देशभर में छोटी-छोटी बातों पर भीड़ का मारपीट कर डालना  अब एक कल्चर का हिस्सा बन गया है. बच्चा चोरी का मामला हो, गाय ले जाने का या झंडे की सुरक्षा या फिर जलूस में रोकटोक करने का, अचानक भीड़ जमा हो जाना और मारपीट कर लेना आम होता जा रहा है. चेन खींचने, चोरी करने की या छेड़खानी करने पर भी लोग बजाय पुलिस का इंतजार करने के खुद मारपीट करने लगते हैं. पुलिस को तो तथाकथित अपराधी को बचाना पड़ता है.

हिंसा का कल्चर जो पहले गांवों तक सीमित था अब शहरों में पसर कर घरों में घुस गया है और बच्चों पर, पति पर, पत्नी पर, बूढ़े मांबाप पर, नौकरों पर कहीं भी टपक सकता है. हाथ उठाना एक आदत सी बन गई है. गुस्सैल होना गुण हो गया है.

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यह कल्चर वैसे तो सभी समाजों में होता है पर हमारे यहां धर्म और राजनीति के कारण और ज्यादा पनप रहा है और नतीजा है कि हम बिना बात झगड़ा करने लगे हैं. पिछले 30-40 सालों में भीड़ का इस्तेमाल राजनीति में जम कर करा जाने लगा है. कश्मीर से तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल से राजस्थान तक यह पैर पसार रही है. लोगों को पाठ पढ़ाया जा रहा है कि भीड़ सही ही होती है, जो चाहे कर सकती है.

नया ट्रैंड बना है कि भीड़ पीटे तो आप वीडियो बनाएं रोकटोक न करें, मामला पुलिस पर न छोड़ें. वीडियो बनाएं और किसी व्हाट्सऐप, ट्विटर अकाउंट पर डालें और मजे लें. पड़ोसी पत्नी को पीट रहा है या बहू सास को मार रही है तो रोकें नहीं वीडियो बना कर डालें.

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