तेजाब- भाग 1: प्यार करना क्या चाहत है या सनक?

पेरिस की क्रिस्टोफर से मेरी मुलाकात बनारस के अस्सी घाट पर हुई. उम्र यही कोई 25 वर्ष के आसपास  की होगी. वह बनारस में एक शोधकार्य के सिलसिले में बीचबीच में आती रहती थी. मैं अकसर शाम को स्कैचिंग के लिए जाता था. खुले विचारों की क्रिस्टोफर ने एक दिन मु झे स्कैचिंग करते देख लिया. दरअसल, मैं उसी की स्कैचिंग कर रहा था. वह घाट पर बैठे गंगा की लहरों को निहार रही थी. उस के चेहरे की निश्च्छलता और सादगी में एक ऐसी कशिश थी जिस से मैं खुद को स्कैचिंग करने से रोक नहीं पाया. इस दरम्यान बारबार मेरी नजर उस पर जाती. उस ने देख लिया. उठ कर मेरे पास आई. स्कैचिंग करते देख कर मुसकराई. उस समय तो वह कुछ ज्यादा ही खुश हो गई जब उसे पता चला कि यह उसी की तसवीर है. ‘‘वाओ, यू आर ए गुड आर्टिस्ट,’’ तसवीर देख कर वह बहुत प्रसन्न थी.

‘‘आप को पसंद आई?’’

‘‘हां, बहुत सुंदर है.’’

यह जान कर मु झे खुशी हुई कि उसे थोड़ीबहुत हिंदी भी आती थी. भेंटस्वरूप मैं ने उसे वह स्कैच दे दिया. यहीं से हमारे बीच मिलनेजुलने का सिलसिला चला, जो बाद में प्रगाढ़ प्रेम में तबदील हो गया. वह एक लौज में रहती थी. घरवालों के विरोध के बावजूद मैं ने उसे अपने घर में रहने के लिए जगह दी. जिस के लिए वह सहर्ष तैयार हो गई. अब उस से क्या किराया लिया जाए. जिस से प्रेम हो उस से किराया लेना क्या उचित होगा. मैं तो उस पर इस कदर आसक्त था कि उस से शादी तक का मन बना लिया था.

क्रिस्टोफर को इस शहर की सांस्कृतिक विरासत की बहुत ज्यादा जानकारी नहीं थी, जो उस के शोधकार्य का हिस्सा थी. मैं ने उस की मदद की. अपनी क्लास छोड़ कर उस के साथ मैं मंदिरों, घाटों, गलियों तथा ऐतिहासिक स्थलों पर जाता. कई नामचीन संगीत कलाकारों से मिलवाया मैं ने उसे.

रात 8 बजे से पहले हम घर नहीं आते. उस के बाद मैं उस के कमरे में रात 11 बजे तक इधरउधर की बातें करता. उसे छोड़ने का नाम ही नहीं लेता. जी करता क्रिस्टोफर को हर वक्त निहारता रहूं. बेमन से अपने कमरे में आता. फिर अपने प्रेम के मीठे एहसास के साथ सो जाता.

एक रात मु झे नींद नहीं आ रही थी. क्रिस्टोफर को ले कर मन बेचैन था. घड़ी देखी रात के 1 बज रहे थे. मैं आहिस्ता से उठा. दबेपांव ऊपर क्रिस्टोफर के कमरे में आया. खिड़की से  झांका. वह कुछ लिख रही थी. इतनी रात तक वह जाग रही थी. यह देख कर मु झे आश्चर्य हुआ. मेरे आने की उसे आहट नहीं हुई. मैं ने धीरे से कहा, ‘‘क्रिस्टोफर.’’ उस ने नजर मेरी तरफ उठाई. उस समय वह गाउन पहने हुई थी. उस का गुलाबी बदन पूर्णिमा की चांद की तरह खिला हुआ था. जैसे ही उस ने दरवाजे की चिटकनी हटाई, मैं तेजी से चल कर कमरे में घुसा. दरवाजा अंदर से बंद कर उसे अपनी बांहों में भर लिया. वह थोड़ी सी असहज हुई, फिर सामान्य हो गई. उस रात हमारे बीच कुछ भी वर्जित नहीं रहा. खुले विचारों की क्रिस्टोफर के लिए संबंध कोई माने नहीं रखते. ऐसा मेरा अनुमान था. मगर मेरे लिए थे. जाहिर है वह मेरे लिए पत्नी का दर्जा रखने लगी थी. सिर्फ सात फेरों की जरूरत थी या फिर अदालती मुहर. मैं उस पर इस कदर फिदा था कि उस के बगैर जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता था.

एक दिन क्रिस्टोफर ने मु झ से नैनीताल चलने के लिए कहा. भला मु झे क्या एतराज हो सकता था. घरवाले मेरे तौरतरीकों को ले कर आपत्ति जता रहे थे, मगर मैं उन्हें यह सम झाने में सफल हो गया कि पेरिस के कलाकारों की बड़ी कद्र है. उस की मदद से मैं एक ख्यातिप्राप्त चित्रकार के रूप में स्थापित हो सकता हूं. उन्होंने हमारे रिश्ते को बेमन से मंजूरी दे दी.

2 दिन नैनीताल में रहने के बाद हम दोनों कौसानी घूमने आए. गांधी आश्रम के चबूतरे पर बैठे. हम दोनों पहाड़ों की खूबसूरत वादियों को निहार रहे थे. क्रिस्टोफर को अपनी बांहों में भर कर मैं रोमांचित था. उन्मुक्त वातावरण पा कर मानो मेरे प्रेम को पर लग गए. कब शाम ढल गई, पता ही नहीं चला. वापस होटल पर आया. कौफी की चुस्कियों के बीच क्रिस्टोफर का मोबाइल बजा. वह बाहर मोबाइल ले जा कर बातें करने लगी. तब तक कौफी ठंडी हो चुकी थी. मैं ने वेटर से दूसरी कौफी लाने को कहा. ‘‘किस का फोन था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘मौम का.’’

‘‘क्रिस्टोफर, मैं ने आज तक तुम्हारे परिवार के बारे में कुछ नहीं पूछा. क्या तुम बताओगी कि तुम्हारे मांबाप क्या करते हैं?’’

‘‘फादर मोटर मैकेनिक हैं. मौम एक अस्पताल में नर्स हैं. 5 साल की थी जब मेरे फादर से मेरी मां का तलाक हो गया. ये मेरे सौतले फादर हैं. मैं अपने फादर को बहुत चाहती थी,’’ कह कर वह उदास हो गई.

‘‘तलाक की वजह?’’

‘‘हमारे यहां जब तक प्यार की कशिश रहती है तभी तक रिश्ते निभाए जाते हैं. तुम लोगों की तरह नहीं कि हर हाल में साथ रहना ही है. मेरे फादर मेरी मौम से बोर हो गए, उन का लगाव दूसरी औरत की तरफ हो गया. वहीं मौम, फादर के ही एक दोस्त से शादी कर के अलग हो गईं.’’

‘‘इसे तुम किस रूप में देखती हो? क्या तुम ने चाहा कि तुम्हारे मांबाप तुम से अलग हों?’’

कुछ सोच कर क्रिस्टोफर बोली, ‘‘शायद नहीं.’’

‘‘शायद क्यों?’’ मैं ने पूछा.

‘‘शायद इसलिए कि एक बेटी के रूप में मैं कभी नहीं चाहूंगी कि मु झे मेरे फादर के प्यार से वंचित रहना पड़े. मगर…’’ कह कर वह चुप हो गई.

‘‘बोलो, तुम चुप क्यों हो गईं,’’ मैं अधीर हो गया.

ये 4 आदतें बढ़ाती हैं आपका मोटापा

अपने चारों ओर मोटापा या मोटे लोगों को देखना एक सामान्य बात है, पर मोटापा कोई आम बात नहीं है बल्कि यह एक बीमारी का नाम है जिसे नियंत्रण में करना और रखना बहुत ही मुश्किल है. मोटापे के लिए कौन जिम्मेदार है. आप स्वयं ही इस बामारी के लिए उत्तरदीयी होते हैं.

यूं तो मोटापे के कई कारण होता हैं. जंक फ़ूड, अनियमित भोजन, तनाव, पूरी नींद न ले पाना आदि वजन को बढ़ाने के कारण होते हैं. मोटापे के कारण शरीर को कई अन्य बीमारियाँ घेर लेती हैं. आप जानते हैं कि मोटापा कई बीमारियों की जड़ होता है, आज हम आपको बताएंगे मोटापे के बढने के कारण .

कई लोग मोटे होने के बाद सोचते हैं कि कल से अपनी डाइटिंग और एक्सरसाइज शुरुआत कर देंगे, लेकिन सभी में कुछ गंदी आदते होती हैं जो कि आपको पतला नहीं होने देती. यदि आप अपने खाने-पीने पर कंट्रोल नहीं करते तो आप भले ही कितनी भी कोशिश कर लें, मोटापा कम नहीं कर सकेगें.

अगर आप मोटापा कम करना चाहते हैं, तो आपको अपनी कुछ आदतों को सुधारना चाहिए. यहां हैं कुछ गंदी आदते जिन्हें सुधार कर आप मोटापे से बच सकते हैं..

