Funny Husband Wife Stories : प्यार का एहसास पाने के नुसखे

  व्यंग्य- सुनीता चंद्रा

Funny Husband Wife Stories  : मैंअकेली पत्नी बेचारी, मुझे धुन चढ़ी कि प्रेम का एहसास पाऊं. इस एहसास को पाने के लिए मैं ने क्याक्या नहीं किया. अब आप पूछेंगे कि मुझे यह धुन चढ़ी क्यों? तो हुआ यों कि मैं बाल धो कर सजसंवर कर अपनी बालकनी में खड़ी थी तो युवकयुवती मेरी बालकनी के नीचे खड़े बातें कर रहे थे. अब कोई इतनी जोरजोर से बातें करेगा, तो मैं कान तो बंद नहीं कर सकती. बातें कुछ रोमांटिक थीं तो मैं भी ध्यान से सुनने लगी.

युवती कह रही थी कि भई, यह प्यार का एहसास भी क्या एहसास है, सबकुछ भुला देता है. सब नयानया लग रहा है. अपने पराए हो जाते हैं और जिसे कुछ दिन पहले मिले उस के लिए दुनिया भी छोड़ देने को तैयार…

अब मैं उन्हें सुनना छोड़ कर प्यार का एहसास क्या होता है, यह सोचने लग गई. भई, इतने साल हो गए मुझे क्यों नहीं यह एहसास हुआ अभी तक? अब मैं ने भी ठाना कि यह एहसास तो कर के ही रहूंगी.

अब मैं सजसंवर कर शाम को पति के आने का इंतजार करने लगी. पति आए और मैं झट से पेड़ की लता की माफिक उन से लिपट गई. पति बेचारे घबरा कर दूर हटे. मैं बेचारी प्यार के एहसास से महरूम उलटे पति के पसीने से तरबतर शरीर से आती बदबू से चकरा गई. मैं ने झट से अच्छा सा अपना मनपसंद परफ्यूम नथुनों से लगाया और सोचा, कोई बात नहीं, किला तो फतह कर के ही रहूंगी.

मैं ने अगले दिन रात के खाने में अच्छेअच्छे व्यंजन बनाए और फिर से पति का इंताजर करने लगी. पतिदेव आए, लेकिन साथ में ढेर सारे दोस्तों को ले कर और दरवाजे से ही आवाज लगाई, ‘‘अरे भई, देखो मेरे साथ कौनकौन आया है… ये सब आज तुम्हारे हाथों का बना खाना खा कर जाएंगे.’’

मैं अब अकेली पत्नी बेचारी. लंबी सांस भर कर रह गई. खैर, खाना बनाया गया. सब ने खाना खा कर खूब तारीफ की, डकार मारी और देर शाम तक खूब मस्ती की और फिर चले गए. मैं फिर प्यार के एहसास से कोसों दूर उलटे किचन में चारों तरफ बिखरे जूठे बरतन देख परेशान हो उठी.

अगले दिन मैं ने तय किया कि कुछ शौपिंग की जाए पति के साथ जा कर. हो सकता है वहीं कुछ प्यार का एहसास हो जाए. अब पतिदेव से कहा, ‘‘शाम को शौपिंग के लिए जाना है. कुछ जरूरी सामान लेना है. आप के साथ ही चलूंगी, इसलिए जल्दी आ जाना.’’

अभी महीने की शुरुआत थी, नईनई तनख्वाह आई थी हाथ में. सो उसे समेटा और अपनी जमापूंजी भी ली और चल पड़ी शौपिंग करने. मैं बड़े प्यार से इन की बांहो में बांह डाल कर पूरे बाजार से कुछ न कुछ खरीदती रही.

बाद में घर आ कर अपनी खरीदारी को देखा. मैं जो खरीद कर लाई थी उस की तो बिलकुल भी जरूरत नहीं थी. सोचा अब घर का बाकी खर्च कैसे चलेगा पर अगले ही पल मन को समझा लिया कि कोई बात नहीं. प्यार का एहसास तो करना ही था. फिर कुछ दिन शांत हो कर सोचा कि ऐसा क्या करूं कि मुझे भी प्यार का एहसास हो जाए. फिर एक आइडिया आया. पति के औफिस जाते ही एक बड़ा सा फूलों का गुलदस्ता पति के औफिस भेजा और एक प्यारा सा कार्ड भी. उस पर भी न जाने क्याक्या लिख डाला. फिर यह सोच कर बेसब्री से पति का इंतजार करने लगी कि वे आ कर जरूर अपनी खुशी का इजहार करेंगे और मुझे फिर प्रेम का एहसास हो ही जाएगा.

मगर यह क्या. पति आए, न कोई बात, न चेहरे पर कोई मुसकान, उलटे रोनी सूरत.

मैं ने पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

बोले, ‘‘पता नहीं किस ने आज औफिस में गुलदस्ता भेजा और साथ में एक कार्ड भी. कार्ड पर भी न जाने क्याक्या लिखा था. मेरे सपनों का राजा, मेरे जानू, वगैरहवगैरह.

‘‘2-4 बातें बौस के बारे में भी लिखी थीं कि खड़ूस? तुम से ओवरटाइम करवाता है, फालतू के काम भी लेता है. इसलिए मेरे लिए तुम्हारे पास वक्त ही नहीं है… और भी न जाने क्याक्या…

‘‘मेरे बौस मेरी मेज पर गुलदस्ता देख उस में से कार्ड निकाल कर सब के सामने चिल्लाचिल्ला कर पढ़ने लगे. शुक्र है उस पर भेजने वाले का नाम नहीं था, वरना आज मेरी नौकरी चली जाती.’’

अब मैं रोंआसी हो गई. यह देख पतिदेव बोले, ‘‘भई, तुम क्यों उदास होती हो? मेरी नौकरी थोड़ी ही चली गई है. फिर वह गुलदस्ता तुम ने थोड़े ही भेजा था.’’

मैं संभल कर कुछ देर बाद धीरे से बोली, ‘‘वह मैं ने ही भेजा था. मैं अपना नाम लिखना भूल गई थी.’’

इतना सुनना था कि वे चिल्लाने के लिए तत्पर हुए, पर

फिर शांत हो कर पूछा तो मैं ने सब उगल दिया.

सुन कर जोर से हंसे और बोले, ‘‘तो यह बात है. तभी मैं सोचूं कि तुम यह कैसा व्यवहार कर रही हो. मैं ने तो सोच लिया था कि तुम्हें डाक्टर के पास ले जाना पड़ेगा.’’

वे और भी न जाने क्याक्या बोलते रहे और मैं प्यार का एहसास पाने के अगले नुसखे के बारे में सोच रही हूं. पाठको, आप को भी यदि कोई उपाय सूझे तो मुझे जरूर लिखना.

Best Hindi Satire : खाट बाबा की खाट खड़ी

व्यंग्य- गोविंद शर्मा

Best Hindi Satire : रामधन भागा जा रहा था. मैं ने उसे रोक कर पूछा, ‘‘भई, यह किस दौड़ प्रतियोगिता में भाग ले रहे हो?’’ ‘‘तुम्हें नहीं पता, अपने गांव के पास खाट बाबा आ रहे हैं? उन के ही दर्शन करने जा रहा हूं,’’ वह बोला.

‘‘खाट बाबा?’’

‘‘हां…हां, खाट बाबा. वह हमेशा 2 खाटों के बीच में रहते हैं.’’

‘‘2 पाटों के बीच में रहते हैं, फिर भी साबुत हैं?’’

‘‘अरे भई, 2 पाटों के बीच में नहीं, 2 खाटों के बीच में. तुम खुद ही चल कर देख लो.’’

मैं भी उस के साथ हो लिया. गांव के बाहर खडे़ वटवृक्ष के पास भारी भीड़ जुड़ी हुई थी. सभी खाट बाबा की बातें कर रहे थे. एक कह रहा था, ‘‘अरे, तुम लोगों ने देखा होगा कि मेरे शरीर में जगहजगह कोढ़ हो गया था?’’

किसी ने भी उस के शरीर में कोढ़ देखने की हां नहीं भरी, पर वह निरुत्साहित नहीं हुआ. बोला, ‘‘सारी दुनिया ने देखा था कि मेरे शरीर में कोढ़ हो गया है. मैं ने खाट बाबा की चरणधूलि अपने शरीर पर लगाई, बाबा के 7 दिन तक लगातार दर्शन किए. वह कोढ़ छूमंतर हो गया.’’

एक और बोला, ‘‘बाबा के शरीर में बड़ी शक्ति है. उस शक्ति के कारण ही वह हमेशा 2 खाटों के बीच में रहते हैं. अगर बाबा खाट पर न बैठें तो अपनी शक्ति के कारण धरती में धंस जाएं. अगर छतरी की तरह उन के सिर पर खाट न हो तो आकाश में उड़ जाएं. मूंज की खाट में छेद होते हैं न, इसलिए धरती और आकाश से शक्ति का संतुलन बना रहता है. कहते हैं, पिछले जन्म में बाबा ने एक बार सिर पर खाट

नहीं रखने दी थी. वह सीधे आकाश

की ओर उड़ चले. सिर की

टक्कर आकाश

को लगी और आकाश में छेद हो गया. वह छेद यहां से दिखाई नहीं देता, पर उस का वैज्ञानिक सुबूत मिल गया है. एक बार पिछले साल और एक बार इस साल अमेरिका के 2 उपग्रह बेकाबू हो गए थे. इस का कारण उस छेद में से आने वाली गरम हवा है.

‘‘एक बार एक जन्म में बाबा खाट से नीचे उतर आए थे. धरती में ऐसे धंसे कि दूसरी तरफ निकल गए. वहां अमेरिका था. बाद में उसी रास्ते से भारत से अमेरिका जा कर अर्जुन द्वारा हथियार लाया गया था और महाभारत का युद्ध लड़ा गया था. आज भी लोग अमेरिका से हथियार लाते हैं. जनता को इन मुसीबतों से बचाने के लिए अब बाबा न तो खाट से नीचे पांव रखते हैं और न अपने सिर पर से खाट हटाने देते हैं.’’

मैं बाबा का गुणगान करने वाले उस भूतपूर्व कोढ़ी के पास गया. मैं ने उस से पूछा, ‘‘तुम्हें बाबा की चरणधूलि कहां से मिली? बाबा तो धूल में पांव रखते ही नहीं.’’

मेरे प्रश्न पर वह जोरों से हंसा और सब लोगों को मेरा प्रश्न सुनाया, ‘‘अरे भई, हो तो तुम दोपाए, मगर चौपायों से कम अक्ल वाले हो. दूसरे बाबाओं की तो 2 पांवों की धूल होती है. खाट बाबा की 4 पांवों की धूल जनकल्याण के लिए उपलब्ध है. वह खाट पर बैठते हैं. खाट चारपाई होती है. खाट के चारों पायों की धूल अमृत समान है.’’

मेरी अज्ञानता और उस की ज्ञानशीलता से सभी ग्रामीण प्रभावित हो गए. सब खाट बाबा का स्मरण करते हुए बेसब्री से उन का इंतजार करने लगे.

दूर से जयजयकार का शोर सुनाई दिया, ‘खाट बाबा आ गए.’ ‘खाट बाबा आ गए’ कहते हुए लोग उन की तरफ भागे. मैं भी भीड़ में शामिल था. मैं ने उस भूत-पूर्व  कोढ़ी को

ढूंढ़ा और पूछा, ‘‘खाट बाबा इस गांव में कहां ठहरेंगे?’’

‘‘वह खाट पर ही ठहरते हैं.’’

‘‘उन की खाट कहां ठहरेगी?’’

‘‘जहां धरती में भगवान होंगे. जिस  जगह धरती में भगवान होंगे, वहां की धरती शक्तिशाली होगी, पवित्र होगी. खाट बाबा का खाटविमान वहीं उतरेगा.’’

‘‘लेकिन यह कैसे पता चलेगा कि अमुक जगह धरती में भगवान हैं?’’

‘‘यह तुम्हें या मुझे पता नहीं चलेगा, खाट बाबा को पता चलेगा. धरती में छिपे भगवान से निकलने वाली सूक्ष्म तरंगों को बाबा का मस्तिष्क तुरंत पकड़ लेगा. बाबा ने इस तरह अब तक 13 स्थानों पर भगवान की तलाश की है. यह 14वां भाग्यशाली गांव है. यहां धरती में भगवान मिलेंगे. बाबा वहां एक मंदिर बनवाएंगे.’’

‘‘क्या बाबा के पास इतना पैसा है कि वह जगहजगह मंदिर बनवा दें?’’

‘‘बाबा तो अपने पास फूटी कौड़ी भी नहीं रखते. वह तो आशीर्वाद और चरणधूलि से लोगों का भला करते हैं. लोग ही चंदा जमा कर के मंदिर बनवाते हैं. इस गांव के पास जहां भगवान निकलेंगे वहां इस गांव के निवासी ही धनसंग्रह कर मंदिर बनवाएंगे.’’

तो यह चक्कर है, बाबा धनसंग्रह करने आए हैं. सूखे के कारण सरकार ने लोगों के कर्ज माफ कर दिए. बैंकों ने जो कर्ज दिया था वह भी उन्होंने बट्टेखाते में डाल दिया. दुकानदार भी भूल गए कि किसकिस से उधार वापस लेना है, पर धर्म नहीं भूला, धर्मात्मा नहीं भूले. वह अपना कर्ज वसूलने आ ही गए. गांव में सूखा पड़े चाहे बाढ़ आए, युद्ध हो या कोई और आपदा, धर्म का कर्ज तो चुकाना ही पडे़गा.

दूर से खाट बाबा की सवारी आती दिखाई दी. एक खाट पर बाबा बैठे थे. उसे 4 भक्तों ने कंधों पर उठा रखा था. एक अन्य खाट के पायों के साथ लाठियां बांध कर उसे छतरीनुमा बना रखा था. उसे भी भक्तों ने उठा रखा था.

लोग बाबा की जयजयकार करने लगे. बाबा के चरणों में नकदी चढ़ाने लगे. चूंकि बाबा उस को हाथ नहीं लगाते हैं, इसलिए उन के चेले यह नकदी उठाउठा कर पीछे की खाटों पर रखने लगे. उन खाटों को भी भक्तों ने उठा रखा था.

यह जलुस पहले गांव के भीतर गया और फिर गांव से बाहर हो गया. जिस तरह पुलिस के कुत्ते अपराधियों को सूंघते फिरते हैं वैसे ही खाट पर बैठेबैठे बाबा उस जगह को सूंघते फिर रहे थे जहां धरती में भगवान छिपा बैठा था.

गांव के बाहर अचानक बाबा ने ‘जय श्री भगवान’ कहा. काफिला वहीं रुक गया. पेड़ के नीचे बाबा की खाट रख दी गई. बाबा ने एक जगह की ओर इशारा किया कि यहां धरती में भगवान हैं. तीसरे दिन खुदाई होगी.

वहां सारा गांव उमड़ पड़ा. देखतेदेखते कनात और शामियाने लग गए. बाबा के भक्तों के लिए शानदार खाद्यपदार्थ आने लगे. भजनकीर्तन होने लगे.

तीसरे दिन तो आसपास के गांवों के लोग भी आ गए. पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी भी आ गए. जिलाधीश और पुलिस अधीक्षक ने बाबा के चरण स्पर्श किए. जिलाधीश को पुत्र की इच्छा थी और अधीक्षक को पुत्रों को सुधारने की. बाबा ने दोनों को आशीर्वाद दिया. खुदाई शुरू हो गई.

‘टन्न.’ किसी लोहे की वस्तु से कुदाल टकराई. बाबा के कान खडे़ हो गए. पत्थर की मूर्ति निकलनी थी, यह धातु की आवाज कैसी?

जमीन में से बड़ी देगची निकली. उसे देख कर एक ग्रामीण चिल्लाया, ‘‘अरे, यह तो हमारी है. इस में हम दलिया बनाया करते थे. यह तो 5 दिन पहले कोई चुरा ले गया था.’’

‘‘चुप कर,’’ एक भक्त ने उसे डपट दिया. बेचारा ग्रामीण चुप हो गया. कुछ देर बाद जमीन में से एक और बरतन निकला. फिर एक रेडियो निकला. रेडियो देख कर एक बच्चा चिल्ला पड़ा, ‘‘यह तो हमारा है. 5 दिन पहले चोरी चला गया था.’’

एकएक कर घरेलू सामान निकलता रहा. इस गांव में 5 दिन पहले कई घरों में चोरियां हुई थीं. सारा सामान वही था. बाबा परेशान हो गए. लोग अपनाअपना समान पहचानने लगे.

