चीयर गर्ल: भाग 1- फ्रैंड रिक्वैस्ट एक्सैप्ट करने के बाद क्या हुआ उसके साथ

जीहां मैं चीयर गर्ल हूं उस की जिंदगी में और यह भूमिका मैं पिछले 3 वर्षों से निभा रही हूं. आप सोच रहे होंगे यह क्या अजीब सा नाम या रिश्ता है. यह रिश्ता तो है ही नहीं बस यह एक अजीब सा एक पागलपन है जो मैं सबकुछ जानते हुए भी कर रही हूं और वह अपने को खास अनुभव करने के लिए करता है.

आज भी याद है मुझे वह दिन, शायद 15 जनवरी की बात होगी, एक फ्रैंड रिक्वैस्ट आई थी, कुछ म्यूच्युअल फ्रैंड भी थे इसलिए मैं ने स्वीकार कर ली. रिक्वैस्ट होते ही, उधर से मैसेज आरंभ हो गए, मैं ने भी जवाब देने आरंभ कर दिए.

मैसेज आया, ‘‘तुम बहुत खूबसूरत हो.’’

मैं ने लिखा, ‘‘हा… हा… हा…’’

मैसेज आया, ‘‘अरे बाबा सच बोल रहा हूं, तुम्हारा पति बहुत खुशहाल वाला है.’’

मैं ने फिर लिखा, ‘‘हा… हा… हा… पर इस हा… हा… में अंदर का दर्द, आंखों में आंसू बन कर आ गया,’’ उस ने नंबर मांगा.

मैं ने लिखा, ‘‘इतनी जल्दी? अभी तो मैं तुम को जानती भी नहीं… बस यह जानती हूं कि हम एक ही स्कूल में पढ़े थे.’’

मैसेज आया, ‘‘तभी तो मांग रहा हूं, जानने के लिए पर खूबसूरत लड़कियों के नखरे होते हैं, कोई बात नहीं रहने दो.’’

मैं ने मन में सोचा कि कोई किशोरी तो नहीं हूं और न ही यह मेरा कोई आशिक, 2 सभ्य लोग क्यों नहीं नंबर ऐक्सचेंज कर सकते हैं?

न जाने बातों में क्या कशिश थी कि मैं ने सहर्ष नंबर दे दिया. 1 मिनट में ही मेरे मोबाइल की स्क्रीन पर नंबर फ्लैश हो रहा था. कुछ सोचते हुए मैं ने फोन उठा लिया. उधर से एक बहुत बेलौस हंसी सुनाई दे रही थी एक ऐसी हंसी जिस के लिए मैं तरस रही थी.

वह बोला, ‘‘बस इसलिए फोन किया कि कोई गुंडा नहीं हूं, एक सीधासादा इंसान हूं और तुम सच में बहुत खूबसूरत हो.’’

मैं थोड़ा सा शरमा गई पर मन ही मन खुश भी हो रही थी. बस ‘‘थैंक यू’’ बोल पाई थी और फोन काट दिया. फिर कुछ देर बाद व्हाट्सऐप पर उस का मैसेज था, ‘‘थैंक्स फौर टौकिंग ऐंड ब्यूटीफुल पिक्चर औफ मम्मी ऐंड डाटी.’’

मैं एक शादीशुदा 40 वर्षीय औरत हूं जो अपनी बिखरी हुई शादी से गुजर रही हूं. मेरा पति मेरा हो कर भी मेरा नहीं है, यह बात मुझे बहुत सालों से पता है पर समाज और बच्चों की खातिर मैं इस रिश्ते को निभा रही हूं. पति मुझे समाज में अपना नाम दे रहा है और मैं उस के मकान को घर बना कर संजो रही हूं.

प्यार जैसा बहुत कुछ था हमारे रिश्ते में शादी के पहले 2 वर्षों तक, फिर जिम्मेदारियों

के बोझ तले पता नहीं क्या हो गया कि शादी रह गई और प्यार काफूर हो गया.

आज पति का देर से आना भी नहीं खल रहा था. अपने नए फेसबुक फ्रैंड का बहुत देर तक प्रोफाइल चैक करती रही.

इसी बीच मैं ने देखा उस ने मेरी लगभग सब पिक्चर्स को लाइक कर दिया है. हर पिक्चर पर बहुत प्यारे कमैंट दिए हैं. मन ही मन में 40 वर्ष की उम्र में भी 14 वर्ष की किशोरी की तरह इतरा रही थी.

फिर जब बच्चे इधरउधर ट्यूशन इत्यादि जाते हम रोज फोन पर बात करते. उस की बातों ने मेरी जिंदगी को पंख लगा दिए, खुद को खास महसूस करने लगी, फिर से एक औरत की तरह महसूस करने लगी. बहुत दिनों बाद पार्लर का मुंह देखा पर हर कार्य कराते हुए उस का चेहरा ही सामने था.

हम दोनों जब भी फोन पर बात करते वह यही बोलता कि मैं कितनी खूबसूरत हूं और इस उम्र में भी कितना मैंटेन कर रखा है. पर उस की बातों से एक अजीब सा डर भी मन में समा गया क्योंकि आईना उस की बातों की गवाही नहीं

देता था.

देखतेदेखते 2 माह बीत गए और वह बारबार मिलने के लिए दबाव बना रहा था. मैं मिलने के लिए उत्सुक थी पर फिर भी डर रही थी फिर कहीं जो आकर्षण मेरी तसवीरों ने पैदा किया है वह मिलने के बाद खत्म न हो जाए. फिर भी हम ने मार्च में मिलना निश्चित किया. उस ने कहा साड़ी उस की पसंदीदा ड्रैस है.

बच्चों के जाने के बाद बहुत देर तक अलमारी खोल कर खड़ी रही, फिर फिरोजी रंग की साड़ी निकाली और उस से मेल खाते कानों के बूंदे, बहुत देर तक तैयार होती रही. जब गहरे गुलाबी रंग की लिपस्टिक लगा रही थी तो आईने में खुद को देख कर संतुष्ट हो गई.

दिल धकधक कर रहा था पर फिर भी वहां चली गई. एक सफेद कार मेरी बाजू में आ खड़ी हो गई. अंदर वही बैठा था. अपनी तसवीर से अधिक आकर्षक. मेरे बैठते ही उस ने दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाया. मैं ने भी हाथ मिलाया और फिर वही मदमस्त हंसी.

वह ठहाके पर ठहाके लगा रहा था. घरपरिवार की बातें इत्यादि. मैं हवा की तरह हलका महसूस कर रही थी बहुत सालों बाद. उस ने रेस्तरां के सामने कार रोकी और मुझ से बोला, ‘‘मैडम क्या और्डर करूं?’’

मैं ने बोला, ‘‘कुछ भी कर दो.’’

कुछ स्टार्टर्स आए, वह बीचबीच में कनखियों से मुझे देख रहा था. मेरा चेहरा लाल हो रहा था. मेरी स्थिति भांपते हुए वह बोला, ‘‘इतनी क्यों शरमा रही हो? मैं क्या तुम्हें पसंद करने आया हूं? हम तो ऐसे ही 2 दोस्तों की तरह मस्ती करने आये हैं.’’

मुझे अपने गंवारूपन पर शर्म आ रही थी. विवाह से पहले कुछ घर के माहौल के कारण और कुछ अपने दब्बूपन के कारण कभी कोई पुरुष मित्र नहीं बनाया. विवाह मांबाप की मरजी से हुआ और फिर जिंदगीरूपी चक्की में पिस गई.

खाने के पश्चात कार में बैठ कर हम यों ही सड़कें नापने लगे. फिर यह क्या एक अनजनी सुनसान सड़क पर जाते ही वह मेरे शरीर से खेलने लगा. मैं थोड़ा सा विरोध करने लगी तो वो धीमे से बोला, ‘‘यह क्या बच्चों की तरह व्यवहार कर रही हो… मुझे ये नखरे नहीं चाहिए.’’

मैं थोड़ा सा कन्फ्यूज हो गई और उस के साथ एक असुरक्षा की भावना भी कि कहीं यह मुझे छोड़ कर न चला जाये.

मैं कुछ झिझकते हुए बोली, ‘‘मैं इस के लिए तैयार नहीं थी.’’

वह बिना कुछ कहे अपने हिसाब से मेरे शरीर पर हाथ फेरता रहा और वही वाक्य दोहराता रहा जो अकसर पुरुष इस स्थिति में दोहराते हैं.

रेत से फिसलते रिश्ते: भाग 2- दीपमाया को कौनसा सदमा लगा था

लेखिका- शोभा बंसल

दीपमाया ने अपनी कजरारी आंखों को अपनी लंबी पलकों की आड़ में छिपाते हुए कहा कि वह विवाहित है, सुहागन भी पर तलाकशुदा नहीं. पर वहां ज्यादातर लोग यह समझते हैं कि माया मैम विधवा हैं और उसे बेहद इज्जत व मान देते हैं.

“मिली, तुम तो जानती हो कि गणित मेरा फेवरेट सब्जैक्ट था.”

“हां याद है,” मैं ने कहा, “मैं तो सारी इक्वेशन तुम्हारी सहायता से ही सुलझा पाती थी.”

यह सुनते ही दीपमाया ने हताशा से कहा, “पर मिली, मैं तो यहीं मात खा गई. रिश्तों के समीकरण/इक्वेशन समझ ही न पाई. पतिपत्नी से जुड़े सवालों के जवाब ढूंढने में ही उलझ कर रह गई. वहां गोवा में तुम थीं नहीं, तो किस की हैल्प लेती, किस से अपनी पीड़ा शेयर करती?” दीपमाया की आंखें भर आईं.

“अब तुम्हारी प्रेम कहानी में गोवा कहां से आ गया?” मैं ने पूछा.

उस ने बताया, “एक दिन हम दोनों (रोजर और दीपमाया) अपनेअपने परिवार वालों का कड़ा विरोध देख घर से पैसागहना ले गोवा भाग आए. यहां रोजर के एक खास मित्र के परिवार ने हमें पनाह दी और हम दोनों की शादी करवा दी. उधर मेरे घरवालों ने जीतेजी मेरा पिंडदान कर सारे संपर्क तोड़ दिए.