1. अधिक मीठा खाना

अगर नाश्ते की बात करें तो पैक्ड दही, चाय या कॉफी हर चीज में आपको शुगर या मीठे की मात्रा मिल ही जाती है. जो आपके शरीर में इकट्ठा होकर चर्बी का रूप धारण कर लेती है, इसलिए जब भी आप बाजार जाएं तो कुछ भी खरीदने से पहले उसमें उसका शुगर लेवल चेक कर लें.

2. रोज मिठाई का सेवन

आज के समय में कुछ लोगों को मीठा खाने की इतनी आदत पड़ चुकी है कि वे खाने के बाद मीठा जरूर खाते हैं. किसी-किसी डेजर्ट में काफी अधिक मात्रा में शुगर होती है जिसे रात में खाने से मोटापा तेजी से बढ़ता है .

3. हर समय खाते रहना

कुछ लोग फ्री टाइम में या अपने ऑफिस में बैठकर कुछ न कुछ खाते ही रहते हैं. ऐसी आदतों के चलते आप कभी पतले नहीं हो सकेंगे.यदि आप पैकिट में बंद स्नेक्स वगैरह लेते हैं तो उनमें काफी मात्रा में सोडियम, कार्बोहाइड्रेट और शुगर होता है, जो मोटापा बढ़ाने में मददगार होता है. अगर आप स्नैक्स ही खाना चाहते हैं तो घर पर बने हुए फाइबर युक्त आहार का सेवन करें.

दिनभर मुंह में कुछ लेकर चबाते रहना भी एक बहुत ही गंदी आदत होती है. ये आपको मोटापे को और अधिक बढ़ाती है.

4. रोजाना शराब की आदत

जो लोग डिनर के साथ में शराब भी लेते हैं उनके पेट में सीधे तौर पर शक्कर जाती है, जो उन्हें चाहकर भी पतला नहीं होने देती. यदि आप अपनी आदत को थोड़ा काबू में कर लेंगे तो कुछ ही दिनों में आप अपना वजन कम कर सकते हैं.

व्यायाम न करना

अपने शरीर से लगातार काम लेते रहिए. अगर आप अपने शरीर से लगातार काम नहीं लेतो हैं और खाना खाने के बाद लेटे ही रहते हैं, तो आप कभी भी पतले नहीं हो पाएंगे. मोटापे को घटाने के लिए शरीर का वर्कआउट करना जरुरी है. शरीर से रोज खूब सरा पसीना बहाने पर आपका फेट अपने आप कम हो जाता है.

निर्मल आनंद: क्यों परेशान थी नीलम

‘‘मां, मुझे क्यों मजबूर कर रही हो? मैं यह विवाह नहीं करूंगी,’’ नीलम ने करुण आवाज में रोतेरोते कहा. ‘‘नहीं, बेटी, यह मजबूरी नहीं है. हम तो तेरी भलाई के लिए ही सबकुछ कर रहे हैं. ऐसे रिश्ते बारबार नहीं आते. आनंद कितना सुंदर, सुशील और होनहार लड़का है. अच्छी नौकरी, अच्छा खानदान और अच्छा घरबार. ऐसे अवसर को ठुकराना क्या कोई अक्लमंदी है,’’ नीलम की मां ने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा.

‘‘नहीं, मां, नहीं. यह कभी नहीं हो सकता. मां, तुम तो जानती ही हो कि मैं गठिया रोग से पीडि़त हूं. हर तरह का इलाज कराने पर भी मैं ठीक नहीं हो पाई हूं. उन्होंने तो बस मेरा चेहरा और कपड़ों से ढके शरीर को देख कर ही मुझे पसंद किया है. क्या यह उन के साथ विश्वासघात नहीं होगा?’’ नीलम ने रोंआसा मुंह बनाते हुए कहा.

मां पर नीलम की बातों का कोई असर नहीं हुआ. वह तनिक भी विचलित नहीं हुईं. वह तो किसी भी तरह नीलम के हाथ पीले कर देना चाहती थीं.

जब नीलम सीधी तरह मानने को तैयार नहीं हुई तो उन्होंने डांट कर उसे समझाते हुए कहा, ‘‘बेटी, तुझे मालूम है कि तेरे पिता नहीं हैं. भाई भी अमेरिका में रंगरेलियां मना रहा है. उसे तो तेरी और मेरी कोई चिंता ही नहीं है. जो पैसा था वह मैं ने उस की पढ़ाई में लगा दिया. मेरे भाइयों ने तो सुध भी नहीं ली कि हम जिंदा हैं या मर गए. राखी का भी उत्तर नहीं देते कि कहीं मैं कुछ उन से मांग न लूं.

‘‘बेटी, जिद नहीं करते. थोड़े से छिपाव से सारा जीवन सुखी हो जाएगा. डाक्टरों का कहना है कि विवाह के बाद यह रोग भी दूर हो जाएगा. फिर आनंद के परिवार वाले कितने अच्छे हैं. उन्होंने दहेज के लिए साफ मना कर दिया है.’’

नीलम मां की बातें और अधिक देर तक नहीं सुन सकी. वह वहां से उठी और अपने कमरे में जा कर पलंग पर औंधी लेट गई. उस के मन में भयंकर तूफान उठ रहा था. अपने विचारों में उलझी हुई वह अपने अतीत में खो गई.

वह जब 7 साल की थी तो उस के सिर से पिता का साया उठ गया था. वह एक संपन्न परिवार की सब से छोटी संतान थी. उस के अलावा एक भाई और 2 बहनें थीं. नीलम मां की लाड़ली थी. पिता भी उसे बहुत प्यार करते थे और अकसर उसे अपने कंधे पर बिठा कर घुमाया करते थे. नीलम की बड़ी बहन इला दिल्ली रेडियो स्टेशन पर उद्घोषिका थी. वह भी नीलम से अत्यधिक स्नेह करती थी.

इला, नीलम को अपने साथ दिल्ली ले आई और उस की पढ़ाई का सारा जिम्मा अपने ऊपर ले लिया. इला ने नीलम को अपनी बच्ची की तरह प्यार किया. उस की हर इच्छा पूरी करने का भरसक प्रयास किया. जब इला ने अपने एक सहयोगी करुणशंकर से प्रेम विवाह किया तो उस ने नीलम को भी अपने साथ रखने की शर्त रखी थी.

करुणशंकर स्वभाव से विनम्र, शांत  स्वभाव के और पत्नीभक्त थे. घर में इला का रोब चलता था और वह उस के इशारे पर नाचते रहते थे. उन के एक छोटे भाई भी दिल्ली में ही सरकारी नौकरी में थे, परंतु उन्हें अपनी पत्नी की छोटी बहन नीलम की देखरेख की ही ज्यादा चिंता थी.

एम.ए. पास करने के बाद नीलम एक प्राइवेट कंपनी में प्रचार अधिकारी के पद पर नियुक्त हो गई. अपने कार्यक्षेत्र में उसे अनेक पुरुषों के साथ उठनाबैठना पड़ता था, परंतु कोई उस के चरित्र की ओर उंगली तक नहीं उठा सकता था. वह हंसमुख और चंचल अवश्य थी परंतु एक हद तक तहजीब और खातिरदारी उस के चरित्र के विशेष गुण थे. उस के अधिकारी उस के व्यवहार और सुंदरता दोनों से ही प्रभावित थे. कंपनी के प्रबंध निदेशक तो उसे अपनी कंपनी की गुडि़या कहा करते थे.

मां उस से विवाह के लिए अनेक बार अनुरोध कर चुकी थी, परंतु वह हर बार टाल देती थी. वह हर समय सोचती कि विवाह से भला वह कैसे किसी की जिंदगी में विष घोल सकती है. मां भी जानती थीं कि उसे गठिया की बीमारी है. नीलम इस बीमारी के कारण रात में सो नहीं पाती थी. एलोपैथी, आयुर्वेद और होमियोपैथी के इलाज का भी उस की इस बीमारी पर कोई असर नहीं पड़ा.

कई बार तो उस के पैर और हाथ इतने सूज जाते थे कि वह परेशान हो उठती थी. उस की देखभाल उस के जीजा ही करते थे, क्योंकि उस की बहन का तबादला दूसरी जगह हो गया था.

नीलम ने बिस्तर पर लेटेलेटे ही अपने मन को समझाने की कोशिश की. वह निश्चय कर चुकी थी कि वह यह विवाह कदापि नहीं करेगी पर मां थीं कि उस की बात मान ही नहीं रही थीं.

विवाह की तारीख नजदीक आ रही थी. नीलम को ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे वह बहुत बड़ा विश्वासघात करने जा रही है. वह अपनी मां, बहन और जीजाजी सभी से विनती कर चुकी थी, परंतु कोई भी उस की मदद करने को तैयार नहीं था.

आखिर नीलम से नहीं रहा गया. उस ने हिम्मत बटोरी और स्वयं ही इस समस्या का समाधान करने का निश्चय कर लिया.

