प्रैग्नेंसी की गलत दवाई खाने से हेल्थ से जुड़ी कौनसी परेशानी होगी?

सवाल-

मैं 24 वर्षीय युवती हूं. मेरा अपने बौयफ्रैंड के साथ कई बार शारीरिक संबंध बन चुका है. इसी के चलते इस बार मैं गर्भवती हो गईं. मैं ने कैमिस्ट से दवा ले कर खा ली, जिस से मुझे लगातार 2 महीने तक रक्तस्राव होता रहा. मैं जानना चाहती हूं कि इस से मुझे किसी तरह की स्वास्थ्य संबंधी परेशानी तो नहीं होगी?

जवाब-

गर्भ ठहर जाने के बाद आप को किसी स्त्रीरोग विशेषज्ञा की सलाह से दवा लेनी चाहिए थी. खासकर तब जब आप को लगातार 2 माह तक रक्तस्राव होता रहा. यदि भविष्य में माहवारी नियमित रूप से न आए या और कोई दिक्कत आए तो तुरंत डाक्टर से मिलें.

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मैं बच्चों के माटेसरी हाउस, वीस्कूल की निदेशक और संस्थापक हूं. मैंने वाणिज्य में विशेषज्ञता रखते हुए चेन्नई से स्नातक की पढ़ाई पूरी की है. इसके अलावा, मैंने बच्चों को उनकी अधिकतम क्षमता तक बढ़ने में मदद करने की इच्छा के साथ भारतीय माँटेसरी प्रशिक्षण केंद्र (आईएमटीसी) से प्राथमिक मोंटेसरी डिप्लोमा भी उत्तीर्ण किया है.

बच्चों की व्यापक सीखने की प्रक्रिया को बदलना और शैक्षिक विधियों में प्रारंभिक दृष्टिकोण विकसित करने, हमने एक ऑनलाइन गर्भावस्था का कोर्स बनाया है. गर्भावस्था, प्रसव और पितृत्व जीवन के प्रमुख विकल्प हैं जो चीजों को कई तरह से बदलते हैं. जब आप माता-पिता बनते हैं तो जीवन नाटकीय रूप से बदल जाता है, इसलिए केवल यह सम झ में आता है कि जब आप प्रसव पूर्व देखभाल के बारे में सोच रहे हों तो आप गर्भावस्था के भौतिक पक्ष से अधिक पर विचार करना चाहेंगे. समग्र दृष्टिकोण वह है जिस पर महिलाएं बढ़ती संख्या में विचार कर रही हैं, क्योंकि इस दृष्टिकोण में शरीर, मन और आत्मा शामिल है, जिससे महिलाओं को एक से अधिक तरीकों से स्वस्थ गर्भावस्था का आनंद लेने में मदद मिलती है.

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उनके अपने: क्या थी रेखा की कहानी

बनारस के पक्का महल इलाके के इस घर में टिया और रिया के रोने की आवाजें सुनसुन कर आसपास के लोगों को भी चैन नहीं आ रहा था. यह समय भी तो ऐसा ही था. महामारी ने लोगों को मजबूर कर दिया था. वे चाह कर भी इन 8 साल की जुड़वां बहनों को गले लगा कर चुप नहीं करवा पा रहे थे. कोरोना देखते ही देखते इन बच्चियों का सबकुछ छीन ले गया था. दादादादी रामशरण और सुमन और टिया व रिया के मम्मीपापा सब एकएक कर के कोरोना के शिकार होते गए थे. अब ये बच्चियां हर तरफ से अकेली थीं. कोई नहीं था जो इन के सिर पर हाथ रखता. पड़ोसी सावधानी बरतते हुए किसी तरह खाने के लिए कुछ दे जाते. शाम होतेहोते बच्चियां डर कर ऐसे रोतीं कि सुनने वालों के दिल दहलते.

इन घरों की बनावट किसी बंद किले से कम न थी. घर का मुख्य दरवाजा बंद होते ही बाहर की दुनिया जैसे कट जाती. बस, घर में काम करने वाली दया कोरोना के माहौल की परवा न करते हुए इन बच्चियों के पास ही रुक गई थी. सो, दोनों को घर में एक इंसान तो दिख रहा था. इस गली में सभी घर बाहर से एकदम बंद से दिखते.

यह भी बहुत पुराना बना मकान था. सब से नीचे ग्राउंडफ्लोर पर दया के लिए एक छोटा सा कमरा और वाशरूम था. दया यहां सालों से थीं. पुराने सामान से भरा एक स्टोर था. घर का बड़ा सा दरवाजा बंद ही रहता. उसे खोलने के लिए एक बड़ी सी चेन कुछ इस तरह से बंधी रहती कि उसे खींच कर ऊपर से भी दरवाजा खोला जा सके. पहले ऊपर से देख लिया जाता कि कौन है, फिर दरवाजा खोला जाता. सुरक्षा की दृष्टि से तो घर पूरी तरह सेफ था पर अकेला घर अब अजीब से सन्नाटे में घिरा रहता. बच्चियों को तो क्या कहा जाए, खुद दया का दिल इस सन्नाटे पर हौलता सा रहता.

पहली मंजिल पर रामशरण और सुमन का बड़ा सा बैडरूम था जिस में सब सुविधाएं थीं. दूसरी मंजिल पर एक बैडरूम संजय और मधु का था और एक कमरा बच्चियों का था. किचन पहली मंजिल पर ही था. जहां टिया और रिया सारे दिन ऊपरनीचे दौड़ा करतीं थीं वहां अब पूरा दिन, बस, दया के आगेपीछे रोतींसिसकतींघूमतीं और फिर थक कर अपने कमरे में जा कर चुपचाप लेटी रहतीं.

अपने अंतिम दिनों में जब मधु को एहसास हुआ कि वे भी नहीं बचेंगीं तो उन्होंने लखनऊ में रहने वाले अपने भाई अनिल को फोन कर के कहा था, ‘अनिल, बड़ी मुश्किल से तुम से बात कर रही हूं. सुनो, हमारे बाद टिया और रिया का ध्यान रखोगे न? उन के बारे में सोचसोच कर किसी पल चैन नहीं आ रहा है, मेरी बच्चियां…’ यह कहतेकहते मधु फूटफूट कर रो पड़ी थीं. अनिल ने कहा था, ‘दीदी, आप बस ठीक हो जाओ, सब ठीक होगा, चिंता न करो, मैं हूं न. सब संभाल लूंगा.’

टिया व रिया का परिवार एक बार जो हौस्पिटल गया, लौटा ही नहीं था. कुछ पड़ोसियों ने अनिल को फोन किया. सब परेशान थे कि इन बच्चियों का होगा क्या. सभी उन की दूरदूर से देखभाल कर रहे थे, पर कितने दिन. अनिल कुछ दिन बाद ही बनारस आया. बच्चियों की हालत देख कर हैरान रह गया. एकदम फूल सी खिली रहने वाली बच्चियां मुरझा सी गई थीं. उस से लिपटलिपट कर दोनों खूब रोईं, “मामा, अब मत जाना कहीं, हमारे साथ ही रहना.”

दया ही खाना बना कर दोनों को खिलाती, जो हो सकता, उन के लिए करती. पर उस की भी एक सीमा थी न. अनिल के सामने हाथ जोड़ कर कहने लगी, “भैया जी, बच्चियों का क्या होगा? आप इन्हें अपने साथ ले जाएंगे? मैं भी कब तक यहां रहूंगी?”

“क्यों, क्यों नहीं रह सकती? देखता हूं कि दीदी की अलमारी में कुछ पैसे रखे हों तो कुछ ले लो, और रहो बच्चियों के साथ, तुम्हारा कौन सा घरपरिवार है.”

अनिल ने टिया को पुचकारा, “बेटा, मम्मी की अलमारी की चाबी है न?”

“मामा, दया मौसी के ही पास है.”

अनिल ने दया की तरफ घूर कर देखा तो उस ने कहा, “जिस दिन संजय भैया नहीं रहे, उसी दिन मधु दीदी को शायद अपने जाने की आशंका भी हो गई थी. उन्होंने मुझे चाबी रेखा दीदी के यहां जा कर देने के लिए कहा था पर मैं बच्चियों को छोड़ कर निकल ही नहीं पाई. फिर वे आती भी हैं तो मैं ही भूल जाती हूं चाबी उन्हें देना.”

“कौन रेखा?”

“संजय भैया के साथ उन के औफिस में काम करती हैं. इसी गली में आगे जा कर रहती हैं. इस समय बच्चियों के पास, बस, वही आतीजाती हैं.”

“लाओ, चाबी मुझे दो.”

दया उसे चाबी देना तो नहीं चाह रही थी पर मजबूर थी, दे दी. अनिल ने मधु की अलमारी खोली, उस में रखे रुपयों में से कुछ दया को देते हुए कहा, “ये रख लो, बच्चों की देखभाल तुम्हें करनी है.”

“पर मैं कब तक करूंगी? आप इन्हें अपने साथ ले जाते, तो अच्छा होता.”

“नहीं, मैं नहीं ले जा पाऊंगा.”

टिया और रिया यह सुन कर रोने लगीं. अनिल ने मधु की अलमारी से काफीकुछ निकाल कर अपने बैग में रखते हुए कहा, “मैं जल्दी ही वापस आऊंगा, अभी मुझे जाना होगा.”

बच्चियां रोती रह गईं. उन के मामा को उन से कोई स्नेह न था. झूठे दिलासे दे कर वह चला गया. रेखा एक उदार महिला थीं, संजय के औफिस में ही काम करती थीं. संजय और मधु उन्हें घर का सदस्य ही मानते थे. मधु से उन की अच्छी दोस्ती थी. अगले दिन रेखा टिया और रिया से मिलने आईं, तो उन के लिए काफी चीजें बना कर लाईं थीं. दोनों को उन्होंने अपने सीने से लगा लिया और रोने लगीं. बड़ा नरम दिल था उन का. दोनों के बारे में सोचसोच कर उन्हें चैन न आता, क्या होगा इन का? दया स्थायी रूप से तो इन के साथ नहीं रह पाएगी, यह वे जानती थीं. कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या करें. दया ने अनिल के बारे में बताया तो रेखा हैरान रह गईं. अलमारी खोल कर देखा तो नाम की धनराशि छोड़ अनिल सब ले गया था. उन का मन वितृष्णा से भर गया. इस स्थिति में भी जो इंसान बेईमानी से काम ले, लूटपाट कर जाए, वह इंसान है भी क्या? रात को वे टिया और रिया के सोने के बाद ही घर गईं.