“जब शादीब्याह में बड़ों का आशीर्वाद न मिले, तो बद्दुआ तो लग ही जाती है न. इस बात का एहसास मुझे आज तक होता है.

“रोजर मेरी पीड़ा को समझता था. वह मुझे हर तरह से खुश रखने की कोशिश करता. हम दोनों ने घर गृहस्थी की शुरुआत मिलजुल कर की. मैं गणित की ट्यूशन लेने लगी तो रोजर रात को क्लब वगैरह में गिटार बजाता. मैं उस का साथ देने के लिए वहां गाना गाती.

“जल्दी ही रोज़र अपनी जिंदादिली व खुशमिजाजी के चलते गोवा के सोशल सर्कल में फेमस हो गया और धीरेधीरे हम दोनों ने अपना बार व रैस्तरां खोल लिया. इस सब सफलता में हम दोनों अपनेअपने परिवार वालों की बेरुखी भूल कर अपने में मस्त जीवन जीने लगे.

“तभी एक और खुशी आई. मैं प्रैग्नैंट हो गई. इसी प्रैग्नैंसी ने सब बदल दिया.”

दीपमाया ने आगे बताया, “प्रैग्नैंसी में मैं ट्विंस कैरी कर रही थी. इस से मेरा शरीर बेडौल हो गया. हारमोंस के खेल ने मूड स्विंग्स कर दिए और डाक्टर ने मुझे कंप्लीट रैस्ट बता दिया. मायके और ससुराल वाले तो पहले से ही मुंह मोड़े बैठे थे.

“बेचारे रोजर से जितना हो सकता, मेरी सहायता करता और हर वक्त मेरा ध्यान रखता. घर और काम ने उस की सोशलाइजिंग को भी प्रभावित करना शुरू कर दिया. शायद कहीं उस के भीतर मुझे ले कर चाम और चाहत की लड़ाई भी चल रही थी.”

दीपमाया ने पश्चात्ताप के मूड में मिली को देखते हुए बताया कि, “शायद, मेरे से भी कुछ भूल हो गई. वह बिना शिकायत मेरी केयर करता रहा और मैं बिना उस की तकलीफ समझे उस पर निर्भर होती गई. मैं ने उस के हैल्पिंग एटीट्यूड को टेकन फौर ग्रांटेड लेना शुरू कर दिया था. जबकि मुझे अपने प्रैग्नैंसी पीरियड को ब्रेवली लेना चाहिए था. यह तो हर स्त्री की लाइफ का कौमन फीचर है.

“मेरे मूड स्विंग्स और मेरे गुस्से से रोजर आहत हो जाता. लेकिन पलट कर जवाब न देता. अब रोजर ने चुप्पी लगानी शुरू कर दी.

“बस, यहीं से मेरे से गलती हो गई. मैं ने उस के इस चेंज को अनदेखा कर दिया.

“जिस रोजर को पाने के लिए मैं ने अपना मायका भुला दिया था, उसी को मैं मां बनते ही नजरअंदाज करने लगी. घर का सारा काम नौकरचाकर के ऊपर छोड़ दिया. तिनकेतिनके जोड़, सजासंवारा घर बेरौनक होने लगा. रोज़र ने कहा भी कि वह मेरा साथ पाने को तरस गया है. वह अकसर शिकायत करता कि मेरी बौडीशेप ख़राब हो गई है. मुझे अपनी फिटनैस पर भी ध्यान देना चाहिए.

“शायद, उसे तब मुझे अपने साथ ले जाने में शर्म आती थी, सही भी था. वह तो अभी भी उतना ही स्मार्ट और यंग था न. मैं बच्चों की परवरिश का बहाना कर देती और वक्त की कमी का तकाजा देती. पत्नी का फ़र्ज़ भूलती जा रही थी मैं.

“अब हमें मिले महीने हो जाते. जब मैं डिमांड करती, तो रोजर कहता कि ‘दीप तुम्हारे साथ अब वह मजा नहीं आता, तुम्हें लेडी डाक्टर को दिखाना चाहिए.’ मैं क्या कहती कि डिलीवरी के बाद ही डाक्टर ने उसे सही ढंग से ब्रेस्ट फीडिंग करवाने और केगल ऐक्सरसाइज करने की पूरी जानकारी दी थी पर मैं ने इन सब को इग्नोर कर दिया था.

“देखो न, आज उसी का तो खमियाजा भुगत रही हूं.”

टेबल पर ठंडी होती काली कौफी का सिप लेते, उसे शायद अपने जीवन के कड़वाहटभरे लम्हे को शेयर करना आसान लगा.

सो, उस ने अपनी बात जारी रखते आगे कहा, “फिर मैं ने महसूस किया कि रोजर ज्यादा समय घर से बाहर ही बिताने लगा था. एक दिन मैं ने रोजर को गोवा के साउथ बीच पर एक हीरोइन के साथ फ्लर्टिंग करते देखा, तो मैं ने हंस कर इग्नोर कर दिया. यह बात भी रोजर को चुभ गई. उस ने मेरे ‘आई डोंट केयर एटीट्यूट’ को अपने प्रति बेपरवाही समझी. वह चाहता था कि मैं उस से पत्नी की तरह लड़ाईझगड़ा करूं और मनाऊं. उस ने मुझे ताना भी दिया, ‘माया, बच्चे पैदा कर तुम्हारा मकसद पूरा हो गया है. सो, अब तुम्हारे लिए मैं यानी रोजर केवल पैसा कमाने की मशीन बन गया हूं.’

“यह मेरे लिए अलार्मिंग साइन था.

“आईने में अपना बेडौल शरीर, सूजी आंखें और उलझे बाल देख मैं हैरान रह गई कि यह वही दीपमाया है जिस पर न केवल रोजर, बल्कि पूरा कालेज लट्टू था. मुझे अपने बेपरवाह मिजाज और लापरवाही पर बहुत गुस्सा व शर्मिंदगी महसूस हुई.

“सो, मैं ने सब बदलने का फैसला किया. जिम जाना शुरू किया. डायटीशियन से बात की. प्लास्टिक सर्जन से पूरे फिगर का मेकओवर करवाया और फिर अपनी पुरानी फिगर वापस लाने के लिए मुझे एक साल कड़ी मेहनत करनी पडी.

“वह बेहद ही मुश्किल वक्त था. पर अपने रोजर को वापस पाने के लिए मुझे कुछ भी करना मंज़ूर था. हम दोनों ने मुसीबत के पलों में हंसतेमुसकराते हुए तिनकातिनका जोड़ घर और बिजनैस खड़ा किया था. सो, तब मेरा एक ही ध्येय था अपने रोजर को अपने परिवार में उचित स्थान दिलवाना. पर इस सब में बहुतकुछ बदल चुका था और जिंदगी मेरे हाथ से रेत की तरह फिसल रही थी जिसे मैं देख ही न पाई.”

मिली ने देखा कि अचानक दीपमाया की आंखें पनीली हो उठीं और वह क्षितिज में विचरण करने लगी मानो अपना खोया अच्छा पल ढूंढ रही हो या उस सौतन को, जिस ने उस के जीवन के रंग सोख लिए थे.

मिली ने माया को झकझोर कर पूछा, “कौन थी वह सौतन जिस ने तुम्हारा सुखचैन छीन लिया, माया?”

उसे किस ने मारा: क्या हुआ था आकाश के साथ

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रेत से फिसलते रिश्ते: भाग 1- दीपमाया को कौनसा सदमा लगा था

लेखिका- शोभा बंसल

“मौम, पता है कल वैलेंटाइन डे पर माया मैडम ने क्या बढ़िया पार्टी अरेंज की थी. एकदम परफैक्ट और खाना..वाह बहुत टेस्टी था. मुझे तो आप याद आ गईं. आप की तरह ही सुंदर हैं. उन के लंबे बाल हैं और कजरारी आंखें, बिलकुल पंजाबी ब्यूटी. मैं ने जब उन्हें बताया कि मेरी मम्मी भी उन की तरह ही एकदम परफैक्ट वूमेन हैं- अच्छा खाना पकाना, नाचना, गाना, पार्टी अरेंजर, वन इन औल. जब मैं ने माया मैम को बताया कि हम बच्चों की परवरिश के लिए आप ने अपना अच्छाभला कैरियर दांव पर लगा दिया था तब से तो वे आप से मिलने को उत्सुक हैं.”

मेरी बेटी मिनी काठमांडू यूनिवर्सिटी से एमडी कर रही है. घर से इतनी दूर अपने बच्चों को भेजना सब के लिए ही मुश्किल होता है और जब आज मैं ने मिनी को वीडियो कौल पर यों चहकते, मुसकराते देखा तो हम सब के मन को सुकून मिल गया. शुक्र है वह घर से इतनी दूर परदेश में पीजी में एडजस्ट हो गई है. अब उस की बातें सुन लग रहा था कि सारा क्रैडिट तो उस की वार्डन मिसेज माया को जाता है, जिस ने मिनी की उदासी व अकेलेपन को दूर किया था. अब जब भी मिनी कौल करती है तो उस की जबान पर, बस, माया मैम ही होता है.

जब से मिनी ने अपनी माया मैम को बताया है कि उस की मम्मी ने ही उस के सारे बैग्स डिजाइन किए हैं तब से पता नहीं उस की माया मैम ने मेरे लिए अपने मन में क्या छवि बना ली थी. अब हम दोनों ही एकदूसरे को मिलने को उत्सुक थीं.

एक दिन मिनी जिद करने लगी कि मैं उसे और उस की माया मैम से मिलने आ जाऊं.

मैं ने हंस कर कहा, “हम आएंगे.”

“न-ना पापा को मत लाना. वे तो उस पर लट्टू हो जाएंगे,” मिनी ने अपने पापा को छेड़ा.

उस के पापा ने भी मेरा हाथ पकड़ कर पलटवार किया, “हम दोनों का तो फेविकोल का जोड़ है, कोई तोड़ नहीं सकता.”

तभी पीछे से बेटा चिललाया, “मैं आ जाता हूं तुम्हारी माया मैम से मिलने.”

“बंदर, वे मम्मी की उम्र की हैं. तू अपनी शौर्ट फिल्म की शूटिंग और अपनी हीरोइनों में ही बिजी रह,” मिनी ने अपने छोटे भाई से कहा.