इतने में वहां शोर मच गया. एक थानेदार एक चोर को पकड़ कर वहां लाए. पुलिस अधीक्षक ने पूछा, ‘‘क्या माजरा है?’’

थानेदार ने बताया, ‘‘यह आदमी 5 दिन पहले इस गांव में कई घरों में चोरियां कर चुका है. इस का कहना है कि जब वह यह सामान ले कर गांव से बाहर जा रहा था तब कोई आदमी जमीन खोद कर कुछ दबा रहा था. उस के जाने के बाद इस ने वहां जमीन खोदी तो भगवान की पत्थर की एक मूर्ति निकली.’’

‘‘इस ने सोचा यह मूर्ति पुराने जमाने की होगी, तस्करों और विदेशियों के हाथ बड़ी महंगी बिकेगी. इस ने वह मूर्ति निकाल कर अपने थैले में डाल ली तथा चोरी का सामान उस गड्ढे में दबा दिया. मैं ने इसे पकड़ लिया था. आज चोरी का सामान बरामद करने आया हूं.’’

यह सुन कर खाट बाबा के होश उड़ गए. वह यही तो करते थे. गांव में बाहर किसी जगह पत्थर की मूर्ति जमीन में गड़वा देते थे फिर कहते थे कि यहां भगवान निकलेंगे.

अचानक गांव वालों का ध्यान बाबा की ओर गया. देखा, खाट बाबा और उन के भक्त खाट छोड़छोड़ कर भाग रहे हैं. न धरती फट रही है और न आसमान में तरेड़ आ रही है. खाट बाबा की खाट खड़ी हो रही है.

मैं ने उस चोर के चरण स्पर्श किए और कहा, ‘‘तुम चोर नहीं, लाट बाबा हो. तुम्हें देख कर खाट बाबा भाग गए.’’

पीछे बहुत सी खाटें रह गई थीं. अब उन्हें गांव वाले और प्रशासन वाले आपस में बांट रहे थे.

Comedy : रिंग टोन्स के गाने, बनाएं कितने अफसाने

Comedy : मैं जैसे ही घर में घुसा कि पप्पू की भुनभुनाहट सुनाई दी, ‘‘जमाना कहां से कहां पहुंच रहा है और एक पापा हैं कि वहीं के वहीं अटके हैं. कब से कह रहा हूं कि इस टंडीरे को हटा कर मोबाइल फोन ले लो, पर नहीं, चिपके रहेंगे अपने उन्हीं पुराने बेमतलब, बकवास सिद्धांतों से. मेरे सभी दोस्तों के पापा अपने पास एक से बढ़ कर एक मोबाइल रखते हैं और जाने क्याक्या बताते रहते हैं वे मुझे मोबाइल के बारे में. एक मैं ही हूं जिसे ढंग से मोबाइल आपरेट करना भी नहीं आता.’’

अंदर से अपने लाड़ले का पक्ष लेती हुई श्रीमतीजी की आवाज आई, ‘‘अब घर में कोई चीज हो तब तो बच्चे कुछ सीखेंगे. घर में चीज ही न होगी तो कहां से आएगा उसे आपरेट करना. वह तो शुक्र मना कि मैं थी तो ये 2-4 चीजें घर में दिख रही हैं, वरना ये तो हिमालय पर रहने लायक हैं… न किसी चीज का शौक न तमन्ना…मैं ही जानती हूं किस तरह मैं ने यह गृहस्थी जमाई है. चार चीजें जुटाई हैं.’’

श्रीमतीजी की आवाज घिसे टेप की तरह एक ही सुर में बजनी शुरू हो उस से पहले ही मैं ने सुनाने के लिए जोर से कहा, ‘‘घर में घुसते ही गरमगरम चाय के बजाय गरमागरम बकवास सुनने को मिलेगी यह जानता तो घर से बाहर ही रहता.’’

श्रीमतीजी दांत भींच कर बोलीं, ‘‘आते ही शुरू हो गया नाटक. जब घर में कोई चीज लेने की बात होती है तो ये घर से बाहर जाने की सोचना शुरू कर देते हैं.’’

मैं कुछ जवाब देता इस से पहले ही अपना पप्पू बोल पड़ा, ‘‘पापा, ये लैंड लाइन फोन आजकल किसी काम के नहीं रहे हैं. आजकल तो सभी कंपनियां बेहद सस्ते दामों पर मोबाइल उपलब्ध करवा रही हैं. आप अब एक मोबाइल फोन ले ही लो.’’

इस तरह मैं श्रीमतीजी और पप्पू के बनाए चक्रव्यूह में ऐसा फंसा कि मुझे मोबाइल फोन लेना ही पड़ा. अब जितनी देर मैं घर में रहता हूं, पप्पू मोबाइल से चिपका रहता है. पता नहीं कहांकहां की न्यूज निकालता, मुझे सुनाता. एसएमएस और गाने तो उस के चलते ही रहते.

यह सबकुछ कुछ दिनों तक तो मुझे भी बड़ा अच्छा लगा था, कहीं भी रहो, कभी भी, कैसे भी, किसी से भी कांटेक्ट  कर लो. पर कुछ ही दिनों में उलझन सी होने लगी. कहीं भी, कभी भी, किसी का भी फोन आ जाता. थोड़ी देर की भी शांति नहीं. सच तो यह है कि मोबाइल पर बजने वाली रिंग टोन मुझे परेशानी में डालने लगी थी.

एक दिन मेरे दफ्तर में एक जरूरी मीटिंग थी कि कंपनी की सेल को कैसे बढ़ाया जाए. सुझाव यह था कि कर्मचारियों के काम के घंटे बढ़ा दिए जाएं और उन्हें कुछ बोनस दे दिया जाए. अभी इस पर बातचीत चल ही रही थी कि मेरा मोबाइल बजा, ‘…बांहों में चले आओ हम से सनम क्या परदा…’

मीटिंग में बैठे लोग मूंछों में हंसी दबा रहे थे और मैं खिसिया रहा था. फोन घर से था. मैं ने फोन सुनने के बजाय स्विच आफ कर दिया. मुझे लगा कि मेरे ऐसा करने से वे समझ जाएंगे कि मैं किसी काम में व्यस्त हूं. पर नहीं, जैसे ही मैं ने सहज होने का असफल प्रयास करते हुए चर्चा शुरू करने की कोशिश की, रिंग टोन फिर से सुनाई पड़ी, ‘…बांहों में चले आओ…’

‘‘सर,’’ मीटिंग में मौजूद एक सज्जन बोले, ‘‘लगता है आज भाभीजी आप को बहुत मिस कर रही हैं. हमें कोई एतराज नहीं अगर इस मीटिंग को हम कल अरेंज कर लें.’’

मैं ने हाथ के इशारे से उन्हें रोकते हुए जल्दी से फोन उठाया और जरा गुस्से से भर कर बोला, ‘‘क्या आफत है, जल्दी बोलो. मैं इस समय एक जरूरी मीटिंग में हूं.’’

‘‘कुछ नहीं. मैं  कह रही थी कि आज शाम को मेरी कुछ सहेलियां आ रही हैं तो आप आते समय बिल्लू चाट भंडार से गरम समोसे लेते आना,’’ श्रीमतीजी गरजते स्वर में बोलीं.

अब मौजूद सदस्यों की व्यंग्यात्मक हंसी के बीच चर्चा आगे बढ़ाने की मेरी इच्छा ही नहीं हुई सो मीटिंग बरखास्त कर दी. घर आ कर मैं ने पप्पू को आड़े हाथों लिया कि मेरे मोबाइल पर फिल्मी गानों की रिंग टोन लेने की जरूरत नहीं है, सीधीसादी कोई रिंग टोन लगा दे, बस. बेटे ने सौरी बोला और चला गया.

अगले दिन मुझे एक गांव में परिवार नियोजन पर भाषण देने जाना था. अपने भाषण से पहले मैं कुछ गांव वालों के बीच बैठा उन्हें  यह समझा रहा था कि ज्यादा बच्चे हों तो व्यक्ति न उन की देखभाल अच्छी तरह से कर सकता है न उन्हें अच्छे स्कूल में पढ़ा सकता है. बच्चे ज्यादा हों तो घर में एक तरह से शोर ही मचता रहता है और अधिक बच्चों का असर घर की आर्थिक स्थिति पर भी पड़ता है.

अभी मैं और भी बहुत कुछ कहता कि मेरे मोबाइल की रिंग टोन बज उठी, ‘बच्चे मन के सच्चे, सारे जग की आंख के तारे….’ और इसी के साथ वहां मौजूद सभी गांव वाले खिलखिला कर हंस पड़े. कल ही पप्पू को रिंग टोन बदलने के लिए डांटा था तो वह मुझे इस तरह समझा रहा था कि बच्चों को डांटो मत. इच्छा तो मेरी हुई कि मोबाइल पटक दूं पर खुद पर काबू पाते हुए मैं ने कहा, ‘‘बच्चे 1 या 2 ही अच्छे होते हैं. ज्यादा नहीं,’’ और फोन सुनने लगा.

घर पहुंचने पर मैं ने बेटे को फिर लताड़ा तो वह बिना कुछ बोले ही वहां से हट गया. मेरे साथ दिक्कत यह थी कि मुझे अच्छी तरह से मोबाइल आपरेट करना नहीं आता था. मुझे सिर्फ फोन सुनने व बंद करने का ही ज्ञान था. इसलिए भी रिंग टोन के लिए मुझे बेटे पर ही निर्भर रहना पड़ता था. अब उसे डांटा है तो वह बदल ही देगा यह सोचता हुआ मैं वहां से चला  गया था.

हमारी कंपनी ने मुंबई के बाढ़  पीडि़तों को राहत सामग्री पहुंचाने का जिम्मा लिया था. सामग्री बांटने के दौरान मैं भी वहां मौजूद था जहां वर्षा से परेशान लोग भगवान को कोसते हुए चाह रहे थे कि बारिश बंद हो. तभी मेरे मोबाइल की रिंग टोन पर यह धुन बज उठी, ‘बरखा रानी जरा जम के बरसो…’

यह रिंग टोन सुन कर लोगों के चेहरों पर जो भाव उभरे उसे देख कर मैं फौरन ही अपने सहायक को बाकी का बचा काम सौंप कर वहां से हट गया.

अब की बार मैं ने पप्पू को तगड़ी धमकी दी और डांट की जबरदस्त घुट्टी पिलाई कि अब अगर उस ने सादा रिंग टोन नहीं लगाई तो मैं इस मोबाइल को तोड़ कर फेंक दूंगा.

कुछ दिनों तक सब ठीकठाक चलता रहा. मैं निश्ंिचत हो गया कि अब वह रिंग टोन से बेजा छेड़छाड़ नहीं करेगा.

एक सुबह उठा तो पता चला कि हमारे घर से 2 घर आगे रहने वाले श्यामबाबू का 2 घंटे पहले हृदयगति रुक जाने से देहांत हो गया है. आननफानन में मैं वहां पहुंचा. बेहद गमगीन माहौल था. लोग शोक में डूबे मृतक के परिवार के लोगों को सांत्वना दे रहे थे कि तभी मेरे मोबाइल की रिंग टोन बज उठी, ‘चढ़ती जवानी मेरी चाल मसतानी…’

मैं लोगों की उपहास उड़ाती नजरों से बचते हुए फौरन घर पहुंचा और पहले तो बेटे को बुरी तरह से डांट लगाई फिर वहीं खड़ेखड़े उस से रिंग टोन बदलवाई.

अब पप्पू ने मेरे मोबाइल से छेड़छाड़ तो बंद कर दी है पर घर में उस ने एक नई तान छेड़ दी है कि अब मुझे भी मोबाइल चाहिए. क्योेंकि मेरे सभी दोस्तों के पास मोबाइल है. सिर्फ एक मैं ही ऐसा हूं जिस के पास मोबाइल नहीं है. मेरे पास अपना मोबाइल होगा तो मैं जो गाना चाहूं अपने मोबाइल की रिंग टोन पर फिट कर सकता हूं.

श्रीमतीजी हर बार की तरह इस बार भी बेटे के पक्ष में हैं और मैं सोच रहा हूं कि मैं तो बिना मोबाइल के ही भला हूं. क्यों न विरासत मेें रिंग टोन के साथ यही मोबाइल बेटे को सौंप दूं.

Comedy Story In Hindi : कहो, कैसी रही चाची

Comedy Story In Hindi : लड़की लंबी हो, मिल्की ह्वाइट रंग हो, गृहकार्य में निपुण हो… ऐसी बातें तो घरों में तब खूब सुनी थीं जब बहू की तलाश शुरू होती थी. जाने कितने फोटो मंगाए जाते, देखे जाते थे.

फिर लड़की को देखने का सिलसिला शुरू होता था. लड़की में मांग के अनुसार थोड़ी भी कमी पाई जाती तो उसे छांट दिया जाता. यों, अब सुनने में ये सब पुरानी बातें हो गई हैं पर थोड़े हेरफेर के साथ घरघर की आज भी यही समस्या है.

अब तो लड़कियों में एक गुण की और डिमांड होने लगी है. मांग है कि कानवेंट की पढ़ी लड़की चाहिए. यह ऐसी डिमांड थी कि कई गुणसंपन्न लड़कियां धड़ामधड़ाम गिर गईं.

अच्छेअच्छे वरों की कतार से वे एकदम से बाहर कर दी गईं. उन में कुंभी भी थी जो मेरे पड़ोस की भूली चाची की बेटी थी.

‘‘कानवेंट एजुकेटेड का मतलब?’’ पड़ोस में नईनई आईं भूली चाची ने पूछा, जो दरभंगा के किसी गांव की थीं.

‘‘अंगरेजी जानने वाली,’’ मैं ने बताया.

‘‘भला, अंगरेजी में ऐसी क्या बात है भई, जो हमारी हिंदी में नहीं…’’ चाची ने आंख मटकाईं.

‘‘अंगरेजी स्कूलों में पढ़ने वाली लड़कियां तेजतर्रार होती हैं. हर जगह आगे, हर काम में आगे,’’ मैं ने उन्हें समझाया, ‘‘फटाफट अंगरेजी बोलते देख सब हकबका जाते हैं. अच्छेअच्छों की बोलती बंद हो जाती है.’’

‘‘अच्छा,’’ चाची मेरी बात मानने को तैयार नहीं थीं, इसलिए बोलीं, ‘‘यह तो मैं अब सुन रही हूं. हमारे जमाने की कई औरतें आज की लड़कियों को पछाड़ दें. मेरी कुंभी तो अंगरेजी स्कूल में नहीं पढ़ी पर आज जो तमाम लड़कियां इंगलिश मीडियम स्कूलों में पढ़ रही हैं, कुछ को छोड़ बाकी तो आवारागर्दी करती हैं.’’

‘‘छी…छी, ऐसी बात नहीं है, चाची.’’

‘‘कहो तो मैं दिखा दूं,’’ चाची बोलीं, ‘‘घर से ट्यूशन के नाम पर निकलती हैं और कौफी शौप में बौयफे्रंड के साथ चली जाती हैं, वहां से पार्क या सिनेमा हाल में… मैं ने तो खुद अपनी आंखों से देखा है.’’

‘‘हां, इसी से तो अब अदालत भी कहने लगी है कि वयस्क होने की उम्र 16 कर दी जाए,’’ मैं ने कुछ शरमा कर कहा.

‘‘यानी बात तो घूमफिर कर वही हुई. ‘बालविवाह की वापसी,’’’ चाची बोलीं, ‘‘अच्छा छोड़ो, तुम्हारी बेटी तो अंगरेजी स्कूल में पढ़ रही है, उसे सीना आता है?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘खाना पकाना?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘चलो, गायनवादन तो आता ही होगा,’’ चाची जोर दे कर बोलीं.

‘‘नहीं, उसे बस अंगरेजी बोलना आता है,’’ यह बताते समय मैं पसीनेपसीने हो गई.

चाची पुराने जमाने की थीं पर पूरी तेजतर्रार. अंगरेजी न बोलें पर जरूरत के समय बड़ेबड़ों की हिम्मत पस्त कर दें.

उस दिन चाची के घर जाना हुआ. बाहर बरामदे में बैठी चाची साड़ी में कढ़ाई कर रही थीं. खूब बारीक, महीन. जैसे हाथ नहीं मकड़ी का मुंह हो.

‘‘हाय, चाची, ये आप कर रही हैं? दिखाई दे रहा है इतना बारीक काम…’’

‘‘तुम से ज्यादा दिखाई देता है,’’ चाची हंस कर बोलीं, ‘‘यह तो आज दूसरी साड़ी पर काम कर रही हूं. पर बिटिया, मुझे अंगरेजी नहीं आती, बस.’’

