साबुन के एक मशहूर ब्रैंड का फेमस टीवी विज्ञापन है, जिस में कुछ बच्चे अपने पड़ोस की सफाई करने में जुटे होते हैं. ऐसे बहुत कम मौके देखने को मिलते हैं जब बच्चों को अपने आसपास की सफाई में जुटे देखा जाता है. असल जिंदगी में भी क्या हम ऐसा करते हैं? क्या वाकई धरती की सफाई के प्रति हम अपनी जिम्मेदारी समझते हैं? उसे निभाते हैं?

जिम्मेदार बनें

‘‘मम्मी, धरती से लोग उतना प्यार क्यों नहीं करते जितना उन्हें करना चाहिए?’’ यदि 5 साल का आप का बच्चा यह सवाल करे तो जवाब देना मुश्किल हो जाएगा. है न? हो सकता है कि आप के लिए यह तकलीफदेह भी हो. हमारी रोजमर्रा की जिंदगी आज इतनी तकलीफदेह हो चुकी है कि हम ने यह सोचना भी छोड़ दिया है कि हमारा भोजन और पानी आता कहां से है? धरती के नीचे उपलब्ध पानी के लगातार गिरते स्तर की हमें चिंता नहीं और भौतिक वेस्ट यानी ऐसे कबाड़ के कारण पैदा हो रहे खतरे को भी हम नजरअंदाज कर रहे हैं. हमारे खानपान और रहनसहन की बिगड़ती आदतों ने एक ऐसी सभ्यता को विकसित कर दिया है, जो आने वाले समय में वातावरण को और भी प्रभावित करेगा. जी हां, हम बात कर रहे हैं डिस्पोजेबल कल्चर की, यानि जानबूझ कर गैरजरूरी चीजों का इस्तेमाल. उदाहरण के तौर पर आजकल जंक फूड का इस्तेमाल काफी बढ़ गया है. हम व्यस्त जीवनशैली का बहाना बना कर खुद तो ये सब खा ही रहे हैं, बच्चों को भी इस तरह की चीजें खाना सिखा रहे हैं.

हमें यह समझना होगा कि जंक फूड बनाने के लिए भी प्राकृतिक संसाधनों का ही इस्तेमाल किया जाता है. अगर हम अपनी इस आदत में थोड़ा भी बदलाव ला सकें तो सेहत भी ठीक रहेगी और पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा. इस के बावजूद अभिभावक के तौर पर हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम अपनी जिंदगी को संतुलित करें, जैसे प्रकृति हमारे लिए करती है. अपने बच्चों का ध्यान कपड़े के बैग्स की ओर दिलाएं, जिस में आप ग्रौसरी का सामान रखती हैं. उन्हें समझाएं कि नैपकिंस, बैग्स, डायपर्स व अन्य जरूरी सामान आप कपड़े या पेपर के बैग्स में ही क्यों कैरी करती हैं? बच्चे के लिए यह जानना जरूरी है कि उन संसाधनों का इस्तेमाल ज्यादा करें, जिन को रिसाइकल किया जा सकता है. पृथ्वी की रक्षा करना हमारा फर्ज है.

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