जल्दी ही हमें मिनी के पास काठमांडू जाने का मौका मिल गया. मेरे पति और बेटा अपनी शौर्ट फिल्म की शूटिंग के लिए नेपाल जा रहे थे, मैं भी संग हो ली. वे दोनों मुझे काठमांडू में होटल में अकेले छोड़ अपने काम के सिलसिले में आगे निकल गए. तो मैं ने भी सोचा कि क्यों न मैं मिनी के पास जल्दी जा कर उस को अच्छा सा सरप्राइज दे दूं.

सफर की सारी थकान मिनी के पैगोडा शेप की पीजी बिल्डिंग को देख दूर हो गई. वहां पहुंच कर पता चला, मिनी तो अभी तक अपने हौस्पिटल में ही है. तो मैं ने सोचा, उस के आने तक क्यों न उस की माया मैम से ही मिल लूं और थोड़ा सा पीजी बिल्डिंग भी घूम कर देख लूं. मौडर्न व प्राचीन आर्ट का सही तालमेल देख़ मेरी आंखें फटी की फटी रह गईं. लगता है मेरी मिनी की माया मैम का इंटीरियर का काफी अच्छा टेस्ट है.

तभी मेरी निगाह सामने बैठी हमउम्र महिला पर पड़ी. शायद वह भी अपनी बेटी से मिलने आई थी. जैसे ही हम दोनों की निगाहें मिलीं, हम दोनों एकदूसरे को जानेपहचाने से लगे. हम दोनों इकट्ठे चिल्लाए, ‘अरे दीपमाया, तुम.’ और दीपमाया मुझे देख चिल्लाई, ‘अरे मिली, तुम.’ हम दोनों की आंखें खुशी से भर गइं और भाग कर हमने एकदूसरे को हग कर लिया. हम एकदूसरे का हाथ छोड़ना ही नहीं चाहते थे कि कहीं फिर से न बिछुड़ जाएं.

फिर बात को आगे बढ़ाते मैं ने कहा, “मेरी बेटी मिनी इस पीजी में रहती है. उस से और उस की माया मैम से मिलने यहां आई हूं. यार, तू बता, तू यहां कैसे?”

दीप हंसने लगी, “मैं ही तो हूं दीपमाया, माया मैम. इस पीजी को मैं ही तो चलाती हूं.”

“तो, तुम हो वह हसीन बाला जिस पर मेरी बेटी ही नहीं, हमारा पूरा घर लट्टू है,” मैं ने उसे छेड़ते हुए कहा.

करीबकरीब 30 सालों के बाद हम दोनों सहेलियां मिल रही थीं. मैं उस से दिल खोल कर ढेर सारी बातें करना चाहती थी, सो उठते ही पूछा, “कहां गया वह तुम्हारा गिटारिस्ट रोजर. तुम दोनों का प्यार तो हैड ओवर हील था. क्या शादी उसी के साथ की?

“मैं ने तो सुना था, तुम्हारे घर वाले तो इस रिश्ते के सख्त खिलाफ थे. वे तो कटनेकाटने को तलवारें ले आए थे. क्या सच ही? यार, पूरा किस्सा सुना न. अपने पति से भी मिलाना. देखूं तो सही, वे मिस्टर यूनिवर्सिटी अब कैसे लगते हैं?”

यह सुन माया की आंखों में पीड़ा उभरी. इस से पहले कि वह कुछ बताती, मेरी मिनी ‘मौम मौम चिल्लाती मुझ पर लटक गई.

“सर्जन बन रही हो, यह बचपना छोड़ो,” हंसते हुए लाड़ से परे धकेलते हुए मैं ने उस से कहा.

“वाउ मम्मी, आप माया मैडम को पहले से जानती हैं.”

मैं ने मिनी से कहा, “हां, हम दोनों कालेज फ्रैंड्स थीं. अब 30 साल बाद मिल रही हैं. तेरे नाना की पोस्टिंग दूसरी जगह हो गई, तो हमारा साथ छूट गया. तब आज की तरह सोशल मीडिया प्लेटफौर्म तो थे नहीं, सो संपर्क भी टूट गया. अब मिले हैं तो मुझे अपनी प्यारी सखी से ढेर सारी बातें करनी हैं.”

तभी दीपमाया बोली, “हम इन बातों को यहां नहीं, कल तुम्हें आसपास का एरिया दिखाते और यहां के प्रसिद्ध काली हाउस पर कौफी पीते हुए करेंगे. आज तुम मिनी से जीभर बातें कर लो. कल तुम 11 बजे यहीं आ जाना, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.”

अगले दिन मिनी के हौस्पिटल जाने के बाद मैं और माया काठमांडू दर्शन के लिए निकल गए. जितनी दीपमाया मुझे आसपास के दर्शनीय स्थल मंदिर, पगोड़ा वगैरह दिखाने में उत्सुक थी, उस से अधिक तो मैं उस का अतीत जानने को उतावली थी. सो, काली कौफी हाउस में पहुंचते ही टेबल पर इत्मीनान से बैठ मैं अपने को रोक न पाई.

कौफी का और्डर दे मैं ने दीपमाया से रोजर से उस के रिश्ते के बारे में पूछ ही डाला.

“फिर क्या हुआ तुम्हारी लव स्टोरी का,” मेरे मुख से यह सुनते ही दीपमाया की आंखों में पीड़ा व उदासी के बादल उमड़ पड़े.

मैं तुरंत संजीदा हो उठी और उस के हाथ पर हाथ रख उस को आश्वासन दिया और पूछा, “क्या तुम दोनों की शादी नहीं हुई?”

दूरियां: भाग 4- क्या काम्या और हिरेन के रिश्ते को समझ पाया नील

अगले दिन हिरेन जिद करने लगा कि कुछ खरीदारी करते हैं. मैं अधिकतर जींस पहनती हूं तो मु  झे शर्ट, टीशर्ट की दुकान पर ले गया. काम्या वहां पुरुषों के विभाग में शर्ट देखने में व्यस्त थी. उस ने हमें नहीं देखा. बड़ी अजीब फंकी सी शर्ट देख रही थी. खैर, मैं ने नील के लिए एक चैकदार शर्ट खरीदी और बाहर जाने लगी तो काम्या से टकरा गई.

काम्या ने अपनी ली हुई शर्ट दिखाते हुए पूछा, ‘‘यह कैसी शर्ट है?’’

शर्ट चटक औरेंज रंग की थी. मैं व्यक्तिगत तौर पर ऐसी शर्ट पसंद नहीं करती. लेकिन मैं ने उस से कहा अच्छी है और आगे बढ़ गई.

नील की याद इतनी सता रही थी कि बरदाश्त नहीं हो रहा था. आखिर मैं ने फोन किया, लेकिन संपर्क नहीं हो सका.

अगले दिन हमारा काम खत्म हो गया. लेकिन हिरेन ने जानबू  झ कर एक

दिन अधिक रखा था आसपास घूमने का. मु  झे जान कर बड़ी बोरियत हुई. मेरा बिलकुल मन नहीं था एक भी दिन और रुकने का.

जब घर पहुंची तो नील घर पर नहीं था, सोचा उस की शर्ट निकाल कर पहन लेती हूं. मैं ऐसा अकसर करती जब भी उस की नजदीकी का एहसास करना होता था. अलमारी खोलते ही सामने औरेंज रंग की शर्ट दिखी. हाथ में ले कर देखा तो यह वही शर्ट थी जो काम्या ने अपने बौयफ्रैंड के लिए खरीदी थी. अब कहनेसुनने को कुछ नहीं बचा था. स्थिति एकदम साफ थी. एक कागज पर संदेश लिखा:

‘‘मैं तुम्हें छोड़ कर जा रही हूं. अब हमारे रिश्ते में ऐसा कुछ नहीं बचा कि हम साथ रहें,’’ मैं किसी वकील से बात कर के आगे सहेली के घर रहने आ गई.

उस के बाद नील के बहुत फोन आए, लेकिन मैं ने फोन नहीं उठाया. जानती थी उस की आवाज सुन कर रो पड़ूंगी और कमजोर पड़ जाऊंगी. 17 महीनों से एक जिंदा लाश की तरह घूम रही हूं. हिरेन ने बहुत मदद की, दाद देनी पड़ेगी बंदा जितना मेरे साथ धैर्य से पेश आ रहा है कोई नहीं आ सकता. वकील से भी उस ने जोर दे कर समय लिया वरना मैं तो टालती जा रही थी.

नील ने जब मेरा हाथ पकड़ कर दबाया तो मैं अतीत से बाहर निकली.

‘‘ऐसा एकदम से क्या हुआ कि तुम घर छोड़ कर चली गई? कारण जानने के लिए मैं पागल हो गया था… तुम्हारे औफिस के इतने चक्कर लगाए, लेकिन किसी ने अंदर नहीं घुसने दिया. तुम कहां रहने चली गई मैं नहीं जान सका. तुम मेरा फोन नहीं उठाती थी.’’

मैं आहत स्वर में बोली, ‘‘बनो मत, तुम शिमला में काम्या के साथ थे. बस मु  झ से तलाक का इंतजार कर रहे हो उस से शादी करने के लिए.’’

‘‘मु  झे नहीं मालूम तुम किस काम्या की बात कर रही हो… मैं तो बस एक काम्या को जानता हूं जो मेरे औफिस में काम करती है और मु  झे बिलकुल पसंद नहीं है. हर समय मेरे पीछे पड़ी रहती है. मैं शिमला अपने दोस्तों निखिल और सोमेश के साथ गया था… वे बहुत समय से पीछे पड़े थे, लेकिन मैं टाल जाता था. जब तुम ने बताया तुम बाहर जा रही हो तो तुम्हारे बिना मैं भी यहां रह कर क्या करता. मेरे हां कहते ही दोनों ने शिमला का कार्यक्रम बना लिया.’’

‘‘तुम सच छिपाने की कोशिश मत करो. काम्या ने तुम्हें औरेंज रंग की शर्ट तोहफे में दी थी.’’

‘‘तुम पागल हो गई हो. मैं उस बददिमाग लड़की से तोहफा क्यों लूंगा भला? वह शर्ट मैं ने स्वयं खरीदी थी तुम्हें चिढ़ाने के लिए. मु  झे मालूम था उस का रंग और प्रिंट देख कर तुम कितना गुस्सा खाओगी.’’

