस के मातापिता घबरा गए. बचपन से ही राजीव ओवरवेट था, लेकिन मातापिता को लगा था कि उम्र बढ़ने पर वह पतला हो जाएगा. पर ऐसा नहीं हुआ. होस्टल में रह कर भी उस का वजन बढ़ रहा था. वह बहुत आलसी हो गया था. उसे नींद भी बहुत आती थी. उस के मातापिता उसे कई डाक्टर्स के पास ले गए. कुछ ने सर्जरी करवाने की सलाह दी, लेकिन वे सर्जरी के लिए तैयार नहीं थे.अंत में वे उसे डाइटिशियन और न्यूट्रिशनिस्ट डा. नेहा चांदना रंगलानी के पास ले गए. उन के द्वारा जांच के बाद पता चला कि उस की जीवनशैली ठीक नहीं थी. उसे बचपन से जंक फूड खाने की आदत थी. उसे जब भी भूख लगती थी वह कुछ भी खा  लेता था. ऐसा करतेकरते उसे मोटापे ने घेर लिया. जबकि उस के परिवार में कोई भी ओवरवेट नहीं था. राजीव ने उन के द्वारा दी गई डाइट चार्ट को 4 महीने तक फौलो कर अपना 25 किलोग्राम वजन कम किया. वह अब पहले से काफी अच्छा लगने लगा है.

ऐसे बढ़ती है खाने में रुचि

डा. नेहा बताती हैं कि खाने की आदत लर्निंग बिहेवियर से आती है, अंतर्ज्ञान से नहीं. इसलिए बचपन से ही बच्चे में यह आदत डालने की आवश्यकता होती है कि उसे कब और क्या खाना चाहिए. आजकल लोग खाना बनाने में रुचि कम रखते हैं. ऐसे में बाजार से ला कर खाने की प्रथा चल पड़ी है. बाजार की खाने की चीजें अधिकतर स्वाद के आधार पर बनाई जाती हैं. उन की पौष्टिकता पर कम ध्यान दिया जाता है. ऐसे में बच्चा जब खुद कुछ उठा कर खाना सीखता है, तो किचन में चीजें रखते वक्त निम्न बातों को ध्यान में रखना बहुत जरूरी है:

कभी भी क्रीम बिस्कुट, चिप्स और चीज के पैकेट रसोई में न रखें.

हैल्दी स्नैक्स के बारे में सोचें और मुरमुरा, पीनट्स व ऐसे बिस्कुट रखें जिन में ओट्स हो. सैंडविच भी रख सकती हैं.

कोल्ड ड्रिंक्स, कैन पैक्ड ड्रिंक्स फ्रिज में रखने के बजाय ताजा नीबूपानी, जलजीरा व फ्रैश फलों के जूस आदि रखें, जिन में विटामिन और मिनरल अधिक मात्रा में होते हैं. वे बच्चे के विकास में काफी सहायक होते हैं.

मूंग की दाल व भुने हुए चने वगैरह आजकल बाजार में मिलते हैं, जो स्वाद के अलावा फायदेमंद भी होते हैं उन्हें रखें लेकिन हमेशा वैरायटी को बनाए रखें, क्योंकि एक जैसे फूड से बच्चा ऊब जाता है और बाहर का खाना खाने की सोचता है.

फलों को काट कर उन्हें कटोरी, प्लेट या ट्रे में सजा कर इस तरह फ्रिज या अलमारी में रखें ताकि बच्चा सहज ही उन की ओर आकर्षित हो.

जो भी उत्पाद रसोई में रखें, उसे खरीदते वक्त उस में वसा की मात्रा और पोषक तत्त्वों की जांच करें.

खाने की आदत को अच्छा बनाने के लिए उस का तरहतरह के व्यंजनों से परिचय कराएं.

बच्चे जब टीनएज में आते हैं तो वे अकसर स्कूल से आते ही किचन की ओर जाते हैं. अगर घर में मां हो तो वह उन्हें खाने के लिए कुछ निकाल कर दे सकती है. लेकिन आजकल अधिकांश मांएं कामकाजी हैं, इसलिए बच्चों को खुद ही कुछ निकाल कर खाना पड़ता है.

