जिंदगी रोशनी है, तो मौत अंधेरा. बड़ा ही मुश्किल फैसला होता होगा स्वयं अपने हाथों अपना वजूद मिटाने यानी आत्महत्या करने का. हैरत की बात यह है कि विश्व में सब से ज्यादा आत्महत्याएं भारत में होती हैं. यहां हर रोज औसतन 707 लोग अपनी मरजी से मौत को गले लगाते हैं. वर्ल्ड हैल्थ और्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में हर 40 सैकंड में एक व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है. रिपोर्ट के अनुसार युवा और बुजुर्गों में आत्महत्या की प्रवृत्ति में तेजी से इजाफा हुआ है. आत्महत्या करने वालों में सब से ज्यादा तादाद कम और मध्य आयवर्ग के लोगों की है. यह करीब 39% है. आंकड़ों के मुताबिक भारत में 2012 में 2,58,075 लोगों ने आत्महत्या करी थी. इन में 99,977 महिलाएं थीं. भारत में प्रति 1 लाख की जनसंख्या पर आत्महत्या करने वालों का आंकड़ा 21.1% है. 2 वर्ष पहले बौलीवुड अभिनेत्री जिया खान ने प्यार में बेवफाई के चलते आत्महत्या कर ली थी. आदित्य पंचोली के बेटे सूरज के साथ उस के प्रेम संबंध थे.
जिया खान: सह न सकी बेवफाई
जिया ने मौत को गले लगाने से पहले लिखे अपने 6 पृष्ठों के पत्र में बिना किसी का नाम लिखे अपनी मानसिक तकलीफ के लिए किसी लड़के को जिम्मेदार ठहराया था और चूंकि लंबे समय से जिया की दोस्ती सूरज से ही थी और आत्महत्या करने से पहले अंतिम एसएमएस व बातचीत भी उसी के साथ हुई थी, इसलिए माना गया कि वह शख्स सूरज ही होगा. इस आधार पर सूरज की गिरफ्तारी भी हुई.
जिया ने पत्र में लिखा था, ‘‘मेरे पास जीने के लिए कुछ नहीं बचा. मैं ने तुम से जितना प्यार किया शायद ही कोई और लड़की तुम से उतना कर पाए. तुम ने तो मुझे प्यार में सिर्फ रुसवाई ही दी. मैं तुम से कितना प्यार करती थी, इस बात का एहसास तुम्हें अभी नहीं मेरे जाने के बाद होगा. बहुत तकलीफ होती है जब आप किसी को खुद से ज्यादा चाहते हो और वह आप को तवज्जो नहीं देता. बस अब और तकलीफ नहीं सह सकती. मैं जा रही हूं. पहले भी मेरे पास कुछ नहीं था और अब भी नहीं है. मैं ने सब कुछ खो दिया है. मैं क्या इस दर्द की हकदार थी? जब तक तुम इस खत को पढ़ रहे होगे मैं इस दुनिया से जा चुकी होंगी. तुम से मुझे जो दर्द मिला उस ने मेरा सब कुछ बरबाद कर दिया. यदि मैं यहां रही तो तुम्हारे लिए तरसती रहूंगी. इसलिए मैं अपने 10 साल के कैरियर और सपनों को अलविदा कहती हूं. अब मैं पूरी तरह से टूट चुकी हूं और सोने जा रही हूं. चाहती हूं कि अब कभी न उठूं.’’ जाहिर है, जिया अवसाद में थी. आत्महत्या का फैसला लेते वक्त उस ने अपने अच्छेखासे फिल्मी कैरियर और परिवार की भी कोई परवाह नहीं की. चोट लगी थी उसे. मगर क्या उस वक्त उस का यह सोचना वाजिब नहीं था कि घर वालों पर क्या बीतेगी? उसे जन्म देने, बड़ा करने और एक मुकाम तक पहुंचाने में मदद करने वाली मां का मन किस कदर छलनी हो जाएगा? मां के अरमान रहे होंगे, उसे सब से कामयाब हीरोइन बनता देखने के, उस की शादी कराने और बुढ़ापे में करीब रखने के, मगर जिया की मौत के बाद अब उन की स्थिति क्या है?
