कोरोना ने भारत की गृहणियों की प्राथमिकताओं, आवश्यकताओं, आदतों और नीतिनियमों में बहुत बड़ा परिवर्तन किया है. मात्र डेढ़ साल में सदियों की मजबूत परंपराएं, जिन्हें निभाना भारतीय औरत की मजबूरी बन चुकी थी, चरमरा कर टूट गयी हैं. इस आपदा काल में बहुत से परिवार बिखर गए हैं. बहुतेरे आर्थिक तंगी और कर्ज की चपेट में हैं. बहुतों ने अपनों को खो दिया है.

घर का कमाऊ व्यक्ति कोरोना के कारण अकाल ही काल का ग्रास बन गया तो घर, बच्चों और वृद्धों की देखभाल का जिम्मा अकेली औरत के कंधों पर आ गया है. कोरोना ने कई दिशाओं से महिलाओं को प्रभावित किया है. कोरोना से उपजी त्रासदी से कुछ महिलाएं बहुत मजबूर और निराश हैं तो कुछ जिम्मेदार और मजबूत हो गई हैं.

देश में कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा सवा दो लाख के पार हो चुका है. हर दिन यह आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है. पिछले साल जहां मरने वालों में ज्यादा संख्या बुजुर्गों की थी, वहीं इस साल कोरोना का नया स्ट्रेन जवान लोगों को अपना ग्रास बना रहा है. मरने वालों में पुरुषों की संख्या ज्यादा है.

ऐसे में भरी जवानी में सुहाग उजड़ जाने से जवान औरतें जहां एक ओर पति को खो देने के गम से निढाल हैं, तो वहीं दूसरी ओर अब भविष्य का क्या होगा, बच्चों की परवरिश, उन की पढ़ाईलिखाई, शादीब्याह कैसे होगा, बुजुर्गों का दवाइलाज कैसे होगा, घर चलाने के लिए पैसे कहां से आएंगे, इन चिंताओं ने उन्हें बेहाल कर रखा है.

उजड़ गया परिवार

लखनऊ की रूपाली पांडेय की उम्र अभी सिर्फ 28 साल की है. गोद में 3 साल का बच्चा है. पिछले साल मई माह में रूपाली के पति श्याम पांडेय को कोरोना हुआ. पासपड़ोस को पता न लग जाए और उन के परिवार का घर से निकलना बाधित न हो जाए, लिहाजा कोरोना टैस्ट नहीं करवाया. घर में ही बुखारखांसी की दवाएं लेता रहा. बाहर जा कर रोजमर्रा के सामान की खरीदारी करना भी जारी रहा.

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