एकसाथ घूमनाफिरना, खाना खाना, कुछ दिन और रातें साथ  बिताना एक बात है पर शादी का कमिटमैंट निभाना कुछ और है.

‘मकड़ी’ और ‘मर्द को भी दर्द होता है’ फिल्मों की ऐक्ट्रैस श्वेता प्रसाद बासु ने 2018 से 4 साल पहले तक रोहित मित्तल से प्रेम की पींगे चढ़ाईं, 2018 में शादी कर ली और 8-9 महीनों के बाद तलाक ले लिया.

फिल्मी हस्तियों का तलाक एक आम बात मानी जाती है और यह कह कर टाल दिया जाता है कि शो बिजनैस में खूब अहम और खुला सैक्स होता है इसलिए शादी टूट जाती है.

असल में बात कुछ और है. फिल्मी ऐक्ट्रैसें असल में खुद कमाऊ होती हैं पर शादी के बाद सदियों से ढले पुरुष पति उन पर मर्दाना रोब मारने लगते हैं और यह औरतों को पसंद नहीं होता.

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आम घरों में औरतों को मानसिक, शारीरिक व आर्थिक तौर पर बेहद कमजोर और पालतू बना दिया जाता है. समाज उन्हें पहले रुई की गुडि़या की तरह रखने को कहता है. धूप, पानी और नजरों से बचा कर और बाद में उन पर घर, रसोई, पति, सासससुर, बच्चों की जिम्मेदारियां लाद देता है. विद्रोह करने की, अपनी बात कहने की हिम्मत ही नहीं रहती. वे तो मानसिक और शारीरिक गुलाम सी बन जाती हैं. बिस्तर पर साथ रहते हुए भी औरत को एहसास रहता है कि वह पति की दासी है, सेविका है, बराबर की साझेदार नहीं.

हमारे धर्मग्रंथ इन बातों से भरे पड़े हैं. बाल खोल कर रखने तक को पति के लिए रिजर्व कर रखा गया है. रामायण का उल्लेख कर के कह दिया जाता है कि सीता की मां सुनयना ने सीता को कहा था कि बंधे बाल सौभाग्य की निशानी होते हैं और केवल पति के लिए उन्हें खोलना.

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