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मुन्ना के पहले उन की 2 बेटियां और थीं. वह सोचते थे कि बेटियां तो पराया धन होती हैं. दूसरे घर चली जाएंगी. उन का बेटा मुन्ना ही बुढ़ापे में उन की सेवा करेगा. उस की बहू आ जाएगी तो वह उन की सेवा करेगी. फिर नातीनातिन हो जाएंगे तो वे बाबाबाबा कहते हुए उन के आगेपीछे घूमेंगे. मुन्ना बचपन में आए- दिन बीमार पड़ जाता था. उन्होंने उस की बड़ी सेवा की थी और धन भी खूब लुटाया था. न जाने कितने दवाखानों की धूल छानी थी. न जाने कितनी मनौतियां मानी थीं. न जाने कितनी रातें जागते हुए गुजार दी थीं. अब उस का रवैया देख कर लगता था कि उन्होंने कितना बड़ा भ्रम पाल लिया था. वह भी कैसे पागल थे.

उन का शरीर बुखार से तप रहा था. कुछ देर तक मुन्ना के कमरे से डिस्को संगीत का शोर और बच्चों के हंगामे की कर्णभेदी आवाजें आती रहीं और उन का सिर दर्द से फटता रहा. फिर खामोशी छा गई. कमरे के सन्नाटे में छत के पंखे की खड़खड़ाहट गूंजती रही. उन्हें लेटेलेटे बारबार यह खयाल सताता रहा कि बहू बेटे को उन से कोई हमदर्दी नहीं है. बहू ने तो एक बार भी आ कर नहीं पूछा उन की तबीयत के विषय में.

एकाएक उन्हें अपना गला सूखता सा महसूस हुआ. लो, कमरे में पानी रखवाना तो वह भूल ही गए थे. अब क्या करें? वह उस बुखार में उठ कर रसोई तक कैसे जा सकेंगे? अचानक उन की नजर शाम को पानी से भर कर खिड़की पर रखे गिलास पर गई. उन्होंने उठ कर वही पानी पी लिया.

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