सदमे को सहने के साथसाथ सूरज को दंड दिलाने की आग मन में लिए कोर्टकचहरी के चक्कर लगाते हुए उन के दिल में यह दर्द जरूर उठता होगा कि क्या इसी दिन के लिए बेटी पैदा की थी? जिया की मां राबिया खान ने एक इंटरव्यू में बताया, ‘‘जिया जुझारू थी और इस बात पर विश्वास करना बेहद मुश्किल है कि उस ने आत्महत्या कर ली है.’’ एक ऐसा ही उदाहरण है मुंबई के विमल जालान का, जिन्होंने 4 साल पहले अपनी बेटी खोई थी.
निधि गुप्ता: मर कर आखिर मिला क्या
8 मार्च, 2011 की सुबह, मुंबई के व्यवसायी, विमल जालान के पास अपने दामाद के बड़े भाई राकेश का फोन आया कि वे जल्दी से जल्दी संजीवनी हौस्पिटल, मलाड पहुंच जाएं. उन की बेटी निधि और दोनों बच्चे बिल्डिंग की छत से गिर गए हैं. विमल तुरंत संजीवनी हौस्पिटल पहुंचे, पर उन्हें अपनी बेटी व बच्चे कहीं नहीं दिखे. वे हैरानपरेशान इधरउधर ढूंढ़ने लगे. कोई उन्हें कुछ नहीं बता रहा था. वे अपना आपा खो बैठे और अपने दामाद पवन को झकझोरते हुए पूछने लगे कि उस ने निधि के साथ क्या किया. तब एक पुलिस औफिसर ने उन्हें निधि और बच्चों की डैड बौडी, ऐंबुलैंस में रखी दिखाई. अपनी बेटी और नातियों को खून से लथपथ पड़ा देख वे सकते में आ गए. निधि दोनों बच्चों समेत 19वीं फ्लोर से कूद कर मरी थी.
निधि गुप्ता की शादी 9 मार्च, 2002 को मुंबई के बिजनेसमैन परिवार में हुई थी. उस वक्त ससुराल वालों ने कहा था कि वे एक हाउसवाइफ चाहते हैं. सी.ए. निधि के लिए यह फैसला आसान न था. उस ने उस समय यह बात स्वीकार कर ली. पर 1 साल बीततेबीतते निधि की विवाहित जिंदगी में परेशानियां आने लगीं. पहले कहा गया था कि उस का पति पवन फैमिली बिजनैस में हाथ बंटाता है पर धीरेधीरे यह साफ होने लगा कि वह काम के बजाय इधरउधर आवारा घूमता है और शराबसिगरेट का आदी है. इधर संयुक्त परिवार की वजह से निधि का अपनी जेठानी से भी तनाव रहने लगा. इसी बीच 2 बच्चे उस की गोद में आ गए. आर्थिक स्थिति बेहतर रखने के लिए वह पार्टटाइम जौब भी करने लगी. मगर हालात में खास बदलाव नहीं आया. मरने से पहले मां से बात करते वक्त भी निधि ने किसी तरह की परेशानी का जिक्र नहीं किया. 2-3 दिनों में घर आने की बात की पर इस बीच यह हादसा हो गया. मां को इस बात का मलाल रहा कि वे उस दिन बात करते हुए अपनी बच्ची के दिल में चल रहे तूफान को महसूस क्यों नहीं कर सकीं. ससुराल वालों का कहना है कि यह आत्महत्या का मामला था जबकि उस के पिता ने दहेज और आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज कराया.
विमल जालान के शब्दों में, ‘‘मैं मान ही नहीं सकता कि मेरी बेटी ऐसा कोई कदम उठा सकती है. वह पढ़ीलिखी और संस्कारी थी, हिम्मती थी. उस ने सी.ए. की पढ़ाई की थी. हम लोगों के पास पैसों की कमी नहीं. भला फिर वह बच्चों के साथ अपनी जान स्वयं कैसे दे सकती है?’’ 4 साल गुजर जाने के बावजूद मांबाप दोनों के दिलों में इस बात का दर्द सब से गहरा है कि उन की बेटी उन से दूर क्यों और कैसे चली गई. क्या उस की हत्या हुई? क्या किसी ने जबरन उसे धक्का दिया या फिर ऐसा करने को उकसाया अथवा जिंदगी इतनी कठिन बना दी कि उसे ऐसा करने को मजबूर होना पड़ा? इस के लिए कुसूरवार लोगों को सजा कैसे दिलाई जाए? निधि की जेठानी और पति को गिरफ्तार किया गया, मगर शीघ्र ही जमानत पर छूट गए.
