दूरियां: भाग 1- क्या काम्या और हिरेन के रिश्ते को समझ पाया नील

दीवाली में अभी 2 दिन थे. चारों तरफ की जगमगाहट और शोरशराबा मन को कचोट रहा था. मन कर रहा था किसी खामोश अंधेरे कोने में दुबक कर 2-3 दिन पड़ी रहूं. इसलिए मैं ने निर्णय लिया शहर से थोड़ा दूर इस 15वीं मंजिल पर स्थित फ्लैट में समय व्यतीत करने का. 2 हफ्ते पहले फ्लैट मिला था. बिलकुल खाली. बस बिजलीपानी की सुविधा थी. पेंट की गंध अभी भी थी.

मैं कुछ खानेपीने का सामान, पहनने के कपड़े, 1 दरी और चादरें लाई थी. शहर से थोड़ा दूर था. रिहायश कुछ कम थी. बिल्डर ने मकान आवंटित कर दिए थे. धीरेधीरे लोग आने लगेंगे. 5 साल पहले देखना शुरू किया था अपने मकान का सपना. दोनों परिवारों के विरोध के बावजूद नील और मैं ने विवाह किया था. अपने लिए किराए का घर ढूंढ़ते हुए बौरा गए थे. तब मन में अपने आशियाने की कामना घर कर गई. आज यह सपना कुछ हद तक पूरा हो गया है. लेकिन अब हमारी राहें जुदा हो गई हैं. यहां आने से पहले मैं वकील से मिलने गई थी. कह रहा था बस दीवाली निकल जाने दो, फिर कागज तैयार करवाता हूं.

मन अभी भी इस बात को स्वीकारने को तैयार नहीं था कि आगे की जिंदगी नील से अलग हो कर बितानी है. लेकिन ठीक है जब रिश्तों में गरमाहट ही खत्म हो गई हो तो ढोने से क्या फायदा? इतनी ऊंचाई से नीचे सब बहुत दूर और नगण्य लग रहा था. अकेलापन और अधिक महसूस हो रहा था. शाम के 5 बज रहे थे. औफिस में पार्टी थी. उस हंगामे से बचने के लिए यहां सन्नाटे की शरण में आई थी. आसमान में डूबते सूर्य की छटा निराली थी, पर सुहा नहीं रही थी. बहुत रोशनी थी अभी. एक कमरे में दरी बिछा कर एक कोने में लेट गई. न जाने कितनी देर सोती रही. कुछ खटपट की आवाज से आंखें खुल गईं.

घुप्प अंधेरा था. जब आंख लगी थी इतनी रोशनी थी कि बिजली जलाने की जरूरत नहीं महसूस हुई थी. किसी ने दरवाजा खोल कर घर में प्रवेश किया. मेरी डर के मारे जान निकल गई. केयर टेकर ने कहा था वह चाबी केवल मालिक को देता है. लगता है   झूठ बोल रहा था. चाबी किसी शराबी को न दे दी हो, सोचा होगा खाली फ्लैट में आराम से पीएं या उस की स्वयं की नीयत में खोट न आ गया हो. अकेली औरत इतनी ऊंचाई पर फ्लैट में फायदा उठाने का अच्छा मौका था. डर के मारे मेरी जान निकल रही थी. आसपास कोई डंडा भी नहीं होगा जिसे अपनी सुरक्षा के लिए इस्तेमाल करूं. डंडा होगा भी तो अंधेरे में दिखेगा कैसे? सांस रोके बैठी थी. अब तो जो करेगा आगंतुक ही करेगा. हो सकता है अंधेरे में कुछ सम  झ न आए और वापस चला जाए.

तभी कमरा रोशनी से जगमगा उठा. सामने नील खड़ा था. नील को देख कर ऐसी राहत मिली कि अगलापिछला सब भूल उठी और

उस से लिपट गई. वह उतना ही हत्प्रभ था जितनी मैं सहमी हुई. कुछ पल हम ऐसे ही गले लगे खड़े रहे. फिर अपने रिश्ते की हकीकत हमें याद आ गई.

‘‘मैं? मैं तो यहां शांति से 3 दिन रहने आई हूं. तुम नहीं रह सकते यहां… तुम जाओ यहां से.’’

नील जिद्दी बच्चे की तरह अकड़ते हुए बोला, ‘‘क्यों जाऊं? मैं भी बराबर की किस्त भरता हूं इस फ्लैट की… मेरा भी हक है इस पर… मैं तो यहीं रहूंगा जब तक मेरा मन करेगा… तुम जाओ अगर तुम्हें मेरे रहने पर एतराज है तो.’’

मैं ने भी अपने दोनों हाथ कमर पर रखते हुए   झांसी की रानी वाली मुद्रा में सीना चौड़ा कर के कहा, ‘‘मैं क्यों जाऊं?’’ पर मन में सोच रही थी कि अब तो मर भी जाऊं तो भी नहीं खिसकूंगी इस जगह से.

औफिस से निकलते हुए मन में आया होगा चल कर फ्लैट में रहा

जाए और मुंह उठा कर आ गया. कैसे रहेगा, क्या खाएगा यह सोचने इस के फरिश्ते आएंगे. कहीं ऐसा तो नहीं यह केवल फ्लैट देखने आया था. मु  झे देख कर स्वयं भी यहां टिकने का मन बना लिया. इसे मु  झे चिढ़ाने में बहुत मजा आता है. नील हक से डब्बा ले कर बाहर बालकनी में जा कर दीवार का सहारा ले कर फर्श पर बैठ गया. डब्बा उस के हाथ में था, मजबूरन मु  झे उस के पास जमीन पर बैठना पड़ा.

आसमान में बिखरे अनगिनत तारे निकटता का एहसास दे रहे थे और अंधेरे में दूर तक जगमगाती रोशनी भी तारों का ही भ्रम दे रही थी. खामोशी से बैठ यह नजारा देख बड़ा सुकून मिल रहा था. लेकिन अगर अकेली होती तो इस विशालता का आनंद ले पाती. न चाहते हुए भी मुंह से निकल गया, ‘‘कैसे हो?’’

नील आसमान ताक रहा था. मेरे प्रश्न पर सिर घुमा कर मु  झे देखने लगा. एकटक कुछ पल देखने के बाद बोला, ‘‘बहुत सुंदर लग रही हो इस ड्रैस में.’’

नील ने दिलाई थी जन्मदिन पर. कुछ महीनों से पैसे जोड़ रहा था. इस बार तु  झे महंगी सी पार्टीवियर ड्रैस दिलाऊंगा… कहीं भी जाना हो बहुत साधारण कपड़े पहन कर जाना पड़ता है तु  झे.

सारा दिन बाजार घूमते रहे, लेकिन नील को कोई पसंद ही नहीं आ रही थी. फिर यह कढ़ाई वाली मैरून रंग की कुरती और सुनहरा प्लाजो देखते ही बोला था कि यह पहन कर देख रानी लगेगी. शीशे में देखने की जरूरत ही नहीं पड़ी. उस की आंखों ने बता दिया ड्रैस मु  झ पर कितनी फब रही है. कितना समय हो गया है इस बात को. मौके का इंतजार करती रही. किसी खास पार्टी में पहनूंगी… इतनी महंगी है कहीं गंदी न हो जाए. आज औफिस में फंक्शन में पहनने के लिए निकाली थी, लेकिन न जाने क्यों इतनी भीड़ में शामिल होने का मन नहीं कर रहा था. लगा सब को हंसताबोलता देख कहीं दहाड़ें मार कर रोने न लग जाऊं. कुछ सामान इकट्ठा किया और यहां आ गई, इस से पहले कि मेरा बौस हिरेन मु  झे लेने आ जाता.

नील अभी भी मु  झे देख रहा था. बोला, ‘‘इस के साथ   झुमके भी लिए थे वे नहीं पहने…’’

200 रुपए के   झुमके भी खरीदे थे, बड़े चाव से. कैसे 1-1 चीज दिला कर खुश होता था.

मैं हंस कर कहती, ‘‘ऐेसे खुश हो रहे हो जैसे स्वयं पहन कर बैठोगे.’’

वह मुसकरा कर कहता, ‘‘मैं अगर ये सब पहनता होता तो भी मु  झे इतनी खुशी नहीं मिलती जितनी तु  झे पहना देख कर मिलती है.’’

कितना प्रेम था हम दोनों के बीच, लेकिन सुरक्षित भविष्य की चाहत में ऐसे दौड़ पड़े कि वर्तमान असुरक्षित कर लिया… एकदूसरे से ही दूर हो गए.

मैं ने लंबी सांस लेते हुए कहा, ‘‘हिरेन के साथ पार्टी में जाने के लिए तैयार हो रही थी, लेकिन मन नहीं कर रहा था, इसलिए उस के आने से पहले ही जल्दी से निकल गई.’’

हिरेन का नाम सुनते ही नील का चेहरा उतर गया. न जाने क्या गलतफहमी पाले बैठा है दिमाग में. रात बहुत हो गईर् थी. मैं उठ खड़ी हुई. जिस कमरे में मैं ने सामान रखा था वहां चली गई. रात के कपड़े बदल कर लेटने के लिए दरी बिछाई तो ध्यान आया नील कैसे सोएगा, बिना कुछ बिछाए. ऐसे कैसे बिना सामान के रात बिताने यहां आ गया? कितना लापरवाह हो गया है. बाहर आ कर देखा तो नील अभी भी पहले की तरह बालकनी में दीवार के सहारे बैठा आसमान को टकटकी लगाए देख रहा था. कितना कमजोर लग रहा था. पहले जरा सा भी दुबला लगता था तो आधी रोटी अधिक खिलाए बिना नहीं छोड़ती थी.

अब मु  झे क्या? क्या रिश्तों के मतलब इस तरह बदल जाते हैं? मैं ने उस की तरफ चादर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘यह चादर ले लो. बिछा कर लेटना. फर्श ठंडा लगेगा.’’

नील मेरी तरफ देखे बिना बोला, ‘‘नहीं रहने दो. इस की जरूरत नहीं है.’’

‘‘मेरे पास 2 हैं, ले लो.’’

नील बैठेबैठे ही एकदम से मेरी तरफ मुड़ा. उस का मुख तना हुआ था. दबे आक्रोश में बोला, ‘‘जाओ यहां से फिर बोलोगी मु  झे केवल तुम्हारी देह की पड़ी रहती है. तुम्हारे शरीर के अलावा मु  झे कुछ नजर नहीं आता.’’

जब से यह वाकेआ हुआ था हमारे बीच की दरार खाई बन गई थी. वह ताने मार कर बात करता और मैं शांति बनाए रखने के लिए खामोश रहती. अब भाड़ में जाए शांति.

‘‘तो क्या गलत बोला था, थकीहारी औफिस से 6 बजे आती और तुम बस वे सब करना चाहते थे.’’

तुम्हारा जवाब नहीं: क्या मानसी का आत्मविश्वास उसे नीरज के करीब ला पाया

अपनी शादी का वीडियो देखते हुए मैं ने पड़ोस में रहने वाली वंदना भाभी से पूछा, ‘‘क्या आप इस नीली साड़ी वाली सुंदर औरत को जानती हैं?’’

‘‘इस रूपसी का नाम कविता है. यह नीरज की भाभी भी है और पक्की सहेली भी. ये दोनों कालेज में साथ पढ़े हैं और इस का पति कपिल नीरज के साथ काम करता है. तुम यह समझ लो कि तुम्हारे पति के ऊपर कविता के आकर्षक व्यक्तित्व का जादू सिर चढ़ कर बोलता है,’’ मेरे सवाल का जवाब देते हुए वे कुछ संजीदा हो उठी थीं.

‘‘क्या आप मुझे इशारे से यह बताने की कोशिश कर रही हैं कि नीरज और कविता भाभी के बीच कोई चक्कर है?’’

‘‘मानसी, सच तो यह है कि मैं इस बारे में कुछ पक्का नहीं कह सकती. कविता के पति कपिल को इन के बीच के खुलेपन से कोई शिकायत नहीं है.’’

‘‘तो आप साफसाफ यह क्यों नहीं कहतीं कि इन के बीच कोई गलत रिश्ता नहीं है?’’

‘‘स्त्रीपुरुष के बीच सैक्स का आकर्षण नैसर्गिक है. यह देवरभाभी के पवित्र रिश्ते को भी दूषित कर सकता है. जल्द ही तुम्हारी कविता और कपिल से मुलाकात होगी. तब तुम खुद ही अंदाजा लगा लेना कि तुम्हारे साहब और उन की लाडली भाभी के बीच किस तरह के संबंध हैं.’’

‘‘यह बात मेरी समझ में आती है. थैंक यू भाभी,’’ मैं ने उन के गले से लग कर उन्हें धन्यवाद दिया और फिर उन्हें अच्छा सा नाश्ता कराने के काम में जुट गई.

पहले मैं अपने बारे में कुछ बता देती हूं. प्रकृति ने मुझे सुंदरता देने की कमी शायद जीने का भरपूर जोश व उत्साह दे कर पूरी की है. फिर होश संभालने के बाद 2 गुण मैं ने अपने अंदर खुद पैदा किए. पहला, मैं ने नए काम को सीखने में कभी आलस्य नहीं किया और दूसरा यह है कि मैं अपने मनोभाव संबंधित व्यक्ति को बताने में कभी देर नहीं लगाती हूं.

मेरा मानना है कि इस कारण रिश्तों में गलतफहमी पैदा होने की नौबत नहीं आती है. जिंदगी की चुनौतियों का सामना करने में मेरे इन सिद्धांतों ने मेरा बहुत साथ दिया है. तभी वंदना भाभी की बातें सुनने के बावजूद कविता भाभी को ले कर मैं ने अपना मन साफ रखा था.

हम शिमला में सप्ताह भर का हनीमून मना कर कल ही तो वापस आए थे. मैं तो वहां से नीरज के प्रेम में पागल हो कर लौटी हूं. लोग कहते हैं कि ऐसा रंगीन समय जिंदगी में फिर कभी लौट कर नहीं आता. अत: मैं ने तय कर लिया कि इस मौजमस्ती को आजीवन अपने दांपत्य जीवन में जिंदा रखूंगी.

