जनवरी की सर्द रात के सन्नाटे को ‘बचाओबचाओ’ की चीखों ने और भी भयावह बना दिया था. लिहाफकंबल की गरमाहट छोड़ कर ठंडी हवा के थपेड़ों की परवा किए बगैर लोग खिड़कियां खोल कर पूछ रहे थे, ‘चौकीदार, क्या हुआ? यह चीख किस की थी?’ अभिजात्य वर्ग की ‘स्वप्न कुंज’ कालोनी में 5 मंजिला, 10 इमारतें बनी थीं, उन की वास्तुशिल्प कुछ ऐसी थी कि हरेक बिल्ंिडग में जरा सी जोर की आवाज होने से पूरी कालोनी गूंज जाती थी. हरेक बिल्ंिडग में 20 फ्लैट थे. प्रत्येक बिल्ंिडग में 24 घंटे शिफ्ट में एक चौकीदार रहता था और रात को पूरी कालोनी में गश्त लगाने वाले चौकीदार अलग से थे. रात को मेनगेट भी बंद कर दिया जाता था. इतनी सुरक्षा के बावजूद एक औरत की चीख ने लोगों को दहला दिया था.

‘‘चीख की आवाज सी-6 से आई थी साहब,’’ एक चौकीदार ने कहा, ‘‘तब मैं सी बिल्ंिडग के नीचे से गुजर रहा था.’’

‘‘वह तीसरे माले पर रहने वाली प्रीति मैडम की आवाज थी साहब, मैं उन की आवाज पहचानता हूं,’’ दूसरे चौकीदार ने कहा.

‘‘लेकिन सी-6 में तो अंधेरा है,’’ एक खिड़की से आवाज आई.

‘‘ओय ढक्कन, वह बत्ती जला कर ‘बचाओबचाओ’ चिल्लाएगी,’’ किसी की फब्ती पर सब ठहाके लगाने लगे.

‘‘सब यहीं चोंचें लड़ाते रहेंगे या कोई प्रीति की खोजखबर भी लेगा?’’ एक महिला ने कड़े स्वर में कहा.

‘‘प्रीति मैडम अकेली रहती हैं, आप साथ चलें तो ठीक रहेगा मैडम,’’ चौकीदार ने कहा.

‘‘सी-5 की नेहा वर्मा को ले जाओ.’’

‘‘अपने ‘स्वप्न कुंज’ में रहने वाले सभी अपने से हैं, सो सब लोग तुरंत सपत्नीक सी-6 में पहुंचिए,’’ सोसायटी के प्रैसिडैंट भूषणजी ने आदेशात्मक स्वर में कहा. सभी तो नहीं, लेकिन बहुत से दंपती पहुंच गए. शायद इसलिए कि प्रीति को ले कर सभी के दिल में जिज्ञासा थी. किसी फैशन पत्रिका के पन्नों से निकली मौडल सी दिखने वाली प्रीति 25-30 वर्ष की आयु में ही किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी में उच्च पद पर थी. कंपनी से गाड़ी और 3 बैडरूम का फ्लैट मिला हुआ था. पहले तो हर सप्ताहांत उस के फ्लैट पर पार्टी हुआ करती थी मगर इस वर्ष तो नववर्ष के आसपास भी कोई दावत नहीं हुई थी. कालोनी में चंद लोगों से ही उस की दुआसलाम थी. सी-6 के पास पहुंच कर सभी स्तब्ध रह गए, फ्लैट के दरवाजे में से पतली सी खून की धार बह रही थी. लगातार घंटी बजाने पर भी कोई दरवाजा नहीं खोल रहा था.

‘‘साथ में दरवाजा भी खटखटाओ,’’ सुनते ही चौकीदार और एकदो और लोगों ने दरवाजे को जोर से धक्का दिया लेकिन दरवाजा अंदर से बंद नहीं था इसलिए आसानी से खुल गया. अंदर अंधेरा और सन्नाटा था.

‘‘अंदर जाने से पहले फोन की घंटी बजाओ.’’

‘‘नंबर है किसी के पास?’’

‘‘सोसायटी के औफिस में होगा, पुलिस को बुलाने से पहले…’’ तभी अंदर से अलसाए स्वर में आवाज आई, ‘‘कौन है?’’

‘‘चौकीदार चुन्नीलाल. बाहर आइए मैडम.’’ लाइट जलते ही फिर चीख की आवाज आई, ‘‘ओह नो.’’ नाइट गाउन पहने बौखलाई सी प्रीति खड़ी थी. बगैर मेकअप और अस्तव्यस्त बालों के बावजूद वह आकर्षक लग रही थी.

‘‘आप सब यहां?’’  प्रीति ने उनींदे स्वर में पूछा, ‘‘और इस कमरे का सामान किस ने उलटापलटा है?’’

‘‘यह खून किस का है, तुम ठीक तो हो न प्रीति?’’ नेहा वर्मा ने पूछा. खून देख कर प्रीति फिर चीख उठी, ‘‘ओह नो. यह कहां से आया?’’

‘‘लेकिन इस से पहले आप क्यों चीखी थीं मैडम?’’ चुन्नीलाल ने अधीरता से पूछा.

‘‘घंटी और बोलने की आवाज सुन कर ड्राइंगरूम में आ कर बत्ती जलाई तो यह गड़बड़ देख कर…’’

‘‘उस से पहले मैडम, आप की ‘बचाओबचाओ’ की आवाज पर तो हम यहां आए हैं,’’ चुन्नीलाल ने बात काटी.