वक्त के साथ सब सामान्य हो जाता है. जाने वाले के साथ कोई नहीं जाता, मगर जाने वाले की यादें और उसे बचा न पाने का मलाल उस के करीबी रिश्तेदारों का उम्र भर साथ नहीं छोड़ता. दिल्ली की विमला कहती हैं, ‘‘एक बच्चे को जन्म देने और बड़ा करने के दौरान मां बहुत कुछ सहती है. बच्चे के साथ सोती है, उस के साथ ही उठती है. बच्चा बीमार पड़ जाए, उसे चोट लग जाए या जिंदगी की रेस में पीछे रह जाए तो बच्चे से कहीं ज्यादा पीड़ा मांबाप को पहुंचती है. इतने प्रयासों से बच्चे को बड़ा करने वाले मांबाप उस वक्त स्वयं को लुटा महसूस करते हैं जब पता चलता है कि एक छोटी सी वजह से बच्चे ने स्वयं को समाप्त कर लिया. इतने कष्ट सह कर जब मांबाप बच्चे से खुशियों की उम्मीद करते हैं, तो बच्चा कांटों का गुलदस्ता दे कर आंगन सूना कर चला जाए तो क्या महसूस होगा?’’ फोर्टिस हैल्थकेयर, नई दिल्ली के मनोचिकित्सक समीर पारिख कहते हैं, ‘‘जब कोई शख्स आत्महत्या करता है, तो उस के परिवार वालों की स्थिति काफी सोचनीय हो जाती है. अचानक किसी अपने द्वारा यों मौत को गले लगाने पर परिवार वाले स्वयं को कुसूरवार मानने लगते हैं.’’
हादसे के बाद घर वालों और रिश्तेदारों के मन में कुछ इस तरह की भावनाएं आघात करने लगती हैं:
धक्का/सदमा: हादसा होते ही अपनों को एक झटका सा लगता है. वे खुद को शारीरिक व मानसिक रूप से शून्य महसूस करने लगते हैं. वे बहुत समय तक इस बात को स्वीकार ही नहीं कर पाते कि वाकई ऐसा हो गया है.
क्रोध: आत्महत्या के बाद उस शख्स के करीबियों के मन में क्रोध भी पैदा होता है. यह क्रोध मरे व्यक्ति के प्रति दूसरे रिश्तेदारों या घटना के लिए कुसूरवार शख्स के प्रति हो सकता है.
अपराधबोध: कोई आत्महत्या कर ले तो उस के करीबी इस एहसास से उबर नहीं पाते कि यदि वे सतर्क होते तो यह हादसा रोका जा सकता था.
डर: परिवार वालों को यह खौफ भी रहता है कि कहीं इस की नकल कर दूसरे सदस्य भी आत्महत्या न कर लें.
राहत: बहुत कम मामलों में ऐसा होने पर परिवार वाले राहत महसूस करते हैं और ऐसा तब होता है जब वह सदस्य किसी गंभीर बीमारी आदि से गुजर रहा हो तथा उन्हें लगे कि चलो वह हर तकलीफ से आजाद हो गया.
डिप्रैशन: परिवार वाले अवसाद की परेशानी से भी ग्रस्त हो सकते हैं. इस से अनिद्रा, भूख न लगना, थकावट, जीने के प्रति उत्साह में कमी जैसी कोई भी समस्या हो सकती है. ऐसी स्थिति में जरूरी है परिवार वाले स्वयं को दोष देने के बजाय पुरानी यादों को दिलोदिमाग से निकाल कर आगे बढ़ें.
