रिश्ते: क्यूं हर बार टूट जाती थी स्नेहा की शादी- भाग 1

बरसातके पानी की बड़ी-बड़ी बूंदें रिम?िम करके बरस रही थीं. मौसम बड़ा खुशनुमा और प्यारा हो रहा था. पानी की फुहारें मानो ठंडी-ठंडी हवाओं के साथ मन को रि?ा रही थीं. उन्हें देख कर लग रहा था कि जैसे मन की सारी मुरादें पूरी होने वाली हैं. स्वनिल और स्नेहा के प्यार को स्वनिल की मां ने कबूल कर लिया था. स्वनिल एक हाईटेक कंपनी में मैनेजर था और स्नेहा उसकी जूनियर. साथ काम करते-करते न जाने कब दोनों के दिल के तार जुड़ गए और दोस्ती चाहत में बदल गई. स्वनिल के पिताजी उसके बचपन में ही गुजर गए थे, मां ने ही उसे आंखों में सपने लिए बड़ी मेहनत से पाला था. उसने अपनी मां को चिट्ठी लिख कर स्नेहा के बारे में सब बता दिया था और उसकी तसवीर भी भेजी थी. मां का जवाब उसी के पक्ष में आया था. अगले सप्ताह मां खुद आने वाली थीं, अपनी होने वाली बहू से मिलने. ऑफिस से आने के बाद स्वनिल ने जल्दी से स्नेहा को अपने केबिन में बुलाया.

‘‘क्या हुआ स्वनिल,’’ स्नेहा ने आते ही पूछा.

‘‘स्नेहा, तुम्हें तो पता ही था कि मैंने मां को तुम्हारे बारे में बताया है, कल घर जाने के बाद मु?ो उनका खत मिला.’’ स्वनिल ने उदास हो कर कहा, ‘‘क्या लिखा था उस खत में और तुम इतने उदास क्यों हो?’’ स्नेहा ने घबराते हुए पूछा. ‘‘बात ही ऐसी है, स्नेहा मां ने हमेशा के लिए तुम्हें मेरे पल्ले बांधने का फैसला सुनाया है,’’ स्वनिल ने बड़ी गंभीरता से अपनी बात पूरी की. स्वनिल ने यह बात इतनी ज्यादा गंभीरता से कही थी कि पहले तो स्नेहा सम?ा न सकी पर जब सम?ा तो उसका चेहरा खुशी से खिल उठा.

‘‘स्नेहा, अब तो मां ने भी हां कर दीं, तो तुम्हें भी अपने घर वालों से बात कर लेनी चाहिए. मैं वापस आने के बाद उन से मिलता हूं. तुम यह जानती हो न कि आज रात मु?ो टूर के लिए निकलना है और उससे पहले अपने काम जल्दी से निबटाने हैं. अब तुम जाओ,’’ स्वनिल ने वहां से करीब भगाते हुए उससे कहा. स्नेहा भी स्वनिल को रेलवे स्टेशन तक छोड़ने साथ गई. आते समय वह रास्ते भर सोचती रही शायद स्वनिल ही उसके लिए बना है वरना तीन बार पक्की हुई उसकी शादी टूटती नहीं, लेकिन इस बार उसे किसी तरह की अनहोनी का डर नहीं था. उसका प्यार… उसका स्वनिल जो उसके साथ था. पापा और मम्मी से किस तरह बात करें? इस बारे में स्नेहा सोचती रही. उसकी छोटी बहन की शादी हो चुकी थी. छोटे भाई ने भी अपनी पत्नी के साथ दूसरी जगह बसेरा बसा लिया था. अब अगर उसकी शादी भी हो गई, तो मम्मीपापा अकेले रहेंगे या भाई के पास, वह सम?ा नहीं पा रही थी. उसे कुछ पुराने दिन याद आ गए… उन दिनों स्नेहा घर में अकेली कमाने वाली थी, उसे जब कॉलेज की डिगरी मिली थी, उसी साल पापा की कंपनी बंद हो गई थी. वे सालों से उसी कंपनी में काम कर रहे थे. वे यह सदमा बरदाश्त नहीं कर सके. वे दिनभर कमरे की छत को ताकते घर में पड़े रहते. उस समय स्नेहा के दोनों भाईबहन छोटे थे. स्नेहा ने आगे बढ़ कर जिम्मेदारी ली, उसने एक नौकरी पकड़ ली. धीरे-धीरे सब ठीक हो गया. स्नेहा घर की कमाने वाली अकेली सदस्य थी. जाहिर था कि हर बात उससे पूछ कर की जाती. लिहाजा, वह घर के हालात ठीक करने के लिए जीजान से जुट गई. समय बीतता गया. उसके भाई-बहन बड़े हो गए. मम्मी ने स्नेहा से सलाह-मशवरा करके छोटी बेटी की शादी सीधे-सादे अभय से कर दी. पहले तो स्नेहा ने कभी इस बात पर गौर नहीं किया, लेकिन अब जब उसकी छोटी बहन घर आती और अपने पिता और ससुराल वालों के गुण गाती, तो स्नेहा को भी शादी करने की चाहत होती. एक दिन स्नेहा ने शरमाते हुए मम्मी से बात छेड़ी.

पापा पीछे खड़े होकर सब सुन रहे थे. बोले, ‘‘कैसी बात करती हो बेटी? घर में तुम अकेली कमाने वाली हो. अभी तो तुम्हारा भाई पढ़ रहा है, तुम शादी करके चली जाओगी तो हमारा सहारा चला जाएगा. एक-दो साल और रुक जाओ. जब तुम्हारे भाई की नौकरी लगेगी तो हम तुम्हारा भी ब्याह कर देंगे,’’ पापा ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा.

दिन यों ही बीतते रहे. मौसम बदलते रहे. बहारें तो आईं, लेकिन स्नेहा की जिंदगी में नहीं, बल्कि भाई की जिंदगी में. हालात ने अजीब सी करवट ली. घर में रहने वाली पैसों की तंगी के चलते भाई अलग रहना चाहता था. जिस दिन उसे पहली तनख्वाह मिली, उसने मम्मी के सामने एक लड़की लाकर खड़ी कर दी और बोला, ‘‘मम्मी, यह है तुम्हारी होने वाली बहू. मैं अपनी नौकरी लगने तक रुका था. मैं दीदी पर एक और बो?ा नहीं डालना चाहता. हम दोनों अगले महीने कोर्ट मैरिज कर रहे हैं.’’ ‘‘तुम्हारी पसंद अच्छी है, बहू मु?ो अच्छी लगी, लेकिन बेटा तुम्हें पहले अपनी बहन के बारे में सोचना चािहए. उसकी भी तो उम्र हो रही है. पहले उसके हाथ पीले कर दें. बाद में तुम्हारी शादी…’’

‘‘एक मिनट मम्मी, हम, मेरा मतलब है कि मैं और मेरी पत्नी, शादी के बाद अलग रहने वाले हैं.’’

‘‘यह क्या कह रहा है तू?’’ मां ने हैरानी से पूछा.

इस प्यार को हो जाने दो

प्यार धर्मजाति की दीवारों से परे पनपता है. अफजल और पूनम इस की गिरफ्त में थे. लेकिन रिश्तेदार व जमाने वाले ऐसे प्यार को धर्म की भट्टी में राख करने को उतारू रहते हैं. यह तो पूनम व अफजल के लिए किसी कड़े इम्तिहान से कम न था, क्या हुआ दोनों का…

कालेज के वार्षिक उत्सव की तैयारियां जोरशोर से चल रही थीं. सभी छात्रछात्राएं अपनीअपनी खूबियों के अनुसार कार्यक्रम में भाग ले रहे थे. अफजल को गजलें लिखने का शौक था. उस की गजल का हर शब्द काबिलेतारीफ होता. पूरा कालेज दीवाना था उस की गजलों का. पूनम को गीतसंगीत बहुत पसंद था. बहुत मीठी आवाज थी उस की. पूरा कालेज उसे ‘स्वर कोकिला’ के नाम से जानता था. दोनों हर कार्यक्रम में एकसाथ ही भाग लेते. और न जाने कब दोनों एकदूसरे को चाहने लगे.

वेलैंटाइन डे पास आ रहा था. कालेज व बाजार में उस का माहौल अपना असर दिखा रहा था. कालेज के कई लड़केलड़कियां कार्ड खरीद कर लाए थे और अफजल से कुछ पंक्तियां लिख कर देने को कह रहे थे ताकि वे कार्ड में लिख अपने प्यार का इजहार कर सकें.

वहीं, कुछ लोगों ने वेलैंटाइन डे पर लाल गुलाब का गुलदस्ता बनवाया था. अफजल आज एक लाल गुलाब ले कर पूनम के पास जा पहुंचा और बोला, ‘‘मैं तुम से प्यार करता हूं, पूनम. क्या तुम स्वीकारोगी मेरा प्यार?’’ यह कह वह अपने प्यार का इजहार कर बैठा. पूनम अफजल को मन ही मन चाहने लगी थी. सो, उस ने फूल हाथ में ले, शरमाते हुए, झुकी पलकों संग उस के प्यार को स्वीकार कर लिया था.

दोनों का प्यार बादलों के संग उड़ते हुए आजाद परिंदों की तरह परवाज करने लगा था. कालेज के बाद दोनों छिपछिप कर मिलने लगे थे. लेकिन इश्क और मुश्क भला छिपाए छिपे हैं किसी से? कालेज के सभी लोग उन्हें ‘हंसों का जोड़ा’ के नाम से पुकारते. इसी तरह मिलते और प्यार में डूबे 4 वर्ष बीत गए.

कालेज खत्म कर दोनों अपनीअपनी नौकरियों में लग गए. पूनम अपनी पूरी तनख्वाह अपनी मां के हाथ में रखती, हां, कुछ रुपए हर तनख्वाह में से अपने भाइयों के लिए उपहार के लिए रख लेती.

