IVF Child : विपिन और सीमा बेसब्री से घर में आने वाले नए मेहमान के स्वागत की तैयारी में व्यस्त थे. शादी के 7 साल बाद भी जब उन के आंगन में बच्चे की किलकारियां नहीं सुनाई दीं तो उन्होंने आईवीएफ का सहारा लिया. स्पर्म और एग दे कर लैब में फर्टिलाइजेशन करवा लिया.
दोनों के परिवार वाले काफी संकीर्ण विचारों के थे. आईवीएफ का आइडिया किसी को भी बताया ही नहीं गया था पर विपिन और सीमा ने जब एक बार फैसला ले लिया तो फिर किसी की चिंता नहीं की. सीमा की मां निर्मला बच्चे के घर आने के हिसाब से उन के पास मुंबई आ गई थीं.
विपिन और सीमा को डाक्टर कीर्ति मेनन ने एक प्यारा सा बच्चा उन की गोद में दिया तो दोनों भावुक हो गए, सीमा ने खुशी से रोते हुए बच्चे को चूमचूम कर जैसे वहां उपस्थित सभी लोगों को भावुक कर दिया. निर्मला देवी ने बच्चे को अपनी बांहों में लेते हुए सब को थैंक यू कहा. साथ लाई मिठाई डाक्टर और स्टाफ को देने का इशारा करती नजरों से सीमा से कहा, ‘‘पहले सब का अपने हाथों से मुंह मीठा कराओ.’’
‘‘घर वापसी में विपिन के बराबर में बैठी सीमा बच्चे को ही निहारती रही. विपिन कार चलाते हुए बोला, ‘‘सीमा, हम ने सोचा था बेटा होगा तो नाम अंश रखेंगे, ठीक है न नाम मां?’’
‘‘पंडितजी से निकलवाएंगे, जैसा वे कहें,’’ जवाब सीमा ने दिया, ‘‘मां नहीं, हम खुद रखेंगे बच्चे का नाम, आप के पंडितजी ने कभी यह बताया था कि मैं मां कब बन पाऊंगी?’’
निर्मला चुप हो गईं. बोलीं, ‘‘खुशी का समय है, गुस्सा मत हो जैसा तुम्हें ठीक लगे, वैसा कर लो बेटा.’’
घर तक सिर्फ अंश की ही बातें होती रहीं. विपिन और सीमा का फ्लैट मीरा रोड पर था. घर में काम करने वाली मेड अंजू को अब पूरे दिन के लिए रख लिया गया था. अंश के साथ जैसे सब का जीवन पूरी तरह बदल गया. सब की बातों का केंद्र वही रहता.
सीमा विपिन से हंस कर कहने लगी, ‘‘विपिन, तुम ने देखा हम तो जैसे हर बात भूल गए अपनी, बस ये ही अब लाइमलाइट ले लेता है.’’
विपिन हंसा, ‘‘हां, बहुत दिन तुम्हारे आगेपीछे घूम लिया, अब अंश का नंबर है.’’
सीमा ने छेड़ा, ‘‘मतलब तुम्हें किसी न किसी के आगेपीछे घूमना ही है.’’
‘‘हां यार बड़ी मुश्किल से लाइफ में यह दिन आया है कि तुम्हारे सिवा भी किसी और के आगेपीछे घूमने का मन करता है.’’
यों ही हंसीखुशी 1 महीना बीत गया. प्रोग्राम बना कि अब दोस्तों को, परिवार वालों को बुला कर एक पार्टी भी दे ही दी जाए. विपिन ने अपने मातापिता सीता और गौतम और सीमा के पिता महेश को भी अंश को देखने आने के लिए कहा. तय हुआ कि अगले महीने एक छोटी सी पार्टी कर ली जाएगी. विपिन और सीमा अपनेअपने पेरैंट्स की एकमात्र संतान थे, भाईबहन कोई था नहीं. अंश रातभर रोता, दिनभर सोता.
कुछ दिनों बाद विपिन औफिस जाने लगा. अब तक उस ने अंश के साथ रहने के लिए छुट्टियां ली हुई थीं. सीमा अंश की देखरेख में मगन रहती.
एक दिन निर्मला अंश को ध्यान से देखते हुए कहने लगीं, ‘‘सीमा, इस की शकल तुम लोगों से मिलनी चाहिए न?’’
‘‘हां. पर क्या हुआ अचानक?’’
‘‘यह तुम लोगों से क्यों नहीं मिलता जबकि इस में तुम लोगों की झलक तो दिखनी चाहिए?’’
सीमा को मां का यह कहना अच्छा नहीं लगा. वह चुप रही तो निर्मला को अंदाजा हुआ शायद उन की बात बेटी को बुरी लग गई है. वे फिर टौपिक चेंज कर के कुछ और बातें करने लगीं. पर सीमा को मन में कुछ अटक गया था. वह पूरा दिन बेचैन सी रही.
रात को जब विपिन आया तो सीमा का चेहरा कुछ उतरा सा था. उस ने निर्मला से पूछा तो उन्होंने, ‘पता नहीं’ में सर हिला कर इशारा कर दिया जबकि वे यह जान रही थीं कि सुबह उन की बात के बाद से उन की बेटी उखड़ीउखड़ी सी है.
विपिन फ्रैश हो कर अंश को गोद में उठा कर उस के साथ खेलता रहा. सोते हुए उस ने पूछा, ‘‘सीमा क्या अंश ने आज ज्यादा परेशान किया?’’
सीमा उस के पूछते ही रुंधे गले से बोली, ‘‘विपिन, क्या अंश की शकल हम दोनों से नहीं मिलती?’’
‘‘मिले या न मिले, क्या करना है, यह हमारा बेटा है, बस, बात खत्म,’’ कह कर उस ने सीमा के गले में बांहें डाल उसे बहला दिया पर सीमा का मूड फिर भी ठीक नहीं हुआ. वह बहुत देर तक अंश की शक्ल देखती रही. हां, शायद इस की शक्ल हम लोगों से नहीं मिलती, इस के बाल कितने घुंघराले हैं, हमारे जैसे तो नहीं हैं. अंश के रोने पर उस की तंद्रा भंग हुई. वह उस का नैपी बदलने लगी. विपिन सो चुका था.
अगले दिन से सीमा अंश के लिए होने वाली पार्टी की तैयारियों में व्यस्त हो गई तो यह बात उस के दिमाग से निकल गई. वह फिर से उल्लास से भरी दिखी तो निर्मला को कुछ चैन आया, नहीं तो वे एक अपराधबोध से भर उठी थीं कि इतने दिनों बाद बेटी अंश के साथ खुश थी तो उन्होंने यह बात कर दी. अब उन्हें अच्छा लगा. महेश, सीता और गौतम साथसाथ ही मुंबई पहुंचे. घर में जैसे एक उत्सव का माहौल था. अंश सब के हाथ में जैसे एक खिलौने की तरह घूमता रहा. तीनों उस के लिए बहुत कुछ लाए थे. सीता अंश को ध्यान से देख रही थीं तो विपिन ने पूछ लिया, ‘‘क्या देख रही हो मां?’’
सीता ने कहा, ‘‘यह तुम दोनों का ही बच्चा है न?’’
‘‘क्यों मां?’’
‘‘घर में तो इस की शकल किसी से नहीं मिल रही है? हौस्पिटल में कुछ गड़बड़ तो नहीं हुई न?’’
‘‘मां, अभी यह कितना छोटा है, अभी कैसे इस की शकल समझ आ सकती है? आप ही तो कहती थीं कि बच्चा पता नहीं कितनी शक्लें बदलता है. क्या बेकार के शक वाली बातें हैं ये.’’
सीमा ने यह वार्त्तालाप सुना तो उस का दिल बैठ गया. कहीं हौस्पिटल में तो कुछ गलती नहीं हो गई. खैर, वह फिर इस विषय पर चुप ही रही. उस की नजरें अपनी मां से मिलीं तो जैसे उन्होंने भी यही कहा कि देखो, मैं ने सच ही कहा था न.
सोसाइटी के क्लब हाउस में ही अंश की पार्टी थी. दोनों के करीब सौ परिचित आए थे. पार्टी सब ने बहुत ऐंजौय की. गोलमटोल अंश सब की नजरों का केंद्र बना रहा. अच्छे खुशनुमा माहौल में सब खातेपीते रहे.
सीमा की बैस्ट फ्रैंड आरती ने उसे एक किनारे ले जा कर पूछा, ‘‘सीमा, तू बीचबीच में इतनी चुप सी क्यों दिख रही है मुझे कुछ उलझ सी है?’’
सीमा और आरती पुरानी सहेलियां थीं. सीमा दिल का शक उस से बांटने लगी, ‘‘यार,सब कह रहे है कि हौस्पिटल में कहीं गड़बड़ तो नहीं हुई. अंश हमारी तरह बिलकुल नहीं दिखता, क्या करूं, मन में शक सा बैठ गया है. चल, कल जा कर डाक्टर कीर्ति से बात करती हैं? चलेगी? किसी को बिना बताए चलते हैं कल.’’
‘‘ठीक है, फोन करना आ जाऊंगी.’’
सब से घर का कुछ सामान लेने जाने का बहाना कर आरती के साथ सीमा डाक्टर कीर्ति से मिलने गई. उन्होंने सारी बात सुन कर सीमा को बहुत समझाया कि हमारे यहां कोई गड़बड़ नहीं हुई. ऐसा अकसर हो जाता है. अभी तो अंश बहुत छोटा है. अभी से यह शक नहीं करना चाहिए कि अंश उन का बेटा नहीं.’’
डाक्टर जितनी अच्छी तरह समझ सकती थी, उन्होंने समझाया पर सीमा को तसल्ली नहीं हुई तो आरती ने कहा, ‘‘कुछ दिन और सोच ले परेशान मत हो.’’
कुछ दिन और बीते दोनों के पेरैंट्स कुछ दिन रह कर चले गए पर उन के मन में शक का एक बीज डाल ही गए थे. अंश को आईवीएफ से प्राप्त किया था. अंश सालभर का हो गया. वह बहुत सुंदर, बहुत गोरे रंग का स्वस्थ बच्चा था जबकि विपिन और सीमा उतने गोरे नहीं थे.
आसपास के लोग कभीकभी कह उठते, ‘‘अरे, यह किस पर है? ’’
और दोनों इस बात को दिल से लगा लेते. एक दिन आरती ने कहा, ‘‘मेरी भाभी एक बाबा को बहुत मानती हैं, तू चाहे तो उन से मिल ले. वे सब की शंकाओं का समाधान करते हैं. वाशी में उन का एक बड़ा आश्रम है और बहुत बड़ेबड़े लोग उन के यहां आते हैं.’’
सीमा ने विपिन से इस बारे में कोई बात नहीं की. वह अंश को ले कर इतनी उलझन और शक में थी कि कभी किसी बाबा के चक्कर में न पड़ने वाली सीमा एक दिन अंश को ले कर टैक्सी से वाशी जा पहुंची. बाबा ओंकार नाथ भक्तों से घिरे बैठे थे. वह एक कोने में जा कर खड़ी हो गई. एक युवा, सुंदर लड़की उस के पास आ कर बोली, ‘‘कहिए, क्या काम है?’’
‘‘बाबा से मिलना है.’’
‘‘पहली बार आई हो?’’
‘‘हां.’’
‘‘क्या परेशानी है?’’
‘‘उन्हें ही बताऊंगी.’’
‘‘एक फौर्म भर दो.’’
सीमा हैरान तो हुई पर फौर्म भर दिया, नाम, फोन नंबर ही लिखना था.
उस लड़की ने जा कर बाबा के कान में कुछ कहा और बाकी भीड़ को हटाया तो सीमा ने बाबा को ध्यान से देखा, याद आया उन के प्रवचन के पोस्टर उस ने कई जगह देखे हुए थे. न्यूज पेपर में भी उन के साथ किसी न किसी नेता का फोटो दिखाई दे जाता था, करीब 50-55 साल के ओंकार नाथ ने उस लड़की से कुछ कहा और फिर वे एक रूम में चले गए. लड़की उसे उस रूम में ले जाते हुए कहने लगी कि लग रहा है तुम किसी परेशानी में हो, बाबा आराम से तुम से बात करना चाहते हैं.’’
भव्य, सारी सुविधाओं से संपन्न कमरे में बाबा एक इजी चेयर पर बैठे हुए थे. लड़की ने सीमा को पास रखी चेयर पर बैठने का इशारा किया और रूम से चली गई. एक बार तो सीमा मन ही मन डर गई, यह क्या किया उस ने, किसी को बिना बताए यहां आ गई, कैसी बेवकूफी कर दी. अंश उस की गोद में गहरी नींद सोया था.
बाबा ने अपनी गहरी सी आवाज में कहा, ‘‘कहो, क्या परेशानी है?’’
बाबा की आवाज में कुछ सम्मोहन सा था. सीमा कुछ सहज हो गई. उस ने अपने मन की बात बता कर कहा, ‘‘बस मुझे ऐसे ही चैन नहीं आ रहा है. यही सोचती रहती हूं कि सचमुच कहीं अंश हमारा बेटा न हो, कैसे मेरे दिल को चैन आए कि यह हमारा ही बेटा है.’’
ओंकार नाथ कुछ देर सोचते रहे, फिर ध्यान से अंश को देखते हुए अपनी आंखें बंद कर लीं, फिर थोड़ी देर बाद कहा, ‘‘तुम 2 दिन बाद फिर आओ, तुम्हारी शंका का समाधान हो जाएगा.’’
‘‘कैसे?’’
‘‘बाहर वही लड़की खड़ी है जो तुम्हें आगे का काम समझा देगी.’’
सीमा अनमनी सी उस रूम से बाहर निकल आई. वह लड़की उसे एक कोने में रखी चेयर के पास ले गई. बोली, ‘‘आराम से बैठो. सुनो, आज की फीस 2 हजार है, पहले वह जमा करवा दो.’’
सीमा हैरान हुई, ‘‘फीस कैसी?’’
‘‘बाबाजी ने अपना टाइम नहीं दिया? तुम से बात नहीं की?’’
‘‘मैं नहीं दूंगी, अभी मेरे पास हैं भी नहीं.’’
‘‘शायद तुम बाबाजी को अच्छी तरह जानती नहीं.’’
‘‘मैं फिर आऊंगी तो ले आऊंगी,’’ सीमा ने इतना कहा ही था कि अंश उठ गया और उस की गोद से छूटने के लिए हाथपैर मारने लगा.
सीमा ने कहा, ‘‘अभी मुझे घर जाना है, फिर आऊंगी तो पैसे ले आऊंगी.’’
सीमा अंश को ले कर वहां से निकल आई. उस की जान में जान आई. उस ने सोचा नहीं वह यहां नहीं आएगी. घर आ कर भी सीमा ने विपिन से कुछ नहीं बताया, 2 दिन बीते कि सीमा के फोन पर किसी ने फोन किया. एक लड़की की आवाज थी, ‘‘आप बाबाजी से मिलने नहीं आईं?’’
सीमा को झटका सा लगा, उस ने रूखे स्वर में कहा, ‘‘हां, टाइम नहीं मिला.’’
फिर फोन किसी पुरुष ने ले लिया, कहा, ‘‘बाबाजी तुम से मिलना चाहते हैं.’’
‘‘मैं फिलहाल नहीं आ रही हूं.’’
‘‘ठीक है, अगले हफ्ते आ जाना,’’ कह कर फोन रख दिया गया तो सीमा हैरान सी बैठी रही कि यह क्या जबरदस्ती है.
10 दिन और बीते तो सीमा ने सोचा कि अब बाबा का किस्सा खतम हुआ पर ऐसा नहीं था. फोन आ गया.
इस बार किसी पुरुष ने कहा, ‘‘आप उस दिन बाबाजी से पूछ रही थीं कि आपका बेटा आप का ही है या नहीं, जानने के लिए आओगी नहीं?’’
‘‘नहीं, मुझे नहीं जानना है.’’
‘‘फिर सारी दुनिया क्या जान जाएगी, पता है?’’ कह कर वह पुरुष बड़ी बेशर्मी से हंसा, फिर बोला, ‘‘बाबाजी के कमरे में क्या करने गई थी?’’
सीमा को गुस्सा आ गया. डपटते हुए कहा, ‘‘क्या बकवास है?’’
‘‘सब तक यह खबर पहुंच जाएगी कि वह बच्चा तुम्हारा नहीं है, देख लेना और अगर चाहती हो कि अब यह बात न खुले तो 25 हजार ले कर चुपचाप आश्रम आओ नहीं तो तुम्हें अंदाजा भी नहीं है कि क्याक्या होगा. तुम्हें पता भी है कि तुम्हारे कितने पड़ोसी और रिश्तेदार स्वामीजी के भक्त हैं. उन सब तक यह बात पहुंचाना हमारे लिए कोई मुश्किल बात नहीं है. देखना कैसीकैसी बातें होगीं फिर. तब समझ आएगा कि हमारे कहे अनुसार न चल कर कितनी गलती की तुम ने समझा?’’
सीमा का दिमाग भन्ना गया, यह कहां फंस गई वह. बाबा है या कोई चोर, सिरदर्द से फटने लगा.
विपिन आया तो उस की शकल देख कर हैरान हो गया, उड़ी सी, डरी हुई. सीमा उसे देखते ही उस से लिपट कर रोने लगी, ‘‘मुझ से बड़ी गलती हो गई विपिन, सौरी.’’
वह रोई तो अंश भी उसे देख कर घबरा कर रोने लगा, विपिन ने एक हाथ से अंश को गोद में लिया, दूसरे हाथ से सीमा का हाथ पकड़ कर सोफे पर बैठाया, ‘‘क्या हुआ सीमा इतनी परेशान क्यों हो?’’
रोते हुए सीमा ने विपिन को पूरी बात बता दी. विपिन ने अपना सिर पकड़ लिया, ‘‘यह क्या किया, सीमा, तुम ऐसी कब से हो गई? क्यों बेकार के शक में पड़ी हो. यह देखो, तुम्हें रोते देख अंश भी रोने लगा, आज से ही बेकार के शक हम दोनों ही अपने दिमाग से निकाल देगें, डाक्टर ने कहा था न कि ऐसी कोई गलती नहीं हुई है, कितने ही बच्चे परिवार में बिलकुल अलग दिखते हैं, हम पढ़ेलिखे लोग भी बाबाओं के चक्कर में पड़ ही जाते हैं.
‘‘खैर अब छोड़ो, चिंता मत करो, यह बेकार का शक है, बस, अंश हमारा ही बेटा है, यह मेरा दिल कहता है, तुम तो इस की मां हो, तुम क्यों भटक रही हो? सोचो, अंश को वे लोग कोई नुकसान पहुंचा देते तो?’’
विपिन की बातों से सीमा के दिल को कुछ तसल्ली हुई. उस ने कहा, ‘‘ठीक कहते हो, मैं ही बेवकूफी कर आई. पता नहीं क्यों लोगों की इस बात पर इतना ध्यान दे दिया. पर अब किसी का फिर फोन आ गया तो?’’
‘‘थोड़े दिन लैंड लाइन से काम चलाओ, फोन औफ रखना, जरूरी काम हो तभी औन करना.’’
सीमा थोड़े तैश से बोली, ‘‘इन लोगों की पुलिस कंप्लेंट नहीं करनी चाहिए? परदाफाश नहीं होना चाहिए ऐसे बाबाओं का? एक बार क्या चली गई परेशान कर दिया.’’
‘‘नहीं, बाबाओं के हाथ बहुत लंबे होते हैं, उन से बच निकलना ही काफी है, ये लोग अपने विरोधियों को मरवा तक देते हैं. अभी हम इन चक्करों में नहीं पड़ सकते, हमें अंश को बड़ा करना है,’’ विपिन ने बहुत शांत स्वर में सीमा को समझाया.
‘‘ठीक कहते हो, ऐसा लग रहा है बालबाल बचे. 1-2 बार और चली जाती तो बहुत बुरी फंसती.’’
‘‘चलो, अब चिंता छोड़ो, अंश हमारा अंश है, बस,’’ कहतेकहते विपिन ने अंश के गाल चूम लिए, अंश उस से लिपट गया. सीमा ने प्यार से दोनों के गले में बांहें डाल दीं.