किस को क्या फर्क पड़ता है
आत्महत्या का विचार सब से पहले इस सोच के साथ आता है कि मैं जीऊं या मरूं, किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता. हाल ही में फोर्टिस अस्पताल के मनोवैज्ञानिक डा. समीर पारिख की अगुआई में दिल्ली एनसीआर के 3,000 वयस्कों पर किए गए एक अध्ययन में पता लगा कि 86% लोग ऐसे किसी शख्स को नहीं जानते थे, जिस ने आत्महत्या की हो या करने का प्रयास किया हो. जाहिर है, आज समाज के लोग स्वयं में इतने व्यस्त हैं कि उन्हें अपने सब से करीबी पड़ोसी तक की कोई खबर नहीं रहती. भले ही आत्महत्या करने वाले मानसिक रूप से बीमार होते हैं, मगर इस की वजह भी उन का अकेलापन ही है. और तो और लोग आत्महत्या का प्रयास करने वालों के प्रति भी नकारात्मक रवैया रखते हैं. इस अध्ययन में शामिल लोगों में से 86% ने आत्महत्या की प्रवृत्ति को कायरता माना तो 58% लोग आत्महत्या की सोच को बीमारी नहीं मानते. 85% लोगों ने कहा कि यह अटैंशन खींचने का तरीका है. 90% लोगों को लगता है कि इस का इलाज मुमकिन नहीं. समाज का यह रवैया सही नहीं. लोगों को यह समझना होगा कि आत्महत्या की सोच रखना व्यक्ति को मानसिक कमजोरी का लक्षण है और वह कोई बड़ा कदम उठाए, उस से पहले यदि उसे काउंसलिंग मिल जाए तो इस तरह के हादसों से काफी हद तक बचा जा सकता है. डा. समीर पारिख कहते हैं कि 90% आत्महत्या करने वाले मानसिक रूप से अस्वस्थ होते हैं पर इस का इलाज हो सकता है.
जिंदगी को दें एक मौका और
यह सच है कि अवसादग्रस्त इंसान पूरी तरह टूट जाता है और उसे अपनी जिंदगी, अपना वजूद, रिश्तेनाते, सब कुछ बेमानी लगने लगता है. यदि वह इस से उबरने का हौसला रखे तो कोई वजह नहीं कि वह इस में सफल न हो. कभीकभी अवसाद हमारे रचनात्मक पक्ष को बाहर लाने और निखारने का काम भी करता है. यह कई दफा जीवन को बदलने वाला सकारात्मक अनुभव भी बन जाता है. नीदरलैंड में एक अध्ययन में इस बात की पुष्टि हुई है कि लंबे समय में अवसाद हमारा कुछ उपकार कर सकता है. हम शेफील्ड द यार्कशायर की हेलैन मैक लैनेन का उदाहरण ले सकते हैं. 11 वर्ष पहले वह एक ऐसे दौर का शिकार हुई कि वह मानसिकरूप से बिलकुल टूट गई. वह क्लीनिकल और बाइपोलर डिप्रैशन का शिकार हो गई थी. स्थिति ऐसी हो गई कि उस ने आत्महत्या का प्रयास भी किया.
बकौल हेलैन, ‘‘वह ऐसा दौर था कि रोज रात में मैं अपने पति को फोन कर के कहती थी कि मैं स्वयं को खत्म कर लेना चाहती हूं. मैं फ्राईडे घर जाती तो मंडे ही औफिस के लिए निकलती थी और फिर से वही व्यस्त दिनचर्या शुरू हो जाती थी.’’
अंत में मैडिकल काउंसलिंग और मैडिकेशन से वह ठीक हुई. पर इस दौरान जिंदगी के प्रति उस का नजरिया बिलकुल बदल गया था. उस ने डिप्रैशन से पीडि़त लोगों के लिए एक वैबसाइट डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डौट डिप्रैशनकैनबीफन डौट कौम नाम से शुरू की. उस ने यह साइट इसलिए बनाई थी, क्योंकि वह यह बात समझ चुकी थी कि नौकरी के दबाव से शुरू हुए उस के मानसिक स्वास्थ्य संकट ने अंतत: उस के जीवन का कायाकल्प कर दिया है. वह एक बेहतर इंसान बन चुकी थी. इस वैबसाइट का मकसद है, मानसिक स्वास्थ्य/डिप्रैशन के प्रति लोगों को जागरूक करना और इस से पीडि़त व्यक्ति व उस के परिवार के सदस्यों को जानकारी देना व सहयोग करना.
बकौल हेलैन, ‘‘मैं खुश हूं कि मैं अवसाद के दौर से गुजरी. मैं काफी अच्छा महसूस कर रही हूं, क्योंकि अब मैं अपना समय दूसरों की मदद में व्यतीत कर सकती हूं. यह मेरे जीवन को नई दिशा देने वाला एक बिंदु था.’’
