आधुनिकता के पैमाने पर छलकते जाम

आज भूमि की शादी की पहली सालगिरह थी और अपने पति कार्तिक के इसरार पर उस ने पहली बार बियर का स्वाद चखा था. अब कार्तिक का साथ देने के लिए वह भी कभीकभी ले लेती थी और एक दिन जब कार्तिक कहीं बाहर गया हुआ था तो भूमि ने अपने दोस्तों के साथ पार्टी कर ली पर उस के बाद भूमि अपने को रोक नहीं पाई और आए दिन ऐसी मदिरापान की पार्टियां उन के यहां आयोजित होने लगीं. भूमि और कार्तिक अपने इस शौक को हाई क्लास सोसाइटी में उठनेबैठने का एक अनिवार्य अंग मानते हैं. यह अलग बात है कि जहां कार्तिक शराब के अत्यधिक सेवन के कारण इतनी कम आयु में ही हाई ब्लडप्रैशर का शिकार हो गया है वहीं भूमि की प्रजनन क्षमता पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा है और वह मां नहीं बन पा रही है.

आज राजेश खन्नाजी बड़ी बेचैनी से चहलकदमी कर रहे थे. उन की बेटी तन्वी अब तक घर नहीं लौटी थी. दरवाजे की घंटी बजी और शराब के नशे में झूमती हुई तन्वी दरवाजे पर खड़ी थी. राजेशजी को तो काटो खून नहीं, उन्हें समझ नहीं आया कि उन की परवरिश में क्या गलती रह गई थी. अगले दिन जब तन्वी का कोर्टमार्शल हुआ तो तन्वी ने पापा से कहा, ‘‘पापा औफिस की पार्टीज में ये सब चलता है और फिर रोशन भैया भी तो पीते हैं.’’

राजेशजी गुस्से में बोले, ‘‘वह कुएं में कूदेगा तो तू भी कूदेगी, लड़कों की बराबरी करनी है तो बेटा अच्छी आदतों की करो.’’

आजकल की भागतीदौड़ती जिंदगी में सभी लोगों पर अत्यधिक तनाव है पर जहां पहले पुरुष ही तनाव से लड़ने के लिए मदिरापान का सेवन करते थे वहीं अब महिलाएं भी पुरुषों के साथ इस मोर्चे पर डट कर खड़ी हैं. क्यों न हो आखिर यह इक्कीसवीं सदी है. महिलाएं और पुरुष  हर कार्य में बराबरी के भागीदार हैं. जब से मल्टीनैशनल कंपनी और कौलसैंटर की बाढ़ भारत में आई है, तभी से शराब और सिगरेट के सेवन में भी आश्चर्यजनक बढ़ोतरी हुई है. यहां पर काम करने की समयावधि, देर रात तक चलने वाली पार्टीज और कभी न खत्म होने वाले कामों के कारण, यहां के कर्मचारियों में  एक अजीब किस्म का तनाव व्याप्त रहता है. इस का निवारण वे मुख्यत: शराब के सेवन से करते हैं.

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एकल परिवारों में बढ़ती लत

ऐसा नहीं है कि पहले के जीवन में तनाव नहीं था पर पहले जहां परिवार के सदस्यों के साथ हम शाम को बैठ कर अपने दुखसुख साझा कर लेते थे. वहीं अब एकल परिवारों के चलन के कारण यह भूमिका मदिरा ने ले ली है.

मजे की बात यह है पहले जहां पत्नियां पति को शराब के सेवन को ले कर रोकटोक करती वहीं अब अगर पति इन नशों का आदी होता है तो उस को तनाव से लड़ने के लिए छोटी सी खुराक समझ कर चुप लगा जाती हैं. बहुत से घरों में तो यह भी देखने को मिलता है कि पत्नियां भी धीरेधीरे पति का साथ देने लगती हैं. बाद में पत्नियों का ये कभीकभी का शौक भी कब और कैसे लत में परिवर्तित हो जाता है वे खुद भी नहीं जान पाती हैं.

अखिल और प्रज्ञा मुंबई में रहते हैं. उन के घर में न पैसों की कोई कमी है और न ही आधुनिक संस्कारों की. दोनों खुद अपनी बेटी के सामने बैठ कर खुद ड्रिंक करते हैं बिना यह सोचे कि इस बात का उन की बेटी कायरा पर क्या असर होगा? हद तो तब हो गई जब एक दिन कायरा को स्कूल से निलंबित कर दिया गया क्योंकि वह पानी की बोतल में पिछले कई दिनों से शराब ले कर जा रही थी. बेटी को क्या समझाएं, यह वे खुद ही नहीं समझ पा रहे हैं. फिलहाल दोनों बेटी से आंखें चुरा रहे हैं और एकदूसरे पर दोषारोपण कर रहे हैं.

इंस्टैंट का जमाना है

आजकल इंस्टैंट जमाना है. हर चीज चाहिए पर बहुत जल्दी और बिना मेहनत करे. अगर तनाव है तो उस से लड़ने का सब से आसान विकल्प लगता है मदिरापान करना. इस के दो फायदे हैं पहले तो कुछ देर के लिए ही सही आप तनावमुक्त तो हो जाओगे और दूसरा आप मौडर्न भी कहलाएंगे.

वहीं जब घर के बुजुर्गों को बच्चों की इस आदत के बारे में बात पता चलता है तो कुछ जुमले बोल कर ही वे लोग अपने कर्तव्य की इतिश्री कर देते हैं.

‘‘कैसा जमाना आ गया है, आदमियों की तो बात जाने दो, आजकल तो औरतें भी शराब पीती हैं.’’

तंबाकू, सिगरेट और शराब, इन सारी चीजों का सेवन करना आजकल की युवा महिलाओं में एक आम बात सी हो गई है. पहले महिलाएं इन सब चीजों का सेवन मजे के लिए करती हैं और बाद में जब ये लत बन जाती है तो एक सजा जैसी हो जाती है. पहले जहां शराब या सिगरेट की दुकानों पर पुरुषों की भीड़ एक आम बात थी वहीं अब महिलाएं भी बिना किसी हिचक के उन दुकानों पर देखी जा सकती हैं.

गीतिका 28 वर्षीय युवती है और एक आधुनिक दफ्तर में काम करती है. जब मैं ने उस से इस बाबत बातचीत करी तो उस ने कहा, ‘‘दीदी, आजकल औफिस पार्टियों में शराब का सेवन अनिवार्य सा हो गया है. नौकरी तो करनी ही है न तो फिर शराब से कैसा परहेज.’’

मैं इस लेख के माध्यम से शराब या सिगरेट को बढ़ावा कदापि नहीं देना चाहती हूं पर मैं समाज के बदलते मापदंड की तरफ आप सब का ध्यान आकर्षित कराना चाहती हूं.

चलिए अब कुछ कारणों पर प्रकाश डालते हैं जिस कारण आजकल महिलाओं में शराब के सेवन की आदत बढ़ती जा रही है.

फैशन स्टेटमैंट: आजकल शराब या सिगरेट का सेवन भी एक तरह का फैशन स्टेटमैंट बन गया है. अगर आप शराब नहीं पीते हैं तो आप बाबा आदम के जमाने के हैं. आप कैसे अपने कैरियर में आगे बढ़ेंगे, अगर आप को आजकल के तौरतरीकों का पता नहीं है?

बराबरी की चाहत: आजकल की नारी जीवन के हर मोर्चे पर पुरुषों के साथ कदम से कदम मिला कर चल रही हैं. अगर पुरुषवर्ग मदिरापान करते हैं तो फिर आज की आधुनिका, श्रृंगारप्रिया कैसे पीछे रह सकती है. अधिकतर महिलाएं सबकुछ जानतेबूझते हुए भी बस बराबरी की चाहत में इस राह की तरफ मुड़ जाती हैं.

तनाव से राहत: तनाव से राहत एक तरफ कैरियर के दबाव, दूसरी तरफ बूढ़े मातापिता, बढ़ते बच्चों की जरूरतें, कभी न खत्म होने वाला काम, इन सब बातों से राहत पाने के लिए भी आजकल की महिलाएं शराब का सहारा लेने लगी हैं. कुछ देर के लिए ही सही उन्हें लगता है वह एक अलग दुनिया में चली गई हैं.

स्वीकार होने की चाह: आजकल अधिकतर लड़कियां नौकरी के कारण अपना घर छोड़ कर महानगरों में अकेले रहती हैं. नई जगह, नए दोस्त और उन दोस्तों में अपनी पहचान बनाने के लिए न चाहते हुए भी वे मदिरापान करने लगती हैं. नए रिश्ते बनते हैं तो सैलिब्रेशन में शराब का सेवन होता है और फिर जब रिश्ते टूटते हैं तो फिर शराब का सेवन गम गलत करने के लिए होता है.

शराब के सेवन से सेहत पर होने वाले बुरे असर से हम सब भलीभांति परिचित हैं. परंतु अगर हाल ही में हुए शोधों पर नजर डालें तो यह पता चलता है कि पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की सेहत पर शराब का दुष्प्रभाव अधिक होता है.

– शराब को पचाने के लिए लिवर से एक ऐंजाइम निकलता है जो शराब को पचाने में सहायक होता है. महिलाओं में ये ऐंजाइम कम निकलता है जिस के कारण उन के लिवर को पुरुषों के मुकाबले अधिक मेहनत करनी पड़ती है.

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– महिलाओं की शारीरिक संरचना पुरुषों से अलग है  इसलिए उन की सेहत पर शराब का दुष्प्रभाव अधिक देर तक और जल्दी होता है.

– शराब के सेवन से महिलाओं की प्रजनन शक्ति पर विपरीत प्रभाव पड़ता है और यदि गर्भावस्था में महिलाएं शराब का सेवन करती हैं तो होने वाले  शिशु पर भी प्रभाव पड़ता है.

घर के मुखिया या बड़े होने के नाते यदि आप अपने बच्चों की शराब के सेवन की आदत से परेशान हैं तो उन्हें अवश्य समझाएं. शराब के सेवन से होने वाली हानि के बारे में भी बताएं पर बेटा और बेटी या बहू सब को एक समान ही सलाह दें. शराब का सेवन करना एक गंदी आदत है. पर इस का आशय यह नहीं है कि उस का सेवन करने वाली महिलाओं का चरित्र खराब है. जो बात गलत है वह सब के लिए ही गलत है चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, दोनों को सलाह देते समय एक ही पैमाना रखें, बेटी और बहू को पाप और बेटे को शौक के तराजू पर ना तौलें.

यह जरूर याद रखिए कमजोर महिला ही विपरीत परिस्थितियों में शराब की डगर पर फिसल जाती है. किसी भी प्रकार के नशे की जरूरत तभी पड़ती है, अगर आप के अंदर हौसले की चिंगारी न हो.

नशा हो जब तुम को हौसले की उड़ान का तो फिर क्या करोगी तुम शराब के जाम का.

