भारत की सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए पेश किया गया केंद्र सरकार का आर्थिक पैकेज बेरोज़गारी दूर नहीं कर सकेगा. देश में बेकारी की समस्या जानलेवा बीमारी जैसी हो चुकी है.

हालत यह है कि करोड़ों परिवारों के पास इतना भी पैसा नहीं है कि वे हफ्तेभर की जरूरी चीजें खरीद सकें. लोग कम खाना खा रहे हैं. यहां उनकी बात नहीं की जा रही जो बेघर हैं और भूखे रहते हैं. बात उनकी है जो कुछ काम करते थे, सरकार की भेदभावपूर्ण नीतियों के शिकार होकर बेरोज़गार हो गए.

जानकारों की मानें तो लंबे समय तक नौकरी न मिल पाने की समस्या को वक़्त रहते नहीं सुलझाया गया तो देश में सामाजिक अशांति बढ़ेगी. मारकाट होगी, लोगों की जानें जाएंगी.

दरअसल, जब देश में कार्य करने वाली जनशक्ति अधिक होती है किंतु काम करने के लिए राजी होते हुए भी उसको प्रचलित मजदूरी पर काम नहीं मिलता, तो उस विशेष अवस्था को 'बेरोजगारी' की संज्ञा दी जाती है.

लौकडाउन की वजह से देश में लगभग सभी व्यापारिक गतिविधियां रुकी हुई हैं. अधिकांश ग़ैरसरकारी दफ़्तर बंद हैं और असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लाखों लोगों का काम ठप हो चुका है. इस दौरान 67 फ़ीसदी लोगों का रोज़गार छिन गया है. अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी द्वारा सिविल सोसाइटी की 10 संस्थाओं के साथ किए गए सर्वे में यह जानकारी सामने आई है.

आर्थिक मामलों पर गहन शोध करने के लिए जानी जाने वाली संस्था सैंटर फौर मौनिटरिंग इंडियन इकोनौमी यानी सीएमआईई का अनुमान है कि तालाबंदी की वजह से भारत में अब तक 12 करोड़ लोग अपनी नौकरी गंवां चुके हैं. आज खाद्य सामग्री और दूसरी ज़रूरी वस्तुओं की मांग में आई गिरावट यह बताती है कि देश के सामान्य आदमी और ग़रीब की ख़र्च करने की क्षमता कम हुई है.

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