अब पूनम के घर में उस के विवाह के लिए चर्चा होने लगी थी और वह बहुत चिंतित हो गई थी. आज पूनम जब अफजल से मिली, कहने लगी, ‘‘अफजल, मेरे मातापिता मेरी शादी की बात कर रहे हैं और मुझे नहीं लगता कि वे हमारे प्यार को स्वीकारेंगे.’’

अफजल ने जवाब में कहा, ‘‘पूनम, तुम घबराओ नहीं. तुम अपनी मां को बताओ तो सही या मैं तुम्हारे पिताजी से बात करूं?’’

पूनम कहने लगी, ‘‘अफजल, देखती हूं, आज मैं ही मां को बता देती हूं.’’

जैसे ही मां ने सुना, वे तो बिफर पड़ी और आव देखा न ताव, जा बताया पिताजी को. जैसे ही पूनम के पिताजी ने उस के मुंह से अफजल का नाम सुना, तो वे आगबबूला हो उठे. मां तो कोसने लगी,  ‘‘कहा था लड़की को इतनी छूट मत दो. अब पोत रही है न हमारे मुंह पर कालिख. क्या फायदा इस को पढ़ानेलिखाने का. रातदिन इस की चिंता लगी रही. कभी देर से घर आती तो कलेजा मुंह को आ जाता. किंतु यह दिन दिखाएगी, ऐसा तो सोचा भी न था. मैं सोचती थी पढ़लिख जाए तो अच्छे घर में रिश्ता हो जाएगा. अपने पैरों पर खड़ी होगी तो किसी की मुहताज न होगी. पर हमें तो इस ने कहीं का न छोड़ा, अब क्या मुंह दिखाएंगे हम समाज में.’’

पिताजी बोले, ‘‘अगर प्रेम ही करना था तो कोई हिंदू लड़का नहीं मिला था. इन मुसलमानों में ही तुझे ज्यादा प्यार नजर आया? उन के घर में बुर्का पहन कर रहेगी? मांसमछली खाएगी? अपने धर्म की गीता छोड़ 5 वक्त नमाज पढ़ेगी? अरे, समझती क्यों नहीं, नाम भी बदल देंगे तेरा, जो कि तेरी अपनी पहचान है, कहीं की न रहेगी तू?’’

पूनम ने कितनी बार समझाने की कोशिश की थी अपनी मां को. वह कहती, ‘‘मां, अफजल एक नेक इंसान है, 4 साल साथ में गुजारे हैं हम ने और फिर हम एकदूसरे को अच्छे से समझते भी हैं. ऐसे में तुम क्यों खिलाफ हो उस के? उस की जगह किसी हिंदू लड़के से शादी कर लूं और हमारे विचार ही आपस में न मेल खाएं तो उस शादी का क्या फायदा मां? शादी तो 2 इंसानों का मिलन होता है, उस में धर्म की दीवार क्यों मां? क्या तुम पिताजी के साथ खुश हो मां?’’ जैसेतैसे अपनी जिंदगी की गाड़ी घसीट ही तो रहे हैं आप लोग.’’

इतना सुन मां ने उस के गाल पर एक जोरदार तमाचा जड़ दिया, ‘‘बेशर्म, जबान लड़ाती है, इतनी अंधी हो गई है उस मुसलमान के प्यार में?’’

उस के घर में तो धर्म का बोलबाला था, कोई उस की बात समझना तो दूर की बात, सुनने के लिए भी तैयार न था. इसी कारण उन दोनों ने कोर्टमैरिज करने का फैसला किया. और कोई चारा भी न था.

शादी के बाद जब वे दोनों पूनम के घर आशीर्वाद लेने आए, उस के पिता कहने लगे, ‘‘हमारी छूट व प्यार का गलत फायदा उठाया है तुम ने. जरा सोचो, तुम्हारे छोटे भाइयों का क्या होगा आगे? कुछ तो लिहाज किया होता. बिरादरी में हमारी नाक क्यों कटवा दी? तुझे पैदा होते ही क्यों न मार डाला हम ने? जाओ, अब जहां रिश्ता जोड़ा है वहीं जा कर रहो. अब तो वे तुम्हारा धर्म भी परिवर्तन कर देंगे. अल्लाहअल्लाह करना रातदिन.’’

पूनम चुपचाप सब सुन रही थी. बीचबीच में कुछ बोलने की कोशिश करती, किंतु पिताजी के गुस्से के सामने चुप हो जाती. थोड़ी सी आस अपने दोनों भाइयों से थी. किंतु जैसे ही उस ने उन से नजरें मिलाने की कोशिश की, एक ने तो मुंह फेर लिया और दूसरे ने उस का हाथ पकड़ दरवाजे का रास्ता दिखा दिया और कहा, ‘‘जाओ दीदी, अब इस घर के दरवाजे तुम्हारे लिए सदा के लिए बंद हैं.’’

अफजल दरवाजे के बाहर ही खड़ा सुन रहा था. वह चाहता था कि पूनम के पिताजी से बात करे, किंतु पूनम ने उसे रोक दिया था और वह अफजल से बोली, ‘‘चलो अफजल, घर चलते हैं, पिताजी नहीं मानने वाले.’’

उस के जातेजाते पिताजी ने कह दिया था, ‘‘यदि वे तुम्हें इस्तेमाल कर तलाक दे कर निकाल दें तो लौट कर न आना वापस.’’ अफजल को भी बहुत बुरा लग रहा था कि पूनम उस से प्यार व निकाह क्या कर बैठी, आशीर्वाद मिलना तो दूर, उस के लिए उस के मातापिता के घर के दरवाजे भी हमेशा के लिए बंद हो गए थे. सो, दोनों अफजल के घर आ पहुंचे.

अफजल की मां ने नई बहू के स्वागत की पूरी तैयारियां कर रखी थीं. अफजल के रिश्तेदार इस विवाह के खिलाफ थे. आखिर हिंदू व मुसलिम एकदूसरे के कट्टर दुश्मन जो बने बैठे हैं. सो, उस की मां अकेली ही स्वागत कर रही थी अपनी बहू का. अफजल की मां ने उसे बेटी सा प्यार दिया. वे कहने लगीं, ‘‘बेटी, तुम मेरे अफजल के लिए अपना सबकुछ छोड़ कर आई हो. अब मैं ही तुम्हारी मांबाप, भाई हूं. इस घर में कोई परेशानी हो तो जरूर कहना.’’

अफजल की मां की बातें पूनम को बहुत सुकून दे रही थीं. कहां तो एक तरफ उस के अपने घर वाले उसे कोस रहे थे और जब से उस की व अफजल की बात उन्हें मालूम हुई, एक दिन भी वह चैन की नींद न सो पाई थी और न ही एक भी निवाला सुकून से खाया था. ऐसा मालूम होता था जैसे बरसों से भूखी हो व थकी हो.

2 दिनों बाद दोनों हनीमून के लिए मसूरी घूमने को गए. वहां की वादियों में दोनों रम जाना चाहते थे. लेकिन वहां भी पूनम को अपने मातापिता की बातें याद आती रहतीं. खैर, 15 दिन पूरे हुए, हनीमून खत्म हुआ. अब अफजल व पूनम दोनों को दफ्तर जाना था. अफजल की मां पूनम को सगी बेटी सा प्यार दे रही थीं. एक ही वर्ष में उस ने चांद सी बेटी को जन्म दिया.

पूनम को लगा शायद उस के

मातापिता अपनी नातिन को देख

कर खुश हो जाएंगे. सो, एक दिन उस ने अपनी मां को फोन मिलाया. पिताजी ने फोन उठाया और उस की आवाज सुन मां को फोन थमा दिया. मां ने तो उस की बात सुने बिना ही कह दिया, ‘‘पूनम, तुम हमारे लिए सदा के लिए मर चुकी हो.’’

उन की बात सुन कर पूनम खूब रोई. उस दिन पूनम ने मन ही मन अपने मातापिता से सदा के लिए रिश्ता तोड़ लिया था.

पूनम अपनी सास के साथ पूरी तरह हिलमिल गई थी. कभीकभी छुट्टी के दिन वह अपनी सास के बुटीक में भी जा कर उन का हाथ बंटाती.

पूनम की सास ने किसी भी मसजिदमजार में जाना बंद कर दिया और पूनम मंदिरों में नहीं जाती. वे नया साल, अपनी विवाह की वर्षगांठ, बच्चों के जन्मदिन जम कर मनाते.

ईद के दिन रिश्तेदारों के यहां खाना खाते और दीवालीहोली पर सब को घर पर खाने पर बुलाते. जो मुसलिम रिश्तेदार पहले नाराज थे, धीरेधीरे घुलमिल गए.

ऐसा चलते पूरे 7 वर्ष बीत गए. अब सास का शरीर भी जवाब देने लगा था. सो, बुटीक कम ही संभालती थीं. लेकिन पूनम उन का पूरा सहारा बन गई थी बुटीक को चलाने में. बारबार सास कहतीं, ‘‘अब शरीर तो साथ देता नहीं, लगता है बुटीक बंद ही करना पड़ेगा और वे बहुत दुखी हो जातीं.’’

पूनम उन के दुख को समझती थी. काम के चलते अफजल एक वर्ष के लिए अमेरिका चले गए. तभी अचानक एक दिन पूनम के भाई का फोन आया. पूनम बहुत खुश हो गई और कहने लगी, ‘‘मां कैसी है?’’ उस के भाई ने उस से बहुत प्यार से बात की. पूनम का मीठा रुख देख अगले दिन मां का भी फोन आया. पूनम तो मानो चहक उठी और पूछने लगी, ‘‘कैसी हो मां तुम सब, पिताजी कैसे हैं?’’

