Modern Girl Outfit: स्त्री पैदा नहीं होती बल्कि बनाई जाती है’ सिमोन द बोउवार की यह पंक्ति दुनियाभर में स्त्री की सचाई बयां करती है. हमारे यहां स्त्री को गढ़ने में पितृसत्तात्मक परिवेश, समाज का संकीर्ण दृष्टिकोण, धर्मग्रंथ, नियमकानून और जरूरत पड़ने पर मारपिटाई महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है. यह काम बेटी छोटी सी होती है तभी से शुरू हो जाता है. उसे बताया जाता है कि वह लड़की है इसलिए उस के खानपान, रहनसहन, पहनावे और यहां तक कि पढ़ाईलिखाई पर भी एक शिकंजा कायम रहेगा. उसे पलपल जीवन में समझते करने होंगे और अपने सपनों को दफन करना होगा.

उसे हमेशा पुरुष वर्ग के अधीन रहना होगा. उसे अपना चेहरा और बदन छिपा कर तथा सिर झका कर जीने की आदत डालनी होगी वरना उस का जीना दूभर हो जाएगा.

यही वजह है कि उसे बचपन से अलग तरह के कपड़े पहनाए जाते हैं, अलग तरह के काम कराए जाते हैं और अलग तरह से खिलायापिलाया जाता है. यानी उसे लड़की बनाया जाता है जो कभी लड़कों की बराबरी नहीं कर सकती. अगर उसे बराबरी करनी है तो बहुत कुछ बदलना पड़ता है.
फिल्म ‘दंगल’ एक छोटा सा दृश्य है जिस में महावीर सिंह फोगाट अपनी बेटियों गीता और बबिता को पहलवान बनाना चाहते हैं और इस के लिए रोज सुबह दौड़ने के लिए कहते हैं. वे रोज दौड़ने भी निकलती हैं. लेकिन कुछ दिन दौड़ने के बाद दोनों अपने पिता से बोलती हैं कि पापा सूट में दौड़ा नहीं जाता. तब उन के पिता महावीर सिंह दोनों को चचेरे भाई का निक्कर और शर्ट को छोटा कर पहनने के लिए देते हैं. दोनों उन्हें पहन कर बिना परेशानी के दौड़ लगाती हैं.

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