विवाह की तारीख से 3 दिन पहले शाम को उस ने सब से बढि़या साड़ी पहनी. पूरा शृंगार किया और बिना किसी को बताए अपने होने वाले पति आनंद के घर की ओर चल दी.

संयोग से आनंद घर पर ही था. नीलम को इस प्रकार आते देख कर वह कुछ हैरान हुआ. उस ने अपनेआप को संभाला और मुसकराते हुए नीलम का स्वागत किया.

नीलम बहुत पसोपेश में थी. वह बात को कैसे चलाए. आखिर आनंद ने ही बात का सिलसिला छेड़ते हुए कहा, ‘‘नीलम, 3 दिन पहले ही विवाह की शुभकामनाएं अर्पित करता हूं.’’

आनंद के ये शब्द सुनते ही नीलम सिसकसिसक कर रोने लगी. उस ने आनंद के सामने अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘‘आनंद, मैं तुम से प्रार्थना करती हूं कि इस विवाह को तोड़ दो. मेरे ऊपर कोई दोष लगा दो. तुम्हें शायद मालूम नहीं है कि मैं गठिया रोग से पीडि़त हूं. मैं किसी भी तरह तुम्हारी पत्नी बनने के काबिल नहीं हूं. मैं तुम्हें धोखे में नहीं रखना चाहती.’’

आनंद हैरानी से उस की ओर देख रहा था. उस ने बड़े प्यार से उसे समझाते हुए कहा, ‘‘नीलू, तुम चिंता न करो. जैसा तुम चाहोगी वैसा ही होगा. मुझे कुछ समय की मुहलत दे दो. मैं आज ही तुम्हारे यहां आ कर अपना फैसला बता दूंगा.’’

गुमसुम सी नीलम आनंद को नमस्कार कर हलके मन से अपने घर की ओर चल दी.

आनंद ने नीलम के जाने के तुरंत बाद अपने एक परिचित डाक्टर प्रशांत से संपर्क स्थापित किया और सारी बात बताई. आनंद की बात सुन कर प्रशांत हंसने लगा. उस ने कहा, ‘‘आनंद यह बीमारी इतनी संगीन नहीं है. मैं ने तो देखा है कि विवाह के बाद यह अकसर समाप्त हो जाती है. नीलम बेकार इसे ज्यादा गंभीरता से ले कर भावनाओं में बह रही है. तुम नीलम को स्वीकार कर सकते हो. इस में कोई डर नहीं.’’

आनंद डाक्टर प्रशांत के यहां से आश्वस्त हो कर सीधा नीलम के यहां गया. नीलम दरवाजे पर खड़ी उस का ही इंतजार कर रही थी. आनंद को घर में घुसते देख कर नीलम की मां का कलेजा धकधक करने लगा. वह किसी खराब समाचार की कल्पना करने लगीं.

नीलम ने आनंद का रास्ता रोकते हुए उत्सुकता से पूछा, ‘‘बोलो, क्या निर्णय लिया?’’

आनंद ने अपने चेहरे पर बनावटी गंभीरता ला कर कहा, ‘‘मैं मांजी से बात करूंगा.’’

आनंद ने अपने सामने मां को खड़े देखा तो उस ने झुक कर चरणस्पर्श किए. फिर आनंद ने कहा, ‘‘मांजी, नीलम की बातों पर ध्यान न दें. आप विवाह की तैयारी शुरू कर दें.’’

नीलम थोड़ी दूर खड़ी विस्मित सी आनंद को देखे जा रही थी. उस की आंखों में बहते आंसू उसे निर्मल आनंद का आभास दे रहे थे.

आक्रोश: पिंकी का गुस्सा क्या दूर हुआ

‘‘मा या, मैं मिसेज माथुर के घर किटी पार्टी में जा रही हूं. तुम पिंकी का खयाल रखना. सुनो, 5 बजे उसे दूध जरूर दे देना और फिर कुछ देर बाग में ले जाना ताकि वह अपने दोस्तों के साथ खेल कर फ्रेश हो सके. मैं 7 बजे तक आ जाऊंगी, और हां, कोई जरूरी काम हो तो मेरे मोबाइल पर फोन कर देना,’’ रंजू ने आया को हिदायतें देते हुए कहा.

पास में खड़ी 8 साल की पिंकी ने आग्रह के स्वर में कहा, ‘‘मम्मा, मुझे भी अपने साथ ले चलो न.’’

‘‘नो बेबी, वहां बच्चों का काम नहीं. तुम बाग में अपने दोस्तों के साथ खेलो. ओके…’’ इतना कहती हुई रंजू गाड़ी की ओर चली तो दोनों विदेशी कुत्ते जिनी तथा टोनी दौड़ते हुए उस के इर्दगिर्द घूमने लगे.

रंजू ने बड़े प्यार से उन दोनों को उठा कर बांहों के घेरे में लिया और कार में बैठने से पहले पीछे मुड़ कर बेटी से ‘बाय’ कहा तो पिंकी की आंखें भर आईं.

दोनों कुत्तों को गोद में बैठा कर रंजू ने ड्राइवर से कहा, ‘‘मिसेज माथुर के घर चलो.’’

कार के आंखों से ओझल होने के बाद एकाएक पिंकी जोर से चीख पड़ी, ‘‘मम्मा गंदी है, मुझे घर छोड़ जाती है और जिनीटोनी को साथ ले जाती है.’’

मिसेज माथुर के घर पहुंच कर रंजू ने बड़ी अदा से दोनों कुत्तों को गोद में उठाया और भीतर प्रवेश किया.

‘‘हाय, रंजू, इतने प्यारे पप्पी कहां से ले आई?’’ एक ने अपनी बात कही ही थी कि दूसरी पूछ बैठी, ‘‘क्या नस्ल है, भई, मान गए, बहुत यूनिक च्वाइस है तुम्हारी.’’

रंजू आत्मप्रशंसा सुन कर गदगद हो उठी, ‘‘ये दोनों आस्ट्रेलिया से मंगाए हैं. हमारे साहब के एक दोस्त लाए हैं. 50 हजार एक की कीमत है.’’

‘‘इतने महंगे इन विदेशी नस्ल के कुत्तों को संभालने में भी दिक्कतें आती होंगी?’’ एक महिला ने पूछा तो रंजू चहकी, ‘‘हां, वो तो है ही. मेरा तो सारा दिन इन्हीं के खानेपीने, देखरेख में निकल जाता है. अपना यह जिनी तो बेहद चूजी है पर टोनी फिर भी सिंपल है. दूधरोटी, बिसकुट सब खा लेता है ज्यादा नखरे नहीं करता है…’’ इस कुत्ता पुराण से ऊब रही 2-3 महिलाएं बात को बीच में काटते हुए एक स्वर में बोलीं, ‘‘समय हो रहा है, चलो, अब तंबोला शुरू करें.’’

रंजू ने ड्राइवर को आवाज लगा कर जिनी और टोनी को उस के साथ यह कहते हुए भेज दिया कि इन दोनों को पिछली सीट पर बैठा दो और दरवाजे बंद रखना.

पहले तंबोला हुआ, फिर खेल और अंत में अश्लील लतीफों का दौर. ऐसा लग रहा था मानो सभी संभ्रांत महिलाओं में अपनी कुंठा निकालने की होड़ लगी हो. बीचबीच में टीवी धारावाहिकों की चर्चा भी चल रही थी.

‘‘तुम ने वह सीरियल देखा? कल की कड़ी कितनी पावरफुल थी. नायिका अपने सासससुर, ननद को साथ रखने से साफ इनकार कर देती है. पति को भी पत्नी की बात माननी पड़ती है.’’

‘‘भई, सच है. अब 20वीं शताब्दी तो है नहीं जब घर में 8-10 बच्चे होते थे और बहू बेचारी सिर ढक कर सब की सेवा में लगी रहती थी. अब 21वीं सदी है, आज की नारी अपने अधिकार, प्रतिभा और योग्यता को जानती है. अपना जीवन वह अपने ढंग से जीना चाहती है तो इस में गलत क्या है? अब तो जमाना मैं, मेरा पति और मेरे बच्चे का है,’’ जूही चहकी.

‘‘तुम ठीक कह रही हो. देखो न, पिछले महीने मेरे सासससुर महीना भर मेरे साथ रह कर गए हैं. घर का सारा बजट गड़बड़ा गया है. बच्चे अलग डिस्टर्ब होते रहे. कभी उन के पहनावे पर वे लोग टोकते थे तो कभी उन के अंगरेजी गानों के थिरकने पर,’’ निम्मी बोली.

रंजू की बारी आई तो वह बोली, ‘‘भई, मैं तो अपने ढंग से, अपनी पसंद से जीवन जी रही हूं. वैसे मैं लकी हूं, मेरे पति शादी से पहले ही मांबाप से अलग दूसरे शहर में व्यवसाय करते थे. शादी के बाद मुझ पर कोई बंधन नहीं लगा. यू नो, शुरू में समय काटने के लिए मैं ने खरगोश, तोते और पप्पी पाले थे. सभी के साथ बड़ा अच्छा समय पास हो जाता था पर पिंकी के आने के बाद सिर्फ पप्पी रखे हैं, बाकी अपने दोस्तों में बांट दिए.’’

