10 साल की पल्लवी टीवी पर महाकुंभ पर आ रहे कार्यक्रम को देख कर अपनी दादी से पूछती है, ‘‘क्या महाकुंभ में जो व्यक्ति 30 बार डुबकी लगाएगा उस के सारे पाप धुल जाएंगे? उस के सारे रोग दूर हो जाएंगे? दादी, यदि ऐसा है तो मेरी मम्मी को भी वहां डुबकी लगाने को कहो न, उन्हें कैंसर है, ठीक हो जाएंगी.’’

‘‘ऐसा तुझ से किस ने कहा कि महाकुंभ के अवसर पर गंगा में डुबकी लगाने से सारे रोग दूर हो जाते हैं?’’ दादी ने पल्लवी से सवाल किया.

‘‘दादी, पापा कहते हैं कि टेलीविजन पर जो समाचार आते हैं वे झूठे नहीं होते. अभी मैं ने टेलीविजन पर महाकुंभ के बारे में बहुत सी खबरें सुनी और देखी हैं. क्या यह सच है कि विष्णु घाट में स्नान करने से आदमी करोड़पति हो जाता है? मुझे भी ले चलो, मैं डुबकी लगा कर करोड़पति बनना चाहती हूं.’’

यह तो एक बालमन की जिज्ञासा है, लेकिन उन चैनल वालों को आप क्या कहेंगे जिन्होंने महाकुंभ का बखान कर के अंधविश्वास का बाजार खड़ा कर दिया. समाचार ऐसा कि लाखों लोगों ने यकीन भी कर लिया कि इस महाकुंभ में पांचों घाटों पर डुबकी लगाएंगे तो उन के सारे पाप तो धुलेंगे ही साथ ही वे रोगमुक्त भी हो जाएंगे जबकि वैज्ञानिक रूप से सच यह है कि जो गंगा स्वयं प्रदूषण के रोग से पीडि़त है वह भला दूसरों के क्या रोग दूर करेगी.

समाचार चैनलों की बातों पर भरोसा कर के महाकुंभ में करोड़ोें लोगों ने नारायण घाट पर डुबकी लगाई तो क्या सभी मालदार हो गए? वैसे देखा जाए तो ऐसी खबरों से शिक्षित व्यक्ति भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहते, इसलिए कि सभी समाचार चैनल बाजारवाद के दौर में धर्म के संस्कार पर आडंबर का मुलम्मा चढ़ा कर अंधविश्वास के ब्रांड तैयार करते हैं. अंधविश्वास एक ऐसा बाजार है जहां धर्म के नाम पर भाग्य बेचने वालों का हुजूम है. बाबाओं का तो यह बाजार है ही, ऊपर से समाचार चैनल भूसे पर राख सजाने का काम कर रहे हैं. यही वजह है कि शिक्षित लोग भी गंडातावीज वाले बाबाओं और श्रीश्री 1008...वाले महात्माओं से प्रभावित हुए बगैर नहीं रहते.

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