‘मैनिपुलेटिव’ एक ऐसा शब्द जो अक्सर महिलाओं से जोड़कर देखा जाता है. यहां तक की पौराणिक कथाओं से लेकर धार्मिक शास्त्रों तक, भारतीय टेलीविजन पर सीरियल्स से लेकर मुख्यधारा की पॉप संस्कृति तक, एक सामान्य विषय है, और वो सिर्फ और सिर्फ मैनिपुलेटिव का है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि क्या महिलाएं सच में मैनिपुलेटिव होती हैं या वो पितृसत्ता का शिकार होती हैं?

पुराने समय से बातों जोड़-तोड़ करने वाली महिलाओं को खराब माना जाता था. इन महिलाओं को असंस्कारी के रूप में चिह्नित किया जाता है. इस तथ्य से कोई इनकार नहीं करता है कि बेईमानी और असावधानी किसी भी व्यक्ति को शोभा नहीं देता. चाहे जो भी हो हम इन मूल्यों और मापदंडों को एक ऐसे समाज में कैसे निर्धारित करते हैं, जहां महिलाओं को उस तरह से अस्तित्व में रहने की अनुमति नहीं है जिसकी वो हकदार हैं. अच्छे इरादों के साथ झूठ बोलना झूठ के रूप में नहीं गिना जाता है, जो हमें बताया जाता है. लेकिन महिलाओं के समय में इसे किसी गुनाह से कम नहीं माना जाता.

1. क्या महिलाएं होती हैं मैनिपुलेटिव?-

महिलाओं से जुड़ा यह विषय बहस के सिवाय कुछ नहीं है. ज्यादातर लोग इस विषय से या तो सहमत होते हैं या फिर मैनिपुलेट करने वाली त्याग देते हैं. सामाजिक तौर पर देखा जाए तो ऐसे मामलों में महिलाओं की स्थिति उनके जीवन की वास्तविकता से मायने रखती है.

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उदाहरण-

मेरी सहेली इंजिनियर है. वो शादी के बाद भी अपनी जॉब पहले के जैसे ही करना चाहती थी. लेकिन उसके ससुराल वालों ने उसे इस बात की आज्ञा नहीं दी. उनके हिसाब से वह दिन के 8 घंटे एक अलग महौल में कुछ मर्दों के साथ काम करेगी. जो उनके उसूलों के खिलाफ था. दूसरा उन का ना करने का कारण यह भी था कि, 'घर का काम कौन करेगा... कौन खाना बनाएगा... कौन अपने सास-ससुर की सेवा करेगा.'
कुछ समय बाद उसने एक स्कूल शिक्षिका के रूप में काम करने की पेशकश की. उसे उम्मीद थी कि इस नौकरी के लिए उसे मना नहीं किया जाएगा और इस प्रकार उसे आर्थिक स्वतंत्रता और घर से बाहर निकलने की आजादी भी मिलेगी. इस तरह वह अपने घर का, परिवार का ,सास-ससुर का, सबका ख्याल भी रख पाएगी.

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