उसी दिन कपिल भैया ने नीरज को फोन कर के हमें अपने घर रात के खाने पर आने के लिए आमंत्रित किया था. वहां पहुंचने के आधे घंटे के अंदर ही मुझे एहसास हो गया कि इन तीनों के बीच दोस्ती के रिश्ते की जड़ें बड़ी मजबूत हैं. वे एकदूसरे की टांग खींचते हुए बातबात में ठहाके लगा रहे थे.

मुझे कपिल भैया का व्यक्तित्व प्रभावशाली लगा. वे जोरू के गुलाम तो बिलकुल नहीं लगे पर कविता का जादू उन के भी सिर चढ़ कर बोलता था. मेरे मन में एकाएक यह भाव उठा कि यह इनसान मजबूत रिश्ता बनाने के लायक है. अत: मैं ने विदा लेने के समय भावुक हो कर उन से कह दिया, ‘‘मैं ने तो आप को आज से अपना बड़ा भाई बना लिया है. इस साल मैं आप को राखी बांधूंगी और आप से बढि़या सा गिफ्ट लूंगी.’’

‘‘श्योर,’’ मेरी बात सुन कर कपिल भैया के साथसाथ उन की मां की आंखें भी नम हो गई थीं. मुझे बाद में नीरज से पता चला कि उन की इकलौती छोटी बहन 8 साल की उम्र में दिमागी बुखार का शिकार हो चल बसी थी.

अगले दिन शाम को मैं ने फोन कर के नीरज से कहा कि वे कपिल भैया के साथ आफिस से सीधे कविता भाभी के घर आएं.

वे दोनों आफिस से लौटीं. कविता भाभी के पीछेपीछे घर में घुसे. यह देख कर उन सब ने दांतों तले उंगलियां दबा ली थीं कि कविता भाभी का सारा घर जगमग कर रहा था. मैं ने कविता भाभी की सास के बहुत मना करने के बावजूद पूरा दिन मेहनत कर के सारे घर की सफाई कर दी थी.

कविता भाभी की सास खुले दिल से मेरी तारीफ करते हुए उन सब को बारबार बता रही थीं, ‘‘तेरी बहू का जवाब नहीं है, नीरज. कितनी कामकाजी और खुशमिजाज है यह लड़की.’’

‘‘तुम अभी नई दुलहन हो और वैसे भी ये सब तुम्हें नहीं करना चाहिए था,’’ कविता भाभी कुछ परेशान और चिढ़ी सी प्रतीत हो रही थीं.

‘‘भाभी, मेरे भैया का घर मेरा मायका हुआ और नई दुलहन के लिए अपने मायके में काम करने की कोई मनाही नहीं होती है. अपनी कामकाजी भाभी का घर संवारने में क्या मैं हाथ नहीं बंटा सकती हूं?’’ उन का दिल जीतने के लिए मैं खुल कर मुसकराई थी.

‘‘थैंक यू मानसी. मैं सब के लिए चाय बना कर लाती हूं,’’ कह कर औपचारिक से अंदाज में मेरी पीठ थपथपा कर वे रसोई की तरफ चली गईं.

मुझे एहसास हुआ कि उन की नाराजगी दूर करने में मैं असफल रही हूं. लेकिन मैं भी आसानी से हार मानने वालों में नहीं हूं. उन्हें नाराजगी से मुक्त करने के लिए मैं उन के पीछेपीछे रसोई में पहुंच गई.

‘‘आप को मेरा ये सब काम करना

अच्छा नहीं लगा न?’’ मैं ने उन से भावुक हो कर पूछा.

‘‘घर की साफसफाई हो जाना मुझे क्यों अच्छा नहीं लगेगा?’’ उन्होंने जबरदस्ती मुसकराते हुए मुझ से उलटा सवाल पूछा.

‘‘मुझे आप की आवाज में नापसंदगी के भाव महसूस हुए, तभी तो मैं ने यह सवाल पूछा. आप नाराज हैं तो मुझे डांट लें, पर अगर जल्दी से मुसकराएंगी नहीं तो मुझे रोना आ जाएगा,’’ मैं किसी छोटी बच्ची की तरह से मचल उठी थी.

‘‘किसी इनसान के लिए इतना संवेदनशील होना ठीक नहीं है, मानसी. वैसे मैं नाराज नहीं हूं,’’ उन्होंने इस बार प्यार से मेरा गाल थपथपा दिया तो मैं खुशी जाहिर करते हुए उन से लिपट गई.

उन्हें मुसकराता हुआ छोड़ कर मैं ड्राइंगरूम में लौट आई. वे जब तक चाय बना कर लाईं, तब तक मैं ने कपिल भैया और नीरज को अगले दिन रविवार को पिकनिक पर चलने के लिए राजी कर लिया था.

रविवार के दिन हम सुबह 10 बजे घर से निकल कर नेहरू गार्डन पहुंच गए. मैं बैडमिंटन अच्छा खेलती हूं. उस खूबसूरत पार्क में मेरे साथ खेलते हुए भाभी की सांसें जल्दी फूल गईं तो मैं उन के मन में जगह बनाने का यह मौका चूकी नहीं थी, ‘‘भाभी, आप अपना स्टैमिना बढ़ाने व शरीर को लचीला बनाने के लिए योगा करना शुरू करो,’’ मेरे मुंह से निकले इन शब्दों ने नीरज और कपिल भैया का ध्यान भी आकर्षित कर लिया था.

‘‘क्या तुम मुझे योगा सिखाओगी?’’ भाभी ने उत्साहित लहजे में पूछा.

‘‘बिलकुल सिखाऊंगी.’’

‘‘कब से?’’

‘‘अभी से पहली क्लास शुरू करते हैं,’’ उन्हें इनकार करने का मौका दिए बगैर मैं ने कपिल भैया व नीरज को भी चादर पर योगा सीखने के लिए बैठा लिया था.

‘‘मुझे योगा भी आता है और एरोबिक डांस करना भी. मेरी शक्लसूरत ज्यादा अच्छी  नहीं थी, इसलिए मैं ने सजनासंवरना सीखने पर कम और फिटनेस बढ़ाने पर हमेशा ज्यादा ध्यान दिया,’’ शरीर में गरमाहट लाने के लिए मैं ने उन्हें कुछ एक्सरसाइज करवानी शुरू कर दीं.

‘‘तुम अपने रंगरूप को ले कर इतना टची क्यों रहती हो, मानसी?’’ कविता भाभी की आवाज में हलकी चिढ़ के भाव शायद सब ने ही महसूस किए होंगे.

मैं ने भावुक हो कर जवाब दिया, ‘‘मैं टची नहीं हूं, बल्कि उलटा अपने साधारण रंगरूप को अपने लिए वरदान मानती हूं. सच तो यही है कि सुंदर न होने के कारण ही मैं अपने व्यक्तित्व का बहुमुखी विकास कर पाई हूं. वरना शायद सिर्फ सुंदर गुडि़या बन कर ही रह जाती… सौरी भाभी, आप यह बिलकुल मत समझना कि मेरा इशारा आप की तरफ है. आप को तो मैं अपनी आइडल मानती हूं. काश, कुदरत ने मुझे आप की आधी सुंदरता दे दी होती, तो मैं आज अपने पति के दिल की रानी बन कर रह रही होती.’’

‘‘अरे, मुझे क्यों बीच में घसीट लिया और कौन कहता है कि तुम मेरे दिल की रानी नहीं हो?’’ नीरज का हड़बड़ा कर चौंकना हम सब को जोर से हंसा गया.

‘‘वह तो मैं ने यों ही डायलौग मारा है,’’ और मैं ने आगे बढ़ कर सब के सामने ही उन का हाथ चूम लिया.

वह मेरी इस हरकत के कारण शरमा गए तो कपिल भैया ठहाका मार कर हंस पड़े. हंसी से बदले माहौल में भाभी भी अपनी चिढ़ भुला कर मुसकराने लगी थीं.

कविता भाभी योगा सीखते हुए भी मुझे ज्यादा सहज व दिल से खुश नजर नहीं आ रही थीं. सब का ध्यान मेरी तरफ है, यह देख कर शायद कविता भाभी का मूड उखड़ सा रहा था. उन के मन की शिकायत को दूर करने के लिए मैं ने तब कुछ देर के लिए अपना सारा ध्यान भाभी की बातें सुनने में लगा दिया. उन्होंने एक बार अपने आफिस व वहां की सहेलियों की बातें सुनानी शुरू कीं तो सुनाती ही चली गईं.

जल्द ही मैं उन के साथ काम करने वाले सहयोेगियों के नाम व उन के व्यक्तित्व की खासीयत की इतनी सारी जानकारी अपने दिमाग में बैठा चुकी थी कि उन के साथ भविष्य में कभी भी आसानी से गपशप कर सकती थी.

‘‘आप के पास बातों को मजेदार ढंग से सुनाने की कला है. आप किसी भी पार्टी की रौनक बड़ी आसानी से बन जाती होंगी,

कविता भाभी,’’ मेरे मुंह से निकली अपनी इस तारीफ को सुन कर भाभी का चेहरा फूल सा खिल उठा था.

उस रात को नीरज ने जब मुझे मस्ती भरे मूड में आ कर प्यार करना शुरू किया तब मैं ने भावुक हो कर पूछा, ‘‘मैं ज्यादा सुंदर नहीं हूं, इस बात का तुम्हें कितना अफसोस है?’’

‘‘बिलकुल भी नहीं,’’ वह मस्ती से डूबी आवाज में बोले.

‘‘अगर मैं भाभी से अपनी तुलना करती हूं तो मेरा मन उदास हो जाता है.’’

‘‘पर तुम उन से अपनी तुलना करती ही क्यों हो?’’

‘‘आप के दोस्त की पत्नी इतनी सुंदर और आप की इतनी साधारण. मैं ही क्या, सारी दुनिया ऐसी तुलना करती होगी. आप भी जरूर करते होंगे.’’

‘‘तुलना करूं तो भी उन के मुकाबले तुम्हें इक्कीस ही पाता हूं, यह बात तुम हमेशा के लिए याद रख लो, डार्लिंग.’’

‘‘सच कह रहे हो?’’

‘‘बिलकुल.’’

‘‘मैं शादी से पहले सोचती थी कि कहीं मैं अपने साधारण रंगरूप के कारण अपने पति के मन न चढ़ सकी तो अपनी जान दे दूंगी.’’

‘‘वैसा करने की नौबत कभी नहीं आएगी, क्योंकि तुम सचमुच मेरे दिल की रानी हो.’’

‘‘आप अगर कभी बदले तो पता है क्या होगा?’’

‘‘क्या होगा?’’

मैं ने तकिया उठाया और उन पर पिल पड़ी, ‘‘मैं तकिए से पीटपीट कर तुम्हारी जान ले लूंगी.’’

वह पहले तो मेरी हरकत पर जोर से चौंके पर फिर मुझे खिलखिला कर हंसता देख उन्होंने भी फौरन दूसरा तकिया उठा लिया.

हमारे बीच तकियों से करीब 10 मिनट तक लड़ाई चली. बाद में हम दोनों अगलबगल लेट कर लड़ने के कारण कम और हंसने के कारण ज्यादा हांफ रहे थे.

‘‘आज तो तुम ने बचपन याद करा दिया, स्वीट हार्ट, यू आर ग्रेट,’’ उन्होंने बड़े प्यार से मेरी आंखों में झांकते हुए मेरी तारीफ की.

‘‘तुम्हें बचपन की याद आ रही है और मेरे ऊपर जवानी की मस्ती छा गई है,’’ यह कह कर मैं उन के चेहरे पर जगहजगह छोटेछोटे चुंबन अंकित करने लगी. उन्हें जबरदस्त यौन सुख देने के लिए मैं उन की दिलचस्पी व इच्छाओं का ध्यान रख कर चल रही हूं. अपना तो यही फंडा है कि एलर्ट हो कर संवेदनशीलता से जिओ और नएनए गुण सीखते चलो.

मेरी आजीवन यही कोशिश रहेगी कि मैं अपने व्यक्तित्व का विकास करती रहूं ताकि हमारे दांपत्य में ताजगी व नवीनता सदा बनी रहे. उन का ध्यान कभी इस तरफ जाए ही नहीं कि उन की जीवनसंगिनी की शक्लसूरत बहुत साधारण सी है.

वे होंठों पर मुसकराहट, दिल में खुशी व आंखों में गहरे प्रेम के भाव भर कर हमेशा यही कहते रहें, ‘‘मानसी, तुम्हारा जवाब नहीं.’’

वन मिनट प्लीज: क्या रोहन और रूपा का मिलन दोबारा हो पाया- भाग 1

‘‘रूपा जल्दी आओ.’’ ‘‘वन मिनट प्लीज.’’ रोहन भुनभुना उठा, ‘‘वन मिनट, वन मिनट करते हुए आधा घंटा हो गया.’’ अम्मां सम  झाते हुए बोलीं, ‘‘धीरज रखो. लड़कियों को सजने में देर लगती है.’’
‘‘अम्मां जाम में फंस गए तो होगा यह कि होस्ट ही आखिर में पहुंचेगा.’’

रूपा तैयार हो कर अपने कमरे से निकली. उस ने अम्मां का हाथ पकड़ा और गाड़ी में जा कर बैठ गई. रोहन उसे अपलक निहारता रह गया. लाल साड़ी में वह बहुत सुंदर लग रही थी. वह तेजी से गाड़ी चला कर होटल पहुंचा. वहां लोगों का आना शुरू हो चुका था.

आज उस ने होटल अशोक में शानदार पार्टी का आयोजन किया था. यह उस की ऐडवर्टाइजिंग कंपनी का वार्षिक समारोह था. साथ ही उसे अपनी पत्नी रूपा को सब से मिलवाना था. यह उस के लिए दोहरी खुशी का दिन था.

रोहन माइक पकड़ कर बोला, ‘‘माई डियर फ्रैंड्स, आज खुशी के अवसर पर मैं आप सब के सामने बड़े भाई जैसे दोस्त समीर का सच्चे दिल से शुक्रिया अदा करता हूं, जिन्होंने मु  झे जीने की राह दिखाई. मैं निराश हो कर टूटे हुए दिल से पुणे आया था, लेकिन उन की मदद से यह कंपनी बनाई और आप के सहयोग से आज हम कहां हैं आप सब जानते हैं. और ये हैं मेरी पत्नी रूपा जो मेरे बगल में खड़ी हैं. इन्हें मैं आप सब से मिलवाना चाह रहा था, जिस के लिए आज का दिन मु  झे उपयुक्त लगा.