दया को इस बार रेखा बहुतकुछ समझा कर गईं. यह समय किसी पर भी विश्वास करने का नहीं था. बच्चियों के भविष्य की चिंता करते हुए उन्होंने उसी महल्ले में रहने वाले वकील जयदेव को अगले दिन ही फोन किया और बहुत देर तक उन से इस बारे में बातें करती रहीं.

2 दिनों बाद ही जौनपुर में रहने वाली, टिया रिया की बूआ, नीना आ कर रोनेकलपने लगीं, “हाय, अभागिन बच्चियां, सब चला गएन, हमार अम्मा, बाबूजी, भैया, भौजी सब चला गएन, इंकर का होये…” सीने पर दोहत्थड़ मारमार कर रोने का ऐसा नाटक किया कि बच्चियां डर कर ही रोने लगीं. दया ने कहा, “दीदी, अपने को संभालो, बच्चियां परेशान हो रही हैं.”

नहाधो कर खूब डट कर खाने के बाद नीना आराम से गहरी नींद सो गई, तो दया ने रेखा को उन के आने के बारे में बता दिया. रेखा ने जो सोचा था, उस की तैयारी करने लगीं. नीना सो कर उठी, तो पहली मंजिल पर स्थित रामशरण और सुमन के कमरे में जाने लगी जो उन की मृत्यु के बाद अकसर बंद ही रहता था. दया उस के पीछेपीछे जाने लगी तो नीना ने रुखाई से कहा, “तू आपन काम करा, हमरे पीछे काहे आवत आहा? अपने अम्माबाबूजी के कमरा मा का हम दुई मिनट बैठियू नाही सकित?”

दया बाहर चली गई पर उस ने खिड़की की झिर्री से देखा, नीना जल्दीजल्दी दिवंगत मातापिता की अलमारी खंगाल रही है. दया ने जल्दी से रेखा को फोन किया. रेखा ने जयदेव को फोन कर के बात की और थोड़ी ही देर में बच्चियों के पास पहुंच गईं. नीना अभी तक अपने मातापिता की एकएक चीज खंगालने में लगी हुई थी. दया ने जा कर उन्हें बताया, “दीदी, रेखा दीदी आईं हैं.”

नीना पहले भी आनेजाने पर रेखा से मिल चुकी थी. आतेजाते उन से जितनी भी बातें हुई थीं, रेखा से मन ही मन थोड़ा दूरी सी ही रखी थी. रेखा को देख कर जोरजोर से रोने लगी, “हाय, हम अनाथ हो गए, सब चला गएन.” रेखा ने मन ही मन इस नाटक की सराहना की और कहा, “जो हो गया, लौटाया नहीं जा सकता. अब तो बच्चियों के भविष्य की चिंता करनी है.”

जयदेव भी आ गए थे. रेखा ने जयदेव की सलाह पर अपने 2 अच्छे पड़ोसियों को पूरी बात बता कर आने के लिए कह दिया था. वे भी समय से पहुंच गए थे. दया सब के लिए चाय बनाने चली गई. रेखा ने कहा, “दीदी, आप बच्चियों को अपने साथ ले जाएंगी? आजकल तो औनलाइन क्लासेस चल रही हैं, कैसे कर पाएंगी टिया और रिया अपनी पढ़ाई. अभी भी सब छूट रहा है दोनों का. मैं ने इन की टीचर से बात तो की है पर इन्हें एक परिवार चाहिए. दया सबकुछ तो नहीं कर पाएगी न.”

“न, न, बड़ी मुश्किल अहै हमरे साथे, हम बहुत बीमार रहित हा, हम इनकर देखभाल न कय पाउब.”

रेखा ने एक नजर उन के हृष्टपुष्ट शरीर पर डाली और पूछ लिया, “दीदी, क्या हुआ आप को? संजय और मधु ने तो मुझे कभी बताया नहीं कि आप की तबीयत खराब रहती है.‘’

कुछ हुआ हो तो नीना बताती, बात बदल दी, “अउर सोचा कुछ, बच्चियन कहां रहिएं, यहां भी दया के साथ ही रह लें तो बुराई का अहै? धीरेधीरे सब सीख ही लैइहें, थोड़ी बड़ी होतीं तो हम अपने साथ ले जाती पर अभी तो इन्हें बहुत देखभाल की जरूरत है जो हम तो न कर पाउब, मधु के मायके वालों से पूछ लो.”

रेखा ने अनिल को फोन मिला लिया और वीडियोकौल पर उस से इस बारे में बात की. उस ने किसी भी तरह की जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया जो जयदेव ने रिकौर्ड भी कर लिया. अब नीना थोड़ी उलझी, पूछा, “ई कौन है?”

“जयदेव जी हैं, वकील हैं, संजय के पडोसी भी हैं और इस मामले मैं बच्चियों के लिए क्या बेहतर होगा, यही बात करने हम अभी आए हैं.”

जयदेव ने गंभीर स्वर में कहना शुरू किया, “हमें पहले सारे सामान की सूची बनानी है जिस से बच्चियों का हक कोई मार न ले जाए. जो भी सामान घर में है, बच्चियों का हक है उस पर, आप लोगों में से कोई भी बच्चियों की जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं है तो मैं इस समय टिया और रिया से ही पूछ लेता हूं कि वे किस के साथ रहना चाहती हैं,” कह कर उन्होंने दया से कहा, “बच्चियों को बुला दो, दया बहन.”

बच्चियां सीधे आते ही आदतन रेखा से सट कर बैठ गईं. जयदेव ने पूछा, “बेटा, आप ही बताओ कि आप किस के साथ रहना चाहती हो? अकेले तो नहीं रह पाओगी न, बेटा.”

टिया और रिया ने एकदूसरे का मुंह देखा, झुक कर एकदूसरे के कान में कुछ कहा और रेखा से चिपट गईं, एक साथ बोलीं, “रेखा आंटी के साथ रहना है.”

रेखा ने भावविभोर हो कर दोनों को सीने से चिपटा लिया, आंसू बह निकले, “मेरी बच्चियां, हां, मेरे साथ रहेंगीं.”

नीना के चेहरे पर बला टलने वाले भाव आए और झेंपती हुई वह मुसकरा दी. पड़ोसी रोहित और सुधा ने भी उठ कर बच्चियों के सिर पर हाथ रखते हुए कहा, ”हां, रेखा आंटी के साथ रहना और हम भी हैं ही, तुम हमारा ही परिवार हो अब, बेटे.”

बच्चियां बहुत दिन बाद मुसकराई थीं. दया ने अपनी आंखें पोंछीं. जयदेव ने कहा, ”कानूनी प्रक्रिया तो मैं संभाल ही लूंगा, अब कोई चिंता नहीं. पहले जरा आज ही हम सारे सामान की एक एक लिस्ट बना लें,’’ फिर नीना की तरफ देखते हुए पूछ लिया, ”अभी आप ने किसी की अलमारी से कुछ लिया तो नहीं है न?”

”न, न, मैं तो अपने मांपिताजी की एकएक चीज उन की याद में देख रही थी. काफी सामान संभाल कर रखा है अम्मा ने. पता नहीं कितना सोनाचांदी रखा है अम्मा ने. कबहूं बताउबै नाही किहिन,’’ लालच से भरा स्वर सब को दुखी कर गया. यह समय ऐसा था कि सिर्फ बच्चियों के बारे में सोचा जाना चाहिए था पर बच्चियों के मामा और बूआ को घर में रखे रुपए पैसे और कीमती सामान में ज्यादा रुचि है. यह बात सब का दिल दुखा गई थी. वहीं, रेखा की निस्वार्थ दोस्ती और स्नेह से भरे दिल पर सब को गर्व हो आया.

जयदेव ने वहीँ बैठेबैठे अपना काम शुरू किया और रोहित व सुधा रेखा और दया के साथ मिल कर अब एकएक सामान एक फाइल में नोट करते जा रहे थे. बच्चियां दया से पूछ रही थीं, ”मौसी, यहां अब आप अकेली रहोगी?”

”नहीं, मैं भी गांव जाऊंगी, वहां मेरा घर है. जब भी तुम कहोगी, वापस आ जाऊंगी और बीचबीच में तुम से मिलने आती भी रहूंगी.”

”मौसी, अब रात को अकेला भी नहीं सोना पड़ेगा न हमें?”

”हां, मेरी बच्चियो, अब कोई डर की बात नहीं. हिम्मत रखना,” कह कर दया ने उन के सिर पर प्यारभरा हाथ रखा और दुखी, मासूम से चेहरे चूम लिए. टिया और रिया रेखा के पीछेपीछे घूम रही थीं. जीवनभर नन्हे हाथों के स्पर्श को तरसा मन जैसे नजरों ही नजरों में उन पर स्नेह लुटा रहा था. रेखा निसंतान थीं. पति की मृत्यु कुछ साल पहले हो गई थी. आज बच्चियों को अपने साथसाथ चलते देख, उन के मुसकराते चेहरे देख दिल को ऐसी ठंडक सी मिली थी जिसे वे किसी को भी समझा नहीं सकती थीं.

फिर प्यार हो गया: क्यों अनिरुद्ध को याद कर रही थी नीरा

एमआरआई टैस्ट करवाने के नाम से नीरा की हालत खराब थी. उस ने सुना था कि मशीन के अंदर लेटना पड़ता है, फिल्मों में देखा भी था. सुबह ही वह अस्पताल में भरती हुई थी. नीरा का नंबर आने में समय था. समीर ने उस के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘घबराओ मत, अभी मैं डाक्टर से अनुरोध करता हूं कि मुझे तुम्हारे साथ अंदर चलने दें.’’ नीरा कुछ बोली नहीं.

कमर के तेज दर्द से परेशान नीरा को भरती होना पड़ा था. कमरदर्द तो उसे सालों से था पर इतना ज्यादा नहीं रहता था. वह तो अब भी इतनी गंभीरता से न सोचती पर समीर अब पूरी तरह से इलाज करवाने पर अड़ गए थे. हुआ यह था कि 2 महीने पहले समीर के कुलीग रजत बाथरूम में फिसल कर गिर गए थे. कई दिन तक उन का कमर का दर्द ठीक नहीं हुआ तो वे इसी अस्पताल के इन्हीं और्थोपेडिक डा. नवीन के पास आए थे. उन का भी एमआरआई और कई दूसरे टैस्ट हुए थे और उन की जब रिपोर्ट्स आई थीं तो जैसे एक तूफान सा आ गया था. रजत को स्पाइन कैंसर था. उन की स्पाइन 65 फीसदी खराब हो चुकी थी. उन्होंने ही बताया था कमरदर्द तो उन्हें अकसर रहता था पर वे इसे काम की अधिकता का प्रैशर समझ लेते थे.

