भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री ने डिक्लेयर कर दिया कि देश से ओपन डिफेकेशन यानी खुल में शौच खत्म हो गया तो खत्म हो गया. जैसे 75वीं आजादी की वर्षगांठ अमृत महोत्सव बन गई और घरघर तिरंगा फहराने लगा वैसे ही एयरकंडीशंड कमरों में अटैच्ड बाथरूम वाले ने भक्तों ने कह दिया कि 8 साल में हर घर का शौचालय है तो है.

यह बात दूसरी कि दिल्ली का हिस्सा बन चुके गुडगांव के साथ रहने वाली एक 12 साल की लडक़ी का रेप कर मर्डर कर दिया गया क्योंकि उस के स्लम में कोई शौचालय नहीं है और उसे रेलकी पटरी पर हर रोज शौच के लिए जाना होता था.

हरेक के लिए शौचालय बनाना और उसे सीवर से जोडऩा आज के युग में असभव नहीं है क्योंकि आज टैक्नोलौजी के जरिए जब हर हाथ में जिंदा मोबाइल दिए जा सकते हैं तो पानी, सीवर और शौचालय की तकनीक तो सैंकड़ों साल पुरानी हो चुकी है. असल में मोबाइल, सीसीटीवी कैमरों से हरेक घर नजर रख जा रही है, हरेक को काबू में रखा जा पा रहा है और शौचालय बनाने से न कंट्रोल मिलता है, न नियमित मुनाफा होता है.

ऐसा नहीं है कि अमीर घरों के गरीबों के शौचालयों के न होने से फर्क नहीं पड़ता हो. पड़ता है पर दिखता नहीं, अगर इन स्लमों में रहने वालों के हाथ व बदन मार्क न होंगे तो कितना ही मैनेटाइजर लगा लो, अच्छों के घरों में बदबू रहेगी.

देश के अगर गंदगी, बदबूदार, फैले हुई सडक़ों पर चलना पड़ रहा है तो इसीलिए कि हमारा गरीबों को थोड़ीबहुत सुविधाएं देने में भी मुसीबत लगती है. हमारी सारी ताकत मंदिर बनाने में लगी है, कांवड़ ढोने में लगी है, फर्राटेदार गाडिय़ां दौड़ सकें. ऐसी सडक़ें बनाने में लग गई है. यह ठीक है पर इस की नींव तभी मजबूत होगी जब इन के बनाने वालों के पास ठीकठाक छत, बिजली के 2 बल्व और शौचालय हो.

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