जब भी कोई भारतीय मूल का जब पश्चिमी देशों में किसी ऊंची पोस्ट पर पहुंचता है, हमारा मीडिया जोरशोर से नगाड़ बजाता है मानो भारत ने कोई कमाल कर दिया सपूत पैदा कर के. असल में विदेशों में भारतीय मूल के लोगों को भारत से कोई खास प्रेम नहीं होता. वे भारतीय खाना खाते हों, कभीकभार भारतीय पोशाक पहन लेते हों, कोई भारतीय त्यौहार मना लेते हों वर्ना इन का प्रेम तो अपने नए देश के प्रति ही रहता है और गंदे, गर्म, बदबूदार, गरीब देश से उन का प्यार सिर्फ तीर्थों से रहता है. यह जरूर मानने वाली बात है कि भारतीय नेता तो नहीं पर धर्म बेचने वाले लगातार इन के संपर्क में रहते हैं और पौराणिक विधि से दान दक्षिणा झटक ले आते हैं.

ब्रिटेन के वित्तमंत्री रिथी सुचक की चर्चा होती रहती है पर उस का प्रेम कहां है यह उस का 1 लाख पौंड विचस्टर कालेज को दान देने से साफ है जहां वह पढ़ा था. रिथी के मातापिता ने उसे अमीरों के स्कूलों में भेजा था जहां अब फीस लगभग 50 लाख रुपए सालाना है.

यह क्या जताता है. यही कि इन भारतीय मूल के लोगों को अपनी जन्मभूमि से कोई प्रेम नहीं है. वे इंग्लैंड में पैदा हुए, वहीं पले और वहीं की सोच है. स्किन कलर से कोई फर्क नहीं पड़ता. धर्म का असर भी सिर्फ रिचुअल पूरे करने में होता है क्योंकि गोरे उन्हें खुशीखुशी ईसाई भी नहीं बनाते. हिंदू कट्टरों की तरह ईसाई कट्टरों की भी कमी नहीं है क्योंकि हिंदू मंदिरों की तरह ईसाई चर्चों के पास भी अथाह पैसा है और धर्म के नाम पर पैसा वसूलना एक आसान काम है. भगवा कपड़े पहन कर मनमाने काम कर के आलीशान मकानों में रहना भारत में भी संभम है, ब्रिटेन में भी, अमेरिका में भी. रिथी का इन अंधविश्वासों का कितना साया है पता नहीं भारत प्रेम न के बराबर है, यह साफ है. उसी मंत्रिमंडल में गृहमंत्री प्रीति पटेल भी इसी गिनती में आती है और अमेरिका की कमला हैरिस व निक्की हैली भी.

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