दिल्ली के मंगोलपुरी में एक छोटी सी गली में 25 गज में बने छोटे से मकान में परिवार के साथ रहने वाले भूपेंद्र  बिड़लान व शीला देवी ने सपने में भी न सोचा होगा कि उन की बेटी राखी बिड़लान एक दिन दिल्ली सरकार में डिप्टी स्पीकर बन कर इतिहास रच देंगी.

ऐसी मां को सलाम

सरकारी स्कूल की चतुर्थ वर्ग की कर्मचारी राखी की मां की चाहत थी कि उन की बेटी पढ़लिख कर अफसर बने और यह तभी संभव था जब बेटी उच्च शिक्षित हो. मां का यह सपना  बेकार नहीं गया. बेटी राखी भले ही सरकारी औफिसर न बन पाई हो पर राजनीति के उस शिखर पर जरूर जा बैठी, जहां पहुंचना आसान नहीं होता.

दलित परिवार में पैदा हुईं राखी आज जिस मुकाम पर हैं उस का श्रेय वे मां को देती हैं. राखी कहती हैं, ‘‘एक सरकारी स्कूल में बतौर चपरासी  काम करने वाली मेरी मां शिक्षा के महत्त्व को जानती थीं. मां मानती हैं कि एक शिक्षित लड़की न सिर्फ अपने परिवार, बल्कि देश की तरक्की में भी अहम योगदान दे सकती है.

‘‘शायद यही वजह थी कि जब मैं ने मास कम्यूनिकेशन से एम.ए. करना चाहा, तो मुझे पढ़ाने के लिए मेरे मातापिता ने उस छोटे से घर को भी गिरवी रख दिया. उस वक्त मेरी आंखों में आंसू आ गए थे. एक तरफ जहां समाज में कुछ लोग बेटियों की हत्या जन्म लेने से पूर्व ही गर्भ में कर देते हैं, वहीं मेरे भी मातापिता हैं, जिन्होंने बेटेबेटी में कभी फर्क महसूस नहीं किया.’’

राजनीति में आना दिलचस्प रहा

जिस भारतीय समाज की संरचना धार्मिक अंधविश्वास, जातपांत, छुआछूत के तानेबाने में उलझी हो, वहां एक कम उम्र की दलित लड़की का राजनीति में आना भी कम दिलचस्प नहीं है.

राखी बताती हैं, ‘‘मास कम्यूनिकेशन से एम.ए. करने के बाद मेरी इच्छा थी कि मैं नौकरी करूं और घर की आर्थिक स्थिति सही करने में अपना योगदान दूं और जो मकान मातापिता ने मेरी पढ़ाई के लिए गिरवी रखा था उसे छुड़ाऊं. पर उसी बीच देश में अन्ना आंदोलन की लहर चली. लोग कुशासन और भ्रष्टाचार से त्रस्त थे. मेरे दादाजी, जो स्वतंत्रता सैनानी थे, मेरे प्रेरणास्रोत रहे. मुझे लगा कि इस आंदोलन से जुड़ कर कुछ तो देशहित में काम कर ही सकती हूं.

 ‘‘बाद में जब अरविंद केजरीवालजी के नेतृत्व में ‘आम आदमी पार्टी’ का गठन हुआ, तो मुझे मंगोलपुरी विधान सभा से पार्टी ने टिकट दिया. उस वक्त मेरे हाथपांव फूल गए थे. पर मुझे लक्ष्य पता था. मैं चुनाव जीत गई. यह सरकार

49 दिनों तक चली पर दोबारा चुनाव होने पर भी मैं भारी मतों से जीती. पार्टी ने मुझे लोक सभा उम्मीदवार भी बनाया, जिस में मुझे विशाल जनाधार मिला. यह अलग बात है कि यह चुनाव मैं मामूली अंतर से हार गई.’’

बड़ी जिम्मेदारी

डिप्टी स्पीकर बन कर कैसा महसूस कर रही हैं? क्या पार्टी के नेता आप के निर्देशों का सम्मान करते हैं? प्रश्न पर राखी कहती हैं, ‘‘दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने इस पद के लिए एक दलित व कमउम्र लड़की को चुना.  मैं इस के लिए उन की शुक्रगुजार हूं. विधान सभा में साथी नेता मुझ से स्नेह और मेरी इज्जत करते हैं, मेरे हर निर्देश का पालन करते हैं. डिप्टी स्पीकर का पद एक बड़ी जिम्मेदारी है. मुझे यह जिम्मेदारी सौंप कर हमारी पार्टी ने जता दिया कि वह सही माने में महिलाओं की हिमायती है. सदन में मैं खुद से और साथी नेताओं से सही तालमेल बैठाने की पूरीपूरी कोशिश करती हूं.’’