मां कहने लगी, ‘‘बेटी पूनम, तुम्हारे पिता तो बूढ़े हो चले हैं, भाई पढ़ाईलिखाई में तो कुछ खास अच्छे निकले नहीं. सो, तुम्हारे पिताजी ने उन्हें एक दुकान खुलवा दी. किंतु दोनों के दोनों एक फूटी कौड़ी घर में नहीं देते हैं, बल्कि कर्जा और हो गया. जिस बैंक से लोन ले कर कारोबार शुरू किया वह भी अब चुका नहीं पा रहे हैं. यदि तुम कुछ रुपयों का इंतजाम कर सको…’’

उसे ठीक तरह बात करते देख मां ने भाइयों के लोन चुकाने के लिए पूनम से रुपए मांग ही लिए.

अब पूनम सब समझ गई थी कि आज भी उन्होंने पूनम से सिर्फ उन की अपनी जरूरत पूरी करवाने के लिए ही फोन किया था. एक वह दिन था जब वह अफजल से निकाह करना चाहती थी, तो उस के परिवार वालों ने उस से रिश्ता तोड़ लिया था. तब तो उन्हें बेटी से ज्यादा धर्म प्यारा हुआ करता था. और आज, जब पैसों की जरूरत आन पड़ी तो अब वह अपनी हो गई. वरना क्या जैसे अफजल की मां ने हिम्मत कर अकेली हो कर भी गैरधर्म की लड़की को अपना लिया, क्या उस के अपने मांबाप, भाई साथ नहीं दे सकते थे उस का? और उस के निकम्मे भाइयों के लिए मां उस से वापस रिश्ता जोड़ने के लिए राजी हो गई. फिर भी उस ने अपनी मां को मीठा जवाब दे दिया ‘‘हां मां, देखती हूं.’’

और कुछ ही दिनों में जब उस की अपनी सास बीमार हुई और औपरेशन करवाना पड़ा तो पूनम ने अपने बैंक अकाउंट में से पैसे निकलवा कर अपनी सास का दिल का औपरेशन करवाया और उस की सेवा में लग गई. उस के बाद उस ने अपनी नौकरी छोड़ सास का बुटीक भी पूरी तरह से संभाल लिया. सास और बहू अब मांबेटी बन गई थीं. पूनम मन ही मन सोचती रहती, ऐसा धर्म किस काम का जिस की दीवार इतनी बड़ी होती है कि उस के सामने खून के रिश्ते भी बौने हो जाते हैं? और अपने धर्म को निभाने के लिए खून से जुड़े रिश्तों ने उसे छोड़ दिया था. उस ने तो धर्म की वह दीवार ढहा दी थी और वह गुनगुना रही थी –

धर्म, जाति, ऊंचनीच की दीवारों को ढह जाने दो.

इस प्यार को हो जाने दो, इस प्यार को हो जाने दो…

मच्छर भगाइए बिना ‘ऑल आउट’ के

मौसम एक ओर जहां अपने साथ नई ताजगी लेकर आता है वहीं दूसरी ओर ढ़ेर सारी बीमारियां भी. ये मौसम मच्छरों के प्रजनन का होता है.

आप लाख दरवाजे और खिड़कियां बंद कर लीजिए लेकिन डेंगू, मलेरिया और जीका जैसी जानलेवा बीमारियों को फैलाने वाले ये मच्छर कहीं न कहीं से घर में घुस ही जाते हैं. इन मच्छरों को भगाने के लिए हम हर महीने सैकड़ों रुपए के कॉयल और लिक्व‍िड वेपराइजर खरीदते हैं. लेकिन फायदा कुछ नहीं होता. न तो मच्छर भागते हैं और न ही मरते हैं. वे कमरे में ही किसी कोने में छिप जाते हैं.

जैसे ही कॉयल खत्म होता है, वे कोने से बाहर निकल आते हैं और अपने नुकीले एंटीना चुभाना शुरू कर देते हैं. एक ओर जहां ये केमिकल बेस्ड प्रोडक्ट काफी महंगे होते हैं वहीं ये बहुत प्रभावी भी नहीं होते. साथ ही इनसे निकलने वाले धुंए का बुरा असर हमारी सेहत पर भी पड़ता है. लेकिन आप चाहें तो घरेलू और नेचुरल तरीके से भी मच्छरों से राहत पा सकते हैं.

जॉन्सन बेबी क्रीम

अगर आपको ये पढ़कर हंसी आ रही है तो आपको बता दें कि ये कोई मजाक नहीं है. जॉन्सन बेबी क्रीम लगाकर आप मच्छरों से राहत पा सकते हैं.

नीम और लैवेंडर का तेल

नीम का तेल तो मच्छरों से छुटकारा पाने का सबसे अच्छा उपाय है. विशेषज्ञों की मानें तो नीम का तेल किसी भी कॉयल और वेपराइजर की तुलना में दस गुना ज्यादा इफेक्ट‍िव होता है. नीम के तेल में एंटी-फंगल, एंटी-वायरल और एंटी-बैक्टीरियल गुण पाया जाता है. आप चाहें तो नीम के तेल को लैवेंडर ऑयल के साथ मिलाकर भी लगा सकते हैं.

नींबू और लौंग

एक नींबू को बीच से काट लें और उसमें कुछ लौंग धंसा दें. इस नींबू को उस जगह पर रख दें जहां मच्छरों के होने की आशंका सबसे अधिक हो. इस उपाय को करने से मक्खियां भी दूर रहती हैं.

तुलसी

अपने घर में तुलसी का एक पौधा लगा लें. तुलसी कई बीमारियों में फायदेमंद है. इसके साथ ही ये मच्छरों को दूर रखने में भी मददगार है. इसकी गंध से मच्छर घर से दूर ही रहते हैं.

लहसुन

लहसुन की 5 से 6 कलियों को कूट लें. इसे एक कप पानी में मिलाकर कुछ देर के लिए उबाल लें. इस पानी को एक स्प्रे बॉटल में भरकर घर के अलग-अलग कोनों में छिड़क दें. इसकी गंध से भी मच्छर दूर ही रहेंगे.

आशा का दीप: किस उलझन में थी वैभवी

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लिवइन रिलेशनशिप: सही या गलत?

लिवइन रिलेशनशिप को सब से बड़ा नुकसान यह है कि लडक़ी को हमेशा यह संदेह रहता है कि अगर पार्टनर छोड़ कर चला गया तो वह आॢथक रूप से कमजोर हो जाएगी. लिवइन रिलेशन शिप भी शादी की तरह ही होते है जिन में लडक़ा ज्यादा कमाता है और घर खर्च का भार उठाता है अगर मकान, गाड़ी व्यवसाय लडक़े के नाम हो तो कुछ दिन बाद पार्टनर को ङ्क्षचता होने लगती है कि चाहे वह कमाऊ क्यों न हो, अलग हो जाने के बाद वह लिङ्क्षवग स्टैर्ड नहीं रख सकेगी जो पार्टनर के साथ रहने पर मिलता है और वहीं उसे हक भी न मिलेगा.

लिवइन जोड़ों में ये झगड़े बढऩे लगे हैं और पूनावाला व श्रद्धा का मामला उन में से एक है जिस की जड़ में फाइनेंशियल इनस्क्यिोरिटी रही लिवइन समझौता लड़कियों के लिए बहुत खतरनाक है तो केवल इसलिए कि दोनों मिल कर जो कमाते है उस से जो लाइफ स्टाइल मिलता है वह एक की कमाई से नहींं मिल सकता. पार्टनस में पैस को ले कर झगड़ा इसलिए आम बात है.

इस का कोई आसान हल नहीं अदालतों ने लड़कियों के दरवाजे खटखटाने पर लिवइन रिलेशनशिप के बावजूद उन्हें मैंनटेनैंस देनी शुरू कर दी है पर इस का कानूनी आधार नहीं है इस पर आपत्ति इसलिए नहीं होती कि लडक़ी जब अदालत का दरवाजा खटखटाती तो वाकई बुरी हालत में होती है.

लिवइन रिलेशनशिप को कानूनी जामा पहनाना भी गलत होगा क्योंकि यह लडक़ेलड़कियों की स्वतंत्रता को खत्म कर देगा. कुछ मामलों में हत्या तक बात पहुंच जाए केवल इसीलिए इन कच्चे संबंध पर लिमेंट पोतना भी संबंधों से फ्रीडम छीनना होगा.

यह तो मामला समझदारी का है. लिवइन में रहने वाले हरेक  को अपनी हैसीयत समझनी चाहिए और संबंध कभी भी टूट जाए, इस की तैयारी करते रहना चाहिए. लिवइन में पार्टनर में आंख मूंद कर भरोसा गलत होगा. लिवइन में फाइनेंस अलग रखे जाए और खर्चें इस तरह बढ़ा नहीं लिए जाए कि दो को अलग रहना तो मुश्किल हो जाए. लिवइन रिलेशनशिप एक ऐसी पार्टनरशिप है जिस में ट्रेन में एक कूपे में सफर करने वाले होते साथसाथ है पर अपना खर्च संपत्ति अलग रखते हैं.

लिवइन को बिना कानूनी आधार वाली आजाद शादी की शक्ल देना गलत है. शादी में ढेरों बंधन हैं जो सदियों से समाजों ने चाहे मनचाहे लगाए हैं. लड़कियों को यह समझ देर से आती है क्योंकि उन का माहौल और उन्हें जानकारी तो उन से मिलती है जो शादीशुदा है. वे ही बेचैन होती हैं. वे ही रिलेशनशिप को पक्का करने पर विवाद करती हैं, वे आमतौर पर पैसे के बारे ङ्क्षचतित रहती हैं.