मैं उठ कर अपने कमरे में चली गई. अब यहां रुकने से कोई लाभ नहीं, पुरानी यादों से बचने

आई थी, लेकिन फिर उसी भंवर में फंस गई. नील को भी यहीं आना था, उस को छोड़ कर जाने का मन नहीं कर रहा था. 2 दिन ही सही, फिर पता नहीं जिंदगी में कभी मिलें न मिलें.

तभी बाहर का दरवाजा खोलने की आवाज आई. उसे मेरी परवाह नहीं लगता है चला गया. जो थोड़ीबहुत उम्मीद थी उसे भी खत्म कर के ही दम लेगा. मैं थोड़ी देर बाद नहाने चली गई, जब बाहर आई तो नील कमरे में मेरा इंतजार कर रहा था.

‘‘तुम एकदम से नहीं दिखाई दी तो मु  झे लगा तुम गुस्सा हो कर चली गई. देखो आज छोटी दीवाली है. मैं कुछ लडि़यां, दीपक और रंगोली के रंग लाया हूं. आखिरी ही सही हम एक बार इस नए घर में पतिपत्नी का नाटक कर के दीवाली मनाते हैं.’’

फिर उस की नजर मु  झ पर ठहर गई. हाथ का सामान नीचे रखते हुए बोला, ‘‘तू सही कहती है मैं तुम्हारी देह देख कर पागल हो जाता हूं.’’

फिर वह एकदम मेरे करीब आ कर मु  झे बांहों में कस कर किस करने लगा. कायदे से मु  झे उसे धक्का दे कर अपने से अलग कर देना चाहिए था, लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकी. कितनी संतुष्टि मिल रही थी उस की नजदीकी से… तन और मन कितने बेचैन थे… तृप्त हो गए.

वह हांफ रहा था, होंठों को अलग करते हुए बोला, ‘‘शादी के इतने साल बाद भी इतनी बेचैनी, कैसे रह सकेंगे एकदूसरे के बिना? यार एक अनजान लड़की ने क्या कह दिया तूने सच मान लिया. मु  झे देखा तूने उस के साथ कभी और वह शर्ट मैं ने स्वयं खरीदी थी. मैं तु  झे रसीद भी दिखा सकता हूं.’’

मैं आहिस्ता से उस से अलग होते हुए सोच रही थी कह तो यह सही रहा है. मैं ने अपना फोन खोल कर देखा हिरेन की कई कौल्स आई हुई थीं.

मेरी सहेली का संदेश था, ‘‘कहां हो यार तुम्हारा बौस पागल हो रहा है.’’

कमाल है हिरेन को क्या परेशानी है… 2 दिन की छुट्टी है. मैं कहीं भी जाऊं उसे क्या… मेरे मन में न जाने क्या आया कि मैं ने निर्मला को फोन मिलाया.

वह बेरुखी से बोली, ‘‘हैलो, बोलो क्या बात है?’’

‘‘कुछ नहीं निर्मलाजी बस दीवाली की शुभकामनाएं देने के लिए फोन मिलाया था.’’

उन की आवाज एकदम बदल गई, ‘‘ओह, अच्छाअच्छा, आप को भी बहुतबहुत शुभकामनाएं. कल पार्टी में नहीं शामिल हुई… हिरेन सर का मूड बड़ा खराब रहा.’’

सुन कर कुछ अजीब लगा. बोली, ‘‘बस तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही थी. इसलिए शोरशराबे से दूर अपनी मम्मी से मिलने आ गई थी. आप ने इतने कम नोटिस पर शिमला जाने का टिकट करवा दिया, आप भी कमाल हो.’’

‘‘इस में कमाल क्या, हमारी ट्रैवल एजेंट्स से सांठगांठ रहती है, 2 टिकट ही तो करवाए थे. उस में कोई दिक्कत नहीं होती, अधिक हो तो थोड़ी परेशानी हो जाती है.’’

‘‘2 टिकट? लेकिन मैं तो अकेले गईर् थी?’’

‘‘तुम्हारी बगल में काम्या बैठ कर गई थी. उस का टिकट भी मैं ने ही करवाया था हिरेन सर के कहने पर. वह सर की ममेरी बहन है… उस ने तुम्हें बताया नहीं?’’

‘‘मैं इतनी थकी हुई थी कि प्लेन में बैठते ही नींद आ गई. इस कारण हमारी खास बात नहीं हुई,’’ फिर थोड़ी देर इधरउधर की बातें

कर के मैं ने फोन काट दिया.

नील मेरे निकट आते हुए बोला, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘हिरेन और काम्या भाईबहन हैं और शिमला में ऐसे नाटक कर रहे थे मानो एकदूसरे को जानते तक नहीं हैं.’’

यह दोनों की चाल थी… शक का बीज बोया. नील तुम्हें और काम्या मु  झे पाना चाहती थी… शिमला में वह मु  झ पर नजर रख रही होगी. जैसे ही मैं ने वह शर्ट खरीदी उस ने भी वैसी एक और खरीद ली होगी. मैं अभी हिरेन के घर जा कर उस की ऐसी धुनाई करूंगा कि साला आगे से मेरी बीवी की तरफ आंख उठा कर देखने की भी हिम्मत नहीं करेगा.’’

‘‘रहने दो नील हमारे रिश्ते में दरार पड़ गई थी तभी दूसरों को सेंध लगाने का मौका मिला,’’ मैं उस के एकदम करीब जा कर बोली, ‘‘मैं आज ही हिरेन की नौकरी से इस्तीफा दे कर कहीं और काम ढूंढ़ लूंगी… अपने बीच किसी तीसरे को नहीं आने देंगे,’’ मु  झे लगा मेरे दिल का अंधेरा छंट गया है और अब हम रात को मिल कर दीए सजाएंगे असली पतिपत्नी की तरह.

दूरियां: भाग 3- क्या काम्या और हिरेन के रिश्ते को समझ पाया नील

जब मैं ने नील को बताया कि मु  झे 5 दिनों के लिए लखनऊ जाना है तो वह बड़बड़ाने लगा. यह मेरे लिए बड़ी परेशानी की बात हो गई थी कि पति का मिजाज देखूं या नौकरी. मेरा मन बड़ा खिन्न सा रहता. उस से बात करने का भी मन नहीं करता.

जाने से 2 दिन पहले निर्मलाजी ने बताया मु  झे लखनऊ

नहीं शिमला जाना होगा. वहां जो टीम औडिट करने गई है उस के एक सदस्य की तबीयत खराब हो गई है. मु  झे क्या फर्क पड़ता था फिर कहीं भी जाना हो. नील को बताने का मन नहीं हुआ. इसलिए कि फिर दोबारा उस की बड़बड़ शुरू हो जाएगी. अच्छा हुआ नहीं बताया. मु  झे नील का वह रंग देखने को मिला जिस पर मु  झे अभी तक विश्वास नहीं हो रहा है.

‘‘मैं जब 5 दिनों के लिए बाहर गई थी 2 महीने पहले तो क्या तुम शिमला गए थे?’’

नील आश्चर्य से, ‘‘हां, लेकिन तु  झे कैसे पता?’’

‘‘मैं भी तब शिमला में थी और मैं ने तुम्हें देखा था.’’

‘‘तुम तो लखनऊ जाने वाली थी और अगर शिमला गईर् थी तो बताया क्यों नहीं? साथ में घूमते बड़ा मजा आता.’’

‘‘अच्छा और जिस के साथ घूमने का कार्यक्रम बना कर गए थे उस बेचारी को म  झधार में छोड़ देते?’’

नील असमंजस से देखते हुए बोला, ‘‘तुम क्या बोल रही हो मु  झे नहीं पता… राहुल और सौरभ बहुत दिनों से कह रहे थे कहीं घूमने चलते हैं… मैं बस टालता जा रहा था. जब तुम जा रही थी तो मैं ने उन्हें कार्यक्रम बनाने के लिए हां कह दी.’’

‘‘रहने दो… तुम   झूठ बोल रहे हो, तुम वहां काम्या के साथ रंगरलियां मनाने गए थे.’’

नील आश्चर्य से बोला, ‘‘कौन काम्या? तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है, लड़ने के बहाने ढूंढ़ती हो. अलग होना चाहती हो… हिरेन का साथ चाहती हो… ठीक है, पर गलत इलजाम मत लगाओ. अब मैं   झूठ क्यों बोलूंगा जब हम अलग हो रहे हैं… वैसे भी मैं   झूठ नहीं बोलता हूं.’’

‘‘बहुत अच्छे, तुम हिरेन को ले कर मु  झ पर कोई भी इलजाम लगाओ वह ठीक है.’’

‘‘तुम हिरेन के लिए क्या महसूस करती हो मैं नहीं जानता, लेकिन हिरेन के दिल में तुम्हारे लिए क्या है मैं सम  झता हूं… मेरे लिए तुम क्या हो तुम नहीं जानती हो, तुम मेरी जिंदगी की धुरी हो, सबकुछ मेरा तुम्हारे इर्दगिर्द घूमता है.’’

उस की आंखें और भी बहुत कुछ कहना चाहती थीं, लेकिन उस की बात सुन कर मेरी आंखों में आंसू आ गए. उस की इस तरह की चिकनीचुपड़ी बातों में आ कर मैं मीरा की तरह उसे कृष्ण मान कर उस की दीवानी हो जाती थी.

जब मैं शिमला जाने वाले प्लेन में सवार हुई, बहुत उदास थी. पहली बार 5 दिनों के

लिए नील से अलग हो रही थी और उस ने केवल बाय कह कर मुंह फेर लिया. शुरू में हम औफिस के लिए भी जब निकलते थे तो ऐसा लगता

7-8 घंटे कैसे एकदूसरे के बिना रहेंगे, बहुत देर तक एकदूसरे के गले लगे रहते. प्लेन में मेरी बगल वाली सीट पर बैठी लड़की बहुत उत्साहित थी. कुछ न कुछ बोले जा रही थी. मु  झे उस की आवाज से बोरियत हो रही थी.   झल्ला कर मैं ने पूछा, ‘‘पहली बार प्लेन में बैठी हो या पहली बार शिमला जा रही हो?’’