राजनीति में महिलाएं

राजनीति में दलित महिलाओं की हिस्सेदारी चाहती हैं या फिर अधिक से अधिक महिलाओं के राजनीति में आने की पक्षधर हैं? राखी इस सवाल पर कहती हैं, ‘‘देखिए, यह सही है कि भारत में दलितों का उत्थान जरूरी है पर देश की आधी आबादी कहलाने वाली महिलाएं चाहे वे किसी भी वर्ग से आती हों, उन का राजनीति में स्वागत है यानी मैं सभी वर्गों की महिलाओं के राजनीति में समान हिस्सेदारी की पक्षधर हूं.’’

अब निडर हो जाएं महिलाएं

एक महिला के लिए राजनीति में आना आज के समय में कितना सुरक्षित है? यह पूछने पर राखी बताती हैं, ‘‘समाज में परिवर्तन के लिए महिलाओं को आगे आना होगा. देश की राजनीति में महिलाएं अपनी काबिलीयत दिखा रही हैं. हां, यह अलग बात है कि पुरुष मानसिकता अब भी महिलाओं को आगे देखना पसंद नहीं करती पर महिलाओं को निडर हो कर काम करने की जरूरत है.

‘‘कम उम्र की युवती व दलित वर्ग से होने के चलते मैं भी कइयों की आंखों की किरकिरी बनी. मुझ पर हमले भी हुए. एक बार तो रात में मेरी गाड़ी के शीशे तक तोड़ डाले पर मैं डरी नहीं. अगर मैं समाज की ओछी सोच से डरती, शिक्षित न होती, तो यहां तक पहुंचना मुझ जैसी साधारण लड़की के लिए संभव ही न था.’’

महिला सुरक्षा सब की जिम्मेदारी

दिल्ली महिलाओं के लिए असुरक्षित बनती जा रही है. 3 साल की मासूम बच्ची से ले कर बुजुर्ग महिलाएं तक यौन शोषण, बलात्कार की शिकार हो रही हैं. क्या कहेंगी आप? प्रश्न के उत्तर में राखी कहती हैं, ‘‘मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि दिल्ली देश की क्राइम कैपिटल है. केंद्र की सरकार पुलिस से मनमानी कराती है. दिल्ली की जनता की सुरक्षा राम भरोसे है.

‘‘हमारी सरकार महल्ला सुरक्षा दल, बसों में मार्शल, जगहजगह सीसीटीवी कैमरे लगवाने के लिए प्रयासरत है. दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्षा स्वाति मालिवाल भी महिला हितों की रक्षा के लिए लगातार काम कर रही हैं. पर केंद्र सरकार को चाहिए कि दिल्ली पुलिस का इस्तेमाल आम आदमी पार्टी के नेताओं को परेशान करने के बजाय जनता व महिला सुरक्षा के लिए करना चाहिए.’’

खाली पलों में

विधायक व डिप्टी स्पीकर बनने के बाद भी राखी मंगोलपुरी के अपने उसी 25 गज के छोटे से घर में रहती हैं. मां अब भी ड्यूटी पर जाती हैं. आम भाईबहनों की तरह राखी की अब भी अपने भाईबहनों से लड़ाई होती है. उन्हें मां के हाथ का खाना पसंद है. पर वे खाना बनाना और खिलाना बेहद पसंद करती हैं. राखी को दुख है कि चुनाव प्रचार में उन के भाइयों की नौकरी छूट गई. वे अब तक बेरोजगार हैं.

‘दिल तो पागल है’ राखी की पसंदीदा फिल्म है पर हालिया फिल्म ‘मांझी: द माउंटेन मैन’ देख कर वे और भी स्ट्रौंग हो गईं. राखी कहती हैं कि यह फिल्म कठिन हालात से लड़ना सिखाती है.

राखी से उन के जानने वाले व रिश्तेदार जब भी मिलते हैं, तो यह पूछना नहीं भूलते कि शादी कब कर रही हैं? इस पर राखी मुसकराते हुए कहती हैं, ‘‘फिलहाल तो जनता की समस्याओं को सुनने और सुलझाने में ही समय बीत जाता है. शादी के बारे में सोच ही नहीं पाती. मगर जब करूंगी तो जरूरी बताऊंगी.’’

गृहशोभा का जवाब नहीं

राखी को महिलाओं की चहेती पत्रिका गृहशोभा बेहद पसंद है. वे कहती हैं, ‘‘गृहशोभा महिलाओं की संपूर्ण पत्रिका है. मैं गृहशोभा को शुरू से ही पढ़ती आ रही हूं. इस में प्रकाशित लेख महिलाओं के लिए बेहद उपयोगी होते हैं. इस पत्रिका के माध्यम से मैं यह कहना चाहूंगी कि कन्या भ्रूण हत्या सभ्य समाज के मुंह पर एक तमाचा है. कौन कहता है कि बेटी पराई होती है. एक बेटी जितना प्यार अपने मांबाप को करती है, उतना बेटा कर ही नहीं सकता.’’           

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