विभिन्न देशों में होने वाले शोधों के अनुसार, पूरी दुनिया में 12% महिलाएं अवसाद से ग्रस्त हैं. कार्यालयों में काम करने वाली महिलाएं विशेषरूप से अवसाद का शिकार होती हैं, क्योंकि उन्हें कार्यालय के साथसाथ घरेलू जिम्मेदारियां भी निभानी पड़ती हैं. कुछ महिलाएं आर्थिक तंगी और ससुराल में बुरे व्यवहार के कारण भी अवसादग्रस्त हो जाती हैं. शोधों के मुताबिक महिलाएं पुरुषों से दोगुना ज्यादा अवसाद का शिकार होती हैं.
समस्या का समाधान नहीं आत्महत्या
इस संदर्भ में शिकागो की क्रिसटेन जेन एंडर्सन का जिक्र करना भी जरूरी है. उस वक्त वह सिर्फ 17 साल की थी. उस ने ट्रेन के नीचे कट कर अपनी जान देनी चाही. ऐक्सीडैंट में उस ने अपने पैर गंवा दिए, फिर भी उसे जीने की वजह मिल गई. वह याद करती है कि टीनएज में एक ऐसा दौर आया, जब उस के साथ कुछ ठीक नहीं हो रहा था. उस की दादी की मौत हो गई. कई दोस्त पीछे छूट गए. एक को बे्रन ट्यूमर हो गया, 2 अन्य बीमारी से मर गए जबकि एक ने आत्महत्या कर ली. परिस्थितियां अच्छी होने के बजाय खराब ही होती गईं. और तब एक रात उस की सारी उम्मीदें जाती रहीं. वह उस वक्त अपने दोस्त के घर थी. अपने घर लौटने के बजाय वह एक पार्क में चली गई, जहां वह बचपन में अकसर जाती थी और एक झूले पर उसी तरह झूलने लगी जैसे बचपन में झूला करती थी. वह अपनी उस सहेली के बारे में सोचने लगी, जो आत्महत्या कर मौत को गले लगा चुकी थी. एंडर्सन के पास वह औप्शन भी था. अचानक भावावेश में आ कर उस ने फैसला लिया कि वह ट्रेन के नीचे कट कर अपनी जान दे देगी. फिर जैसे ही एक ट्रेन आती दिखी, एंडर्सन ट्रैक पर लेट गई. ट्रेन उस के ऊपर से गुजरती चली गई. ट्रेन गुजरने के बाद एंडर्सन ने इधरउधर देखा, दाहिनी तरफ करीब 10 फुट की दूरी पर 2 कटे पैर दिखे. उस ने अपने शूज की वजह से उन पैरों को पहचान लिया. पर उस के शरीर में कोई हरकत संभव नहीं थी. तुरंत ट्रेन इंजीनियर्स की मदद से उसे स्थानीय अस्पताल पहुंचाया गया. उस के शरीर से काफी खून बह चुका था और वह अपने पैर भी गंवा चुकी थी. लोग हैरान थे कि वह इस स्थिति में भी बातें कर रही थी. उसे अब शारीरिक और मानसिक दोनों ही तरह की हीलिंग की जरूरत थी.
‘मुझे स्वयं को माफ करना होगा,’ ऐसा उस ने मन ही मन कहा. फिर काउंसलिंग का दौर चला. एंडर्सन ने व्यक्तिगत विषयों पर परिवार के साथ विस्तार से चर्चा की, जो पहले कभी नहीं की थी. एंडर्सन कहती है, ‘‘मैं ने कभी नहीं सोचा था कि ऐसी स्थिति आएगी. मैं अब महसूस करती हूं कि काश, पहले ही इन विषयों पर बातें कर लेती तो मन हलका हो जाता और आत्महत्या की कोशिश न करती.’’ काफी समय तक काउंसलिंग लेने पर वह धीरेधीरे ठीक होती गई. हाई स्कूल के कई स्टूडैंट्स उस के पास आए. उन में से ज्यादातर ने कहा कि कभी न कभी उन्होंने भी आत्महत्या की बात सोची. एंडर्सन को महसूस हुआ कि वह अपनी कहानी शेयर कर उन की मदद कर सकती है. इस तरह उसे वह खुशी और शांति मिलने लगी, जो उस ने पहले कभी महसूस नहीं की थी. वह धीरेधीरे ठीक होती गई. बाद में उस ने ‘रीचिंग मोर मिनिस्ट्री’ किताब लौंच की और एक किताब, ‘लाइफ इन स्पाइट औफ मी: ऐक्स्ट्रा और्डिनरी होप आफ्टर ए फैटल चौइस’ लिखी.