वह शरमाते हुए बोली, ‘‘पहली बार अपने प्रेमी से इस तरह मिलने जा रही हूं. वह शादीशुदा है… जब तक तलाक नहीं हो जाता हमें इसी तरह छिपछिप कर मिलना पड़ेगा. तलाक मिलते ही हम शादी कर लेंगे.’’

मेरी उस की प्रेम कहानी में कोई दिलचस्पी नहीं थी. मैं आंखें बंद कर सिर टिका कर सोने की कोशिश करने करने लगी. लेकिन जब नाश्ता आया तो यह नाटक नहीं चला और वह दोबारा शुरू हो गई. उस के औफिस में ही काम करता था और उस के अनुसार दिखने में बहुत मस्त था. लेकिन बेचारा दुखी था. बीवी   झगड़ालू थी. दोनों में बिलकुल नहीं बनती थी. उस लड़की की बकबक से बचने के लिए मैं कान में इयर फोन लगा कर बैठ गई.

उतरते समय वह कुछ परेशान लगी, बोली, ‘‘मैं पहली बार इस तरह अकेली यात्रा कर रही हूं मु  झे बहुत घबराहट हो रही है. अगर वे नहीं आए तो मैं क्या करूंगी. आप मु  झे प्लीज अपना फोन नंबर और नाम बता दो. अगर जरूरत पड़ी तो मैं आप से सहायता मांग लूंगी. मेरा नाम काम्या है. मैं सुगम लिमिटेड में काम करती हूं.’’

मु  झे ऐसे लोगों से चिढ़ होती है जो बेमतलब चिपकते हैं. मैं ने उस से परिचय मांगा था… बेमतलब उतावली हो रही थी अपने बारे में बताने को. लेकिन वह उस कंपनी में काम करती है, जिस में नील भी नौकरी करता है.

हिरेन मु  झे एयरपोर्ट पर लेने आया. देख कर बड़ा खुश हुआ. अच्छे होटल में ठहरने की व्यवस्था की थी. कमरे तक पहुंचा कर हिरेन बोला, ‘‘आज रविवार है. कल से काम करेंगे. तुम अभी आराम करो. जब उठो तो कौल करना. कहीं घूमने चलेंगे.’’

‘‘बाकी सब कहां हैं?’’

‘‘वे सब चले गए… उन का काम खत्म हो गया. अब बस मेरा और तुम्हारा काम रह गया है.’’

मैं चुपचाप कमरे में अपने फोन को हाथ में पकड़ कर बैठ गई. अगर नील का फोन आया यह पूछने के लिए कि मैं ठीक से पहुंच गई कि नहीं और मैं इधरउधर हुई तो बात नहीं हो पाएगी. अत: मैं शाम तक ऐसे ही बैठी रही पर उस का फोन नहीं आया.

तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. खोला तो सामने हिरेन था.

‘‘यह क्या कपड़े भी नहीं बदले… जब से ऐसे ही बैठी हो. मैं इंतजार करता रहा तुम्हारे बुलाने का. तैयार हो जाओ हम बाहर घूमने चलते हैं वहीं कुछ खा कर आ जाएंगे,’’ वह बोला.

मैं बेमन सी हो गई और फिर सिरदर्द का बहाना बना कर जल्दी वापस आ कर कमरे में सो गई.

अगले दिन जिस होटल में ठहरे थे वहीं का औडिट करना था, इसलिए सुबह से शाम तक काम करते रहे. शाम को हिरेन फिर घूमने की जिद करने लगा. अकेले रोज उस के साथ इस तरह घूमना मु  झे ठीक नहीं लग रहा था. लेकिन क्या करती.

घूमतेघूमते काम्या दिख गई. अकेली थी. फिर चिपक गई. उस दिन मु  झे उस का साथ बुरा नहीं लगा. हिरेन से उस का परिचय करा कर हम इधरउधर की बातें करने लगे. काम्या ने बताया कि उस का बौयफ्रैंड कल आने वाला था सड़क मार्ग से पर गाड़ी खराब हो गई तो बीच में कहीं रुकना पड़ा. अब रात तक आएगा. वह अकेली थी. हमारे साथ घूमने लगी, हिरेन बोर हो रहा था, लेकिन मु  झे क्या.

दूरियां: भाग 2- क्या काम्या और हिरेन के रिश्ते को समझ पाया नील

वैसे तो मु  झे उस के छूने से, उस के करीब आने से एक नैसर्गिक प्रसन्नता और तृप्ति मिलती थी, लेकिन उन दिनों औफिस के माहौल से बहुत परेशान थी. घर आते ही मन करता था नील के कंधे पर सिर रख कर औफिस की भड़ास निकाल कर थोड़ा रोने का. लेकिन उसे आधे घंटे में ट्यूशन पढ़ाने निकलना होता था. मेरे आते ही वह मु  झे बांहों में खींच कर चूमने लगता.

उस दिन कुछ तबीयत ठीक नहीं थी और औफिस में भी कुछ अधिक ही कहासुनी हो गई. भरी बैठी थी. अत: उस के करीब आते ही सारा आक्रोश उस पर निकल गया. धक्का देते हुए बोली, ‘‘इस तन के अलावा और कुछ नहीं सू  झता क्या?’’

वह ठिठक गया. फिर एकदम पलट कर बाहर चला गया.

रात को 12 बजे तक आता था और मेरी नींद न खुले, इसलिए ड्राइंगरूम में ही सो जाता

था. उस रात भी उस ने ऐसा ही किया. सुबह जब मेरी आंख खुली वह तैयार हो कर औफिस जा रहा था. बिना कुछ खाए और बोले वह चला गया. शाम को मेरे आने से 1 घंटा पहले घर आ जाता था और मेरे आते ही हम आधा घंटा अपनी तनमन की सब बातें करते थे. इस के अलावा हमारे पास एकदूसरे के लिए समय नहीं होता था. लेकिन अब मेरे आने से पहले वह निकल जाता था. रोना तो बहुत आता था, पर मैं सही थी. उस के पास मु  झ से बात करने के लिए 2 पल भी नहीं होते थे.

वह खड़ा हो गया. मेरे कंधों को जोर से पकड़ चीखते हुए बोला, ‘‘तुम ने उस दिन मेरे प्रेम को गाली दी, जीवन में अगर अपने से अधिक किसी को प्यार किया तो वह तुम हो. अगर केवल तुम्हारे तन का भूखा होता तो कालेज में 3 साल तक बिना हाथ लगाए नहीं रहता. मन तो तब बहुत मचलता था, लेकिन वादा किया था कि तुम्हारी इज्जत से कभी खिलवाड़ नहीं करूंगा. वही तो आधा घंटा मिलता था करीब आने का. सारा दिन बीत जाता तुम्हारे बारे में सोचतेसोचते… तुम्हारे नजदीक आ कर पूर्णता का एहसास होता, स्फूर्ति आ जाती, दुनिया का सामना करने की ताकत मिल जाती. मेरे प्रेम की अभिव्यक्ति थी वह, तुम में समा कर इतने गरीब हो जाने का एहसास था कि लगता हम एक हैं.’’

उस ने मेरे कंधे छोड़ दिए, आवाज थरथरा रही थी. आंखों में दर्र्द था और वह लड़खड़ाते हुए बाथरूम में चला गया. मेरा मन भारी हो गया. उस की नजरों से कभी सोचने की कोशिश नहीं की. दोनों एकदूसरे का साथ चाहते थे, लेकिन अलगअलग तरीके से. जीवन की भागदौड़ में समय इतना कम जरूरतें इतनी अधिक सब बिखर गया. बात केवल इन गलतफहमियों के कारण बिगड़ी होती तो शायद संभल जाती, लेकिन हमारे रिश्ते में धोखा और   झूठ भी शामिल हो गए थे. कमरे में जा कर लेट गई और रोतेरोते कब सो गई पता नहीं चला.

सुबह फिर बाहर के दरवाजे के खुलने की आवाज से आंख खुली. ताला कुछ सख्त लगता है. कमरे से बाहर आई तो नील खानेपीने का सामान ले कर आया था. चेहरे पर वही उस की चिरपरिचित मुसकान. कितने भी गुस्से में हो बहुत जल्दी सामान्य हो जाता है, मैं बातों को मन में रख कर अपना भी दिमाग खराब कर लेती हूं और दूसरों से भी चिढ़ कर बात करने लगती हूं.

‘‘नीलू, आज गरमगरम कौफी पीते हैं… नीचे कुछ खानेपीने की दुकानें खुल गई हैं,’’ कह मैं जल्दी से मंजन कर आई. फिर हम कल की तरह बालकनी में फर्श पर बैठ कर नाश्ता करने लगे.

नील आसमान की तरफ देखते हुए बोला, ‘‘यहां से

सुबहशाम आसमान की छटा कितनी निराली दिखती है. अद्भुत नजारा है. अगर हम साथ रहते तो कितना अच्छा लगता. रोज यहां बैठ कर बातें करते.’’

कह तो सही रहा था, लेकिन जो नहीं हो सकता मैं उस के बारे में बात नहीं करना चाहती. नाश्ते में एक पेस्ट्री भी रखी थी. हम अकसर छोटी से छोटी खुशी सैलिब्रेट करने के लिए मीठे में एक पेस्ट्री ले आते थे, दोनों आधीआधी खा लेते थे.

‘‘यह पेस्ट्री किस खुशी में?’’

‘‘याद है आज ही के दिन हमें मिले 4 महीने हुए थे और तुम ने मेरे साथ डेट पर जाना स्वीकार कर लिया था.’’

‘‘तुम भी कमाल करते हो न जाने कैसी छोटीछोटी बातें याद रख लेते हो. वह डेटवेट नहीं थी. कालेज कैंटीन में बैठ कर कौफी पी थी बस.’’

‘‘केवल तुम से संबंधित बातें ही याद रख पाता हूं. कैंटीन में उस दिन साथ बैठ कर कौफी पीना एक महत्त्वपूर्ण कदम था. जब तुम पहले दिन कालेज आई थी तो हिरेन और मेरी तुम पर एकसाथ नजर पड़ी थी. दोनों के मुंह से निकला था कि वाह, कितनी खूबसूरत लड़की है. हम दोनों के दिल पर तुम ने एकसाथ दस्तक दी थी. हम ने निश्चय किया कि हम दोनों तुम्हें लाइन मारेंगे और जिस की तरफ तुम्हारा   झुकाव होगा, दूसरा रास्ते से हट जाएगा. उस दिन कैंटीन में कौफी पीते हुए यह खामोश ऐलान था कि तुम मेरी गर्लफ्रैंड हो.’’