रोहन का दोस्त ऋषभ बोला, ‘‘क्यों यार, बड़े छिपे रुस्तम निकले, शादी कर ली, लेकिन किसी को हवा भी नहीं लगने दी.’’ हिमांशु उस के कान में फुसफुसाया, ‘‘बहुत सुंदर है भाभी, कहां छिपा रखी थी?’’
वह हंस पड़ा. ज्ञान बोला, ‘‘रोहन तू बड़ा लकी है. चमकता हुआ बिजनैस और दमकती हुई बीवी दोनों एकदूसरे के लिए ही बने हो.’’

समीर, उस का पार्टनर पार्टी की व्यवस्था देख रहा था. पार्टी में खूब रौनक हो रही थी. उस ने रूपा के मम्मीपापा  को भी फोन कर के बुलाया था. पार्टी देर रात तक चलती रही. पीनापिलाना भी बदस्तूर जारी था, परंतु रोहन ने ड्रिंक को हाथ भी नहीं लगाया.

आज रूपा बहुत खुश थी. ऐसे ही रोहन की तो उस ने कल्पना की थी. आज उस  के मम्मीपापा और भैयाभाभी ने भी देख लिया कि रोहन कहां से कहां पहुंच चुका है. आज वह मन ही मन सोच रही थी कि यह तो गर्व की बात है कि उसे रोहन जैसा अच्छा पति मिला है, लेकिन उस ने क्या किया? उस ने तो रोहन पर अत्याचार करने में कोई भी कसर नहीं छोड़ी थी.

पार्टी बहुत अच्छी तरह समाप्त हो गई थी. घर आ कर रोहन नाइट सूट पहन कर आया और उसे किस करते हुए बोला, ‘‘रूपा, तुम खुश तो हो न?’’ ‘‘हां रोहन मैं बहुत खुश हूं लेकिन शर्मिंदा भी हूं कि अपने हीरे जैसे पति को कोयला सम  झ कर मैं ने कितना सताया है, वह उस के मुंह पर उंगली रख कर बोला, ‘‘अब पिछली बातें भूल जाओ. आज को ऐंजौय करो और उस का आनंद उठाओ.’’

दिन भर का थका हुआ रोहन बैड पर लेटते ही गहरी नींद में सो गया, लेकिन आज रूपा की आंखों से नींद उड़ गई थी. उस के जीवन के सारे उतारचढ़ाव उस की आंखों के सामने पिक्चर की रील की तरह घूम रहे थे. ऐसा लगता है कि कल की ही बात है जब उस ने एम.बी.ए. में ऐडमिशन लिया था. वहां नए बैच की पार्टी में रोहन पर उस की निगाह पड़ी. रोहन कविताएं लिखता था. उस ने स्टेज से कविताएं सुनाई थीं, तो पूरा हौल तालियों से गूंज उठा था. लोगों की फरमाइश पर उस ने एक गाना भी सुनाया था. फिर तो कालेज के सारे फंक्शन रोहन के बिना अधूरे होते थे.

पहली नजर में ही रोहन उस की निगाहों में बस गया था. लेकिन रोहन ने तो उस की ओर निगाहें उठा कर भी नहीं देखा था. वह कई बार उस की तारीफ करने के लिए उस के पास गई भी थी, परंतु वह उस को देख कर अनदेखा करता रहा. उस के रवैये के कारण वह अपमानित महसूस कर रही थी.

फिर मन ही मन उस ने रोहन को सबक सिखाने की ठान ली. एक दिन वह उस के पास पहुंच गई और कौफी पीने के लिए उसे कैफेटेरिया में ले कर गई. बस उस दिन से उन दोनों की मुलाकातें शुरू हो गईं. वह रोज एक नई कविता लिख कर लाता, वह सुनती कम, बस अपलक उसे निहारती रहती. धीरेधीरे वह उस को पाने के लिए पागल हो उठी थी. अब पढ़ाईलिखाई में उस का मन नहीं लगता था. कालेज के बाद वह रोहन के रूम में पहुंच जाया करती थी.

फाइनल सैमेस्टर की परीक्षा के दिन आ गए थे. एक दिन रोहन ने उस से कहा था, ‘रूपा, अब कुछ दिनों के लिए हम लोगों का मिलनाजुलना बंद रहेगा, क्योंकि अब मु  झे अपने ऐग्जाम की तैयारी करनी है.’
वह छूटते ही बोल पड़ी थी, ‘क्यों, क्या केवल तुम्हारा ही ऐग्जाम है, मेरा नहीं? मेरी हैल्प कौन करेगा?’
वह उस को सम  झाते हुए बोला था, ‘देखो रूपा, तुम्हारे नंबर या पोजिशन कुछ खराब भी आई तो तुम्हें तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा. तुम्हारे घर वाले किसी रईस परिवार के लड़के के साथ तुम्हारी शादी कर देंगे. फिर तुम बड़ीबड़ी गाडि़यों में घूमा करोगी. पर मेरा तो पूरा भविष्य ही इस रिजल्ट पर निर्भर करता है. मेरा यदि कैंपस सिलैक्शन न हुआ या ढंग की नौकरी न मिली तो मेरे लिए तो रोटी के भी लाले पड़ जाएंगे और मैं अपनी अम्मां को मुंह दिखाने लायक भी नहीं रहूंगा. उन्होंने बहुत मेहनत कर मु  झे पढ़ाया है. प्लीज रूपा, मु  झे माफ कर दो,’ और बाय कर के वह तेजी से चला गया था.

उस ने 2-3 दिन तो किसी तरह बिताए. फिर उसे रोहन के बिना दुनिया वीरान लगने लगी तो वह उस के कमरे में एक दिन पहुंच गई थी. फिर वही सिलसिला चालू हो गया था. एक पल में दोनों के बीच वह सब भी हो गया जो नहीं होना चाहिए था. इस के लिए रोहन को बहुत पछतावा हो रहा था, परंतु वह तो मन ही मन मुसकरा रही थी. अब रोहन पूरी तरह से उस का हो चुका था.

रिजल्ट आने वाला था. रोहन बहुत घबराया हुआ था. नतीजा तो वही हुआ, जो होना था. उस की पोजिशन खराब हो गई थी. उस का कैंपस सिलैक्शन भी नहीं हुआ. वह तो बस किसी तरह से पास हो पाया था. लेकिन रूपा को कोई परवाह नहीं थी.

नौकरी न मिलने के कारण रोहन बहुत परेशान और उदास रहता था. एक शाम जब रूपा रोहन के साथ कैफेडे में कौफी पी रही थी, तो वहां राघव भैया मीटिंग के लिए आ गए. उन्होंने उसे रोहन के साथ देख लिया तो घर में तूफान मचा दिया था. मम्मीपापा भी राघव भैया के साथ चिल्लाने लगे और उस के घर से निकलने पर पाबंदी लगा दी गई. कमरे के अंदर रोरो कर उस का कितना बुरा हाल हो गया था.

पापा ने   झटपट उस का रिश्ता एक रईस परिवार में तय कर दिया. उस के लाख मना करने पर भी पापा उस की शादी की तैयारियों में लगे हुए थे. उस की इच्छा को कोई सम  झने को तैयार नहीं था. वह रोहन को प्यार करने लगी थी और वह उस के साथ शादी कर लेना चाहती थी. एक दिन मौका लगते ही वह भाग कर उस की बांहों में जा कर सिसक उठी थी, ‘रोहन प्लीज, मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकूंगी. मेरे पेट में तुम्हारी निशानी पल रही है. तम्हें अभी मंदिर में चल कर मेरे साथ शादी करनी पड़ेगी, नहीं तो मैं अपनी जान दे दूंगी.’

रोहन बच्चे की बात सुन कर बहुत घबरा गया था. वह रोंआसा हो उठा था. और बोला, ‘रूपा, मैं बहुत गरीब परिवार से हूं्. मेरी मां एक प्राइमरी स्कूल में टीचर हैं. उन बेचारी ने मेरे लिए बहुत से ख्वाब देख रखे हैं. मेरे इस तरह से शादी करने पर वे टूट जाएंगी? और मेरी नौकरी भी अभी नहीं लगी है.

‘फिर मैं साइकिल पर चलने वाला और तुम्हारे पास अपनी कार है. भला बताओ मेरा और तुम्हारा क्या मेल? मैं तुम्हारी जिम्मेदारी कैसे उठा पाऊंगी? प्लीज, मेरा कहना मानो, अपने घर लौट जाओ. इसी में हम दोनों की भलाई है.’

‘मेरी भी सुनो प्लीज, अच्छी तरह सम  झ लो कि मैं अपने घर से भाग कर आई हूं. अब लौट कर जाने का कोई प्रश्न ही नहीं है. बच्चे की बात सुन कर तो पापा मु  झे गोली मार देंगे. घर लौटने से तो अच्छा है, तुम मेरे लिए जहर ला दो.’

परेशानहाल रोहन अपने सिर पर हाथ रख कर बैठ गया था. ‘मुंह लटका कर बैठने से थोड़े ही कुछ होगा,’ वह बोली, ‘चलो तम्हारी अम्मां के पास चलते हैं. वे जो भी कहेंगी वह मैं मान लूंगी. वे मेरी स्थिति को सम  झेंगी.’

रोहन उसे अपने घर ले कर गया था. वहां एक छोटे से मकान के एक पोर्शन में उस की अम्मां रहती थी. दूसरा पोर्शन किराए पर चढ़ा था. उस की अम्मां सरोज बेटे के साथ लड़की को देख सन्नाटे में आ गई थीं. वे कुछ सम  झ पातीं इस से पहले ही वह उन के गले से लग कर यह कहते हुए फूटफूट कर रोने लगी थी, ‘मैं रोहन के बिना एक पल भी नहीं रह सकती. मैं उस के बच्चे की मां बनने वाली हूं. मेरे पापा मेरी शादी किसी और लड़के के साथ कर रहे हैं. मैं घर से भाग कर आ गई हूं. हो सकता है वे मु  झे ढूंढ़ते हुए पुलिस ले कर आप के घर आ जाएं.’

अम्मां अपने बेटे की करतूत सुन कर क्रोधित हो उठीं. बेटे के गाल पर जोरदार तमाचा लगा कर बोलीं, ‘तू पैदा होते ही क्यों नहीं मर गया था? आज तेरी वजह से मेरा सिर शर्म से   झुक गया है.’ उन्होंने तुरंत रूपा को अपने एक पड़ोसी के यहां छिपा दिया था. कुछ ही देर में उस के पापा उसे खोजते हुए पुलिस ले कर आ गए थे. पुलिस लड़की भगाने के आरोप में रोहन को अपने साथ पकड़ कर ले जाने वाली थी, तभी वह बाहर निकल कर रोहन का हाथ पकड़ कर खड़ी हो गई थी और बोल पड़ी थी, ‘मैं बालिग हूं ये मेरे पति हैं. मैं इन के साथ शादी कर चुकी हूं.’ दरअसल, वह रोहन को सच में प्यार करने लगी थी.

पापा अपना माथा पीटते हुए यह कह कर चले गए थे, ‘आज से मेरातेरा कोई रिश्ता नहीं है. अभी 6 महीने में तेरा प्यार का भूत उतर जाएगा. तब तु  झे सम  झ आएगा कि तू ने कितनी बड़ी गलती की है.’
रोहन की तो बोलती ही बंद थी. सब कुछ इतना अप्रत्याशित घटा था कि वह कुछ विश्वास ही नहीं कर पा रहा था. अम्मां परेशान थीं कि पराई लड़की और वह भी उम्मीद से है, इस परेशानी से कैसे निबटें? फिर अगले दिन ही वे 8-10 लोगों के सामने मंदिर में फेरे करवा कर उसे अपनी बहू बना कर अपने घर ले आई थीं.

इस तरह की शादी की तो उस ने कभी कल्पना भी नहीं की थी परंतु रोहन को पा कर वह बहुत खुश थी.
लेकिन रईस परिवार की नाजों से पली लाडली थी वह. उस ने अपने हाथों से कभी चाय भी नहीं बनाई थी, तो वह भला घर के काम करना क्या जाने? अम्मां ने उस की सचाई को सम  झा था और इस कारण उस से कोई उम्मीद नहीं की थी.

तोहफा: भाग 1- रजत ने सुनयना के साथ कौन-सा खेल खेला

जब सुनयना 5 वर्ष की थी तभी उसे पता लग गया था कि वह बहुत सुंदर है. जब भी वह अपने मातापिता के साथ कहीं जाती, तो लोग उस के रंगरूप की तारीफ करते जैसे, ‘मोहन आप की बेटी कितनी प्यारी है. जब इस उम्र में ही इतनी सुंदर है तो आगे चल कर गजब ढाएगी.’

ऐसी बातें सुन कर उस के मातापिता की छाती गर्व से चौड़ी हो जाती. वे अपनी बेटी को बहुत ज्यादा लाड़प्यार देते और उस के नाजनखरे उठाने को तैयार रहते. सुनयना बातबात पर ठुनकती, मचलती. वह जान गई थी कि उस का रूप एक ऐसा औजार है जिस के जरीए वह जिस से जो चाहे करा ले. उस की एक मुसकान पर लोग निहाल हो जाते हैं और उस के माथे पर आई शिकन से उन के होश फाख्ता हो जाते हैं.

स्कूल में भी लड़के उस के आगेपीछे डोलते. कोई उस के लिए नोट्स कौपी कर रहा होता, तो कोई उस का स्कूल बैग लादे फिर रहा होता और कोई उसे अपना टिफिन खिला रहा होता. उस के ऐसे बहुत से दिलफेंक आशिक थे, जो उस की एक झलक के लिए लालायित रहते और उसे देख कर आहें भरते. सुनयना यह जान कर मन ही मन इतराती.

उस के मातापिता चौकन्ने हो गए थे. उन्होंने उस पर पहरा बैठा दिया था. उन के घर में काम करने वाली एक बूढ़ी औरत हमेशा उस के साथ कालेज भेजी जाती, जो उस की जासूसी कर के उस की हर एक गतिविधि की खबर उस के मांबाप को देती.