मैं मुसकरा दी. फिर एक दिन देखा, पूरे 8 कंबल अरगनी पर पसरे हैं और 9वां कंबल चाची धो रही हैं.

‘‘चाची, इस उम्र में इतने भारीभारी कंबल हाथ से धो रही हैं. वाशिंगमशीन क्यों नहीं लेतीं?’’

‘‘वाशिंगमशीन तो बहू ने ले रखी है पर मुझे नहीं सुहाती. एक तो मशीन से मनचाही धुलाई नहीं हो पाती, कपड़े भी जल्दी पतले हो जाते हैं, कालर की गंदगी पूरी हटती नहीं जबकि खुद धुलाई करने पर देह की कसरत हो जाती है. एक पंथ दो काज, क्यों.’’

चाची का बस मैं मुंह देखती रही थी. लग रहा था जैसे कह रही हों, ‘हां, मुझे बस अंगरेजी नहीं आती.’

उस दिन बाजार में चाची से भेंट हो गई. तनु और मैं केले ले रही थीं. केले छांटती हुई चाची भी आ खड़ी हुईं. मैं ने 6 केलों के पैसे दिए और आगे बढ़ने लगी.

चाची, जो बड़ी देर से हमें खरीदारी करते देख रही थीं, झट से मेरा हाथ पकड़ कर बोलीं, ‘‘रुक, जरा बता तो, केले कितने में लिए?’’

‘‘30 रुपए दर्जन,’’ मैं ने सहज बता दिया.

‘‘ऐसे केले 30 रुपए में. क्या देख कर लिए. तू तो इंगलिश मीडियम वाली है न, फिर भी लड़ न सकी.’’

‘‘मेरे कहने पर दिए ही नहीं. अब छोड़ो भी चाची, दोचार रुपए के लिए क्या बहस करनी,’’ मैं ने उन्हें समझाया.

‘‘यही तो डर है. डर ही तो है, जिस ने समाज को गुंडों के हवाले कर दिया है,’’ इतना कह कर चाची ने तनु के हाथ से केले छीन लिए और लपक कर वे केले वाले के पास पहुंचीं और केले पटक कर बोलीं, ‘‘ऐसे केले कहां से ले कर आता है…’’

‘‘खगडि़या से,’’ केले वाले ने सहजता से कहा.

‘‘इन की रंगत देख रहा है. टी.बी. के मरीज से खरीदे होंगे 5 रुपए दर्जन, बेच रहा है 30 रुपए. चल, निकाल 10 रुपए.’’

‘‘अब आप भी मेरी कमाई मारती हो चाची,’’ केले वाला घिघिया कर बोला, ‘‘आप को 10 रुपए दर्जन के भाव से ही दिए थे न.’’

‘‘तो इसे ठगा क्यों? चल, निकाल बाकी पैसे वरना कल से यहां केले नहीं बेच पाएगा. सारा कुछ उठा कर फेंक दूंगी…’’

और चाची ने 10 रुपए ला कर मेरे हाथ में रख दिए. मैं तो हक्कीबक्की रह गई. पतली छड़ी सी चाची में इतनी हिम्मत.

एक दिन फिर चाची से सड़क पर भेंट हो गई.

सड़क पर जाम लगा था. सारी सवारियां आपस में गड्डमड्ड हो गई थीं. समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे रास्ता निकलेगा. ट्रैफिक पुलिस वाला भी नदारद था. लोग बिना सोचेसमझे अपनेअपने वाहन घुसाए जा रहे थे. मैं एक ओर नाक पर अपना रुमाल लगाए खड़ी हो कर भीड़ छंटने की प्रतीक्षा कर रही थी.

तभी चाची दिखीं.

‘‘अरे, क्या हुआ? इतनी तेज धूप में खड़ी हो कर क्या सोच रही है?’’

‘‘सोच रही हूं, जाम खुले तो सड़क के दूसरी ओर जाऊं.’’

‘‘जाम लगा नहीं है, जाम कर दिया गया है. यहां सारे के सारे अंगरेजी पढ़ने वाले जो हैं. देखो, किसी में हिम्मत नहीं कि जो गलत गाडि़यां घुसा रहे हैं उन्हें रोक सके. सभ्य कहलाने के लिए नाक पर रुमाल लगाए खड़े हैं या फिर कोने में बकरियों की तरह मिमिया रहे हैं.’’

‘‘तो आप ही कुछ करें न, चाची,’’ उन की हिम्मत पर मुझे भरोसा हो चला था.

चाची हंस दीं, ‘‘मैं कोई कंकरीट की बनी दीवार नहीं हूं और न ही सूमो पहलवान. हां, कुछ हिम्मती जरूर हूं. बचपन से ही सीखा है कि हिम्मत से बड़ा कोई हथियार नहीं,’’ फिर हंस कर बोलीं, ‘‘बस, अंगरेजी नहीं पढ़ी है.’’

चाची बड़े इत्मीनान से भीड़ का मुआयना करने लगीं. एकाएक उन्हें ठेले पर लदे बांस के लट्ठे दिखे. चाची ने उसे रोक कर एक लट्ठा खींच लिया और आंचल को कमर पर कसा और लट्ठे को एकदम झंडे की तरह उठा लिया. फिर चिल्ला कर बोलीं, ‘‘तुम गाड़ी वालों की यह कोई बात है कि जिधर जगह देखी, गाड़ी घुसा दी और सारी सड़क जाम कर दी है. हटो…हटो…हटो…पुलिस नहीं है तो सब शेर हो गए हो. क्या किसी को किसी की परवा नहीं?’’

पहले तो लोग अवाक् चाची को इस अंदाज से देखने लगे कि यह कौन सी बला आ गई. फिर कुछ चाची के पीछे हो लिए.

‘‘हां, चाची, वाह चाची, तू ही कुछ कर सकती है…’’ और थोड़ी ही देर में चाची के पीछे कितनों का काफिला खड़ा हो गया. मैं अवाक् रह गई.

गलतसलत गाडि़यां घुसाने वाले सहम कर पीछे हट गए. चाची ने मेरा हाथ पकड़ा और बोलीं, ‘‘चल, धूप में जल कर कोयला हो जाएगी,’’ और बांस को झंडे की तरह लहराती, भीड़ को छांटती पूरे किलोमीटर का रास्ता नापती चाची निकल गईं. जाम तितरबितर हो चला था. कुछ मनचले चिल्ला रहे थे :

‘‘चाची जिंदाबाद…चाची जिंदाबाद.’’

चाची किसी नेता से कम न लग रही थीं. बस, अंगरेजी न जानती थीं. भीड़ से निकल कर मेरा हाथ छोड़ कर कहा, ‘‘यहां से चली जाएगी या घर पहुंचा दूं?’’

‘‘नहींनहीं,’’ मैं ने खिलखिला कर कहा, ‘‘मैं चली जाऊंगी पर एक बात कहूं.’’

‘‘क्या? यही न कहेगी तू कि कानवेंट की है, मुझे अंगरेजी नहीं आती?’’

‘‘अरे, नहीं चाची, पूरा दुलार टपका कर मैं ने कहा, ‘‘मैं जब बहू खोजूंगी तब लड़की का पैमाना सिर्फ अंगरेजी से नहीं नापूंगी.’’

चाची खिलखिला दीं, शायद कहना चाह रही थीं, ‘‘कहो, कैसी रही चाची?’’

Family Drama : क्या शादीशुदा लड़कियों को पढ़ने का हक नहीं है?

लेखक- प्रबोधकुमार गोविल

Family Drama : जब से वे सपना की शादी कर के मुक्त हुईं तब से हर समय प्रसन्नचित्त दिखाई देती थीं. उन के चेहरे से हमेशा उल्लास टपकता रहता था. महरी से कोई गलती हो जाए, दूध वाला दूध में पानी अधिक मिला कर लाए अथवा झाड़ू  पोंछे वाली देर से आए, सब माफ था. अब वे पहले की तरह उन पर बरसती नहीं थीं. जो भी घर में आता, उत्साह से उसे सुनाने बैठ जातीं कि उन्होंने कैसे सपना की शादी की, कितने अच्छे लोग मिल गए, लड़का बड़ा अफसर है, देखने में राजकुमार जैसा. फिर भी एक पैसा दहेज का नहीं लिया. ससुर तो कहते थे कि आप की बेटी ही लक्ष्मी है और क्या चाहिए हमें. आप की दया से घर में सब कुछ तो है, किसी बात की कमी नहीं. बस, सुंदर, सुसंस्कृत व सुशील बहू मिल गई, हमारे सारे अरमान पूरे हो गए.

शादी के बाद पहली बार जब बेटी ससुराल से आई तो कैसे हवा में उड़ी जा रही थी. वहां के सब हालचाल अपने घर वालों को सुनाती, कैसे उस की सास ने इतने दिनों पलंग से नीचे पांव ही नहीं धरने दिया. वह तो रानियों सी रही वहां. घर के कामों में हाथ लगाना तो दूर, वहां तो कभी मेहमान अधिक आ जाते तो सास दुलार से उसे भीतर भेजती हुई कहती, ‘‘बेचारी सुबह से पांव लगतेलगते थक गई, नातेरिश्तेदार क्या भागे जा रहे हैं कहीं. जा, बैठ कर आराम कर ले थोड़ी देर.’’

और उस की ननद अपनी भाभी को सहारा दे कर पलंग पर बैठा आती.

यह सब जब उन्होंने सुना तो फूली नहीं समाईं. कलेजा गज भर का हो गया. दिन भर चाव से रस लेले कर वे बेटी की ससुराल की बातें पड़ोसिनों को सुनाने से भी नहीं चूकतीं. उन की बातें सुन कर पड़ोसिन को ईर्ष्या होती. वे सपना की ससुराल वालों को लक्ष्य कर कहतीं, ‘‘कैसे लोग फंस गए इन के चक्कर में. एक पैसा भी दहेज नहीं देना पड़ा बेटी के विवाह में और ऐसा शानदार रोबीला वर मिल गया. ऊपर से ससुराल में इतना लाड़प्यार.’’

उस दिन अरुणा मिलने आईं तो वे उसी उत्साह से सब सुना रही थीं, ‘‘लो, जी, सपना को तो एम.ए. बीच में छोड़ने तक का अफसोस नहीं रहा. बहुत पढ़ालिखा खानदान है. कहते हैं, एम.ए. क्या, बाद में यहीं की यूनिवर्सिटी में पीएच.डी. भी करवा देंगे. पढ़नेलिखने में तो सपना हमेशा ही आगे रही है. अब ससुराल भी कद्र करने वाला मिल गया.’’

‘‘फिर क्या, सपना नौकरी करेगी, जो इतना पढ़ा रहे हैं?’’ अरुणा ने उन के उत्साह को थोड़ा कसने की कोशिश की.

‘‘नहीं जी, भला उन्हें क्या कमी है जो नौकरी करवाएंगे. घर की कोठी है.  हजारों रुपए कमाते हैं हमारे दामादजी,’’ उन्होंने सफाई दी.

‘‘तो सपना इतना पढ़लिख कर क्या करेगी?’’

‘‘बस, शौक. वे लोग आधुनिक विचारों के हैं न, इसलिए पता है आप को, सपना बताती है कि सासससुर और बहू एक टेबल पर बैठ कर खाना खाते हैं. रसोई में खटने के लिए तो नौकरचाकर हैं. और खानेपहनाने के ऐसे शौकीन हैं कि परदा तो दूर की बात है, मेरी सपना तो सिर भी नहीं ढकती ससुराल में.’’

‘‘अच्छा,’’ अरुणा ने आश्चर्य से कहा.

मगर शादी के महीने भर बाद लड़की ससुराल में सिर तक न ढके, यह बात उन के गले नहीं उतरी.

‘‘शादी के समय सपना तो कहती थी कि मेरे पास इतने ढेर सारे कपड़े हैं, तरहतरह के सलवार सूट, मैक्सी और गाउन, सब धरे रह जाएंगे. शादी के बाद तो साड़ी में गठरी बन कर रहना होगा. पर संयोग से ऐसे घर में गई है कि शादी से पहले बने सारे कपड़े काम में आ रहे हैं. उस के सासससुर को तो यह भी एतराज नहीं कि बाहर घूमने जाते समय भी चाहे…’’

‘‘लेकिन बहनजी, ये बातें क्या सासससुर कहेंगे. यह तो पढ़ीलिखी लड़की खुद सोचे कि आखिर कुंआरी और विवाहिता में कुछ तो फर्क है ही,’’ श्रीमती अरुणा से नहीं रहा गया.

उन्होंने सोचा कि शायद श्रीमती अरुणा को उन की पुत्री के सुख से जलन हो रही है, इसीलिए उन्होंने और रस ले कर कहना शुरू किया, ‘‘मैं तो डरती थी. मेरी सपना को शुरू से ही सुबह देर से उठने की आदत है, पराए घर में कैसे निभेगी. पर वहां तो वह सुबह बिस्तर पर ही चाय ले कर आराम से उठती है. फिर उठे भी किस लिए. स्वयं को कुछ काम तो करना नहीं पड़ता.’’

‘‘अब चलूंगी, बहनजी,’’ श्रीमती अरुणा उठतेउठते बोलीं, ‘‘अब तो आप अनुराग की भी शादी कर डालिए. डाक्टर हो ही गया है. फिर आप ने बेटी विदा कर दी. अब आप की सेवाटहल के लिए बहू आनी चाहिए. इस घर में भी तो कुछ रौनक होनी ही चाहिए,’’ कहतेकहते श्रीमती अरुणा के होंठों की मुसकान कुछ ज्यादा ही तीखी हो गई.

कुछ दिनों बाद सपना के पिता ने अपनी पत्नी को एक फोटो दिखाते हुए कहा, ‘‘देखोजी, कैसी है यह लड़की अपने अनुराग के लिए? एम.ए. पास है, रंग भी साफ है.’’

‘‘घरबार कैसा है?’’ उन्होंने लपक कर फोटो हाथ में लेते हुए पूछा.

‘‘घरबार से क्या करना है? खानदानी लोग हैं. और दहेज वगैरा हमें एक पैसे का नहीं चाहिए, यह मैं ने लिख दिया है उन्हें.’’

‘‘यह क्या बात हुई जी. आप ने अपनी तरफ से क्यों लिख दिया? हम ने क्या उसे डाक्टर बनाने में कुछ खर्च नहीं किया? और फिर वे जो देंगे, उन्हीं की बेटी की गृहस्थी के काम आएगा.’’

अनुराग भी आ कर बैठ गया था और अपने विवाह की बातों को मजे ले कर सुन रहा था. बोला, ‘‘मां, मुझे तो लड़की ऐसी चाहिए जो सोसाइटी में मेरे साथ इधरउधर जा सके. ससुराल की दौलत का क्या करना है?’’

‘‘बेशर्म, मांबाप के सामने ऐसी बातें करते तुझे शर्म नहीं आती. तुझे अपनी ही पड़ी है, हमारा क्या कुछ रिश्ता नहीं होगा उस से? हमें भी तो बहू चाहिए.’’

‘‘ठीक है, तो मैं लिख दूं उन्हें कि सगाई के लिए कोई दिन तय कर लें. लड़की दिल्ली में भैयाभाभी ने देख ही ली है और सब को बहुत पसंद आई है. फिर शक्लसूरत से ज्यादा तो पढ़ाई- लिखाई माने रखती है. वह अर्थशास्त्र में एम.ए. है.’’

उधर लड़की वालों को स्वीकृति भेजी गई. इधर वे शादी की तैयारी में जुट गईं. सामान की लिस्टें बनने लगीं.

अनुराग जो सपना के ससुराल की तारीफ के पुल बांधती अपनी मां की बातों से खीज जाता था, आज उन्हें सुनाने के लिए कहता, ‘‘देखो, मां, बेकार में इतनी सारी साडि़यां लाने की कोई जरूरत नहीं है, आखिर लड़की के पास शादी के पहले के कपड़े होंगे ही, वे बेकार में पड़े बक्सों में सड़ते रहें तो इस से क्या फायदा.’’

‘‘तो तू क्या अपनी बहू को कुंआरी छोकरियों के से कपड़े यहां पहनाएगा?’’ वह चिल्ला सी पड़ीं.

‘‘क्यों, जब जीजाजी सपना को पहना सकते हैं तो मैं नहीं पहना सकता?’’

वे मन मसोस कर रह गईं. इतने चाव से साडि़यां खरीद कर लाई थीं. सोचा था, सगाई पर ही लड़की वालों पर अच्छा प्रभाव पड़ गया तो वे बाद में अपनेआप थोड़ा ध्यान रखेंगे और हमारी हैसियत व मानसम्मान ऊंचा समझ कर ही सबकुछ करेंगे. मगर यहां तो बेटे ने सारी उम्मीदों पर ही पानी फेर दिया.

