सुबह उठकर फोन खोलिये तो मैसेज बाॅक्स भरा मिलेगा. न जाने अचानक दोस्त और जान पहचान के लोग कितने शिष्ट हो गये हैं कि सूरज निकलने के पहले ही गुड मोर्निंग मैसेज की झड़ी लगा देते हैं. इन मैसेज को देखकर कोई सोचे तो यही समझेगा कि ढेरों ऐसे मैसेज पाने वाला शख्स आखिर कितना लोकप्रिय और प्रभावी होगा या लोग उसकी कितनी इज्जत करते होंगे. लेकिन ऐसा कुछ नहीं है. गुड मोर्निंग का मैसेज भेजने वाले लोग न तो आपका बहुत सम्मान करते हैं और न ही आपको बहुत प्रभावी मानते हैं. दरअसल वे भी बदले में ऐसे ही मैसेजों की बरसात चाहते हैं, बस इतना सा मामला है. यह एक फालूत की शिष्टता है जिसका इन दिनों फैशन बन गया है.

इसलिए मैंने अपने व्हाट्सएप के स्टेटस में लिख रखा है, गुड मोर्निंग, गुड इवनिंग के फालतू के मैसेज मुझे मत भेजिये. कुछ लोग तो स्टेटस पढ़कर संयम बरतते हैं, लेकिन कुछ फिर भी नहीं मानते. यही वजह है कि सुबह व्हाट्सएप्प खोलते ही मेरा मूड अकसर दिनभर के लिए ऑफ हो जाता है. ऐसा नहीं है कि मैं बहुत चिड़चिड़ा व्यक्ति हूं और बिना मतलब ऐसे मैसेजों से परेशान रहता हूं. इसके कुछ खास कारण हैं. एक तो इनसे अकारण ही मेरे फोन का सारा स्पेस भर जाता है. इन्हें डिलीट करने में भी अच्छा खासा समय जाया होता है और सबसे बड़ी बात जिस कारण मैं इनसे चिढ़ता हूं, वह यह है कि शायद ही इस दिखावटी शिष्टता से बड़ा कोई दूसरा झूठ होता है.

अभी कल की बात है सुबह सुबह मेरे पास जो गुड मोर्निंग मैसेज आया, उसमें लिखा था, “शुभचिंतक सड़कों पर लगे सुंदर लैंप की तरह होते हैं, वे हमारी यात्रा की दूरी को तो कम नहीं कर सकते लेकिन हमारे पथ को रोशन और यात्रा को आसान करते हैं … सुप्रभात.” इसे देखते ही मेरे तन-मन में आग लग गई क्योंकि जिसने यह संदेश भेजा था, उसे मैं बहुत अच्छे तरीके से जानता हूं. कई साल वह मेरा सहकर्मी था और दफ्तर में ज्यादातर का वह काम करना मुश्किल कर देता था. वही इस किस्म के मैसेज भेज रहा है. यह पाखंड नहीं है तो और क्या है? सबसे बड़ी बात तो यह है कि गुड मोर्निंग मैसेज भेजने वाले इन मैसेजों में लिखी अच्छी अच्छी बातों का कभी अपने जीवन में उतारने का प्रयास नहीं करते. अगर ये लोग अपने ही कथन पर अमल कर लें तो दुनिया सबके लिए रहने की बेहतर जगह हो जाये.

शायद ऐसे ही लोगों की वजह से अमरीकी चिंतक व दार्शनिक रिचर्ड बाश ने अपनी एक किताब ‘इल्यूजन’ में लिखा है, “आप उस बात की अच्छी शिक्षा देते हैं, जिसे आपको स्वयं सीखना चाहिए.” गुड मोर्निंग मैसेजों के मामले में तो यह बात पूरी तरह से खरी उतरती है. इस फैशन में एक बड़ा नुकसान हो रहा है. लोग गालिब या गुलजार का नाम लेकर ऐसे अधकचरे व घटिया शेर आपको भेज देंगे कि सुबह सुबह पढ़कर आपका मूड खराब हो जाए, अगर आपने आॅरिजनल पढ़ रखे हैं. गुड मोर्निंग मैसेजों में अक्सर ही न सिर्फ कोट्स को मिसकोट्स कर दिया जाता है बल्कि किसी का कथन किसी के मत्थे मड़ दिया जाता है.