नीरा ने तब से नोट किया था कि समीर उस की सेहत को ले कर परेशान रहने लगे थे. अपने व्यस्त दिनचर्या के बावजूद घर के कई कामों में उस का हाथ बंटाने लगे थे. अस्पताल में बैठी नीरा को दर्द तो था ही, कभी बैठ रही थी, कभी उठ कर टहलने लगती थी. इतने में समीर ने आ कर कहा, ‘‘नीरा, सौरी, डाक्टर किसी को साथ नहीं जाने दे रहे हैं.’’ समीर के चेहरे की उदासी नीरा को बहुतकुछ सोचने पर मजबूर करती रही. उस ने खुद को संभालते हुए कहा, ‘‘कोई बात नहीं, चिंता मत करो, मैं ठीक हूं.’’ और नीरा ने खुद को काफी संयत कर लिया था. इतने में नीरा के मोबाइल पर उस के दोनों बच्चों रिया और राहुल के फोन आ गए. दोनों कालेज तो गए थे पर मन मां में ही अटका था. दोनों से बातें कर के नीरा ने अपना फोन बंद कर के समीर को पकड़ा दिया. उस का नंबर आ गया था, मन बेचैन था, न चाहते हुए भी आंखें भर आईं. समीर कुछ कह नहीं पाए. बस, नीरा का हाथ अपने हाथ में ले कर चुपचाप पलभर खड़े रहे. समीर की भीगी हथेलियां जैसे समीर के दिल की हालत बयां कर रही थीं. नीरा ने अंदर जाते हुए पीछे मुड़ कर एक बार समीर की आंखों में झांका, उदास, भीगी सी आंखों की नमी नीरा ने अपने दिल में भी उतरती महसूस की. पल भर में लगा यह हाथ, यह छुअन जैसे आज सबकुछ है उस के लिए. उस का मन हुआ, मुड़ कर चूम आए समीर की हथेली लेकिन माहौल पर एक नजर डालते हुए अंदर चली गई.

नीरा ने नर्स का दिया गाउन पहना. दिल धड़का जब नर्स ने उसे एक स्विच दिया और कहा, ‘‘कुछ प्रौब्लम हो तो इसे दबा देना, हम आ जाएंगे.’’

नीरा ने पूछा, ‘‘इस रूम में कोई नहीं रहेगा?’’

‘‘नहीं मैडम, वह देखो, हम सब ग्लास के उस तरफ हैं.’’ नीरा के कानों में रूई रखते हुए नर्स ने कहा, ‘‘बहुत तेज आवाज आती है, घबराना नहीं, कुछ नहीं होता है.’’

‘‘कितनी देर लगेगी?’’

‘‘25 मिनट.’’

‘‘क्या? इतनी देर इस मशीन में लेटना है?’’

‘‘हां मैडम, चलो, अब लेट जाओ.’’ कमरे में बहुत ठंडक थी. वह चुपचाप लेट गई. नर्स ने उस पर कंबल डाल दिया और वह स्विच हाथ में पकड़ा दिया, फिर खुद कमरे से बाहर चली गई. नीरा को जब मशीन के अंदर किया गया, उस का मन हुआ हाथपैर मार कर जोर से चीख पड़े, वह यहां ऐसे नहीं लेट पाएगी. उस का दम घुटने लगा. आंसू बह चले. सांस रुकती सी लगी. मशीन की टकटक की आवाज कानों को जैसे फाड़ने लगी कि अचानक फिर एक आवाज उसे अपनी ओर खींचने लगी, ओह, फिर अनिरुद्ध, उफ, आज इस समय भी. यह कहां से फिर उस की याद आ गई, अब? इस मुश्किल टैस्ट के समय. 25 साल हो रहे हैं समीर की पत्नी बने. और यह अनिरुद्ध, क्यों गाहेबगाहे चला आता है उस के खयालों में. मशीन की तेज आवाज और रुकती सांस की बेचैनी के बीच वह हैरान रह गई. आज अनिरुद्ध का चेहरा कहीं पीछे जा रहा था और समीर की भीगी हथेलियां उसे अपनी ओर खींचने लगीं. उस का मन हुआ कि जोर से आवाज दे कर समीर को बुलाए और उस के सीने में अपना मुंह छिपा कर जोरजोर से रोए.

वह नर्स का दिया स्विच दबाने ही वाली थी कि समीर की आवाज कानों में गूंजी, सुबह ही तो कह रहे थे, ‘ठीक रहना तुम नीरा, आजकल सो नहीं पाता हूं.’ समीर की आवाज उस के दिल में उतरती चली गई और वह शांत होती हुई चुपचाप लेटी रह गई. स्विच की पकड़ एकदम ढीली पड़ गई. पिछले 25 सालों का वैवाहिक जीवन बंद आंखों के आगे घूमने लगा. कालेज में उस का प्यार सीमाएं तोड़, वर्जनाओं को नकारता हुआ, किसी सैलाब की तरह आगे नहीं बढ़ा था बल्कि अनिरुद्ध और उस का प्यार तो एक सुगंधित फूल की तरह था जिस में वे दोनों ही डूबे रहे, किसी को पता नहीं चला. और बहुत चाह कर भी इन 25 सालों में वह अपने दिमाग से अनिरुद्ध की छवि को दूर नहीं कर पाई. रोज रात को बिस्तर पर लेटते ही उस की आंखों के सामने वह साकार होता रहा है. विवाह के समय भूल ही गई उसे अपने जीवन से अलग करना, अंदर से हमेशा उस के साथ ही जुड़ी रही.

विवाह उस के लिए बस एक समझौता था. अपनी सारी भावनाएं तो वह अनिरुद्ध को सौंप चुकी थी. उसे बहुत ही सौम्य, शालीन, सुव्यवस्थित किस्म के इंसान समीर का भरपूर प्यार और पूर्ण समर्पण मिला पर, समीर के प्रति उस का समर्पण हमेशा आधाअधूरा ही रहा. मशीन की टकटक बंद हुई तो उसे लगा जैसे वह बहुत लंबा सफर कर के लौटी है. अचानक समीर को देखने का मन हुआ. आजकल पता नहीं क्यों हर समय यही दिल चाहता है कि समीर आसपास रहें. पहले ऐसा नहीं होता था. जब से उस की तबीयत खराब है, सारे काम छोड़ कर समीर छुट्टी ले कर उस का ध्यान रख रहे हैं. खाना बनाने के लिए जबरदस्ती मेड भी रखवा दी है. जरा सा भी वजन उसे उठाने नहीं देते. कभी भी उस का हाथ पकड़ कर चुपचाप लेट जाते हैं उस के बराबर में. नर्स आई तो उस के विचारों में विराम लगा. नर्स ने उसे सहारा दे कर उठाया. कपड़े बदलने के लिए कहा. वह चेंज कर के बाहर आई तो समीर बेचैनी से टहलते दिखे. उसे देखते ही लपके, ‘‘ठीक हो न?’’

नीरा ने ‘हां’ में गरदन हिलाई.

‘‘आओ, दो मिनट बैठो, फिर रूम में चलते हैं, रिपोर्ट तो 3 बजे तक आएगी.’’ अस्पताल के रूम में बैड पर लेट कर नीरा ने कहा, ‘‘अब तुम भी थोड़ा आराम से बैठ जाओ, सुबह से इधर से उधर कर रहे हो.’’ समीर ने बैग खोलते हुए कहा, ‘‘चलो, पहले अब नाश्ता करते हैं. लेकिन रुको, मैं कैंटीन से चाय ले कर अभी आया.’’ नीरा के कुछ कहने से पहले ही समीर कमरे से निकल गए. नीरा को नाश्ते में चाय चाहिए, यह सब को पता है, जबकि समीर चाय पीते ही नहीं हैं. समीर चाय ले कर आए, दोनों ने नाश्ता किया. नाश्ता और खाना सुबह मेड श्यामला ने बना ही दिया था. उस के बाद समीर बेचैनी से अंदरबाहर करते रहे, बारबार घड़ी देखते. उन के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. लंच भी बहुत थोड़ा सा खाया. बच्चे फोन के जरिए संपर्क में थे. ढाई बजे से ही रिपोर्ट लेने के लिए कभी काउटर तक जाते, कभी नर्स से पूछते.

थोड़ी देर बाद समीर तेजी से चलते हुए रूम में आए. नीरा के बैड पर बैठ कर उसे सीने से लगा लिया, ‘‘रिपोर्ट्स आ गईं नीरा, डाक्टर से फोन पर बात कर के आया हूं. उन्होंने फोन पर ही रिपोर्ट्स पूछ ली थी. कोई बड़ी चिंता नहीं है. नीरा, डिस्क में थोड़ी दिक्कत है, ठीक हो जाएगी. ओह, नीरा.’’ समीर की बांहों में नीरा ऐसे दुबकी थी जैसे वह कोई छोटी बच्ची हो. आज उस का मन हुआ, बस, वह इन्हीं बांहों में समाए रहे. समीर ने कहा, ‘‘बच्चों को बता दूं, वे भी परेशान हैं.’’ समीर बच्चों से बात करते हुए कितने आश्वस्त दिख रहे थे. अब वह लेट कर आज स्वयं को धिक्कारने लगी, आखिर क्यों नहीं वह एक सीधी राह पर चल पाती है. केयरिंग पति है, बच्चे हैं. समीर एक अच्छे पति, पिता और जिम्मेदार इंसान हैं. पर वह क्यों मूर्ख है? यादों से चिपके रहने की आदत को छोड़ क्यों नहीं देती?

