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रास्तेभर वह सोचविचार करता रहा कि वह कितना गलत था और आभा कितनी सही. मैं ने कभी उसे नहीं समझा. बच्चे घर में मौज करते रहे और मैं बाहर और वह बेचारी हम सब की तीमारदारी में लगी रही. कभी अपने लिए नहीं सोचा उस ने और मैं ने भी क्या सोचा उस के लिए? एक डाक्टर को तो दिखा नहीं पाया. अगर आज उसे कुछ हो जाता, तो क्या करता मैं? क्या पूरी जिंदगी जी पाता मैं उस के बिना? बेटाबेटी, जिन्हें मैं जान से बढ़ कर प्यार करता हूं, उन के सामने आभा को कभी अहमियत नहीं दी वही बच्चे 1 गिलास पानी मांगने पर चिढ़ उठते. देख लिया मैं ने सब और समझ भी लिया. वह रंभा, जो मेरी जेबें खाली करवाती रहती थी, उसे भी देख लिया. कैसे मुंह फेर लिया उस ने मुझ से? चलो अच्छा ही है. वह कहते हैं न, जो होता है अच्छे के लिए ही होता है यही सब सोचते हुए वह कब घर पहुंच गया, पता ही नहीं चला.

देखा तो रिनी बड़े मजे से झूला झूलते हुए किसी से फोन

पर बातें करने में मशगूल थी. सोनू कमरे में बैठा हमेशा की तरह लैपटौप चला रहा था और निर्मला, बाबाजी की आवभगत में लगी हुई थीं. नवल को देखते ही सब की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. बाबाजी तो तुरंत वहां से रफूचक्कर हो गया, क्योंकि पहले ही नवल ने चेता दिया था कि बाबा को घर में न बुलाया करें. उस दिन तो वह चुप रह गया था, लेकिन आज लगता है आभा एकदम सही कहती थी, ये ढोंगी बाबा लोगों को बहला कर सिर्फ उन से पैसे ऐंठते हैं और कुछ नहीं. बाबाओं के कारनामे सुनसुन कर तो अब उन पर से विश्वास ही उठ गया है. लेकिन अभी भी निर्मला जैसे कुछ लोग हैं, जो उन के चरणों में लोट जाने के लिए तत्पर रहते हैं.

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