‘‘रंजू, तुम्हारी पिंकी भी अब 8 साल की हो गई है, उस का साथी कब ला रही हो? भई 2 बच्चे तो होने ही चाहिए,’’ जूही ने कहा तो रंजू के तेवर तन गए, ‘‘नानसेंस, मैं उन में से नहीं हूं जो बच्चे पैदा कर के अपने शरीर का सत्यानाश कर लेती हैं. पिंकी के बाद अपने बिगड़े फिगर को ठीक करने में ही मुझे कितनी मेहनत करनी पड़ी थी. अब दोबारा वह बेवकूफी क्यों करूंगी.’’

अगले माह अंजू के घर किटी पार्टी में मिलने का वादा कर सब ने एकदूसरे से विदा ली.

घर पहुंच कर रंजू को पता चला कि पिंकी को पढ़ाने वाले अध्यापक नहीं आए हैं तो उस का पारा यह सोच कर एकदम से चढ़ गया कि अगर होमवर्क नहीं हो पाया तो कल पिंकी को बेवजह सजा मिलेगी.

उस ने अध्यापक के घर फोन लगाया तो उन्होंने बताया कि तबीयत खराब होने के कारण वह 2-3 दिन और नहीं आ सकेंगे.

सुनते ही रंजू तैश में बोली, ‘‘आप नहीं आएंगे तो पिंकी को होमवर्क कौन कराएगा? आप को कुछ इंतजाम करना चाहिए था.’’

‘‘2-3 दिन तो आप भी बेटी का होमवर्क करवा सकती हैं,’’ अध्यापक भी गुस्से में बोले, ‘‘तीसरी कक्षा कोई बड़ी क्लास तो नहीं.’’

‘‘अब आप मुझे सिखाएंगे कि मुझे क्या करना है? ऐसा कीजिए, आराम से घर बैठिए, अब यहां आने की जरूरत नहीं है. आप जैसे बहुत ट्यूटर मिलते हैं,’’ रंजू ने क्रोध में फोन काट दिया.

गुस्सा उतरने पर रंजू को चिंता होने लगी. पिंकी को पिछले 5 सालों में उस ने कभी नहीं पढ़ाया था. शुरू से ही उस के लिए ट्यूटर रखा गया. उसे तो किटी पार्टियों, जलसे, ब्यूटी पार्लर, टेलीविजन तथा अपने दोनों कुत्तों की देखभाल से ही फुरसत नहीं मिलती थी.

अब रंजू को पिंकी का होमवर्क कराने खुद बैठना पड़ा. एक विषय का आधाअधूरा होमवर्क करा कर ही रंजू ऊब गई. उस के मुंह से अनायास निकल पड़ा, ‘‘बाप रे, कितनी सिरदर्दी है बच्चों को पढ़ाना और उन का होमवर्क कराना. मेरे बस की बात नहीं.’’ वह उठी और कुत्तों को खाना खिलाने चल दी. उन्हें खिला कर वह बेटी की ओर मुड़ी, ‘‘चलो पिंकी, तुम भी खाना खा लो. मैं ने तो किटी पार्टी में कुछ ज्यादा खा लिया, अब रात का खाना नहीं खाऊंगी.’’

पिंकी ने कातर नजरों से मां की ओर देखा कि न तो मम्मी ने पूरा होमवर्क कराया न मेरी पसंद का खाना बनाया.

पिंकी का नन्हा मन आक्रोश से भर उठा, ‘‘मुझे नहीं खानी यह गंदी खिचड़ी.’’

रंजू बौखला गई, ‘‘नहीं खानी है तो मत खा. तुझ से तो अच्छे जिनीटोनी हैं, जो भी बना कर दो चुपचाप खा लेते हैं.’’

रंजू की घुड़की सुन कर माया पिंकी का हाथ पकड़ कर उस के कमरे में ले गई. उस रात पिंकी ने ठीक से खाना नहीं खाया था. उस का होमवर्क भी पूरा नहीं हुआ था, उस पर मम्मी की डांट ने उस के मन में तनाव और डर पैदा कर दिया.  सुबह होतेहोते उसे बुखार चढ़ आया.

अचानक रंजू को तरकीब सूझी, क्यों न 2-3 दिन की छुट्टी का मेडिकल बनवा लिया जाए. रोजरोज होमवर्क की सिरदर्दी भी खत्म. उस ने फौरन अपने परिवारिक डाक्टर को फोन लगाया.

डाक्टर घर आ कर पिंकी की जांच कर दवा दे गया और 3 दिन के  आराम का सर्टिफिकेट भी.

रात को पिंकी ने मां से अनुरोध किया, ‘‘मम्मा, आज मैं आप के पास सो जाऊं. मुझे नींद नहीं आ रही है.’’

‘‘नो बेबी, आज मैं बहुत थक गई हूं. माया आंटी तुम्हारे साथ सो जाएंगी,’’ इतना कह कर रंजू अपने कमरे की ओर मुड़ गई.

डबडबाई आंखों से पिंकी ने माया को देखा, ‘‘मम्मा मुझ को प्यार नहीं करतीं.’’

माया नन्ही बच्ची के अंतर में उठते संवेगों को महसूस कर रही थी. उस के सिर पर हाथ फेरते हुए बोली, ‘‘ऐसा नहीं कहते, बेटा, चलो मैं तुम्हें सुला देती हूं.’’

रात को पिंकी को प्यास लगी. माया सोई हुई थी. वह उठ कर रंजू के कमरे में चली गई, ‘‘मम्मा, प्यास लगी है, पानी चाहिए.’’

रंजू ने बत्ती जलाई. पिंकी की नजर मम्मी के पलंग के करीब सोए जिनी और टोनी पर पड़ी. पानी पी कर वह वापस अपने कमरे में आ गई. उस का दिमाग क्रोध और आवेश से कांप रहा था कि मम्मी ने मुझे अपने पास नहीं सुलाया और कुत्तों को अपने कमरे में सुलाया. मुझ से ज्यादा प्यार तो मम्मी कुत्तों को करती हैं.

बगीचे की साफसफाई, कटाई- छंटाई करने के लिए माली आया तो पिंकी भी उस के साथसाथ घूमने लगी. बीचबीच में वह प्रश्न भी कर लेती थी. माली ने कीटनाशक पाउडर को पानी में घोला फिर सभी पौधों पर पंप से छिड़काव करने लगा. पिंकी ने उत्सुकता से पूछा, ‘‘बाबा, यह क्या कर रहे हो?’’

‘‘बिटिया, पौधों को कीड़े लग जाते हैं न, उन्हें मारने के लिए दवा का छिड़काव कर रहे हैं,’’ माली ने समझाया.

‘‘क्या इस से सारे कीड़े मर जाते हैं?’’

‘‘हां, कीड़े क्या इस से तो जानवर और आदमी भी मर सकते हैं. बहुत तेज जहर होता है, इसे हाथ नहीं लगाना,’’ माली ने समझाते हुए कहा.

अपना काम पूरा करने के बाद कीटनाशक का डब्बा उस ने बरामदे की अलमारी में रखा और हाथमुंह धो कर चला गया.

अगले दिन दोपहर में रंजू ब्यूटी पार्लर चली गई. वहीं से उसे क्लब भी जाना था अत: प्रभाव दिखाने के लिए जिनी और टोनी को भी साथ ले गई.

स्कूल से घर लौट कर पिंकी ने खाना खाया और माया के साथ खेलने लगी.

शाम को माया ने कहा, ‘‘पिंकी, मैं जिनी और टोनी का दूध तैयार करती हूं, तब तक तुम जूते पहनो, फिर हम बाग में घूमने चलेंगे.’’

पिंकी का खून खौल उठा कि मम्मी जिनी और टोनी को घुमाने ले गई हैं पर मेरे लिए उन के पास समय ही नहीं है.

वह क्रोध से बोली, ‘‘आंटी, मुझे कहीं नहीं जाना. मैं घर में ही अच्छी हूं.’’

उसे मनाने के लिए माया ने कहा, ‘‘ठीक है, यहीं घर में ही खेलो. तब तक मैं खाना बनाती हूं. आज तुम्हारी पसंद की डिश बनाऊंगी. बोलो, तुम्हें क्या खाना है?’’

पिंकी के चेहरे पर मुसकान आ गई, ‘‘मुझे गाजर का हलवा खाना है.’’

‘‘ठीक है, मैं अभी बनाती हूं, तब तक तुम यहीं बगीचे में खेलो.’’

माया रसोई में चली गई. फिर जिनी व टोनी के कटोरों में दूधबिसकुट डाल कर बरामदे में रख गई ताकि आते ही वे पी सकें, क्योंकि रंजू जरा भी देर बरदाश्त नहीं करती थी.

खेलतेखेलते अचानक पिंकी को कुछ सूझा तो वह बरामदे में आई. अलमारी से कीटनाशक का डब्बा बाहर निकाला और दोनों कटोरों में पाउडर डाल डब्बा बंद कर के वहीं रख दिया जहां से उठाया था. कुछ ही देर में उस के ट्यूटर आ गए और वह पढ़ने बैठ गई.

