Women Objectification: ‘मैं तो तंदूरी मुर्गी हूं यार, गटका ले सैंया अल्कोहल से...’ ‘तू बोतल है अजूल की...’ ‘लौलीपौप लागेलू...’ ऐसे जैये सैकड़ों गाने आप को मिल जाएंगे जहां औरतों को खानेपीने की चीज से जोड़ा गया हो. कभी रोमांटिक अंदाज में, कभी मजाकिया तो कभी आइटम सौंग स्टाइल में. हमारे समाज में औरतों को बचपन से ही एक खास नजरिए से देखा जाता है. चाहे वह परिवार हो, स्कूल हो या फिर मीडिया, हर जगह औरतों को एक ढांचे में फिट करने की कोशिश की जाती है.
बौलीवुड के गाने हों, टीवी विज्ञापन हों या फिर सोशल मीडिया हर जगह औरतों को अकसर एक चीज की तरह पेश किया जाता है जो या तो खूबसूरत या सैक्सी होनी चाहिए या फिर किसी मर्द के सपनों को पूरा करने वाली. इसे ही औब्जैक्टिफिकेशन कहते हैं यानी औरतों को इंसान कम और औब्जैक्ट ज्यादा सम?ा जाता है.
जब औरतों की बात आती है, तो उन्हें अकसर उन की खूबसूरती, उन के शरीर या उन की सैक्सुअल अपील के आधार पर जज किया जाता है. उन की बुद्धि, भावनाएं या इच्छाएं माने नहीं रखतीं. बौलीवुड और विज्ञापनों में यह ट्रेंड सालों से चला आ रहा है. औरतों की खानेपीने की चीजों से तुलना की जाती है जैसे तंदूरी मुर्गी या अजूल की बोतल.
बौलीवुड गानों में औरतों का औब्जैक्टिफिकेशन
फैविकोल से: इस गाने के बोल ‘मैं तो तंदूरी मुर्गी हूं यार, गटका ले सैंया अल्कोहल से...’ न सिर्फ औरत को खाने की चीज (तंदूरी मुर्गी) से तुलना करते हैं बल्कि उसे एक ऐसी चीज के तौर पर भी पेश करते हैं जो मर्दों के लिए उपभोग करने के लिए हैं. गाने में करीना का डांस और उन के कपड़े इस तरह डिजाइन किए गए हैं कि वह सिर्फ मर्दों की नजरों को आकर्षित करें.
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