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मेघ जैसे पूरी रात गरजबरस कर शांत हो चुके थे, वैसे ही प्रिया भी आज पूरी तरह से संतुष्ट हो चुकी थी. मगर देव के जीवन में तूफान आ चुका था. सुबह जब देव की नींद खुली और प्रिया को अपने पास निर्वस्त्र पाया, तो उस के होश उड़ गए.

‘‘म... म... मैं यहां कैसे और आ... आप...’’ हकलाते हुए देव की आधी बातें उस के मुंह में ही रह गईं.

आंसू बहाते हुए प्रिया कहने लगी कि रात को देव ने उस के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की. उस ने बहुत कहा भी कि वह उसे भाई मानती है, पर वह कहने लगा कि मानने से क्या होता है... वह उसे अच्छी लगती है. कितनी कोशिश की, पर देव की मजबूत बांहों से वह खुद को आजाद न कर पाई.

अपनी हरकतों पर देव शर्मिंदा हो गया. उसे लगा कि वह कितना नीच इंसान है, जो बहन समान औरत को अपनी वासना का शिकार बना डाला. उस ने कभी किसी औरत को नजर उठा कर भी नहीं देखा था, तो फिर इतनी बड़ी गलती कैसे हो गई उससे?

जो भी हो, गलती तो हो ही चुकी थी और इस बात के लिए वह प्रिया से माफी भी मांगना चाहता था, पर उस की हिम्मत नहीं पड़ रही थी कि वह प्रिया को फोन करे या उस के सामने जाए. प्रिया ने भी उस के बाद से उसे फोन करना बंद कर दिया था. कहीं प्रिया मेरे ऊपर बलात्कार का केस तो नहीं कर देगी? कर दिया तो क्या होगा? क्या बताएगा वह दुनिया वालों को...अनु को कैसे मुंह दिखाएगा वह? ये सब बातें सोचसोच कर देव की रातों की नींद और दिन का चैन उड़ा जा रहा था. उस की ठंडी पड़ती आवाज सुन कर अनु पूछती भी कि क्या बात है सब ठीक तो है न? पर वह उसे कुछ भी बोल कर शांत कर देता.

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