अभिनेत्री रवीना टंडन ने वैब सीरीज ‘अरण्यक’ से ओटीटी डेब्यू किया है. उन्होंने इस शो में एक छोटे से कसबे की कौप का रोल निभाया है. शो में दर्शकों ने उन के अभिनय को खूब सराहा. लोकप्रिय कन्नड़ फिल्म फ्रैंचाइजी ‘्यत्रस्न’ चैप्टर 2  में रवीना संजय दत्त के साथ नजर आई थीं. कन्नड़ सिनेमा में उन की यह पहली शुरुआत थी. 2023 में उन्हें चौथे सब से बड़े भारतीय नागरिक सम्मान पद्मश्री और कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. इस प्रकार रवीना टंडन के लिए दूसरी पारी काफी अहमियत वाली रही है.

51 वर्षीय रवीना कहती हैं, ‘‘मैं ने दर्शकों का दिल जीता है, मेरे लिए यह एक अच्छी दूसरी पारी रही. आज महिला कलाकारों के लिए यह एक अच्छा समय है. 90 के दशक में एक ऐक्ट्रैस की शादी के बाद उस की शैल्फ लाइफ खत्म हो जाती थी. वह शायद रिटायर हो जाएगी या उम्मीद की जाती थी कि वह अब मां या भाभी की भूमिका में आएगी. आज यह रोमांचक दौर है, अधिकांश ओटीटी शो का नेतृत्व महिलाओं द्वारा किया जा रहा है और हमें अभी भी स्ट्रौंग भूमिकाएं मिल रही हैं.

काम से प्यार

इस के अलावा रवीना की वैब सीरीज ‘कर्मा काङ्क्षलग’ भी एक हिट सीरीज रही है. रवीना हमेशा एक डाइरैक्टर की ऐक्टर रही हैं. वे कहती हैं, ‘‘इस से मु?ो काम करने में बहुत आसानी रहती है क्योंकि एक निर्देशक के आगे पूरी फिल्म रहती है. वे सभी कलाकारों के काम को देखते हैं, जबकि मैं सिर्फ अपना पार्ट करती हूं. ये सब मैं ने अपनी पिता से सीखा है. इस के अलावा सैट पर नए कलाकरों के साथ काम करने का अनुभव बहुत अच्छा रहता है क्योंकि इस से मु?ो भी हमेशा कुछ नया सीखने को मिलता है.

‘‘स्टारडम मेरे लिए बहुत अधिक माने नहीं रखतीं. मेरे हिसाब से मेहनत, लगन और धैर्य से ही अच्छा काम होता है. आज की तारीख में सोशल मीडिया का प्रभाव सभी पर अधिक है, पलक ?ापकते ही लाइक और दिसलाइक मिलते रहते हैं लेकिन अगर कोई प्रतिभावान है, अपने काम के प्रति ईमानदार और कमिटमैंट रखता है तो कोई भी आप का कुछ गलत नहीं कर सकता. मैं अपनी सफलता का श्रेय मैं अपने पेरैंट्स को देना चाहती हूं क्योंकि उन्होंने हमेशा मेरे उतारचढ़ाव में मेरा साथ दिया. उन्होंने मु?ो कोई आसान रास्ता चुन कर नहीं दिया. यही वजह है कि आज मैं अपनी स्ट्रैंथ को जान सकी. आसानी से मिलने वाले किसी भी काम की अहमियत कम होती है.’’

पिता के करीब

जैनरेशन में आए बदलाव के बारे में रवीना कहती हैं ‘‘ये गैप सालों पहले था और आज भी है. हरकोई इसे अपने हिसाब से देखता है. बदलाव होता रहता है लेकिन इस से आप कैसे जुड़े रहते हैं, वह आप पर निर्भर करता है. मैं अपने बच्चों को अपने पेरैंट्स के बताए संस्कार देती हूं. कई बार कोई समस्या आने पर आज भी मां की याद आती है कि उन्होंने इसे कैसे हैंडल किया था और मु?ो भी वैसे ही करना है. मैं हमेशा अपने पिता के बहुत करीब रही हूं.’’

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