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जब बारबार उठे फैमिली प्लानिंग की बात

शादी के कुछ महीने बीते नहीं कि न्यूली वेड कपल से हर कोई बस यही सवाल पूछता रहता है कि कब सुना रहे हो गुड न्यूज, जल्दी से मुंह मीठा करवा दो, अब तो दादीचाची सुनने को कान तरस रहे हैं. ज्यादा देर मत करना वरना बाद में दिक्कत हो सकती है. अकसर ऐसी बातें सुन कर कान थक जाते हैं. और ये सवाल कई बार रिश्ते में मन मुटाव का कारण भी बन जाते हैं. ऐसे में आप के लिए जरूरी है कि इन सवालों के जवाब बहुत ही स्मार्टली दें, जिस से किसी को बुरा नहीं लगेगा और आप खुद को स्ट्रेस से भी दूर रख पाएंगे.

कैसे करें स्मार्टली हैंडिल

1. जब हो डिनर टेबल पर:

अकसर इस तरह की बातें डिनर टेबल पर ही होती हैं क्योंकि जहां पूरा परिवार साथ होता है वहीं सब रिलैक्स मूड में होते हैं. ऐसे में जब आप की मां आप से बोले कि अब फैमिली प्लानिंग के बारे में सोचो तो आप अपना मूड खराब न करें. क्योंकि बड़ों से हम इसी तरह के सवालों की उम्मीद करते हैं. बल्कि उन्हें हां बोल कर बात को कुछ इस तरह घुमाएं कि मोम आज तो खाना कुछ ज्यादा ही टैस्टी बना है, मोम आप तो वर्ल्ड की बैस्ट शेफ हो वगैरहवगैरह बोल कर उन्हें टौपिक से दूसरी जगह ले जाएं. इस से आप का मूड भी खराब नहीं होगा और बात भी टल जाएगी.

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2. मजाकमजाक में करें बोलती बंद:

इंडियन कल्चर ऐसा है कि यहां लोगों को खुद से ज्यादा दूसरों की चिंता होती है. आप की लड़की या लड़का इतने का हो गया है या अभी तक शादी नहीं हुई, शादी को 4 साल हो गए और अभी तक बच्चा नहीं हुआ. यहां तक कि कभीकभी फ्रैंड्स भी ऐसे ताने मारे बिना नहीं रहते. ऐसे में खुद पर बातों को हावी न होने दें बल्कि उन्हें मजाकमजाक में बोलें यार तू पालेगी मेरे बच्चे को तो मैं आज ही प्लेन कर लेती हूं, यह बोलबोल कर हंसने लगे, इस से उस की बोलती भी बंद हो जाएगी और मजाकमजाक में आप का काम हो जाएगा.

3. रिश्तेदारों के सामने बोल्ड रहें:

जहां परिवार के लोग इकट्ठा हुए नहीं फिर चाहे उस में बच्चे हों या बड़े सब मस्ती के मूड में आ जाते हैं. क्योंकि लंबे समय के बाद जो सब मिलते हैं. ऐसे में रिश्तेदार हंसीहंसी में बच्चे के बारे में ञ्चया विचार है पूछे बिना रह नहीं पाते. ऐसे में आप इस बात पर भड़क कर माहोल को खराब न करें बल्कि बोलें अभी तो हम बच्चे हैं, अभी तो तो हमारी उम्र मस्ती करने की है. आप के इस जवाब को सुन कर बोलने वालों को समझ आ जाएगा कि इन्हें अभी इस बारे में कहने का कोई फायदा नहीं है.

4. खुद को रखें मेंटली प्रपेयर:

जब शादी हुई है तो बच्चे भी होंगे ओर इस बारे में सवाल भी पूछे जाएंगे. इसलिए जब भी कोई इस बारे में पूछे तो मुंह बनाने के बजाय उन्हें प्यार से बताएं कि अभीअभी तो हमारी नई जिंदगी शुरू हुई है और अभी चीजों को सैटल करने में थोड़ा वक्त लगेगा. जब सब कुछ अच्छे से मैनेज हो जाएगा तब प्लान करने के बारे में सोचेंगे. आप के इस

जवाब के बाद कोई भी आप से बारबार इस बारे में नहीं पूछेगा.

5. शर्माएं नहीं खुल कर करें बात:

जब भी इस टौपिक पर बात होती है तो या तो हम शरमा जाते हैं या फिर उस जगह से उठ कर चले जाते हैं. भले ही ये टौपिक झिझक का होता है लेकिन अगर आप ने अपनी बात खुल कर सब के सामने नहीं रखी तो लोग कुछ का कुछ भी समझ सकते हैं. यह जान लें कि इस बारे में फैसला आप का ही होगा, कोई भी आप पर अपना फैसला नहीं थोप पाएगा. इसलिए जब भी बात हो तो उन्हें बताएं कि अभी हम इस बारे में नहीं सोच रहे हैं, जब गुड न्यूज होगी तो आप को ही सब से पहले बताएंगे.

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6. हमेशा साथ निभाएं:

शादी के कई साल हो गए हैं और कंसीव करने में दिक्कत आ रही है तो ये बात जहां कपल को अंदर ही अंदर परेशान किए रहती है वहीं दूसरों के द्वारा इस बारे में बारबार पूछे जाने पर कई बार इतना अधिक गुस्सा आ जाता हैन् कि पलट कर जवाब देने को दिल करता है. लेकिन आप ऐसा भूल कर भी न करें, क्योंकि ये दूसरों के सामने आप की इमेज को बिगाड़ने का काम करेगा. इसलिए एकदूसरे की हिम्मत बने. एकदूसरे का हर दम साथ निभाएं और फैसला करें कि अगर कोई इस बारे में पूछेगा तो क्या जवाब देना है. आप का यही साथ आप को भीतर से मजबूत बनाने का काम करेगा और दूसरों के सामने आप बोल्ड बन कर जवाब दे पाएंगे.

इस तरह आप खुद को स्ट्रेस फ्री रख पाएंगे.

दांपत्य की तकरार, बिगाड़े बच्चों के संस्कार

वैवाहिक बंधन प्यार का बंधन बना रहे तो इस रिश्ते से बढि़या कोई और रिश्ता नहीं. परंतु किन्हीं कारणों से दिल में दरार आ जाए तो अकसर वह खाई में परिवर्तित होते भी देखी जाती है. कल तक जो लव बर्ड बने फिरते थे, वे ही बाद में एकदूसरे से नफरत करने लगते हैं और बात हिंसा तक पहुंच जाती है.

अतएव पतिपत्नी को परिवार बनाने से पहले ही आपसी मतभेद सुलझा लेने चाहिए और बाद में भी वैचारिक मतभेदों को बच्चों की गैरमौजूदगी में ही दूर करना उचित है ताकि उन का समुचित विकास हो सके.

छोटीछोटी बातों से झगड़े शुरू होते हैं. फिर खिंचतेखिंचते महाभारत का रूप ले लेते हैं. ज्यादातर झगड़े खानदान को ले कर, कमतर अमीरी के तानों, रिश्तेदारों, अपनों के खिलाफ अपशब्द या गालियों, कमतर शिक्षा व स्तर, कमतर सौंदर्य, बच्चे की पढ़ाई व परवरिश, जासूसी, व्यक्तिगत सामान को छूनेछेड़ने, अपनों की आवभगत आदि को ले कर होते हैं. यानी दंपती में से किसी के भी आत्मसम्मान को चोट पहुंचती है तो झगड़ा शुरू हो जाता है, फिर कारण चाहे जो भी हो.

1. नीचा दिखाना

चाहे पति हो या पत्नी कोई भी दूसरे को आहत कर देता है. नीता बताती है कि उस का पति हिमांशु आएदिन उस के मिडिल क्लास होने को ले कर ताने कसता रहता है. उसे यह बिलकुल बरदाश्त नहीं होता और फिर वह भी उस के बड़े स्तर वाले खानदान की ओछी बातों की लंबी लिस्ट पति को सुना देती है. तब हिमांशु को यह सहन नहीं होता और कहता है कि खबरदार जो मेरे खानदान के बारे में एक भी गलत बात बोली. इस पर नीता कहती है कि बोलूंगी हजार बार बोलूंगी. मुझे कुछ बोलने से पहले अपने गरीबान में झांक लेना चाहिए.

बस इसी बात पर हिमांशु उस के गाल पर चांटा रसीद कर देता है. उस के मातापिता को गालियां भी दे देता. फिर तो नीता भी बिफरी शेरनी सी उठती और उस पर निशाना साध किचन के बरतनों की बारिश शुरू कर देती. 5 साल का उस का बेटा मोनू परदे के पीछे छिप कर सब देखने लगता. इस तरह रोज उस में कई बुरे संस्कार पड़ते जा रहे थे जैसेकि कैसे किसी को नीचा दिखा कर चोट पहुंचाई जा सकती है, कैसे मारापीटा जा सकता है, कैसे सामान फेंक कर भी चोट पहुंचाई जा सकती है, कैसे गालियों से, कैसे चीखते हुए किसी को गुस्सा दिलाया जा सकता है.

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2. बात काटना या अनदेखी करना

बैंककर्मी सुदीप्ता हमेशा एलआईसी एजेंट अपने पति वीरेश की बात काट देती है. पति जो भी कुछ कह रहा हो फौरन कह देती है कि नहीं ऐसा तो नहीं है. कई बार सब के सामने वीरेश अपमान का घूंट पी लेता है. कई बार गुस्सा हो कर हाथ उठा देता है तो वह मायके जा बैठती. बच्चों का स्कूल छूटता है छूटे उसे किसी बात का होश नहीं रहता. अपने ईगो की संतुष्टि एकमात्र उद्देश्य रह जाता है.

गृहिणी छाया के साथ ठीक इस के विपरीत होता है. अपने को अक्लमंद समझने वाला उस का प्रवक्ता पति मनोज सब के सामने उस का मजाक उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ता. उस के गुणों की अनदेखी करता है. उस की कितनी भी सही बात हो नहीं मानता. उस की हर बात काट देता है. उस के व्यवहार से पक चुकी छाया विद्रोह करती तो मारपीट करता. एक दिन लड़ते हुए मनोज बुरी तरह बाल खींच कर उसे घसीटते हुए किचन तक ले आया. अपने को संभालती हुई छाया दरवाजे की दीवार से टकरा गई और माथे से खून बहने लगा. तभी उस की नजर किचन में रखे चाकू पर पड़ी तो तुरंत उसे उठा कर बोली, ‘‘छोड़ दो वरना चाकू मार दूंगी.’’

‘‘तू मुझ पर चाकू चलाएगी… चला देखूं कितना दम है,’’ कह मनोज ने छाया को लात मारी तो चाकू उस की टांग में घुस गया.

टांग से खून बहता देख छाया घबरा उठी. मम्मीपापा की तेजतेज आवाजें सुन कर अपने कमरे में पढ़ रही उन की बेटी तमन्ना वहां आ गई. पापा की टांग से खून निकलता देख वह तुरंत फर्स्टएड बौक्स उठा लाई. फिर पड़ोसिन रीमा आंटी को बुलाने उन के घर पहुंच गई.