मु  झे ये सब नहीं पता था, हिरेन ने शुरू में मु  झे प्रभावित करने की कोशिश तो की थी. नील गुलाब देता तो वह गुलदस्ता लाता. वह पैसे वाले घर से था, इसलिए महंगे तोहफे देता था, लेकिन मु  झे नील पहली नजर में ही भा गया था. उस के हंसमुख व्यवहार और केयरिंग ऐटिट्यूड के आगे सब फीका था. धीरेधीरे हम दोनों सम  झ गए थे कि हमारा एकदूसरे के बिना गुजारा नहीं और हमारे परिवार को हमारा साथ गवारा नहीं.

नील के ब्राह्मण परिवार को मेरे खानपान से दिक्कत थी तो मेरे मातापिता को नील की आर्थिक स्थिति खल रही थी. वैसे मेरे परिवार के पास भी कुछ खास नहीं था, लेकिन पिताजी को लगता अपनी बहनों की तरह मैं भी अपनी खूबसूरती के बल पर पैसे वाले घर में स्थान बना सकती हूं.

स्नातक करते ही हम दोनों ने शादी की और जो नौकरी मिली पकड़ ली. फिर किराए का घर ढूंढ़ना शुरू किया. क्व10-12 हजार से कम का कोई अच्छा मकान नहीं मिल रहा था. बहुत धक्के खा कर 2 कमरों का प्लैट क्व7 हजार किराए पर मिला, वह भी बस कामचलाऊ था. तब हम ने निर्णय लिया आगे सोचसम  झ कर जीवन की राह पर चलेंगे. पहले कुछ पैसे जमा करेंगे. अपना स्वयं का घर नहीं बन जाता तब तक परिवार नहीं बढ़ाएंगे.

शुरू की हमारी जिंदगी बड़ी खुशहाल रही, दोनों 6 बजे तक घर आ जाते. फिर बहुत बातें करते और सपने देखते. किराया देने के बाद अधिक नहीं बचता था, लेकिन एकदूसरे के साथ मस्त थे. फिर नील को लगा कुछ और पैसे कमाने के लिए ट्यूशन पकड़ लेनी चाहिए और मु  झे लगा पदोन्नति और अच्छे वेतन के लिए एम. कौम. कर लेना चाहिए. बस हम दोनों दौड़ में शामिल हो गए, एक बेहतरीन भविष्य की कामना में. इतने थके रहने लगे कि एकदूसरे के लिए समय नहीं होता. बस   झुं  झलाहट रहने लगी.

इस बीच नील का मन सीए की पढ़ाई करने का भी करता बीचबीच में. वह बहुत होशियार है. मु  झे कई बार लगता इतनी जल्दी शादी कर के कहीं पछता तो नहीं रहा. वह आगे पढ़ कर बहुत कुछ कर सकता था.

इस बीच नील के पिताजी का देहांत हुआ तो उस के बड़े भाई ने घर बेचने का निर्णय ले लिया. घर खस्ता हालत में था, फिर भाई को पैसे चाहिए थे फ्लैट खरीदने के लिए. वह दूसरे शहर में रहता था. नील की माताजी मेरे कारण हमारे साथ नहीं रहना चाहती थीं. मकान बेच कर जो रकम मिली उस के

3 हिस्से हुए. 2 हिस्से माताजी व भाई साहब के साथ चले गए. अपने हिस्से से हम ने भी फ्लैट बुक करा दिया. हमारी मुसीबतें और बढ़ गईं. जहां रहते थे उस का किराया, फ्लैट की किश्तें, फिर जिंदा रहने के लिए रोटी और कपड़ा भी जरूरी था. अब हमारे बीच खीज भी रहने लगी. ऐसा नहीं था हम हमेशा एकदूसरे से सड़े रहते थे. जब किसी का जन्मदिन या छुट्टी होती तो प्रेम भी खूब लुटाते, लेकिन अकसर एकदूसरे से बचते या चिढ़ कर बात करते.

मजबूरन मु  झे नौकरी भी छोड़नी पड़ी. वहां का माहौल बरदाश्त के बाहर हो गया था. नील को यह बिलकुल अच्छा नहीं लगा. लेकिन मेरी परेशानी सम  झते हुए कुछ बोला नहीं. उन्हीं दिनों हिरेन से फिर मुलाकात हुई. वह सीए कर चुका था और अपने पिता की फर्म में काम करता था. परेशान देख जब उस ने कारण पूछा तो पुराने दोस्त के सामने बाढ़ के पानी की तरह सारा उदगार तीव्रता से उमड़ पड़ा. उस ने तुरंत अपनी फर्म में बहुत अच्छे वेतन के साथ नौकरी का प्रस्ताव दे दिया और मैं ने सहर्ष स्वीकार भी कर लिया. नील को यह बात भी अच्छी नहीं लगी, लेकिन इस बार वह चुप नहीं रहा.   झगड़ा किया और बहुत कुछ बोल गया.

उस समय सम  झ नहीं सकी थी नील के आक्रोश का कारण, लेकिन आज सम  झ गई. उस के स्वाभिमान को ठेस पहुंची थी. अब हमारे बीच बोलचाल खत्म हो गई थी. मैं कुछ भी बोलने से डरती कि वह बखेड़ा न खड़ा कर दे. वह सामने पड़ते ही मुंह फेर कर इधरउधर हो जाता.

हिरेन के पास दिल्ली के बाहर कई दूसरे शहरों का भी काम था. वह अकसर बाहर जाता रहता था. मु  झे नौकरी करते हुए अधिक समय नहीं हुआ था, फिर भी मेरा नाम लखनऊ जाने वाली टीम में शामिल था.

उसे किस ने मारा- भाग 3: क्या हुआ था आकाश के साथ

इसी की आशंका जाहिर करते हुए मैं ने जबजब दीपाली को समझाना चाहा तबतब एक ही उत्तर मिलता, ‘यह बात मैं भी समझती हूं वसुधा, पर केवल दालरोटी से ही तो काम नहीं चलता. अभी बच्चे छोटे हैं, बड़े होंगे तो उन की पढ़ाई, शादीविवाह में भी तो खर्चा होगा, अगर अभी से कुछ बचत नहीं कर पाए तो आगे कैसे होगा.

रोधो कर जिंदगी घिसटती ही गई. पहला झटका आकाश को तब लगा जब उस के पिताजी को हार्ट अटैक आया. डाक्टर ने आकाश से पिता की बाईपास सर्जरी करवाने की सलाह दी. उस समय आकाश के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह खुद के खर्चे पर उन का इलाज करवा पाता. उस के पिताजी उस पर ही आश्रित थे, अत: कानून के अनुसार उन की बीमारी का खर्चा आकाश को कंपनी से मिलना था. उस ने एडवांस के लिए आवेदन कर दिया, पर कागजी खानापूर्ति में ही लगभग 2 महीने निकल गए.

आकाश पिताजी को ले कर अपोलो अस्पताल गया. आपरेशन के पूर्व के टेस्ट चल रहे थे कि उन्हें दूसरा अटैक आया और उन्हें बचाया नहीं जा सका. डाक्टरों ने सिर्फ इतना ही कहा कि इन्हें लाने में देर हो गई.

मां पिताजी से बिछड़ने का दुख सह नहीं पाईं और कुछ ही महीनों के अंतर पर उन की भी मृत्यु हो गई.

आकाश टूट गया था. उसे इस बात का ज्यादा दर्द था कि पैसों के अभाव में वह अपने पिता का उचित उपचार नहीं करा पाया. जबजब इस बात से उस का मन उद्वेलित होता, पिताजी की सीख उस के इरादों को और मजबूत कर देती. अंगरेजी की एक कहावत है ‘ग्रिन एंड बियर’ यानी सहो और मुसकराओ, यही उस के जीने का संबल बन गई थी.

मांपिताजी को तो वह खो चुका था. पल्लव तो अभी छोटा था पर अब बड़ी होती अपनी बेटी की ठीक से परवरिश न कर पाने का दोष भी उस पर लगने लगा था. डोनेशन की मोटी मांग के लिए रकम वह न जुटा पाने के कारण उस स्कूल में बेटी स्मिता का दाखिला नहीं करा पाया जिस में कि दीपाली चाहती थी.

जिस राह पर आकाश चल रहा था उस पर चलने के लिए उसे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही थी, दुख तो इस बात का था कि उस के अपने ही उसे नहीं समझ पा रहे थे. तनाव के साथ संबंधों में आती दूरी ने उसे तोड़ कर रख दिया. मन ही मन आदर्श और व्यावहारिकता में इतना संघर्ष होने लगा कि वह हाई ब्लडप्रेशर का मरीज बन गया.

अपने ही अंत:कवच में आकाश ने खुद को कैद कर लिया पर दीपाली ने उस की न कोई परवा की और न ही पति को समझना चाहा. उसे तो बस, अपने आकांक्षाओं के आकाश को सजाने के लिए धन चाहिए था. वह रोकताटोकता तो दीपाली सीधे कह देती, ‘अगर तुम अपने वेतन से नहीं कर पाते हो तो लोन ले लो. जिस समाज में रहते हैं उस समाज के अनुसार तो रहना ही होगा. आखिर हमारा भी कोई स्टेटस है या नहीं, तुम्हारे जूनियर भी तुम से अच्छी तरह रहते हैं पर तुम तो स्वयं को बदलना ही नहीं चाहते.’

यह वही दीपाली थी जिस ने मधुयामिनी की रात साथसाथ जीनेमरने की कसमें खाई थीं, सुखदुख में साथ निभाने का वादा किया था. पर जमाने की कू्रर आंधी ने उन्हें इतना दूर कर दिया कि जब मिलते तो लगता अपरिचित हैं. बस, एहसास भर ही रह गया था. बच्चे भी सदा मां का ही पक्ष लेते. मानो वह अपने ही घर में परित्यक्त सा हो गया था.

