तमाम देसी विदेशी मीडिया रिपोर्टें इस बात की पुष्टि कर रही हैं कि जब से देश में कोरोना की दहशत रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बनी है, तब से लोगों में डिप्रेशन की बीमारी काफी ज्यादा बढ़ गई है. इसकी सबसे बुरी परिणति इसके इसके मैनिक हो जाने के बाद लोगों द्वारा की जाने वाली आत्महत्याएं हैं. पिछले कुछ दिनों में देश में एक के बाद एक करीब 400 लोगों ने आत्महत्याएं की हैं.

ऐसा नहीं है कि कोरोना के संकट के पहले देश में आत्महत्याएं नहीं हुआ करती, लेकिन इन दिनों इनकी रफ्तार थोड़ी बढ़ गई है. इसकी पुष्टि सिर्फ मीडिया की खबरें ही नहीं कई गंभीर विदेशी जनरल भी कर रहे हैं. एशियन जनरल आफ साइक्रेटी ने हाल में एक रिसर्च रिपोर्ट छापी है, जिसके मुताबिक 40 प्रतिशत भारतीय कोरोना महामारी के बारे में सोचते ही असहज हो जाते हैं.

आखिर कोरोना की दहशत लोगों को इस कदर परेशान क्यों कर रही है कि लोग आत्महत्या करने पर उतारू हो जाते हैं? देश की जानीमानी साइकोलाॅजिस्ट और नैदानिक मनोचिकित्सक जवाब से इस संबंध में विस्तार से बात हुई है, पेश है इस बातचीत के कुछ जरूरी अंश जो हमें ऐसी ही स्थिति से निपटने में संबल दे सकते हैं.

सवाल-- तमाम रिपार्टों में आ रही क्या यह बात सच है कि लाॅकडाउन के चलते लोगों में डिप्रेशन बढ़ा है?

जवाब-- लौकडाउन के कारण लोगों में डिप्रेशन भी बढ़ा है और एंग्जायटी भी. इसके बहुत सारे कारण हैं- एक तो यही कि लोगों को यह नहीं पता चल पा रहा कि वे कब इस सबसे बाहर आ पाएंगे? लोग इस दुश्चिंता से भी घिरे हैं कि कल को अगर मुझे कोरोना हो जाता है, तो मैं हौस्पिटल कैसे पहुंचूगा? चीजें कैसे मैनेज होंगी? हमारे पास साधन क्या हैं? सरकार और सिस्टम में जो जिम्मेदार लोग हैं, क्या वे ठीक भी बोल रहे हैं? इस तरह का भी शक है कि कहीं हम इस महामारी के कैरियर तो नहीं हैं. बहुत सारी अपनी ही बातों पर डिसबिलीफ भी हो रहा है. कई बार यह भी लगता है कि ये सब बेकार की बातें हैं, ऐसा कुछ नहीं होता मास्क लगाने की भी जरूरत नहीं हैं. ये सब डौक्टर लोग बढ़ा चढ़ाकर बातें बता रहे हैं.

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