‘‘मैं ‘बचाओबचाओ’ चिल्लाई थी?’’ प्रीति चौंक पड़ी, ‘‘आप बाहर क्यों खड़े हैं, अंदर आइए और बताइए कि बात क्या है?’’ सब अंदर आ गए और भूषणजी से सब सुन कर प्रीति बुरी तरह डर गई. ‘‘आज मैं बहुत देर से आई थी और इतना थक गई थी कि सीधे बैडरूम में जा कर सो गई और अब घंटी की आवाज पर उठी हूं.’’

‘‘फिर यहां यह ताजा खून कहां से आया और सोफे वगैरा किस ने उलटे?’’ चौकीदार चुन्नीलाल ने कहा, ‘‘लगता है चोर अभी भी कहीं दुबका हुआ है, चलिए, तलाश करते हैं.’’ सभी लोग तत्परता से परदों के पीछे और कमरों में ढूंढ़ने लगे. महिलाएं सुरुचिपूर्ण सजे घर को निहार रही थीं. प्रीति संयत होने की कोशिश करते हुए भी उत्तेजित और डरी हुई लग रही थी. कहीं कोई नहीं मिला. एक बैडरूम बाहर से बंद था. ‘‘हो सकता है जब हम लोग अंदर आए तो परदे के पीछे छिपा चोर भी भीड़ में शामिल हो कर बाहर भाग गया हो क्योंकि सभी अंदर आ गए थे. दरवाजे के बाहर और नीचे गेट पर तो कोई था ही नहीं,’’ एक चौकीदार ने कहा.

‘‘लेकिन भाग कर कहां जाएगा, मेनगेट तो बंद होगा न,’’ प्रीति बोली, ‘‘लेकिन अंदर कैसे आया? क्योंकि मेरा डिनर बाहर था सो नौकरानी को शाम को खाना बनाने आना नहीं था इसलिए वह चाबी ले कर नहीं गई. चाबी सामने दीवार पर टंगी है और मैं नौकरानी के जाने के बाद औफिस गई थी, इसलिए ताला मैं ने स्वयं लगाया था.’’ ‘‘तो फिर यह उलटपलट और खून? इस का क्या राज है?’’ प्रीति के फ्लैट के ऊपर रहने वाले डा. गौरव ने गहरी नजरों से प्रीति को देखा. प्रीति उन नजरों की ताब न सह सकी. उस ने असहाय भाव से सब की ओर देखा. सभी असमंजस की स्थिति में खड़े थे.

‘‘सोफे और कुरसीमेजों को क्यों उलटा?’’ एक युवती ने कहा, ‘‘प्रीतिजी इन के नीचे तो कीमती सामान या दस्तावेज रखने से रहीं.’’

‘‘एक बैडरूम पर ताला है न, और अकसर लोग चाबी आजूबाजू में छिपा देते हैं, सो चाबी की तलाश में यह सब गिराया है और खून तो लगता है जैसे किसी को गुमराह करने के लिए ड्रौपर से डाला गया है…’’

‘‘तुम तो एकदम जासूस की तरह बोल रहे हो चुन्नीलाल,’’ किसी ने बात काटी.

‘‘पुलिस का सेवानिवृत्त सिपाही हूं, साहब लोगों के साथ अकसर तहकीकात पर जाता था.’’

‘‘तभी जो कह रहा है, सही है,’’ प्रीति के फ्लैट के नीचे रहने वाली नेहा वर्मा बोलीं, ‘‘अपने यहां की छतें इतनी पतली हैं कि कोई तेज कदमों से भी चले तो पता चल जाता है. फिर इतने भारी सामान के उलटनेपलटने का पता हमें कैसे नहीं चला?’’

‘‘आप सारा दिन घर में ही थीं क्या?’’ डा. गौरव ने पूछा.

‘‘सुबह कुछ घंटे पढ़ाने गई थी, 2 बजे के बाद से तो घर में ही थी.’’ ‘‘और यह उलटपलट तो प्रीतिजी के घर लौटने के बाद ही हुई है. अगर पहले हुई होती तो क्या लौटने पर उन्हें नजर नहीं आती?’’ वर्माजी ने जोड़ा, ‘‘मैं ड्राइंगरूम में बैठ कर औफिस का काम कर रहा था. मैं ने प्रीतिजी के घर में आने की आवाज सुनी थी. उस के बाद जब तक मैं काम करता रहा तब तक तो ऊपर से कोई आवाज नहीं आई.’’

‘‘आप ने कब तक काम किया?’’

‘‘यही कोई 11 बजे तक. उस के बाद मैं सो गया और फिर ‘बचाओबचाओ’ की आवाज से ही आंख खुली.’’ ‘‘उलटपलट तो मेरे आने से पहले भी हो सकती है,’’ प्रीति कुछ सोचते हुए बोली, ‘‘क्योंकि देर से आने पर यानी जब किचन से कुछ लेना न हो तो मैं बगैर ड्राइंगरूम की लाइट जलाए सीधे बैडरूम में चली जाती हूं. यहां कुछ न मिलने पर शायद इस इंतजार में रुका होगा कि मेरे आने के बाद स्टील कबर्ड खुलेगा तब कुछ हाथ लग जाए.’’ ‘‘खून का राज तो खुल गया मैडम,’’ चुन्नीलाल ने ड्राइंगरूम के दरवाजे के पीछे झांकते हुए कहा, ‘‘यह देखिए, यह चटनी की शीशी टेबल से गिर कर लुढ़कती हुई दरवाजे से टकरा कर टूटी है…’’

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