कोरोना महामारी के चलते देश संकट के दौर से गुजर रहा है. बच्चों के सर से माता पिता का साया उठ रहा है. माता पिता अपने बच्चे को खो रहे हैं. महिलाएं विधवा हो रही हंै. इससे भारत के दक्षिण मध्य में स्थित महाराष्ट्र राज्य भी अछूता नही है. महाराष्ट्र की गिनती भारत के सबसे धनी एवं समृद्ध राज्यों में की जाती है, इसके बावजूद कोरोना के चलते अब तक 75000(पचहत्तर हजार)लोग अपनी जिंदगी गंवा चुके हैं. परिणामतः कई परिवार संतान विहीन, तो कई परिवारों में विधवाओं की संख्या बढ़ गयी है. कई बच्चों के सर से माता पिता का साया उठ चुका है. लेकिन केंद्र सरकार के साथ साथ महाराष्ट्र की राज्य सरकार ने कोरोना के चलते जिनका निधन हुआ, उनके परिवारों के लिए कुछ नहीं किया.

हमें यह नही भूलना चाहिए कि महाराष्ट्र देश का सबसे बड़ा औद्योगिक राज्य है. और मुंबई देश की आर्थिक राजधानी मानी जाती है. पुणे शिक्षा और आई टी का केंद्र माना जाता है. महाराष्ट्र में मुंबई, पुणे,  पालघर, नागपुर के हालात बद से बदतर हैं. यह हालात तब हैं, जब मुंबई, नागपुर, पुणे सबसे अधिक विकसित शहर हैं. महाराष्ट्र के मुंबई,  पुणे (पुणे शहर भारत का छठवाँ सबसे बड़ा शहर है. ), नागपुर, ठाणे,  पालघर सहित कई शहर व जिलों में उत्कृष्ट स्वास्थ्य सुविधाएं हैं.

लोगो की जिंदगी पटरी पर आने से पहले ही लुढ़क गयी

कोरोना महामारी के असर से राजनेता, उद्योगपति, बड़ी फिल्मी हस्तियां वगैरह काफी हद तक सुरक्षित ही रहे है. यह एक अलग बात है कि कुछ लोग जरुर इस बीमारी से काल के मुंह में समा गए. लेकिन कोरोना महामारी के चलते 25 मार्च 2020 से आम लोगो, नौकरीपेशा लोगो, छोटे छोटे व्यापारी व उद्योग धंधों पर इस तरह से मार पड़ी है कि इनकी जिंदगी आज भी पटरी पर लौट नहीं पायी है. जनवरी 2021 से सभी की जिंदगी धीरे धीरे पटरी पर लौटना शुरू ही हुई थी कि कोरोना की दूसरी लहर और इससे निपटने की बजाय इसकी तरफ महाराष्ट्र सरकार की लापरवाही ने लोगों की जिंदगी को पटरी पर आने से पहले ही उखाड़ फेंका. महंगाई चरम पर है. 15 अप्रैल से लागू लॉकबंदी से एक बार फिर पूरे राज्य में फिल्म इंडस्ट्री, ज्वेलरी बाजार, स्टील बर्तन बनाने के उद्योग, भवन निर्माण से जुड़े मजदूर से जुड़े लोगों के साथ ही सभी मजदूरों, दिहाड़ी कामगारांे, फेरीवालो व नौकरीपेशा लोगों के सामने एक बार फिर दो वक्त की रोटी का सवाल मुंह बाएं खड़ा हो चुका है. किसी की भी समझ में नहीं आ रहा है कि वह अपनी जिंदगी की नाव आगे कैसे खेंएंगे?सरकार के पास भी इसका कोई जवाब नही है.

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