Winter Special: सर्दियों की परेशानियों को कहें बायबाय

पपड़ीदार व रूखी त्वचा, कटेफटे होंठ, फटी एडि़यां आदि ऐसी आम समस्याएं हैं, जिन का सामना सर्दियों में सभी को करना पड़ता है. सर्दियों में हम रूमहीटर और ब्लोअर का भी इस्तेमाल करते हैं. इस से हमारी त्वचा का रूखापन बढ़ता है, क्योंकि ये हमारी त्वचा से नमी सोखते हैं, जिस से त्वचा बेजान और पोषणविहीन हो जाती है. इसीलिए हम आप को कुछ टिप्स दे रहे हैं, जिन पर गौर कर आप सर्दी के मौसम में भी पा सकती हैं दमकती त्वचा:

त्वचा में नमी बनाए रखें

त्वचा शरीर का महत्त्वपूर्ण अंग है. इसे कोमल और पोषित बनाए रखने के लिए अतिरिक्त देखभाल की जरूरत होती है. क्रीमयुक्त मौइश्चराइजर, औयल बाथ और नहाते समय विटामिन ई युक्त बौडी वाश का इस्तेमाल करने से त्वचा में नमी बरकरार रहती है.

बौडी लोशन आप घर पर भी बना सकती हैं. औलिव औयल, आमंड औयल और विटामिन के कुछ कैप्सूल्स का ऐक्स्ट्रैक्ट अच्छी तरह मिलाएं. आप का बौडी लोशन तैयार हो गया.

इस मौसम में एक बार सैलून में जा कर फेशियल या बौडी मसाज कराना भी फायदेमंद रहता है. फेशियल के लिए आप रैडिएंस ग्लो फेशियल का चयन कर सकती हैं. इस में भरपूर ऐंटीऔक्सीडैंट्स होते हैं, जो त्वचा में नमी के स्तर को संतुलित रखते हैं. सर्दियों में कोकोआ बटर से बौडी मसाज कराने से बेहतर और कुछ नहीं हो सकता है. कोकोआ बटर त्वचा को कोमल तो बनाता ही है, उसे दागधब्बे और मृत कोशिकाओं से भी मुक्त करता है.

कोमल होंठ

सूखे, पपड़ीदार, कटेफटे होंठों की समस्या से छुटकारा पाने का सब से आसान तरीका है कि अपने हैंडबैग में छोटा सा लिप बाम रखें. प्राकृतिक रूप से होंठों में नमी लाने के लिए नियमित तौर पर नारियल या बादाम तेल लगाएं. इस से सूखे होंठ जल्दी भरते हैं और उन का कालापन भी दूर होता है.

फटी एडि़यां

फटी एडि़यां न केवल बदसूरत दिखती हैं बल्कि उन में दर्द भी होता है. इस की प्रमुख वजह होती है. सर्दियों में परेशानी ज्यादा हो जाती है. फटी एडि़यों की समस्या से छुटकारा पाने के लिए नियमित तौर पर उन की क्लीनिंग, स्क्रबिंग और मौइश्चराइजिंग जरूरी है. इस के लिए आप सैलून से इंटैंस मौइश्चराइजिंग पैडीक्योर करा सकती हैं.

इंटैंस मौइश्चराइजिंग पैडीक्योर से मांसपेशियों को आराम मिलना है. पैडीक्योर त्वचा में रक्तप्रवाह बढ़ा कर त्वचा को पोषण देता है. इस के अतिरिक्त नियमित रूप से पैट्रोलियम जैली, फुट क्रीम लगाने से भी फटी एडि़यों को आराम मिलता है. इस के अलावा धूल आदि से बचने के लिए मोजे या फिर बंद जूते पहनें.

हाथों, घुटनों और टखनों की देखभाल

अकसर सर्दियों में घुटने और टखने काले पड़ने लगते हैं. उन पर नीबू और शहद रगड़ने से उन का रंग निखरने के साथसाथ उन में नमी बरकरार रखने में मदद मिलती है.

किशोरावस्था में यौन संबंधों पर नियंत्रण

एक अध्ययन के अनुसार हाल के वर्षों में किशोरावस्था के लड़केलड़कियों में यौन संबंधों में तेजी से वृद्धि होने का मुख्य कारण विवाह की उम्र का बढ़ना है. जीव विज्ञानियों के अनुसार, बच्चे शारीरिक रूप से 13 साल की उम्र में परिपक्व हो जाते हैं और उन में सैक्स की इच्छा जाग्रत होने लगती है, जबकि अब उन का विवाह औसतन 27 वर्ष की उम्र में होता है. ऐसी स्थिति में वे इतने लंबे समय तक सैक्स की इच्छा को दबा पाने में असमर्थ होते हैं और वे यौन संबंध स्थापित कर लेते हैं.

अध्ययन में पाया गया है कि लड़कियों की तुलना में लड़के सैक्स संबंध में अधिक रुचि लेते हैं, जबकि लड़कियां भावनात्मक लगाव पसंद करती हैं. लेकिन लड़कियां जब लड़कों से भावनात्मक रूप से जुड़ती हैं, तो वे भी यौन संबंध की इच्छा प्रकट करने लगती हैं. आम धारणा है कि लड़कियां खुद को सैक्स से दूर रखना चाहती हैं, लेकिन इस का कारण परिवार और समाज का डर होता है. इसलिए इस से यह साबित नहीं होता कि लड़कियों में यौन इच्छा कम होती है.

कुछ लड़कियों का मानना है कि यौन संबंध के बगैर भी किसी लड़के से दोस्ती निभाई जा सकती है, लेकिन कुछ समय बाद भी जब लड़की यौन संबंध के लिए राजी नहीं होती है, तो उसे असामान्य मान लिया जाता है और उन की दोस्ती टूट जाती है. इसलिए मजबूरीवश भी लड़कियों को इस के लिए तैयार होना पड़ता है. कुछ लड़कों का कहना है कि लड़कियां शर्मीले स्वभाव की होती हैं, इसलिए वे सैक्स के मामले में पहल नहीं करती हैं, लेकिन बाद में इस के लिए तैयार हो जाती हैं.

किशोर लड़केलड़कियों के बीच यौन संबंध महानगरों में तो आम बात हैं ही, छोटे शहर व कसबे भी अब इन से अछूते नहीं हैं. कुछ लड़कों का कहना है कि कौमार्यता उन के लिए कोई माने नहीं रखती. शादी से पहले यौन संबंध बनाना कोई बुरी बात नहीं है. जबकि कुछ लड़कियों का कहना है कि इस मामले में लड़के दोहरा मानदंड अपनाते हैं. एक तरफ तो वे शादी से पूर्व शारीरिक संबंधों को बढ़ावा देते हैं, लेकिन शादी के मामले में वे ऐसी लड़की से ही शादी करना चाहते हैं, जिस ने शादी से पूर्व यौन संबंध स्थापित न किए हों.

यौन संबंधों की शुरुआत

किशोरावस्था के लड़केलड़कियों में यौन संबंधों की शुरुआत शारीरिक आकर्षण से होती है. जब लड़कालड़की एकदूसरे से सम्मोहित हो जाते हैं, तो वे एकदूसरे को प्यार से छूते और चूमते हैं और फिर बहुत जल्द ही उन में यौन संबंध कायम हो जाते हैं. लेकिन प्यार और दोस्ती उसी अवस्था में अधिक दिनों तक कायम रह पाती है जब शारीरिक संबंधों को महत्त्व न दिया जाए. जब प्यार पर सैक्स हावी हो जाता है तो जल्द ही उन का मन सैक्स से भर जाता है और संबंध टूट जाते हैं, क्योंकि यहां भावनात्मक लगाव कम या कह सकते हैं कि न के बराबर होता है. माना जाता है कि ऐसे मामलों में लड़कियां खुद को अधिक असुरक्षित महसूस करती हैं.

अधिकतर मामलों में वे लड़कों पर आंख बंद कर विश्वास नहीं करतीं. कभीकभी वे बड़ों से भी सलाह लेती हैं. लड़कियां किशोरावस्था में अपने व्यक्तित्व के विकास पर अधिक ध्यान देती हैं. वे लड़कों के बराबर चलना चाहती हैं. लेकिन इस का अर्थ यह नहीं है कि लड़कियां संबंध बनाने में दिलचस्पी नहीं लेतीं, बल्कि वे इस में बराबर की भागीदार होती हैं. कुछ लड़कों का तो यहां तक कहना है कि आज के समय में लड़कियां लड़कों से आगे हो गई हैं. वे लड़कों के बीच भेदभाव पैदा कर देती हैं. सैक्स एवं यौन संबंधों के बारे में जानकारी के मुख्य स्रोत टैलिविजन, पत्रपत्रिकाएं, सिनेमा आदि हैं. लेकिन सैक्स शिक्षा के अभाव तथा सही मार्गदर्शन न मिलने के कारण वे भटक जाते हैं. इस का सब से अधिक खमियाजा लड़कियों को भुगतना पड़ता है.

लड़कियां यौन संबंध स्थापित तो कर लेती हैं, लेकिन गर्भनिरोध की जानकारी के अभाव में वे गर्भवती हो जाती हैं. हालांकि अधिकतर मातापिता का यह कहना है कि भारत में गैरशादीशुदा किशोर लड़कियों में गर्भवती होने के बहुत कम मामले होते हैं. शिक्षकों का भी यही मानना है. इस का कारण यह है कि मातापिता और शिक्षक इस मामले में अनभिज्ञ होते हैं, क्योंकि अधिकतर मामलों में उन्हें पता ही नहीं होता कि उन के बच्चे शारीरिक संबंध बनाए हुए हैं. बच्चे भी डर से ऐसी बातें मातापिता या शिक्षकों को नहीं बताते. लड़केलड़कियां खुद ही गर्भपात कराने डाक्टर के पास चले जाते हैं. ऐसे मौके पर उन के दोस्त उन का साथ देते हैं. हालांकि कुछ मामलों में लड़कियां गर्भपात नहीं कराना चाहतीं, लेकिन चूंकि उन के पास दूसरा कोई उपाय नहीं होता, इसलिए अंतत: उन्हें गर्भपात कराना ही पड़ता है.