कालेज में जल्दी ही उस की कुछ अंतरंग सहेलियां बन गईं. सब की सब चुलबुली और नटखट थीं. उन के गुट को लोग चांडाल चौकड़ी के नाम से पुकारते. उन्हें जब पढ़ाई से फुरसत मिलती तो वे बैठ कर सोचतीं कि आज किसे बुद्धू बनाया जाए. इस खेल में उन सब को बड़ा आनंद आता था. कभी वे आवाज बदल कर किसी लड़के को फोन करतीं. उसे किसी होटल या पार्क में आ कर मिलने का निमंत्रण देतीं. और जब लड़का उस जगह पर पहुंच कर बेवकूफों की तरह इधरउधर ताकता और पलपल अधीर होता, तो वे छिप कर देखतीं और हंसी से लोटपोट होतीं. कभी वे सिनेमा का एक ऐक्स्ट्रा टिकट खरीद कर किसी बुद्धू लड़के को पकड़ाती और कहतीं ‘‘यह टिकट फालतू है. आप चाहें तो ले सकते हैं.’’

और जब वह लड़का उन की बातों में आ कर टिकट ले कर ले कर उन के पास आ बैठता तो वे सब उस से चुहल करतीं.

एक दिन कालेज में एक सुंदर नौजवान आया. उसे देखते ही कालेज में एक हलचल मच गई. लड़कियों में उत्तेजना की एक लहर दौड़ गई. वे अपने क्लासरूम से निकल कर उस की एक झलक पाने को उतावली हो उठीं. उन सब में उस लड़के से पहचान बनाने की होड़ सी लग गई. सुनयना भी उस पर फिदा हो गई.

उस का नाम रजत था. वह शहर के मशहूर उद्योगपति दिवाकर लाल का बेटा था और उस ने इस कालेज में ऐडमिशन लिया था. वह अपनी हाईफाई कार से कालेज आता. बढि़या से बढि़या डिजाइनर कपडे़ पहनता. लेकिन पढ़ाई के नाम पर मस्ती करता. अधिकांश समय वह क्लास कट कर के कैंटीन में अपने यारदोस्तों से घिरा बैठा रहता और आनेजाने वाली लड़कियों पर फबती कसता. लेकिन लड़कियां उस की दीवानी थीं.

सुनयना ने नाकभौं सिकोड़ कर सब को सुना कर यह कहा कि उसे रजत में कोई दिलचस्पी नहीं, लेकिन मन ही मन वह यह सोच कर जरा असहज हुई कि उस के रूप का जादू रजत पर अभी तक क्यों नहीं चल पाया था? पर वह किसी भी हालत में पहल करने को तैयार न थी. अगर रजत पैसे की घमंड से भरा था तो वह भी अपने रूप के मद में चूर थी.

एक दिन कालेज में एक फैशन शो का आयोजन किया गया, जिस में  सुनयना और उस की सखियों ने भी भाग लिया. सुनयना ने सब से आखिर में स्टेज पर प्रवेश किया. उस ने एक भड़कीली जरदोजी के काम वाली घाघराचोली पहन रखी थी और उस के माथे पर मांगटीका सजा था, जो उस की खूबसूरती में चार चांद लगा रहा था.

उसे देख लोग सीटी बजाने लगे. सारा हौल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. उस ने स्टेज पर बलखाती चाल चलते हुए कनखियों से नोट किया कि दर्शकों की पहली कतार में रजत अपने दोस्तों से घिरा बैठा था और उस की ओर एकटक देख रहा था. सुनयना का दिल जोर से धड़क उठा. अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे उस ने मन ही मन मुसकरा कर सोचा.

कार्यक्रम समाप्त हुआ और जैसे ही सुनयना कपड़े बदल कर ग्रीनरूम से बाहर निकली तो देखा कि बाहर रजत खड़ा था.

‘‘कौंग्रैट्स,’’ उस ने बड़ी आत्मीयता से कहा, ‘‘आप तो कमाल की मौडलिंग करती हैं. मेरे पिता हमारे मिल की बनी साडि़यों की लिए आप के साथ अनुबंध करना चाहते हैं. मैं ने उन से बात की है. आप को मुंहमांगे पैसे मिलेंगे.’’

इस तरह उन की दोस्ती की शुरुआत हुई. सुनयना रजत के रईसी ठाठ से प्रभावित हुई, तो उस के आकर्षक व्यक्तित्व ओर भी खिंचती चली गई. सुनयना उस के साथ बड़ीबड़ी गाडि़यों में सफर करने लगी और फाइव स्टार होटलों में खाने लगी. हर दिन एक नया प्रोग्राम बनता. कभी मड आइलैंड की सैर कर रहे हैं तो कभी गोवा घूमने या जुहू बीच में तैरने जा रहे हैं. हर शनिवार को किसी डिस्को में उन की शाम गुजरती.

दिन पर दिन बीतते गए. एक दिन उस ने पाया कि एकएक कर के उस की सब सहेलियों की शादी हो चुकी है. वह अकेली बची है, जो अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकी है और समय काटने के लिए नौकरी करने के लिए बाध्य है. थोड़े दिनों बाद उस ने नरीमन प्वाइंट में एक होटल में नौकरी कर ली और उस के मातापिता दिनरात उस से शादी के लिए तकाजा कर रहे थे.

‘‘ऐसे कितने दिन चलेगा बिट्टो?’’ उस की मां चिंतित हो कर कहतीं, ‘‘तू 25 साल पार कर चुकी है. कब तक इस रजत के भरोसे बैठी रहेगी? माना कि वह बहुत अच्छा लड़का है. उस से अच्छा रिश्ता हम तेरे लिए ढूंढ़ ही नहीं सकते. पर बेटी क्या तू ने कभी उस का दिल टटोलने की कोशिश की है? उस के मन में क्या है यह कौन जाने? इन रईसजादों का क्या ठिकाना. तुझ से शादी भी करेगा या यों ही अटकाए रखेगा? तेरी उम्र ज्यादा हो जाएगी तो ढंग का लड़का मिलना मुश्किल हो जाएगा. फिर तू न इधर की रहेगी न उधर की.’’

‘‘हम तेरे भले के लिए ही कहते हैं,’’ उस के पिता ने समझाया, ‘‘रजत से मिल कर किसी नतीजे पर आना तेरे लिए बहुत जरूरी है. ऐसा न हो कि आगे चल कर वह तुझे टरका दे. हमें तेरी फिक्र लगी है.’’

सुनयना सही मौके की तलाश में थी. उस रोज उस का जन्मदिन था. रजत उसे एक शानदार होटल में खाना खिलाने ले गया और उसे एक सुंदर सी डिजाइनर साड़ी भेंट की. फिर जब वह उसे घर छोड़ने जाने लगा तो सुनयना मुसकरा कर बोली, ‘‘इस बेहतरीन शाम के लिए शुक्रिया, मुझे यह शाम हमेशा याद रहेगी.’’

‘‘तुम्हारा अगला जन्मदिन हम और धूमधाम से मनाएंगे’’

‘‘पता नहीं अगले साल हम कहां होंगे.’’

‘‘क्यों?’’ रजत ने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘तुम्हारा कहीं जाने का इरादा है क्या?’’

‘‘मेरे मातापिता  हाथ धो कर मेरे पीछे पड़े हैं कि मैं शादी कर लूं. मेरी वजह से उन की रातों की नींद हराम हो गई है.’’

‘‘तुम क्या चाहती हो?’’

‘‘तुम तो जानते हो रजत मेरे दिल का हाल फिर भी यह सवाल करते हो. पिछले 4 सालों से हम दोनों साथसाथ हैं. हमारे सब दोस्त जानते हैं कि मैं तुम्हारी गर्लफ्रैंड हूं. तुम्हारे बिना मेरा कोई वजूद नहीं है.’’

‘‘मैं जानता हूं,’’ रजत ने उस का हाथ अपने हाथों में ले कर प्यार से चूमा, ‘‘मैं भी तो तुम्हारा दीवाना हूं. आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई है.’’

‘‘लेकिन इस प्यार का अंजाम क्या होगा?’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘क्या हम दोनों हमेशा यों ही गर्लफ्रैंडबौयफ्रैंड बने रहेंगे? क्या हम शादी नहीं करेंगे?’’

‘‘अरे यार शादी में क्या रखा है. जहां तक मैँ ने देखा है 2 प्रेमियों की शादी हुई नहीं कि उन का प्यार काफूर हो जाता है. अब मेरे मम्मीडैडी को ही ले लो. उन का प्रेम विवाह हुआ था. पर अब एक ही घर में अजनबियों की तरह रहते हैं. मैं ने कभी उन्हें एकदूसरे से प्यार जताते नहीं देखा. दोनों अपनीअपनी राह चलते हैं. सच पूछो तो मेरी शादी की संस्था में बिलकुल आस्था नहीं है.’’

‘‘इस का मतलब है कि तुम कभी शादी नहीं करोगे?’’ वह परेशान हो उठी.

‘‘रिलैक्स यार, बेकार टैंशन मत लो लेकिन सुनो मेरे दिमाग में एक बात आई है. शादी करने के बजाय क्यों न हम साथसाथ रहने लगें?’’

‘‘साथसाथ तुम्हारा मतलब बिना शादी के?’’ उस की आंखें फैल गईं.

वन मिनट प्लीज: क्या रोहन और रूपा का मिलन दोबारा हो पाया- भाग 2

रोहन परेशान था. वह नौकरी की खोज में दिनरात लैपटौप पर आंखें गड़ाए रहता. यहांवहां दौड़भाग कर इंटरव्यू भी दे रहा था, लेकिन बात नहीं बन पा रही थी. थोड़ी दिनों बाद बमुश्किल एक कालसैंटर मैं नौकरी मिल गई थी. रूपा रोहन की बांहों मे बांहें डाल कर घूमने जाना चाहती थी, परंतु उस का उतरा हुआ चेहरा देख उस का उत्साह ठंडा हो जाता. वह चिड़चिड़ाने लगी थी, क्योंकि उस के सपने टूटने लगे थे.
‘रोहन, तुम्हें सैलरी मिली होगी. चलो हम लोग आज पार्टी करेंगे,’ एक दिन वह बोली थी.

धीमी आवाज में वह बोला था, ‘चलो कहीं डोसा खा लेंगे.’

‘तुम खर्च की चिंता न करो, मेरे अकाउंट में पैसे हैं?’

‘देखो रूपा, तुम अपने पैसे बचा कर रखो. जाने क्या जरूरत पड़ जाए.’

‘तुम बिलकुल चिंता न करो, पापा से मैं कहूंगी तो वे मना नहीं करेंगे.’

वह बोला था, ‘यह मु  झे बिलकुल भी अच्छा नहीं लगेगा.’

वह चिल्ला पड़ी थी, ‘तुम्हारी सैलरी जितनी है, इतना तो मैं एक दिन की शौपिंग में खर्च कर डालती थी.’
‘यह तो तुम्हें शादी करने के पहले सोचना चाहिए था.’

वह नाराज हो गई थी और उसे मायके का ऐशोआराम याद आने लगा. इस से बाद तो उस का पैसे को ले कर रोहन से अकसर   झगड़ा होने लगा था.

यदि अम्मां बीचबचाव करतीं तो वह अम्मां पर जोर से चिल्ला पड़ती थी. रोहन भला अपनी छोटी सी तनख्वाह में उस की बड़ीबड़ी फरमाइशें कैसे पूरी करता? वह उसे तंग कर मन ही मन खुश होती थी. दरअसल वह चाहती थी कि रोहन परेशान हो कर उस के साथ उस के घर चला चले, जिस से वह फिर से पहले की तरह ऐशोआराम से रह सके.

एक दिन अम्मां उस से बोलीं थीं, ‘क्यों रूपा, तुम्हारा पेट देख कर तो मालूम नहीं पड़ रहा है कि तुम्हारे 3-4 महीने पूरे हो चुके हैं.’ वह बेशर्मी से बोली थी, ‘अम्मां वह तो मैं ने   झूठमूठ यों ही कह दिया था, नहीं तो आप शादी के लिए कभी हां न कहतीं. मैं तो रोहन को पाना चाहती थी.’

उस की बात सुन कर अम्मां सन्न रह गईं थीं. वे विश्वास ही नहीं कर पा रही थीं कि कोई लड़की अपनी इज्जत लुटने की बात को बेमतलब इस तरह डंका बजा कर कह सकती है.

एक दिन वे उस से बोली थीं, ‘रूपा तुम नौकरी कर लो, तुम्हें हाथ खर्च के लिए कुछ रुपए मिल जाया करेंगे.’ घर के पास ही प्लेस्कूल था. अम्मां के कहने पर 10-12 दिन वह वहां गई थी, लेकिन 5,000 रुपए के लिए छोटेछोटे बच्चों से मगजमारी करने में उस का मन ही नहीं लग रहा था. इस में उसे अपनी हेठी भी लग रही थी.

एक दिन अम्मां को बुखार आ गया था तो वे उस से बोली थीं, ‘रूपा, रोहन आने वाला है. उस के लिए कुछ खाना बना लो.’ वह उन पर चिल्ला पड़ी थी, ‘आप की वजह से ही रोहन का इतना दिमाग खराब है. आज हम लोग बाहर जा कर खाना खाएंगे.’

अम्मां चुप हो गई थीं. वे बुखार में बेसुध सी हो रही थीं. रोहन ने औफिस से आते ही कपड़े भी नहीं बदले, पहले अम्मां को चाय बना कर पिलाई और दवा खिलाई. फिर उस के कहने पर वह उसे बाहर खाना खिलाने के लिए ले गया, लेकिन उस ने कुछ भी नहीं खाया.

वह ताव में बोली थी, ‘क्यों मुंह फुला रखा है? मैं ने थोड़े ही तुम्हारी अम्मां को बीमार किया है. तुम ने कुछ खाया क्यों नहीं?’ ‘चुपचाप खाना खाओ, आज मेरा मूड ठीक नहीं है.’ ‘तुम्हारा मूड अच्छा कब रहता है? हमेशा तुम्हारे चेहरे पर मनहूसियत छाई रहती है.’

रोहन भी नाराज हो कर बोला था, ‘रूपा बेकार की बहस मत करो. अम्मां की तबीयत खराब थी, तुम ने उन्हें एक कप चाय भी बना कर नहीं दी.’ वह जोर से चिल्ला कर बोली थी, ‘मैं क्यों बनाऊं? क्या मैं तुम लोगों की नौकरानी हूं, अपनी अम्मां से बहुत लाड़ है तो एक नौकरानी रख लो,’ यह सुन कर रोहन का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा था. वह बोला था, ‘तुम्हारी बदतमीजी बढ़ती ही जा रही है. मेरे सामने से हट जाओ. मु  झे बहुत जोर का गुस्सा आ रहा है.’ गुस्से में उस का हाथ भी उठ गया था.

‘तुम्हें गुस्सा आ रहा है तो मु  झे तुम से ज्यादा गुस्सा आ रहा है. तुम्हारी इतनी हिम्मत कि तुम ने मु  झ पर हाथ उठाया. दहेज ऐक्ट में तुम्हारी शिकायत कर दूंगी तो मांबेटे दोनों जेल चले जाओगे.’ रोहन का चेहरा काला पड़ गया था. शायद वह डर गया था. रोहन को चुप देख कर वह और जोर से चीखने लगी थी, ‘शादी किए 8 महीने पूरे हो गए हैं. दिनरात वही हायहाय. न कहीं घूमना न फिरना. बस सूखी रोटी चबा लो और घर के अंदर बंद रहो. जाने कौन सी मनहूस घड़ी थी, जब मैं ने तुम से शादी की. मेरी तो जिंदगी ही बरबाद हो गई.’

जोरजोर से चीखती और रोती हुई वह अपने कमरे की ओर जा रही थी तभी रोहन की आवाज उस के कानों में पड़ी थी,  ‘मैं ने तो तुम्हें शादी के लिए बहुत मना किया था.’ रोहन की बात ने आग में घी का काम
किया था. वह थोड़ी देर बाद कमरे में आया तो उसे देख घबरा उठा था. उस के मुंह से झाग निकल रहा था और उस की सांसें धीमी पड़ रही थीं.

वह भाग कर पड़ोस के डाक्टर को बुला कर लाया था और उस से गिड़गिड़ा कर बोला
था, ‘डाक्टर, मेरी रूपा को बचा लीजिए.’ उस से रोहन ने उस का हाथ पकड़ कर वादा किया था कि जो वह कहेगी वह वही करेगा. वह तो मौके की तलाश में थी ही. उस ने यह शर्त रखी थी कि वे ठीक होते ही पापा के घर चल कर रहेंगे. और यह भी कहा था कि रोहन तुम्हें यह नौकरी छोड़नी पड़ेगी और पापा का औफिस जौइन करना होगा.

उस दिन उस ने सिर   झुका कर उस की बस बातें मान ली थीं, तो यह सोच कर कि वह फिर से ऐशो आराम से रहेगी उस की खुशी का ठिकाना नहीं था. रोहन अपनी अम्मां को रोता हुआ बमुश्किल छोड़ कर आया था. उस का चेहरा उदास और उतरा हुआ था. उस के घर पहुंचते ही उस का सामना पापा से हुआ था. वे उसे देखते ही चिल्ला पड़े थे, ‘यहां आने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? तुम्हारे लिए घर के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो चुके हैं.’

वह फफक पड़ी थी. मम्मी से लिपट कर बोली थी, ‘मम्मी, प्लीज, पापा को मना लो. मैं अब और कहां जाऊं? अपनी ससुराल में मैं अब नहीं रह सकती. मैं अपनी जान दे दूंगी. अगर आप मेरा जीवन चाहती हैं तो मु  झे अपने घर में रहने दीजिए.’उस के आंसू देख मम्मी पिघल उठी थीं. उस का हाथ पकड़ कर बोली थीं, ‘देखें तुम्हें कौन बाहर निकाल सकता है.’ फिर पापा की ओर देख कर बोली थीं,  ‘गुस्सा शांत कीजिए. बच्चों से तो गलती हो ही जाती है. बड़ों को तो सम  झदारी से काम लेना चाहिए.’

फिर व्यंग्य और उपहास भरी निगाहों से रोहन की तरफ देख कर पापा बोले थे, ‘ये बरखुरदार कहां रहेंगे, क्या करेंगे?’ वह तुरंत बोली थी, ‘ये कोई पूछने की बात है? इन्हें अपनी कंपनी में रख लीजिए. जो दूसरों को देते हैं, वही इन्हें दे दीजिएगा.’ पापा तीखे स्वर में बोले थे,  ‘क्यों? काल सैंटर में कितना मिलता था, 5,000 या 6,000?’ रोहन उन की नजरों के ताप को नहीं सह सका था. वह उस के पीछे मुंह   झुका कर खड़ा हो गया था. उस की कातर निगाहों को देख कर उसे अच्छा नहीं लगा था.

अगले दिन ही रोहन ने पापा का औफिस जौइन कर लिया था. 2-3 दिन बाद उस ने शिकायती लहजे में बताया था कि सब उसे मैनेजर साहब पुकारते जरूर हैं लेकिन काम उसे चपरासियों वाला करना पड़ता है.
वह गुमसुम और च़ुप रहने लगा था. एक दिन रात को जब सब खाना खा रहे थे तब राघव भैया रोहन की ओर देखते हुए बोले, ‘रूपा, तू ने कैसे आदमी से शादी कर ली है. इस से तो अच्छा अपना अनपढ़ गोपाल है, जो कम से कम सही फाइल तो ला कर देता है.’

उस दिन पहली बार रोहन नाराजगी दिखाते हुए डाइनिंग टेबिल से उठ कर बिना खाना खाए चला गया था. मम्मी उस से बोली थीं,  ‘जा बुला ला, शायद उसे बुरा लग गया है.’ लेकिन वह अकड़ दिखाते हुए वहीं बैठी रह गई थी.

फिर शाम और रात हुई, लेकिन वह नहीं लौटा. दरअसल, वह घर छोड़ कर चला गया था और उस के नाम एक पत्र छोड़ कर गया था जिस में लिखा था, ‘रूपा, मैं ने तुम्हें खुश करने के लिए अपने वजूद, स्वाभिमान एवं स्वत्व का सौदा कर लिया, परंतु मु  झे अपमान के अलावा और मिला क्या? मेरे जाने के बाद तुम खुश रह सकोगी इस उम्मीद के साथ अलविदा… रोहन’.

रोहन के जाने के बाद रिश्तेदारों और परिचितों में जो भी यह खबर सुनता वही सहानुभूति दिखाने के लिए आ जाता और रोहन के लिए कोईकोई उलटासीधा बोलता जिसे सुन कर उसे अच्छा नहीं लगता था. घर से बाहर निकलती तो सब अजीब निगाहों से उसे घूरते दिखते.

एक दिन वह अपनी सहेली ईशा के घर पहुंची. उस की सास और ननद उस को देखते ही फुसफुसाने लगीं कि आदमी छोड़ गया तो भी कैसे बनसंवर कर घूम रही है, कोई लाजशरम तो जैसे छू भी नहीं गई है. उस की सास ने आखिर में उसे जोर से सुना भी दिया था, ‘बहू, मु  झे तुम्हारी इस तरह की सहेलियां जरा भी पसंद नहीं हैं, जो अपना घर तोड़ कर दूसरे का घर तोड़ने चली हों. सम  झदार के लिए इशारा ही काफी था. वह उलटे पैर घर लौट आई थी.

दोनों भाभियों को अपने बच्चों, किटी पार्टी और शौपिंग से फुरसत नहीं रहती थी. उन्हें तो रूपा बिन बुलाए मेहमान की तरह लगती थी. धीरेधीरे उस की हैसियत घर में नौकरानी जैसी हो गई थी. एक दिन उस ने अपने कानों से सुन लिया था. दोनों भाभी आपस में बात कर रही थीं कि बैठीबैठी महारानीजी करेंगी क्या? कम से कम नाश्ता और खाना तो बना ही सकती हैं. उसे गुस्सा तो बहुत जोर का आया था, लेकिन उसे लगा था कि सिर्फ इन की नहीं मम्मीपापा, भाई सब की निगाहें बदल गई हैं.

अब वह यहां आ कर रहने के अपने फैसले पर वह बहुत पछता रही थी. उसे हर पल रोहन को याद आती रहती थी. रोहन को गए हुए 1 साल बीत चुका था. वह अपने जीवन से निराश हो गई थी. उस के मन में आत्महत्या करने का विचार प्रबल होता जा रहा था. वह सोचने लगी थी कि जीवन का अंत ही उस की समस्याओं से उसे नजात दिलवा सकता था. एक दिन निराशा और हताशा के पलों में कब उस को   झपकी लग गई थी उसे पता ही नहीं लगा था. अचानक उस ने सपने में रोहन को पुकारते हुए सुना. वह चौंक कर उठ बैठी थी. उस का प्यार रोहन पर उमड़ पड़ा था. वह तड़प उठी थी कि अपने रोहन के पास कैसे उड़ कर पहुंच जाए. उस ने मन ही मन निश्चय किया कि वह अपने पैरों पर खड़ी होगी. कुछ बन कर दिखाएगी. और रोहन मिला तो वह उस से अपनी गलतियों के लिए माफी मांगेगी.

हमसफर: रोहित ने ऐसा क्या किया कि वह मानसी को फिर से प्यारा लगने लगा?

औफिस बंद होने के बाद मानसी समीर के साथ लौंग ड्राइव पर निकली थी. हमेशा की तरह उस का साथ उसे बहुत सुकून दे रहा था.

मानसी मन ही मन सोच रही थी, ‘एक ही छत के नीचे सोने के बाद भी रोहित मुझे बेगाना सा लगता है. अगर मुझे जिंदादिल समीर का साथ न मिला होता, तो मेरी जिंदगी बिलकुल मशीनी अंदाज में आगे बढ़ रही होती.’

करीब घंटे भर की ड्राइव का आनंद लेने के बाद समीर ने चाय पीने के लिए एक ढाबे के सामने कार रोक दी. उन्हें पता नहीं लगा कि कार से उतरते ही वे रोहित के एक दोस्त कपिल की नजरों में आ गए हैं. कुछ देर सोचविचार कर कपिल ने रोहित को फोन कर बता दिया कि उस ने मानसी को शहर से दूर किसी के साथ एक ढाबे में चाय पीते हुए देखा है.

उस रात रोहित जल्दी घर लौट आया था. मानसी ने साफ महसूस किया कि वह रहरह कर उसे अजीब ढंग से घूर रहा है. मन में चोर होने के कारण उसे यह सोच कर डर लगने लगा कि कहीं रोहित को समीर के बारे में पता न चल गया हो. फिर जब वह रसोई से निबट कर ड्राइंगरूम में आई तो रोहित ने उसे उसी अजीब अंदाज में घूरते हुए पूछा, ‘‘तुम मुझ से अब प्यार नहीं करती हो न?’’

‘‘यह कैसा सवाल पूछ रहे हो?’’ मानसी का मन और ज्यादा बेचैन हो उठा.

‘‘तुम मुझे देख कर आजकल प्यार से मुसकराती नहीं हो. कभी मेरे साथ लौंग ड्राइव पर जाने की जिद नहीं करती हो. औफिस से देर से आने पर झगड़ा नहीं करती हो. क्या ये सब बातें यह जाहिर नहीं करती हैं कि तुम्हारे दिल में मेरे लिए प्यार नहीं बचा है?’’

मानसी ने हिम्मत कर के शिकायती लहजे में जवाब दिया, ‘‘आप के पास वक्त ही कहां है, मुझे कहीं घुमा लाने का? रही बात आप के औफिस से देर से आने पर झगड़ा करने की, तो वह मैं ने बहुत कर के देख लिया… बेकार घर का माहौल खराब करने से क्या फायदा?’’

‘‘अगर तुम जल्दी आने को दबाव डालती रहतीं तो शायद मेरी आदत बदल जाती. तुम साथ घूमने की जिद करती रहतीं तो कभी न कभी हम घूमने निकल ही जाते. मुझे तो आज ऐसा लग रहा है मानो तुम ने अपने मनबहलाव के लिए किसी प्रेमी को ढूंढ़ लिया है.’’

‘‘ये कैसी बेकार की बातें मुंह से निकाल रहे हो?’’ मानसी की धड़कनें तेज हो गई थीं.

‘‘तब मुझे बताओ कि मेरी पत्नी होने के नाते तुम ने अपना हक मांगना क्यों छोड़ दिया है?’’

‘‘मेरे मांगने से क्या होगा? तुम्हारे पास मुझे देने को वक्त ही कहां है?’’

‘‘मैं निकालूंगा तुम्हारे लिए वक्त पर

एक बात तुम अच्छी तरह से समझ लो, मानसी,’’ बेहद संजीदा नजर आ रहे रोहित ने हाथ बढ़ा कर अचानक उस का गला पकड़ लिया, ‘‘मैं तुम्हारे लिए ज्यादा वक्त नहीं निकाल पाता हूं पर मेरे दिल में तुम्हारे लिए जो प्यार है, उस में कोई कमी नहीं है. अगर तुम ने मुझ से दूर जाने की बात भी सोची तो मैं तुम्हारी जान ले लूंगा.’’

मानसी ने उस की आंखों में देखा तो वहां भावनाओं का ऐसा तेज तूफान नजर आया कि वह डर गई. तभी रोहित ने अचानक उसे झटके से गोद में उठाया तो उस के मुंह से चीख ही निकल गई.

उस रात रोहित ने बहुत रफ तरीके से उसे प्यार किया था. ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वह अपने भीतर दबे आक्रोश को बाहर निकालने के लिए प्रेम का सहारा ले रहा था.

मानसी उस रात बहुत दिनों के बाद रोहित से लिपट कर गहरी और तृप्ति भरी नींद सोई. उसे न समीर का ध्यान आया और न ही अपनी विवाहित जिंदगी से कोई शिकायत महसूस हुई थी.

अगले दिन मानसी औफिस पहुंची तो बहुत रिलैक्स और खुश नजर आ रही थी. रोहित के होंठों से बने उस की गरदन पर नजर आ रहे लाल निशान को देख कर उस की सहयोगी किरण और ममता ने उस का बहुत मजाक उड़ाया था.

लंच के बाद उस के पास समीर का फोन आया. उस ने उत्साहित लहजे में मानसी से पूछा, ‘‘आज शाम बरिस्ता में कौफी पीने चलोगी?’’

‘‘आज नहीं,’’ मानसी की आवाज में न चाहते हुए भी रूखापन पैदा हो गया.

कौफी पीने की शौकीन मानसी के मुंह से इनकार सुन कर समीर हैरान होता हुआ बोला, ‘‘मुझे लग रहा है कि तुम्हारी तबीयत ठीक

नहीं है.’’

‘‘नहीं, मेरी तबीयत ठीक है.’’

‘‘तो फिर मुझे तुम्हारा मूड क्यों खराब लग रहा है?’’

‘‘मेरा मूड भी ठीक है.’’

‘‘तब साफसाफ बता दो कि मेरे साथ कौफी पीने चलने के लिए रूखे अंदाज में क्यों इनकार कर रही हो?’’

मानसी ने उसे सच बता देना ही उचित समझा और बोली, ‘‘मुझे लगता है कि रोहित को मेरे ऊपर शक हो गया है.’’

‘‘उस ने तुम से कुछ कहा है?’’

‘‘हां, कल रात पूछ रहे थे कि मैं कभी उन के साथ लौंग ड्राइव पर जाने की जिद क्यों नहीं करती हूं.’’

‘‘मुझे लग रहा है कि तुम बेकार ही उस के इस सवाल से डर रही हो. उस के पास तुम्हारी खुशियों, भावनाओं व इच्छाओं का ध्यान रखने की फुरसत ही कहां है.’’

‘‘फिर भी मुझे सावधान रहना होगा. वे बहुत गुस्से वाले इनसान होने के साथसाथ भावुक भी बहुत हैं. मैं तुम्हारे साथ बाहर घूमने जाती हूं, अगर उन्हें इस बात का पता लग गया तो मेरी जान ही ले लेंगे.’’

‘‘जैसी तुम्हारी मरजी,’’ ऐसा कह कर नाराज समीर ने झटके से फोन काट दिया था.

उस शाम रोहित उसे लेने औफिस आ गया था. उस की कार गेट से कुछ दूरी पर खड़ी थी. मानसी यह कल्पना कर के कांप गई कि अगर उस ने समीर के साथ घूमने जाने को ‘हां’ कर दी होती तो आज गजब हो जाता.

रोहित बहुत खुश लग रहा था. दोनों ने पहले कौफी पी, फिर बाजार में देर तक घूम कर विंडो शौपिंग की. उस के बाद रोहित ने उसे उस का पसंदीदा साउथ इंडियन खाना खिलाया.

घर लौटते हुए कार चला रहे रोहित ने अचानक उस से पूछा, ‘‘तुम पहले तो इतना कम नहीं बोलती थीं? क्या मेरे साथ बात करने को तुम्हारे पास कोई टौपिक नहीं है?’’

‘‘जब भी बोलती हूं, मैं ही बोलती हूं, जनाब,’’ मानसी ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘‘फिर भी मुझे लगता है कि तुम पहले की तरह मुझ से खुल कर बात नहीं करती हो?’’

‘‘इस वक्त मैं बहुत खुश हूं, इसलिए यह बेकार का टौपिक शुरू कर के मूड मत खराब करो. वैसे कम बोलने की बीमारी आप को है, मुझे नहीं.’’

‘‘तो आज मैं बोलूं?’’

‘‘बिलकुल बोलो,’’ मानसी उसे ध्यान से देखने लगी.

घर पहुंच कर रोहित ने कार रोकी पर उतरने की कोई जल्दी नहीं दिखाई. वह बहुत भावुक अंदाज में मानसी की आंखों में देखे जा रहा था. फिर उस ने संजीदा स्वर में बोलना शुरू किया, ‘‘मैं ने अपने बचपन में बहुत गरीबी देखी थी, मानसी. मेरे ऊपर दौलतमंद बनने का जो भूत आज भी सवार रहता है, उस के पीछे बचपन के मेरे वह कड़वे अनुभव हैं जब ढंग से 2 वक्त की रोटी भी हमें नहीं मिल पाती थी.’’

‘‘सच तो यह है कि उन कड़वे अनुभवों के कारण मेरे अंदर हमेशा हीन भावना बनी रहती है. मानसी, तुम बहुत सुंदर हो और तुम्हारा व्यक्तित्व मुझ से ज्यादा आकर्षक है. उस हीन भावना के कारण मेरे मन में न जाने यह भाव कैसे पैदा हो गया कि अगर मैं ने तुम्हारे बहुत ज्यादा नाजनखरे उठाए तो तुम मुझ पर हावी हो जाओगी. अपनी इस नासमझी के चलते मैं तुम से कम बोलता रहा.

‘‘कल रात मुझे अचानक यह एहसास हुआ कि कहीं मेरी इस नासमझी के कारण तुम मुझ से बहुत दूर चली गईं तो मैं बिखर कर पूरी तरह से टूट जाऊंगा. तुम मुझ से कभी दूर न जाना, मानसी.’’

‘‘मैं कभी आप से दूर नहीं जाऊंगी,’’ कह कर मानसी उस के हाथ को बारबार चूम कर रोने लगी तो रोहित की पलकें भी भीग उठीं.

अपनी आंखों से बह रहे आंसुओं के साथ मानसी ने मन में रोहित के प्रति भरी सारी शिकायतें बहा डालीं.

समीर ने 2 दिन बाद मानसी को लौंग ड्राइव पर चलने के लिए आमंत्रित किया पर मानसी तैयार नहीं हुई.

‘‘मैं रोहित को नाराज होने का कोई मौका नहीं देना चाहती हूं.’’ समीर के जोर देने पर उस ने साथ न चलने का कारण साफसाफ बता दिया.

‘‘और मेरे नाराज होने की तुम्हें कोई चिंता नहीं है?’’ समीर ने चुभते लहजे में पूछा.

‘‘पति को पत्नी के चरित्र पर किसी पुरुष से दोस्ती के कारण शक होता हो तो पत्नी को उस दोस्ती को तोड़ देना चाहिए.’’

‘‘तुम यह क्यों भूल रही हो कि इसी पति के रूखे व्यवहार के कारण तुम कुछ दिन पहले जब दुखी रहती थीं, तब मैं ही तुम्हें उस अकेलेपन के एहसास से नजात दिलाता था. आज वह जरा प्यार से बोल रहा है, तो तुम मुझे दूध में गिरी मक्खी की तरह निकाल फेंकने को तैयार हो गई हो.’’

‘‘मुझे इस विषय पर तुम से कोई बात नहीं करनी है.’’

‘‘तुम ने मेरी भावनाओं से खेल कर पहले अपना मनोरंजन किया और अब सतीसावित्री बनने का नाटक कर रही हो,’’ समीर उसे अपमानित करने पर उतारू हो गया.

‘‘मुझ से ऐसी टोन में बात करने का तुम्हें कोई हक नहीं है,’’ मानसी को अपने गुस्से पर नियंत्रण रखने में कठिनाई हो रही थी.

‘‘और तुम्हें मेरी भावनाओं से खेल कर मेरा दिल दुखाने का कोई हक नहीं है.’’

‘‘ओह, शटअप.’’

‘‘तुम मुझे शटअप कह रही हो?’’ समीर गुस्से से फट पड़ा, ‘‘अगर तुम नहीं चाहती हो कि रोहित की बुराई करने वाली तुम्हारी सारी मेल मैं उसे दिखा दूं, तो जरा तमीज से बात करो मुझ से, मैडम.’’

‘‘तुम ऐसा नहीं कर सकते हो,’’ उस की धमकी सुन कर मानसी

डर गई.

‘‘मैं ऐसा बिलकुल नहीं करना चाहता हूं. तुम क्यों मुझ से झगड़ा कर रही हो? मैं तुम्हारी दोस्ती को खोना नहीं चाहता हूं, मानसी,’’ समीर ने फिर से उस के साथ अपने संबंध सुधारने की कोशिश शुरू कर दी.

कुछ पलों की खामोशी के बाद मानसी ने आवेश भरे लहजे में जवाब दिया, ‘‘आज तुम्हारा असली चेहरा देख कर मुझे तुम से नफरत हो रही है. तुम्हारी मीठी बातों में आ कर मैं ने तुम्हें अपना दोस्त और सच्चा शुभचिंतक माना, यह मेरी बहुत बड़ी गलतफहमी थी.’’

‘‘तुम्हारी धमकी से डर कर मैं तुम्हारी जिद के सामने झुकूंगी नहीं, समीर. तुम्हें जो करना है कर लो, पर आगे से तुम ने मुझ से किसी भी तरह से संपर्क करने की कोशिश की तो फिर रोहित ही तुम्हारी खबर लेने आएंगे.’’

समीर को कुछ कहने का मौका दिए बगैर मानसी ने फोन काट कर स्विच औफ कर दिया.

उस रात मानसी रोहित की छाती से लग कर बोली, ‘‘आप दिल के बहुत अच्छे हो. मैं बेवकूफ ही आप को समझ नहीं पाई. मुझे माफ कर दो.’’

‘‘और तुम मुझे मेरी नासमझियों के लिए माफ कर दो. अपने रूखे व्यवहार से मैं ने तुम्हारा दिल बहुत दुखाया है,’’ रोहित ने प्यार से उस का माथा चूम कर जवाब दिया.

‘‘मैं आप को कुछ बताना चाहती हूं.’’

‘‘पर मुझे कुछ सुनना नहीं है, मानसी. सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहा जाता. मैं तो बस इतना चाहता हूं कि आगे से हम अपने दिलों की बातें खुल कर एकदूसरे से कहें और सच्चे माने में एकदूसरे के हमसफर बनें.’’

मानसी भावविभोर हो रोहित की छाती से लग गई. उस ने समीर के बारे में कुछ भी सुनने से इनकार कर के उसे अपनी नजरों में गिरने से बचा लिया था. रोहित के प्यार, विश्वास व संवेदनशील व्यवहार के कारण उस का कद उस की नजरों में बहुत ऊंचा हो गया था.

तोहफा: भाग 2- रजत ने सुनयना के साथ कौन-सा खेल खेला

‘‘इस में बुराई ही क्या है विदेशों में इस का बहुत चलन है. शादी अब ओल्ड फैशन और आउटडेटेड हो गई. किसी से प्यार हो गया तो साथसाथ रहने लगे. जब एक का दूसरे से मन भर जाए गया तो अलग हो गए. न किसी तरह खिचखिच न और किसी तरह का बखेड़ा.’’

‘‘और यदि बच्चे हुए तो?’’

‘‘तो बात अलग है. बच्चों की खातिर और उन्हें जायज करार देने के लिए विवाह बंधन में बंधा जा सकता है.’’

सुनयना सोच में पड़ गई. उस के माथे पर बल पड़ गए.

‘‘अगर तुम मानों तो हम दोनों कल से ही साथसाथ रह सकते हैं. मेरा खुद का फ्लैट है पाली हिल, बांद्रा में. हम वहां शिफ्ट हो सकते हैं,’’

‘‘नहीं,’’  सुनयना ने एक उसांस भरी, ‘‘मेरे मांबाप पुराने खयालात के हैं. वे इस बात के लिए कतई राजी नहीं होंगे.’’

‘‘तो एक और विकल्प है.’’

‘‘वह क्या?’’

‘‘क्यों न हम एक कौंट्रैक्ट मैरिज कर लें

1-2 साल के लिए. उस के बाद हमें ठीक लगे तो कौंट्रैक्ट को बढ़ा लेंगे. नहीं तो दोनों अलग हो जाएंगे. क्यों क्या खयाल है?’’

‘‘नहीं,’’ सुनयना ने आंसू बहाते हुए कहा, ‘‘मुझे यह ठीक नहीं लगता. मुझ में और एक कालगर्ल में फिर फर्क ही क्या रह जाएगा? आज इस के साथ तो कल किसी और के साथ, इस में बदनामी के सिवा और कुछ हासिल होने वाला नहीं है. इस सौदे में लड़की घाटे में ही रहेगी. वह एक असुरक्षा के भाव से घिरी रहेगी. लड़के का कुछ नहीं बिगड़ेगा.’’

‘‘डार्लिंग हम 21वीं सदी में प्रवेश कर चुके हैं. तुम इतनी पढ़ीलिखी हो कर भी गंवारों जैसी बातें करती हो. खैर, अब इस पब्लिक प्लेस में यों रो कर एक तमाशा तो न खड़ा करो. चलो घर चलते हैं.’’

गाड़ी में सुनयना ने कहा, ‘‘रजत, तुम्हारे विचार जान कर मुझे बड़ा डर लग रहा है. शादी तुम करना नहीं चाहते और तुम्हारे दूसरे प्लान से मैं सहमत नहीं हूं. तब हमारा क्या होगा?’’

रजत ने उसे अपनी बांहों में ले लिया और बोला, ‘‘फिक्र क्यों करती हो, क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं? 4 साल से हम दोनों साथसाथ हैं. क्या यह तुम्हारे लिए कुछ माने नहीं रखता? हम दोनों एकदूसरे के कितने करीब हैं. 2 तन 1 जान हैं. मैं तो कहता हूं कि हम यों ही भले हैं. जैसा चल रहा है चलने दो.’’

‘‘तुम्हारे लिए यह कहना आसान है पर मेरी तो शादी की उम्र बीती जा रही है. तुम्हारा क्या बिगड़ेगा, तुम तो रोज लड़की से दिल बहला सकते हो. पर हम स्त्रियों की तो हर तरह से मुसीबत है. हम पर बदनामी का ठप्पा लगते देर नहीं लगती. शादी के बिना तुम्हारे साथ घर बसाऊंगी तो आवारा बदचलन कही जाऊंगी और अगर तुम से कौंट्रैक्ट मैरिज की और अवधि

खत्म होने पर तुम ने मुझे फटी जूती की तरह निकाल फेंका, तो मैं कहां जाऊंगी? कौन शरीफजादा मुझे अपनाएगा?’’

सुनयना रात में अपने कमरे में रोती रही. उसे अपना भविष्य अंधकारमय नजर आता था. उस की आशाओं का महल धराशायी हो गया था. उस ने अपने मन की गहराइयों से रजत से प्यार किया था. उस के साथ घर बसाने के सपने देखे थे. पर उस ने एकबारगी ही उस के सपने चकनाचूर कर दिए थे. अब वह क्या करे? रजत से मिलना छोड़ दे? उस से नाता तोड़ ले? रजत से बिछड़ने की कल्पना से ही उस का मन उसे कचोटने लगा, लेकिन उसे पाना भी अब एक मृग मरीचिका के समान था. इतने दिन वह अपनेआप को छलती आई थी. वह भलीभांति जानती थी कि रजत एक प्लेबौय है. वह ऐयाश फितरत का था, इसलिए भौंरे के समान कलीकली का रसपान करना चाहता था. यानी स्वच्छंद रहना चाहता था और किसी भी तरह की जिम्मेदारी से बचना चाहता था. इसीलिए वह शादी के बंधन में भी नहीं बंधना चाहता था.

सुबह सुनयना की मां ने उस के चेहरे पर अपनी सवालिया नजरें गड़ा दीं. पर उस की सूजी आंखें और चेहरा देख कर वे वस्तुस्थिति भांप गईं.

2 दिन बाद रजत का फोन आया,‘‘कल क्या कर रही हो? मुझे अपने व्यापार के सिलसिले में रशिया जाना पड़ रहा है. मैं चाहता था कि जाने से पहले तुम से मिल लूं.’’

‘‘कल तो मैं फ्री नहीं हूं. मेरी होटल में ड्यूटी लगी है.’’

‘‘मैं 3 हफ्ते के लिए जा रहा हूं. इतने दिन तुम्हें देखे बिना कैसे रह पाऊंगा?’’

सुनयना पिघलने लगी, लेकिन फौरन उस ने अपना मन कठोर कर लिया,‘‘क्या किया जाए मजबूरी है. नौकरी जो ठहरी.’’

‘‘तुम्हारी ड्यूटी कितने बजे खत्म होगी?’’

‘‘रात को 2 बजे.’’

रजत ना सुनने का आदी न था, बोला, ‘‘ठीक है,  मैं तुम्हें लेने आऊंगा. बाहर गाड़ी में बैठा तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’

सुनयना ने चुपचाप फोन रख दिया.

सुनयना हमेशा चहकती रहती थी पर आज चाहने पर भी वह हंसबोल नहीं रही थी उस का मन अवसाद से भरा था.

रजत ने कहा, ‘‘आज तुम जरूरत से ज्यादा गंभीर हो.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है,’’ सुनयना ने सफाई दी, ‘‘आज मैं बहुत थकी हुई हूं.’’

‘‘चलो आज थोड़ी देर के लिए मेरे फ्लैट पर चलो.’’

मुखौटे: माधव ने शादी से इनकार क्यों किया

‘‘अभीअभी खबर मिली है रुकि…’’

‘‘क्या खबर?’’ रुकि ने बीच में ही सवाल जड़ दिया.

‘‘तुम्हारे ही काम की खबर है. हमारे स्कूल में एक नए रंगमंच शिक्षक आ रहे हैं.’’

‘‘अच्छा सच?’’ रुकि अपने कला के कक्ष में थी. उस ने एक मुखौटे को सजाते हुए प्रतिक्रिया दी. एक के बाद दूसरा मुखौटा सजाती हुई रुकि अपने ही काम में मगन दिखाई दी, तो उसे यह सूचना देने वाली अध्यापिका सरला भी अपना काम करने वहां से चली गई.

सरला के जाते ही रुकि ने मुखौटा एक तरफ रखा और खुश हो कर जोर से ताली बजाई और फिर नाचने लगी थी. 2 दिन तक यही हाल रहा रुकि का. वह सब के सामने तो काम करती पर एकांत ही कमर मटका कर नाचने लगती.

तीसरे दिन प्रार्थनासभा में प्राचार्य ने एक नए महोदय को माला पहना कर उन का स्वागत किया और फिर एक घोषणा करते हुए कहा, ‘‘प्यारे बच्चो, आज हमारे विद्यालय परिवार में शामिल हो रहे हैं माधव सर. ये रंगमंच के कलाकार हैं. इन्होंने सैकड़ों नाटक लिखे हैं. ये आज से ही हमारे विद्यालय के रंगमंच विभाग में शामिल हो रहे हैं.’’

यह खबर सब के लिए सुखद थी. स्कूल में यह एक नया ही प्रयोग होने जा रहा था. सब फुसफुसाने लगे पर आज भी रुकि का चेहरा एकदम सामान्य था. वह एकदम निर्विकार भाव से तालियां बजा रही थी. पूरा विद्यालय बारबार माधवजी के पास जा कर उन से मिल रहा था पर एक रुकि ही थी जो बस अपने कक्ष में मुखौटे ही ठीक किए जा रही थी.

अगले दिन दोपहर बाद जब कक्षा का खेल पीरियड था तो उस समय मौका पा कर माधव लपक कर रुकि के पास जा पहुंचा.

‘‘ओह रुकि,’’ कह कर उस ने जैसे ही उसे बाहों में लिया रुकि के हाथ से मुखौटा गिर गया.

वह एकदम संयत हुई और बोली, ‘‘माधव, हाथ हटाओ, शाम 6 बजे मिलते हैं. मैं फोन पर लोकेशन भेज दूंगी,’’ और फिर वह फटाफट कक्ष से बाहर निकल आई.

माधव ने हंस कर मुखौटा अपने चेहरे पर पहन लिया. शाम को दोनों एकदूसरे के पास बैठे थे.

माधव बोला, ‘‘अच्छा, पगली वहां तो बंद कमरा था… मैं आया था मिलने पर तुम डर कर भाग गई पर यह जगह जहां सबकुछ खुलाखुला है निडरता से मेरे इतने करीब बैठी हो.

रुकि ने उस की नाक पकड़ कर कहा, ‘‘तुम भी न माधव कमाल के दुस्साहसी हो. तुम ने तो आते ही दिनदहाड़े रोमांचकारी कदम उठा लिया. हद है.’’

मगर माधव को तो रुकि से चुहल करने में मजा आ रहा था. वह चहकते हुए बोला, ‘‘अच्छा, हद तो तुम्हारी है रुकि. मैं तो एक फक्कड़ रंगकर्मी था पर यहां आया बस तुम्हारे लिए… तुम्हें उदासी से बचाने के लिए.’’

रुकि सब चुपचाप सुन रही थी.

माधव बोला, ‘‘तुम ने मुझे महीनों पहले ही स्कूल प्रशासन की यह मंशा कि एक रंगकर्मी की जरूरत है और वीडियो भेज कर इस स्कूल के चप्पेचप्पे से इतना वाकिफ करा दिया था कि फोन पर जब मेरा साक्षात्कार हुआ तो पता है प्राचार्य तक सकते में आ गए कि मुझे कैसे पता है कि स्कूल के खुले मंच के दोनों तरफ बोगनबेलिया लगा है.’’

‘‘ओह, माधव फिर?’’ यह सुना तो रुकि की तो सांस ही रुक गई थी.

‘‘फिर क्या था मैं ने पूरे आत्मविश्वास से कह दिया कि मैं ने एक न्यूज चैनल में सालाना जलसे की रिपोर्ट देखी थी.’’

यह सुन कर रुकि की जान में जान आई. बोली, ‘‘माधव तुम सचमुच योग्य थे, इसीलिए तुम्हें चुना गया, अब अलविदा. आज की मुलाकात बस इतनी ही. अब चलती हूं. कल स्कूल में मिलते,है,’’ कह कर रुकि ने अपना बैग लिया, चप्पलें पहनीं और फटाफट चली गई.

अब वे इसी तरह मिलने लगे. एक दिन ऐसी ही शाम को दोनों साथ थे तो माधव बोला, ‘‘रुकि मैं और तुम तो इकदूजे के लिए बने थे न और तुम हमेशा कहती थी कि माधव कालेज में साथसाथ पढ़ते हैं अब जीवन भी साथसाथ गुजार देंगे. जब हम दोनों को एकदूसरे से बेहद प्यार था, तो तुम ने शादी क्यों कर ली रुकि?’’

‘‘तो फिर क्या करती माधव बोलो न. तुम तो बस्तियों में, नुक्कड़ में, चौराहे पर नाटक मंडली ले कर धूल और माटी से खेलते थे. मैं क्या करती?’’

माधव ने फट से कहा, ‘‘रुकि, तुम मेरा इंतजार करतीं.’’

अच्छा, चोरी और सीनाजोरी, मेरे बुद्धू माधव जरा याद करो. मैं ने सौ बार कहा था कि मेरी एक छोटी बहन है. मेरे बाद ही उस का घर बसेगा. मातापिता भी ताऊजी की दया पर निर्भर हैं. मु?ो विवाह करना है. तुम गृहस्थी बसाना चाहते हो तो चलो आज पिताजी से बात करते हैं माताजी से मिलते हैं, पर तुम ने याद है मुझे क्या जवाब दिया था?’’

माधव बेहद प्यार से बोला, ‘‘ओहो, बोलो न, तुम ही बोलो रुकि मैं तो सब भूल गया हूं,’’

‘‘अच्छा तो सुनो तुम ने कहा था कि रुकि यह घरबारपरिवार सब ढकोसला है. मैं आजाद रहना चाहता हूं और उस के 2 दिन बाद तुम 1 महीने की नाट्य यात्रा पर आसाम, मेघालय, मणिपुर चले गए. माधव तुम मुझे मजाक में लेने लगे थे.’’

‘‘रुकि वह समय ऐसा ही था. तब मैं 21 साल का था.’’

‘‘बिलकुल और मैं 20 साल की… मैं ने घर वालों के सामने हथियार डाल दिए. विवाह हो गया,’’ रुकि उदास हो कर बोली.

‘‘हां तो, गबरू जवान फौजी की बीवी बन कर तो मजा आया होगा न रुकि.’’

तुम माधव बारबार यही सवाल किसलिए पूछते हो? हजारों बार तो बताया है कि वे जम्मू में रहते हैं. मैं यहां इस कसबे में निजी स्कूल में कला की शिक्षा देती हूं,’’ रुकि की आवाज में बेहद दर्द भर आया था.

कुछ देर रुक कर रुकि आगे बोली, ‘‘मैं ने 2 साल तक मुंह में दही जमा कर सबकुछ सहा. परिवार, बंधन, जिम्मेदारी, संस्कार, तीजत्योहार सारे नाटक सबकुछ… मगर तब भी मेरे पति मुझे अपने साथ नहीं ले गए तो मैं ने भी एक मानसिक करार सा कर लिया.’’

‘‘मानसिक करार, मैं समझ नहीं रुकि?’’ माधव को अजीब लगा कि आज 30 साल की रुकि ये कैसी बहकीबहकी बातें कर रही है.

‘‘हां माधव करार नहीं तो और क्या. यह एक करार है कि मैं उन की संतान का पालन कर रही हूं. मगर अपनी आजादी के साथ. वे जो रुपए देते हैं अब मैं उन में से एक धेला भी खुद पर खर्च नहीं करती हूं. सारे बच्चों की पढ़ाई में लगा कर रसीद उन के बाप को कुरियर कर देती हूं. ताकि…’’

‘‘ताकि क्या रुकि?’’ माधव ने पूछा.

‘‘ताकि माधव सनद रहे कि रुकि उन के दिए पैसों पर नहीं पल रही. मैं अपनी कमाई खाती हूं… अपने वेतन से कपड़ा खरीद कर पहनती हूं,’’ कहतीकहती रुकि एकदम खामोश हो गई तो माधव ने उस का हाथ थाम लिया.

‘‘ओह माधव,’’ रुकि के पूरे बदन में सनसनाहट सी होने लगी.

‘‘अरेअरे क्या रुकि कोई देख लेगा.’’

‘‘अरे नहीं, माधव. यही तो एक पूरी तरह से सुरक्षित जगह है. इधर हमारा कोई भी परिचित नहीं आ सकता,’’ कह कर वह भी भावुक हो गई और माधव से लिपट गई.

कुछ पल तक दोनों ऐसे ही खामोश रहे और अचानक रुकि बोली, ‘‘अब चलती हूं. मेरी छोटी बिटिया केवल 7 साल की है. वह मुझे देख रही होगी.’’

समय इसी तरह गुजरता रहा. माधव को लगभग 3 महीने हो गए थे. उस ने इस दौरान बच्चों को रंगमंच के अच्छे गुर भी सिखा दिए थे. माधव ने इतना बढि़या प्रशिक्षण दिया था कि स्कूल के सीनियर छात्र अब खुद ही नाटक लिख कर तैयार करने लगे थे. स्कूल में तो हरकोई माधव को पसंद करने लगा था. हरकोई माधव को अपने घर बुलाना चाहता, उस के साथ समय बिताना चाहता, पर इस माधव का मन एक जगह कभी टिकता ही नहीं था.

एक दिन रुकि ने पूछ ही लिया, ‘‘माधव एक निजी स्कूल में पहली बार काम कर रहे हो. तुम ने अभी तक बताया नहीं कि कैसा लग रहा है? वैसे प्रिंसिपल सर ने तुम्हें अपने बंगले के साथ लगा कमरा मुफ्त में रहने को दे दिया है तो ऐसी तंगी तो शायद रहती नहीं होगी न?’’

‘‘ओहो रुकि, यह भी कोई सवाल हुआ? मुझे धनदौलत से भला कैसा लगाव और इस निजी स्कूल की नौकरी की ही बात की है तुम ने तो रुकि मेरी जान, अरे मैं तो बस तुम्हारी गुहार पर ही यहां आया हूं.’’

‘‘पर माधव तुम ने यह सब कैसा जीवन कर लिया. न रुपया न पैसा. बस सारा समय नाटक लिखना और मंचन करना यह कैसा जीवन है?’’

‘‘रुकि मेरी बात समझने के लिए तुम्हें एक घटना सुननी होगी.’’

‘‘तो सुनाओ न,’’ रुकि बैचैन हो कर बोली.

‘‘मैं तो सुनाने और सुनने के ही लिए आया पर तुम बीच में ही उठ कर चली जाओगी कि घर पर बच्चे अकेले हैं.’’

‘‘अरे नहीं तुम आज की शाम एकदम बिंदास हो कर सुनाओ.’’

‘‘आज तुम ने घर नहीं जाना?’’

‘‘जाना है पर बच्चों की कोई चिंता नहीं है. वे दोनों आज एक जन्मदिन समारोह में गए हैं. खाना खा कर ही वापस आएंगे.’’

‘‘अच्छा,’’ यह सुन कर माधव को बेहद सुकून मिला. बोला, ‘‘रुकि, मैं जब 7 साल का था न तब से नानाजी के गांव जरूर जाता था. मेरे नानाजी के पास सौ बीघा खेत और 2 बीघे का एक बगीचा था. कुल मिला कर नानाजी के पास दौलत ही दौलत थी.’’

‘‘अच्छा,’’ रुकि बीच में बोल ली.

‘‘एक बार गांव में भयंकर बारिश हुई और बाढ़ के हालात हो गए. जो जहां था वहीं रह गया. मैं भी तब नानाजी के गांव गया था. सड़क जाम हो गई थी. 2 बसें भर कर कुछ कलाकार मदद की गुहार लगाते हुए हमारे गांव आ गए. वे सब फंस गए थे. आगे जा नहीं सकते थे. उन की बात सुन कर नानाजी तथा उन के कुछ दोस्तों ने उन्हें रहने की जगह दे दी. वे अपना भोजन बनाते थे और दोपहर में रियाज करते थे. इस तरह जब तक सड़क ठीक नहीं हुई यानी 7 दिन तक वह नाटक मंडली गांव में रही. तब मैं ने देखा कि नानाजी उन कलाकारों में ही रमे रहते थे. नानाजी उन के साथ तबला बजाते थे, ढोल बजाते थे, नाचते थे, गाते थे.

‘‘रकि ने अपने नानाजी को इतना खुश पहले कभी देखा ही नहीं था. जब मंडली चली गई तो मैं भी अपने घर जाने की तैयारी करने लगा. मैं, नानाजी के कमरे में उन से यही बात करने गया तो पता है नानाजी अपनेआप से बातें कर रहे थे. इतनी दौलत है. इस का मैं आखिर करूंगा क्या. मैं तो कलाकार हूं. मैं ने अपने भीतर का कलाकार दबा कर रख दिया. मैं यह सुन कर ठिठक गया. वहीं खड़ा रहा और लौट गया. उस दिन मेरे दिल में एक बात आई कि धन और विलासिता सब बेकार है. अपने भीतर की आवाज सुननी चाहिए.’’

‘‘हूं तो इसीलिए तुम रंगकर्मी बन गए. मगर जीने के लिए तो रुपए चाहिए न माधव,’’ रुकि ने अपनी बात रखी.

‘‘अरे, बिलकुल,’’ माधव ने रुकि की हां में हां मिलाई.

‘‘तो माधव तुम अपने लिए न सही मातापिता के लिए तो कमाओ.’’

‘‘पर रुकि उन के पास बैंकों में भरभर कर रुपया है.’’

‘‘अरे वह कैसे?’’

‘‘अरे मेरी मां मेरे नानाजी की अकेली औलाद तो सब खेतबगीचे मेरी माताजी के और अब मेरे बडे़ भाई ने डेयरी और खोल ली है. बडे़ भाई के बच्चे भी खेतखलिहान पसंद करते हैं. इस तरह मेरे मातापिता को न अकेलापन सताता है और न पैसे की कोई तंगी है.’’

‘‘तो इसीलिए तुम अपने मातापिता की तरफ से लापरवाह हो कर ऐसे खानाबदोश बने हो. है न?’’ रुकि ने उसे उलाहना दिया.

‘‘नहींनहीं रुकि, मुझे नाट्य विधा पसंद है और मैं सड़क का आदमी ही बनना चाहता हूं. मैं जरा से वेतन पर बेहद खुश हूं.’’

‘‘अच्छा माधव तुम भी न मुझे लगता है कि मैं तुम्हारे साथ 3 साल तक पढ़ती रही पर तुम्हें समझ ही नहीं सकी. जब मैं ने रिश्ते की बात कही थी तब तुम ने कहा कि मैं तो फकीर आदमी हूं. यह नानाजी के खेतखलिहान और धनदौलत की बात तब ही बता देते तो मैं अपने मातापिता को समझ कर मना लेती,’’ रुकि को अफसोस हो रहा था.

‘‘यह तो और भी गलत होता रुकि. तब तुम्हें सब की गुलामी करनी होती, जबकि तुम तो खुद भी आजाद रहना चाहती हो.’’

‘‘हां यह तो सही है माधव. पर मैं अपने प्रेमी माधव के लिए शायद यह कर लेती.’’

‘‘शायद का तो कोई पकका मतलब होता नहीं रुकि कह कर माधव खड़ा हो गया.

‘‘अरे… माधव आज तो तुम अलविदा कह रहे हो.’’

‘‘ओह रुकि, अब चलता हूं अलविदा,’’ कह कर माधव ने अपनी चप्पलें पहन लीं और दोनों अलगअलग दिशा में चल दिए.

अगले दिन रुकि स्कूल आई तो एक सनसनीखेज खबर सुनने को मिली कि माधव सर सुबह ही दक्षिण भारत की तरफ रवाना हो गए हैं. वे अपना इस्तीफा भी सौंप गए हैं.

‘‘हैं, रुकि को सदमा लगा. उस ने खुद को सामान्य किया, जबकि सारा दिन स्कूल में यही चर्चा का विषय रहा. हरकोई माधव सर का फैन बन गया था. रुकि जानती थी कि यह फक्कड़ एक जगह नहीं रुकता. स्कूल की छुटटी के बाद घर लौटते हुए रुकि ने माधव को फोन लगाया.

‘‘अरे रुकि मैं बस में बैठा हूं. अभी दिल्ली जा रहा हूं. रात को केरल के लिए रवानगी.’’

‘‘तुम तो अब एक थप्पड़ खाने वाले हो माधव… कल रात तक मेरे साथ थे और बताया भी नहीं.’’

‘‘अगर बताता तो बस एक उसी बात पर अटक जाते हम दोनों और कोई बात हो ही नहीं पाती रुकि. बाकी तुम अब वह पुरानी रुकि तो रही नहीं. तुम एक मजबूत औरत, एक बेहतरीन माता और एक सजग प्रेमिका हो गई हो… तुम और मैं जीवनभर प्रेमी रहने वाले हैं. यह वादा है. कल फोन करता हूं,’’ कह कर माधव ने फोन बंद कर दिया.

रुकि को उस पर प्यार और गुस्सा दोनों एकसाथ आ रहे थे.

तोहफा: भाग 3- रजत ने सुनयना के साथ कौन-सा खेल खेला

वहां पहुंच कर रजत एक सोफे में धंस गया उस ने सुनयना को अपनी गोद में ले कर उसे अपनी बांहों में भींच लिया और उसे बेतहाशा चूमने लगा. फिर बोला, ‘‘अगर तुम राजी हो जाओ तो यह घर हमारा ‘लव नैस्ट’ बन सकता है. हम दोनों यहां एक कबूतरकबूतरी की तरह गुटरगूं करेंगे.’’

सुनयना ने रजत की गिरफ्त से अपनेआप को छुड़ाने की कोशिश की तो रजत ने उसे और कस लिया, ‘‘क्यों न तुम मेरे साथ रशिया चली चलो. वहीं हनीमून मनाएंगे,’’

‘‘बगैर शादी के हनीमून?’’

‘‘फिर वही शादी की रट. तुम पर तो शादी का भूत सवार है. मैं तो सुनसुन कर बोर हो गया.’’

‘‘रजत तुम इस विषय में मेरे विचार भलीभांति जानते हो. मैं मध्यवर्गीय लड़की हूं. मेरी कुछ मान्यताएं हैं. मैं लीक से हट कर कुछ करना नहीं चाहती. मेरे मातापिता के दिए कुछ संस्कार हैं जिन्हें मैं नकार नहीं सकती. हम जिस समाज में रहते हैं उन के नियमों को मैं नजरअंदाज नहीं कर सकती. मु?ो लोकलाज का भय है, लोगों के कहने की चिंता है.’’

‘‘इस का मतलब यह हुआ कि तुम्हें मुझ से ज्यादा औरों की परवाह है.’’

‘‘तुम मेरी बातों का गलत मतलब क्यों लगाते हो? तुम अच्छी तरह जानते हो कि मैं तुम्हें अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करती हूं.’’

‘‘सच?’’

‘‘हां, चाहो तो आजमा कर देखो.’’

‘‘तुम सचमुच मुझ से बेइंतहा प्यार करती हो?’’

‘‘कहा तो. अब तुम्हें कैसे यकीन दिलाऊं. कहो तो अपना कलेजा चीर कर दिखा दूं, चाहो तो इस 8वीं मंजिल से कूद जाऊं.’’

‘‘ओ नो. तुम अपनी जान दे दोगी तो मेरा क्या होगा? तुम्हारा यह सुंदर शरीर बेजान हो जाएगा तो मैं कैसे जियूंगा?’’

‘‘तुम मेरा शरीर चाहते हो न? ठीक है, आज मैं अपनेआप को तुम्हें सौंपती हूं.’’

‘‘अरे…’’

‘‘हां रजत यह एक नारी की सब से बड़ी कुरबानी है. उस की अस्मत उस की सब से बड़ी पूंजी है. शादी के बाद वह अपना तनमन अपने पति को अर्पण करती है. उस की हो कर रहती है. मैं आज अपने उसूलों को ताक पर रख कर, आदर्शों को भुला कर, बिना फेरों के, बिना किसी शर्त अपनेआप को तुम्हारे हवाले करती हूं.’’

‘‘अरे सुनयना यह तुम्हें आज क्या हो गया है?’’

‘‘बस मैं ने तय कर लिया है. चलो उठो, तुम्हारा बैडरूम कहां है, वहां चलते हैं,’’ कह कर वह उठ खड़ी हुई और रजत का हाथ पकड़ कर खींचने लगी.

‘‘सुनयना तनिक रुको. मेरी बात सुनो. मैं सैक्स का भूखा नहीं हूं. मुझे लड़कियों की कमी नहीं है. मेरे पैसों की खनक से लड़कियां मेरी ओर खुदबखुद खिंची चली आती हैं और मेरे एक इशारे पर मेरे सामने बिछने को तैयार हो जाती हैं. अगर तुम सचमुच मुझ से प्यार करती हो तो तुम्हें कुछ और करना होगा.’’

‘‘बोलो मुझे क्या करना होगा?’’ सुनयना ने अधीर हो कर कहा.

‘‘जो कहूंगा वह करोगी?’’

‘‘कह तो दिया.’’

‘‘हूं जरा सोचने दो…हां सोच लिया. तुम मेरे दोस्त की हमबिस्तर बनोगी?’’

सुनयना स्तंभित हुई. वह अवाक रजत की ओर ताकने लगी.

‘‘रजत यह कैसा मजाक है?’’ उस ने कुढ़ कर कहा.

‘‘मजाक नहीं मैं बिलकुल सीरियस हूं.’’

‘‘लेकिन यह कैसी अजीब मांग है तुम्हारी. मैं तुम्हारी प्रेमिका हूं, तुम मुझे अपने दोस्त को सौंप रहे हो. मुझे अपने दोस्त की बांहों में देख कर तुम्हें बुरा नहीं लगेगा, जलन नहीं होगी?’’

‘‘नहीं, क्योंकि तुम मेरी रजामंदी से ही यह कदम उठाओगी.’’

‘‘और उस के बाद क्या तुम तुझे स्वीकार कर लोगे?’’

‘‘अवश्य.’’

‘‘क्या तुम्हें ऐसा नहीं लगेगा कि मैं अब पाकसाफ, अनछुई नहीं हूं, मेरा कौमार्य भंग हो चुका है?’’

रजत हंसने लगा, ‘‘डार्लिंग, तुम किस जमाने की बात कर रही हो पाकसाफ , अनछुई, दूध की धुली. आज के जमाने में इन घिसेपिटे शब्दों का कोई अर्थ नहीं. हमें जमाने के साथ चलना चाहिए.’’

‘‘तो तुम्हारे कहने के अनुसार आधुनिक होने का मतलब है बेशर्मी से इस के और उस के साथ जिस्मानी सबंध बनाना. फिर इंसान में और पशुओं में फर्क ही क्या रहा?’’

‘‘अब तुम से कौन माथापच्ची करे,’’ रजत ने झुंझला कर कहा, ‘‘तुम तो बाल की खाल निकालती हो.’’

‘‘ठीक है, उस दोस्त का नाम तो बताओ,सुनयना ने थोड़ी देर बाद कहा.

‘‘हां अब आईं तुम लाइन पर,’’ रजत कुटिलता से मुसकराया, ‘‘मेरे दोस्त का नाम है मोहित. तुम जानती हो उसे. हमारे कालेज में ही पढ़ता था और मेरा जिगरी दोस्त है वह. मरीन ड्राइव पर रहता है और आयकर विभाग में काम करता है. अगले हफ्ते उस का जन्मदिन है और मैं चाहता हूं कि तुम मेरी ओर से उस का तोहफा बन कर जाओ.’’

‘‘तोहफा?’’ उस की आंखें बरसने लगीं, ‘‘रजत, क्या तुम्हें मुझ में और एक बेजान वस्तु में कोई फर्क नहीं लगता? मैं एक हाड़मांस से बना जीव हूं. तुम मेरे सामने इतना घिनौना प्रस्ताव रख मेरे अहं को चोट पहुंचा रहे हो. मुझ पर तरस खाओ प्लीज, मेरा इतना कड़ा इम्तिहान न लो,’’ कह कर वह गिड़गिड़ाई लेकिन रजत ने उस की बातें अनसुनी कर दीं.

घर पहुंच कर वह उधेड़बुन में पड़ गई. रजन ने अपने प्रस्ताव से एक अजीब समस्या खड़ी कर दी थी. अब वह क्या करे? क्या रजत का कहना मान ले? वह रजत को समझ नहीं पा रही थी. शादी का मतलब होता है एकदूसरे के प्रति वफादार हो कर रहना. यहां रजत उसे अपने दोस्त की बांहों में ठेल रहा था. शादी के बाद यदि वह उस से कहेगा कि डार्लिंग आज मेरे दोस्तों का मनोरंजन कर दो, तो वह क्या करेगी?

गांठ खुल गई: क्या कभी जुड़ पाया गौतम का टूटा दिल

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