अपनी लड़ाई आकाश स्वयं लड़ रहा था. प्रमोशन के लिए इंटरव्यू काल आया. इंटरव्यू भी अच्छा ही रहा. पैनल में उस का नाम है, यह पता चलते ही कुछ लोगों ने बधाई देनी भी शुरू कर दी पर जब प्रमोशन लिस्ट निकली तो उस में उस का नाम नहीं था, देख कर वह तो क्या पहले से बधाई देने वाले भी चौंक गए. पता चला कि उस का नाम विजीलेंस से क्लीयर नहीं हुआ है.

उस पर एक सप्लायर कंपनी को फेवर करने का आरोप लगा है, इस के लिए चार्जशीट दायर कर दी गई है. वैसे तो आकाश फाइल पूरी तरह पढ़ कर साइन किया करता था पर यहां न जाने कैसे चूक हो गई. रेट और क्वालिटी आदि की स्कू्रटनी वह अपने जूनियर से करवाया करता था. उन के द्वारा पेश फाइल पर जब वह साइन करता तभी आर्डर प्लेस होता था.

इस फाइल में कम रेट की उपेक्षा कर अधिक रेट वाले को सामान की गुणवत्ता के आधार पर उचित ठहराते हुए आर्डर प्लेस करने की सिफारिश की गई थी. साइन करते हुए आकाश यह भूल गया था कि वह किसी प्राइवेट कंपनी में नहीं एक सरकारी कंपनी में काम करता है जहां सामान की क्वालिटी पर नहीं सामान के रेट पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है.

नियम तो नियम है. इसी बात को आधार बना कर कम रेट वाले कांटे्रक्टर ने आकाश को दोषी ठहराते हुए एक शिकायती पत्र विजीलेंस को भेज दिया था.

नियमों के अनुसार तो गलती उन से हुई थी क्योंकि उन्होंने नियमों की अनदेखी की थी पर उस में उन का अपना कोई स्वार्थ नहीं था वह तो सिर्फ बनने वाले सामान की क्वालिटी में सुधार लाना चाहता था.

आफिस में कानाफूसी प्रारंभ हो गई, ‘बड़े ईमानदार बनते थे. आखिर दूध का दूध पानी का पानी हो ही गया न.’

‘अरे, भाई ऐसे ही लोगों के कारण हमारा विभाग बदनाम है. करता कोई है, भरता कोई है.’

दीपाली के कानों तक जब यह बात पहुंची तो वह तिलमिला कर बोली, ‘तुम तो कहते थे कि मैं किसी का फेवर नहीं करता. जो ठीक होता है वही करता हूं, फिर यह गलती कैसे हो गई. कहीं ऐसा तो नहीं है कि तुम मुझ से छिपा कर पैसा कहीं और रख रहे हो.’

उस के बाद उस से कुछ सुना नहीं गया, उसी रात उसे जो हार्ट अटैक आया. हफ्ते भर जीवनमृत्यु से जूझने के बाद आखिर उस ने दम तोड़ ही दिया.

खबर सुन कर वसुधा एवं सुभाष, आकाश के साथ बिताए खुशनुमा पलों को आंखों में संजोए आ गए. सदा शिकायतों का पुलिंदा पकड़े दीपाली को इस तरह रोते देख कर, आंखें नम हो आई थीं. पर बारबार मन में यही आ रहा था कि सबकुछ लुटा के होश में आए तो क्या किया?

मां को रोते देख कर मासूम बच्चे अलग एक कोने में सहमे से दुबके खड़े थे, शायद उन की समझ में नहीं आ रहा कि मां रो क्यों रही हैं तथा पापा को हुआ क्या है. मां को रोता देख कर बीचबीच में बच्चे भी रोने लगते. उन्हें ऐसे सहमा देख कर, दीपाली स्वयं को रोक नहीं पाई तथा उन्हें सीने से चिपका कर रो पड़ी. उसे रोता देख कर नन्हा पल्लव बोला, ‘आंटी, ममा भी रो रही हैं और आप भी लेकिन क्यों. पापा को हुआ क्या है, वह चुपचाप क्यों लेटे हैं, बोलते क्यों नहीं हैं?’

उस की मासूमियत भरे प्रश्न का मैं क्या जवाब देती पर इतना अवश्य सोचने को मजबूर हो गई थी कि बच्चों से उन की मासूमियत छीनने का जिम्मेदार कौन है? एक जिंदादिल, उसूलों के पक्के इनसान को किस ने मारा.

उसे किस ने मारा- भाग 2: क्या हुआ था आकाश के साथ

‘स्वयं देख लीजिए सर.’

पैकेट खोला तो उस के अंदर रखी रकम देख कर आकाश का खून जम गया.

‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई, यह रकम मुझे पकड़ाने की.’

‘सर, आप नए हैं, इसलिए जानते नहीं हैं, यह आप का हिस्सा है.’

‘पर मैं इसे नहीं ले सकता.’

‘यह आप की मर्जी सर, पर ऐसा कर के आप बहुत बड़ी भूल करेंगे. आखिर घर आई लक्ष्मी को कोई ऐसे ही नहीं लौटाता है.’

‘अब तुम यहां से जाओ वरना मैं पुलिस को बुलवा कर तुम्हें रिश्वत देने के आरोप में गिरफ्तार करवा दूंगा.’

‘ऐसी गलती मत कीजिएगा. यह आरोप तो मैं आप पर भी लगा सकता हूं,’ निर्लज्जता से मुसकराते हुए वह बोला.

अगले दिन आकाश ने अपने सहयोगी से बात की तो वह बोला, ‘इस में तुम या मैं कुछ नहीं कर सकते. यह तो वर्षों से चला आ रहा है. जो भी इस में अड़ंगा डालने का प्रयत्न करता है उस का या तो स्थानांतरण करवा देते हैं या फिर झूठे आरोप में फंसा कर घर बैठने को मजबूर कर देते हैं, वैसे भी घर आई लक्ष्मी को दुत्कारना मूर्खता है.’

उस ने उसी समय निर्णय लिया था कि लोग चाहे जो भी करें पर वह इस पाप की कमाई को हाथ नहीं लगाएगा. वैसे भी पहली बार नौकरी पर जाने से पहले जब वह पिताजी से आशीर्वाद लेने गया था, तो उन्होंने कहा था, ‘बेटा, जिंदगी की डगर बड़ी कठिन है, जो कठिनाइयों को पार कर के आगे बढ़ता जाता है निश्चय ही सफल होता है. कामनाओं की पूर्ति के लिए ऐसा कोई काम मत करना जिस के लिए तुम्हें शर्मिंदा होना पड़े. जितनी चादर हो उतने ही पैर फैलाना.’

वह उन की बातों को दिल में उतार कर जीवन की नई डगर पर नई आशाओं के साथ चल पड़ा था. अपनी पत्नी दीपाली को अपना फैसला सुनाया तो उस ने भी उस की बात का समर्थन कर दिया. तब उसे लगा था कि जीवनसाथी का सहयोग जीवन की कठिन से कठिन राहों पर चलने की प्रेरणा देता है.

काम को आकाश ने बोझ समझ कर नहीं बल्कि अपनी जिम्मेदारी समझ कर अपनाया था, इसलिए काम को संपूर्ण करने के लिए वह ऐसे जुट जाता था कि न दिन देखता न ही रात, इस के लिए उसे अपने परिवार से भी भरपूर सहयोग मिला.

सबकुछ ठीकठाक चल रहा था. ऊंचा ओहदा, सम्मान, सुंदर पत्नी, पल्लव और स्मिता जैसे प्यारे 2 बच्चे, बूढ़े मांबाप का सान्निध्य. अपने काम के साथ मातापिता की जिम्मेदारी भी वह सहर्ष निभा रहा था. आखिर उन्होंने ही तो उसे इस मुकाम पर पहुंचने में मदद की थी.

दीपाली और वसुधा साथसाथ पढ़ी थीं. यही कारण था कि विवाह हो जाने के बाद भी हमेशा वे एकदूसरे के संपर्क में रहीं. यहां तक कि वर्ष में एक बार दोनों परिवार मिल कर एकसाथ कहीं घूमने चले जाते. वसुधा के पति सुभाष को भी आकाश का साथ अच्छा लगता. जी भर कर बातें होतीं. लगता, समय यहीं ठहर जाए पर समय कभी किसी के लिए रुका है?

जैसेजैसे खर्चे बढ़ने लगे दीपाली अपने वादे से मुकरने लगी. महीने का अंत होता नहीं था कि हाथ खाली होने लगता था, उस पर बूढ़े मातापिता के साथ 2 बच्चों का खर्चा अलग से बढ़ गया था. दीपाली अकसर अपनी परेशानी का जिक्र वसुधा से करती तो वह उसे संयम से काम लेने के लिए कहती, पर उस पर तो जैसे कोई जनून ही सवार हो गया था, आकाश की बुराई करने का.

यह वही दीपाली है जो एक समय आकाश की तारीफ करते नहीं थकती थी और अब बुराई करते नहीं थकती है. इनसान में इतना परिवर्तन कब, क्यों और कैसे आ जाता है, समझ नहीं पा रही थी वसुधा. आखिर कोई औरत अपनी महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए पति से वह सबकुछ क्यों करवाना चाहती है जो वह करना नहीं चाहता. दीपाली और आकाश के बीच की दूरी बढ़ती जा रही थी और वसुधा चाह कर भी कुछ कर नहीं पा रही थी.

दीपाली कहती, ‘वसुधा, आखिर इन की ईमानदारी से किसी को क्या फर्क पड़ता है. जो इन की सचाई पर विश्वास करते हैं वह इन्हें गलत प्रोफेशन में आया कह कर इन का मजाक बनाते हैं और जो नहीं करते वे भी कह देते हैं कि भई, हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और. भला आज के जमाने में ऐसा भी कहीं हो सकता है.’

बाहर तो बाहर आकाश घर में भी शिकस्त खाने लगा था. पत्नी और बच्चों के चेहरे पर छाई असंतुष्टि अकसर सोचने को मजबूर करती कि कहीं वह गलत तो नहीं कर रहा है, पर आकाश के अपने संस्कार उस को कुछ भी गलत करने से सदा रोक देते.

वह बच्चों की किसी मांग को अगले महीने के लिए टाल देने को कहता तो उस की 5 वर्षीय बेटी स्मिता ही कह देती, ‘इस का मतलब आप खरीदवाओगे नहीं. अगले महीने फिर अगले महीने पर टाल दोगे.’

