महान मनौवेज्ञानिक सिगमंड फ्रौयेड ने कहा था, ‘कोई महिला-पुरुष जब आपस में शारीरिक सम्बन्ध बनाते हैं, तो उन दोनों के दिमाग में 2 और व्यक्ति मौजूद रहते हैं. जो उसी लम्हे में हमबिस्तर हो रहे होते हैं.’ इस बात को पढ़ते हुए मैं अचरज में था कि क्या ऐसा सच में होता है? अगर होता है तो ऐसा क्यों होता है?

यह साल था 2007. मैं उस वक्त 15 साल का टीनेज था और 9वीं क्लास में पढ़ रहा था. मुझे आज भी याद है, पहली बार क्लास में मेराएक क्लासमैटएक ‘पीले साहित्य की किताब’ ले कर आया था. जिस के कवर पेज पर एक जवान नग्न महिला की तस्वीर थी. किसी महिला को इस तरह नग्न देखना शायद मेरा पहला अनुभव था. जिसे देख कर उत्तेजना के साथ घबराहट भी होने लगी थी. आज के नवयुवक पीला साहित्य से परिचित नहीं हों तो उन्हें बता दूं यह आज के विसुअल पोर्न का प्रिंटेड वर्जन था.

उस समय पूरी क्लास में इस किताब को ले कर काफी चर्चा होने लगी थी. सभी दोस्तों में किताब को बारीबारी घर ले जाने की शिफ्ट बनने लगी थी. शायद यह मेरी लाइफ का पहला मौका था जब सेक्स और उस से अधिक सोच पाने की चाहत मेंदिमाग के भीतर केमिकली एक्स्प्लोड़ हो रहा था. लेकिन आज सोचते बनता है कि क्या उस उम्र में कोई छात्र किसी दुसरे विषय को पढने के लिए इतनी रुचि दिखा सकता था जितना उस किताबमें लिखित ”वासना” के लिए हम किशोरों मेंजाग रही थी? शायद वह ग्रेजुएशन तक की मेरी पहली ऐसी किताब रही होगी, जिसे मैं ने और संभवतः मेरे दोस्तों ने ढेरों बार पढ़ी होगी. उन दिनों हाथ में एंड्राइड फोन की जगह कीपेड वाले फोन हुआ करते थे. बिरले ही किसी के पास डिजिटल फोन हुआ करते थे, ऐसे में आज के टचस्क्रीन तो बहुत दूर की बात है.

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