शाहनवाज

फेसबुक पर स्क्रोल करते करते मुझे मेरे एक बहुत पुराने दोस्त राहुल की आई.डी. नजर आई.
पहली से ले कर 7वी क्लास तक वह मेरे साथ मेरी ही क्लास में साथ पढता था. मैंने उस की
आई.डी. ओपन की और उस की फोटो को जूम कर के बड़े गौर से परखा, की यह वाकई में
राहुल है या मेरी नजर का धोखा है. हां, ये मेरा दोस्त राहुल ही था. दरअसल 8वी क्लास में
राहुल के परिवार वाले दिल्ली के लोनी बॉर्डर पर शिफ्ट हो गए थे. ये बात रही होगी 2007 की.
उस समय न तो हमारे घर में फोन था और न ही राहुल के घर, जिस से हम एक दुसरे के
संपर्क में बने रह सकें.

आई.डी. में फोटो कन्फर्म कर लेने के बाद मैंने उसे बिना हीच किचाए मेसेज कर दिया. “हेल्लो,
कैसा है मेरे भाई? मुझे पहचाना?” 5 मिनट बाद (जिस पर मुझे यकीन है की उस ने भी मेरी
आई.डी. खोल कर मेरा फोटो देखने में और पहचानने में समय लगाया होगा) उस का रिप्लाई
आया, “हा भाई, क्यों नहीं पहचानूंगा तुझे. यार इतने सालों बाद बात हो रही है.” सच में इतने
सालों बाद राहुल से बात कर मुझे बड़ा अच्छा लगा, क्योंकि स्कूल के दिनों में राहुल ही मेरे सब
से नजदीकी दोस्तों में से एक हुआ करता था. थोड़ी देर चैट में बात करने के बाद हम दोनों ने
एक दुसरे के मोबाइल नंबर एक्सचेंज किये. और मैंने उसे कॉल कर बात की.

राहुल से बातचीत में उस ने बताया की वह ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने के बाद अब गुडगाँव में
किसी मल्टीनेशनल कंपनी में काम कर रहा है. उस ने शादी भी कर ली है और वह अपने
पार्टनर के साथ अब लोनी बॉर्डर नहीं बल्कि दिल्ली के द्वारका सेक्टर 21 में शिफ्ट हो गया है.
कुछ देर और बात करने के बाद उस ने मुझे अपने घर पर इंवाइट किया. और बोला की अगर
मैं नहीं आया तो वह फिर कभी मुझ से बात नहीं करेगा. दोस्ती तो बचानी ही थी, इसीलिए मैंने
राहुल को भरोसा दिलाया की मैं जल्द ही उस से मिलने उस के घर आऊंगा.

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