वैसे मिसकोट्स की बीमारी गुड मोर्निंग मैसेजों तक ही सीमित नहीं है. बोगस कोट्स इन दिनों हर जगह हवा में घुले हुए हैं. इसके लिए हम सार्वजनिक मंचों पर भाषण देने वाले वक्ताओं, आलसी भाषण लेखकों और पक्षपाती राजनीतिज्ञों को इस संस्कृति के पुरोधाओं में गिन सकते हैं. सबसे बड़ी बात तो यह है कि अगर एक बार कोई राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद या विधायक किसी कोट को मिसकोट कर दे तो फिर उसे सही करना या उसे उसके मूल स्वामी से जोड़ना बहुत कठिन हो जाता है. एम हिदायतउल्लाह जब देश के (छठे) उप-राष्ट्रपति थे तो उस समय खुशवंत सिंह राज्यसभा के मनोनीत सदस्य थे . हिदायतउल्लाह की पहचान एक ज्ञानी के रूप में थी और चूंकि वह देश के (ग्यारहवें) मुख्य न्यायाधीश भी रह चुके थे इसलिए उनकी बात को पत्थर की लकीर की तरह स्वीकार किया जाता था. ध्यान रहे कि उपराष्ट्रपति राज्य सभा के चेयरपर्सन भी होते हैं. बहरहाल, उच्च सदन में हिदायतउल्लाह अपने संबोधन में संदर्भ सहित कोट्स का बहुत अधिक प्रयोग करते थे, जिससे न सिर्फ उनकी बात में वजन पैदा होता था बल्कि सांसद प्रभावित होते थे कि वह कितने लर्नेड हैं और कोई भी उनके कथन को चुनौती नहीं देता था. एक दिन खुशवंत सिंह ने गौर किया तो पाया कि हिदायतउल्लाह विलियम हैजलिट या जॉन डॉन के कोट को भी शेक्सपियर के साथ जोड़ देते हैं और सब सदस्य मान लेते हैं कि प्रमाणित है आपका फरमाया हुआ’.

हिदायतउल्लाह तो खैर एक का कोट दूसरे के नाम से बोल देते थे, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो गालिब का नाम लेकर जून 2019 में राज्यसभा में एक ऐसा शेर पढ़ा जो गालिब ने कभी कहा ही नहीं था और उसके मिसरे (पंक्तियां) भी बहर (वजन) में नहीं थीं. उन्होंने जैसे ही यह पढ़ा- ‘ताउम्र गालिब ये भूल करता रहा/धूल चेहरे पर थी और मैं आईना साफ करता रहा’- तो और लोग भी इसे गालिब के नाम से कोट करने लगे, जिनमें बीजेपी के नेताओं के साथ फिल्म निर्देशक महेश भट्ट भी शामिल हैं. गालिब के 220वें जन्म दिवस पर कांग्रेस सांसद शशी थरूर ने तो मिसकोटेशन तमाम सीमाएं पार कर दीं. किसी की बेकार सी कविता को गालिब की ‘महान पंक्तियां’ बताते हुए उन्होंने ट्वीट किया- ‘खुदा की मुहब्बत को फना कौन करेगा? सभी बंदे नेक हों तो गुनाह कौन करेगा? ए खुदा मेरे दोस्तों को सलामत रखना/वरना मेरी सलामती की दुआ कौन करेगा? और रखना मेरे दुश्मनों को भी महफूज/वरना मेरे तेरे पास आने की दुआ कौन करेगा?’

इस ट्वीट पर जावेद अख्तर ने व्यंग किया, “शशी जी, जिसने भी आपको यह पंक्तियां दी हैं उस पर फिर कभी विश्वास मत करना. यह स्पष्ट है कि आपकी साहित्यक विश्वसनीयता को ध्वस्त करने के लिए किसी ने इन पंक्तियों को आपके प्रदर्शनों की सूची में प्लांट कर दिया है.” मिसकोट सिर्फ अपने देश के नेता ही नहीं करते हैं. यह ‘आम गुनाह’ दुनियाभर में होता है. बराक ओबामा जब सीनेटर थे तो उन्होंने सीनेट में अपने एक आलोचक से अब्राहम लिंकन का हवाला देते हुए कहा था, “अगर आप मेरे बारे में झूठ बोलना बंद नहीं करेंगे, तो मैं आपके बारे में सच बताने लगूंगा.” यह कोट लिंकन का नहीं है बल्कि 19वीं शताब्दी में सीनेटर चैन्सय डेपेव ने अपने प्रतिद्वंदियों के लिए सबसे पहले इसका इस्तेमाल किया था.

खैर मुझे इस सब पर थीसिस नहीं लिखना, मैं तो सिर्फ यह बता रहा था कि ये जो गुड मोर्निंग के मैसेज है वो किस तरीके से आपका समय भी बर्बाद करते है और आपकी समझ पर भी पलीता लगाते हैं.

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