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पिछले 5 साल तक उन्होंने कितनी बार कोशिश की ज्योत्स्ना के पास वापस लौटने की. वह ज्योत्स्ना के बारे में सबकुछ पता करते रहते थे. ज्योत्स्ना के जीवन में आतेजाते उतारचढ़ाव से वह अनभिज्ञ नहीं थे. कई बार दिल करता कि भाग कर जाएं ज्योत्स्ना के आंसू पोंछने... उन की बेटी डाक्टरी की पढ़ाई कर रही थी, जब वह मेडिकल में निकली थी तब उन्हें हार्दिक खुशी हुई थी...गर्व हो आया था बेटी पर...दामिनी ने तो कभी मां बनना चाहा ही नहीं था.

बेटी जब डाक्टरी की पढ़ाई पूरी कर के आ गई तब न जाने कितनी बार उस अस्पताल के गेट पर खड़े रहे थे पागलों की तरह, बेटी की एक झलक पाने के लिए, लेकिन कारों व लोगों की भीड़ में वह कभी भावना को देख नहीं पाए.

तभी उन के जीवन में यह दुखद मोड़ आया. आफिस में ही उन्हें पक्षाघात का अटैक पड़ा. उन के आफिस के दोस्त जब उन्हें अस्पताल ले जाने लगे तब वह बहुत मुश्किल से उन्हें उस अस्पताल का नाम समझा पाए, जहां उन की बेटी काम करती थी, इस उम्मीद में कि शायद उन की अपनी बेटी से अंतिम समय में मुलाकात हो जाए...और ऐसा हुआ भी पर भावना ने उन्हें पहचाना नहीं या फिर पहचानने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई.

वह तो भावना को चिट्ठी लिख कर भी भूल गए थे, लेकिन आज भावना को अपने सामने देख कर उन का अपने परिवार के पास लौटने का सपना अंगड़ाई लेने लगा था. उन की सुप्त भावनाएं फिर जोर पकड़ने लगीं, लेकिन पता नहीं ज्योत्स्ना उन्हें माफ कर पाएगी या नहीं...

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