शाम ढलने के बाद रंजू घर लौटी. जिनी व टोनी ने लपक कर दूध पिया और बरामदे में बैठ गए. रंजू आज बेहद खुश थी कि क्लब में उस ने अपने विदेशी कुत्तों का खूब रौब गांठा था.

‘‘अरे वाह, आज गाजर का हलवा बना है,’’ पिंकी की प्लेट में हलवा देख रंजू ने कहा. फिर थोड़ा सा चख कर बोलीं, ‘‘बड़ा टेस्टी बना है, जिनी और टोनी को भी बहुत पसंद है. माया, उन्हें ले आओ.’’

माया चीखती हुई वापस लौटी, ‘‘मेम साब, जिनी और टोनी तो…’’

‘‘क्या हुआ उन्हें…’’ रंजू खाने की मेज से उठ कर बरामदे की ओर दौड़ी. देखा तो दोेनों अचेत पड़े हैं. वह उन्हें हिलाते हुए बोली, ‘‘जिनी, टोनी कम आन…’’

रंजू ने फौरन डाक्टर को फोन किया. डाक्टर ने जांच के बाद कहा, ‘‘इन के दूध में जहर था, उसी से इन की मौत हुई है. रंजू का दिमाग सुन्न हो गया कि इन के दूध में जहर किस ने और क्यों मिलाया होगा? इन से किसी को क्या दुश्मनी हो सकती है?’’

गाजर का हलवा खाते हुए पिंकी बड़ी संतुष्ट थी. अब मम्मी पूरा समय मेरे साथ रहेंगी, बाहर घुमाने भी ले जाएंगी, अपने पास भी सुलाएंगी, बातबात पर डांटेगी भी नहीं और जिनीटोनी को मुझ से अच्छा भी नहीं कहेंगी क्योंकि अब तो वे दोनों नहीं हैं.

नशा: क्या नेहा के लिए खुद को बदल पाया सुमित

social story in hindi

व्यथा दो घुड़सवारों की: शादी की अनोखी कहानी

जो  भी घोड़ी पर बैठा उसे रोता हुआ ही देखा है. घोड़ी पर तो हम भी बैठे थे. क्या लड्डू मिल गया, सिवा हाथ मलने के. एक दिन एक आदमी घोड़ी पर चढ़ रहा था. मेरा पड़ोसी था इसलिए मैं ने जा कर उस के पांव पकड़ लिए और बोला, ‘‘इस से बढि़या तो बींद राजा, सूली पर चढ़ जाओ. धीमा जहर पी कर क्यों घुटघुट कर मरना चाहते हो?’’

मेरा पड़ोसी बींद राजा, मेरे प्रलाप को नहीं समझ सका और यह सोच कर कि इसे बख्शीश चाहिए, मुझे 5 का नोट थमाते हुए बोला, ‘‘अब दफा हो जा, दोबारा घोड़ी पर चढ़ने से मत रोकना मुझे,’’ यह कह कर पैर झटका और मुझ से पांव छुड़ा कर वह घुड़सवार बन गया. बहुत पीड़ा हुई कि एक जीताजागता स्वस्थ आदमी घोड़ी पर चढ़ कर सीधे मौत के मुंह में जा रहा है.

मैं ने उसे फिर आगाह किया, ‘‘राजा, जिद मत करो. यह घोड़ी है बिगड़ गई तो दांतमुंह दोनों को चौपट कर देगी. भला इसी में है कि इस बाजेगाजे, शोरशराबे तथा बरात की भीड़ से अपनेआप को दूर रखो.’’

बींद पर उन्माद छाया था. मेरी ओर हंस कर बोला, ‘‘कापुरुष, घोड़ी पर चढ़ा भी और रो भी रहा है. मेरी आंखों के सामने से हट जा. विवाह के पवित्र बंधन से घबराता है तथा दूसरों को हतोत्साहित करता है. खुद ने ब्याह रचा लिया और मुझे कुंआरा ही देखना चाहता है, ईर्ष्यालु कहीं का.’’

मैं बोला, ‘‘बींद राजा, यह लो 5 रुपए अपने तथा मेरी ओर से यह 101 रुपए और लो, पर मत चढ़ो घोड़ी पर. यह रेस बहुत बुरी है. एक बार जो भी चढ़ा, वह मुंह के बल गिरता दिखा है. तुम मेरे परिचित हो इसलिए पड़ोसी धर्म के नाते एक अनहोनी को मैं टालना चाहता हूं. बस में, रेल में, हवाईजहाज में, स्कूटर पर या साइकिल पर चढ़ कर कहीं चले जाओ.’’

बींद राजा नहीं माने. घोड़ी पर चढ़ कर ब्याह रचाने चल दिए. लौट कर आए तो पैदल थे. मैं ने छूटते ही कहा, ‘‘लाला, कहां गई घोड़ी?’’

‘‘घोड़ी का अब क्या काम? घोड़ी की जहां तक जरूरत थी वहीं तक रही, फिर चली गई.’’

‘‘इसी गति से तुम्हें साधनहीन बना कर तुम्हारी तमाम सुविधाएं धीरेधीरे छीन ली जाएंगी. कल घोड़ी पर थे, आज जमीन पर. कल तुम्हारे जमीन पर होने पर आपत्ति प्रकट की जाएगी. तब तुम कहोगे कि मैं ने सही कहा था.’’

इस बार भी बींद ने मेरी बात पर गौर नहीं फरमाया तथा ब्याहता बींदणी को ले कर घर में घुस गया. काफी दिनों बाद बींद राजा मिले तो रंक बन चुके थे. बढ़ी हुई दाढ़ी तथा मैले थैले में मूली, पालक व आलूबुखारा ले कर आ रहे थे. मैं ने कहा, ‘‘राजा, क्या बात है? क्या हाल बना लिया? कहां गई घोड़ी. इतना सारा सामान कंधे पर लादे गधे की तरह फिर रहे हो?’’

‘‘भैया, यह तो गृहस्थी का भार है. घोड़ी क्या करेगी इस में.’’

‘‘लाला, दहेज में जो घोड़ी मिली है, उस के क्या हाल हैं. वह सजीसंवरी ऊंची एड़ी के सैंडलों में बनठन कर निकलती है और आप चीकू की तरह पिचक गए हो. भला ऐसे भी घोड़ी से क्या उतरे कि कोई सहारा देने वाला ही नहीं रहा?’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. इस बीच मुझे पुत्र लाभ हो चुका है तथा अन्य कई जिम्मेदारियां बढ़ गई हैं. बाकी विशेष कुछ नहीं है,’’ बींद राजा बोले.

‘‘अच्छाभला स्वास्थ्य था राजा आप का. किस मर्ज ने घेरा है कि अपने को भुरता बना बैठे हो.’’

‘‘मर्ज भला क्या होगा. असलियत तो यह है, महंगाई ने इनसान को मार दिया है.’’

‘‘झूठ मत बोलो भाई, घोड़ी पर चढ़ने का फल महंगाई के सिर मढ़ रहे हो. भाई, जो हुआ सो हुआ, पत्नी के सामने ऐसी भी क्या बेचारगी कि आपातकाल लग जाता है. थोड़ी हिम्मत से काम लो. पत्नी के रूप में मिली घोड़ी को कामकाज में लगा दो, तभी यह उपयोगी सिद्ध होगी. किसी प्राइवेट स्कूल में टीचर बनवा दो,’’ मैं ने कहा.

‘‘बकवास मत करो. तुम मुझे समझते क्या हो? इतना कायर तो मैं नहीं कि बीवी की कमाई पर बसर करूं.’’

‘‘भैया, बीवी की कमाई ही अब तुम्हारे जीवन की नैया पार लगा सकती है. ज्यादा वक्त कंधे पर बोझ ढोने से फायदा नहीं है. सोचो और फटाफट पत्नी को घोड़ी बना दो. सच, तुम अब बिना घुड़सवार बने सुखी नहीं रह सकते,’’ मैं ने कहा.

पर इस बार भी राजा बनाम रंक पर मेरी बातों का असर नहीं हुआ और हांफता हुआ घर में जा घुसा तथा रसोईघर में तरकारी काटने लगा.

एक दिन बींद राजा की बींदणी मिली. मैं ने कहा, ‘‘बींदणीजी, बींद राजा पर रहम खाओ. दाढ़ी बनाने को पैसे तो दिया करो और इस जाड़े में एक डब्बा च्यवनप्राश ला दो. घोड़ी से उतरने के बाद वह काफी थक गए हैं?’’

बींदणी ने जवाब दिया, ‘‘लल्ला, अपनी नेक सलाह अपनी जेब में रखो और सुनो, भला इसी में है कि अपनी गृहस्थी की गाड़ी चलाते रहो. दूसरे के बीच में दखल मत दो.’’

मैं ने कहा, ‘‘दूसरे कौन हैं. आप और हम तो एकदूसरे के पड़ोसी हैं. पड़ोसी धर्म के नाते कह रहा हूं कि घोड़े के दानापानी की व्यवस्था सही रखो. उस के पैंटों पर पैबंद लगने लगे हैं. कृपया उस पर इतना कहर मत बरपाइए कि वह धूल चाटता फिरे. किस जन्म का बैर निकाल रही हैं आप. पता नहीं इस देश में कितने घुड़सवार अपने आत्मसम्मान तथा स्वाभिमान के लिए छटपटा रहे हैं.’’

