युवा होती हर लड़की को मासिकधर्म के समय एक ऐसी विश्वसनीय जानकारी की जरूरत होती है, जिस पर वह पूर्ण रूप से विश्वास कर सके. ऐसी जानकारी उस के मातापिता ही उसे दे सकते हैं और इस में भी मां की भूमिका ज्यादा महत्त्वपूर्ण होती है. ऐसी स्थिति में युवा होती लड़कियों की इस समस्या को दूर करने का बीड़ा उठाया है, अदिति गुप्ता ने. उन्होंने मैंस्ट्रुपीडिया वैबसाइट लौंच की जिस में मासिकधर्म से जुड़ी जानकारी, स्वास्थ्य और स्वच्छता के बारे में समाज को शिक्षित करने का प्रयास सराहनीय है. वे चाहती थीं कि इस समाज से दकियानूसी बातें व सोच मिटा सकें. झारखंड के एक छोटे से शहर गढ़वा की रहने वाली अदिति गुप्ता की शुरू की पढ़ाई गढ़वा व रांची से हुई. फिर उन्होंने इलैक्ट्रौनिक और इंस्ट्रुमैंटल में इंजीनियरिंग की पढ़ाई आगरा से की. फिर पोस्ट ग्रैजुएशन न्यू मीडिया डिजाइन में द नैशनल इंस्टिट्यूट औफ डिजाइन’ अहमदाबाद से किया. मैंस्ट्रुपीडिया बनाने के पीछे उन का मुख्य लक्ष्य यही था कि सभी लड़कियों और उन के मातापिता को मासिकधर्म के बारे में पूरी जानकारी मिल सके और सभी स्त्रियां मासिकधर्म का समय संतुष्टि से काट सकें. उन का कहना है कि इस वैबसाइट के जरीए हम समाज में जागरूकता फैला रहे हैं ताकि लोग इसे पढ़ कर हम से बातचीत कर सकें और अन्य लोगों को भी इस के बारे में बता सकें.
अदिति कहती हैं, ‘‘अब हर महीने मेरी वैबसाइट को कम से कम 2,00,000 लोग देखते हैं. इस वैबसाइट में 3 प्रमुख सुविधाएं हैं. क्विक गाइड, सवालजवाब और ब्लौग. जहां लोग मासिकधर्म से जुड़ी बातें जान सकते हैं, सवालजवाब कर सकते हैं तथा व्यावहारिक लेख लिख सकते हैं. हम ने 90 पन्नों की एक कौमिक्स भी निकाली है जो हिंदी और अंगरेजी दोनों भाषाओं में उपलब्ध है.’’
प्रेरणा
इस बारे में अदिति बताती हैं, ‘‘मैं ने खुद अपनी जिंदगी में मासिकधर्म से संबंधित समस्याओं का अनुभव किया और उस का समाधान भी किया. पर इस के बारे में जानकारी मिलने के बजाय मुझे इस से संबंधित सभी काल्पनिक कथाओं और प्रतिबंधित सीमाओं के बारे में जानने को मिला. यह सब जान कर मेरे आत्मविश्वास व आत्मसम्मान पर इतना गहरा असर पड़ा कि अपनेआप को इस से उबारने के लिए मुझे कई वर्ष लग गए. तब मुझे एहसास हुआ कि दुनिया में करोड़ों ऐसी महिलाएं होंगी, जिन्हें चुनौती का सामना करना पड़ता होगा. फिर मैं ने इस विषय पर शोध सहयोगी के रूप में फोर्ड फाउंडेशन के साथ काम किया. ‘‘मैं गांधीनगर, अहमदाबाद और मेहसाना, रांची जैसे कुछ शहरों में जब शोध कर रही थी, तो मैं ने कुछ स्कूल की छात्राओं, गैर सरकारी संगठनों और कुछ मातापिता से बात की तो पता चला कि सामाजिक बंदिशों के कारण उन का आत्मविश्वास और विश्वास बहुत कम है और जब लड़की पहली बार माहवारी का अनुभव कर रही हो तभी जानकारी देने का अच्छा समय होता है.’’
सफलता की राह में रोड़ा धर्म
औरतों की आजादी की राह में रुकावट का काम करने वाले धर्म के बारे में अदिति कहती हैं, ‘‘धर्म से जुड़ी बहुत सी मान्यताएं ऐसी हैं जिन का कोई वजूद ही नहीं है पर फिर भी वे हमें जकड़े हुए हैं. जैसे कि मासिकधर्म के समय मां ही अपनी बेटी पर रोकटोक करने लगती है कि यह न छुओ वह न छुओ. यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है, लेकिन जैसे ही किसी एक पीढ़ी की स्त्री ऐसी मान्यताओं को तोड़ देगी, माहवारी के बारे में सारी गलतफहमियां दूर हो जाएंगी.’’
महिलाओं को संदेश
महिलाओं को संदेश देते हुए अदिति का यही कहना है कि अगर आप को कोई व्यक्ति कुछ करने से रोक रहा है तो हो सकता है कि वह आप खुद हों यानी आप की हिचक ही आप को कुछ करने से रोक रही है. ऐसे में खुद पर विश्वास रखें और निडर हो कर अपने सपने पूरे करें.