तब रीमा का बेटा तमन्ना को चिढ़ाते हुए बोला, ‘‘तेरे मम्मीपापा कितना लड़ते हैं. रोज तुम्हारे घर से चीखनेचिल्लाने की आवाजें आती रहती हैं. झगड़ा सुलटाने रोज मेरी मम्मी को बुलाने आ जाती है. आज मम्मी घर पर हैं ही नहीं. अब किसे बुलाएगी?’’

तमन्ना रोती हुई अपने घर लौट आई. बच्चों में फैलती बदनामी से उस ने धीरेधीरे उन के साथ पार्क में खेलने जाना छोड़ दिया. उस के व्यक्तित्व का विकास जैसे रुक गया. सदा हंसनेचहकने वाली तमन्ना सब से अलगथलग अपने कमरे में चुपचाप पड़ी रहती.

3. जिद, जोरजबरदस्ती

पतिपत्नी के मन में एकदूसरे की इच्छा का सम्मान होना चाहिए अन्यथा जोरजबरदस्ती, जिद झगड़ा पैदा कर सकती है. फिर झगड़े को तूल पकड़ कर हिंसा का रूप धारण करने में देर नहीं लगती, जिस का खमियाजा बच्चों को भुगतना पड़ता है, क्योंकि जिद जोरजबरदस्ती उन के संस्कारों में घर कर जाती है और वे प्रत्येक काम में इस के उपयोग द्वारा आसानी से सब कुछ प्राप्त कर लेना चाहते हैं और फिर सफल न होने पर हिंसक भी बन जाते हैं.

4. शक अथवा जासूसी करना

पतिपत्नी में एकदूसरे पर विश्वास बहुत महत्त्व रखता है. बातबात पर संदेह, जासूसी उन में मनमुटाव को बढ़ाती है. वे जबतब बच्चों की उपस्थिति में भी घरेलू हिंसा करने लगते हैं. पतिपत्नी में से किसी एक की बेवफाई भी अकसर दूसरे को घरेलू हिंसक बना देती है. अतएव जरा भी संदेह हो तो परस्पर खुल कर बात करें और बिना हिंसा किए बच्चों का ध्यान रखते हुए सही निर्णय लें.

5. पैसा और प्रौपर्टी

मीनल प्राइवेट कंपनी में अच्छी जौब पर है. सैलरी भी अच्छी है. उस ने पति शैलेश से छिपा कर कई एफडी करा रखी हैं. पति शैलेश की इनकम भी अच्छीखासी है. हाल ही में उस ने एक प्रौपर्टी मीनल के नाम और एक बच्चों के नाम बनाई. अचानक शैलेश के पिता को हार्टअटैक आ गया. तुरंत सर्जरी आवश्यक बताई गई. शैलेश के पास थोड़े पैसे कम पड़ रहे थे. कुछ समय पहले 2 प्रौपर्टीज जो खरीदी थी. शैलेश ने मीनल से सहयोग के लिए कहा तो पहले तो उस ने अनसुनी कर दी. फिर बोली, ‘‘बेटे के नाम से जो शौप ली है उसे बेच क्यों नहीं देते? मेरे इतने खर्चे होते हैं… मेरे पास कहां से होंगे पैसे?’’

‘‘4-5 लाख के लिए 25 लाख की शौप बेच दूं? घर कासारा खर्च मैं ही उठाता हूं. तुम अपना खर्च कहां करती हो?’’

शैलेश पत्नी के दोटूक जवाब पर हैरान था. वह उस की नीयत समझने लगा. उस ने शौप नहीं बेची कहीं से ब्याज पर पैसों का बंदोबस्त कर लिया, साथ ही मकान भी उस के नाम से हटा कर अपने नाम करने की बात कही तो पत्नी ने उसे खूब खरीखोटी सुनाई. फिर झगड़ा शुरू हो गया और बात हिंसा तक उतर आई.

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घरेलू हिंसा से बच्चों में असुरक्षा की भावना पैदा होती है, जिस से वे अकसर मांबाप के इन हथकंडों को अपनाने लगते हैं और बिगड़ैल, असंस्कारी बनते जाते हैं. बड़े हो कर अकसर वे परिवार व समाज के साथ सामंजस्य नहीं बैठा पाते तो अंतर्मुखी, उपद्रवी, गुस्सैल, झगड़ालू प्रवृत्ति के बन जाते हैं और कोई भी गलत कदम उठाने के लिए तैयार हो जाते हैं. तब उन्हें रोक पाना बेहद मुश्किल हो जाता है.

बात बहुत न बिगड़ जाए और तीर कमान से न निकल जाए इस के लिए पतिपत्नी को बहुत सूझबूझ से काम लेते हुए अपने मतभेदों, मसलों को अकेले में बैठ कर आपस में आराम से सुलझा लेना ही श्रेयस्कर है. पतिपत्नी ने सिर्फ विवाह ही नहीं किया, घरपरिवार भी बनाया है, बच्चे पैदा किए हैं, परिवार बढ़ाया है, तो अपने इतने हिंसक आचारविचार पर अंकुश लगाना ही होगा. मातापिता का अपने आचारव्यवहार पर संयम रखना बच्चों वाले घर की पहली शर्त है. उन्हें अपने बच्चों के समुचित विकास, संस्कारी व्यक्तित्व और उन्नत भविष्य के लिए इतना बलिदान तो करना ही होगा.

पति ही क्यों जताए प्यार

अंजलि की पीठ पर किसी ने धौल जमाई. उस ने मुड़ कर देखा तो हैरान रह गई. उस की कालेज की फ्रैंड साक्षी थी. आज साक्षी अंजलि से बहुत दिनों बाद मिल रही थी.

अंजलि ने उलाहना दिया, ‘‘भई, तुम तो बड़ी शैतान निकली. शादी के 6 साल हो गए. घर से बमुश्किल 5 किलोमीटर दूर रहती हो. न कभी बुलाया और न खुद मिलने आई. मियां के प्यार में ऐसी रमी कि हम सहेलियों को भूल ही गई.

अंजलि की बात सुनते ही साक्षी उदास हो गई. बोली, ‘‘काहे का मियां का प्यार यार. मेरा पति केशव शुरूशुरू में तो हर समय मेरे आगेपीछे घूमता था, लेकिन अब तो लगता है कि उस का मेरे से मन भर गया है. बस अपने ही काम में व्यस्त रहता है. सुबह 10 बजे घर से निकलता है और रात 8 बजे लौटता है. लौटते ही टीवी, मोबाइल और लैपटौप में व्यस्त हो जाता है. दिन भर में एक बार भी कौल नहीं करता?’’

अंजलि बोली, ‘‘अरे, वह नहीं करता है तो तू ही कौल कर लिया कर.’’

साक्षी मुंह बना कर बोली, ‘‘मैं क्यों करूं. यह तो उस का फर्ज बनता है कि मुझे कौल कर के कम से कम प्यार के 2 शब्द कहे. मैं तो उसे तब तक अपने पास फटकने नहीं देती हूं जब तक वह 10 बार सौरी न बोले. मूड न हो तो ऐसी फटकार लगाती हूं कि अपना सा मुंह ले कर रह जाता है. मैं कोई गईगुजरी हूं क्या?’’

अंजलि साक्षी की बातें सुन कर हैरान रह गई. बोली, ‘‘बस यार, मैं समझ गई. यही है तेरे पति की उदासीनता की वजह. तू उसे पति या दोस्त नहीं अपना गुलाम समझती है. तू समझती है कि प्यारमुहब्बत करना, पैंपर करना या मनुहार करना सिर्फ पति का काम है. पति गुलाम है और पत्नी महारानी है. तेरी इसी मानसिकता के कारण तेरी उस से दूरी बढ़ गई है.’’

साक्षी जैसी मानसिकता बहुत सी महिलाओं की होती है. ऐसी महिलाएं चाहती हैं कि पति ही उन के  आगेपीछे घूमे, उन की मनुहार करे, उन के नखरे सहे. उन के रूपसौंदर्य के साथसाथ उन की पाककला या फिर दूसरे गुणों का भी बखान करे. ऐसी महिलाएं प्यार की पहल भी पति के द्वारा ही चाहती हैं. एकाध बच्चा होने के बाद उन्हें पति का सैक्सुअल रिलेशन बनाना, रोमांस करना या उस का रोमांटिक मूड में कुछ कहना भी चोंचलेबाजी लगने लगता है. जाहिर है, स्वाभिमान को चोट पहुंचने, बारबार दुत्कारे जाने या उपेक्षित महसूस किए जाने पर पति बैकफुट पर चला जाता है. तब वह भी ठान लेता है कि अब वह ऐसी पत्नी को तवज्जो नहीं देगा.

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समझदार पत्नियां जानती हैं कि किसी भी संबंध का निर्वाह एकतरफा नहीं हो सकता. इस के लिए दोनों पक्षों को सचेष्ट रहना पड़ता है. अगर आप या आप की कोई सहेली साक्षी की तरह सोचती है, तो बात बिगड़ने से पहले ही संभल जाएं. अपने दांपत्य जीवन को सरस बनाए रखने के लिए आप भी पूरी तरह सक्रिय रहें. दांपत्य संबंधों को निभाने के लिए बस इन छोटीछोटी बातों का ध्यान रखना है:

  • जब भी आप को लगे कि आप का पति इन दिनों कम बोलने लगा है या उदास है, तो उस के मन की थाह लें कि कहीं वह बीमार, व्यापार या अपने प्रोफैशन में किसी प्रौब्लम के कारण दुखी या उदास तो नहीं या फिर पूछें कि वह आप से नाराज तो नहीं? यकीन मानिए आप का परवाह करना उसे भीतर तक खुश कर देगा.
  • जरा सोच कर देखिए कि अंतिम बार आप ने अपने पति को खुश करने के लिए कुछ खास किया था? अगर जवाब नैगेटिव हो तो आप को आत्ममंथन करना होगा कि क्या विवाह संबंधों को निभाने की जिम्मेदारी सिर्फ पति की है? पति को सिर्फ पैसा कमाने की मशीन समझना आप की गलती है.

सैलिब्रिटी जोड़ी का तजरबा

सैलिब्रिटी चेतन भगत और उन की पत्नी अनुषा की शादी को 9 वर्ष हो चुके हैं. आज ये जुडवां बच्चों के पेरैंट्स हैं. पति उत्तर है तो पत्नी दक्षिण. जी हां, अनुषा बंगलुरू में जन्मी तमिलियन हैं और चेतन दिल्ली के पंजाबी परिवार के बेटे. एक पत्रकार से अपने अनुभव बांटते हुए इन्होंने दांपत्य जीवन से जुड़ी कई अहम बातें शेयर कीं.

अनुषा ने बताया कि शादी को पावर का खेल न बनने दें. एकदूसरे को पावर दिखाने के बजाय प्यार से रिश्ते को नियंत्रित करें.

चेतन का कहना हैं कि अनुषा ने सही कहा. हम ताकत या पावर से संबंधों को कंट्रोल नहीं कर सकते. आज सभी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हैं, इसलिए नियंत्रण नहीं, समझदारी से रिश्ते निखरते हैं. एकदूसरे का खयाल रखना ही संबंधों के निभाव का मूलमंत्र है.

ऐसा करें

  • पति को स्पोर्ट्स या न्यूज चैनल देखने का शौक है, तो रोज की टोकाटाकी बंद करें.
  • अपने पति की फैमिली से चिढ़ने और उन के बारे में उलटापुलटा बोलने की आदत न डालें. आखिर उसे अपने मांबाप से उतना ही प्यार होता है जितना आप को अपने मम्मीपापा से.
  • सिर्फ पति से ही गिफ्ट की उम्मीद न करें. कभी आप भी उसे गिफ्ट दें.
  • घर का हर काम सिर्फ पति से ही करवाने की न सोचें.
  • पति की हौबी का मजाक न उड़ाएं, बल्कि सहयोग करें.
  • रोमांस और सैक्स को चोंचला नहीं ऐंजौयमैट औफ लाइफ और जरूरत समझें.
  • हर वक्त किचकिच करना और सिर्फ पति के व्यक्तित्व के कमजोर पक्ष को ले कर ताने देना छोड़ दें.

ऐसा करें

  • पति को व्हाट्सऐप पर जोक्स व रोमांटिक मैसेज भेजना जारी रखें. कभीकभी कौंप्लिमैंट्स देने वाले मैसेज भी भेजें.
  • पति औफिस से लौट कर कुछ बताए, तो उसे गौर से सुनें. उस पर ध्यान दें, उस के विचारों को तवज्जो दें. साथ ही, आप भी दिन भर के घटनाक्रम के विषय में संक्षिप्त चर्चा करें.

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  • शाम की चाय या नाश्ता पति के साथ बैठ कर लें. इस दौरान हलकीफुलकी बातें भी हो सकती हैं.
  • पति आप के काम में हाथ बंटाए, आप को कोई गिफ्ट दे या आप की प्रशंसा करे तो उसे दिल से शुक्रिया करने की आदत डालें. उसे ‘टेकन फौर ग्रांटेड’ न लें.
  • हफ्ते में 2-3 बार उस की कोई पसंदीदा डिश बनाएं. कई बार पूछ कर तो कई बार अचानक बना कर पति को सरप्राइज दें.
  • पति की नजदीकियों को उस की मजबूरी या अपनी चापलूसी न समझें. इन नजदीकियों की आप दोनों को बराबर जरूरत है.
  • शादी के 2-4 साल बीतते ही खुद की देखभाल करना बंद न कर दें. अपनी अपीयरैंस पर ध्यान दें, सलीके से रहें.
  • कभीकभी पति को मनमानी करने की छूट भी दें. फिर बात चाहे घर में अपने वक्त को बिताने की हो या बाहर दोस्तों के साथ घूमनेफिरने की अथवा आप के साथ ऐंजौंय और हंसीमजाक की.

8 टिप्स: परिवार की खुशियां ऐसे करें अनब्लौक

लेखक- दीप्ति अंगरीश

बहुत याद आता है गुजरा जमाना. जब मम्मी, चाची, बूआ, ताई, अम्मां, दादी, नानी सब साथ होते थे. अब काम की मजबूरियों ने सब छीन लिया है. परिवार की बातें सिर्फ यादें बन कर रह गई हैं या कभीकभार टीवी पर दिखता है भरापूरा परिवार. आज के परिवार में 5-6 सदस्य ही होते हैं. और तो और परिवार से मिलना भी त्योहारों तक ही सीमित हो गया है. अब परिवार का प्यार, डांट, शाबाशी, सलाह आंगन में बिछे तख्त पर नहीं व्हाट्सऐप पर होती है या यो कहें कि परिवार डिजिटल हो गया है.

जहां तकनीक ने बहुत कुछ दिया है, वहीं बहुत कुछ छीन भी लिया है. याद करें नानी, दादी, चाची, बूआ का लाड़प्यार. पहले प्यार रियल लाइफ में मिलता था, जो कभी शाबाशी से पीठ थपथपाता था, तो कभी दुलार से गालों को खींचता था. समय के साथ सबकुछ तकनीकी हो गया यानी प्यार, डांट, शाबाशी, अच्छेबुरे की समझ, दुनियादारी, जज्बा, उमंग, उत्साह सब व्हाट्सऐप जैसे तमाम ऐप्स में समाहित हो गया है. यह तकनीक बिछडों को जोड़ रही है, ज्ञान का अपार भंडार दे रही, लेकिन रियल लाइफ की भावनाओं से दूर भी कर रही है. नतीजतन साथ रहते हुए भी परिवार का हर सदस्य एकदूसरे से अनजान है. तो आइए, जानते हैं इन दूरियां को पाटने के कुछ कारगर टिप्स:

1. रोज की मंचिंग

सप्ताह में डिनर टाइम के अलावा आप एक मंचिंग टाइम फिक्स करें. इस के सेहतमंद फायदे के अलावा बौडिंग फायदे भी मिलेंगे. यानी छोटीछोटी भूख में हों सूखा मेवा, दूध और फल. माना ये चीजें आप को पसंद नहीं, लेकिन जब साथ में खाएंगे तो रिश्तों का प्यार भी इन में घुलेगा.

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2. संडे के संडे

अब तक जो हुआ उसे भूल जाएं. परिवार में आई दूरियों का रोना न रोएं, बल्कि उन्हें रोकने के कारगर उपाय खोजें. इस का बैस्ट उपाय है संडे यानी आप और पूरा परिवार सप्ताहभर कामकाज में व्यस्त रहता है. ऐसे में सदस्यों को शनिवार रात ही बता दें कि अगले दिन सब को जल्दी उठना है और आउटडोर खेलने जाएंगे. यहां आउटडोर आप को सेहत और बौडिंग देगा.

3. फूड ऐक्टिविटी

आप सब व्यस्त रहते हैं, लेकिन संडे  को अलग तरीके से सैलिब्रेट करें. इस की जिम्मेदारी आप को लेनी होगी. कोशिश करें संडे को खाना बाहर न खा कर सब मिल कर पकाएं. यकीन मानिए इस फूड ऐक्टिविटी से आप सब करीब आएंगे.

4. नो गैजेट जोन

आप परिवार में सख्त नियम बनाएं कि जब पूरा परिवार एक साथ हो तब गैजेट्स की ऐंट्री पर बैन हो. वैसे भी साथ होने के मौके कम मिलते हैं. उस में आई पैड, मोबाइल, लैपटाप आदि गैजेट्स साथ होंगे तो परिवार एकसाथ नहीं अलगथलग ही रहेगा, साथ ही परिवार वालों को बोलें कि डिनर सब साथ करेंगे, जिस में परिवार गैजेट्स फ्री रहेगा. यकीनन तब एकदूसरे को करीब से जान पाएंगे, हंसा पाएंगे, दुख बांट पाएंगे.

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5. लाइफ गोल्स

आप जिंदगी में छोटेछोटे लक्ष्य बनाते हैं. ताकि बड़े लक्ष्य तक पहुंचना असान हो. लेकिन ये लक्ष्य सिर्फ कद और पैसे तक ही सीमित होते हैं. हैप्पी फैमिली के लिए छोटेछोटे लक्ष्य बनाएं, फिर देखिए कैसे परिवार में हमेशा के लिए प्यार घुल जाएगा. ये छोटे लक्ष्य हो सकते हैं जैसे साथ में कुकिंग करना, साथ में जौगिंग पर जाना, साथ में परिवार सहित लौंग ड्राइव पर जाना आदि.

6. फैमिली नोट्स बनाएं

माना कि पूरा परिवार व्हाट्सऐप पर फैमिली गु्रप से जुड़ा हुआ है, लेकिन याद कीजिए जिन के साथ आप रहते हैं उन से रियल लाइफ में कितने जुड़े हुए है. आप चाहते हैं परिवार मिलजुल कर रहे तो इस के लिए अपनी हर कोशिश के नोट्स बनाएं और मोबाइल में अलार्म लगाएं. अलार्म याद दिलाएगा कि किस समय क्याक्या करना है.

7. थकान मिटाएं

रोज थकान मिटाने के लिए आप बहुत कुछ करते होंगे. कभी बुक रीडिंग तो कभी यहांवहां की चहलकदमी. फिर भी थकान नहीं मिटती. और तो और करवटें बदलतेबदलते रात कट जाती है और सुबह थकान जस की तस. ऐसे में ऐनर्जी बूस्टर है रोजाना की फैमिली गैदरिंग. इस के लिए एक टाइम फिक्स कर लें. लिविंगरूम में सब के साथ कोई भी शो देखें और दिन भर का सुखदुख साझा करें. ऐसा करने से आप को ऐनर्जी मिलेगी जो अगले दिन के लिए बौडी फुल चार्ज करेगी. और दोस्तों से आगे होगी आप की फैमिली.

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8. आउटिंग तो बनती है

त्योहारों का सीजन शुरू होते ही लौंग वीकैंड या 4-5 दिनों की छुट्टी निकल ही आती है. ऐसे में फैमिली आउटिंग से बेहतर कुछ नहीं हो सकता. पहले से योजना बना कर सारी तैयारियां कर लें. पूरे साल में एक ट्रिप जरूर प्लान करें, क्योंकि जितनी दूर जाएंगे अपनों के उतना ही करीब आ जाएंगे.

रिश्ता टूटने का सबसे बड़ा कारण है ससुराल में मायके वालों की दखलअंदाजी

शादी एक खूबसूरत सा बंधन होता है और यह बंधन कुछ समय  का नहीं होता है. यह सात जन्मों का बंधन होता है. पर इस बंधन में भी कई बार दरारें पड़ने शुरू हो जाती हैं और दरारे कई बार इतनी गहरी हो जाती हैं कि पूरा का पूरा रिश्ता ढह जाता है.

यह रिश्ता टूटने के होते तो बहुत सारे कारण हैं लेकिन उनमे से वो  कारण जो सबसे महत्वपूर्ण है वो है ;-“ससुराल में मायके वालों की दखलअंदाजी उनकी इंटरफेरेंस”. शादी हो जाने के बाद लड़की के ससुराल में लड़की के पैरंट्स की बहुत ज्यादा दखलंदाजी  होती है. इस वजह से इतने ज्यादा तलाक होते हैं कि आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते. आज मैं आपसे वो कारण शेयर करूंगी जिनकी वज़ह से अक्सर रिश्तों में दरारे आ जाती है-

1-मायके वाले इनसिक्योर फील करते हैं

अक्सर मायके वाले ये सोचते हैं की बेटी की शादी हो गई. अब उसका प्यार हमारी तरफ कम हो जाएगा. इसलिए उसका और ज्यादा ख्याल रखते हैं… इसलिए उसको और ज्यादा प्यार करते हैं… इसलिए उसकी और ज्यादा केयर करने लगते हैं. . और यह वजह बनती है दखलंदाजी की.

एक बात हमेशा याद रखिये की अगर आप अपनी लड़की को बहुत ज्यादा प्यार दिखाओगे तो कहीं ना कहीं उसके मन में कंपैरिजन की भावना आ जाएगी . वो हमेशा अपने मायके की तुलना  अपने ससुराल से करने लगेगी. और कभी भी अपने ससुराल वालों से इमोशनली  attach नहीं हो पायेगी.

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2- बहुत ज्यादा इमोशनली डिस्टर्ब करना

अक्सर माँ का phone आता  है की -आज तो तेरे पापा ने खाना ही नहीं खाया… आज तो उनको तेरी बहुत याद आ रही थी ..आज मेरा भी कुछ काम करने का मन नहीं हुआ पता नहीं क्यों तेरी आज बहुत याद आ रही थी …,आज बगल वाली आंटी से तेरे ही  बारे में बात हो रही थी  सब तुझको बहुत याद करते हैं.

यह  सब बातें सुनकर लड़की बहुत ज्यादा इमोशनली डिस्टर्ब हो जाती है और उसका न तो अपने ससुराल में मन लगता है और तो और उसके मन में हमेशा यही आ जाता है कि देखो वहां तो इतना प्यार करते हैं यहां तो कोई मुझे पूछता नहीं.

यह चीजें नहीं होनी चाहिए. जब इन चीजों की अति हो जाती है तब  फैमिली डिस्टर्ब हो जाती है .

3-मायके वालों का लड़की को एडजस्ट होने का टाइम ही न देना

बार-बार  फोन करना , बार-बार लड़की के घर आ जाना-‘ की याद आ रही है मन नहीं लग रहा ‘.

तो वो एडजस्ट कैसे होगी. वह खुद नए घर में गई है .वहां पर उसको एडजस्ट होना है. उसको सब का ख्याल रखना है.ऐसे में  अगर माता-पिता की बार-बार एंट्री  होगी तो वह कैसे अपने आपको उस नए घर नए रिश्तों के साथ  एडजस्ट कर पाएगी ?

4 -उसको गिल्टी फील करवाना

एक लड़की है ,शादी होने के बाद वह वह अपने ससुराल में बहुत अच्छे से एडजस्ट हो गई है. सबका ख्याल रख रही है… काम भी करती है …अच्छे से रह रही है . बच्चे भी हैं उसके तो हो सकता है की वो फोन नहीं कर पा रही है अपने मायके में. तो ऐसे में मायके से फोन आता है और कहा जाता है कि क्या जादू कर दिया तेरे ससुराल वालों ने .तेरे मां बाप भी है इस दुनिया में ..तू तो हमें भूल ही गयी . यह बातें उसे कहीं ना कहीं गिल्टी फील कराती हैं.

बल्कि यह तो एक माता पिता के लिए खुशी की बात है कि उनकी लड़की अपने ससुराल में एडजस्ट हो रही है. इस पर आकर उसे गिल्टी फील कराना, उसको यह एहसास दिलाना कि तू तो अपने मायके वाले को भूल ही गई है कि. ये कहां तक सही है?

5-रिश्तों में कोई पारदर्शिता न रखना

मान लीजिए कि मायके वाले अपनी लड़की से  1 घंटे के लिए मिलने गए है.  आधा घंटा, पौना घंटा अकेले कमरे में जाकर सिर्फ अपनी लड़की से बातें करते रहे. और मान लीजिए उसी समय लड़की के ससुराल वाला कोई भी सदस्य अगर वहां आता है तो बातें करना बंद. एकदम चुप.. इससे  सामने वाले को लगता है कि कहीं ना कहीं यह क्या बात कर रहे हैं जो मेरे आने पर चुप हो गए.

दोस्तों पारदर्शिता बहुत जरूरी होती है चाहे वह कोई भी रिश्ता हो .जब लड़की के घर जाओ ना तो सबके साथ बैठो .ज्यादा से ज्यादा टाइम उसके ससुराल वालों के साथ बिताओ .इससे दोनों परिवारों के बीच विश्वास बहुत बढेगा.

6-बार-बार फोन पर बात करना

बार-बार लड़की को फोन करना कहां तक सही है .अब आप सोच रहे होंगे कि क्या बात भी ना करें ?माना कि माता-पिता अलग शहर में रहते हैं, रोज मिलना पॉसिबल नहीं है लेकिन बार- बार phone करते रहना भी सही नहीं है.

फोन तो इस रिश्ते के टूटने की इतनी जबरदस्त जड़ है ना जो बहुत ज्यादा तनाव देती है. लड़की के सुबह उठने से रात में सोने तक न जाने कितनी बार फोन करते  हैं और सारी बातें पूछते हैं  कि क्या नाश्ता किया आज तूने..? क्या पहना ..? अगर गलती से लड़की ने कह दिया कि मैं रसोई में हूं तो बोलना… अरे तू अकेले काम कर रही है.. तेरी ननद कहां है..? तेरी सास कहां है…? वह क्यों नहीं काम कर रही.? तू क्यों लगी रहती है सारा दिन …?ये सब बिलकुल भी सही नहीं है.

अगर एक बार बात नहीं भी  हुई तो कोई बहुत बड़ा इशू  नहीं है. वह ठीक है. उसको अच्छे से रहने दो .उसको सेट होने दो ससुराल में .इस बात को समझो. हम तो सास- बहू, सास- बहू में उलझे हुए हैं पर यहां तो अपनी मां की वजह से ही रिश्तो में दरार आ रही है, तलाक हो रहे हैं. घर टूट रहे हैं..

7-अपनी लड़की को उकसाना

दोस्तों अगर दिन में इतनी बार बात होगी तो कोई कितनी बार हाल चाल पूछेगा.यहाँ वहां की ही बातें होंगी न.

अगर लड़का अपने माता-पिता का  बहुत ख्याल रखता है, बहुत प्यार करता है तो लड़की की मां कहती है की तुम्हारा पति तो माँ बाप का गुलाम है ,तुम्हारा कोई ख्याल नहीं रखता. अब यह बातें सुनकर उस लड़की के मन में भी नेगेटिव फीलिंग आएगी .उसको लगेगा कि मेरे माँ बाप के  अलावा तो मुझे कोई प्यार करता ही नहीं है. कोई मेरी देखभाल करता ही नहीं है. यह मेरी कितनी केयर करते हैं बात बात पर मेरा ख्याल पूछते हैं. पर जाने अनजाने उसके रिश्तों में दरार आना शुरू हो जाती है .

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8-लड़की के मायके वालों का उसके ससुराल वालो  से स्टेटस में compare  करना

अक्सर लड़की के मायके वाले अपनी लड़की को प्यार दिखाने के लिए हमेशा उसके ससुराल वालो से ज्यादा करने की कोशिश करते है.वो अपनी लड़की को महंगे- महंगे गिफ्ट देते है.

इससे कहीं न कहीं ससुराल वालों के मन में काम्प्लेक्स आ जाता है.और यहीं से  उनकेरिश्तों के बीच दरार आना शुरू हो जाती है.

सबसे आखिर में, मै ये नहीं कहती कि  माता-पिता को शादी के बाद अपनी बेटियों से दूरी बना लेनी चाहिए ..या उनकी किसी भी परेशानी में उनका साथ नहीं देना चाहिए . बेशक, आपको उसका साथ देना चाहिए . आप उसके माता पिता है और वह वही राजकुमारी है जो आपके सामने पली-बढ़ी है.लेकिन आपको अपने स्वार्थ को किनारे रखकर उसका सही मार्गदर्शन भी करना है  और उसे उस रानी में बदलना है  जो वह किस्मत में थी या जो आपने बचपन से उसके लिए सोचा था.

जिम्मेदारियों के बीच न भूलें जीवनसाथी को वरना हो सकता है ये अफसोस

घर से ऑफिस ,ऑफिस से घर ये रूटीन बन गया .2 से 3 साल और निकल गए. मेरी उम्र 25 की हो गयी और फिर शादी हो गयी. मेरे जीवन की कहानी शुरू हो गयी. अपने जीवनसाथी के हाथों में हाथ डालकर घूमना -फिरना ,रंग बिरंगे सपने  देखना ,जीवन से एक अलग सा ही लगाव महसूस होने लगा.पर ये दिन जल्दी ही उड़ गए .फिर बच्चे के आने की आहट  हुई.अब हमारा सारा ध्यान बच्चे पर केन्द्रित हो गया. उठाना-बैठाना ,खिलाना-पिलाना ,लाड-दुलार ,समय कैसे फटाफट निकल गया मुझे पता ही नहीं चला.

इस बीच कब मेरा हाथ उसके हाथ से निकल गया ,बातें करना ,घूमना -फिरना कब बन्द हो गया दोनों को पता ही नहीं चला. वो बच्चे में व्यस्त हो गयी और मैं अपने काम में.

घर और गाडी की क़िस्त ,बच्चे की पढाई लिखी और भविष्य की जिम्मेदारी और साथ ही साथ बैंक में शून्य बढ़ाने  की चिंता ने मुझे घेर लिया .उसने भी अपने आपको काम में पूरी तरह झोंक दिया और मैंने भी.

इतने में मै  35 साल का हो गया .इसी बीच दिन बीतते गए,समय गुजरता गया ,बच्चा बड़ा होता गया .एक नितांत, एकांत पल में मुझे वो गुज़रे दिन याद आये और मौका देखकर मैंने अपने जीवन साथी से कहा “अरे यहाँ आकर मेरे पास बैठो ,चलो हाथ में हाथ डालकर कहीं घूम कर आते है .” उसने अजीब नज़रों से मुझे देखा और कहा ‘आपको  घूमने की पड़ी है और यहाँ इतना सारा काम पड़ा है आप  भी हद करते हो ‘.मैं शांत हो गया .

बेटा उधर कॉलेज में था इधर बैंक में शून्य बढ़ रहे थे .देखते ही देखते उसका कॉलेज ख़त्म हो गया और वो परदेश चला गया.

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मैं भी बूढा हो गया वो  भी उम्रदराज़ लगने लगी .दोनों 55 से 60 की ओर बढ़ने लगे .बैंक में शून्य बढ़ रहे थे और हमारे जीवन के भी.

बाहर आने जाने के कार्यक्रम बन्द होने लगे.अब तो गोली ,दवाइयों के दिन और समय निश्चित होने लगे.जब बच्चे बड़े होंगे तब हम सब साथ रहेंगे ये सोचकर बनाया गया घर बोझ लगने लगा.बच्चे कब वापस आयेंगे यही सोचते-सोचते बाकी के दिन गुजरने लगे.

एक शाम ठंडी हवा का झोका चल रहा था .वो भी दिया- बाती कर रही थी और मैं अपनी  कुर्सी पर बैठा अपने अतीत के कुछ खुशनुमा पल याद कर रहा था . आज भी उस पल  को याद करके मेरे चेहरे पर मुस्कराहट आ जाती है जब हमारी शादी की बारहवी  सालगिरह पर उसने मुझसे सालगिरह का तोहफा माँगा. उसने मुझसे कहा की मैं  जो भी मांगूंगी आप मुझे दोगे . मैंने हाँ में सिर हिला दिया .वो अन्दर कमरे से जाकर 2 डायरी ले आई और मुझसे बोली कि मुझे आपसे बहुत कुछ कहना रहता है लेकिन हमारे पास एक दूसरे के लिए समय ही नहीं होता.इसलिए हमारी जो भी शिकायतें होंगी हम पूरा साल अपनी -अपनी डायरी में लिखेंगे और अगली सालगिरह पर हम एक दूसरे की डायरी पढेंगे .मैं भी सहमत हो गया की विचार तो अच्छा है.

देखते ही देखते साल बीत गए. शादी की अगली सालगिरह आई .हम दोनों ने एक दूसरे की डायरी ली.उसने कहा की पहले आप पढ़िए.मैंने पढना शुरू किया.पहला पन्ना,दूसरा पन्ना, तीसरा पन्ना शिकायते ही शिकायते “आज शादी की वर्षगांठ पर मुझे ढंग का तोहफा नहीं दिया ”.

“आज होटल में खाना खिलाने का वादा करके भी नहीं ले गए “.

“आज जब शौपिंग के लिए कहा तो जवाब मिला की मैं बहुत थक गया हूँ “ ऐसी अनेक रोज़ की छोटी छोटी फरियादें लिखी हुई थी.ये सब पढ़कर मेरी आँखों में आंसू आ गए. मुझे एहसास हुआ की वाकई में इन औरतों की ज़िन्दगी हमारे इर्द-गिर्द ही घूमती है.मैंने कहा की मुझे पता ही नहीं था मेरी गलतियों का .मै ध्यान रखूंगा की आगे से  ऐसा न हो.

अब बारी उसकी थी .उसने मेरी डायरी खोली .

पहला पन्ना कोरा? दूसरा पन्ना कोरा? अब उसने दो,चार पन्ने साथ में पलटे  वो भी कोरे? फिर पचास –सौ पन्ने साथ में पलटे  वो भी कोरे?

उसने कहा कि मुझे पता था की आप  मेरी इतनी सी इच्छा भी पूरी नहीं कर सकेंगे .मैंने पूरा साल इतनी मेहनत से आपकी सारी  कमियां लिखी ताकि आप  उन्हें सुधार सको.

मै मुस्कुराया और मैंने कहा की मैंने सबकुछ अंतिम पन्ने पर लिख दिया है.उसने उत्सुकता से अंतिम पन्ना खोला उसमे मैंने लिखा था;- “मैं तुम्हारे मुंह पर तुम्हारी जितनी भी शिकायत कर लूं लेकिन तुमने मेरे और मेरे परिवार के लिये जो  त्याग किये है मैं उनकी भरपाई कभी नहीं कर सकता.

मैं इस डायरी में लिख सकूं ऐसी कोई कमी मुझे तुममे दिखाई नहीं दी.ऐसा नहीं है की तुममे कोई कमी नहीं है, लेकिन तुम्हारा प्रेम,तुम्हारा समर्पण,तुम्हारा त्याग उन सब कमियों से ऊपर है.मेरी अनगिनत भूलों के बाद भी तुमने जीवन के हर समय में मेरी छाया  बनकर मेरा साथ निभाया है.अब अपनी ही छाया में कोई दोष कैसे निकाल सकता है.” अब रोने की बारी उसकी थी .वो मेरे गले लगकर  बहुत रोई .शायद अब उसके सारे गिले शिकवे दूर हो चुके थे.

तभी अचानक phone की घंटी बजी . मैं अपने अतीत के उस खुशनुमा पल से बाहर आ चुका था .मैंने लपक कर phone उठाया .बेटे का phone था जिसने कहा की उसने शादी कर ली है अब वो परदेश में ही रहेगा.उसने कहा’पिताजी आपके बैंक के शून्य आप दोनों के लिए पर्याप्त होंगे ,आप आराम से अपना जीवन बिता लीजियेगा और अगर जरूरत पड़े तो वृदाश्रम चले जाइएगा  वहां आप लोगों की देखभाल हो जाएगी.’ और भी कुछ ओपचारिक बातें करके उसने phone रख दिया.

मैं वापस आकर कुर्सी पर बैठ गया उसकी भी दिया- बाती ख़त्म होने को आई थी .मैंने उसे आवाज़ दी “चलो आज फिर हाथों में हाथ लेकर बातें करते है.” वो तुरंत बोली “अभी आई “.उसने शेष पूजा की और मेरे पास आकर बैठ गयी.”बोलो क्या कह रहे थे “लेकिन मैंने कुछ नहीं कहा.उसने मेरे शरीर को छूकर देखा शरीर बिलकुल ठंडा पड़  गया था. “मैं उसकी ओर एक टक  देख रहा था “.

उसने मेरा ठंडा हाथ अपने हाथों में  लिया और बोली “चलो कहाँ घूमने चलना है तुम्हे?क्या बातें करनी है तुम्हे? “

बोलो !! ऐसा कहते हुए उसकी आँखे भर आई !! वो एकटक मुझे देखती रही.उसकी आँखों से आंसू बह निकले .मेरा सर उसके कंधे पर गिर गया . ठंडी हवा का झोका अब भी चल रहा था.

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जी हाँ दोस्तों ये तो सिर्फ एक कहानी है पर शायद ये बहुत से लोगों के जीवन ही हकीकत भी है . हम अपनी जिम्मेदारियों को निभाते -निभाते अपने जीवन साथी के लिए समय निकालना ही भूल जाते है .

पति पत्नी का रिश्ता बहुत ही प्यार भरा रिश्ता होता है. इसमें कई तरह की भावनाएँ होती हैं जैसे की प्यार, देखभाल, परवाह, लड़ना-मनाना व छोटी मोटी नोंक-झोंक. यह नोंक झोंक भी वहां होती हैं जहाँ प्यार होता है.

जीवनसाथी, जीवन की ऐसी आवश्यकता है, जिसे किसी भी कीमत पर नकारा नहीं जा सकता . वह आपको सहज महसूस कराने के लिए सब कुछ करेगा. आपका साथी हमेशा आपके मुश्किल समय में आपके साथ रहेगा . वो  हर कठिन परिस्थिति में आपके ठीक पीछे खड़ा होगा . आपका जीवनसाथी मृत्यु तक आपकी हर चीज का ख्याल रखेगा. सच्चाई ये है की जीवनसाथी के बिना जीवन बिलकुल अधूरा है

सब अपना अपना नसीब साथ लेकर आते हैं .इसलिए कुछ समय अपने लिए भी निकालो . जीवन अपना है ,जीने के तरीके भी अपने रखो .शुरुआत आज से करो क्यूंकि कल कभी नहीं आएगा.

“कभी कभी किसी से ऐसा रिश्ता बन जाता है कि हर चीज़ से पहले उसी का ख्याल आता  है”

बच्चे घर आएं तो न समझें मेहमान

पढ़ाई व नौकरी के सिलसिले में काफी बच्चे घर से बाहर रहने चले जाते हैं. मातापिता बच्चों  के उज्जवल भविष्य के लिए उन्हें भेज तो देते हैं लेकिन उन्हें हमेशा बच्चों के आने का इंतजार रहता है खासकर मां को. जब वे आते हैं तो मातापिता उन के लिए तरहतरह की तैयारियां करते हैं. बच्चों की हर इच्छा पूरी की जाती है. कभीकभी तो ऐसा भी होता है कि जब बच्चे आते हैं तब मातापिता इतना ज्यादा ध्यान रखने लगते हैं कि बच्चे को घर में ऊबन होने लगती है. वे चिड़चिड़ा व्यवहार करने लगते हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने वाली सपना कहती हैं, ‘‘जब मैं घर जाने वाली होती हूं तब 3-4 दिनों पहले से ही मेरी मम्मी फोन पर पूछने लगती हैं, क्या बनाऊं, तुझे क्या खाना है, कब आ रही है. जब मैं घर पहुंचती हूं तो हर 10 मिनट पर कहती रहती हैं ये खा लो, वो खा लो, अभी ये कर लो. 1-2 दिनों तक तो मुझे अच्छा लगता है, लेकिन फिर मुझे गुस्सा आने लगता है. गुस्से में कईर् बार मैं कह भी देती हूं कि क्या मम्मी, आप हमेशा ऐसे करती हैं, इसलिए मेरा घर आने का मन नहीं करता.’’

बच्चों के आने की खुशी में मांएं अकसर ऐसा करती हैं. यह ठीक है कि आप अपने बच्चे से बहुत प्यार करती हैं, घर आने पर उसे हर सुखसुविधा देना चाहती हैं लेकिन कईर् बार इस स्पैशल अटैंशन की वजह से बच्चे बिगड़ भी जाते हैं. उन्हें लगने लगता है कि वे घर जाएंगे तो उन की हर इच्छा पूरी होगी तो वे इस बात का फायदा उठाने लगते हैं. कभीकभी तो वे झूठ बोल कर चीजें खरीदवाने लगते हैं. बात नहीं मानने पर वे मातापिता से गुस्सा हो जाते हैं और घर नहीं आने की धमकी देने लगते हैं. इसलिए, जरूरी है कि आप संतुलन बना कर रखें. बच्चों के साथ सामान्य व्यवहार करें ताकि उन्हें यह न लगे कि वे अपने घर के बजाय किसी गैर के यहां मेहमान के रूप में रहने आए हैं.

क्या न करें

1. हर समय इर्दगिर्द रहने की कोशिश न करें

जब बच्चे घर आएं, उन से चिपके न रहें. हर समय उन के आसपास रहने की कोशिश न करें. इस बात को समझने की कोशिश करें कि अब आप के बच्चे अकेले रहते हैं, उन्हें अपने तरीके से जिंदगी जीने की आदत हो गई है. ऐसे में अगर आप रोकाटोकी करेंगी और हर बात के लिए पूछती रहेंगी कि क्या कर रहे हो, किस से चैट कर रहे हो, कौन से दोस्त से मिलने जा रहे हो, तो उन्हें अजीब लगेगा. वे आप के साथ रहना पसंद नहीं करेंगे. आप से कटेकटे रहेंगे. इसलिए उन्हें थोड़ा स्पेस दें. लेकिन हां, इस बात का ध्यान जरूर रखें कि वे आप से छिपा कर कोई गलत काम न कर रहे हों.

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2. गुस्से के डर से न भरें हामी

कई बच्चे ऐसे भी होते हैं कि जब पेरैंट्स उन की बात नहीं मानते तो वे गुस्सा हो जाते हैं, खानापीना छोड़ देते हैं. बच्चों की इन आदतों के चलते मातापिता उन की हर बात मान लेते हैं. वे नहीं चाहते कि छुट्टियों में बच्चे आए हैं तो किसी बात के लिए वे नाराज हों या गुस्सा करें और घर का माहौल खराब हो.

कई बार तो गुस्से के डर से मातापिता वैसी चीजों के लिए भी हामी भर देते हैं जो उन्हें पता है कि उन के बच्चे के लिए सही नहीं है. अगर आप ऐसा करते हैं तो करना बंद कर दें क्योंकि आप के ऐसा करने से बच्चे इस का फायदा उठा कर अपनी मनमानी करने लगते हैं.

3. हर वक्त खाना न बनाते रहें

बच्चे जब घर आते हैं तो मांएं सोचती हैं कि ज्यादा से ज्यादा चीजें बना कर खिलाएं. इसी वजह से वे अपना पूरा समय किचन में खाना बनाने में बिता देती हैं. कई बार तो ऐसा भी होता है कि वे कई तरह की डिशेज बनाती हैं लेकिन बच्चे कुछ भी नहीं खाते. ऐसे में वे उदास हो जाती हैं कि पता नहीं, क्यों नहीं खा रहा है, पहले तो रोता था ये चीजें खाने के लिए. लेकिन आज एक भी चीज नहीं खा रहा है.

उन का इस तरह से सोचना गलत है क्योंकि बाहर रहने पर बच्चों की खाने की आदत में थोड़ा बदलाव आ जाता है. वे एक बार में कई तरह की चीजें नहीं खा पाते हैं. इसलिए, बहुत सारी डिशेज बनाने के बजाय एक ही डिश बनाएं ताकि सब खा भी पाएं और वे अपने बच्चे के साथ क्वालिटी टाइम बिता सकें.

4. गलतियां कर के सीखने दें

घर आने पर बच्चों को राजकुमार या राजकुमारी की तरह न रखें, बल्कि उन्हें तरहतरह के काम करने दें ताकि गलतियां करें और सीखें. यह न सोचें कि 4 दिनों के लिए आए हैं और आप ऐसी चीजें करवा रही हैं, बल्कि अगर वे आप के सामने काम करते हुए गलतियां करते हैं तो आप उन्हें सिखा सकती हैं. जरा सोचिए अगर वे अकेले में ऐसी गलतियां करेंगे तो क्या होगा. इसलिए, बेहतर है कि उन्हें छोटेछोटे काम करना सिखाएं.

5. तारीफ न करते रहें

अगर आप का बच्चा किसी कालेज में पढ़ाई कर रहा है या किसी अच्छी कंपनी में जौब करता है तो इस का यह मतलब नहीं है कि आप सब के सामने हमेशा उस की तारीफ करते रहें. ऐसा करने से बच्चों के अंदर घमंड आ जाता है.

6. भावनाएं न दिखाएं बारबार

बच्चे से कभी भी न कहें कि हम सब तुम्हें बहुत याद करते हैं, तुम्हारी मां तुम्हारे जाने के बाद रोती रहती है, कोई नहीं होता जिस से वे बात कर सकें. अगर कभी बच्चा भी अपनी किसी समस्या के बारे में बताता है तो उस से न कहें कि घर वापस आ जा, क्या जरूरत है परेशान होने की. इस से बच्चे भावनात्मक रूप से कमजोर हो जाते हैं. ऐसा करने से आप भी दुखी होती हैं और बच्चे भी.

7. समय को ले कर न हों पाबंद

घर में हर काम समय पर किया जाता है लेकिन जरूरी नहीं है कि बच्चे भी वही टाइमटेबल अपनाएं. इसलिए उन पर ऐसा कोई दबाव न डालें कि सुबह 6 बजे उठना है, देररात में घर से बाहर नहीं निकलना है, रात में टीवी नहीं देखना है आदि. बल्कि, उन्हें घर पर रिलैक्स होने दें.

8. बच्चों में न करें फर्क

ऐसा न करें कि बड़े बच्चे के आते ही छोटे बच्चे को भूल जाएं. वह कुछ भी कहें तो यह न कह दें कि तुम  घर में ही रहते हो, तुम्हारी बहन इतने दिनों के बाद आई है. आप के ऐसा करने से बच्चों के बीच में दूरी आने लगती है. वे सोचते हैं कि इस के आते ही इसे तो स्पैशल ट्रीटमैंट मिलने लगता है और मुझ पर कोई ध्यान नहीं देता.

क्या करें

गलती करें तो हक से डांटें  :  बच्चे जब गलती करते हैं तब आप की जिम्मेदारी बनती है कि आप उसे अधिकारपूर्ण डांटे, क्योंकि आप की एक छोटी सी भूल या हिचक उस के आगे की जिंदगी खराब कर सकती है. इतना ही नहीं, अगर उस की कुछ गलत आदतों के बारे में आप को पता चले तो सोचने न बैठ जाएं कि आप का बच्चा गलत रास्ते पर चला गया है अब क्या करें. सोचने में समय बरबाद करने के बजाय उसे समझाने की कोशिश करें.

1. क्वालिटी टाइम दें

ऐसा न हो कि आप के बच्चे घर आएं तो भी आप अपने कामों में ही व्यस्त रहें, औफिस से देर से घर आएं, मेड से कह दें कि बच्चों का ध्यान रखें. ऐसा न करें क्योंकि आप के ऐसा करने से बच्चों को लगने लगता है कि घर आने से बेहतर तो वे वहीं रह लेते. इसलिए, बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं. बेशक आप 1 घंटा ही समय साथ बिताएं, लेकिन उन के साथ दोस्त की तरह व्यवहार करें ताकि वे आप के साथ एंजौय करें.

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2. जो बने वही खिलाएं

हर दिन कुछ स्पैशल बना कर बच्चों की आदत न बिगाड़ें. 1-2 दिन तो ठीक है लेकिन अगर आप हर समय स्पैशल खिलाती रहेंगी तो बच्चे की आदत बिगड़ जाएगी. जब वह वापस जाएगा तो वहां उसे ऐडजस्ट करने में समस्या होगी. उसे वहां का खाना अच्छा नहीं लगेगा.

3. पति की उपेक्षा न करें

बच्चे जब घर आते हैं तो सारा ध्यान इसी बात पर रहता है कि क्या बनाना है, बच्चों को क्या चाहिए. इन सब के बीच अगर पति कुछ कहते हैं तो आप का जवाब होता है कि हमेशा तो आप के लिए ही करती हूं, अभी तो मुझे मेरे बेटे के लिए करने दो. कुछ महिलाएं तो पति को पूरी तरह से इग्नोर कर देती हैं. आप ऐसा करने के बजाय दोनों को समय दें.

अगर आप अपने बच्चे को खास मेहमान समझती हैं तो इस के कई नुकसान हैं जिन के बारे में शायद ही आप का ध्यान कभी जाता होगा.

4. बच्चे होते हैं भावनात्मक रूप से कमजोर

घर पर मातापिता बच्चों को ढेर सारा प्यार देने की कोशिश करते हैं लेकिन वास्तव में वे ऐसा कर के बच्चों को भावनात्मक रूप से कमजोर बनाते हैं. जब बच्चे उन्हें छोड़ कर वापस जाते हैं तब उन का मन नहीं लगता. वे हर समय घर के बारे में ही सोचते रहते हैं. वे हर चीज की तुलना घर से करते हैं. ऐसे में उन्हें ऐडजस्ट करने में समस्या होती है.

5. बिगड़ता है बजट

बच्चों के आने पर उन के लिए तरहतरह के पकवान बनाती हैं, उन्हें शौपिंग करवाने ले कर जाती हैं, उन की पसंदीदा चीजें खरीदती हैं, लेकिन, इन सब चीजों से आप का बजट बिगड़ता है और बाद में आप को परेशानी होती है. कुछ मातापिता तो ऐसे भी होते हैं जो अपने बच्चों को खास ट्रीटमैंट देने के लिए पैसे उधार ले लेते हैं और बाद में उधार चुकाने में उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

कुल मिला कर बच्चे जब बाहर से आएं तो उन्हें समय दें, प्यार दें लेकिन जरूरत से ज्यादा नहीं. उन्हें मेहमान न बनाएं, न उन्हें मेहमान समझें ताकि वे अनुशासित ही रहें और उन में व आप के बीच स्नेह और भी बढ़े.

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न जाने क्यों बोझ हो जाते हैं वो झुके हुए कंधे

एक दिन एक 94 वर्ष के बुजुर्ग अपने बेटे के साथ पार्क में बैठे थे. अचानक एक  चिड़िया सामने के पेड़ पर आकार बैठ गयी. पिता ने उस चिड़िया को देखा और अपने बेटे से पूछा , “यह क्या है बेटा ?” बेटे ने जवाब दिया “यह एक चिड़िया है”.

कुछ मिनटों के बाद, पिता ने अपने बेटे से दूसरी बार पूछा, “यह क्या है?” बेटे ने कहा “अभी तो आपको बताया कि यह एक चिड़िया है”.

थोड़ी देर के बाद, बूढ़े पिता ने फिर से अपने बेटे से तीसरी  बार पूछा, यह क्या है? ”

इस बार बेटे ने बहुत ही बुरे तरीके से उन्हे जवाब दिया और बोला “यह एक , चिड़िया है, चिड़िया है, चिड़िया है”.

आप मुझसे बार- बार एक ही सवाल क्यों पूछते रहते है. मैंने आपको बार-बार बताया कि यह एक चिड़िया है. क्या आपको समझ में नहीं आ रहा? अब घर चलिये.

वो दोनों घर आ गए. बुजुर्ग अपने कमरे में चले गए . कुछ देर बाद वो अपनी पुरानी डायरी  लेकर वापस आए ,जिसमे उन्होने अपने लड़के का पूरा बचपन संगो रखा था . एक पेज खोलकर, उन्होंने अपने बेटे को उस पेज को पढ़ने के लिए कहा.

जब बेटे ने उसे पढ़ा तो उसकी आंखो से आँसू निकलने लगे . उसमे लिखा था- “आज मेरा तीन साल का छोटा बेटा पार्क में मेरे साथ बैठा था. जब पेड़ पर एक कौवा बैठा तब मेरे बेटे ने मुझसे 23 बार पूछा कि यह क्या है, और मैंने उसे 23 बार जवाब दिया कि यह एक कौवा है. मैंने उसे हर बार प्यार से गले लगाया और मैंने अपने मासूम बच्चे के लिए प्यार महसूस किया ”.

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जब एक बेटे द्वारा एक ही सवाल 23  बार पूछने से पिता को जवाब देने में कोई झंझलाहट नहीं हुई तो जब आज पिता ने अपने बेटे से सिर्फ 3 बार यही सवाल पूछा, तो बेटे को चिढ़ और गुस्सा क्यों आया ?

दर्द होता है यह देखकर की जिन माँ बाप ने हमें बोलना सिखाया आज हम उन्ही  को चुप करा देते है . जिन माँ बाप ने हमें ज़िन्दगी दी ,खुद की  खुशियों  को मिटा के भी हमें सब कुछ दिया ,आज उनसे बात करने के लिए हमारे पास समय नहीं है.

अपने व्यस्त जीवन में से थोड़ा समय निकाल कर अपने माँ बाप को दीजिये क्योंकि ये वही लोग हैं जिन्होंने आपकी बातें तब सुनी थी जब आप बोलना भी नहीं जानते थे .

कैसी विडम्बना है कि एक माँ बाप मिलकर 4 बच्चों  को पाल सकते है पर 4 बच्चे मिलकर एक माँ बाप को नहीं पाल  सकते. जिन माँ बाप ने अपना सारा जीवन अपने बच्चों  के लिए कुर्बान किया आज उन्ही के लिए हमारे घरों में जगह नहीं है .माँ बाप का साथ में रहना एक बंधन सा लगता है . किसी से पूछो की कैसे हो तो कहते है की बहुत काम बढ़ गया है क्योंकि माता पिता हमारे यहाँ रहने आये है .

जो कुछ भी आप अपने माँ बाप के साथ करोगे ,वो आपके बच्चे भी आपके साथ करेंगे .दुनिया गोल है जहाँ से घूमना शुरू  होती है वहीँ पर आकर रूकती है.

अपनी भावना को बदलिए और यह कहिये की हम अपने माता पिता के साथ रहते है और हमें इस बात पर गर्व है.

आपके माँ बाप ने बचपन में आपको शहजादे  की तरह रखा अब ये आपकी ज़िम्मेदारी है कि आप  उन्हें उनके बुढ़ापे में बादशाहों की तरह रखें.

माँ बाप की ज़िन्दगी गुजर जाती है आपकी जिंदगी बनाने में और बच्चा बड़ा होकर यह सवाल करता है कि  आपने  मेरे लिए किया ही  क्या? कभी भी अपनी ज़िन्दगी में अपनी सफलताओं का रौब अपने माँ बाप को मत  दिखाना क्योंकि उन्होंने अपनी  ज़िन्दगी हारकर तुमको जिताया है.

जब हम बड़े हो जाते हैं तब हम अपने जीवन के बड़े से बड़े फैसले खुद ही लेने लगते है ,एक बार भी अपने माँ बाप से पूछना जरूरी नहीं समझते पर याद रखिये  जिन घरों में पहले माँ बाप से सलाह नहीं ली  जाती, उन्ही घरों में बाद में वकीलों से सलाह ली जाती है.

माँ एक ऐसी बैंक है जहाँ आप हर दुःख, हर तकलीफ जमा करा सकते हैं और पिता एक ऐसा क्रेडिट कार्ड है जिनके पास अगर बैलेंस न भी हो तो भी आपके सारे सपने पूरा करने की कोशिश करता है.

दुनिया में हर इंसान अपना दुःख किसी न किसी से साझा कर ही लेता है लेकिन एक पिता ही है जो अपना दुःख किसी से साझा नहीं करता. वो आपको डांटकर अपने गुस्से को कभी -कभी दिखा तो देता है पर कभी रोकर अपने दर्द को बयान नहीं करता,क्योंकि उसको पता है आपके भविष्य की मजबूत डोर उसकी हिम्मत से है. आँसू उसके अन्दर भी है पर उसके हौसले का जवाब नहीं .

माँ-बाप के होने का एहसास कभी नहीं होता पर उनके ना होने का एहसास बहुत होता है. आप इस दुनिया में किसी के बारे में सोचे या न सोचे लेकिन  उन माँ- बाप के बारे में जरूर सोचना जो बिना थके, बिना रुके, बिना अपनी तकलीफ किसी को बताये ईश्वर से आपकी कामयाबी की गुहार लगाते हैं.

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जिस दिन आपके माता- पिता को आप पर गर्व हो,समझ लेना उस दिन आपने  दुनिया जीत ली. दुनिया भर के रिश्ते निभाकर यह जाना कि माँ बाप के सिवाय अपना कोई नहीं.इस दुनिया में बिना स्वार्थ के केवल माता पिता की प्यार कर सकते  हैं. ये सच्चाई जिन लोगों को मालूम है वो लोग बहुत खुशनसीब  है और जो ये नहीं जानते उनसे बड़ा बदनसीब कोई नहीं.

“लोग कहते है कि पहला प्यार भुलाया नहीं जा सकता पर पता नहीं क्यों हम अपनी ज़िन्दगी के पहले प्यार को ही भूल जाते है.”

आजादी से निखरती बेटियां

मैं कुछ दिन पहले एक मौल में शौपिंग कर रही थी. वहां 5 से 9-10 साल के बीच की 3 बहनों को देखा, जो अपने पिता के पीछेपीछे चलती हुईं रैक पर सजे सामान को छूतीं और फिर ललचाई निगाहों से पिता की ओर देखतीं. इतनी कम उम्र में हिजाब संभालती इन बच्चियों को देख साफ पता चल रहा था कि इन की बहुत कुछ लेने की इच्छा है पर खरीदा वही जाएगा जो इन का पिता चाहेगा. पिता धीरगंभीर बना अपनी धुन में सामान उठा ट्राली में रख रहा था. बच्चियों की मां पीछे गोद के बच्चे को संभालती चल रही थी. वह भी कुछ भी छूने से पहले पति की तरफ देखती थी.

अगलबगल कई और परिवार भी शौपिंग कर रहे थे, जिन की बेटियां अपनी मां को सुझाव दे रही थीं या पिता पूछ रहे थे कि कुछ और लेना है? उन हिजाब संभालती बच्चियों को हसरत भरी निगाहों से स्मार्ट कपड़ों में घूमती उन दूसरी आत्मविश्वासी लड़कियों को निहारते देख मेरे मन में आ रहा था कि न जाने वे क्या सोच रही होंगी. उन की कातरता बड़ी देर तक मन को कचोटती रही.

भेदभाव क्यों

इसी तरह देखती हूं कि घरों में लड़के अकसर ज्यादा अच्छे होते हैं. उच्च शिक्षा प्राप्त कर डाक्टर, इंजीनियर बनते हैं, जबकि उसी घर की लड़कियों को बहुत कम पढ़ा कर उन की शादी कर दी जाती है. ऐसा कैसे होता है कि लड़कियां ही कमजोर निकलती हैं उन के भाई नहीं? कारण है भेदभाव जो आज भी हमारे समाज में मौजूद है. बेटियों को ऊंचा सोचने के लिए आसमान ही नहीं मिलता है, बोलने की आजादी ही नहीं होती है, पाने को वह मौका ही नहीं मिलता है, जो उन के पंख पसार उड़ने में सहायक बने.

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एक आम धारणा है कि बेटियों को दूसरे घर जाना है. इसलिए उन्हें दबा कर रखना चाहिए. उन के मन की हर बात मान उन्हें बहकाना नहीं चाहिए, क्योंकि कल को जब वे ससुराल जाएंगी तो उन्हें तकलीफ होगी. बचपन से ही उन पर इतनी टोकाटाकी और पाबंदियां लगा दी जाती हैं कि उन का विश्वास कभी पनप ही नहीं पाता है.

आज भी उन से उम्मीद की जाती है कि वे वही काम करें, वैसा ही करें जो उन की मां, दादी या बूआ कर चुकी हैं. बच्चियों को हर क्षण एहसास दिलाया जाता है कि वे लड़कियां हैं और उन्हें इन अधिकारों का हक नहीं है, कहीं अकेले नहीं जा सकती हैं, अपनी पसंद के कपड़े नहीं पहन सकती हैं. उन्हें अपने पिता, भाई की हर बात माननी ही होगी. अपनी पसंद के विषय या खेल चुनना तो दूर की बात है.

ऐसा भी नहीं है कि समाज में बदलाव नहीं आया है. उच्चवर्ग और निम्नवर्ग तो हमेशा पाबंदियों और वर्जनाओं से दूर रहा है, यह सारी पाबंदियां, वर्जनाएं मध्य वर्ग के सिर हैं. शहरी मध्य वर्ग के लोगों की सोच में भी बहुत बदलाव आ चुका है, वे अपनी बेटियों को कम या ज्यादा आजादी दे रहे हैं. पूरी आजादी तो शायद ही अभी देश में किसी तबके और जगह की लड़कियों को मिली हो.

आजादी के माने

आजादी देने का मतलब छोटे कपड़े पहनना, शराब पीना या देर रात बाहर घूमना ही नहीं होता है. आजादी का मतलब है बेटी को ऐसे अधिकारों से लैस करना कि वह घरबाहर कहीं भी खुल कर अपनी बात रख सके. उस का ऐसा बौद्घिक विकास हो सके कि वह अपने जीवन के निर्णयों के लिए पिता, भाई या पति पर निर्भर न रहे. शिक्षा सिर्फ शादी के मकसद से न हो, सिर्फ धार्मिक पुस्तकों तक ही सीमित न हो, बल्कि बेटियों को इतना योग्य बनाना चाहिए ताकि वे आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़ी हो सकें.

बेटियों के गुण व रुझान की पहचान कर उन के विकास में सहयोग करना हर मातापिता का फर्ज है. नियम ऐसा हो कि एक बेटी ‘अपने लिए भी जीया जाता है,’ यह बचपन से सीख सके वरना यहां ससुराल और पति के लिए ही किसी बेटी का लालनपालन किया जाता है. अगर यही सोच सानिया मिर्जा, साइना नेहवाल या गीता फोगट के मातापिता की होती तो देश कितनी ही प्रतिभाओं के परिचय से भी वंचित रह जाता.

बदलाव थोड़ा पर अच्छा

बेटेबेटियों के लालनपालन का अंतर अब टूटता दिख रहा है. उन्हें परवरिश के दौरान ही इतनी छूट दी जा रही है कि वे भी अपने भाई की तरह अपनी इच्छाओं को जाहिर करने लगी हैं. शादी की उम्र भी अब खिंचती दिख रही है. पहले जैसे किसी लड़के के कमाने लायक होने के बाद ही शादी होती थी, आज अपनी बेटियों के लिए भी यही सोच बनने लगी है और इस का असर समाज में दिखने भी लगा है. चंदा कोचर, इंदु जैन, इंदिरा नूई, किरण मजूमदार आज लड़कियों की रोल मौडल बन चुकी हैं. परवरिश की सोच के बदलाव से बेटियों की प्रतिभा भी सामने आने लगी है.

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ह्यूमन कैपिटल देश की सब से कीमती संपत्ति है. बेटियों का विकास ही देश को विकसित बनाता है. यदि आधी आबादी पिछड़ी हुई है, तो देश का विकास भी नामुमकिन है. जरूरत है प्रतिभाओं के विकास और उन्हें सही दिशा देने की. फिर चाहे वह लड़का हो या लड़की, प्रतिभाओं को खोज उन्हें सामने लाना ही होगा. आजादी से निखरती ये बेटियां घरपरिवार, समाज के साथसाथ खुद और देश को भी विकसित कर रही हैं. अनैतिकता के नाम पर लड़कियों को काबू में रखने की कोशिश न करें. संस्कृति, धर्म और सुरक्षा के नाम पर जो रोकटोक लगाई जा रही है, वह भारी पड़ेगी.

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