अरुणाचल प्रदेश से रिनी मुंबई पढ़ने आई. उसे अंदाजा नहीं था कि मुंबई में पेइंगगैस्ट बन कर रहना इतना कठिन होगा. वह अपना अनुभव शेयर करते हुए बताती है, ‘‘मैं अकेली रह रही थी. शहर में किसी को भी नहीं जानती थी. मुझे किचन के इस्तेमाल करने की मनाही थी और फ्रिज लौक्ड रहता था. लैंडलेडी की बेटी कभी भी गैस मीटर, बाथरूम, अलमारी चैक करने आ जाती थी. मैं अपने किसी भी फ्रैंड को कमरे में नहीं बुला सकती थी. कमरे में टीवी, वाईफाई कुछ नहीं था.

‘‘मैं काफी बोर होती थी. मैं ने अपने पापा से लैपटौप भेजने को कहा. एक दिन मेरे पिता के फ्रैंड ही मुझे लैपटौप देने मुंबई आ गए और मुझे डिनर के लिए ले गए. उस के बाद जो हुआ, मैं कभी भूल नहीं पाऊंगी. उस लेडी ब्रोकर ने, जिस ने मुझे यह घर दिलवाया था, फोन कर के कहा, ‘तेरे जैसी लड़कियों को मैं बहुत अच्छी तरह जानती हूं. किस आदमी को घर पर बुलाया था. यह इज्जतदार लोगों का घर है. धंधा ही करना है तो कहीं और जाओ.’ उस के ये शब्द आज भी मेरे कानों में गूंजते हैं और मैं बहुत तकलीफ महसूस करती हूं.’’

सिंगल लोगों को चाहे वे पढ़ने आए हों या नौकरी करने, अपने सिंगल होने की भारी कीमत चुकानी पड़ती है. ‘भले ही हम महिला सशक्तीकरण की बात करते हैं, लेकिन इस समाज में महिलाओं को घर ढूंढ़ने से ज्यादा आसान है कोई नौकरी ढूंढ़ लेना.’

एक एडवरटाइजिंग एजेंसी में काम करने वाली ऋचा शर्मा कहती हैं,

‘‘4 साल से जब भी किराए पर मकान देखने जाती हूं, हाउसिंग सोसायटी के लोग मेरे प्रोफैशन पर अजीब प्रतिक्रिया देते हैं. मैं मीडिया इंडस्ट्री से हूं, इसलिए उन्हें यही लगता है कि मैं सिगरेट, ड्रिंक, ड्रग्स का सेवन करती हूं और लड़के भी मेरे घर आते होंगे आदि. यह हम किस तरह के समाज में रह रहे हैं?’’

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