एंडर्सन कहती है, ‘‘जो व्यक्ति संघर्ष कर रहा है, उसे समझना होगा कि वह अकेला नहीं है. लोग उस की केयर करते हैं. उम्मीद हमेशा कायम रहती है.’’ व्हीलचेयर पर होते हुए भी आज एंडर्सन अपनी जिंदगी पति और बच्चों के साथ खुशी से गुजार रही है. वह कहती है कि आत्महत्या किसी भी समस्या का समाधान नहीं. अत: अपनी जिंदगी खत्म करने का खयाल छोड़ें और जिंदगी को एक मौका और दें. आप को जान कर आश्चर्य होगा कि बहुत से ऐसे सैलिब्रिटीज हैं, जिन्होंने जिंदगी में आत्महत्या की बात सोची, मगर फिर खुद में हौसला पैदा कर आगे बढ़ गए.
जे.के. रोलिंग
हैरी पोटर सीरीज की रचयिता और जानीमानी रहस्यात्मक उपन्यासकार, रोलिंग को अपार सफलता से पहले डिप्रैशन के दौर से गुजरना पड़ा था. एक सिंगल मदर होने और वैवाहिक जिंदगी की टूटन से पैदा तनाव के बीच उस ने आत्महत्या करने की सोची. पर बाद में अपनी बेटी जेसिका को प्रेरणास्रोत मानते हुए और उस की खातिर इन परिस्थितियों से उबरी और लेखन कार्य में लग गई. आज वह दुनिया की सब से धनवान महिलाओं में से एक है. वह आज भी उन कठिन दिनों की याद करती है. मगर स्वयं को कभी ब्लेम नहीं करती.
हेली बेरी
आप को यह जान कर आश्चर्य होगा कि हौलीवुड की अश्वेत स्टार, हेली बेरी भी डिप्रैशन की शिकार थी. उस की 2 शादियां टूट गई थीं. इस दौरान वह इस कदर तनावग्रस्त हो गई थी कि उस ने आत्महत्या का निश्चय कर लिया, पर नियमित थेरैपी सैशंस ने उसे मानसिक रूप से फिर से मजबूत बना दिया और एक बार फिर से जीवन के प्रति उस में उत्साह पैदा हो गया. बकौल हेली बेरी, ‘‘मेरी टूटती शादियों ने मुझे पूरी तरह से तोड़ दिया था. इस से मैं ने अपना आत्मविश्वास खो दिया और मैं स्वयं को मारने की बात सोचने लगी.’’
बज एल्ड्रिन
चंद्रमा से लौटने के बाद एल्ड्रिन को टूटी हुई शादी से जूझना पड़ा और वह गहरे अवसाद में चला गया. उसे डिप्रैशन के लिए थेरैपी लेनी पड़ी. बाद में तीसरी शादी की और खुशहाल विवाहित जिंदगी गुजारी.
सिगमंड फ्रायड
काफी लंबे समय तक सिगमंड फ्रायड भी मानसिक बीमारी, तनाव, डिप्रैशन से जूझता रहा था. मगर बाद में अपने सिद्धांतों व खोजों ने उसे मनोवैज्ञानिकों में एक खास दर्जा दिया. दरअसल, जिंदगी में हमें न तो इतना पजैसिव होना चाहिए कि किसी एक की वजह से हम अपनी जिंदगी ही समाप्त कर लें और न ही ऐसी स्थिति आने देनी चाहिए कि समाज से पूरी तरह कट जाएं और स्वयं को महत्त्वहीन या असफल मानने लग जाएं. यह सच है कि हालात कभीकभी हमें उस मोड़ पर ला खड़ा करते हैं कि हमें कोई उम्मीद नजर नहीं आती. पर याद रखें, रास्ते हमेशा खुले हुए हैं. एक रास्ता बंद हो जाए तो दूसरे रास्ते की तरफ बढ़ जाएं. क्या पता कोई बेहतर कल हमारा इंतजार कर रहा हो. निराशा के अंधेरे में खोने के बजाय आशा की एक किरण भी नजर आए तो उस का दामन जरूर थाम लें. जीवन में बड़े उद्देश्यों को महत्त्व दें. छोटीछोटी बातों को नजरअंदाज करें.