ये यादें उसे वर्तमान से दूर ढकेलती हैं. वह क्यों उन्हें अपने खुशहाल जीवन में इस तरह बिखेर देती है कि वर्तमान उस में दब सा जाता है. जीवन के कितने साल उस ने अतीत में जी कर बेकार कर दिए. अब उन खूबसूरत लमहों की भरपाई कभी कर पाएगी? बेचारे समीर तो उस की गंभीरता को उस का स्वभाव ही मान चुके हैं. शाम को बच्चे भी सीधे अस्पताल ही आ गए. नीरा से लिपट गए दोनों. कुछ देर चारों बातें करते रहे. शाम को डाक्टर ने आ कर बताया, ‘‘डिस्क में थोड़ी परेशानी है. दर्द ज्यादा है तो कल सुबह में एक इंजैक्शन देंगे, फिर ऐक्सरसाइज, एक्यूपंक्चर और दवाओं से ठीक हो जाओगी.’’ और कुछ बातें समझा कर डाक्टर चले गए. रात को बच्चे घर चले गए. समीर को ही रुकना था. सुबह औपरेशन थिएटर में जाने के खयाल से ही नीरा तनाव में थी, चुपचाप लेट कर आंसू रोकने की कोशिश कर रही थी. समीर उस के पास ही आ कर बैठ गए. अपना हाथ उस के माथे पर रख कर पूछा, ‘‘डर रही हो? घबराओ मत, मैं हूं न.’’

समीर का एक हाथ नीरा के माथे पर था, दूसरे हाथ में नीरा का हाथ था. आज समीर का स्पर्श शरीर पर महसूस होता हुआ उस की सोच को भिगोता जा रहा था. वह आंखें मूंदे उन की परिचित खुशबू को महसूस करने लगी. उसे लग रहा था उस के अंदर एक नई नीरा ने जन्म ले लिया है. उस का खुद से यह एक नया परिचय था. वह खुद से ही अभिभूत लगी. अब जैसे उस की सोच, उस का जिस्म सुगंधित हो उठे हैं. अब वह इसी खुशबू में भीगी फिरती रहेगी जीवनभर. उस ने पूरे मन से आज अतीत को तिलांजलि दे दी. अब जीवन की सार्थकता पीछे मुड़ने में नहीं, बल्कि वैवाहिक रिश्ते के साथ ईमानदारी से आगे बढ़ने में ही थी. जीवन के 40वें दशक में इस समय वह विमुग्ध थी, अपनेआप पर, समीर पर, इस नियति पर. आज लग रहा था कितना बेमानी था सब. हाथ तो पहले भी छुआ है समीर ने लेकिन आज समीर का स्पर्श जैसे तपतीजलती दोपहर के बाद आधी रात की ठंडीठंडी चांदनी. एक बार तो उस का मन किया कि कह दे, समीर, हाथ मत हटाना पर होंठ और जबान को जैसे ताले लग गए थे.

समीर कुछ सोचते हुए कहीं और देख रहे थे और वह उन्हें यों देख रही थी कि पलक भी झपकाई तो न जाने कितने पलों का घाटा हो जाएगा. ऐसा तो कभी भी नहीं हुआ था. शायद, उसे प्यार हो गया है. हां, फिर से. यकीनन. अचानक समीर ने नीरा को देखा. समीर की आंखें बता रही थीं कि नीरा की आंखों में उन्हें अपनी तसवीर ही दिख रही थी. वे हैरानी से मुसकराए. वह भी मुसकरा दी. उसे लगा वह हर डर, घबराहट और हिचकिचाहट से ऊपर उठ कर स्वच्छंद, स्वतंत्र और निष्कपट हृदय की स्वामिनी हो चुकी है.

10 Tips: कुछ ऐसे करें नेलपेंट को रियूज

आमतौर पर नेल पेंट का उपयोग उंगलियों की सुंदरता को निखारने के लिये किया जाता है. लेकिन नेल पेंट का उपयोग अन्य कार्यों के लिये भी किया जा सकता है. घर में अगर कोई खराब नेल पेंट पड़ी हुई है तो, उसे इन कामों के लिये उपयोग जरुर करें.

1. चाभियों पर पहचान बनायें

शायद आपको चाभियों को लेकर समस्या हो. आपकी सभी चाभियां- घर की, दराज की या आलमारी की, सभी एक लगती हैं. हर चाभी को अलग-अलग रंग की नेल पेंट से चिन्हित करने से काम आसान हो जाता है.

2. मसालों को नामांकित करना

धनिया पाउडर, जीरा पाउडर और पिसा गरम मसाला एक जैसे दिखते हैं. क्यों न इन्हें नामांकित कर दिया जाये. नामांकित करने के बाद उनपर पारदर्शी नेल पेंट लगा दें जिससे नामांकन सुरक्षित रहे.

3. लिफाफा चिपकाना

जब आपको लिफाफा चिपकाने की जरूरत पड़े और गोंद ना मिले तो लिफाफे के किनारों पर नेलपेंट लगाने से काम हो जायेगा.

4. सुई में धागा डालना

सुई में धागा डालने के लिये हमें काफी मशक्कत करनी पड़ती है. धागे के सिरे को नेल पेंट में हल्के से डुबोयें. इससे धागा सख्त हो जायेगा और आसानी से सुई में चला जायेगा.

5. गहनों से सुरक्षा

हम सभी को आर्टिफिशियल गहने काफी पसंद होते हैं लेकिन ये सभी की त्वचा के लिये अनुकूल नहीं होते. क्या आपने ध्यान दिया है कि इस प्रकार की अंगूठी या हार पहनने के बाद आपकी त्वचा हरी हो जाती है. इसे रोकने के लिये उन गहनों के त्वचा के सम्पर्क में आने वाली सतह पर पारदर्शी नेलपेंट की परत लगायें. कई कपड़ों पर के स्टोन काफी नाजुक होते हैं, उन्हें गिरने से बचाने के लिये पारदर्शी नेलपेंट की परत लगायें. आप यह परिधानी गहनों के लिये बी कर सकती हैं.

6. जूते के फीते चिपकाना

जूते के फीते के सिरे अक्सर खराब हो जाते हैं तो उन्हे ठीक करने के लिये या तो उन्हे हल्का सा जलाया जा सकता है या फिर नेल पेंट लगाई जा सकती है. मजे के लिये एक बार पारदर्शी नेलपेंट को छोड़कर रंगीन नेलपेंट अपनायें.

7. ढीले पेचों को कसना

याद है, आपके टूल बॉक्स के पेंच अकसर ढीले हो जाते हैं. पेंच को कसने के बाद उनपर नेलपेंट की परत लगायें. वे कभी नहीं गिरेंगें.

8. अपने जूते के तलवों को रंगें

अपने पुराने साधारण जूतों के तलवों को रंगबिरंगे रंगो में रंग कर नया जीवन प्रदान करें. फिरोजी, नारंगी या लाल रंग अपनायें.

9. फटने से रोकना

घर से निकले के बाद आपने देखा कि आपकी लेगिंग में छोटा सा छेद हो गया है. अब आप क्या करेंगी. पारदर्शी नेलपेंट को फटे भाग के किनारों पर लगायें. इससे वह छेद और बड़ा नहीं होगा.

10. बदरंग होने से बचाये

बेल्ट के बकल पर पारदर्शी नेलपेंट की परत लगाने से वे बदरंग नहीं होगें.

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सतरंगी रोशनी: निर्वेद को क्या मिला उपहार

दीवाली का त्योहार पास ही था, इसलिए कभीकभी पटाखों की आवाज सुनाई दे जाती थी. मौसम काफी सुहाना था. अपने शानदार कमरे में आदविक आराम से सो रहा था. तभी उस के फोन की घंटी बजी. नींद में ही जरा सी आंख खोल कर उस ने समय देखा. रात के 2 बज रहे थे. इस वक्त किस का फोन आ गया.

सोच वह बड़बड़ाया और फिर हाथ बढ़ा कर साइड टेबल से फोन उठाया बोला, ‘‘हैलो.’’

‘‘जी क्या आप आदविक बोल रहे हैं?’’

‘‘जी आदविक बोल रहा हूं आप कौन?’’

आदविकजी मैं सिटी हौस्पिटल से बोल रहा हूं, क्या आप निर्वेद को जानते हैं? हमें आप का नंबर उन के इमरजैंसी कौंटैक्ट से मिला है.’’

‘‘जी निर्वेद मेरा दोस्त है. क्या हुआ उस को?’’ बैड से उठते हुए आदविक घबरा कर बोला.

‘‘आदविकजी आप के दोस्त को हार्टअटैक हुआ है.’’

‘‘कैसा है वह?’’

‘‘वह अब ठीक है… खतरे से बाहर है…

‘‘मैं अभी आता हूं.’’

‘‘नहीं, अभी आने की जरूरत नहीं है. हम ने उन्हें नींद का इंजैक्शन दे दिया है. वे सुबह से पहले नहीं उठेंगे. आप सुबह 11 बजे तक आ जाइएगा. उस वक्त तक डाक्टर भी आ जाएंगे. आप की उन से बात भी हो जाएगी.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर आदविक ने फोन रख दिया और बैड पर लेट कर सोने की कोशिश करने लगा, लेकिन नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. उस का मन बेचैन हो गया था. वह आंखें बंद कर के एक बार फिर सोने की कोशिश करने लगा. मगर नींद की जगह उस की आंखों में आ बसे थे 20 साल पुराने कालेज के वे दिन जब आदविक इंजीनियरिंग करने गया था. मध्यवर्गीय परिवार का बड़ा बेटा होने के नाते आदविक से उस के परिवार को बहुत उम्मीदें थीं और वह भी जल्द से जल्द अपने पैरों पर खड़ा हो कर अपने भाईबहनों की पढ़ाई में मातापिता की मदद करना चाहता था.

कालेज में आ कर पहली बार आदविक का पाला उस तबके के छात्रों से

पछ़ा, जिन्हें कुदरत ने दौलत की नेमत से नवाजा था. उन छात्रों में से एक था निर्वेद, लंबा कद, गोरा रंग और घुंघराले घने बालों से घिरा खूबसूरत चेहरा. निर्वेद जहां एक ओर आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक था वहीं दूसरी ओर पढ़ाईलिखाई में भी अव्वल था. अमीर मातापिता की सब से छोटी संतान होने के नाते दौलत का सुख और परिवार का प्यार हमेशा ही उसे मिला. हर प्रकार की कला के प्रति उस की पारखी नजर उस के व्यक्तित्व को एक अलग ही निखार देती थी.

अपनी तमाम खूबियों के कारण निर्वेद लड़कियों में पौपुलर था. कालेज की सब से सुंदर और स्मार्ट लड़की एक डिफैंस औफिसर की बेटी अधीरा थी और कालेज के शुरू के दिनों से ही निर्वेद को बहुत पसंद करती थी.

निर्वेद को देख कर कभीकभी सामान्य रंगरूप वाले आदविक को ईर्ष्या होती थी. उसे लगता था कि जैसे कुदरत ने सबकुछ निर्वेद की ही  झोली में डाल दिया है. दोनों में कहीं कोई समानता नहीं थी. कहां आदविक एक मध्यवर्गीय परिवार का बड़ा बेटा तो निर्वेद एक अमीर परिवार का छोटा बेटा. दोनों में कहीं कोई समानता नहीं थी.

