सोशल मीडिया यानी अपने विचार व्यक्त करने का वह माध्यम जो सब की पहुंच में है. सोशल मीडिया ने बहुत कम समय में देश और दुनिया की दूरी मिटाने में जो सफलता हासिल की है वह अपने में अद्वितीय है. सोशल मीडिया के अलगअलग माध्यम हैं, इन में सब से लोकप्रिय माध्यम फेसबुक, व्हाट्सऐप, ट्विटर, हाइक, लिंकडेन और इंस्टाग्राम हैं. सोशल मीडिया की लोकप्रियता की सब से बड़ी विशेषता है कि आज इसे हर तरह की योजना में शामिल करने की प्लानिंग की जा रही है. सोशल मीडिया को स्मार्टफोन ने प्रभावी बना दिया है.

स्मार्टफोन के जरिए सोशल मीडिया के सभी टूल्स प्रयोग करने में बहुत सरल हो गए हैं. इंटरनैट कंपनियों ने किफायती डेटा प्लान दे कर स्मार्टफोन पर इंटरनैट के प्रयोग को सरल बना दिया है. अब जरूरत के मुताबिक इंटरनैट प्लान लेना सरल हो गया है.

सोशल मीडिया एक ऐसा प्लेटफौर्म बन गया है जो न केवल विचारों को व्यक्त करने का सुलभ साधन है बल्कि इस के जरिए एकदूसरे तक पहुंच भी आसान हो गई है. अब पूरा समाज एक संयुक्त परिवार की तरह नजर आने लगा है. अब एकदूसरे की मदद करना, किसी समस्या का समाधान खोजना और अपनी बात ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाना आसान हो गया है. इस से लोगों को अकेलेपन का एहसास नहीं होता.

सोशल मीडिया के जरिए बिजनैस और औफिस के संदेश एकदूसरे तक पहुंचाना सरल हो गया है. सब से बड़ी बात यह है कि इस में अलग से कुछ खर्च नहीं करना पड़ता.

फोटो और वीडियो भी एकदूसरे को भेजना आसान हो गया है. प्रचारप्रसार की सुविधा ने सोशल मीडिया को सोशल टूल्स जैसा बना दिया है. केवल प्रोडक्ट्स के प्रचार का ही नहीं बल्कि राजनीतिक विचारों को आम लोगों तक पहुंचाने का भी सोशल मीडिया बड़ा माध्यम बन गया है.

मशीनीकरण ने भरी संबंधों में ऊर्जा

सोशल मीडिया पूरी तरह मशीन पर चलने वाला माध्यम है. इस को चलाने के लिए कंप्यूटर, लैपटौप, टैब्स और स्मार्टफोन की जरूरत होती है. यह इंटरनैट के डेटा प्लान पर चलता है. इंटरनैट एक तरह से इस की सांस है. लखनऊ निवासी कीर्ति पंत कहती हैं, ‘‘मशीनीकरण से चलने वाले सोशल मीडिया ने संबंधों में नई ऊर्जा भर दी है. हम एक शहर में और कई बार तो एक ही सोसायटी में रहने के बाद भी एकदूसरे से नहीं मिल पाते थे. किसी की जिंदगी में हंसीखुशी के पल का पता नहीं चलता था और किसी की दुखबीमारी भी मालूम नहीं होती थी. लेकिन अब फेसबुक ने लाइफ के हर पल को आपस में शेयर करने का सब से सरल रास्ता दे दिया है. अब हमें बिना एकदूसरे से मिले भी उस के बारे में जानकारी मिलती रहती है.’’

अपने शहर में ही नहीं देश और दुनिया के किसी भी कोने में रहने वाले से हम जुड़ गए हैं. हम केवल उस की बातों को देख या पढ़ ही नहीं सकते, उस पर अपने कमैंट्स भी दे सकते हैं. कोई भी फोटो या वीडियो भेज सकते हैं. हम एकदूसरे से चैटिंग के जरिए ऐसे बात कर सकते हैं जैसे आमनेसामने बैठ कर बात कर रहे हों. कहते हैं कि मशीन में कोई भाव नहीं होता पर मशीन के सहारे चलने वाला सोशल मीडिया हमारे हर भाव को हमारे जाननेपहचानने वालों तक और अनजान लोगों तक पहुंचाने में मदद करता है.