आकाश कभी दीपाली को उस का वादा याद दिलाता तो वह कह देती,  ‘वह तो मेरी नादानी थी पर अब जब दुनिया के रंगढंग देखती हूं तो लगता है कि तुम्हारे इस खोखले दंभ के कारण हम कितना सफर कर रहे हैं. तुम्हारे जैसे लोग जहां आज नई गाड़ी खरीदने में जरा भी नहीं सोचते, वहीं हमें रोज की जरूरतों को पूरा करने के लिए अगले महीने का इंतजार करना पड़ता है. कार भी खरीदी तो वह भी सेकंड हैंड. मुझे तो उस में बैठने में भी शर्म आती है.’

‘दीपाली, इच्छाओं की तो कोई सीमा नहीं होती. वैसे भी घर सामानों से नहीं उस में रहने वालों के आपसी प्यार और विश्वास से बनता है.’

‘प्यार और विश्वास भी वहीं होगा, जहां व्यक्ति संतुष्ट होगा, उस की सारी इच्छाएं पूरी हो रही होंगी.’

‘तो क्या तुम सोचती हो जिन्हें तुम संतुष्ट समझ रही हो, उन में कोई असंतुष्टि नहीं है. वहां जा कर देखो तो पता चलेगा कि वे हम से भी ज्यादा असंतुष्ट हैं.’

‘बस, रहने भी दीजिए…कोरे आदर्शों के सहारे दुनिया नहीं चलती.’

‘अगर ऐसा है तो तुम आजाद हो, अपनी नई दुनिया बसा सकती हो, जैसे चाहे रह सकती हो.’

तब तिलमिला कर उस ने कहा था, ‘बस, अब यही तो सुनने को रह गया था.’

यह कह कर दीपाली तो चली गई पर आकाश वहीं बैठाबैठा अपने सिर के बाल नोंचने लगा. उस बार उन दोनों के बीच लगभग हफ्ते भर अबोला रहा. उन के झगड़े अब इतने बढ़ गए थे कि बच्चे भी सहमने लगे थे, कभीकभी लगता कहीं इन दोनों की तकरार के कारण बच्चे अपना स्वाभाविक बचपन न गंवा बैठें.

उसे किस ने मारा- भाग 1: क्या हुआ था आकाश के साथ

आज आकाश चला गया…लोग कहते हैं, उस की मौत हार्ट अटैक से हुई है पर मैं कहती हूं कि उसे जमाने ने मौत के आगोश में धकेला है, उसे आत्महत्या के लिए मजबूर किया है. हां, आत्महत्या… आप लोग समझ रहे होंगे कि आकाश की मृत्यु के बाद मैं पागल हो गई हूं…हां…हां मैं पागल हो गई हूं…आज मुझे लग रहा है, इस दुनिया में जो सही है, ईमानदार है, कर्मठ है, वह शायद पागल ही है…यह दुनिया उस के रहने लायक नहीं है.

आज भी ऐसे पागल इस दुनिया में मौजूद हैं, जो अपने उसूलों पर चलते हुए शायद वे भी आकाश की तरह ही सिसकतेसिसकते मौत को गले लगा लें, इस से दुनिया को क्या फर्क पड़ने वाला है. वह तो यों ही चलती जाएगी. सिसकने के लिए रह जाएंगे उस बदनसीब के घर वाले.

दीपाली का प्रलाप सुन कर वसुधा चौंकी थी. दीपाली उस की प्रिय सखी थी. उस के जीवन का हर राज उस का अपना था. यहां तक कि उस के घर अगर एक गमला भी टूटता तो उस की खबर भी उसे लग ही जाती. उन में इतनी अंतरंगता थी.

लेकिन क्या आकाश की हालत के लिए वह स्वयं जिम्मेदार नहीं थी. वह आकाश की जीवनसाथी थी. उस के हर सुखदुख में शामिल होने का हक ही नहीं, उस का कर्तव्य भी था पर क्या वह उस का साथ दे पाई? शायद नहीं, अगर ऐसा होता तो इतनी कम उम्र में आकाश का यह हश्र न होता.

आकाश एक साधारण किसान परिवार से था. पढ़ने में तेज, धुन का पक्का, मन में एक बार जो ठान लेता उसे कर के ही रहता था. अच्छा खातापीता परिवार था. अभाव था तो सिर्फ शिक्षा का…उस के पिताजी ने उस की योग्यता को पहचाना. गांव में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने अपने घर वालों के विरोध के बावजूद बेटे को उच्च शिक्षा के लिए शहर भेजा, तो शहर की चकाचौंध से कुछ पलों के लिए आकाश भ्रमित हो गया था.

यहां की तामझाम, गिटरपिटर अंगरेजी बोलते बच्चों के बीच उसे लगा था कि वह सामंजस्य नहीं बिठा पाएगा पर धीरेधीरे अपने आत्मविश्वास के कारण अपनी कमियों पर आकाश विजय प्राप्त करता गया और अव्वल आने लगा. जहां पहले उस के शिक्षक और मित्र उस के देहातीपन को ले कर मजाक बनाते रहते थे, अब उस की योग्यता देख कर कायल होने लगे. हायर सेकंडरी में जब वह पूरे राज्य में प्रथम आया तो पेपर में नाम देख कर घर वालों की छाती गर्व से फूल उठी.

उसी साल उस का इंजीनियरिंग कालिज इलाहाबाद में चयन हो गया. पिता ने अपनी सारी जमापूंजी लगा कर उस का दाखिला करवा दिया. बस, यही बात उस के बड़े भाइयों को खली, कुछ सालों से फसल भी अच्छी नहीं हो रही थी. भाइयों को लग रहा था, मेहनत वे करते हैं पर उन की कमाई पर मजा वह लूट रहा है.

कहते हैं न कि ईर्ष्या से बड़ा जानवर कोई नहीं होता. वह कभीकभी इनसान को पूरा निगल जाता है. उस के भाइयों का यही हाल था और उन के वहशीपन का शिकार उस के मातापिता बन रहे थे. छुट्टियों में जब आकाश घर गया तो उस की पारखी नजरों से घर में फैला विद्वेष तथा मां और पिताजी के चेहरे पर छाई दयनीयता छिप न सकी. मां ने अपने कुछ जेवर छिपा कर उसे देने चाहे तो उस ने लेने से मना कर दिया.

एक दृढ़ निश्चय के साथ आकाश इलाहाबाद लौट गया था. कुछ ट्यूशन कर ली, साथ ही इंजीनियरिंग के प्रथम वर्ष में प्रथम आने के कारण उसे स्कालरशिप भी मिलने लगी. अब उस का अपना खर्चा निकलने लगा. इंजीनियरिंग करते ही उसे सरकारी नौकरी मिल गई.

नौकरी मिलते ही वह अपने मातापिता को साथ ले आया. भाइयों ने भी चैन की सांस ली. पर पानी होते रिश्तों को देख कर आकाश का मन रोने लगा था.

सरकारी नौकरी मिली तो शादी के लिए रिश्ते भी आने शुरू हो गए. वैसे आकाश अभी कुछ दिन विवाह नहीं करना चाहता था पर मां की आंखों में सूनापन देख कर उस ने बेमन से ही विवाह की इजाजत दे दी.

मातापिता के साथ रहने की बात जान कर कुछ लोगों ने आगे बढ़ अपने कदम पीछे खींच लिए थे. रिश्तों में आती संवेदनहीनता को देख कर उस का मन बहुत आहत हुआ था. मातापिता को इस बात का एहसास हुआ तो वे खुद को दोषी समझने लगे, तब आकाश ने उन को दिलासा देते हुए कहा था, ‘आप स्वयं को दोषी क्यों समझ रहे हैं, यह तो अच्छा ही हुआ कि समय रहते उन की असलियत खुल गई, जो रिश्तों का सम्मान करना नहीं जानते. वे भला अन्य रिश्ते कैसे निभा पाएंगे. रिश्तों में स्वार्थ नहीं समर्पण होना चाहिए.’

आखिर एक ऐसा परिवार मिल ही गया. मातापिता के साथ में रहने की बात सुन कर लड़की का भाई विवेक बोला, ‘हम ने मातापिता का सुख नहीं भोगा. पर मुझे उम्मीद है कि आप के सान्निध्य में मेरी बहन को यह सुख नसीब हो जाएगा.’

विवेक और दीपाली के मातापिता बचपन में ही मर गए थे. उन के चाचाचाची ने उन्हें पाला था पर धीरेधीरे रिश्तों में आती कटुता ने उन्हें अलग रहने को मजबूर कर दिया. विवेक ने जैसेतैसे एक नौकरी तलाशी तथा बहन को ले कर अलग हो गया. नौकरी करतेकरते ही उस ने अपनी पढ़ाई जारी रखी, बहन को पढ़ाया और आज वह स्वयं एक अच्छी जगह नौकरी कर रहा था.

दीपाली आकाश को अच्छी लगी. अच्छे संस्कारिक लोग पा कर विवाह के लिए वह तैयार हो गया. दीपाली ने घर अच्छी तरह से संभाल लिया था. मातापिता भी बेहद खुश थे. घर में सुकून पा कर आफिस के कामों में भी मन रमने लगा. अभी तक तो उसे काम सिखाया जा रहा था पर अब स्वतंत्र विभाग उस को दे दिया गया.

आकाश ने जब अपने विभाग की फाइलों को पढ़ा और स्टोर में जा कर सामान का मुआयना किया तो सामान की खरीद में हेराफेरी को देख कर वह सिहर उठा. पेपर पर दिखाया कुछ जाता, खरीदा कुछ और जाता. कभीकभी आवश्यकता न होने पर भी सामान खरीद लिया जाता. सरप्लस स्टाक इतना था कि उस को कहां खपाया जाए, वह समझ नहीं पा रहा था. अपने सीनियर से इस बात का जिक्र किया तो उन्होंने कहा, ‘अभी नएनए आए हो, इसलिए परेशान हो. धीरेधीरे इसी ढर्रे पर ढलते जाओगे. जहां तक सरप्लस सामान की बात है, उसे पड़ा रहने दो, कुछ नहीं होगा.’

एक दिन आकाश अपने आवास पर आराम कर रहा था कि एक सप्लायर आया और उसे एक पैकेट देने लगा. उस ने पूछा, ‘यह क्या है?’

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