हमारे यहां बहुत ढोल पीटा जा रहा है कि गांवगांव में शौचालय बनवा कर खुले में शौच की परंपरा ही समाप्त कर दी गई है पर आगरा शहर से कुछ ही दूर एक गांव जोधापुरा में 26 साल की एक गर्भवती औरत खेत में शौच के लिए गई. उसी समय उस की डिलिवरी हो गई और वह उस दौरान बेहोश हो गई. उस बच्चे को कोई जंगली जानवर उठा ले गया.

सरकारों ने गांव पंचायतों के माध्यम से पैसे दे कर घरों में शौचालय बनवाए हैं पर बहुत जगह फिर भी नहीं बन पा रहे हैं, क्योंकि खुले में शौच जाने पर उस की बदबू घर में नहीं रहती. छोटे घरों में जहां पानी की व्यवस्था न हो शौच अच्छेअच्छे शहरों में एक चुनौती है.

सरकारी अस्पताल, न्यायालय, सिनेमाघर, स्कूल, ढाबे, संकरी गलियों में बने मकानों में शौचालयों की सफाई एक पहाड़ चढ़ने जैसा काम है. सब चाहते हैं कि उन के मचाई गंद पर कोई और झाड़ू चलाए, पानी फेंके.

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घर में शौचालय हो या न हो, लोग बाहर ही जा कर संतुष्ट रहते हैं, क्योंकि साफ नहीं करना पड़ता. हमारे देश की दीवारों पर कुछ और हो या न हो, ‘यहां पेशाब करना मना है’ लिखा जरूर दिख जाएगा, जहां बेहद बदबू होगी, क्योंकि इस लिखने का असर तो होना ही नहीं है.

शौचालयों का प्रबंध मुश्किल है पर उतना असंभव भी नहीं है. खुदाई से पता चलता है कि 3 हजार साल पुरानी सिंधुघाटी सभ्यता में घरों में नहाने और शौच की व्यवस्था भी थीऔर पक्की नालियां भी थीं. किन कारणों से यह सभ्यता समाप्त हुई यह अभी स्पष्ट नहीं है पर बेचारे शौचालय आज भी गंदे और बदबूदार हैं, अगर हैं तो. गांवों की औरतों की तो क्या शहरों में भी व्यवस्था बुरी . इस गर्भवती ने अपना बच्चा भी खोया और स्वास्थ्य भी.

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