कंप्यूटर, इंटरनैट और सोशल मीडिया ने वाकई दुनिया बदल दी है. अब सब कुछ एक क्लिक पर हाजिर हो जाता है. पहले जो काम महीनों में होते थे वे अब मिनटों में हो जाते हैं. इन वैज्ञानिक चमत्कारों पर सवार धर्म ने इन गैजेट्स की न केवल उपयोगिता मिट्टी में मिला दी है, बल्कि इन का महत्त्व भी बदल दिया है. इन में चारों तरफ धर्म का पाखंड है, अंधविश्वास है और धार्मिक चमत्कार है. धर्म को इसलिए भी शाश्वत षड्यंत्र कहा जा सकता है कि वह इन गैजेट्स के जरीए लोगों के दिलोदिमाग पर पहले से ज्यादा छा गया है. इंटरनैट, फेसबुक और व्हाट्सऐप पर धर्म की भरमार है, देवीदेवताओं की जयजयकार है. अब तो दैनिक पूजा भी लोग इन के जरीए करने लगे हैं. तीजत्योहार भी इन से अछूते नहीं रहे हैं, जिन्हें धर्म की गिरफ्त में बनाए रखने का कोई भी मौका धर्म के ठेकेदारों और भक्तों ने नहीं छोड़ा है. जिन आविष्कारों को सामाजिक व आर्थिक उन्नति में इस्तेमाल किया जाना चाहिए था वे धर्म और आडंबरों के प्रचार का बड़ा जरीया क्यों बन गए हैं?

इस सवाल का जवाब साफ है कि धर्म के मकड़जाल में हम शुरू से ही जकड़े रहे हैं. नए जमाने के आविष्कारों का दुरुपयोग धर्म के प्रचार में हो रहा है. लोगों को आधुनिक होने का भ्रम भर है. हकीकत में वे किस तरह रूढि़यों, कुरीतियों और अंधविश्वास के जाल में फंसे हुए हैं, इस की बानगी त्योहारों के दिनों में शबाब पर होती है. हमारे तमाम तीजत्योहार धर्म की देन हैं. धर्म के बगैर इन्हें मनाने की बात कोई सोच भी नहीं सकता. मिसाल दीवाली की लें तो यह इस का अपवाद नहीं जो कहने भर को रोशनी, उल्लास और खुशियों का त्योहार है. जिसे पूरे 1 पखवाड़े तक मनाया जाता है. लोग नए कपड़े पहनते हैं, घरों में दीए और रंगबिरंगी लाइटें जलाते हैं, खरीदारी करते हैं, एकदूसरे की सुखस्मृद्धि व स्वास्थ्य की कामना करते हैं पर हकीकत में ये सतही और मनबहलाऊ बातें हैं.

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