यूथ का टूल बन गया सोशल मीडिया

सोशल मीडिया का प्रभाव हर पीढ़ी पर है. लेकिन इस से सब से अधिक लाभान्वित युवावर्ग हो रहा है. उन्हें दोस्त बनाने, उन तक अपनी बातें पहुंचाने, पढ़ाईलिखाई और सूचनाओं का आदानप्रदान करने के लिए यह सब से प्रमुख जरिया बन गया है. लखनऊ की श्वेता भारद्वाज कहती हैं, ‘‘छोटेबड़े हर वर्ग के लिए यह माध्यम सब से अधिक उपयोगी होने लगा है. मान लीजिए कोई बच्चा बीमार पड़ जाए और उस को स्कूल से अवकाश लेना पड़े. उसे यह पता करने के लिए कि अवकाश के दौरान स्कूल में क्या पढ़ाई हुई, पहले अपने साथी के घर जा कर उस की नोटबुक देखनी पड़ती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है. बच्चा मोबाइल फोन से क्लास वर्क का फोटो क्लिक कर के व्हाट्सऐप से अपने साथी को भेज सकता है, जिस से वह अपना काम आसानी से कर सकता है. आजकल पेपर स्कैन कर के रखना और एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजना सरल और सहज हो गया है.’’

ममता कांडपाल कहती हैं, ‘‘सोशल मीडिया संचार का सब से बेहतर माध्यम होने के साथसाथ ऐसे लोगों का भी टूल बन गया है जो अफवाह फैला कर एकदूसरे को आपस में लड़ाना चाहते हैं. सोशल मीडिया खासकर व्हाट्सऐप के जरिए हम महत्त्वपूर्ण पेपर्स एकदूसरे तक जल्दी पहुंचा सकते हैं. ये कागजात हमेशा के लिए सुरक्षित भी हो जाते हैं. ऐसे में इन के खोने या नष्ट होने का खतरा भी कम हो गया है. इन पेपर्स को रखने के लिए किसी और चीज की जरूरत नहीं होती. इसी तरह हम अपने लिखे विचार और फोटो भी तमाम लोगों तक आसानी से पहुंचा सकते हैं. इस तरह हमारे विचार जस के तस दूसरों तक पहुंच जाते हैं. किसी किताब के अंश, कहानी का हिस्सा ऐसे ही एकदूसरे तक पहुंचाए जा सकते हैं.’’

हर काम के विचार

विचार केवल वे ही नहीं होते, जो आदर्शवादी बातें हों. फैशन, लाइफ स्टाइल, नए ट्रैंड भी विचारों की श्रेणी में आते हैं. टीचिंग प्रोफैशन से जुड़ी सुनीता राय कहती हैं, ‘‘सोशल मीडिया का प्रयोग हर क्षेत्र में होने लगा है. इस के चलते जिंदगी के बहुत से काम आसान हो गए हैं. अब जानकारी हासिल करना आसान हो गया है. स्कूल और पढ़ाई में भी सोशल मीडिया का प्रयोग होने लगा है. स्कूलों में सभी टीचर्स के नंबर्स को ले कर व्हाट्सऐप पर एक ग्रुप बना दिया जाता है, जिस में कोई भी जानकारी एक टीचर से दूसरे टीचर तक पहुंचने में सैकंड से भी कम समय लगता है. स्कूल प्रबंधन के लिए भी यह बहुत सरल और सुविधाजनक हो गया है. पहले इस के लिए नोटिस लगाना पड़ता था. आसानी से यह देखा भी जा सकता है कि किसकिस ने सूचना पढ़ ली है और किसकिस को सूचना मिल गई है.’’

बुटिक चलाने वाली रेनू अग्रवाल कहती हैं, ‘‘यूथ अब अपने ट्रैंडी फैशनवियर के डिजाइन एकदूसरे को शेयर कर सकते हैं. किसी को जो डिजाइन अपने लिए पसंद होते हैं उन को वे एकदूसरे से ले सकते हैं. कहते हैं कि ड्रैस दूसरों की पसंद से लेनी चाहिए. ऐसे में सोशल मीडिया के जरिए अपने दोस्तों से राय ले कर ड्रैस पसंद की जा सकती है.’’

