दुनिया ने मान लिया है कि कोरोना फिलहाल तो रहेगा. इस के ख़त्म होने का इंतजार अब कोई नहीं कर रहा. सो, तक़रीबन हर देश लौकडाउन से लौकआउट की ओर बढ़ चला है. भारत ने भी कदम बढ़ा दिया है. लौकडाउन में रहते हुए ढील पर ढील दी जा रही है.

लेकिन, हर भारतवासी के दिमाग में सवाल यह है कि क्या वह अपनी पुरानी ज़िंदगी फिर से जी पाएगा? इस का कड़वा जवाब यह है कि फिलहाल तो कोरोना के साथ जीने की आदत डाल लीजिए. न सिर्फ आदत डाल लीजिए बल्कि रोजमर्रा की ज़िंदगी में बहुत सी जरूरी चीजें जो पूरे लौकआउट के बाद बदलने जा रही हैं, उन्हें अपनाना भी अभी से सीख लीजिए क्योंकि कोरोना हम सब के साथसाथ चलेफिरेगा. कोरोना से पहले की ज़िंदगी जीने का तरीका बदलना होगा. हाथ मिलाना और गले लगना अब शायद तसवीरों में ही देखने को मिले. अभी तक कोरोना ने पैनडेमिक बन कर तबाही मचाई. अब कहा जा रहा है कि यही कोरोना एनडेमिक भी बन सकता है.

पैनडेमिक के बाद यह एनडेमिक क्या बला है, आप यह सोच रहे होंगे. दरअसल, पैनडेमिक महामारी को कहते हैं, जबकि एनडेमिक उस हालत को कहते हैं जिस में एक वायरस इंसानों के साथ घूमता रहता है. इस दौरान वह उन पर असर डालता है जिन के शरीर ने या तो उस से लड़ने की क्षमता पैदा नहीं की है या फिर उन्हें इसकी वैक्सीन नहीं लगी है. ज़ाहिर है कोरोना वायरस की वैक्सीन तो फिलहाल बनी नहीं है. ऐसे में यह इंसानों के साथ ही घूमता रहेगा.

वर्ल्ड हेल्थ और्गेनाइज़ेशन यानी डब्लूएचओ के इमरजेंसी एक्सपर्ट माइक रायन के मुताबिक, एक तो कोरोना जल्दी खत्म नहीं होगा और दूसरा यह कि वह एनडेमिक वायरस बन कर हमेशा हमारे साथ ही रहने वाला है. हो यह भी सकता है कि यह कोरोना वायरस हमारे बीच से कभी जाए ही नहीं ठीक वैसे ही जैसे एचआईवी और डेंगू जैसे वायरस आज भी हमारे बीच मौजूद हैं, जिन की वैक्सीन अभी तक नहीं बन पाई है और जिन के साथ अब हम ने जीना सीख लिया है. इसी तरह हमें कोरोना वायरस के साथ भी रहना सीखना होगा.

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