इंटरनैशनल प्लांड पैरेंटहुड फैडरेशन के अनुसार विश्व भर में हर साल कम से कम 20 लाख युवतियां गैरकानूनी गर्भपात कराती हैं. चिकित्सकों के अनुसार महिलाओं की तुलना में किशोरवय की लड़कियों में गर्भपात अधिक घातक साबित होता है. अवैध और असुरक्षित यौन संबंध एड्स का बहुत बड़ा कारण है. हालांकि एड्स के भय से अब एक ही साथी से यौन संबंध बनाने में लड़केलड़कियां अधिक रुचि रखने लगे हैं, फिर भी शारीरिक संबंध बनाने के समय वे कोई सावधानी नहीं बरतते. कुछ स्कूलों में बच्चों को एड्स के बारे में शिक्षा दी जाने लगी है और कुछ मातापिता भी अपने बच्चों को एड्स तथा सुरक्षित सैक्स की जानकारी देने लगे हैं. फिर भी एचआईवी के नियंत्रण के लिए चलाए जा रहे एकीकृत राष्ट्रीय कार्यक्रम के कार्यकारी निदेशक की रिपोर्ट के अनुसार एचआईवी के नए मामलों में 60% मामले 15 से 24 वर्ष के बीच के युवाओं के पाए गए. इन में लड़कों की तुलना में दोगुनी लड़कियों में एड्स के मामले पाए गए.

अधिकतर मामलों में मातापिता को पता नहीं होता कि उन के बच्चे शारीरिक संबंध स्थापित किए हुए हैं. फिर भी यदि मातापिता और शिक्षक चाहें तो सैक्स अपराध को कुछ हद तक नियंत्रित कर सकते हैं. इस के लिए बच्चों को समय पर उचित सैक्स शिक्षा दी जानी चाहिए. प्रतिकूल हालात में उन की मदद करनी चाहिए. इस के अलावा उन्हें अपनी ऊर्जा किसी खेल या इसी तरह के दूसरे किसी शौक में लगाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए.

आज एड्स जैसी बीमारियों का प्रकोप तेजी से फैल रहा है. ऐसे में किशोरों में फैल रही यौन उच्छृंखलता पर नियंत्रण आवश्यक है. इस के लिए किशोरों को सैक्स से दूर रहने की शिक्षा देने या सैक्स के बारे में आधीअधूरी जानकारी देने के बजाय उन्हें सही अर्थों में सैक्स के बारे में ज्ञानवान बनाया जाना चाहिए ताकि वे अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए सही मार्ग अपना सकें.

अपना कौन: मधुलिका आंटी का अपनापन

मम्मीपापा अचानक ही देहरादून छोड़ कर दिल्ली आ बसे. यहां का स्कूल और सहेलियां कशिश को बहुत पसंद आईं. देहरादून पिछली कक्षा की किताबों की तरह पीछे छूट गया. बस, मधुलिका आंटी की याद गाहेबगाहे आ जाती थी.

‘‘देहरादून से सभी लोग आप से मिलने आते हैं. बस, मधुलिका आंटी नहीं आतीं,’’ कशिश ने एक रोज हसरत से कहा.

‘‘मधुलिका आंटी डाक्टर हैं और देवेन अंकल वकील. दोनों ही अपनी प्रैक्टिस छोड़़ कर कैसे आ सकते हैं?’’ मां ने बताया.

मां और भी कुछ कहना चाह रही थीं लेकिन उस से पहले ही पापा ने कशिश को पानी पिलाने को कहा. वह पानी ले कर आई तो सुना कि पापा कह रहे थे, ‘कशिश की यह बात तुम मधु को कभी मत बताना.’

कशिश को समझ में नहीं आया कि इस में न बताने वाली क्या बात थी.

जल्दी ही उम्र का वह दौर शुरू हो गया जिस में किसी को खुद की ही खबर नहीं रहती तो मधु आंटी को कौन याद करता.

मम्मीपापा न जाने कैसे उस के मन की बात समझ लेते थे और उस के कुछ कहने से पहले ही उस की मनपसंद चीज उसे मिल जाती थी. उस की सहेलियां उस की तकदीर से रश्क किया करतीं. कशिश का मेडिकल कालिज में अंतिम वर्ष था. मम्मीपापा दोनों चाहते थे कि वह अच्छे नंबरों से पास हो. वह भी जीजान से पढ़ाई में जुटी हुई थी कि दादी के मरने की खबर मिली. दादादादी अपने सब से छोटे बेटे सुहास और बहू दीपा के साथ चंडीगढ़ में रहते थे. पापा के अन्य भाईबहन भी वहां पहुंच चुके थे. घर में काफी भीड़ थी. दादी के अंतिम संस्कार के बाद दादाजी ने कहा, ‘‘शांति बेटी, तुम्हारी मां के जो जेवर हैं, मैं चाहता हूं कि वह तुम सब आपस में बांट लो. तू सब से बड़ी है इसलिए सब के जाने से पहले तू बराबर का बंटवारा कर दे.’’

रात को जब कशिश दादाजी के लिए दूध ले कर गई तो दरवाजे के बाहर ही अपना नाम सुन कर ठिठक गई. दादाजी शांति बूआ से पूछ रहे थे, ‘‘तुझे कशिश से चिढ़ क्यों है. वह तो बहुत सलीके वाली और प्यारी बच्ची है.’’

‘‘मैं कशिश में कोई कमी नहीं निकाल रही पिताजी. मैं तो बस, यही कह रही हूं कि मां के गहने हमारी पुश्तैनी धरोहर हैं जो सिर्फ  मां के अपने बच्चों को मिलने चाहिए, किसी दूसरे की औलाद को नहीं. मां के जो भी जेवर अभी विभा भाभी को मिलेंगे वह देरसवेर देंगी तो कशिश को ही, यह नहीं होना चाहिए.’’ शांति बूआ समझाने के स्वर में बोलीं.

कशिश इस के आगे कुछ नहीं सुन सकी. ‘दूसरे की औलाद’ शब्द हथौड़े की तरह उस के दिलोदिमाग पर प्रहार कर रहा था. उस ने चुपचाप लौट कर दूध का गिलास नौकर के हाथ दादाजी को भिजवा दिया और सोचने लगी कि वह किसी दूसरे यानी किस की औलाद है.

दूसरी जगह और इतने लोगों के बीच मम्मीपापा से कुछ पूछना तो मुनासिब नहीं था. तभी दीपा चाची उसे ढूंढ़ती हुई आईं और बरामदे में पड़ी कुरसी पर निढाल सी लेटी कशिश को देख कर बोलीं, ‘‘थक गई न. जा, सो जा अब.’’

तभी कशिश के दिमाग में बिजली सी कौंधी. क्यों न दीपा चाची से पूछा जाए. दोनों की उम्र में ज्यादा फर्क न होने के कारण उस की दीपा चाची से बहुत बनती थी और पिछले 3-4 रोज से एकसाथ काम करते हुए दोनों में दोस्ती सी हो गई थी.

‘‘आप से कुछ पूछना है चाची, बताएंगी ?’’ उस ने निवेदन करने के अंदाज में कहा.

‘‘जरूर,’’ दीपा ने प्यार से उस का सिर सहलाया.

‘‘मैं कौन हूं?’’

कशिश के इस प्रश्न से दीपा चौंक पड़ी फिर संभल कर बोली, ‘‘मेरी प्यारी भतीजी, कशिश.’’

‘‘मगर मैं आप की असली भतीजी तो नहीं हूं न, क्योंकि मैं डा. विकास और डा. विभा की नहीं किसी दूसरे की औलाद…’’

‘‘यह तू क्या कह रही है?’’ दीपा ने बात काटी.

‘‘जो भी कह रही हूं  चाची, सही कह रही हूं’’ और कशिश ने शांति बूआ और दादाजी के बीच हुई बातचीत दोहरा दी.

दीपा झल्ला कर बोली, ‘‘तुम्हारी शांति बूआ को भी बगैर बवाल मचाए खाना नहीं पचता…’’

‘‘उन्होंने कोई बवाल नहीं मचाया, चाची, सिर्फ सचाई बताई है पर अगर आप मुझे यह नहीं बताएंगी कि मैं किस की औलाद हूं तो बवाल मच सकता है.’’

‘‘मैं जो बताऊंगी उस पर तू यकीन करेगी?’’

अगर यकीन नहीं करना होता तो आप से पूछती ही क्यों? असलियत जानने के बाद मैं मम्मीपापा से कुछ नहीं पूछूंगी और कम से कम यहां तो कतई नहीं.

‘‘कभी भी और कहीं भी नहीं पूछना बेटे, वरना वे बहुत दुखी होंगे कि शायद उन की परवरिश में ही कोई कमी रह गई. तुम डा. मधुलिका और देंवेंद्र नाथ वर्मा की बेटी हो. विभा भाभी और मधुलिका बचपन की सहेलियां हैं. यह स्पष्ट होने पर कि बचपन में हुई किसी दुर्घटना के चलते विभा भाभी कभी मां नहीं बन सकतीं, मधुलिका ने उन की गोद में तुम्हें डाल दिया था. विभा भाभी और विकास भाई साहब ने तुम्हें शायद ही कभी शिकायत का मौका दिया हो.’’

कशिश ने सहमति में सिर हिलाया.

‘‘मम्मीपापा से मुझे कोई शिकायत नहीं है लेकिन मधु आंटी ने मुझे क्यों और कैसे दे दिया?’’

‘‘दोस्ती की खातिर.’’

‘‘दोस्ती ममता से ज्यादा…’’

तभी अंदर से बहुत उत्तेजित स्वर सुनाई देने लगे. सब से ऊंचा स्वर विकास का था.

‘‘मेरे लिए मेरे जीवन की सब से अमूल्य निधि मेरी बेटी है, जिस के लिए मैं देहरादून से सरकारी नौकरी छोड़ कर चला आया. उस के लिए क्या चंद गहने नहीं छोड़ सकता? मैं कल सवेरे यानी आप के बंटवारे से पहले ही यहां से चला जाऊंगा’’

‘‘लेकिन मां की उठावनी?’’ शांति बूआ ने पूछा.