फिर भी इन दोनों की अच्छी दोस्ती हो गई थी. पहले साल दोनों रूममेट्स थे क्योंकि फर्स्ट ईयर में रूम शेयर करना होता है. उन्हीं दिनों इन दोनों की दोस्ती इतनी गहरी हो गई कि बाकी के 3 साल अगलबगल के कमरों में ही रहे. दोनों की दोस्ती बड़ी अनोखी थी. एक अगर सोता रह तामा तो मैस बंद होने से पहले दूसरा उस का खाना रूम तक पहुंचा देता.

एक का प्रोजैक्ट अधूरा देख कर दूसरा उसे बिना कहे ही पूरा कर देता था. दोनों एकदूसरे को सपोर्ट करते. अगर एक पढ़ाई में ढीला पड़ता तो दूसरा उसे पुश करता. कभी कोई  झगड़ा नहीं, कोई गलतफहमी नहीं. उन के सितारे कालेज के शुरू के दिनों से ही कुछ ऐसे अलाइन हुए थे कि दोनों के बीच आर्थिक, सामाजिक, रंगरूप जैसी कोई भी असमानता कभी नहीं आई. दोनों अपने बाकी मित्रों के साथ भी समय बिताते, घूमतेफिरते, लेकिन आदविक निर्वेद की दोस्ती कुछ अलग ही थी.

कभी दोनों एकदूसरे के साथ घंटों बैठे रहते और एक शब्द भी न बोलते तो कभी बातें खत्म होने का नाम ही नहीं लेतीं. एक को दूसरे की कब जरूरत है यह कभी बताना नहीं पड़ता था.

एक बार छुट्टियों में आदविक को निर्वेद के घर जाने का अवसर मिला. पहली बार उस के परिवार से मिलने का मौका मिला था. उस के मातापिता और 2 बड़े भाइयों के साथ 2 दिन तक आदविक एक पारिवारिक सदस्य की तरह रहा. खूब मजा किया और पहली बार पता चला कि समाज के इतने खास लोगों का व्यवहार इतना सामान्य भी हो सकता है. आदविक ने देखा कि इतना पैसा होने के बाद भी निर्वेद के परिवार वालों के पैर जमीन पर ही टिके थे. उस की दोस्ती निर्वेद के साथ क्यों फूलफल रही थी यह बात उसे अब सम झ में आ गई थी. वापस आने के बाद भी आदविक उस के परिवार के साथ खासकर उस की मां के साथ फोन पर जुड़ा रहा.

एक बार सैमैस्टर की फाइनल परीक्षा आने वाली थी. हर छात्र मस्ती भूल कर पढ़ाई में डूबा था. आदविक पढ़तेपढ़ते निर्वेद के कमरे से कोई किताब उठाने गया तो देखा कि वह बेहोश पड़ा था. माथा छुआ तो पता चला कि वह तो बुखार में तप रहा है. आदविक ने बिना वक्त गंवाए तुरंत दोस्तों की मदद से उसे अस्पताल पहुंचाया. वहां डाक्टर ने जाते ही इंजैक्शन दिया और कहा कि अभी इन्हें एडमिट करना पड़ेगा. बुखार काफी तेज है, इसलिए एक रात अंडर औब्जर्वेशन में रखना होगा. सुबह तक हर घंटे में बुखार चैक करना होगा.

‘‘मैं इस का ध्यान रखूंगा और जरूरत पड़ने पर डाक्टर को भी बुला लूंगा. अब तुम लोग जा सकते हो,’’ आदविक ने दोस्तों से कहा तो सभी दोस्त हौस्टल चले गए.

सुबह जब निर्वेद की आंख खुली तो देखा कि आदविक भी वहीं बराबर वाले बैड पर सो रहा था, ‘‘अरे तू यहां क्या कर रहा है? तु झे तो रातभर पढ़ना था न,’’ निर्वेद ने हैरानी से पूछा.

‘‘अरे नहीं यार, सोना ही तो था सो गया.’’

तभी नर्स और डाक्टर दोनों साथ कमरे में दाखिल हुए. नर्स डाक्टर से बोली, ‘‘सौरी डाक्टर रात को नींद लग गई तो हर घंटे बुखार चैक नहीं कर सकी, लेकिन मैं ने इंजैक्शन दे दिया था.’’

डाक्टर ने निर्वेद के पीछे से चार्ट उठाते हुए कहा, ‘‘लेकिन चार्ट में तो हर घंटे की रीडिंग है.’’

इस के साथ ही निर्वेद की निगाहें आदविक की ओर घूमीं तो वह आंखें मीच कर

मुसकरा दिया. थोड़ी देर में निर्वेद की मां का फोन आया, ‘‘बेटा अब कैसी तबीयत है?’’

‘‘ठीक है मां, लेकिन आप को कैसे पता चला?’’

‘‘आदविक का फोन आया था… बहुत ही प्यारा लड़का है. आज मैं तु झे भी बोल रही हूं हमेशा उस का भी ध्यान रखना, उसे कभी भी परेशानी में अकेला मत छोड़ना,’’ मां ने कहा.

वक्त की रफ्तार कालेज में कुछ ज्यादा ही तेज होती है. 4 साल पलक  झपकते ही बीत गए. कालेज के इन 4 सालों में सभी को इंजीनियरिंग की डिगरी दे कर उन के पंखों को नई उड़ान के लिए मजबूत कर दिया था और इस एक नए आकाश पर अपने नाम लिखने के लिए छोड़

दिया था.

निर्वेद और अधीरा की खूबसूरत जोड़ी के प्यार का पौधा भी अब तक एक विशाल वृक्ष का रूप ले चुका था. हरकोई अपने कैरियर के चलते कहांकहां जा बसा, बता पाना मुश्किल हो गया. धीरेधीरे सब की शादियां होने लगीं.

आदविक की शादी एक मध्यवर्गीय परिवार की पढ़ीलिखी लड़की खनक से हो गई. दोनों की अच्छी निभ रही थी. एक साल बाद खनक ने बेटे को जन्म दिया तो ऐसा लगा कि घर खुशियों से भर गया. उधर निर्वेद और अधीरा दोनों को भी अच्छी नौकरी मिल गई थी, लेकिन दोनों अभी शादी नहीं करना चाहते थे. कुछ और दिन अपनी बैचलर लाइफ ऐंजौय करना चाहते थे.

उधर आदविक अपनी घरगृहस्थी की जिम्मेदारियां निभा रहा था. लेकिन अपने प्यारे से बेटे को गोद में ले कर जब आदविक उसे प्यार करता तो उस के सामने दुनिया की हर नेमत

छोटी लगती. अगले साल बड़ी धूमधाम से निर्वेद और अधीरा की भी शादी हो गई. शादी के कुछ दिनों बाद निर्वेद को किसी असाइनमैंट के लिए विदेश जाना पड़ा. फिर पता नहीं क्यों और कैसे, लेकिन वापस आते ही अधीरा ने उस के सामने तलाक की मांग रख दी. निर्वेद का प्यार आज तक उस की किसी मांग को नकार नहीं सका था, लिहाजा इस मांग को भी उस की खुशी मान कर न नहीं कर पाया. यह शादी उतने दिन भी नहीं चली जितने दिन उस की तैयारियां चली थीं. गलती किस की थी, क्या थी इन सब बातों की फैसले के बाद कोई अहमियत नहीं रह जाती. तलाक हो गया.

निर्वेद का तलाक हुए काफी वक्त बीत चुका था. सभी के सम झानेबु झाने के

बाद भी निर्वेद का मन किसी की ओर नहीं  झुका. अधीरा से टूटे हुए रिश्ते ने उस को इस कदर तोड़ दिया था कि फिर वह किसी से जुड़ ही नहीं सका. निर्वेद की उम्र पैसा कमाने और दोस्तों से मिलने में ही बीत रही थी.

निर्वेद का मिलनसार व्यवहार और गाने का शौक हर महफिल में जान डाल देता था. अपने हर दोस्त के घर उस का स्वागत प्यार से होता था. अपने कलात्मक सु झाव और मस्तमौला अंदाज के कारण वह दोस्तों के परिवार के बीच भी उतना ही पौपुलर था जितना दोस्तों के बीच. दुनिया के न जाने कितने देशों में अपने काम के सिलसिले में निर्वेद का जाना हुआ लेकिन आज भी वह अपने आलीशान मकान में अकेला रह रहा था. सारी रात आदविक इन्हीं यादों में डूबता तैरता रहा.

सुबह की पहली किरण के साथ जब आदविक की पत्नी खनक की आंख खुली तो उस ने आदविक को खिड़की के पास खड़ा पाया जो बाहर देख रहा था. जल्दी उठने का कारण पूछने पर आदविक ने पूरी कहानी खनक को बता दी फिर जल्दी तैयार हो कर वक्त के कुछ पहले ही वह अस्पताल पहुंच गया और आईसीयू की विंडो से निर्वेद को देखता रहा. डाक्टर से बात कर के उसे पता चला कि करीब रात एक बजे उसे अस्पताल लाया गया था. हार्ट अटैक सीवियर था, लेकिन समय पर सहायता मिल गई. अब स्थिति काबू में है. बता कर डाक्टर चला गया. आदविक पूछता ही रह गया कि डाक्टर उसे अस्पताल लाया कौन था?

तभी आदविक ने देखा कि एक औरत उसी डाक्टर को आवाज लगाती हुई आई और उस से निर्वेद के बारे में पूछताछ करने लगी. आदविक हैरानी से उस की ओर देख रहा था. वह करीब 39-40 साल की खूबसूरत औरत थी जो भारतीय नहीं थी. उस का फ्रैच जैसा अंगरेजी बोलना यह बता रहा था कि वह इंग्लिश स्पीकिंग देश से भी नहीं है. नैननक्श से अरबी लग रही थी. आदविक खुद भी काम के सिलसिले में कई देशों में रह चुका था, इसलिए वह पहचान गया.

तभी नर्स ने आ कर कहा कि आप रोगी से मिल सकते हैं. उन्हें रूम में शिफ्ट कर दिया गया है. आदविक रूम में पहुंचा तो वह महिला पहले से ही निर्वेद के बैड के पास कुरसी पर बैठी थी. उस की हालत ठीक लग रही थी.