बींदणी ने खींसें निपोर दीं, ‘‘लल्ला, अपना अस्तित्व बचाओ. जीवन संघर्ष में ऐसा नहीं हो कि आप अपने में ही फना हो जाओ.’’

वह भी चली गई. मैं सोचता रहा कि आखिर इस गुलामी प्रथा से एक निर्दोष व्यक्ति को कैसे मुक्ति दिलाई जाए. अपनी तरह ही एक अच्छेभले आदमी को मटियामेट होते देख कर मुझे अत्यंत पीड़ा थी. एक दिन फिर राजा मिल गए. आटे का पीपा चक्की से पिसा कर ला रहे थे. मैं ने कहा, ‘‘अरे, राजा, तुम चक्की से पीपा भी लाने लगे. मेरी सलाह पर गौर किया?’’

‘‘किया था, वह तैयार नहीं है. कहती है हमारे यहां प्रथा नहीं रही है. औरत गृहशोभा होती है और चारदीवारी में ही उसे अपनी लाज बचा कर रहना चाहिए.’’

‘‘लेकिन अब तो लाज के जाने की नौबत आ गई. उस से कहो, तुम्हारे नौकरी करने से ही वह बचाई जा सकती है. तुम ने उसे घोड़ी पर बैठने से पहले का अपना फोटो दिखाया, नहीं दिखाया तो दिखाओ, हो सकता है वह तुम्हारे तंग हुलिया पर तरस खा कर कोई रचनात्मक कदम उठाने को तैयार हो जाए. स्त्रियों में संवेदना गहनतम पाई जाती है.’’

इस पर पूर्व घुड़सवार बींद राजा बिदक पड़े, ‘‘यह सरासर झूठ है. स्त्रियां बहुत निष्ठुर और निर्लज्ज होती हैं. तुम ने घोड़ी पर बैठते हुए मेरा पांव सही पकड़ा था. पर मैं उसे समझ नहीं पाया. आज मुझे सारी सचाइयां अपनी आंखों से दीख रही हैं.’’

‘‘घबराओ नहीं मेरे भाई, जो हुआ सो हुआ. अब तो जो हो गया है तथा उस से जो दिक्कतें खड़ी हो गई हैं, उन के निदान व निराकरण का सवाल है.’’

इस बार वह मेरे पांव पड़ गया और रोता हुआ बोला, ‘‘मुझे बचाओ मेरे भाई. मेरे साथ अन्याय हुआ है. मैं फिल्म संगीत गाया करता था, तेलफुलेल तथा दाढ़ी नियमित रूप से बनाया करता था. तकदीर ने यह क्या पलटा खाया है कि तमाम उम्मीदों पर पानी फिर गया.’’

मैं ने उसे उठा कर गले से लगाया और रोने में उस का साथ देते हुए मैं बोला, ‘‘हम एक ही पथ के राही हैं भाई. जो रोग तुम्हें है वही मुझे है. इसलिए दवा भी एक ही मिलनी चाहिए. परंतु होनी को टाले कौन, हमें इसे तकदीर मान कर हिम्मत से काम करना चाहिए.’’

दोनों घोड़ी से उतरे और जमीन से जुड़े आदमी अपने घरों की ओर देखने लगे. अंधेरा वहां तेजी से घना होता जा रहा था. हम ने एकदूसरे को देखा और टप से आंसू आंखों से ढुलक पड़े. भारी मन से अपने-अपने घरों में जा घुसे.

Winter Special: होंठों को दें नाजुक सी देखभाल 

चेहरे के सौंदर्य में खूबसूरत होंठों की बड़ी भूमिका होती है, मगर इस मौसम में चलने वाली सर्द हवाएं जहां शरीर के हर अंग की त्वचा को रूखा बना देती हैं, वहीं होंठों की नमी भी छीन लेती हैं. ऐसे में होंठों की त्वचा में दरारें पड़ने लगती हैं और कभी कभी खून भी निकलने लगता है, जिस से होंठों की कोमलता मुरझाने लगती है. यदि होंठों की सही देखभाल की जाए तो सर्दियों में भी इन्हें फटने से बचाया जा सकता है.

वैसे बाजार में बहुत से ब्रैंडेड लिप बाम प्रोडक्ट्स उपलब्ध हैं, मगर विशेषज्ञों की मानें तो होंठों की मुलायम त्वचा के लिए स्ट्राबैरी ऐक्सट्रैक्ट बहुत ही लाभदायक है. अब तो बाजार में भी स्ट्राबैरी ऐक्सट्रैक्ट से बने प्रोडक्ट्स की बड़ी रेंज उपलब्ध है. इन्हें इस्तेमाल किया जाए तो होंठों को फटने से बचाया जा सकता है और साथ साथ इन की रंगत को भी बरकरार रखा जा सकता है. होंठों पर स्ट्राबैरी ऐक्सट्रैक्ट से बने प्रोडक्ट्स के फायदे यहीं खत्म नहीं होते, इन की एक लंबी लिस्ट है.

आइए इन में से कुछ फायदे हम आप से साझा करते हैं

– स्ट्राबैरी में विटामिन सी,  ऐंटीऔक्सीडैंट्स और ऐक्सफौलिएंट्स मौजूद होते हैं, जो होंठों की त्वचा के लिए काफी लाभदायक होते हैं. जहां सैलिसिलिक ऐसिड होंठों की डैड स्किन को हटा कर त्वचा में कसाव लाता है वहीं ऐंटीऔक्सीडैंट्स त्वचा में ताजगी बनाए रखते हैं. स्ट्राबैरी ऐक्सट्रैक्ट त्वचा को ऐक्सफौलिएट करने की भी क्षमता रखता है, जिस से त्वचा कोमल और चमकदार हो जाती है.

– महिलाएं यदि वर्किंग हैं और धूप में उन्हें निकलना पड़ता है, तो उन के होंठ फटने का एक कारण सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणें भी होती हैं. मगर स्ट्राबैरी में मौजूद एलगिक ऐसिड होंठों पर सुरक्षा कवच का काम करता है और होंठों को सन डैमेज से बचाता है.

– स्ट्राबैरी में मौजूद विटामिन सी की प्रचुर मात्रा होंठों की त्वचा में मौजूद फ्री रैडिकल्स को ब्लौक कर देती हैं और उन्हें ऐजिंग से बचाती हैं.

– स्ट्राबैरी में कई तरह के मिनरल्स और विटामिन होते हैं, जो होंठों के कालेपन को रोकते हैं और उन के गुलाबी रंग को बरकरार रखते हैं.

Winter Special: फैमिली के लिए बनाएं शिमला मिर्च के सूखे कोफ्ते

लंच या डिनर में अगर आप अपनी फैमिली के लिए नई रेसिपी ट्राय करना चाहती हैं तो शिमला मिर्च के सूखे कोफ्ते की ये रेसिपी ट्राय करें.

सामग्री कोफ्तों की

– 3/4 कप लाल, हरी व पीली शिमलामिर्च मिक्स्ड कद्दूकस की

– 1/2 कप मोटा बेसन

– 50 ग्राम पनीर

– 2 छोटे चम्मच अदरक व हरीमिर्च बारीक कटी

– 1/2 छोटा चम्मच गरममसाला

– कोफ्ते तलने के लिए मस्टर्ड औयल

– नमक स्वादानुसार.

मसाले की सामग्री

– 1/2 कप प्याज का पेस्ट

– 1/4 कप लंबाई में कटी प्याज

– 1 छोटा चम्मच अदरक व लहसुन पेस्ट

– 1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

– 2 छोटे चम्मच धनिया पाउडर

– 1/2 छोटे चम्मच लालमिर्च पाउडर

– 1/4 छोटा चम्मच बड़ी इलायची के दाने पिसे

– 1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती कटी

– 1 बड़ा चम्मच मस्टर्ड औयल

– नमक स्वादानुसार.

विधि

कोफ्ते बनाने की सारी सामग्री मिक्स कर लें. फिर छोटेछोटे गोले बना कर गरम तेल में डीप फ्राई कर लें. पुन: एक नौनस्टिक कड़ाही में 1 बड़ा चम्मच तेल गरम कर प्याज को पारदर्शी होने तक भूनें. फिर प्याज का पेस्ट, अदरकलहसुन पेस्ट डाल कर भूनें. इलायची पाउडर को छोड़ कर सारे सूखे मसाले डालें और तेल छूटने तक भूनें. अब कोफ्ते डालें. साथ ही 2 बड़े चम्मच पानी डाल दें. ढक कर धीमी आंच पर कोफ्तों के  गलने व पानी सूखने तक पकाएं. सर्विस प्लेट में निकाल कर धनियापत्ती व इलायची पाउडर बुरक कर सर्व करें.           –

जिंदगी ब्लैक ऐंड व्हाइट नहीं होती- भाग 3: आशिक मिजाज बॉस की कहानी

तनहा रूपेश क्या करे? कौन उस का सहारा बन सकता है? क्या रमला खुद…

नहीं, कहीं ऐसा न हो कि उस की रूपेश के प्रति सहानुभूति उलटी उसी के पति को गलतफहमी का निशाना बना दे… नहीं कुछ और सोचना पड़ेगा. जब से वह रूपेश से मिली है, उस का उदास चेहरा आंखों के आगे से हटता ही नहीं है.

