यह मामला पारस अस्पताल का है जहाँ हिसार के रहने वाले जंगबीर ने शिकायत दर्ज कराई कि सुनील कुमार नाम का उन का 24 वर्षीय भांजा 6 महीने पारस अस्पताल में भरती रहा. इस दौरान डॉक्टरों के गलत इलाज के कारण वह वेंटिलेंटर पर पहुंच गया.

जंगबीर के अनुसार एक हादसे में सुनील के गर्दन और सिर पर चोट आई थी. पहला इलाज हिसार में हुआ जहां उन की गर्दन का ऑपरेशन कराया गया. बाद में वहां के डॉक्टरों ने कहा कि सिर में चोट की वजह से सुनील को न्यूरो सर्जन की जरूरत है. इस के बाद उसे गुरुग्राम के पारस अस्पताल में ले जाया गया जहां के डॉक्टरों ने कहा कि मरीज को न्यूरो सर्जन की नहीं बल्कि एक नेक-स्पाइन सर्जन की जरूरत है.

बाद में परिवार की स्वीकृति न मिलने के बावजूद डॉक्टरों ने उस का फिर से औपरेशन किया. जिस के बाद मरीज की हालत और खराब होने लगी. डॉक्टरों ने खुद स्वीकारा की ऑपरेशन गलत होने के कारण ये समस्या हुई है. इस बीच एक करोड़ के करीब का बिल बन चुका था.

गुरुग्राम की यह घटना कोई पहली या अकेली घटना नहीं है. इस तरह की न जाने कितनी घटनाएं रोज निजी अस्पतालों में दोहराई जाती हैं. निजी अस्पतालों में मरीजों के इलाज में लापरवाही व मनमानी ही नहीं की जाती बल्कि मरीजों से अधिक बिल वसूलने के लिये गलत तरीके अपनाए जाते है. यहां तक कि पैसे नहीं दिये जाने पर अस्पताल प्रबंधन परिजनों को शव तक ले जाने नहीं देता है.

निजी अस्पतालों में इलाज के नाम पर मरीजों के साथ किस तरह से लूट की जा रही है इसे ले कर एक रिपोर्ट सामने आई है. फरवरी 2018 में की गई एनपीपीए (राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण) की स्टडी में जो खुलासा हुआ है वह बेहद चौंकाने वाला है.

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