निर्वेद ने उस से मिलवाते हुए कहा, ‘‘आदविक, यह मेरी दोस्त आबरू है और आबरू यह मेरा दोस्त आदविक.’’

आबरू की आंखों में निर्वेद के लिए  झलकते चिंता के भाव काफी कुछ

कह रहे थे. निर्वेद की तबीयत अब ठीक लग रही थी, आदविक उन दोनों को अकेला छोड़ कर डाक्टर से बात करने के बहाने वहां से चला गया और बाहर बैंच पर बैठ गया. आदविक की कल्पना की उड़ान इस कहानी के सिरे ढूंढ़ने लगी. उसे यह तो पता था कि निर्वेद करीब 4 साल पहले किसी फौरेन असाइनमैंट के लिए इजिप्ट गया था और वहां वह 2 साल रहा था पर यह आबरू की क्या कहानी है?

तभी डाक्टर को सामने से आता देख आदविक उन से निर्वेद के अपडेट्स लेने लगा. डाक्टर ने दवाइयों और इंस्ट्रक्शंस की लिस्ट के साथ घर ले जाने की आज्ञा दे दी.

कमरे में आ कर आदविक ने सब बताते हुए निर्वेद से कहा, ‘‘तू मेरे घर चल, मैं तु झे अकेले नहीं छोड़ूंगा.’’

निर्वेद ने सवालिया निगाहों से आबरू की तरफ देखा तो वे अपनी फ्रैंच इंग्लिश में बोली, ‘‘आदविक आप निर्वेद की चिंता बिलकुल न करें मैं उस का ध्यान रखूंगी. कोई जरूरत हुई तो आप को बता दूंगी.’’

आदविक ने हैरानी और परेशानी से निर्वेद की ओर देखा, ‘‘यार यह कैसे संभालेगी? न तो यह यहां की भाषा जानती है न ही इसे यहां का सिस्टम सम झ आएगा.’’

आबरू उन की हिंदी में हो रही बातचीत को न सम झ पाने के कारण कुछ असमंजस में थी सो बोली, ‘‘आप यहां बैठो मैं तब तक डाक्टर से मिल कर आती हूं.’’

उस के जाते ही आदविक ने अपने प्रश्नों भरी निगाहें निर्वेद की तरफ मोड़ीं.

निर्वेद अपनी सफाई देते हुए बोला, ‘‘तु झे पता है मैं कुछ साल पहले इजिप्ट गया था और वहां 2 साल रहा था. आबरू वहीं मेरी ही कंपनी में काम करती थी. यह वहां के एक जानेमाने परिवार की है. इस का उसी दौरान तलाक हुआ था. इसीलिए इस का नौकरी से भी मन उचट गया था और काफी परेशान रहने लगी थी. फिर इस ने नौकरी छोड़ दी.

‘‘तो फिर अब क्या करती है?’’

‘‘इसे कला और कलाकृतियों की काफी अच्छी परख है और यही उस का शौक भी था. तु झे तो पता ही है कि मु झे भी कला से काफी लगाव है. तो बस इस के नौकरी छोड़ने के बाद भी हमारे शौक समान होने के कारण हमारी दोस्ती बरकरार रही. फिर मेरी सलाह पर इस ने भारतीय कलाकृतियां भी रखनी शुरू कर दीं.’’

‘‘पर तु झे तो आए 2 साल हो गए, फिर अब यह यहां कैसे?’’

‘‘यहां से भारतीय कलाकृतियां को ले जाने के लिए यहां आई हुई है. अभी उस का काम पूरा नहीं हुआ है इसलिए यहीं है. लेकिन जैसा तू सम झ रहा है वैसा कुछ भी नहीं है,’’ निर्वेद ने नजरें  झुका कर कहा.

निर्वेद और आबरू निर्वेद के घर लौट गए, 1-2 बार आदविक उस से मिलने निर्वेद के घर भी गया और उस के चेहरे की लौटती रौनक देख कर आबरू द्वारा की जा रही देखभाल से आश्वस्त हो कर लौट आया.

आज छोटी दीवाली का दिन था. आदविक के पास सुबहसुबह निर्वेद का फोन

आया, ‘‘क्या तू कल सुबह 9 बजे मेरे घर आ सकता है… मु झे अस्पताल जाना है.’’

‘‘क्या हुआ, सब ठीक तो है न?’’

‘‘हांहां सब ठीक है. चैकअप के लिए बुलाया है.’’

‘‘ठीक है.’’

जब आदविक अगले दिन उस के घर पहुंचा तो उसे निर्वेद और आबरू दोनों कुछ ज्यादा ही अच्छे से तैयार लगे. वह सम झ न पाया कि अस्पताल जाने के लिए भला इतना तैयार होने की क्या जरूरत है. फिर सोचा छोड़ो यार जैसी इन की मरजी. बाहर निकले तो निर्वेद बोला, ‘‘गाड़ी मैं चलाऊंगा.’’

‘‘अरे लेकिन मैं हूं न.’’

‘‘नहीं मैं ही चलाऊंगा. अब तो मैं ठीक हूं,’’ वह जिद करने लगा.

हार कर आदविक ने उसे गाड़ी की चाबी देते हुए कहा, ‘‘ओके, यह ले.’’

मगर थोड़ी देर में गाड़ी को अस्पताल की तरफ न मुड़ते देख आदविक बोला, ‘‘अरे यार अस्पताल का कट तो पीछे रह गया तेरा ध्यान कहां है?’’

निर्वेद मुसकराते हुए बोला, ‘‘ध्यान सीधा मंजिल पर है.’’

‘‘मंजिल कौन सी…’’ आदविक का वाक्य पूरा भी नहीं हो पाया था कि उस ने देखा गाड़ी मैरिज रजिस्टरार के औफिस के सामने जा रुकी.

‘‘निर्वेद यार यहां क्यों, कैसे…’’

‘‘अरे यार मैरिज के लिए और कहां जाते हैं,’’ निर्वेद ने गाड़ी से निकलते हुए ठहाका लगाया.

‘‘मैरिज किस की, कैसे?’’

गाड़ी से निकल कर निर्वेद और आबरू ने एकदूसरे की बांहों में बांहें डालते हुए हाथ पकड़ कर एकसाथ कहा, ‘‘ऐसे और हमारी,’’ और दोनों खिलखिला उठे.

आदविक ने आबरू की ओर देखा तो उस के शर्म से लाल चेहरे से नईनवेली दुलहन  झलक रही थी?

‘‘अच्छा तो यह बात है तो फिर यह भी बता दो कि इस बेचारे गरीब की दौड़ क्यों लगवाई सुबहसुबह?’’

‘‘तो क्या गवाह हम खुद ही बन जाते?’’ मुसकराते हुए निर्वेद ने अपने उसी अंदाज में कहा.

आदविक सोचने पर मजबूर हो गया कि जिस की जिंदगी जीने की किरण भी बु झ गई

थी, जिस की किश्ती किनारे पर डूब गई थी उसे पार भी लगाया तो उजाले के साथ, दीयों के साथ, ऊपर से उसे दीवाली की सतरंगी रोशनी से लबरेज भी कर दिया. यह सतरंगी रोशनी वाली प्यार की दुनिया तु झे बहुतबहुत मुबारक हो मेरे दोस्त. दीवाली के पटाखों की आवाजें चारों तरफ से आ रही थीं सभी प्रसन्न थे. निर्वेद भी दीवाली के उपहार के रूप में आबरू को पा कर प्रसन्न था.

Winter Special: सर्दी-जुकाम में इन 4 टिप्स से जल्द मिलेगा आराम

सर्दी-जुकाम ऐसा संक्रामक रोग है जो जरा सी लापरवाही ही लोगों को अपने गिरफ्त में ले लेता है. यह इंसानों में सबसे ज्यादा होने वाला रोग है. सर्दी या फिर जुकाम कोई ऐसी गंभीर बीमारी नहीं है जिसकी वजह से परेशान हुआ जाए. साल भर में वयस्कों को दो से तीन बार और बच्चों को छः से बारह बार जुकाम की समस्या होना आम है.

सामान्य जुकाम के लिए कोई खास उपचार नहीं होता लेकिन इसके लक्षणों का इलाज किया जाता है. इसके आम लक्षणों में खांसी, नाक बहना, नाक में अवरोध, गले की खराश, मांसपेशियों में दर्द, सर में दर्द, थकान और भूख का कम लगना शामिल हैं. ये लक्षण 7 – 8 दिनों तक शरीर में दिखाई पड़ते हैं. ऐसे कई घरेलू उपचार हैं जो सर्दी-जुकाम से राहत दिलाने में आपकी मदद कर सकते हैं. तो चलिए आज  ऐसे ही कुछ घरेलू नुस्खों के बारे में आपको बताते हैं.

1. अदरक और तुलसी का काढ़ा

अदरक के यूं तो स्वास्थ्य संबंधी अनेक फायदे होते हैं लेकिन सर्दी-जुकाम को दूर करने में इसका अहम रोल होता है. अदरक जुकाम के लिए सर्वोत्तम औषधि है. थोड़े से अदरक को एक कप पानी के साथ उबालें और इसमें तुलसी की 10-12 पत्तियां डाल दें. इस मिश्रण को तब तक उबाले, जब तक पानी आधा न रह जाए. अब इस काढ़े का सेवन करें. यह सर्दी को जड़ से ठीक करने में काफी फायदेमंद है.

2. शहद

शहद खांसी के बेहतरीन इलाज में से एक है. इसमें एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-माइक्रोबियल गुणों से भरपूर होता है. गले की खराश और दर्द से राहत पाने के लिए नींबू की चाय मे शहद मिलाकर पीना चाहिए इसके अलावा दो चम्मच शहद में एक चम्मच नींबू का रस एक ग्लास गर्म पानी या गर्म दूध में मिलाकर पीने से काफी लाभ होता है, लेकिन एक साल से कम के बच्चों को शहद नहीं देना चाहिए.

3. भाप लें

गर्म पानी के बर्तन के ऊपर सिर रखकर नाक से सांस लें. आप चाहे तो इसमें जरूरत के हिसाब से मिंट मिला सकती हैं. अब सिर को किसी हल्के तौलिए से ढककर कटोरे से तकरीबन 30 सेंटीमीटर की दूरी से भाप लें. इससे बंद नाक से राहत मिलती है.