हफ्ता गुजर गया. एक शाम मिहिर झूमतागाता घर में घुसा. उस के हाथ में एक कागज था. रमला के पास जा कर प्यार से बोला, ‘‘रोमी जान एक खुशखबरी…’’

‘‘क्या?’’

‘‘मेरी प्रमोशन…’’

‘‘क्या हुआ?’’

‘‘प्रमोशन और एक ऐक्स्ट्रा इंक्रीमैंट भी मिला है. देखो, मैं ने कहा था न… तुम उसे तरीके से संभालना जानती हो.’’

मिहिर की आखिरी बात उसे छू गई. परंतु उस दिन की कोई बात बता कर मिहिर की खुशी को कम करना नहीं चाहती थी. ठीक है अभी नहीं फिर कभी बताना तो पड़ेगा ही.

आखिर एक दिन मौका देख कर रमला ने उस दिन हुई बातचीत को ज्यों का त्यों मिहिर के सामने रख दिया.

‘‘अच्छा ऐसा है… पर बौस

ने कभी किसी भी औफिस कर्मचारी को नहीं बताया कि उन के साथ इतनी भयानक दुर्घटना घटी है.

वैसे मुझे तो सुन कर भी विश्वास नहीं होता.’’

‘‘यही सच है. तभी तो लड़कियों से नफरत करता है, क्योंकि हर लड़की में उसे भावना नजर आती है.’’

मिहिर भी सोच में पड़ गया कि तभी वह औरतों के साथ कोई गलत काम नहीं करता. सिर्फ शराब पीता है, उन के साथ हंसीमजाक करता है और फिर गिफ्ट दे कर खुश होता है… हम सब मजाक उड़ाते थे. मिहिर सब सुन कर दुखी व परेशान था.

कुछ देर बाद रमला ने मुंह खोला, ‘‘एक बात कहूं?’’

‘‘हां, बोलो,’’ मिहिर पत्नी का चेहरा देख रहा था.

‘‘यदि तुम मुझे इजाजत दो तो मैं रूपेश से कुछ बातें करूं? कहीं तुम्हें बुरा तो नहीं लगेगा?’’

‘‘देखो रमला तुम मेरी पत्नी हो. हमारे बीच विश्वास और प्यार का रिश्ता है. मैं जानता हूं कि रूपेश जिसे तुम बचपन से जानती हो उसे इस हालत में देख कर कितना धक्का लगा होगा. अगर तुम्हारे प्रयास से मेरे बौस के जीवन में बदलाव आ जाए तो मुझ से ज्यादा कोई खुश नहीं होगा. यह बताओ मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकता हूं?’’

‘‘हां, रूपेश से कहो कि हम लोग एक दिन उस के घर आना चाहते हैं.’’

‘‘ठीक है.’’

रूपेश समझ गया कि रमला उस के घर पर उस से मिल कर तय करना चाहती है कि क्या करना है.

एक रोज मिहिर और रमला दोनों रूपेश के घर पहुंचे. उस दिन इतवार था. दरवाजे पर दोनों को खड़ा देख रूपेश चौंका. शायद वह भूल गया था कि मिहिर व रमला ने आना है. अस्तव्यस्त घर, टूटी शराब की बोतलों का ढेर, फटे हुए कागज… घर नहीं, कबाड़ी की दुकान थी. रूपेश ने सोफा खाली कर के दोनों को बैठाया.

झेंप मिटाने के लिए मिहिर यह बहाना कर खिसक लिया कि शायद मैं गाड़ी को लौक करना भूल गया हूं. अभी आता हूं.

‘‘देखो, रूपेश मैं तुम्हें बचपन से जानती हूं. यह भी जानती हूं कि तुम जैसे संजीदा, सीधेसच्चे ईमानदार व्यक्ति का मन एक बार टूट जाए तो उसे समेटना आसान नहीं होता है. आज तुम वे रूपेश नहीं रहे जो 10 साल पहले थे.

‘‘तुम्हारे साथ भावना ने विश्वासघात किया. क्यों किया नहीं जानना चाहती. वह अब कहां

है, कैसी है यह भी मैं जानना नहीं चाहती पर तुम ने गहरी चोट खाई है. तुम अभी तक उसे भूले नहीं हो.

‘‘जीवन एक युद्ध है. कितनी बार हम चोट खाते हैं, हारते हैं, जीतते हैं पर यह युद्ध कभी खत्म नहीं होता. हारे हैं तो जीत भी तो उस के बाद ही है… तुम इस में अपने को दोषी क्यों मानते हो? दुखी तो भावना को होना चाहिए. गलती तो उस की है जो उस ने उच्च आदर्शों वाले रूपेश को समझने की कोशिश ही नहीं की. यहां गलती उस की है. उसे तो जरा भी पछतावा नहीं हुआ यानी वह स्वार्थी है. अच्छा ही हुआ, पीछा छूटा.

‘‘अब अतीत को भूल जाओ और खुद को संभालो. नए सिरे से जीवन को नया मोड़ दो… नए दोस्त बनाओ और खुश रहो… ‘बी क्रिएटिव.’’

रूपेश हैरान सा रमला का चेहरा देख रहा था.

‘‘वह पेंटिंग्स बनाने का तुम्हारा पैशन कहां गया? अभी भी चल रहा है न…? डूब जाओ

उस में…’’

‘‘नहीं अब मन नहीं करता,’’ रूपेश ने डूबी आवाज में कहा.

‘‘अरे, तुम्हारी व्यथा को कैनवस, ब्रश और रंगों से अधिक कौन समझेगा.

मनोस्थिति, दुख को उस पर उकेरो… कर के तो देखो रूपेश… तुम्हीं ने एक बार कहा था कि जिंदगी ब्लैक ऐंड व्हाइट नहीं होती. इस में सैकड़ों रंग हैं. कैनवस पर वे सैकड़ों रंग बिखेरेंगे तो अवसाद का काला रंग कहीं खो जाएगा.’’

रूपेश उस की बातों को बड़े ध्यान से सुन रहा था. रमला की हर बात उसे छू रही थी.

‘‘मैं अगले संडे आती हूं. हम तीनों एक पेंटिंग ऐग्जिबिशन में चलेंगे. यह प्रदर्शनी मशहूर शुचि खन्ना ने लगाई है.’’

रमला के जाने के बाद रूपेश को याद आया कि पिछली बार वह भावना के साथ एक प्रदर्शनी में गया था. भावना बोर हो रही थी, दोनों बीच से ही वापस आ गए थे. उसे बहुत बुरा लगा था पर आज नहीं…

प्रदर्शनी देख कर रूपेश पुरानी फौर्म में आ गया. आज उस में जोश था, खुशी थी. रमला व मिहिर के साथ रहते हुए अपनेआप को ऐनर्जेटिक महसूस करता था.

यों ही हंसीखुशी महीना गुजर गया. एक दिन मिहिर ने बताया, ‘‘रूपेश सर का लखनऊ ट्रांसफर हो गया है.’’

रूपेश के जाने के बाद मिहिर व रमला अकसर उस की बातें करते.

2 साल बीत गए. एक दिन उन के हाथ में खूबसूरत सा कार्ड था.

‘‘मिहिर व रमला, मैं ने रिचा नाम की एक आर्टिस्ट से विवाह कर लिया है. हमारी शैली नाम की छोटी सी बिटिया है. अगले महीने की 10 तारीख को हम दोनों को एक छोटी सी प्रदर्शनी लगानी है. इस पेंटिंग प्रदर्शनी का उद्घाटन करने तुम दोनों को आना है. आज मैं

जो भी हूं तुम लोगों की प्रेरणा से हूं. आ कर

देखो जीवन में सैकड़ों रंग बिखर गए हैं. सच जिंदगी ब्लैक ऐंड व्हाइट नहीं होती.

-रूपेश, रिचा’’

पत्र पा कर रमला खुश थी कि उस ने जीवन में किसी की जिंदगी में बदलाव लाया है. वाकई जिंदगी रंगों से भर गई है रूपेश की.

रूपेश ने कहा ही नहीं सिद्ध भी कर दिया कि जिंदगी ब्लैक ऐंड व्हाइट नहीं होती, रंगों को सिर्फ छिटकाना आना चाहिए.

दुविधा – भाग 2 : किस कशमकश में थी वह?

मेरे इतना कहते ही उस के चेहरे पर दुख की ऐसी काली छाया दिखाई दी मानो हवा के तेज झोंके से बदली ने सूरज को ढक लिया हो. उस की आंखें मेरे चेहरे पर ऐसे टिक गईं मानो जानना चाहती हों, कहीं मैं मजाक तो नहीं कर रही.

