अनुराधा के पति की मृत्यु हुए डेढ़ साल हो चुका है. मृत्यु भी अचानक हो गई थी. कोई बीमारी न थी. बस हार्ट अटैक हुआ और अस्पताल पहुंचने से पहले ही मृत्यु हो गई. अब उन के जाने के बाद भी उन का सामान यानी चश्मा, मोबाइल, परफ्यूम, घड़ी, शेविंग का सामान, जूते ज्यों के त्यों रखे हैं.

अनुराधा की हिम्मत ही नहीं होती कि वह इन चीजों को हटा या किसी को दे दे. हर चीज के साथ एक याद जुड़ी है और उसे अलग करने की बात सोच कर ही वह कांप जाती है. अपनी मृत्यु से 1 दिन पहले एक परिचित की शादी में वे जिस सूट को पहन कर गए थे, उसे छू कर देखती है.

यहां तक कि उस के बेटे का भी कहना है कि पापा की चीजें जैसे रखी हैं, वैसे ही रखी

रहने दें. उन्हें हटाना नहीं. उन का कमरा भी वैसा ही है आज तक, जिस में वे बैठ कर काम करते थे. यहां तक कि मेज पर रखा लैपटौप तक नहीं हटा पाई है. उसे लगता है कि पति अभी काम करने बैठ जाएंगे.

एक पीड़ा से गुजरना पड़ता है

अगर अचानक किसी की मृत्यु हो जाती है तो पहले से ही किसी तरह की तैयारी कर पाना मुमकिन नहीं हो पाता है. कोई लंबे समय से बीमार हो या वृद्ध तो पहले से बहुत सारी बातों के बारे में सोचा जा सकता है, पर अचानक चले जाने से शोकाकुल परिजनों को न पहले सोचने का मौका मिलता है न बाद में. मृतक से जुड़ी हर चीज जहां उस के होने का एहसास दिलाती है, वहीं उस के न होने का दर्द भी हर पल ताजा किए रहती है. इस पीड़ा को केवल वही समझ सकता है, जिस ने इसे सहा हो. महीनों, कई बार वर्षों लग जाते हैं इस वास्तविकता को स्वीकारने में और तभी निर्णय ले पाते हैं कि उस की चीजों का क्या किया जाना चाहिए.

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