रात को सोने के लिए बिस्तर पर लेटीं तो कुछ उदास थीं. उन्हें करवटें बदलते देख कर पति बोले, ‘‘सुनोजी, अब घर के काम के लिए एक नौकर रख लो.’’

‘‘क्यों?’’ वह एकाएक चौंकीं.

‘‘हां, क्या पता, तुम्हारी बहू को भी सुबह 8 बजे बिस्तर पर चाय पी कर उठने की आदत हो तो घर का काम कौन करेगा?’’

वे सकपका गईं.

सुबह उठीं तो बेहद शांत और संतुष्ट थीं. पति से बोलीं, ‘‘तुम ने अच्छी तरह लिख दिया है न, जी, जैसी उन की बेटी वैसी ही हमारी. दानदहेज में एक पैसा भी देने की जरूरत नहीं है, यहां किस बात की कमी है, मैं तो आते ही घर की चाबियां उसे सौंप कर अब आराम करूंगी.’’

‘‘पर मां, जरा यह तो सोचो, वह अच्छी श्रेणी में एम.ए. पास है, क्या पता आगे शोधकार्य आदि करना चाहे. फिर ऐसे में तुम घर की जिम्मेदारी उस पर छोड़ दोगी तो वह आगे पढ़ कैसे सकेगी?’’ यह अनुराग का स्वर था.

उन की समझ में नहीं आया कि एकाएक क्या जवाब दें.

कुछ दिन बाद जब सपना ससुराल से आई तो वे उसे बातबात पर टोक देतीं, ‘‘क्यों री, तू ससुराल में भी ऐसे ही सिर उघाड़े डोलती रहती है क्या? वहां तो ठीक से रहा कर बहुओं की तरह और अपने पुराने कपड़ों का बक्सा यहीं छोड़ कर जाना. शादीशुदा लड़कियों को ऐसे ढंग नहीं सुहाते.’’

सपना ने जब बताया कि वह यूनिवर्सिटी में दाखिला ले रही है तो वे बरस ही पड़ीं, ‘‘अब क्या उम्र भर पढ़ती ही रहेगी? थोड़े दिन सासससुर की सेवा कर. कौन बेचारे सारी उम्र बैठे रहेंगे तेरे पास.’’

आश्चर्यचकित सपना देख रही थी कि मां को हो क्या गया है?

Hindi Story : पत्नी का कर्जदार

Hindi Story : अचानक दिल्ली में जब उस हवाई दुर्घटना के बारे में सुना तो एकाएक विश्वास ही नहीं हुआ. मैं तो बड़ी बेसब्री से कमला की प्रतीक्षा कर रही थी कि अचानक यह हादसा हो गया. कमला शादी के बाद पहली बार दिल्ली अपने मातापिता के पास आ रही थी. 5 साल पहले उस की शादी हुई थी और शादी के कुछ महीने बाद ही वह अपने पति के पास मांट्रियल चली गई थी. इसी बीच उस की गोद में एक बेटी भी आ गई थी. दिल्ली में उस का मायका हमारे घर से थोड़ी ही दूरी पर था.

मैं पिछले 8 महीने से अपने पति और बच्चों के साथ दिल्ली में ही थी. मेरे पति भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली में अतिथि प्राध्यापक के रूप में काम कर रहे थे. कमला से मिले काफी दिन हो गए थे. मैं मांट्रियल की सब खोजखबर कमला से जानने के लिए उस की बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रही थी.

कमला के पिता के घर हम अफसोस जाहिर करने गए. उस के मातापिता और परिवार के अन्य सदस्यों का बुरा हाल था. वे तो उसे पति के घर जाने के बाद एक बार देख भी नहीं पाए थे और अब क्या से क्या हो गया था.

कमला के पति राकेश को एअर लाइंस ने दुर्घटना स्थल तक जाने की सब सुविधाएं प्रदान की थीं. वह चाहता तो उस कंपनी के खर्चे पर भारत आ कर पत्नी और बेटी का दाहसंस्कार कर सकता था पर वह नहीं आया.

राकेश ने जब कमला के पिता को फोन किया, तब हम उन के घर पर ही थे. बेचारे राकेश से आग्रह कर के हार गए, पर वह दिल्ली आने को राजी नहीं हुआ. खैर, वह करते भी क्या. जमाई पर किस का हक होता है और अब तो उन की बेटी भी इस दुनिया में नहीं रही थी तो फिर वह उस को किस अधिकार से दिल्ली आने के लिए बाध्य करते.

एअर लाइंस के अधिकारी दुर्घटना में मरे यात्रियों के निकट संबंधियों से मुआवजे के बारे में बातचीत कर रहे थे. यह विषय कितना दुखद हो सकता है, इस का अनुमान तो वही लगा सकते हैं जो कभी ऐसी परिस्थिति से गुजरे हों. कैसे किसी विधवा स्त्री को समझाया जाए कि उस के पति की मृत्यु का मुआवजा चंद हजार डालर ही है. कैसे किसी पति को सांत्वना दें कि उस की पत्नी का मुआवजा इसलिए कम होगा, क्योंकि वह अपने पति पर निर्भर थी. जो इनसान हमें प्राणों से भी प्यारे लगते हैं, उन के जीवन का मूल्य एअरलाइंस कुछ हजार डालर ही लगाती है.

राकेश से जब एअरलाइंस के अधिकारियों ने उस की पत्नी और बच्ची की मृत्यु पर मुआवजे की बातचीत की तो वह क्रोध और दुख से कांप उठा. उस ने साफसाफ कह दिया कि इस दुर्घटना के लिए हवाई जहाज का पायलट जिम्मेदार था. वह अपनी बच्ची और पत्नी की मृत्यु के लिए मुआवजे की एक कौड़ी भी नहीं चाहता परंतु वह एअरलाइंस पर मुकदमा चलाएगा, चाहे उसे इस के लिए भीख ही क्यों न मांगनी पड़े. वह कचहरी में कंपनी को हवाई दुर्घटना के लिए जिम्मेदार ठहरा कर ही रहेगा.

एअरलाइंस के अधिकारी राकेश को धीरज बंधाने की कोशिश कर रहे थे. अगर वास्तव में राकेश कानून का सहारा लेगा तो मुकदमा जीत जाने पर कंपनी की कहीं अधिक हानि हो सकती थी. कंपनी के अधिकारी उस के इर्दगिर्द घूमते रहे, पर उस ने मुआवजे के फार्म पर हस्ताक्षर नहीं किए. शेष जितने भी यात्रियों की मृत्यु हुई थी, लगभग हर किसी के परिवार के सदस्यों ने मुआवजे के फार्म भर दिए थे. शायद राकेश ही ऐसा था जो बिना फार्म भरे मांट्रियल वापस आ गया था. एअरलाइंस के मांट्रियल कार्यालय के अधिकारियों को राकेश को राजी करने का काम सौंप दिया गया था.

राकेश और कमला से हमारी मुलाकात कुछ वर्ष पहले हुई थी. कमला तो काफी खुशमिजाज थी, पर राकेश हमें अधिक मिलनसार नहीं लगा. वैसे तो उसे कनाडा में रहते हुए कई साल हो गए थे और मांट्रियल में भी वह पिछले 7 सालों से था, पर उस की यहां पर इक्कादुक्का लोगों से ही मित्रता थी.

एक बार बाजार में कमला मिल गई. मैं ने जब उस से कहा कि मेरे घर चलो तो वह आनाकानी करने लगी. खैर, मैं आग्रह कर के उसे अपने घर ले आई. बातों ही बातों में पता चला कि बचपन में हम दोनों एक ही स्कूल में पढ़ती थीं. वह मुझ से मिल कर बहुत खुश हुई.

यह सुन कर मुझे बहुत अजीब लगा जब कमला ने बताया कि वह जब से भारत से आई है, किसी भी भारतीय के घर नहीं गई है और न ही उस ने कभी किसी को अपने घर बुलाया है. मैं ने जब उन को अपने घर खाने का निमंत्रण दिया तो वह आनाकानी करने लगी. कहने लगी, ‘‘पता नहीं, राकेशजी शाम को खाली भी होंगे या नहीं.’’

मैं ने जिद की तो वह मान गई परंतु यह कह कर कि अगर नहीं आ सके तो हम बुरा नहीं मानें. उस की बातों से लगा कि जैसे बेचारी पति की आदतों से परेशान है. पति अगर मिलनसार न हो तो पत्नी तो बेचारी बस जीवनभर घुटघुट कर ही मर जाए.

शाम को पतिपत्नी हमारे घर खाने पर आए. कमला तो बहुत खुश थी. मेरे साथ रसोई में हाथ बंटा रही थी, परंतु राकेश कुछ खिंचाखिंचा सा था. हमें ऐसा लगा कि वह कनाडा में अपनेआप को किसी विदेशी सा ही समझता है.

कमला और राकेश के यहां हमारा कभीकभार आनाजाना होने लगा. हम तो उन दोनों को पार्टियों में ही बुलाते थे, पर वे हमें बस अकेले ही सपरिवार आमंत्रित करते थे. हमारे घर की पार्टियों में उन की मुलाकात हमारे बहुत से मित्रों से होती थी. उन में से कुछ ने तो कमला और राकेश को खाने पर भी बुलाया था, पर वे नहीं गए. कोई बहाना बना कर टाल गए थे. जब उन की बच्ची पैदा हुई तो उस के लिए हमारे अलावा शायद ही किसी और ने उपहार दिया हो. हम भी बस एक ही बार जा पाए थे.

दिल्ली से जब हम मांट्रियल वापस आ रहे थे, सारे रास्ते मन उखड़ाउखड़ा सा था. इतने महीने दिल्ली में बिताने के बाद घर वालों से बिछुड़ने का दुख भी था. दिल के एक कोने में अपने घर जल्दी पहुंचने की इच्छा भी थी. कमला और उस की बच्ची रीता का खयाल भी रहरह कर दिल में उठ रहा था. बेचारा राकेश किस तरह कमला और रीता के बिना जीवन बिता रहा होगा. हमारे बच्चे तो रीता से कितना हिलमिल गए थे. उन को तो वह गुडि़या सी लगती थी.

मांट्रियल पहुंचने के अगले दिन हम दोनों राकेश से मिलने गए. मैं ने कमला के पिता का दिया हुआ पत्र राकेश को दे दिया. राकेश काफी उदास दिखाई दे रहा था. वह बेचारा बहुत कम लोगों को जानता था. थोड़े से लोग ही उस के घर पर अफसोस करने आए थे.

वह गंभीर स्वर में बोला, ‘‘हर समय कमला और रीता की याद सताती रहती है. कुछ दिल बहलेगा, इसलिए 1-2 दिन में वापस काम पर जाने की सोच रहा हूं.’’

राकेश के पास हम कुछ देर बैठ कर लौट आए.

दोचार दिन में हमारे सब मित्रों को मालूम हो गया कि हम वापस आ गए हैं. फिर क्या था, फोन पर फोन आने लगे. मेरी लगभग सभी सहेलियां मुझ से मिलने आईं. वे सब इस बात से परेशान थीं कि कनाडा के डाक कर्मचारियों की हड़ताल के कारण पत्र आदि आने भी बंद हो गए हैं.

एक शाम दीपक हमारे घर आए. उन्हें अकेले देख कर मैं ने शिकायत के लहजे में कहा, ‘‘क्यों भाई साहब, अकेले ही आ गए. भाभीजी को भी साथ ले आते.’’

‘‘मैं तो राकेश के घर जा रहा था. सोचा, आप लोगों से मिलता जाऊं और दिल्ली की मिठाई भी खाता जाऊं. तुम्हारी भाभी तो मुझे मिठाई को हाथ भी नहीं लगाने देंगी.’’

‘‘मैं भी बस आप को थोड़ी सी मिठाई चखाऊंगी. मुझे भाभीजी से डांट नहीं खानी है.’’

मैं रसोई में चाय बनाने चली गई.

दीपक मेरे पति से बोले, ‘‘साहब, डाक कर्मचारियों की हड़ताल ने परेशान कर रखा है. देखिए, यह चेक देने मुझे राकेश के पास खुद ही जाना पड़ रहा है.’’

‘‘किस तरह का चेक है, भाई साहब,’’ मैं रसोई में चाय और कुछ मिठाई ट्रे में रख कर ले आई और चाय परोसने लगी.

‘‘राकेश ने कमला के भारत जाते समय उस का हवाई अड्डे पर 2 लाख डालर का बीमा करा लिया था. यह चेक उसी बीमे का भुगतान है. कभी हाथ पर रखा है 2 लाख डालर का चेक,’’ दीपक ने मुसकराते हुए कोट की जेब से एक लिफाफा निकाला.

लगभग आधा घंटा बैठ कर दीपक राकेश को चेक देने चले गए. उस शाम हम दोनों पतिपत्नी यही सोचते रहे कि राकेश 2 लाख डालर का क्या करेगा. हमारे जानपहचान वालों में शायद ही कोई ऐसा हो जो पत्नी का हवाई यात्रा करते समय बीमा कराता हो. पुरुष तो फिर भी करा लेते हैं, पर पत्नी के लिए तो कोई भी नहीं सोचता. खैर, यह तो राकेश और कमला की अपनी इच्छा रही होगी. यह भी तो हो सकता है कि मजाक के लिए ही उन दोनों ने ऐसा किया हो, पर राकेश हंसीमजाक के लिए तो कुछ भी नहीं करता.

हम मांट्रियल में अपने जीवन में व्यस्त हो गए थे. सोमवार से शुक्रवार तक काम और बच्चों का स्कूल. शनिवार को खरीदारी और पार्टियां तथा रविवार को बस आराम या कभीकभी किसी परिचित के घर चले जाते.

राकेश से कभीकभी फोन पर मेरे पति बात कर लेते थे. हालांकि उस की चर्चा पार्टियों में कभीकभी ही होती थी. हमारे मित्र हम से ही उस के बारे में पूछते थे. लगता था, जैसे वह बाकी सब लोगों के लिए एक अजनबी सा ही हो.

एक बार दीपक बातों ही बातों में कह गए थे, ‘‘राकेश अपनी बीवी और बच्ची के लिए एअरलाइंस से मुआवजे के रूप में बहुत बड़ी रकम की मांग कर रहा है और जिद पर अड़ा है. अब तो उस के पास 2 लाख डालर की नकद रकम भी है. एअरलाइंस के खिलाफ मुकदमा न कर दे. वैसे कंपनी इस मामले को कचहरी तक पहुंचने नहीं देना चाहती और समझौता करने की कोशिश कर रही है. राकेश शायद हवाई दुर्घटना से पीडि़त अन्य लोगों की तुलना में कई गुना मुआवजा हवाई कंपनी से हासिल करने में सफल हो जाएगा.’’

जैसा कि होता है, हम भी कमला और रीता को भूल सा गए थे. राकेश तो कभी हम लोगों के करीब आ ही नहीं पाया था. हम ने एकदो बार उसे अपने घर बुलाया भी, परंतु वह नहीं आया, हम उस से मिलने उस के घर भी गए, पर अधिक बातें न हो सकीं.

डाक विभाग के कर्मचारियों की हड़ताल काफी दिन चली. जब हड़ताल समाप्त हुई तो हमें बहुत खुशी हुई. हड़ताल खत्म होते ही डाकघरों में पड़े पुराने पत्र, टेलीफोन और बिजली आदि के बिल आने चालू हो गए.

एक दिन दिल्ली से हमारे मांट्रियल पहुंचने के पश्चात पहला पत्र आया. लिफाफा भारी लग रहा था. उस में अम्मां का काफी लंबा पत्र था. एक और लिफाफा भी था, जिसे कनाडा से ही मेरे नाम भेजा गया था. हमारे दिल्ली से चले आने के बाद वहां पहुंचा होगा, इसलिए अम्मां ने हमें भेज दिया.

मैं ने जब लिफाफा खोला तो आश्चर्यचकित रह गई. पत्र कमला का था. मेरा मन उदास हो गया क्योंकि कमला अब इस दुनिया में नहीं थी. मैं पत्र पढ़ने लगी :

प्रिय रत्ना दीदी,

आप का पत्र मिला. मेरा कुछ ऐसा कार्यक्रम बन गया है कि जब आप मांट्रियल वापस आएंगी, तब मैं दिल्ली से कानपुर पहुंच चुकी होऊंगी. मेरी माताजी से आप को मेरे दिल्ली पहुंचने की तारीख का पता चल ही गया होगा. शायद आप को यह नहीं पता कि मैं जिद कर के दिल्ली पहुंचने के एक दिन बाद ही कानपुर अपनी बड़ी बहन के पास चली जाऊंगी. इस का कारण यह है कि आप मुझ से मिलने अवश्य मेरी माताजी के घर आएंगी, पर मैं आप से मिलने का साहस नहीं जुटा पा रही हूं. अब हम शायद कभी नहीं मिल पाएंगी क्योंकि मैं अब मांट्रियल कभी नहीं लौटूंगी.

मेरे इस निर्णय का राकेश को भी पता नहीं है. हां, इस का सौ प्रतिशत उत्तरदायी वही है. हमारी शादी हुए 5 साल से ऊपर हो गए हैं, पर उस ने शायद ही कभी पति का प्यार मुझे दिया हो. राकेश ने मुझे घर की नौकरानी से अधिक कभी कुछ नहीं समझा. शादी के इतने वर्ष बीत जाने पर भी उस ने कभी मेरे लिए कोई साड़ी, गहना या छोटा सा उपहार भी नहीं खरीदा. मेरी बात को छोडि़ए रीता को भी उस ने कभी प्यार से चूमा तक नहीं, गोद में खिलाना तो दूर की बात है.

आप ने देखा ही होगा कि राकेश कितना नीरस व्यक्ति है. परंतु वास्तव में वह बहुत खुशमिजाज है, और उस की यह खुशी बस अपनी महिला मित्रों तक ही सीमित है. उस ने अपने जीवन के इस रूप से मुझे हमेशा अनजान ही रखा. खुद ऐश करने के लिए उस के पास पैसे हैं, परंतु अपनी बेटी के लिए ढंग का फ्राक खरीदने के लिए पैसे की कमी है. वह हमेशा मुझे इतने कम पैसे देता है कि घर का खर्च भी मुश्किल से चलता है.

मैं कभी राकेश को पकड़ तो नहीं पाई परंतु जानती हूं कि कई लड़कियों के साथ उस का संपर्क है. मुझे प्रमाण तो नहीं मिल पाया, पर एक पत्नी को ऐसी बातें तो मालूम हो ही जाती हैं. मैं ने कई बार उसे समझाने की कोशिश की, पर हर बार उस से मार ही खाई. मेरे भारत जाने के लिए हवाई जहाज के टिकट के पैसे खर्च करने के लिए कभी वह राजी नहीं हुआ. इस बार जब पिताजी ने टिकट भेज दिया तो मैं दिल्ली आ पा रही हूं.

प्रत्येक लड़की के मातापिता अपनी बेटी के लिए अच्छे से अच्छा वर खोजने की कोशिश करते हैं. मेरे मातापिता ने भी इतना दहेज दिया था कि राकेश के घर वाले खुशी से फूले नहीं समा रहे थे. मेरे दहेज की सारी चीजों और नकद रुपयों से उन्होंने थोड़े दिनों बाद ही राकेश की छोटी बहन की शादी कर दी थी.

राकेश ने अपने घर वालों के दबाव में आ कर मुझ से शादी की थी. उसे मैं कभी भी अपने लायक नहीं लगी, क्योंकि मैं एक सीधीसादी आकर्षण- रहित महिला हूं. मुझे कहीं अपने साथ ले जाने में भी उसे आपत्ति होती थी. बेचारी रीता भी रंगरूप में मुझ पर गई है. इसी कारण उसे कभी राकेश से पिता का प्यार नहीं मिला.

मैं तो शायद किसी भी साधारण व्यक्ति को पति के रूप में पा कर प्रसन्न रहती. कम से कम मेरे जीवन में हीन- भावना तो न घर कर पाती. राकेश मेरे लिए उपयुक्त वर भी न था. उस ने मुझ से शादी खूब सारा दहेज पाने के लिए की थी. वह उसे मिल गया. उस के बाद उस के जीवन में मेरा कोई महत्त्व न था. शारीरिक आवश्यकताएं तो वह घर के बाहर पूरी कर ही लेता था. मैं तो बस रीता के लिए ही उस के साथ विवाहित जीवन की परिधि में असहाय की तरह जीवन बिताने का प्रयास कर रही थी.

अब मैं ने निश्चय कर लिया है कि जब विवाहित हो कर भी अविवाहिता का ही जीवन बिताना है तो क्यों न अपने मातापिता के पास ही रहूं. कम से कम उन का प्यार और सहयोग तो मुझे मिलेगा ही. मुझे मालूम है, मेरे मातापिता मुझे समझाने की कोशिश करेंगे, पर जब मैं उन्हें अपनी पीठ पर उभरे राकेश की मार के काले निशान दिखाऊंगी तो वे शायद कुछ न कहेंगे. मेरे जीवन के पिछले 5 साल कैसे बीते हैं, यह मेरा दिल ही जानता है. पर उन दिनों आप ने जो मुझे प्यार और स्नेह दिया, उस ने मुझे मानसिक संतुलन खो देने से बचा लिया. मैं जीवन भर आप की आभारी रहूंगी.

आप की कमला.

कमला का पत्र पढ़ कर मेरी आंखों में आंसू उमड़ आए. राकेश का जो रूप कमला के पत्र से प्रकट हुआ, उस की तो मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी. मांट्रियल आने के बाद राकेश से हम 2-3 बार मिले थे.

हमेशा ऐसा ही लगा, जैसे उस के ऊपर दुख का पहाड़ टूट पड़ा है. यह सब क्या उस का दिखावा था, ताकि वह एअरलाइंस से अधिक मुआवजा वसूल कर सके. 2 लाख डालर तो उस की

जेब में आ ही चुके थे. अभी पता नहीं उसे मुआवजे के रूप में और कितने मिलेंगे?

कितना दुखभरा जीवन था कमला और उस की बच्ची का. जब तक जीवित रहीं छोटीछोटी चीजों के लिए तरसती रहीं क्योंकि राकेश आमदनी का अधिक भाग अपनी ऐयाशी पर खर्च कर देता था. मृत्यु के बाद भी दोनों राकेश के लिए आशातीत मुआवजे की रकम का प्रबंध कर गईं.

कह नहीं सकती कि राकेश एकांत के क्षणों में कमला और रीता की मृत्यु पर दुखी होता है अथवा प्रसन्न. उस का निजी जीवन पहले की तरह चल रहा है या कमला के रास्ते से हमेशा के लिए हट जाने के कारण वह और भी अधिक ऐशोआराम में डूब गया है.

वैसे राकेश जैसे व्यक्ति के बारे में मैं सोचना नहीं चाहती. कमला और उस की बेटी तो शायद राकेश का अतीत बन गई होंगी, पर उन दोनों की स्मृति मेरे मन से कभी नहीं जाएगी.

राकेश को तो मुआवजा मिल ही जाएगा, पर वह जीवन भर कमला का कर्जदार रहेगा. उसे कमला  के जीवन के दुख भरे वर्षों का मुआवजा कभी न कभी किसी न किसी रूप में तो चुकाना ही पड़ेगा.

Breakup Story : धोखेबाज गर्लफ्रैंड

Breakup Story: ड्राइंगरूममें सोफे पर बैठ पत्रिका पढ़ रही स्मिता का ध्यान डोरबैल बजने से टूटा. दरवाजा खोलने पर स्मिता को बेटे यश का उड़ा चेहरा देख धक्का लगा. घबराई सी स्मिता बेटे से पूछ बैठी, ‘‘क्या हुआ यश? सब ठीक तो है?’’

बिना कुछ कहे यश सीधे अपने बैडरूम में चला गया. स्मिता तेज कदमों से पीछेपीछे भागी सी गई. पूछा, ‘‘क्या हुआ यश?’’

यश सिर पकड़े बैड पर बैठा सिसकने लगा. जैसे ही स्मिता ने उस के पास बैठ कर उस के सिर पर हाथ रखा वह मां की गोद में ढह सा गया और फिर फूटफूट कर रो पड़ा.

स्मिता ने बेहद परेशान होते हुए पूछा, ‘‘बताओ तो यश क्या हुआ?’’

यश रोए जा रहा था. स्मिता को कुछ समझ नहीं आ रहा था. उस का 25 साल का बेटा आज तक ऐसे नहीं रोया था. उस का सिर सहलाती वह चुप हो गई थी. समझ गई थी कि थोड़ा संभलने पर ही बता पाएगा. यश की सिसकियां रुकने का नाम ही नहीं ले रही थीं. कुछ देर बाद फिर स्मिता ने पूछा, ‘‘बताओ बेटा क्या हुआ?’’

‘‘मां, नविका से ब्रेकअप हो गया.’’

‘‘क्या? यह कैसे हो सकता है? नविका को यह क्या हुआ? बेटा यह तो नामुमकिन है.’’

यश ने रोते हुए कहा, ‘‘नविका ने अभी फोन पर कहा कि अब हम साथ नहीं हैं. वह यह रिश्ता खत्म करना चाहती है.’’

स्मिता को गहरा धक्का लगा. यह कैसे हो सकता है. 4 साल से वह, यश के पापा विपुल, यश की छोटी बहन समृद्धि नविका को इस घर की बहू के रूप में ही देख रहे हैं. इतने समय से स्मिता यही सोच कर चिंतामुक्त रही कि जैसी केयर नविका यश की करती है, वैसी वह मां हो कर भी नहीं कर पाती. इस लड़की को यह क्या हुआ? स्मिता के कानों में नविका का मधुर स्वर मां…मां… कहना गूंज उठा. बीते साल आंखों के आगे घूम गए. बेटे को कैसे चुप करवाए वह तो खुद ही रोने लगी. वह तो खुद ही इस लड़की से गहराई से जुड़ चुकी है.

अचानक यश उठ कर बैठ गया. मां की आंखों में आंसू देखे, तो उन्हें पोंछते हुए फिर से रोने लगा, ‘‘मां, यह नविका ने क्या किया?’’

‘‘उस ने ऐसे क्यों किया, यश? कल रात तो वह यहां हमारे साथ डिनर कर के गई. फिर रातोंरात ऐसी कौन सी बात हो गई?’’

‘‘पता नहीं, मां. उस ने कहा कि अब वह इस रिश्ते को और आगे नहीं ले जा पाएगी. उसे महसूस हो रहा है कि वह इस रिश्ते में जीवनभर के लिए नहीं बंध सकती. वह भी हम सब को बहुत मिस करेगी, उस के लिए भी मुश्किल होगा पर वह अपनेआप को संभाल लेगी और कहा कि मैं भी खुद को संभाल लूं और आप सब को उस की तरफ से सौरी कह दूं.’’

स्मिता हैरान व ठगी से बैठी रह गई थी. यह क्या हो रहा है? लड़कों की

बेवफाई, दगाबाजी तो सुनी थी पर यह लड़की क्या खेल खेल गई मेरे बेटे के साथ… हम सब की भावनाओं के साथ. दोनों मांबेटे ठगे से बैठे थे. स्मिता ने बहुत कहा पर यश ने कुछ नहीं खाया. चुपचाप बैड पर आंसू बहाते हुए लेटा रहा. स्मिता बेचैन सी पूरे घर में इधर से उधर चक्कर लगाती रही.

शाम को विपुल और समृद्धि भी आ गए. आते ही दोनों ने घर में पसरी उदासी महसूस कर ली थी. सब बात जानने के बाद वे दोनों भी सिर पकड़ कर बैठ गए. यह कोई आम सी लड़की और एक आम से लड़के के ब्रेकअप की खबर थोड़े ही थी. इतने लंबे समय में नविका सब के दिलों में बस सी गई थी.

इस घर से दूर नविका तो खुद ही नहीं रह सकती थी. घर में हर किसी को खुश करती थकती नहीं थी. विपुल के बहुत जोर देने पर यश ने सब के साथ बैठ कर मुश्किल से खाना खाया, डाइनिंगटेबल पर अजीब सा सन्नाटा था. समृद्धि को भी नविका के साथ बिताया एकएक पल याद आ रहा था. नविका से कितनी छोटी है वह पर कैसी दोस्त बन गई थी. कुछ भी दिक्कत हो नविका झट से दूर कर देती थी.

विपुल को भी उस का पापा कह कर बात करना याद आ रहा था. सब सोच में डूबे हुए थे कि यह हुआ क्या? कल ही तो यहां साथ में बैठ कर डिनर कर रही थी. आज ब्रेकअप हो गया. यह एक लड़के से ब्रेकअप नहीं था. नविका के साथ पूरा परिवार जुड़ चुका था. सब ने बहुत बेचैनी भरी उदासी से खाना खत्म किया. कोई कुछ नहीं बोल रहा था.

स्मिता से बेटे की आंसू भरी आंखें देखी नहीं जा रही थीं. उस के लिए बेटे को इस हाल

में देखना मुश्किल हो रहा था. रात को सोने

से पहले स्मिता ने पूछा, ‘‘यश, मैं नविका से

बात करूं?’’

‘‘नहीं मां, रहने दो. अब वह बात ही नहीं करना चाहती. फोन ही नहीं उठा रही है.’’

स्मिता हैरान. दुखी मन से बैड पर लेट तो गई पर उस की आंखों से नींद कोसों दूर विपुल के सोने के बाद बालकनी में रखी कुरसी पर आ कर बैठ गई. पिछले 4 सालों की एकएक बात आंखों के सामने आती चली गई…

यश और नविका मुंबई में ही एक दोस्त की पार्टी में मिले थे. दोनों की दोस्ती हो गई थी. नविका यश से 3 साल बड़ी थी, यह जान कर भी यश को कोई फर्क नहीं पड़ा था. वह नविका से बहुत प्रभावित हुआ था. नविका सुंदर, आत्मनिर्भर, आधुनिक, होशियार थी. अपनी उम्र से बहुत कम ही दिखती थी. स्मिता के परिवार को भी उस से मिल कर अच्छा लगा था.

चुटकियों में यश और समृद्धि के किसी भी प्रोजैक्ट में हैल्प करती. बेटे से बड़ी लड़की को भी उस की खूबियों के कारण स्मिता ने सहर्ष स्वीकार कर लिया था. स्मिता और विपुल खुले विचारों के थे. नविका के परिवार में उस के मम्मीपापा और एक भाई था. एक दिन नविका ने स्मिता से कहा कि मां आप मुझे कितना प्यार करती हैं और मेरी मम्मी तो बस मेरे भाई के ही चारों तरफ घूमती रहती हैं. मैं कहां जा रही हूं, क्या कर रही हूं, मम्मीपापा को इस से कुछ लेनादेना नहीं होता. भाई ही उन दोनों की दुनिया है. इसलिए मैं जल्दी आत्मनिर्भर बनना चाहती हूं.

सुन कर स्मिता ने नविका पर अपने स्नेह की बरसात कर दी थी.

उस दिन से तो जैसे स्मिता ने मान लिया कि उस के 2 नहीं 3 बच्चे हैं. कुछ भी होता

नविका जरूर होती. कहीं जाना हो नविका साथ होती. यह तय सा ही हो गया था कि यश के सैटल हो जाने के बाद दोनों का विवाह कर दिया जाएगा.

एक दिन स्मिता ने कहा, ‘‘नविका, मैं सोच रही हूं कि तुम्हारे पेरैंट्स से मिल लूं.’’

इस पर नविका बोली, ‘‘रहने दो मां. अभी नहीं. मेरे परिवार वाले बहुत रूढि़वादी हैं. जल्दी नहीं मानेंगे. मुझे लगता कि अभी रुकना चाहिए.’’

यश तो आंखें बंद कर नविका की हर बात में हां में हां ऐसे मिलाता था कि कई बार स्मिता हंस कर कह उठती थी, ‘‘विपुल, यह तो पक्का जोरू का गुलाम निकलेगा.’’

विपुल भी हंस कर कहते थे, ‘‘परंपरा निभाएगा. बाप की तरह बेटा भी जोरू का

गुलाम बनेगा.’’

कई बार स्मिता तो यह सोच कर सचमुच मन ही मन गंभीर हो उठती थी कि यश सचमुच नविका के खिलाफ एक शब्द नहीं सुन सकता. अपनी हर चीज के लिए उस पर निर्भर रहता है. कोई फौर्म हो, कहीं आवेदन करना हो, उस के सब काम नविका ही करती और नविका यश को खुश रखने का हर जतन करती. उसे मुंबई में ही अच्छी जौब मिल गई थी.

जौब के साथसाथ वह घर के हर सदस्य की हर चीज में हमेशा हैल्प करती. स्मिता मन ही मन हैरान होती कि यह लड़की क्या है… इतना कौन करता है? किसी को कोई भी जरूरत हो, नविका हाजिर और उस का खुशमिजाज स्वभाव भी लाजवाब था जिस के कारण स्मिता का उस से रोज मिलने पर भी मन नहीं भरता था. जितनी देर घर में रहती हंसती ही रहती. स्मिता नविका को याद कर रो पड़ी. रात के 2 बजे बालकनी में बैठ कर वह नविका को याद कर रो रही थी.

स्मिता का बारबार नविका को फोन कर पूछने का मन हो रहा था कि यह क्या किया तुम ने? यश के मना करने के बावजूद स्मिता यह ठान चुकी थी कि वह यह जरूर पूछेगी नविका से कि उस ने यह इमोशनल चीटिंग क्यों की? क्या इतने दिनों से वह टाइमपास कर रही थी? अचानक बिना कारण बताए कोई लड़की ब्रेकअप की घोषणा कर देती है, वह भी यश जैसे नर्म दिल स्वभाव वाले लड़के के साथ जो नविका को खुश देख कर ही खुश रहता था.

इतने में ही अपने कंधे पर हाथ  का स्पर्श महसूस हुआ तो स्मिता चौंकी. यश था, उस की गोद में सिर रख कर जमीन पर ही बैठ गया. दोनों चुप रहे. दोनों की आंखों से आंसू बहते रहे.

फिर विपुल भी उठ कर आ गए. दोनों को प्यार से उठाते हुए गंभीर स्वर में कहा, ‘‘जो हो गया, सो हो गया, अब यही सोच कर तुम लोग परेशान मत हो. आराम करो, कल बात करेंगे.’’

अगले दिन भी घर में सन्नाटा पसरा रहा. यश चुपचाप सुबह कालेज चला गया. स्मिता ने उस से दिन में 2-3 बार बात की. पूछा, ‘‘नविका से बात हुई?’’

‘‘नहीं, मम्मी वह फोन नहीं उठा रही है.’’

उदासीभरी हैरानी में स्मिता ने भी दिन बिताया. वह बारबार

अपना फोन चैक कर रही थी. इतने सालों में आज पहली बार न नविका का कोई मैसेज था न ही मिस्ड कौल. स्मिता को तो स्वयं ही नविका के टच में रहने की इतनी आदत थी फिर यश को कैसा लगा रहा होगा. यह सोच कर ही उस का मन उदास हो जाता था.

3 दिन बीत गए, नविका ने किसी से संपर्क नहीं किया. घर में चारों उदास थे, जैसे घर का कोई महत्त्वपूर्ण सदस्य एकदम से साथ छोड़ गया हो. सब चुप थे. अब नविका का कोई नाम ही नहीं ले रहा था ताकि कोई दुखी न हो. मगर बिना कारण जाने स्मिता को चैन नहीं आ रहा था. वह बिना किसी को बताए बांद्रा कुर्ला कौंप्लैक्स पहुंच गई. नविका का औफिस उसे पता था.

अत: उस के औफिस चल दी. औफिस के बाहर पहुंच सोचा एक बार फोन करती. अगर उठा लिया तो ठीक वरना औफिस में चली जाएगी.

अत: नविका के औफिस की बिल्डिंग के बाहर खड़ी हो कर स्मिता ने फोन किया. हैरान हुई जब नविका ने उस का फोन उठा लिया, ‘‘नविका, मैं तुम्हारे औफिस के बाहर खड़ी हूं, मिलना है तुम से.’’

‘‘अरे, मां, आप यहां? मैं अभी

आती हूं.’’

नविका दूर से भागी सी आती दिखी तो स्मिता की आंखें उसे इतने दिनों बाद देख भीग सी गईं. वह सचमुच नविका को प्यार करने लगी थी. उसे बहू के रूप में स्वीकार कर चुकी थी. उस पर अथाह स्नेह लुटाया था. फिर यह लड़की अचानक गैर क्यों

हो गई?

नविका आते ही उस के गले लग गई. दोनों रोड पर यों ही बिना कुछ कहे कुछ पल खड़ी रहीं. फिर नविका ने कहा, ‘‘आइए, मां, कौफी हाउस चलते हैं.’’

नविका स्मिता का हाथ पकड़े चल रही थी. स्मिता का दिल भर आया. यह हाथ, साथ, छूट गया है. दोनों जब एक कौर्नर की टेबल पर बैठ गईं तो नविका ने गंभीर स्वर में पूछा, ‘‘मां, आप कैसी हैं?’’

स्मिता ने बिना किसी भूमिका के कहा, ‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया, मैं जानने आई हूं?’’

नविका ने गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘‘मां, मैं थकने लगी थी.’’

‘‘क्यों? किस बात से? हम लोगों के प्यार में कहां कमी देखी तुम ने? इतने साल हम से जुड़ी रही और अचानक बिना कारण बताए यह सब किया जाता है? यह पूरे परिवार के साथ इमोशनल चीटिंग नहीं है?’’ स्मिता के स्वर में नाराजगी घुल आई.

‘‘नहीं मां, आप लोगों के प्यार में तो कोई कमी नहीं थी, पर मैं अपने ही झूठ से थकने लगी थी. मैं ने आप लोगों से झूठ बोला था. मैं यश से 3 नहीं, 7 साल बड़ी हूं.’’

स्मिता बुरी तरह चौंकी, ‘‘क्या?’’

‘‘हां, मैं तलाकशुदा भी हूं. इसलिए मैं ने आप को कभी अपनी फैमिली से मिलने नहीं दिया. मैं जानती थी आप लोग यह सुन कर मुझ से दूर हो जाएंगे. मैं इतनी लविंग फैमिली खोना नहीं चाहती थी. इसलिए झूठ बोलती थी.’’

‘‘शादी कहां हुई थी? तलाक क्यों हुआ था?’’

‘‘यहीं मुंबई में ही. मैं ने घर से भाग कर शादी की थी. मेरे पेरैंट्स आज तक मुझ से नाराज हैं और फिर मेरी उस से नहीं बनी तो तलाक हो गया. मैं मम्मीपापा के पास वापस आ गई. उन्होंने मुझे कभी माफ नहीं किया. मैं ने आगे पढ़ाई

की. आज मैं अच्छी जौब पर हूं. फिर यश मिल गया तो अच्छा लगा. मैं ने अपना सब सच छिपा लिया. यश अच्छा लड़का है. मुझ से काफी छोटा है, पर उस के साथ रहने पर उस की उम्र के हिसाब से मुझे कई दिक्कतें होती हैं. उस की उम्र से मैच करने में अपनेआप पर काफी मेहनत करनी पड़ती है. आजकल मानसिक रूप से थकने लगी हूं.

‘‘यश कभी अपनी दूसरी दोस्तों के साथ बात भी करता है तो मैं असुरक्षित

महसूस करती हूं. मैं ने बहुत सोचा मां. उम्र के अंतर के कारण मैं शायद यह असुरक्षा हमेशा महसूस करूंगी. मैं ने भी दुनिया देखी है मां. बहुत सोचने के बाद मुझे यही लगा कि अब मुझे आप लोगों की जिंदगी से दूर हो जाना चाहिए. मैं वैसे भी अपनी शर्तों पर, अपने हिसाब से जीना चाहती हूं. आत्मनिर्भर हूं, आप लोगों से जुड़ कर समाज का कोई ताना, व्यंग्य भविष्य में मैं सुनना पसंद नहीं करूंगी.

‘‘मैं ने बहुत मेहनत की है. अभी और ऊंचाइयों पर जाऊंगी, आप लोग हमेशा याद आएंगे. लाइफ ऐसी ही है, चलती रहती है. आप ठीक समझें तो घर में सब को बता देना, सब आप के ऊपर है और हम कोई सैलिब्रिटी तो हैं नहीं, जिन्हें इस तरह का कदम उठाने पर समाज का कोई डर नहीं होता. हम तो आम लोग हैं. मुझे या आप लोगों को रोजरोज के तानेउलाहने पसंद नहीं आएंगे. यश में अभी बहुत बचपना है. यह भी हो सकता है कि समाज से पहले वही खुद बातबात में मेरा मजाक उड़ाने लगे. मुझे बहुत सारी बातें सोच कर आप सब से दूर होना ही सही लग रहा है.’’

कौफी ठंडी हो चुकी थी. नविका पेमैंट कर उठ खड़ी हुई. कैब आ गई तो स्मिता के गले लगते हुए बोली, ‘‘आई विल मिस यू, मां,’’ और फिर चल दी.

स्मिता अजीब सी मनोदशा में कैब में बैठ गई. दिल चाह रहा था, दूर जाती हुई नविका को आवाज दे कर बुला ले और कस कर गले से लगा ले, पर वह  जा चुकी थी, हमेशा के लिए. उसे कह भी नहीं पाई थी कि उसे भी उस की बहुत याद आएगी. 4 सालों से अपने सारे सच छिपा कर सब के दिलों में जगह बना चुकी थी वह. सच ही कह रही थी वह कि सच छिपातेछिपाते थक सी गई होगी. अगर वह अपने भविष्य को ले कर पौजिटिव है, आगे बढ़ना चाहती है, स्मिता को भले ही अपने परिवार के साथ यह इमोशनल चीटिंग लग रही हो, पर नविका को पूरा हक है अपनी सोच, अपने मन से जीने का.

अगर वह अभी से इस रिश्ते में मानसिक रूप से थक रही है, अभी से यश और अपनी उम्र के अंतर के बोझ से थक रही है तो उसे पूरा हक है इस रिश्ते से आजाद होने का. मगर यह सच है कि स्मिता को उस की याद बहुत आएगी. मन ही मन नविका को भविष्य के लिए शुभकामनाएं दे कर स्मिता ने गहरी सांस लेते हुए कार की सीट पर बैठ कर आंखें मूंद लीं.

IVF Child : अंश हमारा है

IVF Child : विपिन और सीमा बेसब्री से घर में आने वाले नए मेहमान के स्वागत की तैयारी में व्यस्त थे. शादी के 7 साल बाद भी जब उन के आंगन में बच्चे की किलकारियां नहीं सुनाई दीं तो उन्होंने आईवीएफ का सहारा लिया. स्पर्म और एग दे कर लैब में फर्टिलाइजेशन करवा लिया.

दोनों के परिवार वाले काफी संकीर्ण विचारों के थे. आईवीएफ का आइडिया किसी को भी बताया ही नहीं गया था पर विपिन और सीमा ने जब एक बार फैसला ले लिया तो फिर किसी की चिंता नहीं की. सीमा की मां निर्मला बच्चे के घर आने के हिसाब से उन के पास मुंबई आ गई थीं.

विपिन और सीमा को डाक्टर कीर्ति मेनन ने एक प्यारा सा बच्चा उन की गोद में दिया तो दोनों भावुक हो गए, सीमा ने खुशी से रोते हुए बच्चे को चूमचूम कर जैसे वहां उपस्थित सभी लोगों को भावुक कर दिया. निर्मला देवी ने बच्चे को अपनी बांहों में लेते हुए सब को थैंक यू कहा. साथ लाई मिठाई डाक्टर और स्टाफ को देने का इशारा करती नजरों से सीमा से कहा, ‘‘पहले सब का अपने हाथों से मुंह मीठा कराओ.’’

‘‘घर वापसी में विपिन के बराबर में बैठी सीमा बच्चे को ही निहारती रही. विपिन कार चलाते हुए बोला, ‘‘सीमा, हम ने सोचा था बेटा होगा तो नाम अंश रखेंगे, ठीक है न नाम मां?’’

‘‘पंडितजी से निकलवाएंगे, जैसा वे कहें,’’ जवाब सीमा ने दिया, ‘‘मां नहीं, हम खुद रखेंगे बच्चे का नाम, आप के पंडितजी ने कभी यह बताया था कि मैं मां कब बन पाऊंगी?’’

निर्मला चुप हो गईं. बोलीं, ‘‘खुशी का समय है, गुस्सा मत हो जैसा तुम्हें ठीक लगे, वैसा कर लो बेटा.’’

घर तक सिर्फ अंश की ही बातें होती रहीं. विपिन और सीमा का फ्लैट मीरा रोड पर था. घर में काम करने वाली मेड अंजू को अब पूरे दिन के लिए रख लिया गया था. अंश के साथ जैसे सब का जीवन पूरी तरह बदल गया. सब की बातों का केंद्र वही रहता.

सीमा विपिन से हंस कर कहने लगी, ‘‘विपिन, तुम ने देखा हम तो जैसे हर बात भूल गए अपनी, बस ये ही अब लाइमलाइट ले लेता है.’’

विपिन हंसा, ‘‘हां, बहुत दिन तुम्हारे आगेपीछे घूम लिया, अब अंश का नंबर है.’’

सीमा ने छेड़ा, ‘‘मतलब तुम्हें किसी न किसी के आगेपीछे घूमना ही है.’’

‘‘हां यार बड़ी मुश्किल से लाइफ में यह दिन आया है कि तुम्हारे सिवा भी किसी और के आगेपीछे घूमने का मन करता है.’’

यों ही हंसीखुशी 1 महीना बीत गया. प्रोग्राम बना कि अब दोस्तों को, परिवार वालों को बुला कर एक पार्टी भी दे ही दी जाए. विपिन ने अपने मातापिता सीता और गौतम और सीमा के पिता महेश को भी अंश को देखने आने के लिए कहा. तय हुआ कि अगले महीने एक छोटी सी पार्टी कर ली जाएगी. विपिन और सीमा अपनेअपने पेरैंट्स की एकमात्र संतान थे, भाईबहन कोई था नहीं. अंश रातभर रोता, दिनभर सोता.

कुछ दिनों बाद विपिन औफिस जाने लगा. अब तक उस ने अंश के साथ रहने के लिए छुट्टियां ली हुई थीं. सीमा अंश की देखरेख में मगन रहती.

एक दिन निर्मला अंश को ध्यान से देखते हुए कहने लगीं, ‘‘सीमा, इस की शकल तुम लोगों से मिलनी चाहिए न?’’

‘‘हां. पर क्या हुआ अचानक?’’

‘‘यह तुम लोगों से क्यों नहीं मिलता जबकि इस में तुम लोगों की झलक तो दिखनी चाहिए?’’

सीमा को मां का यह कहना अच्छा नहीं लगा. वह चुप रही तो निर्मला को अंदाजा हुआ शायद उन की बात बेटी को बुरी लग गई है. वे फिर टौपिक चेंज कर के कुछ और बातें करने लगीं. पर सीमा को मन में कुछ अटक गया था. वह पूरा दिन बेचैन सी रही.

रात को जब विपिन आया तो सीमा का चेहरा कुछ उतरा सा था. उस ने निर्मला से पूछा तो उन्होंने, ‘पता नहीं’ में सर हिला कर इशारा कर दिया जबकि वे यह जान रही थीं कि सुबह उन की बात के बाद से उन की बेटी उखड़ीउखड़ी सी है.

विपिन फ्रैश हो कर अंश को गोद में उठा कर उस के साथ खेलता रहा. सोते हुए उस ने पूछा, ‘‘सीमा क्या अंश ने आज ज्यादा परेशान किया?’’

सीमा उस के पूछते ही रुंधे गले से बोली, ‘‘विपिन, क्या अंश की शकल हम दोनों से नहीं मिलती?’’

‘‘मिले या न मिले, क्या करना है, यह हमारा बेटा है, बस, बात खत्म,’’ कह कर उस ने सीमा के गले में बांहें डाल उसे बहला दिया पर सीमा का मूड फिर भी ठीक नहीं हुआ. वह बहुत देर तक अंश की शक्ल देखती रही. हां, शायद इस की शक्ल हम लोगों से नहीं मिलती, इस के बाल कितने घुंघराले हैं, हमारे जैसे तो नहीं हैं. अंश के रोने पर उस की तंद्रा भंग हुई. वह उस का नैपी बदलने लगी. विपिन सो चुका था.

अगले दिन से सीमा अंश के लिए होने वाली पार्टी की तैयारियों में व्यस्त हो गई तो यह बात उस के दिमाग से निकल गई. वह फिर से उल्लास से भरी दिखी तो निर्मला को कुछ चैन आया, नहीं तो वे एक अपराधबोध से भर उठी थीं कि इतने दिनों बाद बेटी अंश के साथ खुश थी तो उन्होंने यह बात कर दी. अब उन्हें अच्छा लगा. महेश, सीता और गौतम साथसाथ ही मुंबई पहुंचे. घर में जैसे एक उत्सव का माहौल था. अंश सब के हाथ में जैसे एक खिलौने की तरह घूमता रहा. तीनों उस के लिए बहुत कुछ लाए थे. सीता अंश को ध्यान से देख रही थीं तो विपिन ने पूछ लिया, ‘‘क्या देख रही हो मां?’’

सीता ने कहा, ‘‘यह तुम दोनों का ही बच्चा है न?’’

‘‘क्यों मां?’’

‘‘घर में तो इस की शकल किसी से नहीं मिल रही है? हौस्पिटल में कुछ गड़बड़ तो नहीं हुई न?’’

‘‘मां, अभी यह कितना छोटा है, अभी कैसे इस की शकल समझ आ सकती है? आप ही तो कहती थीं कि बच्चा पता नहीं कितनी शक्लें बदलता है. क्या बेकार के शक वाली बातें हैं ये.’’

सीमा ने यह वार्त्तालाप सुना तो उस का दिल बैठ गया. कहीं हौस्पिटल में तो कुछ गलती नहीं हो गई. खैर, वह फिर इस विषय पर चुप ही रही. उस की नजरें अपनी मां से मिलीं तो जैसे उन्होंने भी यही कहा कि देखो, मैं ने सच ही कहा था न.

सोसाइटी के क्लब हाउस में ही अंश की पार्टी थी. दोनों के करीब सौ परिचित आए थे. पार्टी सब ने बहुत ऐंजौय की. गोलमटोल अंश सब की नजरों का केंद्र बना रहा. अच्छे खुशनुमा माहौल में सब खातेपीते रहे.

सीमा की बैस्ट फ्रैंड आरती ने उसे एक किनारे ले जा कर पूछा, ‘‘सीमा, तू बीचबीच में इतनी चुप सी क्यों दिख रही है मुझे कुछ उलझ सी है?’’

सीमा और आरती पुरानी सहेलियां थीं. सीमा दिल का शक उस से बांटने लगी, ‘‘यार,सब कह रहे है कि हौस्पिटल में कहीं गड़बड़ तो नहीं हुई. अंश हमारी तरह बिलकुल नहीं दिखता, क्या करूं, मन में शक सा बैठ गया है. चल, कल जा कर डाक्टर कीर्ति से बात करती हैं? चलेगी? किसी को बिना बताए चलते हैं कल.’’

‘‘ठीक है, फोन करना आ जाऊंगी.’’

सब से घर का कुछ सामान लेने जाने का बहाना कर आरती के साथ सीमा डाक्टर कीर्ति से मिलने गई. उन्होंने सारी बात सुन कर सीमा को बहुत समझाया कि हमारे यहां कोई गड़बड़ नहीं हुई. ऐसा अकसर हो जाता है. अभी तो अंश बहुत छोटा है. अभी से यह शक नहीं करना चाहिए कि अंश उन का बेटा नहीं.’’

डाक्टर जितनी अच्छी तरह समझ सकती थी, उन्होंने समझाया पर सीमा को तसल्ली नहीं हुई तो आरती ने कहा, ‘‘कुछ दिन और सोच ले परेशान मत हो.’’

कुछ दिन और बीते दोनों के पेरैंट्स कुछ दिन रह कर चले गए पर उन के मन में शक का एक बीज डाल ही गए थे. अंश को आईवीएफ से प्राप्त किया था. अंश सालभर का हो गया. वह बहुत सुंदर, बहुत गोरे रंग का स्वस्थ बच्चा था जबकि विपिन और सीमा उतने गोरे नहीं थे.

आसपास के लोग कभीकभी कह उठते, ‘‘अरे, यह किस पर है? ’’

और दोनों इस बात को दिल से लगा लेते. एक दिन आरती ने कहा, ‘‘मेरी भाभी एक बाबा को बहुत मानती हैं, तू चाहे तो उन से मिल ले. वे सब की शंकाओं का समाधान करते हैं. वाशी में उन का एक बड़ा आश्रम है और बहुत बड़ेबड़े लोग उन के यहां आते हैं.’’

सीमा ने विपिन से इस बारे में कोई बात नहीं की. वह अंश को ले कर इतनी उलझन और शक में थी कि कभी किसी बाबा के चक्कर में न पड़ने वाली सीमा एक दिन अंश को ले कर टैक्सी से वाशी जा पहुंची. बाबा ओंकार नाथ भक्तों से घिरे बैठे थे. वह एक कोने में जा कर खड़ी हो गई. एक युवा, सुंदर लड़की उस के पास आ कर बोली, ‘‘कहिए, क्या काम है?’’

‘‘बाबा से मिलना है.’’

‘‘पहली बार आई हो?’’

‘‘हां.’’

‘‘क्या परेशानी है?’’

‘‘उन्हें ही बताऊंगी.’’

‘‘एक फौर्म भर दो.’’

सीमा हैरान तो हुई पर फौर्म भर दिया, नाम, फोन नंबर ही लिखना था.

उस लड़की ने जा कर बाबा के कान में कुछ कहा और बाकी भीड़ को हटाया तो सीमा ने बाबा को ध्यान से देखा, याद आया उन के प्रवचन के पोस्टर उस ने कई जगह देखे हुए थे. न्यूज पेपर में भी उन के साथ किसी न किसी नेता का फोटो दिखाई दे जाता था, करीब 50-55 साल के ओंकार नाथ ने उस लड़की से कुछ कहा और फिर वे एक रूम में चले गए. लड़की उसे उस रूम में ले जाते हुए कहने लगी कि लग रहा है तुम किसी परेशानी में हो, बाबा आराम से तुम से बात करना चाहते हैं.’’

भव्य, सारी सुविधाओं से संपन्न कमरे में बाबा एक इजी चेयर पर बैठे हुए थे. लड़की ने सीमा को पास रखी चेयर पर बैठने का इशारा किया और रूम से चली गई. एक बार तो सीमा मन ही मन डर गई, यह क्या किया उस ने, किसी को बिना बताए यहां आ गई, कैसी बेवकूफी कर दी. अंश उस की गोद में गहरी नींद सोया था.

बाबा ने अपनी गहरी सी आवाज में कहा, ‘‘कहो, क्या परेशानी है?’’

बाबा की आवाज में कुछ सम्मोहन सा था. सीमा कुछ सहज हो गई. उस ने अपने मन की बात बता कर कहा, ‘‘बस मुझे ऐसे ही चैन नहीं आ रहा है. यही सोचती रहती हूं कि सचमुच कहीं अंश हमारा बेटा न हो, कैसे मेरे दिल को चैन आए कि यह हमारा ही बेटा है.’’

ओंकार नाथ कुछ देर सोचते रहे, फिर ध्यान से अंश को देखते हुए अपनी आंखें बंद कर लीं, फिर थोड़ी देर बाद कहा, ‘‘तुम 2 दिन बाद फिर आओ, तुम्हारी शंका का समाधान हो जाएगा.’’

‘‘कैसे?’’

‘‘बाहर वही लड़की खड़ी है जो तुम्हें आगे का काम समझा देगी.’’

सीमा अनमनी सी उस रूम से बाहर निकल आई. वह लड़की उसे एक कोने में रखी चेयर के पास ले गई. बोली, ‘‘आराम से बैठो. सुनो, आज की फीस 2 हजार है, पहले वह जमा करवा दो.’’

सीमा हैरान हुई, ‘‘फीस कैसी?’’

‘‘बाबाजी ने अपना टाइम नहीं दिया? तुम से बात नहीं की?’’

‘‘मैं नहीं दूंगी, अभी मेरे पास हैं भी नहीं.’’

‘‘शायद तुम बाबाजी को अच्छी तरह जानती नहीं.’’

‘‘मैं फिर आऊंगी तो ले आऊंगी,’’ सीमा ने इतना कहा ही था कि अंश उठ गया और उस की गोद से छूटने के लिए हाथपैर मारने लगा.

सीमा ने कहा, ‘‘अभी मुझे घर जाना है, फिर आऊंगी तो पैसे ले आऊंगी.’’

सीमा अंश को ले कर वहां से निकल आई. उस की जान में जान आई. उस ने सोचा नहीं वह यहां नहीं आएगी. घर आ कर भी सीमा ने विपिन से कुछ नहीं बताया, 2 दिन बीते कि सीमा के फोन पर किसी ने फोन किया. एक लड़की की आवाज थी, ‘‘आप बाबाजी से मिलने नहीं आईं?’’

सीमा को झटका सा लगा, उस ने रूखे स्वर में कहा, ‘‘हां, टाइम नहीं मिला.’’

फिर फोन किसी पुरुष ने ले लिया, कहा, ‘‘बाबाजी तुम से मिलना चाहते हैं.’’

‘‘मैं फिलहाल नहीं आ रही हूं.’’

‘‘ठीक है, अगले हफ्ते आ जाना,’’ कह कर फोन रख दिया गया तो सीमा हैरान सी बैठी रही कि यह क्या जबरदस्ती है.

10 दिन और बीते तो सीमा ने सोचा कि अब बाबा का किस्सा खतम हुआ पर ऐसा नहीं था. फोन आ गया.

इस बार किसी पुरुष ने कहा, ‘‘आप उस दिन बाबाजी से पूछ रही थीं कि आपका बेटा आप का ही है या नहीं, जानने के लिए आओगी नहीं?’’

‘‘नहीं, मुझे नहीं जानना है.’’

‘‘फिर सारी दुनिया क्या जान जाएगी, पता है?’’ कह कर वह पुरुष बड़ी बेशर्मी से हंसा, फिर बोला, ‘‘बाबाजी के कमरे में क्या करने गई थी?’’

सीमा को गुस्सा आ गया. डपटते हुए कहा, ‘‘क्या बकवास है?’’

‘‘सब तक यह खबर पहुंच जाएगी कि वह बच्चा तुम्हारा नहीं है, देख लेना और अगर चाहती हो कि अब यह बात न खुले तो 25 हजार ले कर चुपचाप आश्रम आओ नहीं तो तुम्हें अंदाजा भी नहीं है कि क्याक्या होगा. तुम्हें पता भी है कि तुम्हारे कितने पड़ोसी और रिश्तेदार स्वामीजी के भक्त हैं. उन सब तक यह बात पहुंचाना हमारे लिए कोई मुश्किल बात नहीं है. देखना कैसीकैसी बातें होगीं फिर. तब समझ आएगा कि हमारे कहे अनुसार न चल कर कितनी गलती की तुम ने समझा?’’

सीमा का दिमाग भन्ना गया, यह कहां फंस गई वह. बाबा है या कोई चोर, सिरदर्द से फटने लगा.

विपिन आया तो उस की शकल देख कर हैरान हो गया, उड़ी सी, डरी हुई. सीमा उसे देखते ही उस से लिपट कर रोने लगी, ‘‘मुझ से बड़ी गलती हो गई विपिन, सौरी.’’

वह रोई तो अंश भी उसे देख कर घबरा कर रोने लगा, विपिन ने एक हाथ से अंश को गोद में लिया, दूसरे हाथ से सीमा का हाथ पकड़ कर सोफे पर बैठाया, ‘‘क्या हुआ सीमा इतनी परेशान क्यों हो?’’

रोते हुए सीमा ने विपिन को पूरी बात बता दी. विपिन ने अपना सिर पकड़ लिया, ‘‘यह क्या किया, सीमा, तुम ऐसी कब से हो गई? क्यों बेकार के शक में पड़ी हो. यह देखो, तुम्हें रोते देख अंश भी रोने लगा, आज से ही बेकार के शक हम दोनों ही अपने दिमाग से निकाल देगें, डाक्टर ने कहा था न कि ऐसी कोई गलती नहीं हुई है, कितने ही बच्चे परिवार में बिलकुल अलग दिखते हैं, हम पढ़ेलिखे लोग भी बाबाओं के चक्कर में पड़ ही जाते हैं.

‘‘खैर अब छोड़ो, चिंता मत करो, यह बेकार का शक है, बस, अंश हमारा ही बेटा है, यह मेरा दिल कहता है, तुम तो इस की मां हो, तुम क्यों भटक रही हो? सोचो, अंश को वे लोग कोई नुकसान पहुंचा देते तो?’’

विपिन की बातों से सीमा के दिल को कुछ तसल्ली हुई. उस ने कहा, ‘‘ठीक कहते हो, मैं ही बेवकूफी कर आई. पता नहीं क्यों लोगों की इस बात पर इतना ध्यान दे दिया. पर अब किसी का फिर फोन आ गया तो?’’

‘‘थोड़े दिन लैंड लाइन से काम चलाओ, फोन औफ रखना, जरूरी काम हो तभी औन करना.’’

सीमा थोड़े तैश से बोली, ‘‘इन लोगों की पुलिस कंप्लेंट नहीं करनी चाहिए? परदाफाश नहीं होना चाहिए ऐसे बाबाओं का? एक बार क्या चली गई परेशान कर दिया.’’

‘‘नहीं, बाबाओं के हाथ बहुत लंबे होते हैं, उन से बच निकलना ही काफी है, ये लोग अपने विरोधियों को मरवा तक देते हैं. अभी हम इन चक्करों में नहीं पड़ सकते, हमें अंश को बड़ा करना है,’’ विपिन ने बहुत शांत स्वर में सीमा को समझाया.

‘‘ठीक कहते हो, ऐसा लग रहा है बालबाल बचे. 1-2 बार और चली जाती तो बहुत बुरी फंसती.’’

‘‘चलो, अब चिंता छोड़ो, अंश हमारा अंश है, बस,’’ कहतेकहते विपिन ने अंश के गाल चूम लिए, अंश उस से लिपट गया. सीमा ने प्यार से दोनों के गले में बांहें डाल दीं.

Short Story- एक लड़की: जब पहली बार प्यार में मुसकराई शबनम

मैंने पकौड़ा खा कर चाय का पहला घूंट भरा ही था कि बाहर से शबनम की किसी पर बिगड़ने की तेज आवाज सुनाई दी. वह लगातार किसी को डांटे जा रही थी. उत्सुकतावश मैं बाहर निकली तो देखा कि वह गार्ड से उलझ रही है.

एक घायल लड़के को अपने कंधे पर एक तरह से लादे हुए वह अंदर दाखिल होने की कोशिश में थी और गार्ड लड़के को अंदर ले जाने से मना कर रहा था.

‘‘भैया, होस्टल के नियम तो तुम मुझे सिखाओ मत. कोई सड़क पर मर रहा है, तो क्या उसे मर जाने दूं? क्या होस्टल प्रशासन आएगा उसे बचाने? नहीं न. अरे, इंसानियत की तो बात ही छोड़ दो, यह बताओ किस कानून में लिखा है कि एक घायल को होस्टल में ला कर दवा लगाना मना है? मैं इसे कमरे में तो ले जा नहीं रही. बाहर ग्राउंड में जो बैंच है, उसी पर लिटाऊंगी. फिर तुम्हें क्या प्रौब्लम हो रही है? लड़कियां अपने बौयफ्रैंड को ले कर अंदर घुसती हैं तब तो तुम से कुछ बोला नहीं जाता,’’ शबनम झल्लाती हुई कह रही थी.

गार्ड ने झेंपते हुए दरवाजा खोल दिया और शबनम बड़बड़ाती हुई अंदर दाखिल हुई. उस ने किसी तरह लड़के को बैंच पर लिटाया और जोर से चीखी, ‘‘अरे, कोई है? ओ बाजी, देख क्या रही हो? जाओ, जरा पानी ले कर आओ.’’ फिर मुझ पर नजर पड़ते ही उस ने कहा, ‘‘नेहा, प्लीज डिटोल ला देना. इस के घाव पोंछ दूं और हां, कौटन भी लेती आना.’’

मैं ने अपनी अलमारी से डिटोल निकाला और बाहर आई. देखा, शबनम अब उस लड़के पर बरस रही है, ‘‘कर ली खुदकुशी? मिल गया मजा? तेरे जैसे लाखों लड़के देखे हैं. लड़की ने बात नहीं की तो या फेल हुए तो जान देने चल दिए. पैसा नहीं है, तो जी कर क्या करना है? अरे मरो, पर यहां आ कर क्यों मरते हो?’’

शबनम उसे लगातार डांट रही थी और वह खामोशी से शबनम को देखे जा रहा था. उस का दायां हाथ काफी जख्मी हो गया था. एक तरफ चेहरे और पैरों पर भी चोट लगी थी. माथे से भी खून बह रहा था.

बाजी बालटी में पानी भर लाईं और शबनम उस में रुई डुबाडुबा कर उस के घाव पोंछने लगी. फिर घाव पर डिटोल लगा कर पट्टी बांध दी और मुझ से बोली, ‘‘तू जरा इसे ठंडा पानी पिला दे, तब तक मैं इस के घर वालों को खबर कर देती हूं.’’

‘‘तू इसे पहले से जानती थी शबनम?’’ मैं ने पूछा तो वह मुसकराई.

‘‘अरे नहीं, मैं औफिस से आ रही थी, तो देखा यह लड़का जानबूझ कर गाड़ी के नीचे आ गया. इस के सिर पर चोट लगी थी, इसलिए यहां उठा लाई. अब घर वाले आ कर इसे अस्पताल ले जाएं या घर, उन की मरजी,’’ कह कर उस ने लड़के से उस के पिता का नंबर पूछा और उन्हें बुला लिया.

इधर मैं अपने कमरे में आ कर शबनम के बारे में सोचने लगी. आज कितना अलग रूप देखा था मैं ने उस का. उस लड़के के घाव पोंछते वक्त वह कितनी सहज थी. लड़कियां चाहे कुछ भी कहें, आज मैं ने महसूस किया था कि वह दिल की कितनी अच्छी है.

पूरे होस्टल में अक्खड़, मुंहफट और घमंडी कही जाने वाली शबनम की बुराई करने से कोई नहीं चूकता. लड़कियां हों या गार्ड या फिर कामवाली, हर किसी की यही शिकायत थी कि शबनम कभी सीधे मुंह बात नहीं करती है. अकड़ दिखाती है. टीवी देखने आती है तो जबरदस्ती वही चैनल लगाती है, जो उसे देखना हो. दूसरों की नहीं सुनती. वैसे ही उस की जिद रहती है कि काम वाली सुबह सब से पहले उस का कमरा साफ करे.

पहनावे में भी दूसरों से बिलकुल अलग दिखती थी वह. गरमी हो या सर्दी, हमेशा पूरी बाजू के कपड़े पहनती, जिस की नैक भी ऊपर तब बंद होती. उस की इस अटपटी ड्रैस की वजह से लड़कियां अकसर उस का मजाक उड़ाती थीं पर वह इस पर ध्यान नहीं देती थी.

देखने में वह खूबसूरत थी पर नाम के विपरीत चेहरे पर कोमलता नहीं सख्ती के भाव होते थे. डीलडौल भी काफी अच्छा था और आवाज काफी सख्त थी, जो उस की पर्सनैलिटी को दबंग बनाती थी और सामने वाला उस से पंगे लेने से बचता था.

वह मेरे कमरे के साथ वाले कमरे में रहती थी, इसलिए मुझ से उस की थोड़ीबहुत बातचीत होती रहती थी. हम 1-2 दफा साथ घूमने भी गए थे, पर हमेशा ही मुझ वह ऐसी बंद किताब लगी जिसे चाह कर भी पढ़ना मुमकिन नहीं था.

8-10 दिन बाद की बात है, मैं ने देखा, शबनम ग्राउंड में बैंच पर बैठी किसी लड़के से बात कर रही है. उस वक्त शबनम की आवाज इतनी तेज थी कि लग रहा था, वह उस लड़के को डांट रही है. 2-3 लड़कियां उधर से शबनम का मजाक उड़ाती हुई आ रही थीं.

एक कह रही थी, ‘‘लो आ गई उस लड़के की शामत. उसे नहीं पता कि किस लड़की से पाला पड़ा है उस का.’’

दूसरी ने कमैंट किया, ‘‘लड़का कह रहा होगा, मुझ पर करो न यों सितम…’’

मैं ने गौर से देखा, यह तो वही लड़का था, जिस की उस दिन शबनम ने मरहमपट्टी की थी. लड़का अब काफी हद तक ठीक हो चुका था पर माथे और हाथ पर अभी भी पट्टी बंधी थी.

बाद में जब मैं ने शबनम से उस के बारे में पूछा तो वह बोली, ‘‘धन्यवाद कहने आया था और हिम्मत तो देखो, मुझ से दोस्ती करना चाहता था. कह रहा था, फिर मिलने आऊंगा.’’

‘‘तो तुम ने क्या कहा?’’

‘‘अरे, मुझे क्या कहना था, अच्छी तरह समझा दिया कि मैं दोस्तीवोस्ती के चक्कर में नहीं पड़ने वाली. रोजरोज मेरा दिमाग खाने के लिए आने की जरूरत नहीं. लड़कों की फितरत अच्छी तरह समझती हूं मैं.’’

आगे उस लड़के का हश्र क्या होगा, यह मैं अच्छी तरह समझ सकती थी, इसलिए शबनम को और न छेड़ते हुए मैं मुसकराती हुई अपने कमरे में चली आई.

उस दिन के बाद 2-3 बार और भी मैं ने उस लड़के को शबनम से बातें करते देखा और हमेशा शबनम उसे झिड़कती हुई ही दिखी. एक दिन उस ने बताया कि वह लड़का हाथ धो कर पीछे पड़ गया है. फोन भी करने लगा है कि मैं तुम्हें पसंद करता हूं. अरे यार, बदतमीजी की भी हद होती है. घाव पर मरहम क्या लगाया, वह तो हाथ पकड़ने पर आमादा हो गया है.

‘‘तो इस में बुराई क्या है यार. वह तुझे इतना चाहता है, देखने में भी हैंडसम है. अच्छा कमाता है, घरपरिवार भी अच्छा है, तू ने ही बताया है. तो तू मना क्यों कर रही है? क्या कोई और है तेरी जिंदगी में?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं, कोई और नहीं है. जरूरत भी नहीं है मुझे. और वह जैसा भी है उस से मुझे क्या लेनादेना? आज पीछे पड़ा है, तो हो सकता है कल देखना भी न चाहे, अजनबी बन जाए. हजारों कमियां निकाले मुझ में. इतना ही अच्छा है तो ढूंढ़ ले न कोई अच्छी लड़की. मैं ने क्या मना किया है? मैं क्यों अपनी खुशियां किसी और के आसरे छोड़ूं? जैसी भी हूं, ठीक हूं…’’ कहतेकहते उस की आंखें नम हो उठीं.

‘‘शबनम, प्यार बहुत खूबसूरत होता है. वह वीरान जिंदगी में खुशियों की बहार ले कर आता है. किसी से हो जाए तो सूरत, उम्र, जाति कुछ नहीं दिखता. इंसान इस प्यार को पाने के लिए हर कुरबानी देने को तैयार रहता है.’’ मैं ने समझना चाहा.

पर वह अकड़ती हुई बोली, ‘‘बहुत देखे हैं प्यार करने वाले. मैं इन झमेलों से दूर सही…’’ और अपने कमरे में चली गई.

अगले दिन वह लड़का मुझ होस्टल के गेट पर मिल गया. मुझ से विनती करता हुआ बोला, ‘‘प्लीज नेहाजी, आप ही समझओ न शबनमजी को. वे मुझ से मिलना नहीं चाहतीं.’’

‘‘तुम प्यार करते हो उस से?’’ में ने सीधा प्रश्न किया तो चकित नजरों से उस ने मेरी तरफ देखा फिर सिर हिलाता हुआ बोला, ‘‘बहुत ज्यादा. जिंदगी में पहली दफा ऐसी लड़की देखी. खुद पर निर्भर, दूसरों के लिए लड़ने वाली, आत्मविश्वास से भरपूर. उस ने मुझे जीना सिखाया है. मुश्किलों से हार मानने के बजाय लड़ने का जज्बा पैदा किया है. मैं ने तो औरतों को सिर्फ पति के इशारों पर चलते, रोतेसुबकते और घरेलू काम करते देखा था. पर वह बहुत अलग है. जितना ही उसे देखता हूं, उसे पाने की तमन्ना बढ़ती जाती है. प्लीज, आप मेरी मदद करें. मेरे मन की बातें उस तक पहुंचा दें.’’

‘‘मैं कोशिश करती हूं,’’ मैं ने कहा तो उस के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई. मुझे नमस्ते कर के वह चला गया.

रात को मैं फिर से शबनम के कमरे में दाखिल हुई. वह अकेली थी. ‘‘आज वह गेट पर मिला था,’’ मैं ने कहा.

‘‘जानती हूं. मुझे बाहर बुला रहा था लेकिन मैं नहीं गई.’’

मैं ने उसे कुरेदा, ‘‘तू प्यार से भाग क्यों रही है? जानती है, प्यार हर दर्द मिटा देता है?’’

वह हंसी, ‘‘प्यार दर्द मिटाता नहीं, नए जख्म पैदा करता है. बहुत स्वार्थी होता है प्यार.’’

‘‘मैं आज वजह जान कर रहूंगी कि आखिर क्यों भागती है तू प्यार से? या तो मुझे हकीकत बता दे या फिर उस लड़के को अपना ले जो सिर्फ तेरी राह देख रहा है.’’

‘‘मैं ने भी देखी थी किसी की राह पर उस ने…,’’ कहते हुए अचानक उस की आंखें भीग गईं.

मैं ने प्यार से उस का माथा सहलाते हुए कहा, ‘‘शबनम, अपने दिल का दर्द बाहर निकाल. तभी तू खुश रह सकेगी. मुझे सबकुछ बता दे. मैं जानती हूं, तू दिल की बहुत अच्छी है. पर कुछ तो ऐसा है जो तेरे दिल को तड़पाता है. यह पीड़ा तुझे सामान्य नहीं रहने देती. तेरे चेहरे, तेरे व्यवहार में झलकने लगती है. यकीन रख, तू जो भी बताएगी, वह सिर्फ मुझ तक रहेगा. पर मुझ से कुछ मत छिपा. किस ने चोट पहुंचाई है तुझे?’’

वह थोड़ी नौर्मल हुई तो बिस्तर पर पीठ टिका कर बैठ गई और कहने लगी, ‘‘नेहा,

4 साल पहले तक मैं भी एक ऐसी लड़की थी जिस का दिल किसी के लिए धड़कता था. मैं भी प्यार को बहुत खूबसूरत मानती थी. मेरी भी तमन्नाएं थीं, कुछ सपने थे. दूसरों से प्रेम से बातें करना, मिल कर रहना अच्छा लगता था मुझे. जिसे प्यार किया, उसी के साथ पूरी उम्र गुजारना चाहती थी और उस की यानी विक्रम की भी यही मरजी थी. उस ने मुझे हमेशा ऐतबार दिलाया था कि वह मुझे प्यार करता है, मेरे साथ घर बसाना चाहता है. हमारी जोड़ी कालेज में भी मशहूर थी. पर वक्त की चोट ने उस की असलियत मेरे सामने ला कर रख दी.’’

‘‘एक दिन मैं ने देखा कि मेरी बांह और पीठ पर सफेद निशान हो गए हैं. मैं घबरा गई. डाक्टरों के चक्कर लगाने लगी पर दाग बढ़ते ही गए. जब मैं ने यह राज विक्रम के आगे खोला तो उस के चेहरे के भाव ही बदल गए और 2-4 दिनों के अंदर ही उस का व्यवहार भी बदलने लगा. अब वह मुझसे दूर रहने की कोशिश करता. हालांकि 1-2 दफा मेरे कहने पर वह मेरे साथ डाक्टर के यहां भी गया पर कुछ अनमना सा रहता था. धीरेधीरे वह मिलने से भी कतराने लगा.

‘‘उधर हमारी पढ़ाई पूरी हो गई और पापा को मेरी शादी की फिक्र होने लगी. मैं ने विक्रम से इस बारे में चर्चा की तो वह शादी से बिलकुल मुकर गया. मैं तड़प उठी. उस के आगे रोई, गिड़गिड़ाई पर सिर्फ इस सफेद दाग की वजह से वह मुझ से जुड़ने को तैयार नहीं हुआ.’’ कहते हुए उस ने अपने कुरते की बाजू ऊपर उठाई. उस की बांह पर कई जगह सफेद दाग थे.

शून्य की तरफ देखते हुए वह बोली, ‘‘मैं आज भी उसे भुला नहीं सकी पर

कहां जानती थी कि उस का प्यार सिर्फ मेरे शरीर से जुड़ा था. शरीर में दोष उत्पन्न हुआ तो उस ने राहें बदल लीं. किसी और से शादी कर ली. तभी मैं ने समझा कितना स्वार्थी, कितना संकीर्ण होता है यह प्यार.

‘‘मैं ने तो विक्रम की शक्ल नहीं देखी थी. देखने में बिलकुल ऐवरेज था. सांवला, मोटा. मैं उस से बहुत खूबसूरत थी. मैं चाहती तो उस की कमियां गिना कर उसे ठुकरा सकती थी. पर मैं ने तो प्यार किया था और उस ने ऐसी चोट दी कि सारे जज्बात ही खत्म कर डाले. तभी से मुझ में एक तरह की जिद आ गई. मैं समझ गई कि जिंदगी में मांगने पर कुछ नहीं मिलता. मुझे जो चाहिए होता वह जबरदस्ती दूसरों से छीनने लगी. खुद को कमजोर महसूस नहीं कर सकती मैं. किसी की सहानुभूति भरी नजरें भी नहीं चाहिए. न ही किसी का इनकार सह पाती हूं. यही जिद मेरे व्यवहार में नजर आने लगा है. और शायद यही वजह है कि मैं 35 की हो गई पर शादी के नाम से दूर भागती हूं.’’

‘‘यह सब बहुत ही स्वाभाविक है शबनम. पर सच तो यह है कि विक्रम का प्यार मैच्योर नहीं था. वह दिल से तुझ से जुड़ ही नहीं सका था, इसीलिए तुम्हारे रिश्ते का धागा बहुत कमजोर था. वह हलकी सी चोट भी सह नहीं सका. पर अर्पण की आंखों में देखा है मैं ने, वाकई उस के दिल में सिर्फ तुम हो, क्योंकि उस ने सूरत देख कर नहीं, तुम्हारे गुण देख कर तुम्हें चाहा है. इसलिए वह तुम्हारा साथ कभी नहीं छोड़ेगा. किसी स्वार्थी इंसान की वजह से खुद को खुशियों से बेजार रखना कहां की अक्लमंदी है?

‘‘शबनम, यदि ठंडी हवा के झोंके सा अर्पण का प्यार तुम्हारे जख्मों पर मरहम लगा सकता है, तो दिल की खिड़कियां बंद कर लेना सही नहीं.’’

‘‘मैं कैसे मान लूं कि अर्पण का प्यार सच्चा है, स्वार्थी नहीं.’’

‘‘ऐसा कर, उसे हर बात बता दे. फिर देख, वह क्या कहता है. मैं जानती हूं, उस का जवाब निश्चित रूप से हां होगा.’’

शबनम ने उसी वक्त फोन उठाया और बोली, ‘‘ठीक है, यह भी कर के देख लेती हूं. अभी तेरे सामने बताती हूं उसे सब कुछ.’’

फिर उस ने फोन मिलाया और स्पीकर औन कर बोली, ‘‘अर्पण, मैं तुम से बात

करना चाहती हूं अभी, इसी वक्त. समय है तुम्हारे पास?’’

‘‘बिलकुल, आप कहिए तो,’’ अर्पण ने जवाब दिया.

‘‘अर्पण, तुम्हारे दिल की बात नेहा ने मुझ तक पहुंचा दी है. अब मैं अपनी जिंदगी की असलियत तुम तक पहुंचाना चाहती हूं. बस एक हकीकत, जिसे सुन कर तुम्हारा सारा प्यार काफूर हो जाएगा…’’

‘‘ऐसा क्या है शबनमजी?’’

‘‘बात यह है कि मेरे पूरे शरीर पर सफेद दाग हैं, जो ठीक नहीं हो सकते. गले पर, पीठ पर, बांहों पर और आगे… हर जगह. अब बताओ, क्या है तुम्हारा फैसला?’’

‘‘फैसला क्यों बदलेगा शबनमजी? और दूसरी बात यह कि किस ने कहा दाग ठीक नहीं हो सकते? मेरे अंकल डाक्टर हैं, उन्हें दिखाएंगे हम. वक्त लगता है, पर ऐेसे दाग ठीक हो जाते हैं. मान लीजिए, ठीक न हुए तो भी मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि मैं आप को चाहता हूं. कमियां तो मुझ में भी हैं, पर उस से क्या? एकदूसरे को अपनाने का मतलब एकदूसरे की खूबियों और कमियों को स्वीकारना ही तो होता है. कल को मेरे शरीर पर कुछ हो जाए या मुझे कोई बीमारी हो जाए तो क्या आप मुझे छोड़ देंगी? नहीं न शबनमजी, बताइए? मेरी मम्मी पास ही बैठी हैं, उन्होंने सब कुछ सुन लिया है और उन की तरफ से भी हां है. आप बस मेरा साथ दीजिए. आप नहीं जानतीं, मैं ने बहुत कुछ सीखा है आप से. आप मेरे साथ रहेंगी तो मैं खुद को बेहतर ढंग से पहचान सकूंगा. जी सकूंगा अपनी जिंदगी. आई लव यू…’’

शबनम ने मेरी तरफ देखा. मैं ने उस से हां कहने का इशारा किया तो

वह धीरे से बोल उठी, ‘‘आई लव यू टू…’’

फिर शबनम ने तुरंत फोन काट दिया और मेरे गले लग कर रोने लगी. मैं जानती थी. आज उस की आंखें भले ही रो रही हों पर दिल पहली दफा पूरी तरह प्यार में डूबा मुसकरा रहा था.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें