शैलेंद्र सिंह

‘किसी भी देश, समाज और संस्कृति के विकास में वहां की शिक्षा व्यवस्था का बडा हाथ होता है. लोगों में शिक्षा के प्रति लगाव से पता चलता है कि वह कितना समृद्वशाली है. मेरा हमेशा से यह प्रयास रहा है कि जहां भी रहो जिस रूप में रहो लोगों को जितना शिक्षित कर सकते हो जरूर करें. समाजसेवा का इससे बडा कोई जरिया नहीं होता है. शिक्षा ऐसा दान है जो कभी खत्म नहीं होता शिक्षा हासिल करने वाले को भी इससे अधिक लाभ किसी और वस्तु से नहीं हो सकता है. पुस्तकों से बड़ा कोई दोस्त नहीं होता है.‘ यह कहना है भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी संजय प्रसाद की पत्नी पूजा प्रसाद का.

बिहार के रहने वाले संजय प्रसाद की शादी लखनऊ में रहने वाली पूजा से हो गई. 22 साल की पूजा शादी के बाद सबसे पहले रानीखेत गई. वहां रहने के दौरान पहाड़ के जीवन और शिक्षा के स्तर को देखा और महसूस किया कि ऐसे इलाकों में रहने वाले लोगों में शिक्षा का प्रसार करना चाहिये. वहां के स्कूल के साथ जुड़कर इस काम को शुरू किया. वह कहती है ‘पहाड़ों पर उस समय जाना और भी कठिन था. हम अपना समय लोगों को शिक्षा देने में व्यतीत करने लगे. इसके बाद जहां भी पति की पोस्टिंग होती थी. मैं वहां किसी ना किसी स्कूल के साथ जुड कर बच्चों को पढ़ाने का काम करने लगती थी.‘

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आज के बच्चे ज्यादा स्मार्ट है

आपने बच्चों के मनोविज्ञान को लंबे समय से देखा और समझा है. तब और अब के बच्चों में क्या फर्क महसुस करती है ? पूजा प्रसाद कहती है ‘मेरी अपनी एक बेटी है. इसके साथ ही साथ स्कूलों में शिक्षा देने के समय बहुत सारे बच्चों से बात करने और समझने का मौका मिला. इस दौरान मैने देखा है कि आज के बच्चे ज्यादा स्मार्ट है. आज के बच्चों को ज्यादा एक्सपोजर मिलता है. पैरेंट्स उनकी बात को अच्छी तरह से सुनते है. कैरियर का चुनाव करने में अब औप्शन पहले से अधिक है. आज के बच्चे पैरेंटस पर बहुत निर्भर नहीं है. इसमें सोशल मीडिया जैसी जानकारी के बदलते दौर का भी बड़ा योगदान है.

बच्चों को अपनी मां का सहयोग तो पहले भी अधिक मिलता था. आज के समय में पिता भी बहुत जिम्मेदार और सहयोगी हो गये है. स्कूलों में पैरेंटस मीटिंग में आने वाले पैरेंटस में पिता की संख्या अधिक होने लगी है. बच्चों की बात को पहले से अधिक सुना और उनको महत्व दिया जाने लगा है. इससे बच्चों के विकास में अधिक सुधार हुआ है. आज कम उम्र में ही बच्चे परिपक्व नजर आने लगे है. ऐसे बच्चों के फैसले भी अब बच्चों वाले फैसले नहीं रहते. अब वह समझदारी भरे फैसले करने लगे हैं.

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लड़कियों के साथ भेदभाव कम हुआ है

पूजा प्रसाद कहती है ‘आज के समय में लड़कियों को अपना कैरियर चुनने की आजादी मिलने लगी है. लड़का लड़की का भेदभाव काफी हद तक कम हुआ है. जहां शिक्षित लोग है वह इस तरह का भेदभाव नहीं करते है. तमाम पैरेंटस ऐसे भी है जो एक लड़की के साथ बेहद खुश है. वह अपनी बेटी को उसी तरह से पालते है जैसे लड़के का पालन पोषण करते. बेटियों को शिक्षा ही नहीं मनचाहा कैरियर और आगे का रास्ता चुनने में उसको मदद करते है. पहले जहां लोग यह चाहते थे कि बेटी डाक्टर या शिक्षक ही बने अब उसकी पंसद के दूसरे कैरियर चुनने की भी आजादी दी जाने लगी है. शिक्षा का प्रभाव लडकियों के जीवन पर दिख रहा है. वह घर बाहर दोनो ही संभाल रही है. उनको पुरूषो का साथ भी बराबर मिल रहा है. इसमें शिक्षा का ही सबसे बडा योगदान है. पढ़े लिखे लोगों ने पुराने विचारों को छोडते हुये आगे बढ़ने का काम किया है.

फिटनेस जरूरी:

महिलाएं जिस तरह से समाज में सक्रिय भूमिका अदा कर रही है उसमें सबसे जरूरी है कि वह अपने स्वास्थ्य का पूरा ख्याल रखे. इसके साथ ही साथ जो भी क्रियेटिव करना चाहती हो वह भी करे. मैं खुद रोज 6 किलोमीटर का वॉक करती हॅू. इसके साथ में नियमित एक्सरसाइज और योगा भी करती हॅू. मुझे इंटीरियर का शौक है. घर में समय देने की कोशिश करती हॅू. मुझे किताबे पढ़ने का शौक मां से मिला है. मेरी मां ‘सरिता’ पत्रिका की नियमित पाठक थी. बच्चों को वह ‘चंपक‘ पढ़ने के लिये देती थी. ऐसे में बचपन से ही मेरी आदत किताबे पढने के लग गई. इसी तरह मेरी बेटी भी पढ़ने की शौकीन है. वह अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी कर रही है. पढ़ाई का महत्व हर किसी के जीवन में है. मैं आज भी बच्चों को पढाने का काम कर रही हॅू. आगे भी मैं इसको जारी रखने का प्रयास करूंगी.

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