लेकिन यह सच था. एक पल के लिए मुझे भी लगा कि भले ही यह सच था लेकिन मुझे उसे ऐसे सपाट शब्दों में नहीं बताना चाहिए था. वह प्लेट ले कर डाइनिंग टेबल के दूसरे छोर की कुरसी पर जा बैठा. वह लगातार मुझे देख रहा था. वह बहुत उदास था. शायद उस की आंखें भी नम थीं. मैं ने खाना खाते हुए उसे कई बार बहाने से देखा था. वह सिर्फ बैठा था, उस ने खाना छुआ भी नहीं था. मुझे यह सब अच्छा नहीं लग रहा था लेकिन मैं क्या करती? ऐसे में उस से क्या कहती?

शादी में औफिस से बहुत से लोग आए लेकिन सुबोध नहीं आया. हां, औफिस वालों के हाथ उस ने बहुत ही खूबसूरत तोहफा जरूर भिजवाया था. क्रिस्टल का बड़ा सा फूलदान था, जिस ने भी देखा तारीफ किए बिना न रह सका.

विवाह होते ही मैं और प्रखर अपनी नई दुनिया में खो गए. हम ने वर्षों इस सब के लिए इंतजार किया था. हमें लग रहा था, हम बने ही एकदूसरे के लिए हैं. शादी के बाद हम विदेश घूमने चले गए.

महीनेभर की छुट्टियां कब खत्म हो गईं पता ही नहीं चला. मैं औफिस आई तो सहकर्मियों ने सवालों की झड़ी लगा दी. कोई ‘छुट्टियां कैसी रहीं’ पूछ रहा था,  कोई नई ससुराल के बारे में जानना चाह रहा था, कोई प्रखर के बारे में पूछ कर चुटकी ले रहा था. वहीं, कोई शादी के अरेंजमेंट की तारीफ कर रहा था तो कोईकोई शादी में न आ पाने के लिए माफी भी मांग रहा था.

सब से फुरसत पा कर जब सामने वाले केबिन पर मेरी नजर पड़ी तो वहां सुबोध की जगह कोई अधेड़ उम्र का व्यक्ति चश्मा पहने बैठा था. मेरी नजरें पूरे हौल में एक कोने से दूसरे कोने तक सुबोध को तलाशने लगीं. वह कहीं नजर नहीं आया. मैं उसे क्यों तलाश रही थी, मेरे पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था. पता नहीं मुझे उस से हमदर्दी थी या मुझे उस को देखने की आदत सी हो गई थी. खैर, जो भी था मुझे उस की कमी खल रही थी.

कुछ दिनों बाद मुझे पता लगा था कि सुबोध ने ही अपना तबादला दूसरे डिवीजन में करवा लिया था जो थोड़ी दूर, दूसरी बिल्ंिडग में है. सुबोध यहां से चला तो गया था लेकिन कुछ यहां ऐसा छोड़ गया था जो औफिस में यदाकदा उस की याद दिलाता रहता था. विशेष रूप से जब काम करतेकरते कभी अपनी नजर ऊपर उठाती तो सुबोध को वहां न पा कर कुछ अच्छा नहीं लगता था.

समय बीत रहा था. घर पहुंचते ही एक दूसरी दुनिया मेरा इंतजार कर रही होती थी, जिस में मेरे और प्रखर के अलावा किसी तीसरे के लिए कोई जगह नहीं थी. दिनरात जैसे पंख लगा कर उड़े चले जा रहे थे. घूमनाफिरना, दावतें, मिलना- मिलाना आदि यानी हमारे जीवन का एक दूसरा ही अध्याय शुरू हो गया था.

6 महीने कैसे बीत गए, कुछ पता ही नहीं लगा. एक सुबह मैं अपनी सीट पर जा कर बैठी तो यों ही नजर सामने वाले कैबिन पर पड़ी तो सुबोध को वहां बैठे पाया. पलभर को तो अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हुआ लेकिन यह सच था. सुबोध वापस लौट आया था, पता नहीं यह औफिस की जरूरत थी या सुबोध की. किस से पूछती, कौन बताता?

इस बात को कई सप्ताह बीत गए लेकिन हमारे बीच कभी कोई बात नहीं हुई. इस के लिए न कभी सुबोध ने कोई कोशिश की न ही मैं ने. मैं ने न तो उस से शादी में न आने का कारण पूछा और न उस खूबसूरत तोहफे के लिए धन्यवाद ही दिया. हमारे बीच ज्यादा बातचीत का सिलसिला तो पहले भी नहीं था लेकिन अब एक अबोला सा छा गया था.

अब जब भी हमारी नजरें आपस में यों ही टकरा भी जातीं तो न वह पहले की भांति मुसकराता और न ही मैं मुसकरा पाती. वैसे उस की नजरों को मैं ने अकसर अपने आसपास ही महसूस किया है. एक सुरक्षा कवच की भांति उस की नजरें मेरा पीछा करती रहती हैं. मैं समझ नहीं पाती कि क्या नाम दूं उस की इस मूक चाहत को?

समय इस सब से बेखबर आगे बढ़ रहा था. हमारा एक बेटा हो गया. अब मेरी जिम्मेदारियां बहुत बढ़ गई थीं. ऐसे में समय अपने लिए ही कम पड़ने लगा था और कुछ सोचने का समय ही कहां था? मेरा जीवन घर, बेटे और औफिस में ही उलझ कर रह गया था. वैसे भी मैं उम्र के उस पड़ाव पर पहुंच गई थी जहां अपनी घरगृहस्थी के आगे औरत को कुछ सूझता ही नहीं.

हां, प्रखर जरूर घर से बाहर दोस्तों के साथ ज्यादा रहने लगा था क्योंकि औफिस के बाद क्लब और पार्टियों में जाने की न तो मेरा थकाहारा शरीर आज्ञा देता, न मेरा मन ही इस के लिए राजी होता था. लेकिन प्रखर को रोकना मुश्किल था. बड़ी तनख्वाह, बड़ी गाड़ी, महंगा सैलफोन, कीमती लैपटौप, पौश कौलोनी में बढि़या तथा जरूरत से बड़ा फ्लैट वगैरह सब कुछ हो तो व्यक्ति क्लब, दोस्तों और पार्टियों पर ही तो खर्च करेगा? पहले दोस्तों के बीच कभीकभी पीने वाला प्रखर अब लगभग हर रात पीने लगा था. यह बात अलग है कि वह पीता लिमिट में ही था.

एक रात प्रखर क्लब से लौटा तो मैं बेटे को सुला रही थी. मेरे पास बैठते हुए बोला, ‘‘तुम्हारे औफिस में कोई सुबोध शर्मा है?’’

मैं इस सवाल के लिए बिलकुल तैयार नहीं थी. प्रखर सुबोध के बारे में क्यों पूछ रहा है? वह सुबोध के बारे में क्या जानता है? उसे सुबोध के बारे में किस ने क्या बताया है? एकसाथ न जाने कितने ही सवाल मेरे दिमाग में उठ खड़े हुए.

‘‘क्यों?’’ न चाहते हुए भी मेरे मुंह से निकल गया.

‘‘बस, यों ही, आज बातोंबातों में रवि बता रहा था. सुबोध, रवि का साला है. उसे घर वाले लड़कियां दिखादिखा कर परेशान हो गए हैं, वह शादी के लिए राजी ही नहीं होता. बूढ़ी मां बेटे के गम में बीमार रहने लगी है. वह तो रवि ने तुम्हारे औफिस का नाम लिया तो सोचा तुम जानती होगी. पता तो लगे आखिर सुबोध क्या चीज है जो कोई लड़की उसे पसंद ही नहीं आती.’’

प्रखर बोले जा रहा था और मेरी परेशानी बढ़ती जा रही थी. मैं खीज उठी, ‘‘इतना बड़ा औफिस है, इतने डिवीजन हैं. क्या पता कौन सुबोध है जो तुम्हारे दोस्त रवि का साला है. नहीं करता शादी तो न करे, इस से तुम्हारी सेहत पर क्या फर्क पड़ता है?’’

कुछ तो प्रखर नशे में था उस पर मेरी दिनभर की थकान का खयाल कर वह इस बेवक्त के राग से स्वयं ही शर्मिंदा हो उठा.

‘‘तुम ठीक कहती हो, अब नहीं करता शादी तो न करे. रवि जाने या उस की बीवी, अब आधी रात को इस से हमें क्या लेनादेना है,’’ कह कर प्रखर तो कपड़े बदल कर सो गया लेकिन मैं रातभर सो न सकी. कितनी शंकाएं, कितने प्रश्न, कितने भय मुझे रातभर घेरे रहे.

अगले ही दिन जब ज्यादातर स्टाफ लंच के लिए जा चुका था, मैं सुबोध के केबिन में गई. मुझे अचानक आया देख कर वह हड़बड़ा कर उठ खड़ा हुआ. मैं ने घबराई सी नजर अपने आसपास के स्टाफ पर डाली और उसे बैठने का इशारा करते हुए पूछा, ‘‘आप शादी क्यों नहीं कर रहे? आप के परिवार वाले कितने परेशान हैं?’’

एकाएक मेरे इस प्रश्न से वह चौंक उठा. शायद उसे कुछ ठीक से समझ भी नहीं आया होगा.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें