Best Stories : न इधर की, न उधर की

Best Stories : किचन के एक साफ कोने में फर्श पर बिछाए अपने बिस्तर पर मधुवंती करवटें बदल रही थी. क्यों न करवटें बदले, युवा सपनों में डूबी आंखों में कैसे नींद आए जब बैडरूम से ऐसी आवाज़ें आ रही हों कि अच्छाभला इंसान सोते से जग जाए. वह दम साधे लेटी थी. उसे पता था कि अभी  नशे में डूबी नायशा फ्रिज से ठंडा पानी लेने आएगी या उस से उठा नहीं  गया तो मधुमधु चिल्लाएगी या नायशा का बौयफ्रैंड देवांश ही पानी लेने आएगा. अब एक साल में  मधुवंती इतना तो समझ गयी थी कि नायशा जम कर शराब पीने के बाद बौयफ्रैंड के साथ जीभर वह सबकुछ करती है जिसे न करने देने के लिए नायशा के गांव में रहने वाले पेरैंट्स ने उसे अपनी बेटी के साथ भेज दिया था. पर मधुवंती कैसे नायशा की लाइफस्टाइल में दखल दे सकती थी, वह है तो एक नौकर ही. क्या उस की इतनी हैसियत है कि नायशा को ज्ञान दे? इतने में उसे क़दमों की आहट सुनाई दी. उस ने अपनी आंखें बंद कर लीं. किचन में अंधेरा था. पर मधुवंती की आंखें अंधेरे में देखने की अभ्यस्त हो चुकी थीं. देवांश था. उस के डिओ की खुशबू मधुवंती को बहुत पसंद थी. मधुवंती का मन इस खुशबू से खिल उठा था. उस ने धीरे से आंखों को ज़रा सा खोल कर देखा. देवांश फ्रिज से पानी की बोतल निकाल रहा था. उस के  सुगठित शरीर पर मधुवंती की नज़रें टिकी रह गईं. देवांश चला गया. इतने में नायशा के खिलखिलाने की आवाज़ से मधुवंती फिर देर तक सो न सकी. फिर रोज़ की तरह नायशा के बैडरूम की तरफ ध्यान लगाएलगाए उस की आंख लग ही गई.

यह वाशी, मुंबई की एक बिल्डिंग का वन बैडरूम फ्लैट है. नायशा ने इस फ्लैट को मुंबई आते ही अपने कलीग्स की हैल्प से किराए पर  लिया है. वह मालेगांव की रहने वाली है और इस समय एक अच्छे पद पर काम करती है. उस के पेरैंट्स ने अपने घर में काम कर रही मेड की किसी दूर की रिश्तेदार मधुवंती को नायशा की देखभाल के लिए मुंबई साथ भेज दिया है. मुंबई में नायशा कैसे जीती है, इस की भनक उस के सीधेसादे पेरैंट्स को लग ही नहीं सकती. नायशा ने अपनी पढाई पुणे में रह कर की थी जहां उस के काफी बौयफ्रैंड्स रहे. अपनी आज़ाद लाइफ में जो सब से बुरी आदत उसे लगी है, वह है बेहिसाब शराब पीने की. दिन में औफिस, शाम होते ही कोई न कोई बौयफ्रैंड और शराब. बस, यही है नायशा की लाइफ.

मधुवंती हैरान होती है कि गांव की नायशा मुंबई में पहचान में भी नहीं आती. वहां वह इतनी सुशील, संस्कारी बन कर रहती कि लोग कहते कि लड़की हो तो ऐसी, अपने घर से बाहर रहने पर भी कोई बुरी आदत नहीं. वाह. अब मधुवंती मन ही मन हंसती है, उस ने तो अब तक लड़कों के ही ऐसे काम सुने थे, मूवीज में देखे थे लेकिन अब तो नायशा के रंगढंग उसे इतना हैरान कर चुके थे कि पता नहीं उस की भी कौन सी सुप्त इच्छाएं जागने को तैयार थीं.

सुबह मधुवंती ही सब से पहले उठी. फ्रैश हो कर नाश्ता और नायशा के टिफ़िन की तैयारी करने लगी. जब तक नायशा और देवांश सो कर उठे, वह काफी काम निबटा चुकी थी. उस ने दोनों को चाय का कप पकड़ा कर नायशा का टिफ़िन पैक कर के टेबल पर रखा. देवांश ने कहा, “यार नायशा, तुम्हारी बड़ी ऐश है. मधु सब काम संभाल  लेती है. मुझे तो सब काम करना पड़ता है. मधु, यार, तुम मेरे घर चलो,” कह कर देवांश मधु को देख कर मुसकराया तो मधु ने भी बड़ी अदा से उसे देखा और मुसकरा दी. नायशा ने देवांश को बनावटी डांट लगाई, “खबरदार, मधु पर नज़र डाली. वह कहीं चली गई, तो मैं तो मर ही जाऊंगी. अपने काम मुझ से होते नहीं, यह सच है. यार मधु, तुम इस पर ध्यान मत दो. इसे बढ़ावा  न दो. देवांश, मधु मेरी है, मेरी ही रहेगी.”

हंसीमज़ाक, छेड़छाड़ के साथ सुबह की चाय पी गई और देवांश अपने घर चला गया. वह थोड़ी दूर की ही बिल्डिंग में रहता था. नायशा भी औफिस के लिए तैयार होने लगी. नाश्ता करते हुए वह बोली, ”मधु, तुम्हारे साथ से मेरी लाइफ बहुत इजी रहती है, कोई काम नहीं करना पड़ता, थैंक यू, यार. तुम तो मेरी हमराज़ भी हो. मेरे घरवाले भी यही सोच कर खुश हैं कि मैं अकेली नहीं हूं. और सुनो, अगर रात देवांश मुझ से पहले आ जाए तो उस से खाना खाने को पूछ लेना. मेरी एक मीटिंग है, मुझे टाइम लग सकता है.”

मधु नायशा से 4 साल ही छोटी थी. गांव में उस के मातापिता उस की बड़ी 2 बहनों के विवाह के लिए परेशान थे. सो, वे लोग यही सोच कर तसल्ली कर लेते थे कि मधु फिलहाल जहां रह रही है, आराम से रह रही है. नायशा उसे  अपने घर भेजने के लिए अच्छेखासे पैसे भी दे देती थी.

मधु इस रोमांच से भर उठी थी कि देवांश नायशा से पहले आ सकता है. वह मन ही मन देवांश पर आसक्त थी. पर अपनी हैसियत याद कर के कोई भी गलत हरकत नहीं करना चाहती थी. देवांश को देखना उस के युवामन को खूब भाता. 7 बजे ही देवांश ने डोरबैल बजा दी. मधुवंती शाम से ही नहाधो कर साफ़सुथरे कपड़ों में सजी सी मन ही मन उस का इंतज़ार कर रही थी. सुंदर तो वह थी ही. देवांश आते ही सोफे पर ढह सा गया, बोला, ”नैश तो लेट आएगी न?”

”जी.”

मधुवंती हैरान हुई, जब वह जानता है कि नायशा लेट आएगी तो इतनी जल्दी क्यों आ गया. देवांश ने फिर उठ कर किचन में जा कर एक गिलास में थोड़ी शराब ली, बर्फ डाली और कहा, ”मधु, तुम ने कभी शराब पी है?”

”नहीं.”

”आओ, आज टैस्ट कर लो.”

”नहींनहीं, बिलकुल नहीं.”

”अरे, आओ न,” कहतेकहते देवांश ने अपना गिलास उस के मुंह से लगा दिया. घूंट भरते ही मधुवंती पीछे हटने लगी. देवांश उस के साथ थोड़ी नजदीकी बढ़ाते हुए आगे बढ़ने लगा. जैसे ही मधुवंती की कमर में देवांश ने हाथ डाला, डोरबैल हुई. देवांश तुरंत सोफे पर जा कर बैठ गया. नायशा आई थी, हैरान हो कर बोली, ”तुम जल्दी आ गए?”

”हां, मन नहीं लगता अब अकेले,” कहते हुए उस ने उठ कर नायशा के गाल पर किस कर दिया और मधु को देख कर शरारत से मुसकरा दिया. नायशा ने उस के रोमांस का आनंद उठाते हुए कहा, ”अरेअरे, मुझे हाथ तो सैनिटाइज़ करने दो. कोरोना के केस फिर बढ़ने लगे हैं.”

”अरे, अब क्या चिंता, हमारे  पास तो मधु है, लौकडाउन में लोग मेड के लिए रोते रह गए पर तुम ने तो आराम ही किया.”

”फ्रैश हो कर आती हूं. मेरे लिए भी एक पैग तैयार रखना, लाओ, एक घूंट पी ही लूं,” कह कर नायशा देवांश का पूरा गिलास खाली कर नहाने चली गई. वह हंसता हुआ किचन की तरफ जाने लगा. जातेजाते उस ने मधुवंती को जिन निगाहों से देखा, मधु रोमांचित हो उठी. वह डिनर की तैयारी करने लगी. अचानक देवांश से बोली, ”कुछ चीजें ख़त्म हो गई हैं, दीदी से कहना, अभी ले कर आई.”

नायशा का फ्लैट चौथी फ्लोर पर था. नीचे जा कर मधु ने थोड़ी सब्जी खरीदी. उस के पास इतना पैसा रहता था कि वह घर के सामान ला सके. वापस लौटते हुए वह बिल्डिंग के वौचमैन सुधीर से बातें करने लगी. वह भी उसी की उम्र का था और दोनों में 3 महीने से काफी नजदीकी आ चुकी थी.

मुंबई की सोसाइटी में जो वौचमैन ड्यूटी करते हैं, ज़्यादातर वे सब दूर राज्यों के छोटे गांवों से अकेले, बिना परिवार के आए होते हैं. एकएक रूम को कई लोग शेयर कर लेते हैं. सुधीर यहां दिन की ड्यूटी करता था और विमल रात की. दोनों ही वौचमैन से मधुवंती के नजदीकी संबंध बन चुके थे. आजकल इस सोसाइटी में अकेले रहने वाले बैचलर्स को फ्लैट किराए पर नहीं दिए जा रहे थे पर नायशा और मधुवंती को सब लोग बहुत शरीफ समझते थे, ये किसी को भी शिकायत का मौका नहीं देती थीं. नायशा के बौयफ्रैंड भी हमेशा चुपचाप आते, चुपचाप चले जाते. ये लोग साथ में कभी नहीं आतेजाते थे, इसलिए किसी की नज़रों में लड़कों का फ्लैट में आनाजाना ज़्यादा नहीं आ पाया था. नायशा के फ्लोर पर रहने वाले एक परिवार में बुजुर्ग दंपती ही थे. बाकी दोनों फ्लैट्स बंद रहते. सुधीर ने मधुवंती से कहा, ”कल दिन में आ जाऊं, तेरी मैडम औफिस जाएगी न?”

”आ जाना,” मधु ने शरारत से कहा, “और हां, आएगा तो थोड़ी मस्ती करेंगे, काफी सामान मैडम ने ला कर रखा है.”

”वाह, आता हूं,” सुधीर हंसा. आजकल नायशा के रंगढंग देख कर मधु भी  पूरी तरह वही सब करने लगी थी जो नायशा करती. ऊपर आने पर मधु ने देखा, देवांश और नायशा बैडरूम में बंद हो चुके थे. वह भी लाया हुआ सामान संभालने लगी. डिनर के समय ही दोनों बैडरूम से निकले. देवांश की आंखों की खुमारी देख मधु का मन उस की तरफ खिंचा. वह भी उसे ही देखता रहा. दोनों डिनर कर के, थोड़ी देर टी वी देख कर सोने चले गए. रात फिर वैसी ही थी, जैसी रोज़ होती थी.

देररात मधु की आंख एक झटके से खुली. उस के पास देवांश बैठा, उसे छू रहा था. वह झटके से उठ कर बैठी तो देवांश फुसफुसाया, “वह सो रही है. मधु, मैं तुम्हें पसंद करने लगा हूं.”

नींद में डूबी मधु इस बात पर पूरी चौकन्नी हो गई, बोली, ”नहीं साब, आप अभी जाओ.”

”ठीक है, दिन में मिलता हूं.”

मधु को फिर नींद नहीं आई. उसे लगा, देवांश जैसा लड़का उस के पास आया है. वह अगर उसे थोड़ी ढील दे दे तो वह अपना जीवन बदल सकती है. सुधीर और विमल जैसे वौचमेन उसे जीवन में क्या देंगे. सब अपना टाइम पास ही तो कर रहे हैं, वह भी उन के साथ कौन सा सीरियस हो कर जीवन में आगे बढ़ने वाली है. ऐश तो देवांश के साथ ज़्यादा हो सकती है. उस ने बाकी की रात अपने भविष्य के बारे में सोचते हुए बिताई.

नायशा रोज़ की तरह शराब पी कर नशे में धुत सोई थी. वह सीधे सुबह ही उठती थी. अगली सुबह दोनों निकल गए तो मधु ने इंटरकौम से सुधीर को जल्दी आने के लिए कहा, सुधीर ने दूसरी बिल्डिंग के वौचमैन से कहा, ”मैं अभी आता हूं, तू इधर का भी ध्यान रखना.”

सब वौचमेन की आपस में खूब बनती थी.

सुधीर के साथ बैठ कर मधुवंती ने पहले थोड़ीथोड़ी शराब पी, फिर नायशा के बैड पर ही सारी दूरियां ख़त्म कर उसी के साथ बैठ कर खाना खाया. ऐसा वे कई बार करते. नायशा के बैड पर आज लेटते हुए वह कल्पना कर रही थी कि बहुत जल्दी देवांश भी उस के साथ यहां होगा. कई बार किसी वीकैंड पर नायशा और देवांश लोनावला या माथेरान चले जाते तो नायशा रात के वौचमैन विमल को भी ऐसे ही अपने पास बुला लेती. दोनों उस पर बुरी तरह मरते. अब मधुवंती गांव जल्दी जाना न चाहती. उसे शहरी आबोहवा, ये रंगढंग खूब अच्छे लगते. इस के कुछ ही दिनों बाद नायशा को एक रात के लिए पुणे जाना था, क्लाइंट मीटिंग थी. नायशा उसे सब निर्देश दे कर चली गई. रात 8 बजे देवांश आया. वह चौंकी नहीं. वह तो मन ही मन इस बात के लिए सजसंवर कर  तैयार थी. देवांश दीवाना सा उस का हाथ पकड़  कर प्रेम निवेदन करने लगा. वह सुंदर सपनों में डूबतीउतराती रही. फिर वही सब हुआ, जो होना ही था. देवांश वही था, वही बैडरूम, वही बैड, वही शराब के पैग. बस, नायशा की जगह मधुवंती थी जो इस समय खुद को नायशा की जगह पा कर अपनेआप को धन्य मान रही थी. धीरेधीरे यही रूटीन शुरू हो गया. दोनों बहुत जल्दी एकदूसरे में इतना डूबे रहने लगे कि अब तो कई बार मधुवंती ही नायशा के औफिस जाने के बाद देवांश के फ्लैट पर चली जाती. उस के घर की हर चीज की देखभाल अपने हाथों से करती. ऐसी बातें कब तक छिपतीं. एक रात नायशा की आंख खुल गई, देखा, देवांश बैड पर नहीं था. वह नशे में लड़खड़ाती लिविंगरूम में आई. सोफे पर देवांश और मधुवंती को जिस हालत में देखा, उस का नशा हिरन हो गया. ज़ोरज़ोर से चिल्लाने लगी. देवांश ‘सौरी नायशा’ कहता हुआ, अपने कपड़े ठीक करता हुआ, अपना सामान तुरंत ले कर फ्लैट से निकल गया. नायशा मधुवंती पर चिल्लाए जा रही थी. थोड़ी देर तो वह सुनती रही, फिर खुल कर मैदान में आ गई, बोली, ”मुझे जाने को कहोगी, दीदी, मैं चली जाऊंगी. कोई बात नहीं. करना फिर खुद सारे काम.  गांव जा कर आप की बोतलों का हिसाब सब को बताऊंगी न, तो देखना, कैसे आप के घरवाले आप को सुधारते हैं. खुद नशे में डूबी रहती हो, अपने घरवालों से इतने झूठ बोलती हो. मुझे रहना ही नहीं आप के साथ. मैं देवांश साब के घर में जा कर रह लूंगी. सोसाइटी वाले भी आप को ज़्यादा  दिन अकेले यहां रहने नहीं देंगे. आप की सारी बुरी आदतें सब को पता चल जाएंगी. मैं तो कल सुबह ही देवांश साब के घर चली जाऊंगी.”

नायशा सिर पकड़ कर बैठ गई, जिसे कम पढ़ीलिखी समझ कर अपने साथ नौकर की ही तरह रखा हुआ था, वह अब शेरनी की तरह गुर्रा रही थी. मधुवंती किचन में अपनी जगह जा कर लेट गई. नायशा सोफे पर सिर पकड़ कर बैठी थी. बुरी आदतों ने कहीं का न छोड़ा था उसे. इस से पहले जितने भी बौयफ्रैंड्स से रिश्ता ख़त्म हुआ था, उन का कारण कहीं  न कहीं आज़ादी के नाम पर कई बौयफ्रैंड्स से रिश्ते रखना और खूब शराब पीना था. लाइफ को बिलकुल फ्री हो कर जीने में यकीन रखने वाली नायशा को अभी कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मधु का क्या करे. उसे पास रखने में भी नुकसान थे, निकाल देने में भी. वह गांव जा कर उस के रहनसहन की सारी पोल खोल सकती थी. बहुत बुरी फंसी थी वह. मधु जाती, तो मधु से मिलने वाले आराम ख़त्म होने वाले थे. देवांश का साथ भी छूट गया था. नुकसान ही नुकसान हुआ था.

Husband Wife Story : उफ्फ ये पति और समोसा

Husband Wife Story : सलोनी की शादी के लिए सब उस के पीछे पड़े थे कि समय से होनी चाहिए नहीं फिर अच्छा पति नहीं मिलेगा…

सलोनी ने सारे व्रतउपवास कर लिए. अब इंतजार था कि कोई राजकुमार आएगा और उसे घोड़े पर बैठा कर ले जाएगा और जिंदगी हो जाएगी सपने जैसी. प्रतीक्षा को विराम लगा. आ गए राजकुमार साहब घोड़े पर तो नहीं पर कार पर चढ़ कर आ गए.

हां तो शादी के पहले का हाल भी बताना जरूरी है. सगाई के बाद ही सलोनी को ये राजकुमार साहब लगे फोन करने. घंटो बतियाते, चिट्ठी भी लिखतेलिखाते. सलोनी के तो पौ बारह, पढ़ालिखा बांका जवान मुंडा जो मिल गया था… शादी धूमधाम से हुई. सलोनी की मुसकान रोके नहीं रुक रही थी.

राजकुमार साहब भी शुरुआत में हीरो की माफिक रोमांटिक थे पर पति बनते ही दिमाग चढ़ गया 7वें आसमान पर ‘मैं पति हूं.’ सलोनी भी भौचक्का कि इन महानुभाव को हुआ… क्या अभी तक तो बड़े सलीके से हंसतेमुसकराते थे जनाब, लेकिन पति बनते ही नाकभौं सिकोड़ कर बैठ गए. प्रेम के महल में हुक्म की इंतहा यह बात कुछ हजम नहीं हुई पर शादी की है तो हजम करनी ही पड़ेगी तो सलोनी ने अपना पूरा हाजमा ठीक किया.

मगर पति को यह कैसे बरदाश्त कि पत्नी का हाजमा सही हो रहा है कुछ तो करना पड़ेगा वरना पति बनने का क्या फायदा.

‘‘कपड़े क्यों नहीं फैलाए अभी तक… मशीन में सड़ जाएंगे,’’ पति महाशय ने अपना भोंपू फूंका.

सलोनी ने सहम कर कहा, ‘‘भूल गई थी.’’

‘‘कैसे भूल गई फेसबुक, व्हाट्सऐप, किताबें याद रहती हैं… यह कैसे भूल गई.’’

‘अब भूल गई तो भूल गई. भूल सुधार ली जाएगी,’ सलोनी ने मन में कहा.

‘‘भूलना कितनी बड़ी गलती, अब जाओ कोई काम मत करना मेरा मैं खुद कर लूंगा,’’ पति महाशय ने ऐलान कर दिया.

‘ठीक है जनाब कर लो बहुत अच्छा. ऐसे भी मु?ो कपड़े फैलाने पसंद नहीं,’ सलोनी ने मन में सोचा.

पति महाशय ने मुंह फुला लिया… अब बात नहीं करेंगे. बात नहीं करेंगे तो वह भी कुछ घंटे नहीं बल्कि पूरे 3-4 दिन नहीं करेंगे… इतनी बड़ी भूल जो कर दी सलोनी ने. अब सलोनी का हाजमा कहां से ठीक हो. अब तो ऐसिडिटी होनी ही है, फिर सिरदर्द.

एक बार सलोनी पति महाशय के औफिस के टूअर पर साथ आई थी. पति महाशय ने रात को गैस्टहाउस के कमरे में साबुन मांगा. सलोनी ने साबूनदानी पकड़ाई पर यह क्या उस में तो छोटा सा साबुन का टुकड़ा था. पति महाशय का गुस्सा 7वें आसमान पर… बस पूरा 1 हफ्ता बात नहीं की. औफिस के टूअर में घूमने आई सलोनी की घुमाई गैस्टहाउस में ही रह गई… इतनी बड़ी भूल जो कर दी थी.

उस के बाद से सलोनी कभी साबुन ले जाना नहीं भूली.

पति महाशय ने इसी में गर्व से सीना तान लिया कि सलोनी की इतनी बड़ी गलती जो

उन्होंने सुधार दी. सलोनी ने भी सोचा कि पति के इस तरह मुंह फुलाने की गलती को सुधारा जाए पर पति कहां सुधरने वाले. उन का मुंह गुब्बारे जैसा फूला तो जल्दी पिचकेगा नहीं, आखिर पति हैं न.

सलोनी एक बार घूमने गई थी बड़े शौक से. पति महाशय ने ऊंची एड़ी के सैंडल खरीदे. सलोनी सैंडल पहन कर ज्यों ही घूमने निकली ऊंची एड़ी का एक सैंडल गया टूट और पति महाशय गए रूठ. उस पर से ताना भी मार दिया, ‘‘कभी इतनी ऊंची एड़ी के सैंडल पहने नहीं तो खरीदे क्यों? अब चलो बोरियाबिस्तर समेट वापस चलो.’’

सलोनी हो गई हक्काबक्का… इतनी सी बात पर इतना बवाल… आखिर सैंडल का ही तो था सवाल दूसरे ले लेंगे. नहीं तो नहीं… एक बार पति महाशय का मुंह तिकोना हो गया तो सीधा होने में समय लगता है पर सलोनी को भी ऐसे आड़ेतिरछे सीधा करना खूब आता है. सौरी बोल कर मामला रफादफा किया और पति महाशय को घुमाघुमा के घुमा लिया.

कभीकभी पति महाशय का स्वर चाशनी

में लिपटा होता है पर ऐसा बहुत कम ही होता

है, हिटलर के नाती जो ठहरे. एक बार बड़े प्यार से सलोनी को जन्मदिन पर घुमाने का वादा कर औफिस चले गए और लौटने पर सलोनी के

तैयार होने में सिर्फ 5 मिनट की देरी पर बिफर पड़े. नाकभौं सिकोड़ कर ले गए मौल लेकिन

मुंह से एक शब्द नहीं फूटा. सलोनी ने अपनी फूटी किस्मत को कोसा. ऐसे नमूने पति जो मिले थे उसे.

सलोनी पति की प्रतीक्षा में थी कि पति टूर से लौट कर आएंगे तो साथ में खाना खाएंगे. पति महाशय लौटे 11 बजे. जैसे ही सुना कि सलोनी ने खाना नहीं खाया तो बस जोर से डपट दिया और पूरी रात मुंह घुमा कर लेटे रहे. सलोनी ने फिल्मों में कुछ और ही देखा था पर हकीकत तो कुछ और ही थी. वह दिन और आज का दिन सलोनी ने पति की प्रतीक्षा किए बगैर ही खाने का नियम बना लिया… कौन भूखे पेट को लात मारे और भूखे रह कर कौन से उसे लड्डू मिलने वाले थे…

कभीकभी भ्रम का घंटा मनुष्य को अपने में लपेटे में ले ही लेता है. सलोनी को लगा कि पति महाशय का त्रिकोण अब सरल कोण में तबदील होने लगा है पर भ्रम तो भ्रम ही होता है सच कहां होता है. सलोनी को प्रतीत हुआ कि उस का एकलौता पति भी सलोना हो गया है पर सूरत

और सीरत में फर्क होता है न… सूरत से सलोना और सीरत… व्यंग्यबाण चला दिया, ‘‘आजकल बस पढ़तीलिखती ही रहती हो घर का काम भी मन से किया करो नहीं तो कोई जरूरत नहीं

करने की…’’

सलोनी ने कुछ ऊंचे स्वर में कहा, ‘‘दिखता नहीं है कि मैं कितना काम करती हूं.’’

इतना कहना था कि पति जनाब ने मुंह फुला लिया कि पढ़लिख कर सलोनी का दिमाग खराब हो रहा है.

सलोनी ने भी ठान लिया कि इस बार नहीं मनाएगी, पर हमेशा की तरह सलोनी ने ही मनाया, ‘‘तुम रूठी रहो मैं मनाता रहूं,’’ यह गीत सलोनी की जिंदगी में लिंग बदल कर बज रहा था और धूमधड़ाके से बजता आ रहा था.

सलोनी ने एक दिन अपनी माताश्री से अपनी व्यथाकथा कह डाली, ‘‘मां, पापा तो ऐसे

हैं नहीं…’’

माताश्री मुसकराईं, ‘‘बेटी, तुम्हारे पापा बहुत अच्छे हैं पर पति कैसे हैं

उस का दुखड़ा अब तुम से क्या बताऊं… मेरी दुखती रग पर तुमने हाथ रख दिया. दरअसल, यह पति नामक प्रजाति होती ही ऐसी है… इस प्रजाति में कोई भी जैविक विकास की अवधारणा लागू नहीं होती, इसलिए जो है जैसा है, इन्हीं से उल?ो रहो… ये कभी सुलझने वाले नहीं. लड़के प्रेमी, भाई, मित्र, पिता सब रूप में अच्छे हैं पर पति बनते ही देवता इन पर सवार हो जाते हैं. सलोनी ने देवी चढ़ना सुना था पर देवता… उसे वह गाना याद आने लगा, ‘भला है बुरा है जैसा भी है मेरा पति मेरा…’’

‘‘पर माताश्री, फिर स्त्री के अधिकारों का क्या और स्त्री विमर्श का प्रश्न?’’ सलोनी ने पूछा

‘‘सलोनी बेटी, तुम्हारा पति त्रिकोण ही सही  पर तिकोना समोसा खिलाता है न.’’

‘‘हां, वह तो खिलाता है.’’

‘‘बस फिर कोई बात नहीं, उस की बातें एक कान से सुनो दूसरे से निकालो और अपना काम धीरेधीरे करते चलो,’’ माताश्री ने पति का मर्म समझ दिया.

सलोनी ने एक ठंडी आह भरी और मुंह से निकला ‘उफ ये पति.

Kahani : घोंसला – क्या सारा अपना घोंसला बना पाई

Kahani : सारा आज खुशी से झूम रही थी. खुश हो भी क्यों ना, पुणे की एक बहुत बड़ी फर्म में उस की नौकरी लग गई थी. अपनी गोलगोल आंखें घुमाते हुये वह अपनी मम्मी से बोली, “मैं ना कहती थी कि मेरी उड़ान कोई नहीं रोक सकता. पापा ने पढ़ने के लिए मुझे मुजफ्फरनगर से बाहर नहीं जाने दिया, पर अब इतनी अच्छी नौकरी मिली है कि वे मुझे रोक नहीं सकते हैं.

सारा 23 वर्ष की खूबसूरत नवयुवती, जिंदगी से भरपूर, गोरा रंग, गोलगोल आंखें, छोटी सी नाक और मोटे विलासी गुलाबी होंठ, होंठों के बीच काला तिल सारा को और अधिक आकर्षक बना देता था.

सारा को खुले आकाश में उड़ने का शौक था. वह अकेले रहना चाहती थी और जीवन को अपने तरीके से जीना चाहती थी.

जब भी सारा के पापा कहते कि हमें तुम से जिंदगी का अधिक अनुभव है, इसलिए हमारा कहा मानो.

सारा फट से कहती, “पापा, मैं अपने अनुभवों से कुछ सीखना चाहती हूं.”

सारा के पापा उसे पुणे भेजना नहीं चाहते थे, पर सारा की दलीलों के आगे उन की एक ना चली. फिर सारा की मम्मी ने भी समझाया कि इतनी अच्छी नौकरी है. आजकल अच्छी नौकरी वाली लड़कियों की शादी आराम से हो जाती है.

सारा के पापा ने फिर हथियार डाल दिए थे. ढेर सारी नसीहतें और अपने परिवार की इज्जत का दारोमदार सारा के हाथों में सौंप कर सारा के पापा वापस मुजफ्फरनगर आ गए थे.

सारा को शुरुआत में थोड़ी दिक्कत हुई थी, परंतु धीरेधीरे वह पुणे के लाइफ की अभ्यस्त हो गई थी. यहां पर मुजफ्फरनगर की तरह ना टोकाटाकी थी और ना ही ताकाझांकी.

सारा को आधुनिक कपड़े पहनने का बहुत शौक था, जो सारा अब पूरा कर पाई थी. वह स्वछंद तितली की तरह जिंदगी बिता रही थी. दफ्तर में ही सारा की मुलाकात मोहित से हुई थी.

मोहित का ट्रांसफर दिल्ली से पुणे हुआ था. मोहित को सारा पहली नजर में ही भा गई थी. सारा और मोहित अकसर वीकेंड पर बाहर घूमने जाते थे. परंतु सारा को हर हाल में रात 9 बजे तक अपने होस्टल वापस जाना ही पड़ता था. फिर एक दिन मोहित ने यों ही सारा से कहा कि तुम मेरे फ्लैट में शिफ्ट क्यों नहीं हो जाती हो. इस चिकचिक से छुटकारा भी मिल जाएगा और हमें यों ही हर वीकेंड पर बंजारों की तरह घूमना नहीं पड़ेगा. सब से बड़ी बात तुम्हारे होस्टल का खर्च भी बच जाएगा.

सारा छूटते ही बोली, “पागल हो क्या, ऐसे कैसे रह सकती हूं, तुम्हारे साथ? मतलब, मेरातुम्हारा रिश्ता ही क्या है.”

मोहित बोला, “रहने दो बाबा, मैं तो भूल ही गया था कि तुम तो गांव की गंवार ही हो. छोटे शहर के लोगों की मानसिकता कहां बदल सकती है. चाहे वो कितने ही आधुनिक कपड़े पहन लें.”

सारा मोहित की बात सुन कर एकदम से चुप हो गई थी. अगले कुछ दिनों तक मोहित सारा से खिंचाखिंचा सा रहा था.

जब सारा ने मोहित से पूछा कि आखिर उस की गलती क्या है, तो मोहित बोला, तुम्हारा मुझ पर अविश्वास. सारा बोली, “बात अविश्वास की नहीं है मोहित, मेरे परिवार को अगर पता चल जाएगा तो वो मेरी नौकरी भी छुड़वा देंगे.”

मोहित बोला, “तुम्हें अगर रहना है तो बताओ. बाकी सब मैं हैंडल कर लूंगा.”

घर पर पापा के मिलिट्री राज के कारण सारा का आज तक कोई बौयफ्रेंड नहीं बन पाया था, इसलिए वो ये सुनहरा मौका हाथ से नहीं छोड़ना चाहती थी.

सारा एक हफ्ते बाद मोहित के साथ शिफ्ट कर गई थी. घर पर सारा ने बोल दिया था कि उस ने एक लड़की के साथ अलग से फ़्लैट ले लिया है, क्योंकि उसे होस्टल में बहुत परेशानी होती थी.

ये बात सुनते ही सारा के मम्मीपापा ने आने के लिए सामान बांध लिया था. वो देखना चाहते थे कि उन की लाड़ली कैसे अकेले रहती होगी.

सारा घबरा कर मोहित से बोली कि अब क्या करेंगे?

मोहित हंसते हुए बोला, “अरे देखो, मैं कैसा चक्कर चलाता हूं. अगले रोज मोहित अपनी एक दोस्त शैली को ले कर आ गया और बोला, “तुम्हारे मम्मीपापा के सामने मैं शैली के बड़े भाई के रूप में उपस्थित रहूंगा.”

सारा के मम्मीपापा आए. मोहित के नाटक पर वे मोहित हो कर चले गए थे. सारा के मम्मीपापा के सामने मोहित शैली के बड़े भाई के रूप में मिलने आता था. सारा के मम्मीपापा को अब तस्सली हो गई थी और वो निश्चिन्त होकर वापस अपने घर चले गए थे.

सारा और मोहित एकसाथ रहने लगे थे. सारा को मोहित का साथ भाता था, परंतु अंदर ही अंदर उसे अपने मम्मीपापा से झूठ बोलना भी कचोटता रहता था.

एक दिन सारा ने मोहित से कहा कि मोहित तुम मुझे पसंद करते हो क्या?”

इस पर वह बोला, “अपनी जान से भी ज्यादा.”

सारा बोली, “मोहित, तुम और मैं क्या इस रिश्ते को नाम नहीं दे सकते हैं? हम क्या अपना एक छोटा सा घोंसला नहीं बना सकते हैं ?”

मोहित चिढ़ते हुए बोला, “यार, मुझे माफ करो. मैं ने पहले ही कहा था कि हम एक दोस्त की तरह ही रहेंगे. मैं तुम पर कोई बंधन नहीं लगाना चाहता हूं और ना ही तुम मुझ पर लगाया करो. ये घोंसला अवश्य है, परंतु बंधनों का नहीं आजादी का. और तुम ये बात क्यों भूल जाती हो कि मेरे घर पर रहने के कारण तुम्हारी कितनी बचत हो रही है और बाकी फायदे भी हैं.₹,” ये बात कहते हुए मोहित ने अपनी बाई आंख दबा दी.

सारा को मोहित का ये सस्ता मजाक बिलकुल पसंद नहीं आया था. 2 दिन तक मोहित और सारा के बीच तनाव बना रहा, परंतु फिर से मोहित ने हमेशा की तरह सारा को मना लिया था.

सारा भी अब इस नए लाइफस्टाइल की अभ्यस्त हो चुकी थी. सारा जब मुजफ्फरनगर से पुणे आई थी, तो उस के बड़ेबड़े सपने थे, परंतु अब ना जाने क्यों उस के सब सपने मोहित के इर्दगिर्द सिमट कर रह गए थे.

आज सारा बेहद परेशान थी. उस की पीरियड्स की डेट मिस हो गई थी. जब उस ने मोहित को ये बात बताई ,तो मोहित बोला, “सारा, ऐसे कैसे हो सकता है. हम ने तो सारे एहतियात बरते थे?”

सारा बोली, “तुम मुझ पर शक कर रहे हो?”

मोहित ने कहा, “नहीं बाबा, नहीं. कल टेस्ट कर लेना.”

सारा को जैसे डर था वो ही हुआ था. प्रेगनेंसी किट की टेस्ट रिपोर्ट देख कर सारा के हाथपैर ठंडे पड़ गए थे.

मोहित उसे संभालते हुए बोला, “टेंशन मत लो. कल डाक्टर के पास चलेंगे.”

अगले दिन डाक्टर के पास जा कर जब उन्होंने अपनी समस्या बताई, तो डाक्टर बोली, “पहली बार एबार्शन करने की सलाह मैं नहीं दूंगी. आगे आप की मरजी.”

घर आ कर सारा मोहित की खुशामद करने लगी. मोहित प्लीज शादी कर लेते हैं. ये हमारे प्यार की निशानी है.”

मोहित चिढ़ते हुए बोला, “सारा प्लीज, फोर्स मत करो. ये शादी मेरे लिए शादी नहीं, बल्कि एक फंदा बनेगी.

यह सुन कर सारा फिर चुप हो गई थी. अगले दिन चुपचाप जब सारा तैयार हो कर जाने लगी, तो मोहित भी साथ हो लिया था.

रास्ते मे मोहित बोला, “सारा मुझे मालूम है कि तुम मुझ से गुस्सा हो. पर, ऐसा कुछ जल्दबाजी में मत करो, जिस से बाद में हम दोनों को घुटन महसूस हो.

“देखो, इस रिश्ते में हम दोनों का फायदा ही फायदा है और शादी के लिए मैं मना कहां कर रहा हूं. पर अभी नहीं कर सकता हूं.”

डाक्टर से सारा और मोहित ने बोल दिया था कि कुछ निजी वजहों से वो अभी बच्चा नहीं कर सकते हैं. डाक्टर ने उन्हें एबार्शन के लिए 2 दिन बाद आने के लिए कहा था.

मोहित ने जब पूरा खर्च पूछा, तो डाक्टर ने कहा कि तकरीबन 25 से 30 हजार रुपए लग ही जाएंगे, क्योंकि हम किसी भी प्रकार का रिस्क नहीं लेते हैं.

घर आ कर मोहित ने पूरा हिसाब लगाया. सारा तुम्हें तो 3-4 दिन बैडरैस्ट भी करना होगा, जिस कारण तुम्हें लीव विदआउट पे लेनी पड़ेगी. तुम्हारा अधिक नुकसान होगा, इसलिए इस एबार्शन का 50 प्रतिशत खर्चा मैं उठा लूंगा.

सारा छत को टकटकी लगा कर देख रही थी. बारबार उसे ग्लानि हो रही थी कि वो एक जीव हत्या करेगी. बारबार सारा के मन में यह खयाल आ रहा था कि अगर उस की और मोहित की शादी हो गई होती तो भी मोहित ऐसे ही 50 प्रतिशत खर्चा देता.

सारा ने रात में एक बार फिर मोहित से बात करने की कोशिश की, मगर मोहित ने बात को वहीं समाप्त कर दिया था. वह बोला, “तुम्हें वैसे तो बराबरी चाहिए, मगर अब फीमेल कार्ड खेल रही हो. ये गलती दोनों की है, तो 50 प्रतिशत भुगतान कर तो रहा हूं. और ये बात तुम क्यों भूल जाती हो कि तुम्हारा वैसे ही क्या खर्चा होता है. ये घर मेरा है, जिस में तुम बिना किराया दिए रहती हो.

मोहित की बात सुन कर सारा का मन खट्टा हो गया था. उस के अंदर कहीं कुछ किरच गया था. वो किरच जो सारा और मोहित के रिश्ते में व्याप्त हो गई थी. जब से सारा एबार्शन करा कर लौटी थी, वो मोहित के साथ हंसतीबोलती जरूर थी, मगर सारा के अंदर बहुतकुछ बदल गया था. पहले जो सारा मोहित को ले कर बहुत केयरिंग और पसेसिव थी, अब उस ने मोहित से एक डिस्टेंस बना ली थी. शुरूशुरू में तो मोहित को सारा का बदला व्यवहार अच्छा लग रहा था, परंतु बाद में मोहित को सारा का वो अपनापन बेहद याद आने लगा. पहले मोहित जब औफिस से घर आता था, तो सारा उस के साथ ही चाय लेती थी, परंतु आजकल अधिकतर सारा गायब ही रहती थी.

एक दिन संडे में मोहित ने कहा, “सारा, कल मैं ने अपने कुछ दोस्त लंच पर बुलाए हैं.

सारा लापरवाही से बोली, “तो मैं क्या करूं, तुम्हारे दोस्त हैं. तुम उन्हें लंच पर बुलाओ या डिनर पर.”

मोहित बोला, “अरे यार, हम एकसाथ एक घर में रहते हैं, ऐसा क्यों बोल रही हो?”

सारा मुसकराते हुए बोली, “बेबी, इस घोंसले की दीवारें आजाद हैं. जो जब चाहे उड़ सकता है. कोई तुम्हारी पत्नी थोड़े ही हूं, जो तुम्हारे दोस्तों को एंटरटेन करूं.”

मोहित मायूस होते हुए बोला, “एक दोस्त के नाते भी नहीं.”

सारा बोली, “कल तुम्हारी इस दोस्त को अपने दोस्तों के साथ बाहर जाना है.”

मोहित आगे कुछ नहीं बोल पाया. ये सारी वो ही बातें थीं, जो उस ने सारा को सिखाई थीं.

सारा ने अब तक अपनी जिंदगी मोहित के इर्दगिर्द ही सीमित कर रखी थी. जैसे ही उस ने बाहर कदम बढ़ाए, तो सारा को लगा कि वो कुएं के मेढक की तरह अब तक मोहित के साथ बनी हुई थी. इस कुएं के बाहर तो बहुत बड़ा समुंदर है.

सारा अब इस समुंदर की सब सीपियों और मोतियों को अनुभव करना चाहती थीं. एक दिन डिनर करते हुए सारा मोहित से बोली, “तुम्हें पता नही है कि तुम कितने अच्छे हो?”

मोहित मन ही मन खुश हो रहा था. उसे लगा कि अब सारा शायद फिर से प्यार का इकरार करेगी. मगर सारा मोहित की आशा के विपरीत बोली, “अच्छा हुआ कि तुम ने शादी करने से मना कर दिया था. मुझे उस समय बुरा अवश्य लगा था, परंतु अगर हम शादी कर लेते, तो मैं इस कुएं में ही सड़ती रहती.”

अगले माह मोहित को कंपनी के काम से बंगलोर जाना था. मोहित को ना जाने क्यों अब सारा का ये स्वछंद व्यवहार अच्छा नहीं लगता था.

मोहित ने मन ही मन तय कर लिया था कि अगले माह सारा के जन्मदिन पर वो उसे प्रपोज कर देगा और फिर परिवार वालों की सहमति से अगले साल तक विवाह के बंधन में बंध जाएंगे.

बंगलोर पहुंचने के बाद भी मोहित ही सारा को मैसेज करता रहता था, परंतु चैट पर बकबक करने वाली सारा अब बस हांहूं के मैसेज तक सीमित हो गई थी. लेकिन मोहित को पूरा विश्वास था कि वो हमेशा की तरह सारा को मना लेगा.

जब मोहित बंगलोर से वापस पुणे पहुंचा तो देखा, सारा वहां नहीं थी.

मोहित ने फोन लगाया, तो सारा की चहकती आवाज आई, “अरे यार, मैं गोवा में हूं. बहुत मजा आ रहा है.”

इस से पहले मोहित कुछ बोलता, सारा ने झट से फोन काट दिया था. 3 दिन बाद जब सारा वापस आई, तो मोहित बोला, “बिना बताए ही चली गई. एक बार पूछा तक नहीं.”

सारा बोली, “तुम मना कर देते क्या?”

मोहित झेंपते हुए बोला, “मेरा मतलब ये नहीं था.”

मोहित को उस के एक नजदीकी दोस्त ने बताया था कि सारा अर्पित नाम के लड़के के साथ गोवा गई थी.

मोहित को ये सुन कर बुरा लगा था, मगर उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो सारा से क्या बात करे? उस ने खुद ही अपने और सारा के बीच ये खाई बनाई थी.

मोहित सारा को दोबारा से अपने करीब लाने के लिए सारे पैंतरे अपना चुका था, परंतु अब सारा पानी पर तेल की तरह फिसल गई थी.

अगले हफ्ते सारा का जन्मदिन था. मोहित ने मन ही मन सारा को सरप्राइज देने की सोच रखा था. तभी उस रात अचानक से मोहित को तेज बुखार हो गया था. सारा ने मोहित की खूब अच्छे से देखभाल की थी. 5 दिन बाद जब मोहित पूरी तरह ठीक हो गया, तो उसे विश्वास हो गया था कि सारा उसे छोड़ कर कहीं नहीं जाएगी.

मोहित ने सारा के लिए हीरे की अंगूठी खरीद ली थी. कल सारा का जन्मदिन था. मोहित शाम को जल्दी आ गया था. उस ने औनलाइन केक बुक कर रखा था. ना जाने क्यों आज उसे सारा का बेसब्री से इंतजार था. जैसे ही सारा घर आई तो मोहित ने उस के लिए चाय बनाई.

सारा ने मुसकराते हुए चाय का कप पकड़ा और कहा कि क्या इरादा है जनाब का.

मोहित बोला, “कल तुम्हारा जन्मदिन है. मैं तुम्हें स्पेशल फील कराना चाहता हूं.”

सारा ने कहा, “वो तो तुम्हें मेरे घर आ कर करना पड़ेगा.”

मोहित बोला,”तुम क्या अपने घर जा रही हो जन्मदिन पर.”

सारा बोली, “मैं ने अपने औफिस के पास एक छोटा सा फ्लैट ले लिया है. मैं अपना जन्मदिन वहीं मनाना चाहती हूं. अब मैं अपना खर्च खुद उठाना चाहती हूं. ये निर्णय मुझे बहुत पहले ही ले लेना चाहिए था.”

मोहित बोला, “मुझे मालूम है कि तुम मुझ से अब तक एबार्शन की बात से नाराज हो. यार, मेरी गलती थी कि मैं ने तुम से तब शादी करने के लिए मना कर दिया था.”.

सारा बोली, “अरे नहीं. तुम सही थे, मजबूरी में अगर तुम मुझ से शादी कर भी लेते, तो हम दोनों हमेशा दुखी रहते.”

मोहित बोला, “सारा, मैं तुम से प्यार करता हूं और शादी करना चाहता हूं.”

सारा बोली, “मोहित, पर मैं तुम से आकर्षित थी, अगर प्यार होता तो शायद आज मैं अलग रहने का फैसला नहीं लेती.”

सारा सामान पैक कर रही थी. मोहित के अहम को ठेस लग गई थी, इसलिए उस ने अपना आखिरी दांव खेला. तुम्हारे नए बौयफ्रेंड को पता है कि तुम ने एबार्शन करवाया था. अगर तुम्हारे घर वालों को ये बात पता चल जाएगी, तो सोचो कि उन्हें कैसा लगेगा. मैं तुम पर विश्वास करता हूं, इसलिए मैं तुम से शादी करने को अभी भी तैयार हूं.”

सारा बोली, “पर मोहित, मैं तैयार नही हूं. अच्छा हुआ कि इस बहाने ही सही, मुझे तुम्हारे विचार पता चल गए. और रही बात मेरे परिवार की, तो वे कभी नहीं चाहेंगे कि मैं तुम जैसे लंपट इनसान से विवाह करूं. मोहित तुम्हारा ये घोंसला आजादी के तिनकों से नहीं, वरन स्वार्थ के तिनकों से बुना हुआ है. अगर एक दोस्त के नाते कभी मेरे घर आना चाहो, तो अवश्य आ सकते हो,” कहते हुए सारा ने अपने नए घोंसले का पता टेबल पर रखा और एक स्वछंद चिड़िया की तरह खुले आकाश में विचरण करने के लिए उड़ गई.

सारा ने अब निश्चय कर लिया था कि वो अपनी मेहनत और हिम्मत के तिनकों से अपना घोंसला स्वयं बनाएगी. तिनकातिनका जोड़ कर बनाएगी अब वो अपना घोंसला, आज की नारी में हिम्मत, मेहनत और खुद पर विश्वास का हौसला.

Best Online Story : लमहों को आजाद रहने दो

Best Online Story :  भूमिका आज बेहद खुश नजर आ रही थी. अभीअभी तो उस ने फेसबुक पर अपनी डीपी अपलोड करी थी और 1 घंटे में ही सौ लाइक आ गए थे. गुनगुनाते हुए खुद को आईने के सामने निहारते हुए भूमिका मन ही मन सोच रही थी. पहले मैं कितनी गंवार लगती थी. न कोई फैशन सैंस थी और ना ही मेकअप की तमीज और अब देखो 50 वर्ष की उम्र में भी कितने पुरुष और लड़के उस के ऊपर मोहित हो रहे हैं. काश, कुछ वर्ष पहले यह सोशल मीडिया आ जाता तो उस की जिंदगी कुछ और ही होती.

तभी रोहित डकार मारता हुआ भूमिका के सामने आ गया. भूमिका बेजारी से रोहित को देखने लगी कि क्या रोहित ही मिला था उस के मातापिता को इस दुनिया में उस के लिए… रोहित का बढ़ता वजन, झड़ते बाल, बेतरतीबी से पहने कपड़े, जोरजोर से डकार लेना सभी कुछ तो उसे रोहित से और दूर कर देता था.

रोहित भूमिका को देखते हुए बोला, ‘‘आज खाना नहीं मिलेगा क्या?’’

भूमिका फेसबुक पर नजर गड़ाते हुए बोली, ‘‘अभी बनाती हूं.’’

खाना बनातेबनाते भूमिका बारबार आज शाम के फंक्शन में कैसे रील बनाएगी सोच रही थी. बालों को खुला छोड़े या कोई हेयर स्टाइल बनाए.

ये सब सोचतेसोचते उस की तंद्रा तब टूटी जब कुकर से जलने की महक आने लगी. जल्दीजल्दी कुकर की सीटी निकाली और जल्दी खाना खा कर पार्लर की भाग गई.

जब मेकअप खत्म हुआ तो भूमिका ने एक नजर आईने पर डाली और मन ही मन इतराते हुए सोचने लगी कि आज तो मेरे फौलोअर्स की खैर नहीं. शाम के फंक्शन में भूमिका ने जम कर रील बनाई. भूमिका के भाईभाभी, रोहित और उस की बेटी आर्या सभी भूमिका के इस व्यवहार से आहत थे.

आज भूमिका के भाई के बेटे का जन्मदिन था. भूमिका की भाभी को लगा कि भूमिका के आने से उस की कुछ मदद हो जाएगी मगर भूमिका तो अपने में ही व्यस्त थी. बारबार रील बनाते हुए टेक और रीटेक करते हुए भूमिका ने अपना सारा समय बिता दिया. जन्मदिन में कौनकौन मेहमान आए, कब केक कटा उसे कुछ भी नहीं पता. वह तो बस अपनी ही दुनिया में खोई हुई थी. घर पहुंच कर भी भूमिका अपनी रील की एडिटिंग में ही व्यस्त रही. आर्या ने ही उलटासीधा खाना बना लिया था. आर्या को किचन में काम करता देख कर रोहित को गुस्सा आ गया. भूमिका के हाथ से मोबाइल छीनते हुए रोहित बोला, ‘‘आर्या को इस साल 12वीं कक्षा के ऐग्जाम के साथसाथ ऐंट्रैंस ऐग्जाम भी देने हैं और वह तुम्हारे हिस्से का काम कर रही है.

भूमिका तुनकते हुए बोली, ‘‘मैं रातदिन किचन में लगी रहती हूं तो कभी दर्द नहीं हुआ. आज बेटी ने एक टाइम का खाना क्या बना लिया कि पूरा घर सिर पर उठा दिया.’’

रोहित के हाथ से अपना मोबाइल छीनते हुए भूमिका ने अपनेआप कमरे में बंद कर लिया. भूमिका अपनी रील के व्यूज को देखने में व्यस्त थी. बस 250 व्यूज ही आए थे. मन ही मन मनन कर रही थी कि क्या करे कि व्यूज बढ़ जाएं.

तभी भूमिका ने सोचा क्यों न डांस करते हुए अपनी एक रील बनाए. सोशल मीडिया पर वैलिडेशन की भूमिका का सिर पर इतना भूत सवार था कि उस ने बिना कुछ सोचेसमझे एक रील बना ली और फेसबूक पर अपलोड कर दी. भूमिका उस रील में बेहद भद्दी लग रही थी. साफ नजर आ रहा था कि उस ने किसी और के शौर्ट्स और टीशर्ट पहन रखे थे. खटाखट लाइक्स आ रहे थे और साथ ही साथ भूमिका की खुशी भी बढ़ती जा रही थी.

कितने सारे पुरुषों के मैसेंजर पर मैसेज आए हुए थे. हरकोई उस से दोस्ती करने को आतुर था. और तो और कुछ लड़के तो भूमिका से 10 से 15 साल छोटे थे मगर सब को वो हौट लग रही थी. तभी भूमिका के घर से उस की मम्मी का फोन आया, ‘‘लाली यह क्या कर रही है तू सारे लोग महल्ले में तेरा मजाक उड़ा रहे हैं.’’

‘‘ऐसे कैसा वीडियो बन कर तूने डाल दिया है. कम से कम देख तो लेती कि तू उस में कैसी लग रही है.’’

भूमिका ने कहा, ‘‘लगता है भैयाभाभी ने तुम्हारे कान भरे हैं. मम्मी मैं कभी भी तुम्हारी फैवरिट नहीं थी. तुम्हें तो हमेशा दीदी और भाभी की सुंदरता के आगे मैं फीकी ही लगी. इतनी फीकी कि तुम ने रोहित जैसे नीरस आदमी के साथ मुझे बांध दिया.

‘‘आज अगर लोग मुझे पहचान रहे हैं, मेरे काम की तारीफ कर रहे हैं तो तुम्हारी बहू को आग लग गई क्योंकि वह अपने बढ़ते वजन के कारण ये सब नहीं कर सकती है जो मैं अब कर पा रही हूं.’’

भूमिका की मम्मी ने फोन रखने से पहले बस यह कहा, ‘‘लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए क्याक्या करेगी तू,’’ और खटाक से फोन रख दिया.

घर के काम निबटाने के बाद भूमिका अपनी रील पर आए कमैंट्स को पढ़ने लगी कमैंट्स पढ़ कर उस का मन करा कि वह जल्द ही एक और डांस करते हुए रील बना ले. अगले दिन सब के जाते ही भूमिका ने फिर से डांस करते हुए रील बनाने की तैयारी करीए. मगर हर बार उसे संतुष्टि नहीं मिल रही थी. जब तीसरी बार भूमिका घूमघूम कर नाचने लगी उस का पैर फिसल गया और उस का सिर पास ही रखी शीशे की मेज से टकरा गया. शुक्र था कि सिर बच गया मगर पैर में मोच आ गई. किसी तरह गिरतेपड़ते डाक्टर के पास पहुंची और तमाम प्रोसीजर्स के बाद जब बाहर निकली तो 5 हजार की चपत लग चुकी थी.

जब तक भूमिका का पैर पूरी तरह से ठीक नहीं हुआ उस ने बैठेबैठे ही कुछ रील बनाईं और अपलोड कर दी थीं. हर रील पर भूमिका को कुछ न कुछ कमैंट्स आते ही थे और धीरेधीरे ऐसा होने लगा कि भूमिका अपनी वर्चुअल दुनिया से इतनी जुड़ गई कि वह अपनी असल दुनिया से डिस्कनैक्ट हो गई.

भूमिका को यह लगने लगा था कि स्क्रीन के उस पार के लोग ही हैं जो उस के अपने हैं, जो उस की कद्र करते हैं. हर रील के साथ यह पागलपन बढ़ता ही जा रहा था.

अब तो यह हाल हो गया था कि मार्केट जाते हुए, चाट खाते हुए हर समय भूमिका रील बनाती रहती. हद तो तब हो गई जब भूमिका की हास्यास्पद रीलों के कारण आर्य अपने दोस्तों के बीच मजाक बन कर रह गई.

सीधेसीधे नहीं मगर इशारों से सभी लड़के आर्या के आते ही हौट आंटी, मस्त आंटी कह कर के कटाक्ष करने लगते थे. आर्या को सब समझ में आ रहा था मगर वह कैसे अपनी मम्मी को सम?ाए. इन्हीं सब कारणों से आर्या और भूमिका में दूरी बढ़ती जा रही थी. मगर भूमिका इन सब बातों से बेखबर अपनी ही दुनिया में मस्त थी. उधर रोहित भूमिका का घर के प्रति लापरवाह रवैया देख कर मन ही मन कुढ़ता रहता था.

भूमिका का यह सोशल मीडिया का बुखार बढ़ता ही जा रहा था. वह अपने जीवन के हर लमहे को कैद कर के अपलोड कर देती थी. भूमिका को जीने से अधिक अपलोडिंग में मजा आता था. उस का पहनना, खानापीना सबकुछ सोशल मीडिया तय करता था. क्या ट्रैडिंग कर रहा है क्या नहीं इस बात पर भूमिका की जिंदगी निर्भर हो गई थी.

आर्या के ऐग्जाम के बाद पूरा परिवार जब घूमने गया तो हर 1 घंटे में एक नई रील बनाने के कारण भूमिका साथ होकर भी साथ नहीं थी. उस का सारा ध्यान उस रमणीय स्थल को देखने में नहीं वहां पर फोटो खिंचवाने और रील बनाने में था. भूमिका हर हाल में अपने सब्स्क्राइबर बढ़ाना चाहती थी.

रोहित ने एक दिन गुस्से में कह भी दिया, ‘‘भूमिका, तुम हमारे साथ आई ही क्यों हो. लगता ही नहीं तुम हमारे साथ आई हो.’’

मगर भूमिका सारी बातें अनसुनी कर देती थी. 12वीं कक्षा के रिजल्ट के बाद आर्या पढ़ने के लिए बाहर चली गई. उस की एडमिशन से ले कर प्रवेश परीक्षा तक सब चीजों में उस के पापा रोहित का ही योगदान था. भूमिका का योगदान बस अपनी बेटी के प्रति बस उस की तसवीरों और हैशटैग को सोशल मीडिया पर पोस्ट करने में ही सिमट गया था.

आर्या के कुछ बोलने से पहले ही भूमिका कहती, ‘‘तुम्हें सबकुछ वर्षों बाद भी याद रहेगा इसलिए मैं ये सब कर रही हूं.’’

आर्या व्यंग्य करते हुए बोली, ‘‘हां, महसूस तो कुछ हुआ ही नहीं है बस तसवीरों में ही याद रहेगा.’’

भूमिका इतनी अधिक इस नशे की शिकार हो गई थी कि उसे भनक भी नहीं लगी कि कब और कैसे रोहित अपनी खुशी अपनी एक तलाकशुदा सहकर्मी में ढूंढ़ने लगा था. उस महिला का नाम भावना था. रोहित अकसर दफ्तर के बाद भावना के घर ही चला जाता था. वैसे भी उसे अपना घर, घर कम स्टूडियो ज्यादा लगता था. कहीं रिंग लाइट, कहीं मेकअप का बिखरा समान… हर जगह बस दिखावा था. भावनाएं कहीं नहीं थीं.

जब से आर्या होस्टल चली गई थी तब से अधिकतर खाना या तो बाहर से आता या फिर रोहित बनाता था. भूमिका ने यह भी ध्यान नहीं दिया कि कब और कैसे रोहित रात के 9 बजे दफ्तर से घर आने लगा है.

रोहित को अब भूमिका से कोई फर्क नहीं पड़ता था. भूमिका रील बनाने में व्यस्त रहती और रोहित भावना के साथ चैटिंग करने में. जब आर्या छुट्टियों में घर आई तब भी भूमिका अपने सोशल मीडिया पर ही व्यस्त रही. रोहित आर्या को भावना के घर ले कर गया और भावना ने आर्या के साथ खूब सारी बातें और शौपिंग करी. दोनों बापबेटी को भावना में अपना नया घर मिल गया था.

भूमिका को तब होश आया जब रोहित रात को भी घर से गायब रहने लगा. आखिर एक दिन भूमिका ने रोहित को रंगे हाथ पकड़ लिया. जब भूमिका रोहित को लानतसलामत भेज रही थी तब रोहित बोला, ‘‘तुम इस बात पर रील बना कर अपने व्यूज बढ़ाओ. तुम्हारे सब्स्क्राइबर्स बढ़ाने का यह सुनहरा मौका है. तुम्हारा पति हूं कुछ तो ऐसा करूंगा जिस से मेरी पत्नी को फायदा हो,’’ यह बोल कर रोहित तीर की तरह घर से बाहर निकल गया.

भूमिका को समझ नहीं आ रहा था कि रोहित क्या सच में ऐसा उस के व्यूज बढ़ाने के लिए कर रहा है या वाकई में उस का अफेयर चल रहा है.

भूमिका इस मायावी दुनिया के सफर में इतना आगे बढ़ गई थी कि उसे वास्तविकता और वर्चुअल दुनिया में कोई फर्क ही नजर नहीं आता था. बरसों से भूमिका अपने किसी भी दोस्त से नहीं मिली थी. औनलाइन दोस्त ही उस की दुनिया बन कर रह गए थे.

भूमिका अपनी इस समस्या के लिए नए हैशटैग और अपनी एक दुखी तसवीर को क्लिक करने में व्यस्त हो गई थी. शायद जिंदगी के हर लमहे को कैद करतेकरते भूमिका कब और कैसे इस मायावी दुनिया में कैद हो गई थी उसे पता नहीं था.

Online Story Telling : यह मेरी मंजिल नहीं

Online Story Telling :  “अंजली, तुम से आखिरी बार पूछ रही हूं, तुम मेरे साथ साइबर कैफे चल रही हो या नहीं?’ लहर ने जोर दे कर पूछा.

अंजली झुंझला उठी, ‘नहीं चलूंगी, नहीं चलूंगी, और तुम भी मत जाओ. दिन में 4 घंटे बैठी थीं न वहां, वे क्या कम थे. महीना भर भी नहीं बचा है परीक्षा के लिए और तुम…’

‘रहने दो अपनी नसीहतें. मैं अकेली ही जा रही हूं,’ अंजली आगे कुछ कहती, इस से पहले लहर चली गई.

‘शायद इसीलिए प्यार को पागलपन कहते हैं. वाकई अंधे हो जाते हैं लोग प्यार में,’ अंजली ने मन ही मन सोचा. फिर वह नोट्स बनाने में जुट गई, पर मन था कि आज किसी विषय पर केंद्रित ही नहीं हो रहा था. उस ने घड़ी पर नजर डाली.  शाम के 6 बजने को थे. आज लहर की मम्मी से फिर झूठ बोलना पडे़गा. 4 दिन से लगातार लहर के घर से फोन आ रहा था, शाम 6 से 8 बजे तक का समय तय था, जब होस्टल में लड़कियों के घर वाले फोन कर सकते थे. लहर की गैरमौजूदगी में रूममेट के नाते अंजली को ही लहर की मम्मी को जवाब देना पड़ता था. कैसे कहती वह उन से कि लहर किसी कोचिंग क्लास में नहीं बल्कि साइबर कैफे में बैठी अपने किसी बौयफे्रंड से इंटरनेट पर चैट कर रही है, समय व पैसे के साथसाथ वह खुद को भी इस आग में होम करने पर तुली है.

आग ही तो है जो एक चैट की चिंगारी से सुलगतेसुलगते आज लपट का रूप ले बैठी है, जिस में लहर का झुलसना लगभग तय है.

क्या अपनी प्रिय सखी को यों ही जल कर खाक होने दे? समझाने की सारी कोशिशें तो अंजली कर चुकी थी. पर अगर कोई डूबने पर आमादा हो जाए तो उसे किनारे कैसे लाया जाए. क्या वह लहर की मम्मी को सारी सचाई बयान कर दे? पर सचाई जानने के बाद लहर का क्या होगा. यह तो तय था कि सचाई पता चलते ही लहर के मम्मीपापा उस की पढ़ाई व होस्टल छुड़वा कर उसे वापस गांव ले जाएंगे. गांव में कैद होने का मतलब था लहर के लिए भविष्य के सारे रास्ते बंद. अंजली सोच में पड़ गई.

अपनी बचपन की सहेली के साथ ऐसा हो, यह तो अंजली कतई नहीं चाहती थी. पर दोनों के स्वभाव में शुरू से ही विरोधाभास था. लहर चुलबुली, अल्हड़ सी लड़की थी तो अंजली गंभीर और व्यावहारिक. इसलिए अकसर दोनों में बहस भी हो जाया करती. पर अगले ही पल वे दोनों एक हो जातीं.

इंटर पास कर के अंजली का शहर जा कर पढ़ना तय था. गांव में कालिज नहीं था और पढ़नेलिखने में तेज अंजली की महत्त्वाकांक्षा आसमान छू लेने की थी. मांबाप भी यही चाहते थे.

इस से उलट लहर के परिवार वाले उसे शहर में अकेले होस्टल में रखने के हक में कतई न थे. पर रोधो कर लहर ने घर वालों को मना ही लिया था, शहर भेजने के लिए. लहर हमेशा से औसत दरजे की छात्रा थी. भविष्य संवारने से बढ़ कर उसे आकर्षित कर रही थी शहरी चमकदमक, आजादी व मनमौजी जीवनशैली, जो गांव में मांबाप की छत्रछाया में संभव नहीं थी.

शहर आ कर दोनों ने बी.आई.टी. में प्रवेश ले लिया. दोनों ही लगन से कंप्यूटर की बारीकियां सीखने में लग गईं. कालिज में फ्री इंटरनेट सुविधा थी. लड़कियां कई बार समय काटने के लिए नेट चैट करती रहतीं. अंजली व लहर भी कभीकभार इस तरह समय काटा करती थीं.

पर कुछ समय बाद अंजली ने महसूस किया कि लहर किसी नेटफे्रंड को ले कर कुछ सीरियस हो रही है. उठतेबैठते, सोते- जागते, उसी की चर्चा. उसी के खयाल, हर वक्त, चैट करने का उतावलापन. अंजली उसे कई बार समझा चुकी थी कि किसी अनजान से इतना लगाव ठीक नहीं. माना कि तुम्हारी दोस्ती है पर इतना अधिक पजेसिव होने की जरूरत नहीं. ये नेट चैट तो आजकल लोगों के लिए टाइमपास है. आधी से ज्यादा बातें तो इस पर लोग झूठी ही करते हैं.

अंजली के समझाने पर लहर जाने कहांकहां की प्रेम कहानियां सुनाने लगती. ढेरों उदाहरण पेश कर देती, जिस में प्रेमी भारत का तो प्रेमिका न्यूजीलैंड की, कभी प्रेमी आस्ट्रेलिया का तो प्रेमिका भारत की होती. फिर लहर का तर्क होता, ‘इन की शादियां क्या यों ही हो गईं? रिश्ते तो विश्वास पर ही बनते हैं.’

‘वह तो ठीक है लहर, फिर भी सिर्फ बातों से किसी की सचाई का पता नहीं चल जाता,’ अंजली उसे समझाती, पर लहर ने तो जैसे ठान ही लिया था कि वह जो कर रही है वही ठीक है.

कालिज के बाद का फ्री टाइम लहर साइबर कैफे में बैठ कर गुजारने लगी, जहां प्रति घंटे की दर से कुछ पैसे ले कर इंटरनेट सुविधा उपलब्ध कराई जाती है. अंजली की बातों पर जब लहर ने ध्यान नहीं दिया तो उस ने भी कुछ कहना छोड़ दिया. वह जानती थी कि नेटचैट का भूत किसी नशे से कम नहीं होता. जिस दिन नशा उतर जाएगा, उस दिन लहर खुद राह पर आ जाएगी.

पर धीरेधीरे लहर का नशा उतरने के बजाय चढ़ता ही जा रहा था. दिन में 4-4 घंटे तो कभी 6-6 घंटे साइबर कैफे में बैठ कर चैट करने की लत लहर का पर्स 15 दिन में खाली कर देती. महीने के बाकी बचे 15 दिनों के लिए वह अंजली से उधार मांगती व कहती कि पहली तारीख को घर से मनीआर्डर आने पर पैसे लौटा देगी. 1-2 बार अंजली ने दोस्ती की खातिर रुपए उधार दे दिए. पहली तारीख को लहर ने लौटा भी दिए. पर फिर अगले माह उसे पैसे की तंगी हो जाती. अंजली के मना करने पर वह किसी दूसरी लड़की से पैसे उधार ले लेती. धीरेधीरे होस्टल की सभी लड़कियां उस की उधारी वाली आदत से परेशान हो गईं. सभी कोई न कोई बहाना बना कर उसे टाल देतीं.

अब लहर ने घर फोन कर और पैसे मांगने शुरू कर दिए, कभी यह कह कर कि मेरे पैसे रास्ते में कहीं गिर गए, तो कभी नया बहाना होता कि मुझे किसी विषय की ट्यूशन लगवानी है.

लहर अपनी लत में लगी रही. नतीजा तय था. परीक्षा में जहां अंजली अच्छे नंबरों से पास हो गई वहीं लहर सभी विषयों में फेल थी.

रोधो कर लहर ने अंजली को मजबूर कर दिया, एक और झूठ बोलने के लिए, ‘अंजली प्लीज, मेरे घर पर यही कहना कि परीक्षा के दिनों में मुझे तेज बुखार था. इसी वजह से रिजल्ट खराब रहा.’

फेल होने के बावजूद लहर को कोई अफसोस नहीं था बल्कि वह तो फिर यह सोच कर चैन की सांस लेने लगी थी कि चलो, मम्मीपापा को उस की असफलता को ले कर कोई शंका नहीं है. पर अंजली परेशान थी. उस ने लहर की खातिर सिर्फ यह सोच कर झूठ बोला था कि ठोकर खा कर वह अब सही राह पर चलेगी.

अंजली लहर से एक क्लास आगे हो गई थी. अब उन का साथसाथ आना कम हो गया था. अंजली होस्टल से सुबह निकलती तो लहर उस के 2 घंटे बाद. दोनों ही अपनीअपनी तरह जी रही थीं. अंजली का पढ़ाई में लगाव बढ़ता जा रहा था. लेकिन लहर का मन पढ़ाई से पूरी तरह उचट चुका था.

अंजली ने भी उसे समझाने की कोशिशें छोड़ दीं, पर एक दिन अचानक अंजली पर जैसे गाज गिरी. अटैची में रखे 1 हजार रुपए गायब देख कर उस के होश उड़ गए. ‘तो अब लहर इस हद तक गिर गई है,’ अंजली को यकीन नहीं हो रहा था. होस्टल के कमरे में उन दोनों के अलावा कोई तीसरा आता नहीं था. ‘लहर को पैसे की तंगी तो हमेशा ही रहती थी. पैसों के लिए जब वह अपने मांबाप से झूठ बोल सकती है तो चोरी भी कर सकती थी,’ अंजली ने सोचा, पर सीधा इलजाम लगाने से बात बिगड़ सकती है. कोई ठोस सुबूत भी तो नहीं, जो साबित कर सके कि पैसे लहर ने ही निकाले हैं.