‘‘उस के लिए आप सब हैं न. मां की अंत समय में सेवा कर ली, मेरे लिए यही बहुत है,’’ विकास ने कड़वे स्वर में कहा, ‘‘जो लोग मेरी बेटी को पराया समझते हों उन के साथ रहना मुझे गवारा नहीं है.’’

दीपा ने कशिश की ओर देखा और उस ने चुपचाप सिर झुका लिया.

‘‘यह अब नहीं रुकेगा. रोक कर शांति तुम बात मत बढ़ाओ,’’ दादाजी का स्वर उभरा. उसी समय विकास कशिश को पुकारता हुआ वहां आया और उसे इस तरह बांहों में भर कर अपने कमरे में ले गया जैसे कोई कशिश को उस से छीन न ले, ‘‘कल हम दिल्ली लौट रहे हैं कशिश, सो अब तुम सो जाओ. सुबह जल्दी उठना होगा,’’ विकास ने कहा.

‘‘जी, पापा,’’ कशिश ने कहा और चुपचाप बिस्तर पर लेट गई. विकास ने बत्ती बुझा दी.

‘‘विकास,’’ कुछ देर के बाद विभा का स्वर उभरा, ‘‘मुझे लगता है इस तरह लौट कर तुम सब की भावनाओं को ठेस पहुंचा रहे हो.’’

‘‘शांति बहनजी ने जिस बेदर्दी से मेरी भावनाओं को कुचला है न उस के मुक ाबले में मेरी ठेस तो बहुत मामूली है,’’ विकास ने तल्खी से कहा, ‘‘जो भी मेरी बेटी को नकारेगा उसे मैं कदापि स्वीकार नहीं करूंगा… चाहे वह कोई भी हो… यहां तक कि तुम भी.’’

अगली सुबह उन्हें विदा करने को केवल दादाजी, सुहास और दीपा ही थे और सब शायद अप्रिय स्थिति से बचने के लिए नींद का बहाना कर के उठे ही नहीं.

घर आ कर विभा और विकास अपने काम में व्यस्त हो गए और कशिश पढ़ाईर् में. हालांकि कशिश को लग रहा था कि चंडीगढ़ से लौटने के बाद पापा उसे ले कर कुछ ज्यादा ही पजेसिव हो गए हैं लेकिन वह अपने असली मातापिता से मिलने और यह जानने को बेचैन थी कि उन्होंने उसे अपनी गोद से उठा कर दूसरे की गोद में क्यों डाल दिया? उस ने मम्मी की डायरी में से मधुलिका मौसी का फोन नंबर और पता तो नोट कर लिया था मगर वह खत या फोन के जरिए नहीं, स्वयं मिल कर यह बात पूछना चाहती थी.

परीक्षा सिर पर थी और पढ़ाई में दिल नहीं लग रहा था. कशिश यही सोचती रहती थी कि क्या बहाना बना कर देहरादून जाए. समीरा उस की खास सहेली थी. उस से कशिश की बेचैनी छिप नहीं सकी. उस के पूछने पर कशिश को बताना ही पड़ा.

‘‘समझ में नहीं आ रहा कि देहरादून किस बहाने से जाऊं.’’

‘‘तू भी अजब भुलक्कड़ है. कई बार तो बता चुकी हूं कि सालाना परीक्षा खत्म होते ही मेरे बड़े भाई की शादी है और बरात देहरादून जाएगी. मैं तुझे बरात में ले चलती हूं. वहां जा कर तू जहां कहेगी तुझे पहुंचवाने का इंतजाम करवा दूंगी. सो अब सारी चिंता छोड़ कर पढ़ाई कर.’’

समीरा की बात से कशिश को कुछ राहत मिली. और फिर शाम को समीरा उस के मम्मीपापा से मिल कर बरात में चलने की स्वीकृति लेने उस के घर आ गई.

‘‘बरात में जाने के बारे में सोचने के बजाय फिलहाल तो तुम दोनों पढ़ाई में ध्यान लगाओ,’’ पापा ने समीरा की बात सुन कर बड़े प्यार से दोनों का सिर सहलाया.

‘‘अंतिम साल की परीक्षा है. इस के नतीजे पर तुम्हारा पूरा भविष्य निर्भर करता है. कशिश को तो मैं कार्डियोलोजी में महारत हासिल करने के लिए अमेरिका भेज रहा हूं. तुम्हारा क्या इरादा है, समीरा?’’

‘‘अगर मैं भी कार्डियोलोजिस्ट बन गई अंकल, तो मुझ में और कशिश में दोस्ती के  बजाय स्पर्धा हो जाएगी और हमारी दोस्ती खत्म हो ऐसा रिस्क मुझे नहीं लेना है. सो कुछ और सोचना पडे़गा मगर सोचने को फिलहाल आप ने मना कर दिया है,’’ समीरा हंसी.

समीरा को विदा कर के कशिश जब अंदर आई तो उस ने अपने पापा को यह कहते सुना, ‘‘मैं नहीं चाहता विभा कि कशिश देहरादून जाए और मधुदेवेन से मिले. इसलिए समीरा के भाई की शादी से पहले ही कशिश को ले कर कहीं और घूमने चलते हैं.’’

‘‘कैसे जाओगे विकास? इस बार आई.एम.ए. का वार्षिक अधिवेशन तुम्हारी अध्यक्षता में होगा और वह उन्हीं दिनों में है.’’

कशिश लपक कर कमरे में आई और कहने लगी, ‘‘मेरी एक बात मानेंगी, मम्मा? आप प्लीज, मधु मौसी को मेरे देहरादून आने के बारे में कुछ मत बताना क्योंकि मैं शादी की रौनक छोड़ कर उन से मिलने नहीं जाने वाली.’’

पापा के चेहरे पर यह सुन कर राहत के भाव उभरे थे.

‘‘ठीक कहती हो. अपनी सहेलियों को छोड़ कर मां की सहेली के साथ बोर होने की कोई जरूरत नहीं है.’’

‘‘थैंक यू, पापा,’’ कह कर कशिश बाहर आ कर दरवाजे के पास खड़ी हो गई.

पापा, मम्मी से कह रहे थे कि अच्छा है, कशिश उन दिनों शादी में जा रही है क्योंकि हम दोनों तो अधिवेशन की तैयारी में व्यस्त हो जाएंगे और यह घर पर बोर होती रहने से बच जाएगी. इस तरह समस्या हल होते ही कशिश जीजान से पढ़ाई में जुट गई.

देहरादून स्टेशन पर बरात का स्वागत करने वालों में कई महिलाएं भी थीं. लड़की के पिता सब का एकदूसरे से परिचय करवा रहे थे. एक अत्यंत चुस्तदुरुस्त, सौम्य महिला का परिचय करवाते हुए उन्होंने कहा, ‘‘यह डा. मधुलिका हैं. कहने को तो हमारी फैमिली डाक्टर और पड़ोसिन हैं लेकिन हमारे परिवार की ही एक सदस्य हैं. हमारे से ज्यादा शादी की धूमधाम इन की कोठी में है क्योंकि सभी मेहमान वहीं ठहरे हुए हैं.’’

कशिश को यकीन नहीं हो रहा था कि उस का काम इतनी आसानी से हो जाएगा. उस ने आगे बढ़ कर मधुलिका को अपना परिचय दिया. मधुलिका ने उसे खुशी से गले से लगाया और पूछा कि विभा क्यों नहीं आई?

‘‘आंटी, मम्मीपापा आजकल एक अधिवेशन में भाग ले रहे हैं. मैं भी इस बरात में महज आप से मिलने आई हूं,’’ कशिश ने बिना किसी हिचक के कहा, ‘‘मुझे आप से अकेले में बात करनी है.’’

मधुलिका चौंक पड़ी फिर संभल कर बोली, ‘‘अभी तो एकांत मिलना मुश्किल है. रात को बरात की खातिरदारी से समय निकाल कर तुम्हें अपने घर ले चलूंगी.’’

‘‘उस में तो बहुत देर है, उस से पहले ही घर ले चलिए न,’’ कशिश ने मनुहार की.

‘‘अच्छा, दोपहर को क्लिनिक से लौटते हुए ले जाऊंगी.’’

दोपहर को मधुलिका ने खुद आने के बजाय उसे लाने के लिए अपनी गाड़ी भेज दी. वह अपने क्लिनिक में उस का इंतजार कर रही थी.

‘‘तुम अकेले में मुझ से बात करना चाहती हो, जो फिलहाल घर पर मुमकिन नहीं  है. बताओ क्या बात है?’’ मधुलिका मुसकराई.

‘‘मैं यह जानना चाहती हूं कि आप ने मुझे क्यों नकारा, क्यों मुझे दूसरों को पालने के लिए दे दिया? मां, मुझे मालूम हो चुका है कि मैं आप की बेटी हूं,’’ और कशिश ने चंडीगढ़ वाला किस्सा उन्हें सुना दिया.

‘‘विभा और विकास ने तुम्हें क्या वजह बताई?’’ मधुलिका ने पूछा.

‘‘उन्हें मैं ने बताया ही नहीं कि मुझे सचाई पता चल गई है. वह दोनों मुझे इतना ज्यादा प्यार करते हैं कि  मैं कभी सपने में भी उन से कोई अप्रिय बात पूछ कर उन्हें दुखी नहीं कंरूगी.’’

‘‘यानी कि तुम्हें विभा और विकास से कोई शिकायत नहीं है?’’

‘‘कतई नहीं. लेकिन आप से है. आप ने क्यों मुझे अपने से अलग किया?’’

‘‘कमाल है, बजाय मेरा शुक्रिया अदा करने के कि तुम्हें इतने अच्छे मम्मीपापा दिए, तुम शिकायत कर रही हो?’’

‘‘सवाल अच्छेबुरे का नहीं बल्कि उन्हें दिया क्यों, यह है?’’

‘‘मान गए भई, पली चाहे कहीं भी हो, रहीं वकील की बेटी,’’ मधुलिका ने बात हंसी में टालनी चाही.

‘‘मगर वकील की बेटी को डाक्टर की बेटी कहलवाने की क्या मजबूरी थी?’’

‘‘मजबूरी कुछ नहीं थी बस, दोस्ती थी. विभा मां नहीं बन सकती थी और अनाथालय से किसी अनजान बच्चे को अपनाने में दोनों हिचक रहे थे. बेटे और बेटी के जन्म के बाद मेरा परिवार तो पूरा हो चुका था. सो जब तुम होने वाली थीं तो हम लोगों ने फैसला किया कि चाहे लड़का हो या लड़की यह बच्चा हम विभा और विकास को दे देंगे. ऐसा कर के मैं नहीं सोचती कि मैं ने तुम्हारे साथ कोई अन्याय किया है.’’

‘‘अन्याय तो खैर किया ही है. पहले तो सब ठीक था मगर असलियत जानने के बाद मुझे अपने असली मातापिता का प्यार चाहिए…’’

तभी कुछ खटका हुआ और एक प्रौढ़ पुरुष ने कमरे में प्रवेश किया. मधुलिका चौंक ०पड़ी.

‘‘आप इस समय यहां?’’

‘‘कोर्ट से लौट रहा था तो बाहर तुम्हारी गाड़ी देख कर देखने चला आया कि खैरियत तो है.’’

‘‘ऋचा की बरात में कशिश भी आई है. मुझ से अकेले में बात करना चाह रही थी, सो यहां बुलवा लिया,’’ मधुलिका ने कहा और कशिश की ओर मुड़ी,‘‘यह तुम्हारे देवेन अंकल हैं.’’

‘‘अंकल क्यों, पापा कहिए न?’’ कशिश नमस्ते कर के देवेन की ओर बढ़ी लेकिन देवेन उस की अवहेलना कर के मधुलिका के जांच कक्ष में

जाते हुए कड़े स्वर में बोले, ‘‘इधर आओ, मधु.’’

मधुलिका सहमे स्वर में कशिश को रुकने को कह कर परदे के पीछे चली गई.

‘‘यह सब क्या है, मधु? मैं ने तुम्हें कितना समझाया था कि अपने बेटेबेटी का प्यार और हक बांटने के लिए मुझे तीसरी औलाद नहीं चाहिए, तुम गर्भपात करवाओ. मगर तुम नहीं मानीं और इसे अपनी सहेली के लिए पैदा किया. खैर, उन के दिल्ली जाने के बाद मैं ने चैन की सांस ली थी मगर यह फिर टपक पड़ी मुझे पापा कहने, हमारे सुखी परिवार में सेंध लगाने के लिए. साफ कहे दे रहा हूं मधु, मेरे लिए यह अनचाही औलाद है. न मैं स्वयं इस का अस्तित्व स्वीकार करूंगा न अपने बच्चों…’’

कशिश आगे और नहीं सुन सकी. उस ने फौरन बाहर आ कर एक रिकशा रोका. अब उसे दिल्ली जाने का इंतजार था, जहां उस के मम्मीपापा व्यस्तता के बावजूद उस के बगैर बेहाल होंगे. प्यार जन्म से नहीं होता है. प्यार तो प्यार करने वालों से होता है और जो प्यार उसे अपने दिल्ली वाले मातापिता से मिला, उस का तो कोई मुकाबला ही नहीं.

डाक्टर की मेहरबानी: कौनसी गलती कर बैठी थी आशना?

एकदिन गौतम अपनी मोटरसाइकिल से आशना को ले कर शहर से कुछ दूर स्थित एक पार्क में पहुंचा.  झील के किनारे एकांत में दोनों प्रेमी पैर पसारे बैठे थे. उन्हें लगा दूरदूर तक उन्हें देखने वाला कोई नहीं है.

तभी  झील के पानी में छपाक की धीमी सी आवाज हुई, तो आशना बोली, ‘‘लगता है किसी ने पानी में पत्थर फेंका है… कोई आसपास है और हमें देख रहा है.’’

‘‘अरे, ऐसा कुछ नहीं है. कभीकभी मछलियां ही पानी के ऊपर उछलती रहती हैं. यह उन्हीं की आवाज है,’’ गौतम बोला.

आशना के बालों से उठती भीनीभीनी मादक खुशबू से गौतम को बिन पीए ही अजीब सा नशा हो रहा था. उस ने पूछा, ‘‘तुम कौन से ब्रैंड का तेल लगाती हो?’’

आशना मुसकरा दी और फिर उस ने धीरेधीरे गौतम की जांघ पर अपना सिर रख दिया. गौतम उस के लंबे बालों को हाथों में ले कर

कभी सूंघता तो कभी सहलाता. मौसम भी खुशनुमा था. वह आशना के चेहरे पर देर से निगाहें टिकाए था.

आशना ने पूछा, ‘‘क्या देख रहे हो?’’

‘‘तुम्हारे मृगनयनों को.’’

‘‘अब चलें? शाम हो चली है. अंधेरा होने से पहले घर पहुंचना होगा,’’ कह वह धीरेधीरे उठ खड़ी हुई और अपनी साड़ी की सलवटें ठीक करने लगी. आसमानी रंग की प्लेन साड़ी उस पर अच्छी लग रही थी. तभी हवा का एक झोंका आया और उस के आंचल ने उड़ कर गौतम के चेहरे को ढक लिया.

गौतम ने उस के पल्लू को पकड़ लिया तो वह बोली, ‘‘छोड़ दो आंचल.’’

‘‘मौसम है आशिकाना और आज प्यार करने को जी चाह रहा है.’’

‘‘छोड़ो, देर हो रही है.’’

‘‘चलो आज छोड़ देता हूं,’’ कह आशना की कमर के खुले हिस्से को अपनी बांह के घेरे में ले कर उसे कस कर अपनी ओर खींच लिया और फिर सट कर दोनों बाइक की तरफ चल पड़े.

गौतम और आशना की इन हरकतों को थोड़ी ही दूर बैठा एक दंपती देख रहा था. डाक्टर प्रेम लाल और डाक्टर शीला माथुर. उस पार्क से थोड़ी दूर उन का अस्पताल था. कभीकभी अस्पताल से छूटने पर अपना तनाव और थकान कम करने के लिए वे भी इसी झील के किनारे बैठते थे.

उन दोनों प्रेमियों के जाने पर शीला बोलीं, ‘‘मैं इस लड़के को जानती हूं. कुछ दिनों तक मैं उस के महल्ले में रही थी. एकदम आवारा लड़का है. अमीर बाप का बिगड़ा लड़का है. कालेज में एक ही क्लास में 3 साल से फेल होता आ रहा है और नईनई लड़कियों को फंसाता है. एक लड़की ने इस के दुष्कर्मों के चक्कर में पड़ कर आत्महत्या का भी प्रयास किया था.’’

डाक्टर प्रेम ने कहा, ‘‘छोड़ो, हमें क्या लेनादेना है इन लोगों से.’’

इस घटना के करीब 4-5 महीने बाद डाक्टर दंपती की नाइट ट्यूटी थी. अचानक एक औटोरिकशा से एक दंपती ने एक लड़की को सहारा दे कर उतारा. वे उस लड़की के साथ इमरजैंसी रूम में डाक्टर के पास गए. औरत बोली, ‘‘डाक्टर साहब, यह मेरी बेटी है. आज दोपहर से ही इस के पेट में बहुत दर्द हो रहा है और ब्लीडिंग भी हो रही है.’’

डाक्टर ने लड़की का ब्लड प्रैशर चैक किया और तुरंत फोन पर कहा, ‘‘डाक्टर शीला, आप तुरंत यहां आ जाएं. एक इमरजैंसी केस है.’’

2 मिनट के अंदर ही स्त्रीरोग विशेषज्ञा शीला वहां आ गईं. उन्होंने रोगी को बैड पर लिटा कर परदा लगा दिया. कुछ देर बाद वे बोलीं, ‘‘इसे तो बहुत ज्यादा ब्लीडिंग हो रही है. फौरन औपरेशन थिएटर में ले जाना होगा… मु झे लगता है औपरेशन करना होगा.’’

औपरेशन का नाम सुन कर उस लड़की के मातापिता घबरा उठे. पिता ने पूछा, ‘‘डाक्टर साहिबा, खतरे की कोई बात तो नहीं है?’’

‘‘अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है. आप लोग ओटी के बाहर इंतजार करें,’’ कह वे अपने पति डाक्टर प्रेम के साथ औपरेशन थिएटर में गईं.

थोड़ी देर बार एक नर्स ने बाहर आ कर पूछा, ‘‘इस लड़की के गार्जियन आप लोग हैं?’’

उस के पिता उठ कर बोले, ‘‘हां, मैं उस का पिता हूं.’’

नर्स ने एक पेपर देते हुए कहा, ‘‘आप जल्दी से इस पर साइन कर दें, लड़की का औपरेशन करना है, अभी तुरंत.’’

‘‘क्या बात है सिस्टर?’’

‘‘अभी बात करने का वक्त नहीं है. बाकी बातें औपरेशन के बाद डाक्टर से पूछ लेना. आप को डिस्चार्ज से पहले एक बोतल खून ब्लड बैंक में जमा कराना होगा. अभी हम अपने स्टौक से खून चढ़ा रहे हैं.’’

उस आदमी ने ब्लड बैंक में जा कर अपना खून जमा किया और वापस आ कर ओटी के बाहर बैंच पर बैठते हुए पत्नी से कहा, ‘‘पता नहीं बैठेबैठाए आशना बिटिया को अचानक क्या हो गया है?’’

