भारत में लड़कियों की कमी अब खलने लगी है और कई इलाकों में दूसरे इलाकों से बीवियां खरीद कर लाई जा रही हैं. दिल्ली प्रैस की पत्रिका सरस सलिल ने रिपोर्ट प्रकाशित की है जिस में हरियाणा के एक गांव में कई औरतों से बात करने पर पता चला कि दूसरे इलाकों की आई औरतों को कुछ परेशानियों का सामना तो करना पड़ता है पर उन के घर वालों को दहेज आदि पर पैसा खर्च नहीं करना पड़ता. अमेरिका अब दूसरी तरह की दिक्कत से जूझ रहा है. वहां 25 से 35 वर्ष के कालेज ग्रैजुएट लड़कों की कमी हो गई है और 100 लड़कियों के पीछे 85 लड़के रह गए हैं. बहुत सी लड़कियां या तो जैसेतैसे शादी करने को मजबूर हैं या फिर अकेले रहने को. अमेरिका में अश्वेत कालों को निजी कंपनियों द्वारा चलाई जा रही जेलों में बुरी तरह ठूंसा जा रहा है और यह एक भारी भयानक षड्यंत्र बन गया है. इस की शिकार वे लड़कियां भी हैं जो उन जेलों में बंद बहुधा निर्दोष युवकों से शादी कर सकती थीं.

गोरों में लड़कों को महंगी शिक्षा के कारण कालेज की पढ़ाई छोड़नी पड़ रही है और गोरी लड़कियां अधपढ़े लड़कों से विवाह नहीं करना चाहतीं, जिन का भविष्य अच्छा होने की गारंटी न हो. यह कहा जा सकता है कि प्रकृति अपना संतुलन बनाए रखती ही है. आप जैसे भी फैसले ले लो, जैसी भी नीतियां बना लो, अगर अंत में संतुलन बिगड़ा तो बात उलझेगी. लड़कियों को उपयुक्त साथी जीवन बिताने के लिए मिले यह एक प्राकृतिक, जैविक व सामाजिक आवश्यकता है. धर्म, समाज और कानून बहुधा इस में दखल दे कर प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ने की कोशिश करता है. अगर लड़के कम होंगे तो अविवाहित मांएं ज्यादा होंगी, बिना पिता के बच्चे ज्यादा होंगे, यह सोचे बिना अमेरिका ने विवाहपूर्व सैक्स को सम्मान तो दे दिया पर अब विवाह का बोझ संभालने के लायक लड़के नहीं मिल रहे हैं. हमारे यहां लड़कों की बहुतायत हो रही है और अब जैसीतैसी लड़की से विवाह कर के जीवन गुजारने को मजबूर होने की आशंका है. अमेरिका में कालेज गै्रजुएट लड़कियां ब्लू कौलर पतियों को पालने को प्राकृतिक आवश्यकता मानने लगी हैं. यह अब मजेदार स्थिति बनेगी. शायद भारतीय युवकों को अमेरिकी वीजा विवाह पर मिलने लगे और एक नया ऐक्सपोर्टइंपोर्ट व्यापार शुरू हो जाए.

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