अंजली मन ही मन बहुत दुखी थी. अचानक उसे ध्यान आया कि लहर का पासवर्ड वह जानती है. क्यों न उस के पासवर्ड को कंप्यूटर में डाल कर लहर का ईमेल अकाउंट जांचा जाए. आखिर 6-6 घंटे साइबर कैफे में बैठ कर चैट करने के पीछे कारण क्या हैं.

अंजली ने साइबर कैफे में जा कर लहर के पासवर्ड से उस का ईमेल अकाउंट खोला. लहर के नाम आए मेल पढ़ कर उस के पैरों तले जमीन खिसक गई. ये सारे मेल लहर के उसी दोस्त के थे जिस के पीछे वह दीवानी हो गई थी. नाम था साहिल खान. वह सऊदी अरब में काम करने वाला भारतीय था. साहिल खान के भावुकता के रस में डूबे प्रेम से सराबोर पत्रों से पता चला कि लहर तो उस के साथ भाग कर शादी करने का वादा भी कर चुकी है, वह शादी के बाद उस के साथ सऊदी अरब में रहने के सपने देख रही है. 3 माह बाद साहिल ने उस से भारत आने का वादा किया है.

अंजली ने अपनी एक नई आई.डी. बनाई फिर साहिल खान से दोस्ती गांठने के लिए ‘जिया’ नाम से उस से संपर्क किया. अंजली को ज्यादा प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी. साहिल उस वक्त आनलाइन ही था. वह ‘जिया’ बनाम अंजली से चैट करने लगा. अंजली ने भी बातों में उलझा कर उस से दोस्ती बढ़ाने की कोशिश की. साहिल ने अंजली को अपनी उम्र लगभग वही बताई जो लहर को बताई थी, पर लहर के लिए वह कंप्यूटर इंजीनियर था तो ‘जिया’ बनाम अंजली को उस ने बताया कि वह पिछले ही साल भारत से सऊदी अरब में 2 वर्ष के कांट्रैक्ट पर एक अस्पताल में चीफ मेडिकल आफिसर बन कर आया है. अंजली ने जिया के नाम से महीने भर लगातार साहिल से चैट किया. उस ने 2-4 भावुक प्रेमपत्र ईमेल से भेजे. जवाब में आए प्रेम से सराबोर लंबेचौडे़ वादे. भावभीने प्रेमरस में डूबे प्रेमपत्रों में साहिल ने कांटै्रक्ट खत्म होते ही अगले वर्ष भारत पहुंच कर जिया से शादी करने का वादा किया.

अंजली अपनी योजना के मुकाम पर पहुंच चुकी थी. लहर ने अपने नेटफें्रड के किस्से अंजली को सुनाने लगभग बंद कर दिए थे, क्योंकि उस की बातों पर अंजली बिफर पड़ती थी. इसी वजह से दोनों के बीच तनातनी सी हो जाती थी.

गांव से शहर में आ कर होस्टल में रह कर पढ़ाई करने के बीते हुए दिनों को याद कर अंजली अतीत में खो गई थी. तंद्रा भंग हुई तो उसे याद आया कि अब क्या करना है, अपनी प्रिय सहेली लहर को भटकने से कैसे बचाना है. आज अंजली ने लहर से कहा, ‘‘लहर, आज समय हो तो प्लीज मेरे साथ साइबर कैफे चलो न, बहुत जरूरी काम है.’’

‘‘तुम्हें, साइबर कैफे में काम है?’’ लहर हैरान हो गई.

‘‘हां, पर तुम्हारे जैसा नहीं. कुछ इनफार्मेशन कलेक्ट करनी है, टर्म पेपर के लिए,’’ अंजली ने कहा.

‘‘वह तो मैं जानती हूं. तुम जैसी नीरस लड़की को भला और कोई काम हो भी नहीं सकता. अच्छा चलती हूं.’’

‘‘तुम्हारे नेटफ्रेंड का क्या हालचाल है? बहुत दिनों से तुम ने कुछ सुनाया नहीं उस के बारे में,’’ अंजली ने बात छेड़ी, ‘‘गाड़ी कहां तक आ गई है?’’

‘‘बस, समझो स्टेशन आने वाला है. 3 माह बाद ही साहिल भारत आ रहा है. कह रहा था कि मम्मीपापा से बात कर के पहले उन्हें मनाने की कोशिश करेगा. नहीं तो शादी तो हर हाल में करनी ही है. उस के बाद वह मुझे सीधे सऊदी अरब ले जाएगा. तुम तो मेरी पक्की सहेली हो. तुम तो साथ दोगी न मेरा?’’ लहर ने पूछा.

‘‘क्यों नहीं. तुम्हारी पक्की सहेली हूं. तुम्हारी खुशी के लिए कुछ भी कर सकती हूं,’’ अंजली ने कहा.

बात करतेकरते दोनों साइबर कैफे पहुंच गईं. अगले ही पल सऊदी अरब में बसे लहर के तथाकथित प्रेमी साहिल खान बनाम कंप्यूटर इंजीनियर का कच्चा चिट्ठा अंजली ने लहर के सामने खोल कर रख दिया.

वही साहिल जो लहर के लिए कंप्यूटर इंजीनियर था, वही ‘जिया’ बनाम अंजली के लिए डाक्टर था, जो 3 माह बाद लहर को ब्याहने आने वाला था. वही साल भर बाद भारत आ कर जिया से भी शादी करने के वादे कर रहा था. अब समझनेसमझाने के लिए कुछ भी बाकी नहीं था.

लहर के जीवन का लक्ष्य अचानक धराशायी हो गया. उसे एहसास हो गया कि यह मंजिल नहीं है. कटी डाल की तरह टूट कर लहर, अंजली की गोद में सिर रख कर बिलख पड़ी, ‘‘अंजली, मैं तो भूल गई थी कि लहर की मंजिल कभी साहिल तो हो ही नहीं सकता. साहिल से टकरा कर लहर को वापस लौटना पड़ता है.’’

‘‘रो ले, जी भर कर रो ले, मन का सारा दुख आज बह जाने दे, ताकि आने वाले दिनों में बीती बातों की कोई कसक बाकी न रहे,’’ अंजली ने लहर के सिर पर प्यार से हाथ फेरा.

आज अंजली भी खुद को हलका महसूस कर रही थी. उसे याद आया कि शहर आने से पहले लहर की मम्मी ने कितने विश्वास के साथ उस से कहा था, ‘बेटी, लहर का ध्यान रखना. तुम तो जानती हो न इस का स्वभाव. मन की भोली है. बड़ी जल्दी किसी की भी बातों में आ जाती है. तुम साथ हो इसलिए हम ब्रेफिक्र हो कर इसे शहर भेज रहे हैं.’

आज लहर को गुमराह होने से बचा कर अंजली ने उस के मांबाप का विश्वास भी सहेज लिया था.

Story In Hindi 2025 : गर्भपात

Story In Hindi 2025 : सुबह उठते ही रमा की नजर कैलेंडर पर पड़ी. आज 7 तारीख थी. उस के मन ने अपना काम शुरू कर दिया. झट से रमा के मन ने गणना की कि आज उस के गर्भ का तीसरा महीना पूरा और चौथा शुरू होता है जबकि रमा इसी गणना को मन में नहीं लाना चाहती थी क्योंकि मन में इस विचार के आते ही उस पर उस का पुराना भय हावी हो जाता और वह इस भय से बचना चाहती थी.

रमा डरतेडरते बाथरूम गई. वेस्टर्न स्टाइल की सीट पर बैठते ही उस का गला सूखना शुरू हो गया. उसे लग रहा था कि यदि उसे जल्दी से पानी नहीं मिला तो उस का दम घुट जाएगा. सामने ही नल था और वह पूरा जोर लगा कर उठने की कोशिश करने लगी. फिर भी उस से उठा नहीं गया.

तभी अचानक उस के पेट में दर्द उठा और नीचे पूरा पाट खून से भर गया. ऐसा उस के साथ दूसरी बार हो रहा था. रमा की रुलाई फूट पड़ी और वह अपनी प्यास भूल गई. उस ने किसी तरह से उठ कर दरवाजा खोला और अपने पति को पुकारा. उस की दर्द भरी आवाज सुन कर रवि बिस्तर छोड़ कर भागे. किसी तरह रमा को संभाला और उसे कार में डाल कर अस्पताल ले गए. डाक्टर ने रमा के गर्भ को साफ किया और घर भेज दिया. रमा फिर से खाली हाथ घर लौट आई थी.

रमा की शादी को 3 साल बीत चुके थे और इन 3 सालों में दूसरी बार उस का गर्भपात हुआ था. जब वह पहली बार गर्भवती हुई थी तो घर में खुशी की लहर दौड़ गई थी. पति रवि और सास मीना खुशी से झूम उठे थे. पर तब भी कहीं भीतर से रमा उदास हो गई थी. एक अनजाना सा डर तब भी उस के मन में था. उस के मन में यही डर था कि कहीं बच्चे के जन्म के समय उस की मृत्यु न हो जाए. इस डर के कारण उस की मानसिक स्थिति ठीक नहीं रही थी. उस का खानापीना भी कम हो गया था. दूध और फल उसे हजम ही नहीं होते थे. केवल पेट भरने के लिए वह सूखी चपाती खाती थी.

रमा के इस व्यवहार को देख कर उस की सास मीना सोचतीं कि शुरूशुरू में ऐसा सभी औरतों के साथ होता है पर धीरेधीरे सब ठीक हो जाता है लेकिन तीसरा महीना खत्म होते ही जब रमा का गर्भपात हो गया था तो उस का रोना देख कर मांबेटा दोनों ही घबरा गए. डाक्टर ने जांच के बाद गर्भाशय साफ किया और उसे घर भेज दिया.

इस घटना के बाद कुछ दिनों तक रमा उदास रही थी लेकिन सास का अपनापन भरा व्यवहार और पति के प्यार में वह इस हादसे को भूल गई. 8 महीने बाद फिर रमा ने गर्भ धारण किया. इस बार रवि उसे ले कर डा. प्रेमा के पास पहुंच गए.

डा. प्रेमा स्त्री रोग विशेषज्ञ थीं. उन्होंने दोनों को तसल्ली दी, ‘‘देखिए, डरने की कोई बात नहीं है. मैं ने ठीक से जांच कर ली है. रमा के गर्भाशय की स्थिति जरा ठीक नहीं है. वह थोड़ा नीचे की ओर खिसका हुआ है. ऐसे में उन को फुल बेडरेस्ट की जरूरत है. ज्यादा समय लेटे ही रहना है. पैरों के नीचे भी तकिया लगा कर रखना है और केवल शौच जाने के लिए उठना है. शौच जाते समय भी ध्यान रखें कि जोर नहीं लगाना है.’’

‘‘देखो रमा, जैसे डाक्टर बता रही हैं वैसे ही करना है और खुश रहना है,’’ रवि ने प्यार से कहा.

‘‘हां, खुश रहना बहुत जरूरी है,’’ डा. प्रेमा ने भी सलाह दी, ‘‘अच्छी किताबें पढ़ो, मधुर संगीत सुनो और सुखद भविष्य की कल्पना कर के खुश रहो,’’ रवि ने प्यार से कहा.

‘‘डाक्टर, मेरी जान को तो खतरा नहीं है?’’ रमा ने डरतेडरते पूछा था.

‘‘तुम ने ऐसा क्यों सोचा?’’

डा. प्रेमा ने पूछा.

‘‘मुझे डर लगता है.’’

‘‘किस बात का?’’

‘‘मैं दर्द सहन नहीं कर पाऊंगी और मर जाऊंगी.’’

‘‘सभी औरतें मर जाती हैं क्या?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तो आप इस तरह का क्यों सोच रही हैं?’’

रमा और रवि खुशीखुशी वापस घर आए. मां को सारी बातें बताईं. रवि मां से बोले, ‘‘मां, अब रमा का ध्यान आप को ही रखना है. मैं तो सारा दिन बाहर रहता हूं.’’

‘‘यह भी कोई कहने की बात है. रमा तो मेरी बेटी है. अब मैं इस की सहेली भी बन जाऊंगी और इसे खुश रखूंगी.’’

मीना अब जीजान से रमा के साथ हो लीं. उसे बिस्तर से बिलकुल उठने नहीं देतीं. सहारा दे कर शौचालय ले जातीं. टानिक और विटामिन की गोलियां समय पर देतीं. बातबात पर उसे हंसाने की कोशिश करतीं. 3 महीने ठीक से निकले. पर चौथा शुरू होते ही शौचालय में फिर से रमा का गर्भपात हो गया. रवि फिर उसे ले कर अस्पताल गए और रमा इस बार फिर वहां से खाली हो कर घर आ गई.

रवि एक दिन अकेले जा कर डाक्टरसे मिले, ‘‘डाक्टर, अब की बार क्या हुआ? ऐसा बारबार क्यों होता है?’’

‘‘सब ठीक चल रहा था,’’ डा. प्रेमा ने बताया, ‘‘मैं नहीं जानती, ऐसा क्यों हुआ. अगली बार जब यह गर्भवती हों तो आप शुरू में ही मुझ से संपर्क करें. इन के कुछ टैस्ट करवाने पड़ेंगे, उस के बाद ही गर्भपात के कारणों का पता चलेगा.’’

दूसरी बार गर्भपात होने के बाद से रमा की उदासी और भी बढ़ गई. उस का शरीर काफी कमजोर हो गया था. इस बार रवि ने मन ही मन फैसला कर लिया कि यह तमाशा और अधिक नहीं चलेगा. रमा मानसिक और शारीरिक रूप से संतुलित हो जाए उस के बाद ही बच्चे की बात सोची जाएगी. जरूरत पड़ी तो वह किसी बच्चे को गोद ले लेंगे.

जीवन अपनी गति से चलने लगा. धीरेधीरे रमा सामान्य हो चली. इस बीच वह अपने भाई की शादी के लिए अपने मायके गई तो 2 महीने रह कर वापस लौटी.

मायके से लौटने पर रमा बहुत प्रसन्नचित्त थी. घर के कामकाज में वह अपनी सास के साथ लगातार हाथ बंटाती. खाली समय में ‘जिम’ भी जाती. उस की सहेलियों का दायरा भी बढ़ गया था. एक बड़े पुस्तकालय की वह सदस्य भी बन गई थी. एक बार माइंड पावर नामक एक पुस्तक उस के हाथ लगी. उस पुस्तक में जब उस ने पढ़ा कि हमारा मन हमारा कितना बड़ा मित्र बन सकता है और उतना ही बड़ा शत्रु भी बन सकता है तो वह हैरान रह गई. अपने मन में बैठे डर का उस ने विश्लेषण किया और सोचा, क्या उस का मन ही उसे मां  नहीं बनने दे रहा है? क्या उस का मन ही हर तीसरे माह के समाप्त होते ही उस का गर्भपात करवा रहा है? एक दिन उस ने रवि से इस बारे में बात की.

‘‘रवि, इस किताब में जो भी लिखा है क्या वह सच है?’’

‘‘इतने बड़े मशहूर लेखक की किताब है, उस की यह किताब बेस्ट सैलर भी है. कितने ही लोग इसे पढ़ कर अपना जीवन सुधार चुके हैं.’’

‘‘मैं नहीं मानती. मैं ने तो हमेशा ही बच्चा चाहा है, फिर गर्भपात क्यों हुआ? अगर मेरा मन बच्चा नहीं चाहता तो मुझे भी गर्भनिरोधक गोलियों का प्रयोग करना आता था.’’

‘‘मुझे लगता है तुम्हारा मन 2 भागों में बंटा हुआ है. एक मन तो मां बनना चाहता है और दूसरा प्रसव पीड़ा से डरता है.’’

‘‘हां, तुम ठीक कहते हो पर मुझे बताओ, मैं क्या करूं?’’

रमा परेशान हो उठी थी. शादी हुए 7 साल बीत चुके थे. वे दोनों अब बच्चे की बात ही नहीं करते. पर मन ही मन रमा के अंदर एक संघर्ष चल रहा था. वह उस संघर्ष पर विजय पाना चाहती थी. उस का एक ही तरीका था कि वह पूरी सच्ची बात रवि को बताए. एक रात वह रवि से बोली, ‘‘रवि, मैं तुम्हें एक बात बताना चाहती हूं जोकि मैं ने आज तक तुम्हें नहीं बताई है. जब मैं 10 साल की थी तो मेरी बूआ प्रसव के लिए मायके आई थीं. जिस दिन उन्हें प्रसव पीड़ा शुरू हुई उस दिन घर में कोई नहीं था. केवल मैं और बूआ ही थीं. मां और पिताजी बाहर गए हुए थे.

‘‘डाक्टर के अनुसार बूआ के प्रसव में अभी 10-15 दिन बाकी थे पर अचानक ही उन्हें दर्द शुरू हो गया. भयानक दर्द से बूआ तड़पती रहीं और मैं उन्हें देख कर रोती रही. तड़पतेतड़पते बूआ बिस्तर से नीचे उतर आई थीं. दर्द के कारण चिल्लाने से उन का गला सूख गया था. उन्होंने मुझ से पानी मांगा पर मैं इतनी डर गई कि ऐसा लगा जैसे मैं वहां से हिल नहीं पाऊंगी.

‘‘बूआ ‘पानीपानी’ चिल्लाती रहीं पर मैं उन्हें पानी नहीं दे पाई और कुछ देर बाद सब शांत हो गया. बूआ खून और पानी के ढेर में शांत सी हो कर सो गईं. तभी मां आ गईं. उन्हें देख कर मैं जहां डर कर बैठी थी वहीं चिल्लाई,  ‘मां,’ देखो तो बूआ को क्या हुआ? उन्हें पानी दो.’

‘‘मां ने बूआ को देखा तो पाया कि वह सदा के लिए ही शांत हो गई थीं, पर मेरे नन्हे मन में यह बैठ गया कि अगर मैं बूआ को पानी दे देती तो शायद वह बच जातीं, मेरा मन अपराधबोध से भर गया.

‘‘तीसरा महीना शुरू होते ही वह अपराधबोध मुझ पर इस कदर हावी हो जाता है कि मैं रात में कितनी बार उठ कर पानी पीती हूं. बूआ का पानी मांगना मेरे दिलोदिमाग में छा जाता है. मेरी बूआ मेरे कारण ही बिना मां बने ही इस दुनिया से चल बसीं. इसलिए मैं सोचती हूं कि शायद अतीत का अपराधबोध और प्रसव पीड़ा का वह भयावह दृश्य ही मुझे डराता है और डर के मारे मेरा गर्भपात हो जाता है.’’

‘‘पहले क्यों नहीं बताया यह सब,’’ रवि बोले ‘‘बूआ की मौत की जिम्मेदार तुम नहीं हो. यह अपराधबोध तो मन से बिलकुल ही निकाल दो. एक 10 साल की बच्ची किसी की मौत का कारण कैसे बन सकती है और तुम्हारा दूसरा डर तो बिलकुल बेकार है. उस का सामना तो हम आसानी से कर सकते हैं. हम पहले से ही डाक्टर से बात कर लेंगे कि तुम्हारा बच्चा आपरेशन द्वारा ही हो. तुम्हें प्रसव पीड़ा होगी ही नहीं.’’

‘‘अगर डाक्टर नहीं मानी तो?’’

‘‘जरूर मानेंगी, जब तुम्हारी कहानी सुनेगी तो उन्हें मानना ही पड़ेगा.’’

दूसरे दिन ही रमा और रवि डा. कांता के पास पहुंचे. डा. कांता एक प्रसिद्ध स्त्री रोग विशेषज्ञ थीं. उन के पास जच्चाबच्चा से संबंधित एक से एक कठिन केस आते थे. अनुभवों के आधार पर वह इतना ज्ञान प्राप्त कर चुकी थीं कि जब रमा और रवि उन के पास सलाह के लिए आए तो उन्होंने सब से पहले रमा के पिछले सभी गर्भपातों के बारे में जानकारी हासिल की और रमा के लिए कुछ जरूरी टैस्ट लिख दिए. जब टैस्टों की रिपोर्ट आई तो उन्हें पता चला कि रमा को टोक्सो प्लाज्मा है. डा. कांता ने बताया कि रुबैला और टोक्सो प्लाज्मा ये 2 ऐसी बीमारियां हैं जो किसी गर्भवती महिला के लिए घातक होती हैं.

रुबैला अगर गर्भवती स्त्री को हो तो उस के कीटाणु पेट में पल रहे शिशु तक पहुंच कर उसे नुकसान पहुंचाते हैं. पर रमा के खून की जांच के बाद पता चला कि उसे टोक्सो प्लाज्मा हुआ है. यह खून में फैला हुआ इन्फेक्शन है जो ज्यादातर चूहों और बिल्लियों में पाया जाता है, पर कई बार यह मनुष्यों में भी आ जाता है और गर्भवती स्त्री के गर्भ में पल रहे शिशु के लिए घातक होता है. रमा के साथ भी यही हो रहा था. डाक्टर ने रमा को सलाह दी कि अगली बार गर्भ का निश्चय होते ही वह तुरंत अस्पताल में भर्ती हो जाए.

रमा गर्भ ठहरते ही डा. कांता के नर्सिंग होम में दाखिल हो गई. डा. कांता ने शुरू से ही रमा को उचित दवाइयां देनी शुरू कर दीं. रमा को बिलकुल बेडरेस्ट पर रखा. देखते ही देखते 4 महीने सही से निकल गए. अब तो रमा पूरी तरह आशा से भर गई थी.

डाक्टर की निगरानी, उचित दवाओं और अपने सकारात्मक विचारों और भावनाओं के कारण रमा के 9 महीने पूरे हुए. पूर्वनिश्चित समय पर डाक्टर ने आपरेशन किया और जीताजागता, रोताचिल्लाता प्यारा सा बच्चा उसकी गोद में थमा दिया.

Inspirational Stories : मालती

Inspirational Stories : कदमों के लड़खड़ाने और कुंडी खटखटाने की आवाज सुन कर मालती चौकन्नी हो उठी और बड़बड़ाई, ‘‘आज फिर…?’’

आंखों में नींद तो थी ही नहीं. झटपट दरवाजा खोला. तेजा को दुख और नफरत से ताकते हुए वह बुदबुदाई, ‘‘क्या करूं? इन का इस शराब से पिंड छूटे तो कैसे?’’

‘‘ऐसे क्या ताक रही है? मैं… कोई तमाशा हूं क्या…? क्या… मैं… कोई भूत हूं?’’ तेजा बहकती आवाज में बड़बड़ाया.

‘‘नहीं, कुछ नहीं…’’ कुछ कदम पीछे हट कर मालती बोली.

‘‘तो फिर… एं… तमाशा ही हूं… न? बोलती… क्यों नहीं…? ’’ कहता हुआ तेजा धड़ाम से सामने रखी चौकी पर पसर गया.

मालती झटपट रसोईघर से एक गिलास पानी ले आई.

तेजा की ओर पानी का गिलास बढ़ा कर मालती बोली, ‘‘लो, पानी पी लो.’’

‘‘पी… लो? पी कर तो आया हूं… कितना… पी लूं? अपने पैसे से पीया… अकबर ने भी पिला दी… अब तुम भी पिलाने… चली हो…’’

मालती कुछ बोलती कि तेजा ने उस के हाथ से गिलास झपट कर दीवार पर पटकते हुए चिल्लाया, ‘‘मजाक करती है…एं… मजाक करती है मुझ से… पति के साथ… मजाक करती है. …पानी… पानी… देती है,’’ तेजा उठ कर मालती की ओर बढ़ा.

मालती सहम कर पीछे हटी ही थी कि तेजा डगमगाता हुआ सामने की मेज से जा टकराया. मेज एक तरफ उलट गई. मेज पर रखा सारा सामान जोर की आवाज के साथ नीचे बिखर गया. खुद उस का सिर दीवार से जा टकराया और गुस्से में बड़बड़ाता हुआ वह मालती की ओर झपट पड़ा.

मालती को सामने न पा कर तेजा फर्श पर बैठ कर फूटफूट कर रोने लगा.

तेजा के सामने से हट कर मालती एक कोने में दुबकी खड़ी थी. उसे काटो तो खून नहीं. वह एकटक नशे में धुत्त अपने पति को देख रही थी. उस का कलेजा फटा जा रहा था.

तेजा के रोने की आवाज सुन कर बगल के कमरे में सोए दोनों बच्चों की नींद टूट गई. आंखें मलती 10 साल की मुन्नी और उस के पीछे 8 साल का बेटा रमेश पिता की ऐसी हालत देख कर हैरानपरेशान थे.

पिता के इस तरह के बरताव के वे दोनों आदी थे. आज पिता के रोने से उन्हें बड़ी तकलीफ हो रही थी, पर मां के गालों से लुढ़कते आंसुओं को देख कर वे और भी दुखी हो गए.

बेटी मुन्नी मां का हाथ पकड़

कर रोने लगी. रमेश डरासहमा कभी बाप को देखता, तो कभी मां के आंसुओं को.

तेजा को लड़खड़ा कर खड़ा होता देख तीनों का कलेजा पसीज गया.

तभी तेजा मालती पर झपट पड़ा, ‘‘मुझे भूख नहीं लगती क्या?… तुझे मार डालूंगा… तुम ने मुझे नीचे… गिरा दिया और… आंसू बहा रही है… झूठमूठ

के आंसू… तुम ने मुझे मारा… मैं ने

तेरा क्या बिगाड़ा?… एं… क्या बिगाड़ा… बता…?’’

मालती के बाल उस के हाथों

की गिरफ्त में आ गए. वह उन्हें छुड़ाने की नाकाम कोशिश करने लगी. बेटी मुन्नी जोरों से रोने लगी. रमेश अपने पिता का हाथ अपने नन्हे हाथों से पकड़ कर हटाने की नाकाम कोशिश करने लगा.

मालती ने चिल्ला कर रमेश को मना किया, पर वह नहीं माना. इस बीच तेजा ने रमेश को धक्का दे कर नीचे गिरा दिया. उस का सिर फर्श से टकराया और देखते ही देखते खून का फव्वारा फूट पड़ा.

खून देख कर मालती बदहवास हो कर चिल्ला पड़ी, ‘‘खून… रमेश… मेरे बेटे के सिर से खून…’’

खून देख कर तेजा का हाथ ढीला पड़ा.

मालती और मुन्नी दहाड़ें मार कर रोने लगीं. पड़ोसियों ने आ कर सारा माजरा देखा और रमेश को अस्पताल ले जा कर मरहमपट्टी करवाई. खाना रसोईघर में यों ही पड़ा रहा. मालती रातभर रमेश को सीने से लगाए रोती रही. नींद आंखों से गायब थी.

अपनी औलाद के लिए घुटघुट कर जीने के लिए मजबूर थी मालती. मन ही मन उस ने तेजा से हार मान ली थी. हालात से समझौता कर मालती ने मान लिया था कि यही उस की किस्मत में लिखा है.

पर, तेजा ने शराब से हार नहीं मानी. रात के अंधेरे में तेजा राक्षस बन कर घर में कुहराम मचाता, तो दिन की रोशनी में भले आदमी की तरह मुसकान बिखेरता मालती और बेटीबेटे को लाड़प्यार करता. ऐसा लगता कि जैसे रात में कुछ हुआ ही नहीं. पर अंदर ही अंदर मालती की घुटन एक चिनगारी का रूप लेने लगी थी.

एक दिन तो मालती की खिलाफत ने अजीब रंग दिखाया. उस दिन मालती ने दोनों बच्चों को स्कूल जाने से रोक दिया.

तेजा ने पूछा, ‘‘क्या आज स्कूल बंद है? ये तैयार क्यों नहीं हो रहे हैं?’’

‘‘नहीं, मेरी तबीयत ठीक नहीं है. इसी वजह से इन्हें रोक लिया,’’ मालती गंभीर हो कर बोली.

‘‘तो मैं आज काम पर नहीं जाता. तुम्हारे पास रहूंगा. इन्हें जाने दो,’’ तेजा बोला.

‘‘नहीं, ये आज नहीं जाएंगे. मेरे पास ही रहेंगे,’’ मालती बोली.

‘‘जैसी तुम्हारी मरजी. ज्यादा तबीयत खराब हो, तो मुझे बुलवा लेना. डाक्टर के  पास ले जाऊंगा,’’ तेजा बड़े प्यार से बोला.

मालती और बच्चों को छोड़ तेजा काम पर चला गया.

एक घंटे बाद मालती ने मुन्नी के हाथों शराब की भट्ठी से 4 बोतल शराब मंगवाई. दरवाजा बंद कर धीरेधीरे एक बोतल वह खुद पी गई. फिर मुन्नी व रमेश को पिलाने लगी. मुन्नी ज्यादा पीने की वजह से रोने लगी.

रमेश भी रोता हुआ बड़बड़ाने लगा, ‘‘मम्मी, अच्छी नहीं लग रही है. अब मत पिलाओ मम्मी.’’

‘‘पी लो, थोड़ी और पी लो… देखो, मैं भी तो पी रही हूं…’’ रुकरुक कर मालती बोली और दोनों के मुंह में पूरा गिलास उडे़ल दिया. दोनों ही फर्श पर निढाल हो कर गिर पड़े. मालती ने दूसरी बोतल भी पी डाली और वह भी फर्श पर लुढ़क गई.

थोड़ी देर बाद बच्चे उलटी करने लगे और चिल्लाने लगे.

बच्चों की दर्दभरी कराह और चिल्लाहट सुन कर पड़ोसी दरवाजा तोड़ कर घर में घुसे. वहां की हालत देख कर सभी हैरान रह गए. कमरे में शराब की बदबू पा कर उन्हें समझते देर नहीं लगी कि तेजा की हरकतों से तंग आ कर ही मालती ने ऐसा किया है.

पड़ोसियों ने तीनों को अस्पताल पहुंचाया.

खबर पा कर तेजा अस्पताल की ओर भागा. मालती और बच्चों का हाल देख कर वह पछाड़ खा कर गिर पड़ा और फूटफूट कर रोने लगा.

‘‘बचा लो भैया… इन्हें बचा लो… मेरी मालती को बचा लो… मेरे बच्चों को बचा लो…’’ कहता हुआ तेजा अपनी छाती पीट रहा था.

‘‘और शराब पियो तेजा… और पियो… और जुल्म करो अपने बीवीबच्चों पर… देख लिया…’’ एक पड़ोसी ने गुस्साते हुए कहा.

‘‘नहीं, नहीं… मैं कुसूरवार हूं… मेरी वजह से ही यह सब हुआ… उस ने कई बार मुझे समझाने की कोशिश की, पर मैं ही अपनी शराब की बुरी आदत की वजह से मामले को समझ नहीं पाया,’’ रोतेरोते तेजा बोला.

करीब एक घंटे बाद डाक्टर ने आ कर बताया कि दोनों बच्चे तो ठीक हैं, पर मालती ने दम तोड़ दिया है. उसे बचाया नहीं जा सका. उस पर शराब के  असर के अलावा दिमागी दबाव बहुत ज्यादा था.

तेजा फूटफूट कर रोने लगा. उसे अक्ल तो आ गई थी, पर इतनी अच्छी बीवी को खोने के बाद.

लेखक- हीरा लाल मिश्र

Hindi Moral Stories : जन्म समय

Hindi Moral Stories : रिसैप्शन रूम से बड़ी तेज आवाजें आ रही थीं. लगा कि कोई झगड़ा कर रहा है. यह जिला सरकारी जच्चाबच्चा अस्पताल का रिसैप्शन रूम था. यहां आमतौर पर तेज आवाजें आती रहती थीं. अस्पताल में भरती होने वाली औरतों के हिसाब से स्टाफ कम होने से कई बार जच्चा व उस के संबंधियों को संतोषजनक जवाब नहीं मिल पाता था.

अस्पताल बड़ा होने के चलते जच्चा के रिश्तेदारों को ज्यादा भागादौड़ी करनी पड़ती थी. इसी झल्लाहट को वे गुस्से के रूप में स्टाफ व डाक्टर पर निकालते थे.

मुझे एक तरह से इस सब की आदत सी हो गई थी, पर आज गुस्सा कुछ ज्यादा ही था. मैं एक औरत की जचगी कराते हुए काफी समय से सुन रहा था और समय के साथसाथ आवाजें भी बढ़ती ही जा रही थीं. मेरा काम पूरा हो गया था. थोड़ा मुश्किल केस था. केस पेपर पर लिखने के लिए मैं अपने डाक्टर रूम में गया.

मैं ने वार्ड बौय से पूछा, ‘‘क्या बात है, इतनी तेज आवाजें क्यों आ रही हैं?’’

‘‘साहब, एक शख्स 24-25 साल पुरानी जानकारी हासिल करना चाहते हैं. बस, उसी बात पर कहासुनी हो रही है.’’ वार्ड बौय ने ऐसे बताया, जैसे कोई बड़ी बात नहीं हो.

‘‘अच्छा, उन्हें मेरे पास भेजो,’’ मैं ने कुछ सोचते हुए कहा.

‘‘जी साहब,’’ कहता हुआ वह रिसैप्शन रूम की ओर बढ़ गया.

कुछ देर बाद वह वार्ड बौय मेरे चैंबर में आया. उस के साथ तकरीबन 25 साल की उम्र का नौजवान था. वह शख्स थोड़ा पढ़ालिखा लग रहा था. शक्ल भी ठीकठाक थी. पैंटशर्ट में था. वह काफी परेशान व उलझन में दिख रहा था. शायद इसी बात का गुस्सा उस के चेहरे पर था.

‘‘बैठो, क्या बात है?’’ मैं ने केस पेपर पर लिखते हुए उसे सामने की कुरसी पर बैठने का इशारा किया.

‘‘डाक्टर साहब, मैं कितने दिनों से अस्पताल के धक्के खा रहा हूं. जिस टेबल पर जाऊं, वह यही बोलता है कि यह मेरा काम नहीं है. उस जगह पर जाओ. एक जानकारी पाने के लिए मैं 5 दिन से धक्के खा रहा हूं,’’ उस शख्स ने अपनी परेशानी बताई.

‘‘कैसी जानकारी?’’ मैं ने पूछा.

‘‘जन्म के समय की जानकारी,’’ उस ने ऐसे बोला, जैसे कि कोई बड़ा राज खोला.

‘‘किस के जन्म की?’’ आमतौर पर लोग अपने छोटे बच्चे के जन्म की जानकारी लेने आते हैं, स्कूल में दाखिले के लिए.

‘‘मेरे खुद के जन्म की.’’

‘‘आप के जन्म की? यह जानकारी तो तकरीबन 24-25 साल पुरानी होगी. वह इस अस्पताल में कहां मिलेगी. यह नई बिल्डिंग तकरीबन 15 साल पुरानी है. तुम्हें हमारे पुराने अस्पताल के रिकौर्ड में जाना चाहिए.

‘‘इतना पुराना रिकौर्ड तो पुराने अस्पताल के ही रिकौर्ड रूम में होगा, सरकार के नियम के मुताबिक, जन्म समय का रिकौर्ड जिंदगीभर तक रखना पड़ता है.

‘‘डाक्टर साहब, आप भी एक और धक्का खिला रहे हो,’’ उस ने मुझ से शिकायती लहजे में कहा.

‘‘नहीं भाई, ऐसी बात नहीं है. यह अस्पताल यहां 15 साल से है. पुराना अस्पताल ज्यादा काम के चलते छोटा पड़ रहा था, इसलिए तकरीबन 15 साल पहले सरकार ने बड़ी बिल्डिंग बनाई.

‘‘भाई यह अस्पताल यहां शिफ्ट हुआ था, तब मेरी नौकरी का एक साल ही हुआ था. सरकार ने पुराना छोटा अस्पताल, जो सौ साल पहले अंगरेजों के समय बना था, पुराना रिकौर्ड वहीं रखने का फैसला किया था,’’ मैं ने उसे समझाया.

‘‘साहब, मैं वहां भी गया था, पर कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला. बोले, ‘प्रमाणपत्र में सिर्फ तारीख ही दे सकते हैं, समय नहीं,’’’ उस शख्स ने कहा.

आमतौर पर जन्म प्रमाणपत्र में तारीख व जन्मस्थान का ही जिक्र होता है, समय नहीं बताते हैं. पर हां, जच्चा के इंडोर केस पेपर में तारीख भी लिखी होती है और जन्म समय भी, जो घंटे व मिनट तक होता है यानी किसी का समय कितने घंटे व मिनट तक होता है, यानी किसी का समय कितने घंटे व मिनट पर हुआ.

तभी मेरे दिमाग में एक सवाल कौंधा कि जन्म प्रमाणपत्र में तो सिर्फ तारीख व साल मांगते हैं, इस को समय की जरूरत क्यों पड़ी?

‘‘भाई, तुम्हें अपने जन्म के समय की जरूरत क्यों पड़ी?’’ मैं ने उस से हैरान हो कर पूछा.

‘‘डाक्टर साहब, मैं 26 साल का हो गया हूं. मैं दुकान में से अच्छाखासा कमा लेता हूं. मैं ने कालेज तक पढ़ाई भी पूरी की है. मुझ में कोई ऐब भी नहीं है. फिर भी मेरी शादी कहीं तय नहीं हो पा रही है. मेरे सारे दोस्तों व हमउम्र रिश्तेदारों की भी शादी हो गई है.

‘‘थकहार कर घर वालों ने ज्योतिषी से शादी न होने की वजह पूछी. तो उस ने कहा, ‘तुम्हारी जन्मकुंडली देखनी पड़ेगी, तभी वजह पता चल सकेगी और कुंडली बनाने के लिए साल, तारीख व जन्म के समय की जरूरत पड़ेगी.’

‘‘मेरी मां को जन्म की तारीख तो याद है, पर सही समय का पता नहीं. उन्हें सिर्फ इतना पता है कि मेरा जन्म आधी रात को इसी सरकारी अस्पताल में हुआ था.

‘‘बस साहब, उसी जन्म के समय के लिए धक्के खा रहा हूं, ताकि मेरा बाकी जन्म सुधर जाए. शायद जन्म का सही समय अस्पताल के रिकौर्ड से मिल जाए.’’

‘‘मेरे साथ आओ,’’ अचानक मैं ने उठते हुए कहा. वह उम्मीद के साथ उठ खड़ा हुआ.

‘‘यह कागज व पैन अपने साथ रखो,’’ मैं ने क्लिप बोर्ड से एक पन्ना निकाल कर कहा.

‘‘वह किसलिए?’’ अब उस के चौंकने की बारी थी.

‘‘समय लिखने के लिए,’’ मैं ने उसे छोटा सा जवाब दिया.

‘‘मेरी दीवार घड़ी में जितना समय हुआ है, वह लिखो,’’ मैं ने दीवार घड़ी की ओर इशारा करते हुए कहा.

उस ने हैरानी से लिखा. सामने ही डिलीवरी रूम था. उस समय डिलीवरी रूम खाली था. कोई जच्चा नहीं थी. डिलीवरी रूम में कभी भी मर्द को दाखिल होने की इजाजत नहीं होती है. मैं उसे वहां ले गया. वह भी हिचक के साथ अंदर घुसा.

मैं ने उस कमरे की घड़ी की ओर इशारा करते हुए उस का समय नोट करने को कहा, ‘‘अब तुम मेरी कलाई घड़ी और अपनी कलाई घड़ी का समय इस कागज में नोट करो.’’

उस ने मेरे कहे मुताबिक सारे समय नोट किए.

‘‘अच्छा, बताओ सारे समय?’’ मैं ने वापस चैंबर में आ कर कहा.

‘‘आप की घड़ी का समय दोपहर 2.05, मेरी घड़ी का समय दोपहर 2.09, डिलीवरी रूम का समय दोपहर 2.08 और आप के चैंबर का समय दोपहर 2.01 बजे,’’ जैसेजैसे वह बोलता गया, खुद उस के शब्दों में हैरानी बढ़ती जा रही थी.

‘‘सभी घडि़यों में अलगअलग समय है,’’ उस ने इस तरह से कहा कि जैसे दुनिया में उस ने नई खोज की हो.

‘‘देखा तुम ने अपनी आंखों से, सब का समय अलगअलग है. हो सकता है कि तुम्हारे ज्योतिषी की घड़ी का समय भी अलग हो. और जिस ने पंचांग बनाया हो, उस की घड़ी में उस समय क्या बजा होगा, किस को मालूम?

‘‘जब सभी घडि़यों में एक ही समय में इतना फर्क हो, तो जन्म का सही समय क्या होगा, किस को मालूम?

‘‘जिस केस पेपर को तुम ढूंढ़ रहे हो, जिस में डाक्टर या नर्स ने तुम्हारा जन्म समय लिखा होगा, वह समय सही होगा कि गलत, किस को पता?

‘‘मैं ने सुना है कि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार एक पल का फर्क भी ग्रह व नक्षत्रों की जगह में हजारों किलोमीटर में हेरफेर कर देता है. तुम्हारे जन्म समय में तो मिनटों का फर्क हो सकता है.

‘‘सुनो भाई, तुम्हारी शादी न होने की वजह यह लाखों किलोमीटर दूर के बेचारे ग्रहनक्षत्र नहीं हैं. हो सकता है कि तुम्हारी शादी न होने की वजह कुछ और ही हो. शादियां सिर्फ कोशिशों से होती हैं, न कि ग्रहनक्षत्रों से,’’ मैं ने उसे समझाते हुए कहा.

‘‘डाक्टर साहब, आप ने घडि़यों के समय का फर्क बता कर मेरी आंखें खोल दीं. इतना पढ़नेलिखने के बावजूद भी मैं सिर्फ निराशा के चलते इन अंधविश्वासों के फेर में फंस गया. मैं फिर से कोशिश करूंगा कि मेरी शादी जल्दी से हो जाए.’’ अब उस शख्स के चेहरे पर निराशा की नहीं, बल्कि आत्मविश्वास की चमक थी.

Hindi Story Telling : अमूल्य धरोहर

Hindi Story Telling :  रामआसरेजी जब से विधायक बने थे किसी न किसी कारण हाईकमान से खिंचे रहते थे. खुद को जनता का सर्वश्रेष्ठ सेवक समझने वाले रामआसरे के घर आज उन्हीं जैसे 5 और असंतुष्टों की बैठक थी. भीमा, राजा भैया, प्रताप सिंह, सिद्दीकी और गायत्री देवी एक के बाद एक कर जनतांत्रिक दल के अध्यक्ष रवि और मुख्यमंत्री के खिलाफ आग उगल रहे थे.

‘‘बहुत हो गया, अब हम और चुप नहीं रहेंगे. हम ने तो तनमनधन से दल की सेवा की पर उन्होंने हमें दूध में गिरी मक्खी की भांति निकाल फेंका.’’ राजा भैया बहुत क्रोध में थे.

‘‘वही तो, मंत्रिमंडल का 3 बार विस्तार हो गया, पर हम लोगों के नाम का कहीं अतापता ही नहीं. मैं ने रवि बाबू से शिकायत की तो हंसने लगे और बोले कि तुम आजकल के छोकरों की यही समस्या है कि सेवा से पहले ही मेवा खाना चाहते हो,’’ प्रताप सिंह बोले थे.

‘‘40 वसंत देख चुके नेता उन्हें कल के छोकरे नजर आते हैं तो उस में हमारा नहीं उन का दुर्भाग्य है. जब तक दल में नए खून को महत्त्व नहीं देंगे, दल कभी तरक्की के रास्ते पर अग्रसर नहीं हो सकता,’’ रामआसरे खिन्न स्वर में बोेले थे.

‘‘दल की उन्नति और अवनति की किसे चिंता है, सब को अपनी पड़ी है. सच पूछो तो मेरा तो राजनीति से पूरी तरह मोहभंग हो गया है. महिलाओं की दशा तो और भी अधिक दयनीय है,’’ गायत्री देवी रोंआसे स्वर में बोली थीं.

तभी टेलीफोन की घंटी के तेज स्वर ने इस वार्त्तालाप में बाधा डाल दी.

‘‘नमस्ते, नमस्ते सर,’’ दूसरी ओर से दल के अध्यक्ष रवि बाबू का स्वर सुन कर रामआसरेजी सम्मान में उठ खड़े हुए थे.

‘‘रामआसरेजी, आप के लिए शुभ समाचार है,’’ रवि बाबू अपने चिरपरिचित अंदाज में हंसते हुए बोले थे.

‘‘विधायकों का एक शिष्टमंडल एड्स की रोकथाम और चिकित्सा के अध्ययन के लिए मलयेशिया जा रहा है. उस में आप का नाम भी है.’’

‘‘क्या कह रहे हैं आप? मुझे तो अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा है.’’

‘‘कानों पर विश्वास करना सीखिए, रामआसरेजी. कुछ वरिष्ठ नेतागण आप के नाम को नहीं मान रहे थे, पर मैं अड़ गया कि रामआसरेजी जाएंगे तभी शिष्टमंडल मलयेशिया जाएगा नहीं तो नहीं. अंतत: उन्हें मानना ही पड़ा.’’

वार्त्तालाप के बीच में ही रामआसरेजी ने अपनी नजर वहां बैठे अपने अन्य साथी विधायकों पर डाली थी, जो उन का वार्त्तालाप सुनने की चाहत में बेचैन हो उठे थे. तब मोबाइल कानों से लगाए रामआसरेजी धीरे से डग भरते कक्ष के बाहर बरामदे में आ गए थे.

‘‘और कौनकौन है शिष्टमंडल में?’’

‘‘आप को आम खाने हैं या पेड़ गिनने हैं,’’ रवि बाबू संयमित स्वर में बोले थे.

‘‘वही समझ लीजिए, हमारे और भी साथी हैं रवि बाबू. वे नहीं गए और मैं चला गया तो बुरा मान जाएंगे.’’

‘‘कौनकौन हैं वहां पर?’’ रवि बाबू ने तनिक गंभीर स्वर में पूछ लिया था.

‘‘कौन? कहां? रवि बाबू?’’ रामआसरेजी हड़बड़ा गए थे.

‘‘घबराइए मत, रामआसरेजी, राजनीति में आंखकान खुले रखने पड़ते हैं,’’ रवि बाबू ने ठहाका लगाया था.

‘‘हम लोग तो यों ही चायपार्टी के लिए जमा हुए हैं. आप ने शायद गलत समझ लिया.’’

‘‘देखो, मैं ने गलतसही कुछ भी नहीं समझा है. मैं ने तो बस यह बताने के लिए फोन किया था कि हाईकमान को आप की कितनी चिंता है. आप के अन्य मित्रों को भी शिष्टमंडल में शामिल कर लिया गया है,’’ रवि बाबू बोले थे.

‘‘यानी भीमा, राजा भैया, प्रतापसिंह और सिद्दीकी भी शिष्टमंडल में हैं.’’

‘‘जी हां, और गायत्री देवी भी.’’

‘‘गायत्री देवी…यह आप ने क्या किया रवि बाबू. वह भला एड्स संबंधित अध्ययन में क्या भूमिका निभाएंगी. उन्हें तो किसी महिला सम्मेलन में भेजते.’’

‘‘ऐसा मत कहिए. गायत्री देवी ने सुन लिया तो आप की खैर नहीं. स्त्री शक्ति का सम्मान करना सीखिए, रामआसरेजी.’’

‘‘मैं तो उन का बहुत सम्मान करता हूं, रवि बाबू, पर शायद हम लोगों के साथ वह सहज अनुभव नहीं कर पाएंगी.’’

‘‘उस की चिंता आप छोडि़ए और जाने की तैयारी कीजिए,’’ कहते हुए रवि बाबू ने फोन काट दिया था.

बातचीत खत्म कर रामआसरेजी किसी विजेता की मुद्रा में कमरे में घुसे और अपने खास अंदाज में सोफे पर पसर गए.

‘‘क्या हुआ, रामआसरेजी?’’ उन के दूसरे साथी उन्हें घेर कर खडे़ हो गए थे.

‘‘एक शुभ समाचार है बंधुओ,’’ रामआसरे ने अपने साथियों की उत्सुकता शांत करने का प्रयत्न किया था.

‘‘आप मंत्री बन गए क्या?’’ समवेत स्वरों में प्रश्न पूछा गया था.

‘‘अपनी ऐसी तकदीर कहां,’’ रामआसरेजी का मुंह लटक गया था.

‘‘तो फिर क्या शुभ समाचार है?’’ राजा बाबू ने पुन: प्रश्न किया था.

‘‘एक शिष्टमंडल मलयेशिया जा रहा है. एड्स की चिकित्सा और रोकथाम के अध्ययन के लिए.’’

‘‘तो?’’

‘‘हम सब उस शिष्टमंडल के सदस्य हैं.’’

‘‘अच्छा,’’ भीमा, राजा भैया, प्रताप सिंह और सिद्दीकी के चेहरे खिल उठे पर गायत्री देवी के चेहरे पर नाराजगी स्पष्ट थी.

‘‘क्या हुआ, गायत्री बहन?’’ रामआसरे ने पूछ ही लिया.

‘‘इस में इतना खुश होने के लिए क्या है? आप लोग अब तक नहीं समझे कि हाथ में विदेश भ्रमण का झुनझुना थमा कर आप को चुप किया जा रहा है. पिछले माह महिलाओं की सुरक्षा व्यवस्था के अध्ययन के लिए भी एक शिष्टमंडल आस्टे्रलिया गया था. तब तो किसी को हमारी याद नहीं आई,’’ गायत्री देवी के क्रोध की कोई सीमा न थी, ‘‘अगले माह एक और शिष्टमंडल यातायात प्रणाली के अध्ययन के लिए अमेरिका जा रहा है.’’

‘‘शांत देवी, शांत,’’ प्रकट में रामआसरेजी अत्यंत नाटकीय स्वर में बोले थे.

‘‘मुझे शांत करने से क्या होगा भाई साहब. शांत ही करने की बात है तो हाईकमान से कहिए कि आग में घी डालने के स्थान पर पानी डालें जिस से आग नियंत्रण में रह सके,’’ वह तीखे स्वर में बोली थीं.

‘‘मेरे विचार से तो हर समय आक्रामक रुख बनाए रखने से हमारा ही अहित होगा. वैसे भी भागते भूत की लंगोटी भली,’’ राजा भैया ने अपना मत जाहिर किया था.

‘‘जैसी आप लोगों की इच्छा. आप ही तो नेता बने थे असंतुष्टों के. आरपार की लड़ाई की बात करते थे. वैसे भी मैं कहां अपने लिए कुछ मांग रही हूं पर मेरे क्षेत्र के कार्यकर्ता कहते हैं कि जब तक मैं मंत्री नहीं बनूंगी क्षेत्र का विकास नहीं होगा,’’ गायत्री देवी के स्वर में निराशा थी.

‘‘हमारे क्षेत्र के कार्यकर्ता भी यही चाहते हैं. उन्होंने तो धमकी तक दे डाली है कि मंत्रिमंडल के विस्तार की सूची में मेरा नाम नहीं हुआ तो धरनेप्रदर्शनों का ऐसा दौर चलेगा कि मुख्यमंत्री तक का सिंहासन हिल जाएगा,’’ सिद्दीकी साहब कब पीछे रहने वाले थे.

‘‘मान ली आप दोनों की बात. आप और आप के कार्यकर्ता आप को मंत्री पद पर बैठा देखना चाहते हैं पर व्यावहारिक बात तो यही है कि हम सब को तो मंत्री पद मिल नहीं सकता. फिर जो मिल रहा है उसे क्यों ठुकराएं,’’ राजा भैया के विशिष्ट अंदाज ने सब की बोलती बंद कर दी थी.

‘‘मुझे लगता है कि गायत्री बहन हमारे साथ जाने में असहज अनुभव कर रही हैं,’’ रामआसरेजी ने मौन तोड़ा था.

‘‘जी नहीं, मेरी बातों को अन्यथा न लें. मुझे इस शिष्टमंडल में जाने में कोई आपत्ति नहीं है. मैं तो खुद एड्स की चिकित्सा व रोकथाम का अध्ययन कर अपने देश के एड्स पीडि़तों की सहायता करना चाहती हूं,’’ गायत्री देवी ने एक ही क्षण में सब की बोलती बंद कर दी थी और वह तुरंत ही वहां से उठ कर चल दी थीं.

‘‘देखा भैया, उड़ती चिडि़या के पर गिनने सीखो वरना राजनीति से संन्यास ले लो. इतनी आग उगलने के बाद यह गायत्री देवी मलयेशिया जाने को झट तैयार हो गईं,’’ गायत्री के जाते ही राजा भैया व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोले थे.

‘‘इसी को त्रिया चरित्र कहते हैं. वह अच्छी तरह समझती हैं कि उन्हें कब, कहां और कैसे अपनी नई चाल चलनी है,’’ सिद्दीकी ने अपना मत प्रकट किया था.

‘‘वही तो रोना है,’’ रामआसरेजी बोले, ‘‘सोचा था कि सब एकसाथ शिष्टमंडल में जा कर मौजमस्ती करेंगे. मुझे तो लगा था कि वह स्वयं ही मना कर देंगी पर वह तो तुरंत तैयार हो गईं. दालभात में मूसलचंद साथ जाएंगे तो हम क्या मस्ती करेंगे,’’ राजा भैया अपना क्रोध छिपा नहीं पा रहे थे.

‘‘इस तरह दिल छोटा करने की जरूरत नहीं है. केवल हम 5 ही नहीं 15 विधायक जा रहे हैं. हम इस अध्ययन के लिए अपना कार्यक्रम बनाएंगे,’’ रामआसरेजी ने अपने मित्रों को शांत करना चाहा था.

अगले दिन से ही शिष्टमंडल के सभी सदस्यों की जोरदार तैयारी शुरू हो गई. समय को मानो पंख लग गए थे. एड्स के रोगियों के स्थान पर सुंदर समुद्र तट, मसाज पार्लर और जहाज पर कू्रज में नाचनेगाने के सपनों ने हर दिन उन के रोमांच को और भी रंगीन बना दिया था. मलयेशिया में पहला दिन तो कुआलालम्पुर के बड़े से सभागार में व्यतीत हुआ था. सभागार ठसाठस भरा हुआ था पर दोपहर के भोजन के बाद

2 4 कुरसियों पर ऊंघते से लोगों को छोड़ कर पूरा सभागार खाली था. भारत से आए शिष्टमंडल में से केवल गायत्री देवी ही बैठी रह गई थीं.

अगले दिन शिष्टमंडल के लगभग सभी सदस्यों ने घूमनेफिरने का कार्यक्रम बनाया था पर गायत्रीजी ने साफ कह दिया कि वह गोष्ठी का कोई भी व्याख्यान छोड़ना नहीं चाहती थीं.

‘‘ठीक है, जैसी आप की इच्छा. हम आप को बाध्य तो नहीं कर रहे पर हमारा तो कार्यक्रम बन चुका है. यों भी इस गोष्ठी में रखा क्या है. एड्स से संबंधित जो भी जानकारी चाहिए सब इंटरनेट पर उपलब्ध है,’’ रामआसरेजी ने अपना पक्ष स्पष्ट किया था.

‘‘तब तो गोष्ठी के लिए यहां तक आने की जरूरत ही नहीं थी. इंटरनेट पर सारी जानकारी तो भारत में भी उपलब्ध थी,’’ गायत्रीजी ने नहले पर दहला जड़ा था.

‘‘चलिए महोदय, देर हो रही है. गाड़ी आ गई है,’’ राजा भैया बोले.

‘‘ठीक है, फिर हम लोग चलते हैं… आप गोष्ठी का आनंद लीजिए,’’ रामआसरेजी ने विदा ली थी.

मलयेशिया में 4 दिन पलक झपकते ही बीत गए. लगे हाथों सिंगापुर में भी घूमने का कार्यक्रम बन गया था. गोष्ठी के आयोजकों ने भी अतिथियों के स्वागत- सत्कार के साथसाथ घुमानेफिराने का प्रबंध किया था.

लौटते समय राजा भैया ने चुटकी ली, ‘‘गायत्रीजी, आप तो गोष्ठी में ही उलझी रही हैं. हमें भी कुछ बताइए न, क्या विचारविमर्श हुए… वैसे छपी हुई सामग्री हम ने भी ले ली है.’’

‘‘यों भी होता क्या है इन गोष्ठियों में. उद्घाटन और अंतिम सत्र के अलावा इन में किसी की रुचि नहीं होती,’’ प्रताप सिंह ने भी अपने दिल की बात कह दी.

स्वदेश पहुंचते ही सभी अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गए. मित्रोंसंबंधियों को विदेश से लाए उपहार देना भी इसी दिनचर्या का हिस्सा था. वहां से लाए हुए छायाचित्र और वीडियो भी सब के आकर्षण का केंद्र बने हुए थे.

एक दिन अचानक ही मुख्यमंत्रीजी ने वक्तव्य दे दिया कि वह अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल करने वाले हैं. फिर क्या था राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ गईं. विधायकगण अपने तरीके से अपनी बात हाईकमान तक पहुंचाने लगे. साम दाम, दंड भेद का सहारा लिया जाने लगा और उन की बात न सुने जाने पर दबी जबान धमकियां भी दी जाने लगीं. रामआसरेजी अपने असंतुष्ट विधायकों के साथ कई बार रवि बाबू से मिल आए थे और अपनी मांगें पूरी करवाने के लिए मांगों की पूरी सूची भी उन्हें थमा दी थी.

2 महीने इसी ऊहापोह में बीत गए थे. अधिकतर विधायक मंत्रिमंडल विस्तार की बात अब लगभग भूल ही गए थे कि एक दिन सुबह की चाय की चुस्कियों के साथ आने वाले समाचार ने हड़कंप मचा दिया था.

रामआसरेजी के असंतुष्ट विधायकों में से केवल गायत्री देवी को ही मंत्रिमंडल में स्थान मिल सका था. वह महिला एवं समाज कल्याण मंत्री बन गई थीं.

आननफानन में सभी विधायक रामआसरे के घर आ जुटे थे. मुख्यमंत्री पार्टी अध्यक्ष रवि बाबू के अलावा गायत्री देवी उन की विशेष कोपभाजन थीं. मुख्यमंत्रीजी तो मंत्रिमंडल का विस्तार करते ही विदेश दौरे पर चले गए थे. आखिर असंतुष्ट विधायकों के दल ने रवि बाबू के यहां धरना देने की योजना बनाई थी.

‘‘आइए मित्रो, बड़ी लंबी आयु है आप की, अभीअभी मैं आप लोगों को ही याद कर रहा था. देखिए न, कितने मनोहारी दृश्य हैं,’’ उन्होंने टीवी पर आते दृश्यों की ओर इशारा किया था.

रामआसरेजी, राजा भैया, प्रताप सिंह, सिद्दीकी, भीमाजी यानी पांचों के विस्फारित नेत्र पलकें झपकना भूल गए थे. मलयेशिया के मनोहारी समुद्र तटों पर आनंद विहार करते, जहाज पर कू्रज में नाचतेगाते उन के दृश्य किसी ने बड़ी चतुराई से सीडी में उतार कर रवि बाबू तक पहुंचाए थे.

‘‘राजा भैया आप नृत्य बड़ा अच्छा करते हैं, साथ में वह लड़की कौन है? और सिद्दीकीजी व रामआसरे बाबू, आप लोग भी छिपे रुस्तम निकले. मुख्यमंत्रीजी कह रहे थे कि जनतांत्रिक दल के विधायक बड़े रसिक हैं,’’ रवि बाबू ने अपने विशेष अंदाज में ठहाका लगाया था.

‘‘तो आप ने सीडी मुख्यमंत्री तक भी पहुंचा दी?’’ प्रताप सिंह और भीमा बाबू ने प्रश्न किया था.

‘‘नहीं रे, यह सीडी मुख्यमंत्री निवास से हम तक आई है,’’ रवि बाबू की मुसकान छिपाए नहीं छिप रही थी.

‘‘समझ गया, मैं सब समझ गया,’’ रामआसरेजी क्रोधित स्वर में बोले थे.

‘‘क्या समझ गए आप?’’

‘‘यही कि यह सब गायत्री देवी का कियाधरा है. इसीलिए उन्हें मंत्री बना कर पुरस्कृत किया गया है,’’ वह बोले थे.

‘‘आप गायत्री देवी को जरूरत से ज्यादा महत्त्व दे रहे हैं. बेचारी सीधीसादी सी घरेलू महिला है, जो अपने ससुर की महत्त्वाकांक्षाओं के चलते राजनीति में चली आई है. जासूसी करना उस के वश का रोग नहीं है,’’ रवि बाबू मानो पहेली बुझा रहे थे.

‘‘तो यह सीडी आप के पास कैसे पहुंची?’’

‘‘अनेक पत्रकार मित्र हैं हमारे, अनेक चैनलों के लिए भी काम करते हैं. वे तो सीधे जनता को दिखाना चाहते थे कि कैसे उन के विधायक एड्स जैसी गंभीर बीमारी के निराकरण के लिए खूनपसीना एक कर रहे हैं. आप के क्षेत्र कार्यकर्ता तो देखते ही वाहवाह कर उठते पर मुख्यमंत्रीजी ने सीडी खरीद ली. कहने लगे, दल की नाक का प्रश्न है. कोई जनतांत्रिक दल के विधायकों पर उंगली उठाए यह उन से सहन नहीं होगा,’’ रवि बाबू का स्वर भीग गया था, आवाज भर्रा गई थी.

कमरे में कुछ देर के लिए खामोशी छाई रही, मानो वहां कोई था ही नहीं, पर शीघ्र ही असंतुष्ट विधायकों की टोली रवि बाबू को नमस्कार कर बाहर निकल गई थी.

‘‘मान गए सर, आप को, क्या चाल चली है. सांप भी मरे और लाठी भी न टूटे,’’ रवि बाबू के सचिव श्रीरंगाचारी बोले थे.

‘‘क्या करें, राजनीति में रहना है तो सब करना पड़ता है. आंखकान खुले रखने ही पड़ते हैं,’’ रवि बाबू ने ठहाका लगाया था और सीडी संभाल कर रख ली थी.

Kahani Tales : घर वापसी

Kahani Tales : नैशनल हाईवे 33 पटना को रांची से जोड़ता है. रांची से तकरीबन 25 किलोमीटर दूर बसा एक गांव है सिकदिरी. इसी गांव में फूलन रहता था. उस के परिवार में पत्नी छमिया के अलावा 3 बच्चे थे. बड़ा लड़का पूरन और उस के बाद 2 बेटियां रीमा और सीमा.

फूलन के कुछ खेत थे. खेतों से तो परिवार का गुजारा मुश्किल था, इसलिए वह कुछ पैसा मजदूरी से कमा लेता था. कुछ कमाई उस की पत्नी छमिया की भी थी. वह भी कभी दूसरों के खेतों में मजदूरी करती, तो कभी अमीर लोगों के यहां बरतन मांजने का काम करती थी.

फूलन के तीनों बच्चे गांव के स्कूल में पढ़ते थे. बड़े बेटे पूरन का मन पढ़ने में नहीं लगता था. वह मिडिल पास कर के दिल्ली चला गया था. पड़ोसी गांव का एक आदमी उसे नौकरी का लालच दे कर अपने साथ ले गया था.

पूरन वहां छोटामोटा पार्टटाइम काम करता था. कभी स्कूटर मेकैनिक के साथ हैल्पर, तो कभी ट्रक ड्राइवर के साथ  क्लीनर का काम, पर इस काम में पूरन का मन लग गया था. ट्रक के साथ नएनए शहर घूमने को जो मिलता था.

इस बीच एक बार पूरन गांव भी आया था और घर में कुछ पैसे और एक मोबाइल फोन भी दे गया था.

ट्रक ड्राइवर अपना दिल बहलाने के लिए कभीकभी रंगरलियां भी मनाते थे, तो एकाध बार पूरन को भी मौका मिल जाता था. इस तरह धीरेधीरे वह बुरी संगत में फंस गया था.

इधर गांव में रीमा स्कूल में पढ़ रही थी. अपनी क्लास में अच्छे नंबर लाती थी. वह अब 10वीं जमात में पहुंच गई थी. उस की छोटी बहन सीमा भी उसी स्कूल में 7वीं जमात में थी.

इधर सिकदिरी और आसपास  के गांवों से कुछ नाबालिग लड़कियां गायब होने लगी थीं. गांव के ही कुछ मर्द और औरतें ऐसी लड़कियों को नौकरी का लालच दे कर दिल्ली, चंडीगढ़ वगैरह शहरों में ले जाते थे.

शुरू में तो लड़कियों के मातापिता को कुछ रुपए एडवांस में पकड़ा देते थे, पर बाद में कुछ महीने मनीऔर्डर भी आता था, पर उस के बाद उन का कुछ अतापता नहीं रहता था.

इधर शहर ला कर इन लड़कियों से बहुत कम पैसे में घर की नौकरानी बना कर उन का शोषण होता था. उन को ठीक से खानापीना, कपड़ेलत्ते भी नहीं मिलते थे. कुछ लड़कियों को जबरन देह धंधे में भेज दिया जाता था.

इन लोगों का एक बड़ा रैकेट था.  पूरन भी इस रैकेट में शामिल हो गया था.

एक दिन अचानक गांव से एक लड़की गायब हो गई, पर इस बार उस के मातापिता को कोई रकम नहीं मिली और न ही किसी ने कहा कि उसे नौकरी के लिए शहर ले जाया गया है.

इस घटना के कुछ दिन बाद पूरन के पिता फूलन को फोन आया कि गायब हुई वह लड़की दिल्ली में देखी गई है.

2 दिन बाद फूलन को फिर फोन आया. उस ने कहा कि तुम्हारा बेटा पूरन आजकल लड़कियों का दलाल बन गया है. उसे इस धंधे से जल्दी ही निकालो, नहीं तो बड़ी मुसीबत में फंसेगा.

यह सुन कर फूलन का सारा परिवार सकते में आ गया था. बड़ी बेटी रीमा

ने सोचा कि इस उम्र में पिताजी से कुछ नहीं हो सकता, उसे खुद ही कुछ उपाय सोचना होगा.

रीमा ने अपने मातापिता को समझाया कि वह दिल्ली जा कर भाई को वापस लाने की पूरी कोशिश करेगी.

चंद दिनों के अंदर रीमा रांची से ट्रेन पकड़ कर दिल्ली पहुंच गई थी. वह वहां अपने इलाके के एक नेता से मिली और सारी बात बताई.

नेताजी को पूरन की जानकारी उन के ड्राइवर ने दे रखी थी.

वह ड्राइवर एक दिन नेताजी के किसी दोस्त को होटल छोड़ने गया था, तो वहां पूरन को किसी लड़की के साथ देखा था.

ड्राइवर भी पड़ोस के गांव से था, इसलिए वह पूरन को जानता था.

ड्राइवर ने रीमा से कहा, ‘‘मैं ने ही तुम्हारे घर पर फोन किया था. तुम घबराओ नहीं. तुम्हारा भाई जल्दी ही मिल जाएगा.

‘‘मैं कुछ होटलों और ऐसी जगहों को जानता हूं, जहां इस तरह के लोग मिलते हैं. मैं जैसा कहता हूं, वैसा करो.’’

रीमा बोली, ‘‘ठीक है, मैं वैसा ही करूंगी. पर मुझे करना क्या होगा?’’

‘‘वह मैं समय आने पर बता दूंगा. तुम साहब को बोलो कि यहां का एक एसपी भी हमारे गांव का है. जरूरत पड़ने पर वह तुम्हारी मदद करे.

‘‘वैसे, मैं पूरी कोशिश करूंगा कि पुलिस की नजर में आने के पहले ही तुम अपने भाई को इस गंदे धंधे से निकाल कर अपने गांव चली जाओ.’’

इधर ड्राइवर ने भी काफी मशक्कत के बाद पूरन का ठिकाना ढूंढ़ लिया

था. वह पूरन से बोला, ‘‘एक नईनवेली लड़की आई है. लगता है, वह तुम्हारे काम आएगी.’’

पूरन ने कहा, ‘‘तुम मुझे उस लड़की से मिलाओ.’’

ड्राइवर ने शाम को पूरन को एक जगह मिलने को कहा, इधर ड्राइवर रीमा को बुरका पहना कर शाम को उसी जगह ले गया.

चूंकि रीमा बुरके में थी, इसलिए पूरन उसे पहचान न सका था. ड्राइवर वहां से हट कर दूर से ही सारा नजारा देख रहा था.

पूरन ने रीमा से पूछा, ‘‘तो तुम मुसलिम हो?’’

‘‘हां, तो क्या मैं तुम्हारे काम की नहीं?’’ रीमा ने पूछा.

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. मेरे काम में कोई जातपांत, धर्म नहीं पूछता. पर तुम अपना चेहरा तो दिखाओ. इस से मुझे तुम्हारी उम्र और खूबसूरती का भी अंदाजा लग जाएगा.’’

‘‘ठीक है, लो देखो,’’ कह कर रीमा ने चेहरे से नकाब हटाया. उसे देखते ही पूरन के होश उड़ गए.

रीमा ने भाई पूरन से कहा, ‘‘तुम्हें शर्म नहीं आती, लड़कियों की दलाली करते हो. वे भी तो किसी की बहन होगी…’’

रीमा ने कहा, ‘‘तुम्हें पता है कि अगले हफ्ते ‘सरहुल’ का त्योहार है. पहले तुम इस त्योहार को दोस्तों के साथ खूब मौजमस्ती से मनाते थे. इस बार तुम्हारी घर वापसी पर हम सब मिल कर ‘सरहुल’ का त्योहार मनाएंगे.’’

तब तक ड्राइवर भी पास आ गया था. रीमा ने जब अपने गांव से लापता लड़की के बारे में पूछा, तो उस ने कहा कि उस में उस का कोई हाथ नहीं है. लेकिन वह लड़की एक घर में नौकरानी का काम कर रही है.

ड्राइवर और पूरन के साथ जा कर रीमा ने उस लड़की को भी बचाया.

रीमा अपने भाई पूरन को ले कर गांव आ गई. सब ने उसे समझाया कि सुबह का भूला अगर शाम को घर आ जाए, तो उसे भूला नहीं कहा जाता.

पूरन को अपनी गलती पर पछतावा था. उस की घर वापसी पर पूरे परिवार ने गांव वालों के साथ मिल कर ‘सरहुल’ का त्योहार धूमधाम से मनाया.

अब पूरन गांव में ही रह कर परिवार के साथ मेहनतमजदूरी कर के रोजीरोटी कमा रहा था.

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