4. ज्यादा से ज्यादा पेय पदार्थो का सेवन

सर्दी और जुकाम की बीमारी में ज्यादा से ज्यादा तरल पदार्थों का सेवन श्वांसनली को नम रखता है और आपको डिहाइड्रेट होने से भी बचाता है. ऐसे में गर्म पानी, हर्बल चाय, ताजा फलों के जूस और अदरक की चाय का सेवन सर्दी और खांसी दोनों से ही राहत दिलाते हैं.

स्नेह से दूर करें बच्चों का अकेलापन

हम आज ऐसी दुनिया में रहते हैं, जहां लोग सिर्फ भाग रहे हैं और यह भागमभाग सिर्फ भौतिकवादी सुखों को पाने की है. हम सभी इस दौड़ का हिस्सा इसलिए बनते हैं कि हम अपने बच्चों को बेहतर सुखसुविधा और बेहतर भविष्य दे सकें, उन का जीवन आसान व आरामदायक बना सकें, आर्थिक स्थिरता ला कर उन के सपने पूरे कर सकें. लेकिन इस भागदौड़ में हम नहीं समझ पाते हैं कि इतना सब पाने में हम कुछ अत्यंत महत्त्वपूर्ण यानी अपने बच्चों से दूर हो रहे हैं.

अपने दैनिक कार्यों और बच्चों के लिए समय के निकालने के बीच में संतुलन बनाना कईर् कामकाजी अभिभावकों के लिए चुनौती होता है. व्यस्त समय में अभिभावक बच्चों को पूरा समय नहीं दे पाते. नतीजे में अभिभावकों के प्रति बच्चों में आत्मीय लगाव खत्म होने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है. अकेलापन दूर करने के लिए बच्चे मोबाइल, कंप्यूटर या लैपटौप आदि संसाधनों में समय बिता रहे हैं. इस से बच्चों में चिड़चिड़ाहट तथा हीनभावना बढ़ रही है. अधिकांश परिवारों में मातापिता दोनों काम पर जाते हैं, ऐसे में उन्हें कोशिश करनी चाहिए कि वे अपने बच्चों के लिए रोजाना थोड़ा समय जरूर निकालें.

दरअसल, बच्चों के मन में कई तरह के सवाल होते हैं और हर सवाल का हल उन के पास नहीं होता है. इसलिए उन्हें हमारी जरूरत होती है. जिस तरह से आप अपनी औफिस मीटिंग के लिए समय निकालते हैं उसी तरह बच्चों के लिए भी समय निकालें. उन्हें एहसास होने दें कि आप के लिए वे महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि आप के बच्चों को आप के तोहफों से ज्यादा आप की मौजूदगी की जरूरत है.

आइए जानते हैं शैमरौक प्रीस्कूल्स की एग्जीक्यूटिव डायरैक्टर और शेमफोर्ड फ्यूचरिस्टिक स्कूल्स की फाउंडर डायरैक्टर मीनल अरोड़ा के कुछ ऐसे टिप्स जिन से आप अपने बच्चों के साथ बेहद प्रभावी व गुणवत्तापूर्ण तरीके से समय बिता सकें.

छोटे कदम, बड़े परिणाम

हमारे छोटेछोटे कदम बच्चों के मस्तिष्क पर बहुत प्रभाव डालते हैं. बच्चों को गुडमौर्निंग, गुडआफ्टरनून, गुडनाइट विश करना, स्कूल जाते समय गुड डे कहना, उन्हें गले लगा लेना, उन्हें गोद में उठा लेना, उन्हें देख कर प्यार से मुसकराना, अपने बच्चे के गाल पर किस करना आदि बच्चों के साथ की गई अभिभावकों की छोटीछोटी ये क्रियाएं दर्शाती हैं कि ‘मुझे तुम्हारा खयाल है.’ ये छोटीछोटी बातें बच्चों के लिए उस की दुनिया होती हैं और बच्चों को हमेशा अभिभावकों का साथ चाहिए होता है, सुकून चाहिए होता है. चाहे आप उन से कितना ही नाराज क्यों न हों, उन्हें हर दिन बताएं कि आप उन से कितना प्यार करते हैं. सब के पसंदीदा बौलीवुड अभिनेता शाहरुख खान की एक पिता के रूप में बेहतरीन छवि है. वे भले ही कितने ही व्यस्त क्यों न हों, दिन में 2-3 बार अपने बच्चों से जरूर बातें करते हैं.

भोजन का वक्त खुशियों का वक्त

पेरैंट्स को चाहिए कि वे दिन में कम से कम एक समय का भोजन बच्चे के साथ बैठ कर करें और बेहतर होगा डिनर करें क्योंकि यही वह समय होता है जब सभी सदस्य काम से लौट कर दिनभर की थकान के बाद एकसाथ बैठते हैं. पूरे परिवार के  साथ बैठ कर बातें करने को अपनी दिनचर्या का जरूरी हिस्सा बनाएं और उन से दिनभर के काम व उपलब्धियों के बारे में बात करें. इस दौरान यदि आप का बच्चा कहता है कि उसे आप से कुछ कहना है, तो इस बात को गंभीरता से लें, और सब काम छोड़ कर उस की बात को ध्यान से सुनें. बच्चे को उस की सफलताओं और उपलब्धियों के लिए बधाईर् दें. बच्चों की सफलता  के लिए उन की तारीफ करें क्योंकि इस से उन्हें आगे बढ़ने में मदद मिलेगी. डिनर करते समय अपने बच्चों को परिवार व उन से संबंधित चर्चाओं में शामिल करें. उन की बेहतरी से संबंधित मामलों में उन की भी राय लें. इस से न सिर्फ उन्हें पारिवारिक मुद्दे समझने में मदद मिलेगी बल्कि उन में अपना खुद का नजरिया विकसित करने का आत्मविश्वास भी आएगा.

समय को लमहों से मापें

बच्चों के साथ समय बिताने के लिए तरीके ढूंढ़ें. उन्हें घर के छोटेछोटे काम करने के लिए प्रोत्साहित करें. इस से न सिर्फ आप को उन के साथ ज्यादा समय बिताने में मदद मिलेगी बल्कि  इस से उन में जिम्मेदारी का एहसास भी आएगा. इस के साथ ही यह बच्चे व आप के बीच खुशनुमा और दुखभरी बातें साझा करने के लिए भी सही समय होगा.

जब आप घर पहुंचते हैं और घर के काम व डिनर आदि निबटाने की जल्दी में होते हैं तो अपने बच्चे को अपने कामों में जोड़ें और उन की मदद लें. साथ ही, उन की मदद के लिए उन्हें धन्यवाद भी दें. इन कामों के साथसाथ अपने बच्चे से बातचीत करते रहें और उसे कुछ सिखाने की कोशिश भी. कपड़े धोने जैसे कामों के बीच आप उस से उस की दिनभर की गतिविधियों और उस के मन की बातें जान सकते हैं. हफ्तेभर आप ठीक से बच्चों के लिए यदि समय न निकाल सकें तो वीकेंड पर आप उन्हें कुछ खास महसूस करा सकते हैं और उस के साथ जुड़ सकते हैं. बच्चों को बाहर घूमने जाना पसंद होता है, जैसे किसी मौल में या ऐतिहासिक जगह पर या परिवार के साथ पिकनिक पर जाना आप को उस  के साथ ढेरों बातें करने का मौका दे सकता है.

कहानी सुनाएं, समां बाधें

बच्चों के साथ किताबें पढे़ं. बच्चों को नई कहानियां हमेशा रोमांचक लगती हैं. उन को नई किताबों से परिचित कराएं, उन के साथ बैठ कर खुद भी कुछ नईर् अच्छी कहानियों से जानपहचान करें. इस से आप और आप के बच्चे जानकारी भी हासिल कर पाएंगे और साथ में अच्छा समय भी व्यतीत कर पाएंगें. इन खुशनुमा लमहों को उन के सपनों तक ले जाएं. उन के सपनों की दुनिया में उन के साथ कदम रखें. उन्हें काल्पनिक कहानियां सुनाएं, उन की कल्पना को बढ़ावा दें. उन के भीतर छिपे हुए प्रतिभाशाली लेखक को बाहर लाएं और कहानियों के अंत पर उन की राय लेने की कोशिश करें. उन्हें इन भूमिकाओं को निभाने के लिए प्रोत्साहित करें और अच्छी तरह अपना किरदार चुनने में उन की मदद करें.

सन डे, फन डे, हौलिडे

अपने परिवार के साथ आउटिंग पर जरूर जाएं, फिर चाहे यह बड़ी हो या छोटी. और हां, अपने गैजेट्स साथ ले कर नहीं जाएं. आउटिंग पर उन के साथ बातचीत करें, मस्तीभरे खेल खेलें और जीवन को खुल कर जिएं. अपने बचपन के दिनों को याद करें, बचपन की यादें ताजा करें और अपने बचपन में खेले जाने वाले खेलों को बच्चों के साथ फिर खेलें. सप्ताह के दौरान जीवन में आने वाली एकरूपता को तोड़ने का सब से अच्छा तरीका है, फिर से बच्चा बन जाना.

जश्न और उल्लास

त्योहार और विशेष अवसर तब और खास बन जाते हैं जब वे परिवार के साथ मिल कर मनाएं जाते हैं. यह ऐसा समय होता है जब पूरा परिवार साथ रहता है और साथ में मस्ती करता है. इस अवसर का लाभ उठाएं. आप अपने बच्चे के सब से अच्छे दोस्त व शुभचिंतक बनें. बच्चों के साथ हम जो समय बितातेहैं वह सब से कीमती होता है. इन लमहों को नजरअंदाज नहीं करें क्योंकि ये वे मजेदार पल होते हैं, जो आप के व बच्चों के चेहरों पर मुसकान लाते हैं और पेरैंट्स व बच्चों को खुशहाल व संतुष्ट बनाते हैं. कभी अपने बच्चों को अमीर बनने के लिए शिक्षित नहीं करें बल्कि उन्हें खुश रहने के लिए शिक्षित करें, जिस से उन्हें चीजों की अहमियत पता हो, उन की कीमत नहीं.

Winter Special: सर्दियों में ऐसे करें स्किन की देखभाल

त्वचा की नियमित देखभाल करना मेकअप से ज्यादा जरूरी है. सर्दियों में त्वचा की देखभाल और जरूरी हो जाती है. अपनी कुछ आदतों को बदलकर आप इस मौसम में होने वाली त्वचा संबंधी परेशानियों से आसानी से निपट सकती हैं.

– चेहरे की सफाई पर नियमित ध्यान देना जरूरी है.

– सुबह-शाम फेसवाश से चेहरा धोएं और बाहर से लौटकर चेहरे की सफाई का खास ध्यान रखें क्योंकि बाहर का प्रदूषण चेहरे को नुकसान पहुंचा सकता है.