औपरेशन टेबल पर डाक्टर ने आशना से पूछा, ‘‘क्या यह उसी लड़के के साथ का नतीजा है, जिस के साथ अकसर तुम लेक पार्क में जाती हो?’’

आशना ने रोते हुए कहा, ‘‘जी डाक्टर, पर मेरी एक गलती का अंजाम यह होगा, मैं नहीं जानती थी. आप मेरी जान बचाने की कोशिश न करें, मुझे मरने दें.’’

‘‘मैं तुम्हारी तरह बेवकूफ और गैरजिम्मेदार नहीं हूं… मैं अपनी ड्यूटी जानती हूं.’’

‘‘पर मैं इस कलंक के साथ जी कर क्या करूंगी? अगर मु झे बचा भी लेती हैं तो भी मैं सुसाइड करने वाली हूं… मेहरबानी कर मुझे मरने दें.’’

‘‘तुम घबराओ नहीं, मैं तुम्हें बदनाम नहीं होने दूंगी और तुम यहां से सहीसलामत घर जाओगी. आगे अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना और अपने मातापिता की इज्जत का खयाल करना.’’

‘‘जी, डाक्टर.’’

‘‘बस, अब तुम पर ऐनेस्थीसिया का असर होगा और मैं औपरेशन करने जा रही हूं.’’

करीब 2 घंटे बाद डाक्टर शीला ओटी से बाहर आईं. उन्हें देखते ही आशना के मातापिता दौड़े आए. पूछा, ‘‘अब कैसी है हमारी बेटी?’’

‘‘आप बेटी को सही समय पर अस्पताल ले आए वरना और ज्यादा ब्लीडिंग होने से जान का खतरा था. आप की बेटी का औपरेशन सफल रहा और खतरे की कोई बात नहीं है.’’

‘‘पर उसे हुआ क्या है?’’ आशना के पिता ने पूछा.

‘‘आप मेरे साथ मेरे कैबिन में आएं.’’

दोनों मातापिता डाक्टर के कैबिन में गए, तो डाक्टर शीला ने पेशैंट के पिता से पूछा, ‘‘आप ने फाइल में बेटी की उम्र 17 साल लिखी है यानी वह नाबालिग है… माफ करना आशना गर्भवती थी?’’

‘‘पर यह कैसे संभव है?’’

‘‘यह तो आप की बेटी ही बता सकती है. उस का एक फर्टलाइज्ड एग गर्भाशय तक नहीं पहुंच सका और फैलोपियन ट्यूब में ही ठहर गया था. जब गर्भ बड़ा हो गया तो उस की नली फट गई और ब्लीडिंग होने लगी. उस नली को हम ने काट कर निकाल दिया है. अब चिंता की कोई बात नहीं है.’’

आशना के मातापिता ने आश्चर्य से डाक्टर की तरफ देखा और फिर शर्म से सिर  झुका लिया.

आशना को 1 सप्ताह बाद डिस्चार्ज होना था. डाक्टर शीला की सहायक ने पूछा, ‘‘डिस्चार्ज फाइल में क्या लिखें मैम? आप ने कहा था डिस्चार्ज फाइल तैयार करते समय आप से पूछने को?’’

‘‘पेशैंट को देने वाली डिस्चार्ज स्लिप पर तुम पूरा सच लिखना और हौस्पिटल की फाइल में लिखना दाहिनी साइड की फैलोपियन ट्यूब फट गई थी, जिसे औपरेशन कर निकाल दिया गया है. आगे एक नोट लिख देना कि डिटेल रिपोर्ट्स औफ सर्जरी गायनोकोलौजिस्ट की फाइल में है और यह डिटेल पेपर्स की फाइल मुझे दे देना, साथ ही यह बात बस हमारे बीच ही रहे. तुम भी एक औरत हो, समझ सकती हो.’’

शीला के पति डाक्टर प्रेम भी तब तक वहां आ गए थे. उन्होंने कहा, ‘‘शीला, यह तुम क्या कर रही हो? हौस्पिटल फाइल में ही औपरेशन नोट्स रहने दो. तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए, पेशैंट के प्रति हमदर्दी का यह मतलब नहीं है कि तुम अस्पताल के नियम तोड़ दो.’’

‘‘तरीके से तो आप सही कह रहे हैं, पर इस नाबालिग बच्ची की नाजायज प्रैगनैंसी की खबर और लोगों के बीच फैल सकती है जिस से लड़की की बदनामी होगी. इस के भविष्य पर भी प्रतिकूल असर हो सकता है. मैं डाक्टर के साथ एक औरत भी हूं और इस लड़की का दर्द समझ सकती हूं.’’

फिर वे आशना के पिता से बोलीं, ‘‘मुझे आप की फाइल में सच लिखना पड़ेगा. यह फाइल आप की है, आप चाहें तो इसे नष्ट करें या रखें. आप की बेटी के हित में जितना मुझसे हो सकता था, मैंने वही किया है.’’

मां ने पूछा, ‘‘आशना भविष्य में मां बन सकती है या नहीं?’’

‘‘हां, बन सकती है. उस की एक फैलोपियन ट्यूब बिलकुल सही सलामत है.’’

‘‘पर इसके औपरेशन का दाग तो पेट पर रह जाएगा? शादी के बाद कहीं पति को कोई शक की संभावना तो नहीं रहेगी?’’

‘‘मैं ने लैप्रोस्कोपिक विधि से औपरेशन किया है. बहुत ही छोटा सा चीरा लगाया है. उस के पेट पर कोई बड़ा निशान नहीं रहेगा. जो है वह भी जल्दी भर जाएगा. आशना की शादी में अभी काफी समय बाकी है. मैं ने उस से बात की है. वह अपनी भूल पर शर्मिंदा है और बता रही थी कि अब वह पढ़ाई पर सीरियस होगी और एमए करने के बाद ही शादी करेगी.’’

आशना जब डिस्चार्ज हो कर घर आई तो उस ने मां से कहा, ‘‘अब मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रही… जी कर क्या करूंगी?’’

‘‘खबरदार जो ऐसी बेवकूफी की बातें दिमाग में लाई. इसे एक हादसा समझ कर भूल जाओ. आगे किसी से इस की चर्चा भी नहीं करना. पति से भी नहीं. मन लगा कर पढ़ोलिखो. हम तुम्हारी शादी धूमधाम से करेंगे.’’

फिर मां ने अपने पति से कहा, ‘‘आप अब आशना से इस बारे में कुछ न कहेंगे. मैंने उस से बात की है. वह अपनी भूल पर बहुत शर्मिंदा है. वह अब पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगाएगी.

‘‘भला हो उस लेडी डाक्टर का जिस ने हमारी इज्जत बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.’’

इस घटना के 7 साल बाद आशना फिर डाक्टर शीला के अस्पताल में आई. इस बार वह शादीशुदा थी और अपने पति के साथ थी. वह गर्भवती थी और चैकअप के लिए आई थी. शीला ने उस के पति को बाहर इंतजार करने के लिए कहा और आशना को अंदर बुलाया.

डाक्टर शीला ने आशना से पूछा, ‘‘तुम्हारे पेट का दाग लगभग मिट गया है. अभी कौन सा महीना चल रहा है?’’

‘‘5वां महीना चल रहा है मैम.’’

चैक करने के बाद डाक्टर शीला बोलीं, ‘‘बच्चा एकदम ठीक है. बस अपने खानपान पर ध्यान देना और थोड़ा ऐक्टिव रहने की कोशिश करना. इस से नैचुरल प्रसव में आसानी होगी. कंप्लीट रैस्ट की कोई जरूरत नहीं है. तुम्हारे पति बाहर बेचैन हो रहे हैं, तुम से बहुत प्यार करते हैं न?’’

‘‘जी मैम, मैं ने अपने पास्ट की बात उन्हें नहीं बताई है. मैं तो आत्महत्या करने की सोच रही थी, आप ने मुझे मरने से बचा लिया और मेरा भविष्य भी संवार दिया. आप के आभार के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं,’’ और उस की आंखें भर आईं.

‘‘यह गुड न्यूज जल्दी से अपने पति को दो,’’ डाक्टर शीला बोलीं.

आशना कैबिन से बाहर निकली तो उस की आंखें अभी तक गली थीं. उस के पति ने पूछा  ‘‘क्या बात है आशना, सब ठीक है न? तुम्हारी आंखें गीली क्यों हैं?’’

‘‘ये खुशी के आंसू हैं… जच्चाबच्चा दोनों ठीक हैं. मिठाई खिलाना न भूलना आशना,’’ डाक्टर शीला ने कहा.

आशना और उस के पति दोनों ने हंस कर डाक्टर को थैंक्स कहा.

मैं अपना लिवर दान करना चाहती हूं ऐसा करने से मेरे स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

सवाल

मैं 46 वर्षीय घरेलू महिला हूं. मेरे भाई को लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत है. मैं उसे अपना लिवर दान करना चाहती हूं. ऐसा करने से मेरे स्वास्थ्य और जीवन पर तो कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा?

जवाब

लिवर ट्रांसप्लांट के लिए जीवितदाता से लिवर का केवल एक भाग ही लिया जाता है पूरा लिवर नहीं. किसी भी इंसान को जीवित रहने के लिए 25% लिवर ही काफी है. हम 75% प्रतिशत लिवर निकाल सकते हैं. लिवर का जितना भाग निकाला जाता है

वह छह सप्ताह में फिर से विकसित हो कर सामान्य आकार ले लेता है. लिवर दान करने के लिए दाता का शारीरिक और मानसिक रूप से फिट होना बहुत जरूरी है.

दाता से लिवर लेने के पहले सारे टैस्ट किए जाते हैं कि लिवर लेने के बाद वह फिर से विकसित होगा या नहीं. सारे टैस्ट पौजिटिव आने के बाद ही दाता से लिवर लिया जाता है.

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