मामला परशुराम के पिता का पुत्रों को मां का वध करने का हो, अहिल्या का इंद्र के धोखे के कारण अपने पति को छलने का या शंबूक नाम के एक शूद्र द्वारा तपस्या करने पर राम के हाथों वध करने का, हमारे धर्म ग्रंथों में तुरंत न्याय को सही माना गया है और उस पर धार्मिक मुहर लगाई गई है. यह मुहर इतनी गहरी स्याही लिए है कि आज भी मौबलिंचिंग की शक्ल में दिखती है.

असम में तिनसुकिया जिले में भीड़ ने पीटपीट कर एक पति व उस की मां को मार डाला, क्योंकि शक था कि उस ने अपनी 2 साल की बीवी और 2 महीने की बेटी को मार डाला. मजे की बात तो यह है कि जब पड़ोसी और मृतक बीवी के घर वाले मांबेटे की छड़ों से पिटाई कर रहे थे, लोग वीडियो बना कर इस पुण्य काम में अपना साथ दे रहे थे.

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देशभर में इस तरह भीड़ द्वारा कानून हाथ में लेने और भीड़ में खड़े लोगों का वीडियो बनाना अब और ज्यादा बढ़ रहा है, क्योंकि शासन उस तुरंत न्याय पर नाकभौं नहीं चढ़ाता. गौरक्षकों की भीड़ों की तो सरकारी तंत्र खास मेहमानी करते हैं. उन्हें लोग समाज और धर्म का रक्षक मानते हैं.तुरंत न्याय कहनेसुनने में अच्छा लगता है पर यह असल में अहंकारी और ताकतवर लोगों का औरतों, कमजोरों और गरीबों पर अपना शासन चलाने का सब से अच्छा और आसान तरीका है.

यह पूरा संदेश देता है कि दबंगों की भीड़ देश के कानूनों और पुलिस से ऊपर है और खुद फैसले कर सकती है. यह घरघर में दहशत फैलाने का काम करता है और इसी दहशत के बल पर औरतों, गरीबों, पिछड़ों और दलितों पर सदियों राज किया गया है और आज फिर चालू हो गया है.जब नई पत्नी की मृत्यु पर शक की निगाह पति पर जाने का कानून बना हुआ है तो भीड़ का कोई काम नहीं था कि वह तिनसुकिया में जवान औरत की लाश एक टैंक से मिलने पर उस के पति व उस की मां को मारना शुरू कर दे.

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