– चेहरा धोने के बाद चेहरे पर मॉइश्चराइजर लगाना न भूलें. मुलायम हाथों से चेहरे पर मसाज करें और अतिरिक्त मॉइश्चराइजर को कॉटन या टिश्यू पेपर से पोछ लें.

– क्लेंजिंग, टोनिंग व मॉइश्चराइजिंग का सिद्धांत कभी न भूलें. बाहर से घर लौटने पर चेहरा अवश्य साफ करें और सुबह-शाम त्वचा की अच्छे से सफाई करें.

– क्लेंजिंग के लिए कच्चे दूध का इस्तेमाल करें. कच्चे दूध में कॉटन डुबोकर चेहरे को साफ करने से भी त्वचा की बेहतर सफाई की जा सकती है.

– सप्ताह में कम से कम एक बार स्क्रब का इस्तेमाल करें.

– घर पर भी स्क्रब बनाया जा सकता है. इसके लिए चीनी में थोड़ा-सा शहद और बादाम का तेल डालकर स्क्रब बना लें. इसे चेहरे पर लगाएं और हल्के-नर्म हाथों से नीचे से ऊपर की ओर मसाज करें. इसके अलावा नमक और चीनी को जैतून के तेल साथ मिलाकर भी स्क्रब की तरह प्रयोग किया जा सकता है. इससे मृत त्वचा आसानी से हट जती है.

– दिन भर में सात-आठ गिलास पानी अवश्य पिएं. जाड़ों में अक्सर लोग पानी पीना कम कर देते हैं. पानी से त्वचा को कुदरती चमक मिलती है.

– खूबसूरत और दमकती त्वचा के लिए खानपान पर भी ध्यान देना जरूरी है. फलों और हरी सब्जियों को अपनी डाइट में शामिल करें. जूस व दूध का प्रयोग भी भरपूर मात्रा में करें. इससे त्वचा और चेहरे में प्राकृतिक निखार बढ़ेगा.

– व्यायाम व योग को दिनचर्या का हिस्सा बनाएं. इससे रक्त संचार तेज होता है और चेहरे की चमक बढ़ती है.

– खानपान में पर्याप्त फल और सब्जियों को शामिल करें. त्वचा व शरीर को भरपूर पोषण देने के लिए ओमेगा 3 फैटी एसिड युक्त आहार लें. मछली और बादाम विटामिन ई और ओमेगा-3 का अच्छा स्रोत हैं.

– घर से बाहर निकलते वक्त एसपीएफ युक्त सनस्क्रीन का प्रयोग करें.

जिजीविषा: अनु पर लगे चरित्रहीनता के आरोपों ने कैसे सीमा को हिला दिया- भाग 2

अंकल की तेरहवीं के दिन सभी मेहमानों के जाने के बाद आंटी अचानक गुस्से में उबल पड़ीं. मुझे पहले तो कुछ समझ ही न आया और जो समझ में आया वह मेरे होश उड़ाने के लिए काफी था. अनु प्रैग्नैंट है, यह जानकारी मेरे लिए किसी सदमे से कम न थी. अगर इस बात पर मैं इतनी चौंक पड़ी थी, तो अपनी बेटी को अपना सब से बड़ा गर्व मानने वाले अंकल पर यह जान कर क्या बीती होगी, मैं महसूस कर सकती थी. आंटी भी अंकल की बेवक्त हुई इस मौत के लिए उसे ही दोषी मान रही थीं.

मैं ने अनु से उस शख्स के बारे में जानने की बहुत कोशिश की, पर उस का मुंह न खुलवा सकी. मुझे उस पर बहुत क्रोध आ रहा था. गुस्से में मैं ने उसे बहुत बुराभला भी कहा. लेकिन सिर झुकाए वह मेरे सभी आरोपों को स्वीकारती रही. तब हार कर मैं ने उसे उस के हाल पर छोड़ दिया.

इधर मेरी ससुराल वाले चाहते थे कि हमारी शादी नाना के घर लखनऊ से ही संपन्न हो. शादी के बाद मैं विदा हो कर सीधी अपनी ससुराल चली गई. वहां से जब पहली बार घर आई तो अनु को देखने, उस से मिलने की बहुत उत्सुकता हुई. पर मां ने मुझे डपट दिया कि खबरदार जो उस चरित्रहीन से मिलने की कोशिश भी की. अच्छा हुआ जो सही वक्त पर तेरी शादी कर दी वरना उस की संगत में तू भी न जाने क्या गुल खिलाती. मुझे मां पर बहुत गुस्सा आया, पर साथ ही उन की बातों में सचाई भी नजर आई. मैं भी अनु से नाराज तो थी. अत: मैं ने भी उस से मिलने की कोशिश नहीं की.

2 साल बीत चुके थे. मेरी गोद में अब स्नेहा आ चुकी थी. मेरे भैया की शादी भी बनारस से तय हो चुकी थी. शादी के काफी पहले ही मैं मायके आ गई. यहां आ कर मां से पता चला कि अनु ने भैया की शादी तय होने पर बहुत बवाल मचाया था. मगर क्यों? भैया से उस का क्या वास्ता?

मेरे सवाल करने पर मां भड़क उठीं कि अरे वह बंगालन है न, मेरे भैया पर काला जादू कर के उस से शादी करना चाहती थी. किसी और के पाप को तुम्हारे भैया के मत्थे मढ़ने की कोशिश कर रही थी. पर मैं ने भी वह खरीखोटी सुनाई है कि दोबारा पलट कर इधर देखने की हिम्मत भी नहीं करेंगी मांबेटी. पर अगर वह सही हुई तो क्या… मैं कहना चाहती थी, पर मेरी आवाज गले में ही घुट कर रह गई. लेकिन अब मैं अनु से किसी भी हालत में एक बार मिलना चाहती थी.

दोपहर का खाना खा कर स्नेहा को मैं ने मां के पास सुलाया और उस के डायपर लेने के लिए मैडिकल स्टोर जाने के बहाने मैं अनु के घर की तरफ चल दी. मुझे सामने देख अनु को अपनी आंखों पर जैसे भरोसा ही नहीं हुआ. कुछ देर अपलक मुझे निहारने के बाद वह कस कर मेरे गले लग गई. उस की चुप्पी अचानक ही सिसकियों में तबदील हो गई. मेरे समझने को अब कुछ भी बाकी न था. उस ने रोतेरोते अपने नैतिक पतन की पूरी कहानी शुरू से अंत तक मुझे सुनाई, जिस में साफतौर पर सिर्फ और सिर्फ मेरे भैया का ही दोष नजर आ रहा था.

कैसे भैया ने उस भोलीभाली लड़की को मीठीमीठी बातें कर के पहले अपने मोहपाश में बांधा और फिर कालेज के वार्षिकोत्सव वाले दिन रात को हम सभी के सोने के बाद शकुंतला के रूप में ही उस से प्रेम संबंध स्थापित किया. यही नहीं उस प्रेम का अंकुर जब अनु की कोख में आया तो भैया ने मेरी शादी अच्छी तरह हो जाने का वास्ता दे कर उसे मौन धारण करने को कहा.

वह पगली इस डर से कि उन के प्रेम संबंध के कारण कहीं मेरी शादी में कोई विघ्न न आ जाए. चुप्पी साध बैठी. इसीलिए मेरे इतना पूछने पर भी उस ने मुंह न खोला और इस का खमियाजा अकेले ही भुगतती रही. लोगों के व्यंग्य और अपमान सहती रही. और तो और इस कारण उसे अपने जीवन की बहुमूल्य धरोहर अपने पिता को भी खोना पड़ा.

आज अनु के भीतर का दर्द जान कर चिल्लाचिल्ला कर रोने को जी चाह रहा था. शायद वह इस से भी अधिक तकलीफ में होगी. यह सोच कर कि सहेली होने के नाते न सही पर इंसानियत की खातिर मुझे उस का साथ देना ही चाहिए, उसे इंसाफ दिलाने की खातिर मैं उस का हाथ थाम कर उठ खड़ी हुई. पर वह उसी तरह ठंडी बर्फ की मानिंद बैठी रही.

आखिर क्यों? मेरी आंखों में मौन प्रश्न पढ़ कर उस ने मुझे खींच कर अपने पास बैठा लिया. फिर बोली, ‘‘सीमा, इंसान शादी क्यों करना चाहता है, प्यार पाने के लिए ही न? लेकिन अगर तुम्हारे भैया को मुझ से वास्तविक प्यार होता, तो यह नौबत ही न आती. अब अगर तुम मेरी शादी उन से करवा कर मुझे इंसाफ दिला भी दोगी, तो भी मैं उन का सच्चा प्यार तो नहीं पा सकती हूं और फिर जिस रिश्ते में प्यार नहीं उस के भविष्य में टिकने की कोई संभावना नहीं होती.’’

‘‘लेकिन यह हो तो गलत ही रहा है न? तुझे मेरे भैया ने धोखा दिया है और इस की सजा उन्हें मिलनी ही चाहिए.’’

‘‘लेकिन उन्हें सजा दिलाने के चक्कर में मुझे जिंदगी भर इस रिश्ते की कड़वाहट झेलनी पड़ेगी, जो अब मुझे मंजूर नहीं है. प्लीज तू मेरे बारे में उन से कोई बात न करना. मैं बेचारगी का यह दंश अब और नहीं सहना चाहती.’’

उस की आवाज हलकी तलख थी. मुझ से अब कुछ भी कहते न बना. मन पर भाई की गलती का भारी बोझ लिए मैं वहां से चली आई.

घर पहुंची तो भैया आ चुके थे. मेरी आंखों में अपने लिए नाराजगी के भाव शायद उन्हें समझ आ गए थे, क्योंकि उन के मन में छिपा चोर अपनी सफाई मुझे देने को आतुर दिखा. रात के खाने के बाद टहलने के बहाने उन्होंने मुझे छत पर बुलाया.

‘‘क्यों भैया क्यों, तुम ने मेरी सहेली की जिंदगी बरबाद कर दी… वह बेचारी मेरी शादी के बाद अभी तक इस आशा में जीती रही कि तुम उस के अलावा किसी और से शादी नहीं करोगे… तुम्हारे कहने पर उस ने अबौर्शन भी करवा लिया. फिर भी तुम ने यह क्या कर दिया… एक मासूम को ऐसे क्यों छला?’’ मेरे शब्दों में आक्रोश था.

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