नेहा कहती हैं कि इस उम्र में बच्चे कुछ बना कर भी खा सकते हैं, इसलिए उस तरह की चीजें भी रसोई में रखें जिन से बच्चे कुछ बना कर खा सकें. जैसे दही, हरी चटनी, सलाद आदि. इन्हें फ्रिज में रखें ताकि बच्चा इन से खुद सैंडविच बना कर खा ले. इस के अलावा टीनएज बच्चों के लिए निम्न चीजें रसोई में होनी चाहिए:

मल्टीग्रेन व ब्राउन ब्रैड, इडली आदि.

मुरमुरा, कटे हुए प्याज, टमाटर व हरी धनियापत्ती. इन्हें अलगअलग कटोरी में रखें, बच्चा सभी को मिला कर खा सकता है.

इन के अलावा खाखरा, चकली, भुने हुए चने, दाल आदि जिन्हें वे तुरंत निकाल कर खा सकें.

इस उम्र में बच्चों की ग्रोथ जल्दी होती है, इसलिए उन्हें बारबार भूख लगती है. अगर बच्चा नौनवेज खाता है, तो अंडे उबाल कर रख सकती हैं.

आजकल बच्चे बाहर जा कर अधिक नहीं खेलते. उन का अधिकतर समय कंप्यूटर, लैपटौप या मोबाइल के साथ बीतता है. इसलिए उन्हें ब्रैड पर मक्खन की कम मात्रा लगाने की सलाह दें. साथ ही यह भी समझा दें कि जब भी वे पैक्ड फूड खरीदें उस में फैट और शुगर की मात्रा कम हो.

खानपान का व्यवहार पर प्रभाव

दरअसल, सही खानपान न होने से बच्चा चिड़चिड़ा हो जाता है. उस का मन किसी काम में नहीं लगता और वह उदास रहता है. लड़कियों के लिए तो संतुलित आहार बहुत जरूरी है. संतुलित आहार के बिना उन का हारमोनल बैलेंस बिगड़ता है और उन के मासिकधर्म पर इस का प्रभाव पड़ता है. बच्चों में शुगर लेवल बढ़ जाने पर वे कई बार जिद्दी हो जाते हैं और तोड़फोड़ तक कर सकते हैं. नूडल्स या जंकफूड सप्ताह में एक बार खिलाना काफी होता है, इसलिए किचन में सामान हमेशा वैसा रखें जो बच्चों के लिए आकर्षक, स्वादिष्ठ और हैल्दी हो, जिस से उन की खाने में रुचि बढ़े और उन का ग्रोथ अच्छा हो.

टीवी एक्ट्रेस सोनारिका भदौरिया का हुआ रोका-देखें फोटो

देवों के देव महादेव’ फेम सोनारिका भदौरिया ने अपने लॉन्ग टाइम बॉयफ्रेंड विकास परासर के साथ रोका किया है. सोनारिका भदोरिया ने अपने सोशल मीडिया पर फोटो शेयर कर रोका के बारे में बताया है. समुद्र किनारे कपल ने रोका सेरेमनी की है. बता दें, कि सोनारिका भदोरिया और विकास एक दूसरे को 7 साल से डेट कर रहे थे और अब जाकर दोनो का रोका हुआ है.

आपको बता दें, कि एक्ट्रेस सोनारिका भदौरिया की रोका सेरेमनी बिल्कुल ड्रीमी अंदाज में हुई है. अदाकारा की ये तस्वीरें सोशल मीडिया पर आते ही मीडिया की लाइमलाइट में छा गई है.

 

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सोनारिका ने कैरी किया गाउन

सोनारिका लाल सिंदूर और गले में मंगलसूत्र पहने बेहद खूबसूरत लग रही हैं. एक्ट्रेस ने गाउन के साथ हैवी ज्वेलरी और बड़ा मंगलसूत्र पहना हुआ है. वहीं विकास ने लाइट कलर का थ्री पीस सूट पहना हुआ है. विकास इस आउटफिट में किसी राजकुमार से कम नहीं लग रहे हैं.

 

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इंस्टा पर शेयर की फोटो

सोनारिका भदोरिया और विकास के रोके सेरेमनी में करीबी रिश्तेदार और दोस्त शामिल रहे. सोनारिका ने इंस्टाग्राम पर विकास के संग कई रोमांटिक फोटो शेयर की हैं. सोशल मीडिया पर उनकी तस्वीरों को काफी पसंद किया जा रहा है.

 

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