कानपुर की रहने वाली दीक्षा शर्मा कहती हैं, ‘‘हर किसी तक अपने विचारों को पहुंचाना अब सरल हो गया है. आप की लिखी एक बात को सैकडों में हजारों लोग पढ़ते और देखते हैं. वे उस विचार को वहां से ले कर कहीं और भी पोस्ट कर सकते हैं, जिस से उन विचारों का लाभ तमाम लोगों तक एकसाथ पहुंच जाता है. वे उन विचारों को अपना समर्थन और विरोध दोनों दे सकते हैं. फेसबुक पर अब ऐसी सुविधा भी दे दी गई है कि आप लाइक के जरिए एक सिंबल से ही अपने भाव को प्रकट कर सकते हैं कि आप को खुशी है कि नाराजगी.’’

वैचारिक क्रांति का सूत्रपात

सोशल मीडिया एक तरह से वैचारिक क्रांति का सूत्रपात सा है. हैदराबाद के रोहित वेमुला का मामला हो या दिल्ली के जेएनयू के कन्हैया कुमार का. अन्ना की क्रांति हो या केजरीवाल की सफलता. हर कहीं सोशल मीडिया की ताकत को परखा जा चुका है. सोशल मीडिया पर विचारों को व्यक्त करने की आजादी मिलती है जो कहीं और नहीं मिलती.

अभिनेत्री और लेखिका सिम्मी भाटिया कहती हैं, ‘‘सोशल मीडिया वैचारिक क्रांति का सब से बड़ा सूत्रधार बन गया है. अपने विचारों को तेजी से एक से दूसरे तक पहुंचाया जा सकता है, जो समाचार पहले कई दिन और घंटों के बाद एक से दूसरे तक पहुंचता था, अब वह कुछ ही क्षणों में एकदूसरे तक पहुंचने लगा है और उस के समर्थन और विरोध में भी तत्काल बहस चलने लगती है. कई बार इस से सरकारें तक दबाव में आ जाती हैं व जनता के हित वाला फैसला लेने पर विवश हो जाती हैं. ट्विटर के जरिए मंत्रीअफसर तक जनता से जुडे़ होते हैं. कई बार सोशल मीडिया के माध्यम से प्रकाश में आए समाचारों को संज्ञान में ले कर काम किया जाता है.’’

लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में कार्यरत चंद्रप्रभा कहती हैं, ‘‘सोशल मीडिया ने जनता के हाथों में एक पावर दे दी है, जिस के माध्यम से जनता अपनी बात तमाम लोगों तक पहुंचाने में सफल होती है. पहले अखबार और चैनल हर बात को जस का तस प्रस्तुत नहीं करते थे. इस के अपने लाभ और नुकसान दोनों होते थे. अब जनता अपनी बात को अपनी तरह से कहने के लिए आजाद है. किसी बड़े नेता या अफसर के संदेश में वह विरोध और समर्थन करने को आजाद है. उस की सही बात का समर्थन करने वाले भी बहुत लोग मिल सकते हैं, जिस से उस का हौसला बढ़ जाता है.’’

अंश वैलफेयर फाउंडेशन की अध्यक्ष श्रद्धा सक्सेना कहती हैं, ‘‘सोशल मीडिया के रूप में एक ऐसी ताकत हाथ लगी है जिस के जरिए परिवार, दोस्त, नातेरिश्तेदार सब एक मंच पर अपने विचारों को कहने और सुनने को पूरी तरह से आजाद रहते हैं. कई बार दबाव में आमनेसामने अपनी बात को कहने में लोग संकोच करते थे. लेकिन अब ऐसा नहीं होता. मन की बात कहने को हर कोई आजाद है. जरूरत इस बात की है कि लोग अपने विचार व्यक्त करें, पर यह जरूर ध्यान रहे कि आप के विचारों से दूसरे आहत न हों. इस से सोशल मीडिया के प्रति जिम्मेदारी का भाव बढ़ेगा और सभी इस को पूरी गंभीरता से लेंगे.’’

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