गृहशोभा के जून (प्रथम), 2014 ‘हैल्थ×फिटनैस स्पैशल’ में प्रकाशित संपादकीय टिप्पणी, ‘आई हेट यू पापा’ की जितनी तारीफ की जाए कम होगी.

सच, जब पिता ही बलात्कारियों की कतार में खड़ा हो जाए तो अपनी रक्षा के लिए बेटियां किस से गुहार लगाएं? रिश्तों की सारी मर्यादाओं को लांघते हुए ऐसे राक्षसों की गलत करतूतों को उजागर करती इस टिप्पणी ने मनुष्य को जानवरों की पंक्ति में खड़ा कर दिया है. लानत है ऐसी पाशव मानसिकता पर जहां पिता की कामपिपासा अपनी ही बेटियों की देह से बुझती है और इस में कोई शक नहीं है कि मां, बहन, बहूबेटियों की सैक्स से जुड़ी गालियां सदियों से हो रही इसी दरिंदगी की देन हैं.
-रेणु श्रीवास्तव, बिहार

सर्वश्रेष्ठ पत्र
गृहशोभा का जून (प्रथम), 2014  अंक बहुत पसंद आया. सरल शब्दों में प्रकाशित इस की ज्ञानवर्धक रचनाओं को पढ़ कर दिलोदिमाग को एक दिशा मिलती है, जो हमें जीवन में अपने लिए, अपनों के लिए और दूसरों के लिए बहुत कुछ करने को प्रेरित करती है.
विहंगम के अंतर्गत प्रकाशित टिप्पणी ‘बच्चे जंजीर नहीं आत्मबल हैं’, में कामकाजी महिलाओं की समस्या पर बेहद बारीकी से प्रकाश डाला गया है और उस का समुचित समाधान भी बताया गया है.
यह सत्य है कि वर्तमान समय की कामकाजी युवतियां अपना कैरियर भी बनाए रखना चाहती हैं और मातृत्व का आनंद भी प्राप्त करना चाहती हैं. मगर समस्या तब उत्पन्न होती है जब एकल परिवारों में रहने वाले युगलों में पत्नी को अपने बच्चों की परवरिश हेतु नौकरी छोड़नी पड़ती है. मां की ममता बच्चों को आया के भरोसे भी कब तक छोड़े. बच्चे प्रत्येक मातापिता की अनमोल उपलब्धि हैं, उन का आत्मबल हैं,उन के जीवन की खुशियां हैं, यह समझाने के लिए संपादकजी का हार्दिक धन्यवाद.
-दोयल बोस सिंह, दिल्ली

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